Author : Premesha Saha

Published on Jul 27, 2023 Updated 0 Hours ago

अमेरिका एवं चीन के बीच बढ़ते तनाव और दूसरे महत्वपूर्ण भू-राजनीतिक मुद्दों पर आम राय की कमी ने आसियान को बेअसर बना दिया है. 

ASEAN Summit: क्या आसियान शिखर सम्मेलन से कुछ ठोस हासिल होगा?
ASEAN Summit: क्या आसियान शिखर सम्मेलन से कुछ ठोस हासिल होगा?

कंबोडिया की मेज़बानी में नोम पेन्ह में 10-13 नवंबर 2022 के बीच आयोजित इस साल के दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों के संघ (ASEAN) का शिखर सम्मेलन 2020 में कोविड-19 के फैलने के बाद पहली आमने-सामने की बैठक थी. इस साल की बैठक उस समय आयोजित की गई जब रूस और यूक्रेन के बीच युद्ध छिड़ा हुआ है और जिस युद्ध ने इंडो-पैसिफिक में नियम आधारित व्यवस्था की पूरी भावना और संप्रभुता के विचार को प्रभावित किया है. इसके अलावा अमेरिका और चीन (America and China) के बीच चल रहे मुक़ाबले ने पक्ष लेने के मामले में आसियान के सदस्य देशों के बीच पूरी तरह से बंटवारा पैदा किया है और इसकी वजह से आसियान के देश अक्सर इस भू-राजनीतिक रस्साकशी में फंस जाते हैं. दूसरे वैश्विक मुद्दे जैसे कि जलवायु परिवर्तन, वैश्विक मुद्रास्फीति और खाद्य पदार्थों के बढ़ते दाम के साथ-साथ यूक्रेन पर रूस का आक्रमण और कोविड-19 महामारी के बाद आर्थिक बहाली आसियान शिखर सम्मेलन के एजेंडे में शामिल थे. म्यांमार में जारी संकट शिखर सम्मेलन (Asean Summit) के दौरान चर्चा में छाया रहा. इसके अलावा, दक्षिणी चीन सागर (SCS) को लेकर जारी विवाद, रूस-यूक्रेन युद्ध और अमेरिका-चीन लड़ाई को लेकर भी बातचीत हुई. इस सम्मेलन के दौरान एक स्वागत योग्य घटनाक्रम ये था कि आसियान के 10 सदस्य देश पूर्वी तिमोर को इस संगठन के 11वें सदस्य के तौर पर शामिल करने को लेकर सैद्धांतिक तौर पर सहमत हुए. जब तक पूर्ण सदस्यता नहीं दी जाती तब तक पूर्वी तिमोर को पर्यवेक्षक का दर्जा दिया गया है. वैसे पूर्वी तिमोर को शामिल करने को लेकर कोई ख़ास समय सीमा तय नहीं की गई है. तीन दिनों के शिखर सम्मेलन के महत्वपूर्ण नतीजों में आसियान, ऑस्ट्रेलिया और न्यूज़ीलैंड के बीच मुक्त व्यापार संधि शामिल है. साथ ही अमेरिका और भारत के साथ आसियान के संबंधों को बढ़ाकर “व्यापक सामरिक साझेदारी” के स्तर पर कर दिया गया है.

दूसरे वैश्विक मुद्दे जैसे कि जलवायु परिवर्तन, वैश्विक मुद्रास्फीति और खाद्य पदार्थों के बढ़ते दाम के साथ-साथ यूक्रेन पर रूस का आक्रमण और कोविड-19 महामारी के बाद आर्थिक बहाली आसियान शिखर सम्मेलन के एजेंडे में शामिल थे.

कनाडा के प्रधानमंत्री हुन सेन ने ब्रुनेई से 2022 के लिए आसियान की अध्यक्षता की बागडोर लेते हुए 28 अक्टूबर 2021 को बयान दिया था कि “इस पूरे क्षेत्र में सद्भावना, शांति और समृद्धि के लिए कंबोडिया “आसियान A (एड्रेसिंग) C (चैलेंजेज़) T (टुगेदर) यानी साथ मिलकर चुनौतियों का समाधान” करने की थीम के तहत आसियान का नेतृत्व करने के लिए वचनबद्ध है.” वैसे तो आसियान को वैश्विक चुनौतियों से निपटने के लिए तैयार किया गया था लेकिन इस बात को लेकर चिंता थी कि रूस-यूक्रेन युद्ध, म्यांमार में सैन्य विद्रोह, अमेरिका-चीन प्रतिस्पर्धा और दक्षिणी चीन सागर के विवाद समेत सभी मुद्दों पर इस संगठन में बंटवारे का इस साल की कार्यवाही पर भी असर पड़ेगा. कंबोडिया के प्रधानमंत्री ने शिखर सम्मेलन की शुरुआत करते हुए उम्मीद जताई कि “अलग-अलग नेता स्पष्ट एवं समावेशी बहुपक्षवाद,व्यावहारिकता को बनाए रखने में एकजुटता की भावना को अपनाएंगे और हम सभी के सामने मौजूद अस्तित्व से जुड़ी और सामरिक चुनौतियों का समाधान करने में पारस्परिक सम्मान को जगह देंगे.”

म्यांमार संकट

11 नवंबर 2022 को आसियान शिखर सम्मेलन के दौरान नेताओं ने अप्रैल 2021 में आसियान के नेताओं की बैठक में पांच बिंदुओं पर बनी सर्वसम्मति पर क्रियान्वयन का आकलन किया और ये पाया कि“पांच बिंदुओं पर बनी सर्वसम्मति को लागू करने में थोड़ी ही प्रगति हासिल की गई है”. म्यांमार की सैन्य सरकार के उच्च-स्तरीय आसियान बैठक में शामिल होने का पहले ही बहिष्कार किया जा चुका है. 11 नवंबर 2022 को जारी एक बयान में कहा गया है “इस क्षेत्रीय गुट ने एक बार फिर अपने “पांच बिंदुओं पर बनी सर्वसम्मति” को लागू करने के लिए कहा है जिसमें ये बात कही गई है कि “आसियन म्यांमार के वर्तमान संकट का एक शांतिपूर्ण और स्थायी समाधान तलाशने में म्यांमार की मदद के लिए प्रतिबद्ध है.” बयान में ये जोड़ा गया है कि आसियान के लिए “पांच बिंदुओं पर बनी सर्वसम्मति असलीसंदर्भ बना रहेगा और भले ही म्यांमार की सैन्य सरकार इसे नज़रअंदाज़ कर रही हो लेकिन इसे पूरी तरह से लागू किया जाना चाहिए.” आसियान ने अपना ये रुख़ बनाए रखा कि म्यांमार आसियान का एक अभिन्न अंग है और किसी भी तरह के आर्थिक प्रतिबंध की आवश्यकता को इसने ठुकरा दिया.

विश्लेषकों की ये राय है कि अब वो समय आ गया है जब आसियान को म्यांमार के मुद्दे पर कठोर रुख़ अपनाना चाहिए और इस मामले में आसियान की कार्रवाई काफ़ी धीमी रही है.

आसियान का ये फ़ैसला कई कार्यकर्ताओं और विश्लेषकों को पसंद नहीं आया है. विश्लेषकों की ये राय है कि अब वो समय आ गया है जब आसियान को म्यांमार के मुद्दे पर कठोर रुख़ अपनाना चाहिए और इस मामले में आसियान की कार्रवाई काफ़ी धीमी रही है. कार्यकर्ताओं ने इस बात की तरफ़ ध्यान दिलाया है कि “पूरी आसियान प्रणाली से म्यांमार की सैन्य सरकार की भागीदारी को आसियान के द्वारा अभी तक नहीं हटाना ये दिखाता है कि इस मुद्दे पर नेतृत्व की कमी लगातार जारी है और ये म्यांमार की सैन्य सरकार को अपना अपराध जारी रखने देने के लिए मौन सहमति भी है.” विश्लेषकों ने इस बात की तरफ़ भी ध्यान दिलाया है कि जब तक कंबोडिया के पास आसियान की अध्यक्षता है, तब तक ये उम्मीद करना मुश्किल है कि म्यांमार के मुद्दे पर कठोर रुख़ अपनाया जाएगा क्योंकि ख़बरों के मुताबिक़ “रूस और चीन एक अलग-थलग म्यांमार की सैन्य सरकार को हथियार की सप्लाई के साथ-साथ वैधता भी प्रदान कर रहे हैं.” म्यांमार का मुद्दा अमेरिका और चीन के बीच लड़ाई की एक वजह भी है. हालांकि इंडोनेशिया के राष्ट्रपति जोको विडोडो ने सुझाव दिया है कि “आसियान के आयोजनों में म्यांमार के राजनीतिक प्रतिनिधियों पर प्रतिबंध को व्यापक करने की आवश्यकता है”.लेकिन इंडोनेशिया के प्रस्ताव पर कोई सर्वसम्मति नहीं बन पाई. इसके बावजूद अलग-अलग नेताओं ने ऐसी योजना को लागू करने पर ज़ोर दिया जो “ठोस और व्यावहारिक होने के साथ-साथ शांति को लागू करने की दिशा में एक स्पष्ट समयसीमा के साथ हो” लेकिन दुख की बात ये है कि समयसीमा को लेकर सहमति फिर नहीं बन सकी. आख़िर में, आसियान के नेताओं ने “म्यांमार में सामाजिक और राजनीतिक अराजकता में बढ़ोतरी को देखते हुए सैन्य सरकार को शांति की एक योजना पर ग़ौर करने लायक प्रगति दर्ज करने या फिर इस संगठन की बैठकों से दूर रहने का जोखिम उठाने की चेतावनी”जारी की.

रूस-यूक्रेन युद्ध

आसियान के सदस्य देश इस मुद्दे पर भी बंटे हुए हैं. सिंगापुर इकलौता देश है जो रूस पर आर्थिक प्रतिबंध लगाने के लिए सहमत हुआ है और उसने पश्चिमी देशों के रुख़ का समर्थन किया है. इस तरह ये स्पष्ट था कि आसियान शिखर सम्मेलन के दौरान भी कठोर बयान जारी नहीं करने की कोशिश की जाएगी क्योंकि कुछ आसियान देशों जैसे कि वियतनाम और लाओस का अभी भी रूस के साथ मज़बूत संबंध है. आसियान की बैठक के दौरान रूस का प्रतिनिधित्व विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव ने किया जबकि यूक्रेन के विदेश मंत्री दिमित्रो कुलेबा भी कंबोडिया में मौजूद थे. कुलेबा ने कहा कि “उन्होंने आसियान के कई देशों के नेताओं के साथ सीधी बातचीत की जिस दौरान उन्होंने अनुरोध किया कि यूक्रेन पर रूस के आक्रमण की निंदा की जाए और उन्होंने चेतावनी भी दी कि इस मामले में तटस्थ बने रहना उनके हित में नहीं है.” कुलेबा ने उन नेताओं से अनुरोध किया कि “रूस को काला सागर के अनाज समझौते के तहत यूक्रेन के कृषि उत्पादों के आवागमन को ठप करने से रोका जाए जो 19 नवंबर को ख़त्म हो सकता है”.उन्होंने कहा, “मैं सभी आसियान सदस्यों से कहता हूं कि रूस के द्वारा दुनिया को भूखा छोड़ने से रोकने के लिए सभी संभावित क़दम उठाया जाए.”कंबोडिया में 18 देशों के शिखर सम्मेलन के बाद एक साझा बयान के लिए कठोर भाषा पर रूस और अमेरिका सहमत होने में नाकाम हुए. नवंबर 2022 की शुरुआत में आसियान ने यूक्रेन के साथ दोस्ती और सहयोग की संधि के समझौते पर दस्तखत किया था और इस तरह यूक्रेन के साथ औपचारिक संबंधों की स्थापना का रास्ता तैयार किया था. वैसे तो पश्चिमी देशों, ख़ास तौर पर अमेरिका, ने रूस को अलग-थलग करने की कोशिश की है लेकिन इसके बावजूद रूस ने दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों के साथ अपना संपर्क बनाए रखा है, विशेष रूप से म्यांमार और वियतनाम के साथ. इस तरह इस मुद्दे पर भी आसियान के भीतर बंटवारा साफ़ तौर पर दिखता है.

ये स्पष्ट है कि अमेरिका और चीन जैसी बड़ी शक्तियों के असर और दोनों के बीच बढ़ती प्रतिस्पर्धा ने आसियान शिखर सम्मेलन को धूमिल कर दिया. इंडो-पैसिफिक में क्षेत्रीय स्थिरता पर असर डालने वाले महत्वपूर्ण मुद्दों और म्यांमार संकट को लेकर आसियान के भीतर का बंटवारा साफ़ तौर पर दिखा.

अमेरिका-चीन की लड़ाई

अमेरिका के राष्ट्रपति बाइडेन और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग- दोनों नेता आसियान की प्रमुख बैठकों का हिस्सा बनने के लिए कंबोडिया की राजधानी में मौजूद थे. अमेरिका ने आसियान के साथ अपने संबंधों को बढ़ाते हुए व्यापक सामरिक साझेदारी का दर्जा दिया और बाइडेन ने “वादा किया कि ऐसे क्षेत्र के निर्माण में सहयोग करेंगे जो मुक्त और खुला, स्थिर और समृद्ध, लचीला और सुरक्षित हो.” बाइडेन ने कहा, “मुझे उम्मीद है कि आसियान के साथ मिलकर हम आगे भी काम करेंगे और आसियान का हर देश दक्षिणी चीन सागर से लेकर म्यांमार तक की चुनौतियों का समाधान करने के लिए और साझा चुनौतियों का अभिनव समाधान तलाशने के लिए पूरे क्षेत्र में शांति और समृद्धि में योगदान देगा.” दूसरी तरफ़ पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना के प्रधानमंत्री ली केक़ियांग ने आसियान+3की बैठक में कहा कि, “अशांत वैश्विक सुरक्षा की परिस्थिति में एकपक्षीयता और संरक्षणवाद में बढ़ोतरी हो रही है, आर्थिक एवं वित्तीय जोखिम बढ़ रहा है और दुनिया के विकास के सामने अभूतपूर्व चुनौतियां खड़ी हो गई हैं.”

दक्षिणी चीन सागर विवाद

नोम पेन्ह में 11 नवंबर 2022 को दक्षिणी चीन सागर को लेकर पक्षों के आचरण के घोषणापत्र (DOC) की 20वीं सालगिरह पर अपनाया गया साझा बयान उस घोषणापत्र के अनुच्छेदों को दोहराने की तरह लग रहा था. इस बयान से दिखा कि आसियान साफ़ तौर पर ऐसे कठोर वक्तव्य से दूर रहना चाहता है जो चीन की हरकतों पर उंगली उठाता हुए दिखे, वो चीन जिसने बार-बार DOC के अनुच्छेदों का उल्लंघन किया है. चीन के ख़िलाफ़ कठोर बयान से पता लगता कि आसियान के देश अमेरिका के साथ खड़े हैं. चीन के साथ वर्तमान में आचार संहिता को लेकर बातचीत में दर्ज प्रगति की प्रशंसा की गई. हालांकि ये बातचीत एक दशक से ज़्यादा समय से चल रही है. इसके अलावा आसियान के नेताओं ने आसियान के नेतृत्व वाली व्यवस्था के भीतर इंडो-पैसिफिक को लेकर आसियान के दृष्टिकोण (AOIP) के चार प्राथमिक क्षेत्रों को मुख्यधारा में लाने के लिए भी एक घोषणापत्र को अपनाया है. बयान में आसियान के लिए इस आवश्यकता को स्वीकृति दी गई है कि “इंडो-पैसिफिक में नज़दीकी सहयोग और एक मुक्त, पारदर्शी एवं समावेशी क्षेत्रीय संरचना के लिए दृष्टिकोण का निर्माण किया जाए. साथ ही दक्षिण-पूर्व एशिया और उसके आस-पास के क्षेत्रों में बदलती क्षेत्रीय संरचना में अपनी केंद्रीय भूमिका को बरकरार रखा जाए.”

ये स्पष्ट है कि अमेरिका और चीन जैसी बड़ी शक्तियों के असर और दोनों के बीच बढ़ती प्रतिस्पर्धा ने आसियान शिखर सम्मेलन को धूमिल कर दिया. इंडो-पैसिफिक में क्षेत्रीय स्थिरता पर असर डालने वाले महत्वपूर्ण मुद्दों और म्यांमार संकट को लेकर आसियान के भीतर का बंटवारा साफ़ तौर पर दिखा. ये शिखर सम्मेलन अतीत में आसियान की विश्वसनीयता, जब उसने कई संवेदनशील मुद्दों का सफलतापूर्वक समाधान किया था, को फिर से बहाल करने का एक बड़ा मौक़ा था लेकिन इस मामले में बहुत कुछ हासिल नहीं किया जा सका. इस सम्मेलन के दौरान सिर्फ़ विश्व के नेताओं को आसियान के मंच पर एक साथ खड़ा किया गया और ये दोहराया गया कि आसियान अभी भी इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में बातचीत में समर्थन करने वाला संगठन है.

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