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आशा कर्मी समुदाय और स्वास्थ्य तंत्र के बीच की कड़ी हैं. वे उपलब्ध स्वास्थ्य सेवाओं की जानकारी देती हैं तथा स्वच्छता, पोषण जैसे महत्वपूर्ण मामलों के बारे में जागरूकता का प्रसार करती हैं.
विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा आयोजित 75वें वर्ल्ड हेल्थ एसेंबली में आशा कर्मियों को ग्लोबल हेल्थ लीडर्स-2022 से सम्मानित किया जाना स्वागतयोग्य है. इससे दस लाख से अधिक कर्मियों के अथक परिश्रम को वैश्विक स्तर पर एक पहचान मिली है. विश्व स्वास्थ्य संगठन ने अपनी प्रशस्ति में कहा है कि यह सम्मान स्वास्थ्य तंत्र से समुदाय को जोड़ने में आशा कर्मियों की महत्वपूर्ण भूमिका के लिए, ग्रामीण क्षेत्र की वंचित आबादी तक प्राथमिक स्वास्थ्य सेवा पहुंचाना, विशेष रूप से कोरोना महामारी के दौरान, सुनिश्चित करने के लिए दिया गया है.
ग्रामीण भारत में आशा कर्मियों की भूमिका के महत्व को लंबे समय से सराहा जाता रहा है, लेकिन यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि अभी भी राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के तहत उन्हें स्वयंसेविका या सामुदायिक स्वास्थ्य कार्यकर्ता के रूप में ही चिह्नित किया जाता है.
आशा कर्मियों के साथ पांच अन्य देशों के स्वास्थ्य कर्मियों को भी यह सम्मान दिया गया है. इस अवसर पर संगठन के महानिदेशक डॉ टेड्रॉस गेब्रेयेसस ने उचित ही कहा है कि बेहद कठिन समय में ये कर्मी मानवता की निस्वार्थ सेवा कर रहे हैं. ग्रामीण भारत में आशा कर्मियों की भूमिका के महत्व को लंबे समय से सराहा जाता रहा है, लेकिन यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि अभी भी राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के तहत उन्हें स्वयंसेविका या सामुदायिक स्वास्थ्य कार्यकर्ता के रूप में ही चिह्नित किया जाता है. ये कर्मी ग्रामीण क्षेत्र की महिलाएं हैं, जिनकी आयु 25 से 45 वर्ष के बीच है. सरकारी मानदंडों के अनुरूप इसमें साक्षर और सक्रिय महिलाओं को शामिल किया जाता है.
राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन के तहत इन सेविकाओं की भूमिका को पहली बार 2005 में स्थापित किया गया था. इनकी जिम्मेदारी स्वास्थ्य व उपचार की बुनियादी सेवा देने की होती है. वे अपने गांव में यह सुनिश्चित करती हैं कि सार्वजनिक स्वास्थ्य कार्यक्रमों में लोग हिस्सा लें. आशा कर्मी वंचित वर्गों, विशेष रूप से महिलाओं और बच्चों, की स्वास्थ्य संबंधी जरूरतों के लिए संपर्क का मूल बिंदु होती हैं. ये सेविकाएं लोगों के बीच स्वास्थ्य एवं स्वच्छता से जुड़ी जानकारियां ले जाकर जागरूकता बढ़ाने में अहम योगदान देती हैं.
ऐसे उत्तरदायित्वों को निभाने के बावजूद उन्हें वेतन के रूप में दो हजार रुपये की मामूली रकम हर माह दी जाती है. इसके अलावा विभिन्न योजनाओं, जैसे जन स्वास्थ्य योजना, बच्चों का टीकाकरण आदि में सहयोग देने के लिए सौ रुपये से पांच सौ रुपये का भत्ता दिया जाता है. कुछ राज्यों में कुछ अधिक भुगतान होता है, पर वह भी मामूली ही है.
महामारी के दौरान आशा कर्मियों ने दिन-रात मेहनत की और स्वयं को खतरे में डालकर ग्रामीण क्षेत्र में संक्रमण को रोकने में उल्लेखनीय योगदान दिया. उन्होंने लोगों की जांच की, जांच के लिए प्रोत्साहित किया, निर्देशों की जानकारी दी, टीका लेने के लिए लोगों को लामबंद किया. इसके बदले उन्हें कोई विशेष वित्तीय सहयोग नहीं मिला.
महामारी के दौरान आशा कर्मियों ने दिन-रात मेहनत की और स्वयं को खतरे में डालकर ग्रामीण क्षेत्र में संक्रमण को रोकने में उल्लेखनीय योगदान दिया. उन्होंने लोगों की जांच की, जांच के लिए प्रोत्साहित किया, निर्देशों की जानकारी दी, टीका लेने के लिए लोगों को लामबंद किया. इसके बदले उन्हें कोई विशेष वित्तीय सहयोग नहीं मिला. इस स्थिति में बदलाव होना चाहिए. पिछले कुछ समय से आशा कर्मी अपनी मांगों को लेकर आंदोलन भी करती रही हैं. हमारी स्वास्थ्य प्रणाली में उनके महत्व को रेखांकित करना आवश्यक है.
वे समुदाय और स्वास्थ्य तंत्र के बीच की कड़ी हैं. वे उपलब्ध स्वास्थ्य सेवाओं की जानकारी देती हैं. इसके अलावा स्वच्छता, पोषण जैसे महत्वपूर्ण मामलों के बारे में जागरूकता का प्रसार करती हैं. वे नजदीकी स्वास्थ्य केंद्रों पर उपलब्ध सेवाओं का लाभ लेने के लिए लोगों को तैयार करती हैं. दवाओं का वितरण भी उनकी एक जिम्मेदारी है. वे प्रजनन और शिशु को स्तनपान कराने के बारे में भी परामर्श देती हैं. यह स्थापित तथ्य है कि भारत के कई राज्यों में आबादी का एक बड़ा भाग स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं का सामना कर रहा है. ग्रामीण भारत में स्वास्थ्य सेवा की कमी के बारे में सभी जानते हैं. ऐसे में हम आशा कर्मियों के महत्व को आसानी से समझ सकते हैं.
हम जानते हैं कि देश की स्वास्थ्य सेवा में बेहतरी के लिए व्यापक तौर पर चिकित्सकों व अन्य स्वास्थ्य कर्मियों की संख्या बढ़ाने तथा संसाधनों का विस्तार करने की आवश्यकता है. योजनाओं और कार्यक्रमों को गांवों और दूर-दराज के इलाकों तक पहुंचाने की जरूरत है. ऐसे में आशा कर्मियों की जरूरत बढ़ जाती है. वे जो सेवाएं देहातों में मुहैया करा रही हैं, उसके लिए उन्हें समुचित मानदेय दिया जाना चाहिए. जितना कौशल उनके पास होता है, उस हिसाब से वे बहुत अधिक जिम्मेदारियों को निभाती हैं.
यदि हम सरकार द्वारा निर्धारित न्यूनतम वेतन की तुलना में भी देखें, तो आशा कर्मियों को बहुत कम मानदेय दिया जाता है. विभिन्न कार्यक्रमों में सहयोग के लिए जो भत्ता मिलता है, वह भी बहुत थोड़ा ही होता है. कम वेतन से कर्मियों में असुरक्षा की भावना बढ़ती है तथा इसका असर उनके कामकाज पर भी पड़ सकता है. आशा कर्मियों को अधिक असरदार बनाने तथा उनकी कामकाजी स्थिति में बेहतरी के लिए विभिन्न उपायों की दरकार है. वेतन और भत्तों में उचित बढ़ोतरी के साथ-साथ उन्हें सामाजिक सुरक्षा प्रदान करने की पहल की जानी चाहिए.
जब उन्हें सामाजिक और आर्थिक सुरक्षा मिलेगी तथा समय-समय पर प्रशिक्षण दिया जायेगा, तो वे अपनी भूमिका को और भी प्रभावी ढंग से निभा सकेंगी.
अब तक के अनुभव इंगित करते हैं कि आशा कर्मी स्वास्थ्य सेवा के विस्तार में कहीं अधिक भूमिका निभा सकती हैं. इसके लिए उन्हें आगे बढ़ने के अवसर उपलब्ध कराने होंगे. यह काम अधिक संसाधन और प्रशिक्षण देकर किया जा सकता है. सबसे जरूरी तो यह है कि उन्हें स्वयंसेविका या सामुदायिक स्वास्थ्य कार्यकर्ता मात्र न माना जाए. ग्रामीण क्षेत्रों में जो नियमित स्वास्थ्य कर्मी हैं, उनमें आशा कर्मियों को भी शामिल किया जाना चाहिए. जब उन्हें सामाजिक और आर्थिक सुरक्षा मिलेगी तथा समय-समय पर प्रशिक्षण दिया जायेगा, तो वे अपनी भूमिका को और भी प्रभावी ढंग से निभा सकेंगी.
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Dr. Shoba Suri is a Senior Fellow with ORFs Health Initiative. Shoba is a nutritionist with experience in community and clinical research. She has worked on nutrition, ...
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