Published on Feb 04, 2022 Updated 0 Hours ago

कंबोडिया द्वारा हाल ही में की गई म्यांमार की यात्रा नें वैश्विक आलोचना को जन्म दिया है. क्या म्यांमार संकट के बीच आसियान समूह के नवनियुक्त प्रधान के तौर पर कंबोडिया आसियान एकता को कायम रख पाने मे सफल होगा?

आसियान: सदस्य देशों का म्यांमार की तरफ बदलता और उभरता रुख़!

वर्ष 2022 की शुरुआत वर्तमान आसियान समूह के प्रधान, कंबोडिया के बहुप्रतीक्षित म्यांमार दौरे से हुई. इस यात्रा ने एक नए विवाद को जन्म दिया. जहां इस दौरे को म्यांमार में हाल ही में हुए तख़्तापलट की मदद से बनी जूनटा सरकार को वैद्यता दिए जाने और तख़्तापलट को मान्यता दिये जाने के प्रयास के रूप में देखा जा रहा है – जबकि यही वो कारण है जिसकी वजह से म्यांमार को पिछले आसियान मीटिंग से बाहर रखा गया था. एक तरफ जहां इस घटना की आलोचना म्यांमार के भीतर और वैश्विक मंच दोनों ही जगहों  पर हो रही है, वहीं कंबोडिया आशा कर रहा है कि किसी तरह से जमीं हुई बर्फ़ को पिघलाया जा सके ताकि भविष्य में वार्ता की राह सुगम हो पाये. 

एक तरफ जहां इस घटना की आलोचना म्यांमार के भीतर और वैश्विक मंच दोनों ही जगहों  पर हो रही है, वहीं कंबोडिया आशा कर रहा है कि किसी तरह से जमीं हुई बर्फ़ को पिघलाया जा सके ताकि भविष्य में वार्ता की राह सुगम हो पाये. 

 

कम्बोडियाई प्रधानमंत्री हुन सेन’ की म्यांमार की यात्रा , पिछले साल फ़रवरी में सैन्य बलों द्वारा सत्ता पर कब्ज़ा किए जाने के बाद, किसी भी विदेशी नेतृत्व द्वारा की गई पहली यात्रा थी. 7 और 8 जनवरी की उनकी दो दिवसीय यात्रा के दौरान, देश में व्याप्त आर्थिक, राजनीतिक और मानवीय संकट जैसी स्थिति पर आगे की बातचीत के लिए, हून सेन सीनियर जनरल मिन आंग हलिंग और सैन्य प्रशासन के अन्य नेताओं से मिले, चूंकि इस साल ये परिवर्तनीय अध्यक्षता कॉम्बोडिया के पास है, प्रधानमंत्री की हाल की यात्रा, पिछले साल अप्रैल माह में पोषित पंचसूत्रीय शांति मसौदे के अम्लीकरण की दिशा में एक प्रयास है, ताकि प्रांतीय सुरक्षा पर म्यांमार संकट की वजह से जो दुष्प्रभाव, जो आसियान संगठन की एकता, विश्वसनीयता और नियम आधारित संगठन की पहचान पर पड़ा उसे दुरुस्त किया जा सके और आसियान की केंद्रीयता को बरकरार रखा जा सके. 

 

2021 में, आसियान समूह ने अपनी स्थापना के वक्त़ से, ख़ुद के द्वारा लागू की गई अहस्तक्षेप नीति से पैदा होने वाले गतिरोधों से अपने आप को मुक्त किया. नियम के अंतर्गत रहने वाले, बेहतर शासन और प्रजातंत्र के नज़रिए से देखे जाने पर, म्यांमार में फरवरी माह में हुई तख़्तापलट नें निश्चित तौर पर आसियान चार्टर का उल्लंघन किया है परंतु आसियान द्वारा दी जाने वाली ऐसी कोई भी संभावित प्रतिक्रिया, अहस्तक्षेप के सिद्धांत के विरुद्ध चलता माना जाएगा. पिछले साल तक, जब-जब आसियान ऐसी किसी दुविधाजनक स्थिति में आई, इसने ख़ुद को प्रतीक्षा करने और समायानुकुल निर्णय लेने की नीति के भरोसे छोड़ दिया है. थाईलैंड में 2014 में हुई तख़्तापलट, उनके ऐसे नज़रिए का एक उदाहरण हैं. इस स्थिति नें इस धारणा को बल दिया है कि आसियान समूह के मध्य प्रजातंत्र की अवधारणा अपने पतन के दौर पर है. अगर आसियान समूह, म्यांमार संकट के दौरान यूं ही चुपचाप बैठी होती और स्थिति के अपने अनुकूल होने का इंतज़ार करती तो, अंतरराष्ट्रीय समुदाय के समक्ष, इस ब्लॉक की साख के चीथड़े उड़ चुके होते, जिससे ये “आसियान समूह के केंद्रीयता” की अवधारणा भी शक के दायरे में आ जाती.   

  

आसियान चार्टर के अंतर्गत, किसी भी आसियान सदस्य के पास किसी सदस्य को निकालने अथवा निष्कासित करने का अधिकार नहीं है, जिसे वे लंबे समय से चले आ रहे अहस्तक्षेप सिद्धांत के परिप्रेक्ष्य के तौर पर देखते हैं.

अप्रैल 2021 के दौरान, इस पंचसूत्री सहमति के द्वारा एक तटस्थ प्रयास किया गया. ये सहमति एक पारस्परिक नीति है जो कि आसियान समूह नें दृढ़तापूर्वक क्रियान्वित किया ताकि वे कूटनैतिक संलिप्तता के माध्यम से म्यांमार के सैन्य शासन के साथ वार्ता को पुनः शुरू कर सके. हिंसा की समाप्ति की वे घोषणा करें और म्यांमार के भीतर की सारी पार्टियों के बीच एक राजनीतिक वार्ता शुरू की जा सके. और संधि और वार्ता प्रक्रिया को शुरू करने के लिए ज़रूरी आसियान विशेष प्रतिनिधि की शुरुआत की जा सके 

आसियान समिट में म्यांमार की कमी

म्यांमार में, उत्पन्न संकट के उपरांत, जब म्यांमार की सैन्य सरकार ने, आसियान सदस्यों द्वारा चुने गए विशेष वार्ताकार को देश के भीतर सर्वदलीय बैठक करने से मना किए जाने के बाद, अक्टूबर में सम्पन्न हुई आसियान समिट में, मिन आंग हलिंग, सहित बाकी अन्य सैन्य सदस्यगणों को उसमें शामिल होने से रोक दिया गया था. म्यांमार से बाद में एक प्रतिनिधि को समिट में शामिल होने के लिए निमंत्रित किया गया था; हालांकि, ये सैन्य नेतृत्व के लिए ये एक असहज कदम माना गया और इस वजह से इस राष्ट्र ने आसियान समिट में, जहां संयुक्त राष्ट्र अमेरिका, चीन और भारत जैसे देशों के नेता उपस्थित थे, उसमें शामिल होने से इनकार कर दिया. उसके बाद, नवंबर माह में चीन में हुई आसियान समिट में भी म्यांमार की कमी महसूस की गई. और जो सबसे ज़्यादा ध्यान आकर्षित करने योग्य बात थी औपचारिक आसियान पर्यावरण और आपदा कॉन्फरेंस में, राष्ट्रीय एकता सरकार (छद्म सरकार) का भाग लेना. एक तरफ ये म्यांमार के जनरल की अपने रुख़ में कोई परिवर्तन न लाने की ज़िद से उपजी निराशा दर्शाती है, वहीं उसका ये रवैया इस ब्लॉक में शामिल अन्य राष्ट्रों: जैसे वियतनाम, लाओस और थाईलैंड आदि के भी गले नहीं उतरा है. 

 

आसियान प्रमुख के तौर पर कंबोडिया की भूमिका 

2022 में, कंबोडिया के आसियान समूह के अध्यक्ष पद पर आसीन होने के तुरंत बाद ही उनका दृष्टिकोण स्पष्टतः झलकने लगा. प्रधानमंत्री हून सेन ने ब्लॉक के इरादे बिल्कुल साफ कर दिए. वो आसियान द्वारा एकमत से जूनटा द्वारा उनको दिए गए पाँच सूत्रीय आम-सहमति की दिशा में काम न करने तक के लिए, उन्हें ब्लॉक की किसी भी प्रकार की मीटिंग में शामिल नहीं करने के निर्णय के विपरीत जायेंगे. उन्होंने साफ किया कि वो म्यांमार के सैन्य प्रशासक के साथ व्यावहारिक जुड़ाव नीति के तहत बातचीत के ज़रिये संकट के समाधान की दिशा में काम करते रहेंगे. उन्होंने  ज़ोर देकर कहा कि आसियान चार्टर के अंतर्गत, किसी भी आसियान सदस्य के पास किसी सदस्य को निकालने अथवा निष्कासित करने का अधिकार नहीं है, जिसे वे लंबे समय से चले आ रहे अहस्तक्षेप सिद्धांत के परिप्रेक्ष्य के तौर पर देखते हैं. 

 

म्यांमार का इस पंचसूत्री सहमति का अनुपालन, एक नए दृष्टिकोण की आवश्यकता का सृजन करेगा जो दृढ़ता और लचीलेपन को जोड़ेगी.

इसके तुरंत बाद जनवरी के दूसरे हफ्ते में हुए उनके दौरे से उन्हें कुछ तात्कालिक उपलब्धियां मिली. 7 जनवरी को किए गए संयुक्त प्रेस वार्ता में, इन समझौतों का “मुखर और स्पष्ट” रूप से वर्णन करते हुए, मीन आंग हलिंग ने इन जातीय सशस्त्र समूह के साथ हुए सीज़फायर को साल के अंत तक और बढ़ाने की पेशकश की. सैन्य नेता ने आगे कहा कि आसियान के विशेष प्रतिनिधि, प्राक सोखोन को देश की राजनीतिक संकट में शामिल सर्वदलीय गुट, साथ ही सशस्त्र अल्पसंख्यक समूह आदि के साथ वार्ता करने की अनुमति दी जाएगी, दोनों राष्ट्रपति ने समिट की मदद से हरसंभव मानवीय सहायता की आपूर्ति/वितरण का समन्वयन करने को लेकर अपनी प्रतिबद्धता को दुहराया. 

एक तरफ जहां इस दौरे से अपेक्षित प्रभाव के आने की बात कही जा रही है. वहीं दूसरी तरफ म्यांमार के भीतर की ज़मीनी सच्चाई जातीय-सैन्य संघर्षों से भरी पड़ी है. जातीय गुटों से लड़ने के लिए, जूनटा नें फूट डालो और राज करो की नीति की राह पर चलते हुए दूसरे गुटों को सीज़फायर के मौके देकर हाशिये पर ला खड़ा किया है. पिछले कुछ दिनों में, काईन राज्य (Kayin state), सगाईंग के कथार टाउनशिप में हुए हवाई फ़ाइरिंग से सारा राष्ट्र थर्रा उठा है. ताआंग नेशनल लिबरेशन आर्मी, केरेन नेशनल लिबरेशन आर्मी, और अन्य गुटों के साथ संघर्ष जारी है जिसकी वजह से हताहतों की संख्या लगातार बढ़ रही है और हजारों नागरिकों को विस्थापित करना पड़ रहा है. तख़्तापलट के बाद, अब तक पुलिस और सेना नें कम से कम 1,447 नागरिकों की हत्या की है, इसके अलावा लाखों लोग घायल हुए हैं और 8500 लोगों को हिरासत में लिया जा चुका है.   

10 जनवरी को हुई हून सेन की यात्रा के तुरंत बाद पूर्व-राज्य सलाहकार ऑन्ग सान सूची की सज़ा की मियाद को चार और सालों के लिए बढ़ा दिया गया, जो लोकतांत्रिक शासन के दमन को लेकर मिलिट्री शासन के रुख़ को दर्शाता है. अगले कुछ महीनों में ऐसे सात और निर्णयों के आने की मियाद तय है जबकि उनके ऊपर पाँच और भ्रष्टाचार के आरोप तय किए गए है. एक तरफ जहां म्यांमार में अशान्ति का माहौल बना हुआ है, सदस्य राज्य अब भी इस बात का इंतज़ार कर रहे है कि 2022 के वर्ष के लिए अध्यक्ष पद पर पदासीन कंबोडिया, अपनी नेतृत्व क्षमता का परिचय देते हुए, म्यांमार को उचित मार्गदर्शन एवं आसियान एकता को संरक्षित करते हुए, उन्हें किनारे नहीं लगने देंगे. फिलहाल तो ऐसा प्रतीत होता है कि सेन के इस कार्यवाही की वजह से आसियान समूह के विदेश मंत्रियों की होने वाली मीटिंग, जो पिछले हफ्त़े होने वाली थी उसको अनिश्चितकाल तक के लिए रोक दिये जाने की वजह से भी ब्लॉक बंटी हुई.     

आसियान के भविष्य का पाठ्यक्रम तय करने में, कंबोडिया की भूमिका काफी संवेदनशील होगी, चूंकि म्यांमार संकट, इस संगठन की वैद्यता और एकता का लिट्मस टेस्ट होगा. सन 2012 में, कंबोडिया आसियान समूह का अध्यक्ष था, और आसियान की मीटिंग में, साउथ चीनी समुद्र में हुए चीन की कार्यवाही के संदर्भ में रही उसकी भूमिका ने आसियान की एकता को काफी नुकसान पहुंचाया था. इस बार, कंबोडिया के पास इसे भुनाने का एक सुनहरा मौका है. यह असफल होगा या फिर ऊपर उठेगा, यह देखना मनोरंजक होगा. म्यांमार का इस पंचसूत्री सहमति का अनुपालन, एक नए दृष्टिकोण की आवश्यकता का सृजन करेगा जो दृढ़ता और लचीलेपन को जोड़ेगी. 

अगले कुछ दिनों में, इस तख़्तापलट के एक वर्ष पूरे होने वाले हैं, यह देखना अति महत्वपूर्ण होगा कि क्या सैन्य शासन, आसियान प्रतिनिधि को आम सहमति कायम करने के लिए बातचीत की अनुमति देगा या फिर हिंसा की मदद से आम सहमति के खिलाफ़

काम करते हुए देश में मानवाधिकार हनन और हिंसा की कार्यवाही को बढ़ाते रहने का काम करेगा, जिससे देश में लोकतांत्रिक व्यवस्था स्थापित करने में देरी होती रहे.


तारुषी सिंह राजौरा ORF  में रिसर्च इंटर्न है. 

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