Author : Girish Luthra

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Published on Sep 13, 2024 Updated 0 Hours ago

एक तरफ जहां आईपीओआई स्तंभों के तहत होने वाली प्रगति अलग थलग पड़ चुकी है, वहीं समुद्री सहयोग के प्रोत्साहन के उद्देश्य से ये एक अति महातपूर्ण मुख्य अवधारणा साबित हुई है.

IPOI के पाँच साल पूरे: अगले चरण पर ले जाने का सही वक्त

वर्ष 2019 में, बैंकॉक में आसियान के नेतृत्व में आयोजित पूर्वी एशिया शिखर सम्मेलन (ईएएस) में, भारत द्वार हिन्द-प्रशांत महासागर पहल (आईपीओआई) को लॉन्च किया गया था. इसका उद्देश्य स्वतंत्र एवं मुक्त हिन्द-प्रशांत एवं नियम आधारित क्षेत्रीय व्यवस्था में सहयोग करना था, जो बदले में, समुद्री क्षेत्र में, सुरक्षा, स्थिरता, और विकास के सुदृढीकरण को सुनिश्चित करता ऐसी उम्मीद थी. इस क्षेत्र (सागर) में सभी के परस्पर सुरक्षता एवं विकास कि घोषणा के बाद, आईपीओआई (IPOI) एक प्रमुख नीतिगत अभिव्यक्ति स्वरूप बन कर उभरा है, जिससे हिन्द-प्रशांत क्षेत्र में बढ़ते जुड़ाव एवं सहयोग के लिए भारत द्वारा विशेष तौर पर दिए जा रहे ज़ोर एवं प्राथमिकता के संदेश प्राप्त होते हैं. एक गैर संधि आधारित स्वैच्छिक व्यवस्था के तौर पर, साझा हितों से संबंधित बेहतर समझ एवं कार्यों के माध्यम से अधिक सामंजस्य एवं एकीकरण स्थापित करना इसका प्रमुख उद्देश्य है. बिना संस्थागत ढांचों की परिकल्पना करते हुए, ये EAS तंत्र पर ये बहुत ज़्यादा आश्रित है, जिसमें आसियान के सदस्य देश एवं अन्य आठ संवाद साझेदार भी शामिल हैं.   

आईपीओआई ने कुल सात स्तंभों को रेखांकित किया, और इस बात के संकेत दिए गए थे कि कोई एक या दो देश, स्वेच्छा से शामिल होने वाले देशों के लिए, एक स्तंभ के नेतृत्व की ज़िम्मेदारी ले सकते हैं. 

सात स्तंभों का उद्भव

आईपीओआई ने कुल सात स्तंभों को रेखांकित किया, और इस बात के संकेत दिए गए थे कि कोई एक या दो देश, स्वेच्छा से शामिल होने वाले देशों के लिए, एक स्तंभ के नेतृत्व की ज़िम्मेदारी ले सकते हैं. भारत भी समान सोच वाले साझीदारों तक पहुँचने का काम कर रही है एवं प्रतिभागियों की सूची धीरे-धीरे नेतृत्वकर्ता देश के साथ ही विस्तार कर रही है. इस बारे में नीचे उल्लेख किया गया है: 

 

  • समुद्री सुरक्षा - यूनाइटेड किंगडम (यूके) और भारत

  • समुद्री पारिस्थितिकी - ऑस्ट्रेलिया और थाईलैंड

  • समुद्री संसाधन - फ्रांस और इंडोनेशिया

  • क्षमता निर्माण और संसाधन साझाकरण - जर्मनी

  • आपदा जोखिम न्यूनीकरण और प्रबंधन - भारत और बांग्लादेश

  • विज्ञान, प्रौद्योगिकी और शैक्षणिक सहयोग - इटली और सिंगापुर

  • व्यापार, कनेक्टिविटी और समुद्री परिवहन - जापान और संयुक्त राज्य अमेरिका (US).

 

इसके अलावा, हाल ही में ग्रीस भी इस आईपीओआई में शामिल हुआ और आशा है कि उस स्तंभ के बारे में संकेत देंगे जिसका सह-नेतृत्व करने की उसकी योजना है. ऐसी सूचना है कि दक्षिण कोरिया भी आईपीओआई में भाग लेने  लेकर विचार कर रहा है. 

 

विगत पांच वर्षों में, विभिन्न देशों एवं समूहों ने अपनी हिन्द- प्रशांत रणनीति, दृष्टिकोण एवं नज़रिये की घोषणा की है. एक विस्तृत एवं व्यापक टेंपलेट के तौर पर, IPOI ने इन दस्तावेज़ों में दर्ज कई विशेषताओं के साथ प्रतिध्वनि एवं एकजुटता को महसूस किया है.  इसके बदले में, इसने द्विपक्षीय, त्रिपक्षीय एवं बहुपक्षीय चरणों में जो पहले से ही पदस्थापित हैं, उनके साथ नवीन समुदी साझेदारियां विकसित करने में मदद की है. भारत हिन्द-प्रशांत महासागर पहल साझेदारी (एआईआईपीओआईपी) को लॉन्च किया गया, जिसका मक़सद समुद्री पारिस्थितिकी या इकोलॉजी पर विशेष ध्यान देने के साथ ही द्विपक्षीय समुद्री सहयोग के लिए कुछ खास कार्यक्रमों के परिचालन के लिए किया गया, जहां ऑस्ट्रेलिया – सह नेतृत्व की भूमिका में है. कई विश्लेषकों एवं नीति-निर्माताओं ने आसियान आउटलुक फॉर द इंडो-पेसिफिक (एओआईपी) एवं आइओपीओआई के बीच महत्वपूर्ण सम्मिलन को विशेष तौर उजागर किया गया है, जिसकी मदद से सहयोग के और भी अन्य रास्ते निकलते हैं. IPOI, क्वॉड के व्यापक एजेंडे, इंडो पेसिफिक आर्थिक ढांचा/फ्रेमवर्क फॉर प्रॉस्पेरिटी (समृद्धि) (IPEF) के कुछ स्तंभों एव हिन्द महासागर और प्रशांत महासागर स्थित अन्य संगठनों द्वारा शुरू किये गये कुछ विशेष समुद्री पहल के साथ भी अच्छी तरह से प्रतिध्वनित हुए हैं. वर्ष 2021 में चीन ने आईपीओआई को अपनी स्वीकृति प्रदान की परंतु इस बारे में अपनी व्यापक सोच को उजागर नहीं किया है.

 जुलाई 2024 को मुंबई में आयोजित 6वें सम्मेलन में समुद्री सुरक्षा सहयोग को केंद्र में रखकर हुए EAS सम्मेलनों की श्रृंखला में IPOI और उसके स्तंभों पर विस्तारपूर्वक चर्चा किया गया. ‘अक्टूबर 2022 में, ‘इंटिग्रेटेड मैनेजमेंट एंड सिक्योरिटी एक्रॉस द इंडो-पैसिफिक: ए फ्रेमवर्ग टू यूनिफाइ द सेवेन IPOI पिलर्स’ विषय पर सेमीनार आयोजित किया गया था और उनमें से प्रत्येक के माध्यम से क्षमता निर्माण के साथ ही आइओपीआई के छह विशिष्ट स्तंभों पर विचार विमर्श किया गया. साथ ही अलग-अलग स्तर पर, सभी स्तंभों एवं सामुहिक तौर पर सातो स्तंभों से मिलने वाले अवसर और चुनौतियों के बारे में सोच-विचार किया गया, जिससे क्षेत्रीय एकीकरण को प्रोत्साहित करने में मदद मिले. नवंबर 2022 में भारत में आयोजित हिन्द-प्रशांत क्षेत्रीय वार्ता का चौथा संस्करण ‘IPOI के संचालन’ पर केंद्रित था.  

एक तरफ जहां आईपीओआई स्तंभों के तहत होने वाली प्रगति काफी भिन्नता लिये हुए है, वहीं मैरिटाइम सहयोग को बढ़ावा देने के मक़सद के लिये ये एक फायदेमंद व्यापक अवधारणा साबित हो रहा है.

एक तरफ जहां आईपीओआई स्तंभों के तहत होने वाली प्रगति काफी भिन्नता लिये हुए है, वहीं मैरिटाइम सहयोग को बढ़ावा देने के मक़सद के लिये ये एक फायदेमंद व्यापक अवधारणा साबित हो रहा है. हालांकि, सभी स्तंभों के अंतर्गत, बहु-हितधारकों (मल्टी-स्टेकहोल्डर्स) और बहु-पक्षीय सहयोग (मल्टीलेटरल कोऑपरेशन) के लिए उपयुक्त रूप से स्पष्ट दिशा एवं एजेंडा का अभाव इसका एक सीमित कारक साबित हुआ है.   


IPOI की जारी प्रासंगिकता 

आईपीओआई के लॉन्च किए जाने के बाद से, हिन्द-प्रशांत क्षेत्र में व्याप्त रणनीतिक माहौल, भू-राजनैतिक पुनर्गठन, जो कि प्रतिस्पर्धा, युद्ध एवं मतभेद, महामारी, तकनीकी एवं क्षमता विकास एवं नई तरह की आर्थिक चुनौतियों के कारण एक प्रमुख परिवर्तन के दौर से गुज़र रही है. हाल के महीनों ने समुद्र में कई तरह की समुद्री दुर्घटनाओं, समुद्री डकैती, वाणिज्यिक जहाज़ों पर हमले, सशस्त्र डाका और स्मगलिंग/तस्करी जैसी घटनाओं में बढ़ोत्तरी होते देखा है. महासागर, दुनिया की जलवायु के एजेंडे के हिसाब से काफी महत्वपूर्ण है चूंकि वो सौर ऊर्जा का कुल 92 प्रतिशत एवं कार्बन डाइऑक्साइड के कुल 28 प्रतिशत को अवशोषित कर लेती है. हाल के सालों में जलवायु के कारण होने वाली आपदाएं काफी बढ़ी हैं, इसके अलावा समुद्री सतह की तापमान में वृद्धि, महासागर में बढ़ता अम्लीकरण एवं अवैध, गैर-सूचित आईयूयू मछली पकड़ने की घटनाओं में भी भारी वृद्धि देखा गया है.      

हाल के सालों में जलवायु के कारण होने वाली आपदाएं काफी बढ़ी हैं, इसके अलावा समुद्री सतह की तापमान में वृद्धि, महासागर में बढ़ता अम्लीकरण एवं अवैध, गैर-सूचित आईयूयू मछली पकड़ने की घटनाओं में भी भारी वृद्धि देखा गया है.      

नए सहयोगी समुद्री परियोजनाओं एवं गलियारों के साथ, नए पहल एवं समुद्री संपर्क, एवं परिवहन (विभिन्न फ्रेमवर्क एवं संधि के अंतर्गत), तेज़ी से वृद्धि हो रही है. भारत सरकार अपने मैरीटाइम इंडिया विज़न 2030 एवं मैरीटाइम अमृतकाल विज़न 2047 पर काफी सक्रिय रूप से आगे बढ़ रही है. इनमें मैरीटाइम ट्रेड, संपर्क और परिवहन प्रमुख तौर पर ज़ोर दिए जाने वाले क्षेत्र हैं, जो कि आइओपीआई के प्रमुख आधार स्तंभ भी हैं. इसी तरह से, IPOI के ये सात स्तंभ न केवल प्रासंगिक बने रहते हैं परंतु आगे बढ़ते हुए और भी ज्य़ादा महत्वपूर्ण हो जाते हैं. हालांकि, सभी स्तंभों के लिए ज़रूरी एजेंडों को नए वातावरण के अनुकूल बनाए जाने की आवश्यकता है. 

 

भागीदारी एवं स्तंभ आधारित नेतृत्व पर हुई प्रगति के साथ, अब आईपीओआई को व्यावहारिक सहयोग के लिए  और भी ज्य़ादा बेहतर और सार्थक ढांचा बनने की दिशा में आगे बढ़ने की ज़रूरत है. 


अगला कदम 

  • परिकल्पना और व्यापक एजेंडा: समूचे क्षेत्र के मल्टी स्टेकहोल्डर्स को शामिल करके IPOI पर कई स्तर पर चर्चा, संवाद, सम्मेलन एवं कार्यशालाएं आयोजित की गई हैं. इसके आधार पर, इन पहलों पर आधारित एक कलेक्टिव विज़न स्टेमेंट को व्यावहारिक किया जाना चाहिए. सभी एक-एक स्तंभों के लिए, अगले पाँच वर्षों के लिए एक लघु योजना एवं एजेंडा बनाया जाना चाहिए. इसे मनोनीत नेताओं द्वारा उचित परामर्श के बाद ही अमल में लाना चाहिये. 

  • स्तंभ विशिष्ट संवाद: नेतृत्वकर्ता देशों को प्रत्येक स्तंभों से संबंधित संवादों के संचालन का कार्य करना चाहिए. ये ईएएस, ईस्ट एशिया मैरीटाइम फोरम (ईएएमएफ), इंडियन ओशियन रिम एसोसिएशन (आइओआरए) और खासकर प्रत्येक स्तंभों के साथ मिलकर कर काम कर रहे अन्य क्षेत्रीय फ्रेमवर्क के साथ उचित समन्वय से ही हो सकता है. जहां ज़रूरत पड़ने पर, ऐसे सभी संवाद, एक से अधिक स्तंभों को अपने साथ शामिल कर सकते हैं. इसका एक व्यापक उद्देश्य, सभी सहमति प्राप्त एजेंडों को और आगे ले जाना होना चाहिए.  

  • पूर्वी अफ्रीका, जीसीसी देशों और छोटे द्वीपीय राज्यों की सहभागिता: आंशिक रूप से भारत की एक्ट ईस्ट नीति के तहत हुई इसकी उत्पत्ति और इएएस तंत्र के साथ के इसके जुड़ाव की वजह से, पूर्वी अफ्रीका और जीसीसी देशों एवं अन्य छोटे-छोटे द्वीपीय राज्यों को इस ढांचे में सही प्रतिनिधित्व नहीं मिला है. हालांकि, आने वाले वर्षों में, उनकी भागेदारी एवं नेतृत्व को और प्रोत्साहित किया जाना चाहिए, जिससे IPOI असल मायनों में एक क्षेत्रीय ताकत बनकर उभरेगा.

  • सामयिक प्रसार: सभी प्रमुख देशों द्वारा हर स्तंभ के लिए, एक वार्षिक रिपोर्ट जारी करना भी काफी लाभदायक साबित हो सकता है. ऐसा करने से एक सामान्य समझ को प्रोत्साहत मिलेगा कि इस संदर्भ में आगे क्या दिशा होनी चाहिये. इस तरह के प्रयास अपने व्यापक अर्थों में, क्षेत्रीय सहयोग की उपयोगिता को भी दर्शाएगा जो बदले में क्षेत्र के अंदर अथवा बाहर के अन्य देशों को भी भाग लेने के लिए प्रोत्साहित करेगा.

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Girish Luthra

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Vice Admiral Girish Luthra is Distinguished Fellow at Observer Research Foundation, Mumbai. He is Former Commander-in-Chief of Western Naval Command, and Southern Naval Command, Indian ...

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