Author : RAJEN HARSHÉ

Published on Jul 31, 2023 Updated 0 Hours ago

अंगोला में आगामी राष्ट्रपति चुनावों के नतीजों से देश का प्रशासनिक और आर्थिक भविष्य तय होगा.

अंगोला: दक्षिणी अफ्रीकी देश के आगामी चुनावों में होगा राष्ट्रपति जोआओ लौरेंको के कामकाज का आकलन
अंगोला: दक्षिणी अफ्रीकी देश के आगामी चुनावों में होगा राष्ट्रपति जोआओ लौरेंको के कामकाज का आकलन

अफ़्रीका के तेल उत्पादक देशों में अंगोला प्रमुख स्थान रखता है. ये पेट्रोलियम निर्यातक देशों के संगठन (ओपेक) का भी सदस्य है. रूस और यूक्रेन के बीच जारी जंग और दुनिया की अर्थव्यवस्था में ईंधन सुरक्षा को लेकर बढ़ते संकट के बीच अंगोला के घटनाक्रमों को समझना निश्चित रूप से बेहद अहम हो गया है. फ़िलहाल अंगोला में अगस्त 2022 में होने वाले राष्ट्रपति पद के चुनावों की तैयारियां ज़ोरों पर हैं. अंगोला के सत्ताधारी राजनीतिक दल पीपुल्स मूवमेंट फ़ॉर द लिबरेशन ऑफ़ अंगोला (MPLA) ने 11 दिसंबर 2021 को लुआंडा में हुए अपने सम्मेलन में मौजूदा राष्ट्रपति जोआओ लौरेंको  को ही दूसरे कार्यकाल के लिए भी ज़ोरशोर से अपना दावेदार चुन लिया. 2017 में लौरेंको पहली बार राष्ट्रपति पद के लिए चुने गए थे. 1975 में पुर्तगाली साम्राज्य से आज़ादी हासिल करने के बाद से ही MPLA वहां की सत्ताधारी राजनीतिक पार्टी बनी हुई है. 1979 में राष्ट्रपति जोस एडुआर्डो डॉस सैंटोस  ने सत्ता संभाली थी. उन्होंने 38 सालों तक अंगोला पर राज किया. तीन दशकों से भी ज़्यादा अर्से तक चला उनका कार्यकाल अफ़्रीका के बाक़ी देशों की सियासी हुकूमतों के संदर्भ में कोई अपवाद नहीं है. अतीत में लीबिया, ज़िम्बाब्वे, सूडान, इक्वेटोरियल गिनी, कैमरून, द रिपब्लिक ऑफ कॉन्गो, एरिट्रिया, यूगांडा और चाड जैसे अफ़्रीकी देशों में भी तीन दशकों से ज़्यादा अर्से तक एक ही सियासी सत्ता क़ाबिज़ रही है.

अंगोला के अलावा सूडान और चाड जैसे देशों में भी तक़रीबन तीन दशकों तक चले गृह युद्ध का माहौल रहा है. MPLA की हुकूमत का विरोध करने वाले नेशनल यूनियन फ़ॉर द टोटल इंडिपेंडेंस ऑफ़ अंगोला (UNITA) के मुखिया जोनास सविंबी  की 2002 में हुई मौत के साथ ही अंगोला में गृह युद्ध का ख़ात्मा हो गया था. डॉस सैंटोस  के राष्ट्रपति रहते लौरेंको ने देश के रक्षा मंत्री के तौर पर काम किया था. 2017 में राष्ट्रपति पद के लिए लौरेंको की उम्मीदवारी का समर्थन कर डॉस सैंटोसने नई हुकूमत को अपने इशारों पर नचाने का मंसूबा पाला था. हालांकि राष्ट्रपति के तौर पर अपनी शक्तियों का प्रभाव जताकर लौरेंकोने स्वतंत्र रूप से अपना रास्ता अख़्तियार करने का फ़ैसला किया. उन्होंने भाई-भतीजावाद और देश में व्याप्त भयंकर भ्रष्टाचार से लड़ने का इरादा जताया. इसके अलावा बाज़ार सुधारों, अंगोला के आर्थिक संपर्कों में विविधता लाने, तेल पर अंगोला की अर्थव्यवस्था की निर्भरता में कमी लाने और शासन-प्रशासन में सुधार के लिए अंगोला के लोकतांत्रिक संस्थानों को मज़बूत करने का भी फ़ैसला किया गया. इन लक्ष्यों को अमली जामा पहनाने से जुड़ी पड़ताल से पहले अंगोला में उपलब्ध भौतिक और मानव संसाधनों के हिसाब से लौरेंको हुकूमत के सामने मौजूद हालात को समझना ज़रूरी हो जाता है.

2017 में राष्ट्रपति पद के लिए लौरेंको की उम्मीदवारी का समर्थन कर डॉस सैंटोसने नई हुकूमत को अपने इशारों पर नचाने का मंसूबा पाला था. हालांकि राष्ट्रपति के तौर पर अपनी शक्तियों का प्रभाव जताकर लौरेंकोने स्वतंत्र रूप से अपना रास्ता अख़्तियार करने का फ़ैसला किया.

भौतिक और मानव संसाधन

भौतिक संसाधनों के लिहाज़ से अंगोला की अर्थव्यवस्था तेल, प्राकृतिक गैस और हीरे जैसे बेशक़ीमती संसाधनों पर टिकी है. अंगोला की जीडीपी का एक तिहाई हिस्सा और निर्यात का 90 प्रतिशत भाग तेल क्षेत्र से आता है. लाज़िमी तौर पर विश्व बाज़ार में तेल की क़ीमतों में उतार-चढ़ावों से अंगोला की अर्थव्यवस्था पर विपरीत प्रभाव पड़ते रहे हैं. मार्च 2020 में तेल की क़ीमतें 45 अमेरिकी डॉलर प्रति बैरल से लुढ़ककर 32 अमेरिकी डॉलर प्रति बैरल हो गई थी. इससे अंगोला की जीडीपी में रातोंरात 60 फ़ीसदी तक की कमी आ गई थी. दरअसल अंगोला की अर्थव्यवस्था में 2015 से ही मंदी का दौर चला आ रहा था और कोविड-19 ने अर्थव्यवस्था की रफ़्तार और सुस्त बना दी. ज़ाहिर तौर पर 3.3 करोड़ की आबादी वाले इस देश में अमीर और ग़रीब के बीच की खाई लगातार बढ़ती जा रही है. अंगोला की एक बहुत बड़ी आबादी रोज़ाना 2 अमेरिकी डॉलर से भी कम की औसत कमाई में गुज़र बसर करने को मजबूर है. ग़रीबी और बेरोज़गारी से मुक़ाबला करते हुए स्वास्थ्य सेवा, शिक्षा जैसे विकास से जुड़े मसलों पर आगे बढ़ना अंगोला की शासन-प्रशासन व्यवस्था के सामने पहाड़ जैसी चुनौती बन गई हैं. इसके अलावा मानव अधिकारों की रक्षा का भी सवाल मुंह बाए खड़ा है. इन तमाम हालातों को मद्देनज़र रखते हुए प्रमुख क्षेत्रों में नीचे दिए गए तौर-तरीक़े से राष्ट्रपति लौरेंको  की हुकूमत के प्रदर्शन का समुचित रूप से मूल्यांकन किया जा सकता है.

भ्रष्टाचार से दो-दो हाथ

ग़ौरतलब है कि अंगोला में राजस्व कमाने का सबसे अहम ज़रिया तेल है, लिहाज़ा तेल के इर्द-गिर्द भ्रष्टाचार के पेचीदा और गूढ़ ढांचे तैयार हो गए हैं. मिसाल के तौर पर पूर्व राष्ट्रपति डॉस सैंटोस की सबसे बड़ी बेटी इज़ाबेल डॉस सैंटोस बैंक और टेलीकॉम का कारोबार चलाकर अफ़्रीका की सबसे धनी महिला बनकर उभरी थीं. उनके पिता ने उन्हें सरकारी तेल कंपनी  सोनांगोल  का मुखिया बना दिया था. ये कंपनी हुकूमत के भीतर एक सत्ता की तरह काम करती थी. अलग-अलग अनुमानों के हिसाब से उनकी संपत्ति का अनुमान 2 अरब अमेरिकी डॉलर से लेकर 3.5 अरब अमेरिकी डॉलर तक लगाया गया है. बहरहाल 2017 में सत्ता संभालने के बाद लौरेंको ने इज़ाबेल को नौकरी से बर्ख़ास्त कर दिया. अंगोला की अदालत ने उनकी संपत्तियों को फ़्रीज़ कर दिया. जनवरी 2021 में फ़ोर्ब्स पत्रिका ने अरबपतियों की सूची से उनका नाम हटा दिया. इसी तरह अगस्त 2020 में पूर्व राष्ट्रपति डॉस सैंटोस के बेटे जोस फिलोमेनो डॉस सैंटोस  को धोखाधड़ी के मामले में 5 साल क़ैद की सज़ा सुनाई गई. वो अंगोला के सॉवरिन वेल्थ फ़ंड (SWF) के मुखिया थे. दरअसल उनके पद पर रहते नेशनल बैंक ऑफ़ अंगोला से यूनाइटेड किंगडम के एक खाते में 50 करोड़ अमेरिकी डॉलर की रकम ट्रांसफ़र कर दी गई थी. इन तमाम कार्रवाइयों से एक संदेश गया कि लौरेंको अपनी ज़िम्मेदारियों को लेकर बेहद गंभीर हैं. बहरहाल अंगोला में भ्रष्टाचार बहुआयामी है. इसकी जड़ें न सिर्फ़ मुल्क के अंदर बल्कि विदेशों तक फैली हुई हैं.

अंगोला की अर्थव्यवस्था में 2015 से ही मंदी का दौर चला आ रहा था और कोविड-19 ने अर्थव्यवस्था की रफ़्तार और सुस्त बना दी. ज़ाहिर तौर पर 3.3 करोड़ की आबादी वाले इस देश में अमीर और ग़रीब के बीच की खाई लगातार बढ़ती जा रही है.

देशों की सीमाओं से आर-पार फैले भ्रष्टाचार की कुछ मिसालों से ये बात शीशे की तरह साफ़ हो सकती है. 2016 में ब्राज़ील के कारोबारी समूह ओडेब्रेक्ट ने अमेरिकी न्याय विभाग (DoJ) के साथ एक प्रार्थना समझौते में ये स्वीकार किया था कि 2006 से 2013 के बीच उसने अंगोला के सरकारी अधिकारियों को रिश्वत के तौर पर 5 करोड़ अमेरिकी डॉलर का भुगतान किया था. ये अदायगी अंगोला में सरकारी कामों के ठेके हासिल करने के लिए की गई थी. इसके ज़रिए कंपनी ने तक़रीबन 26.17 करोड़ अमेरिकी डॉलर का मुनाफ़ा कमाया था. ऐसे ही दो और वाक़यों में इसी कारोबारी समूह ने व्यापार हासिल करने के लिए अंगोला की सरकारी व्यापारिक कंपनी के चुनिंदा अधिकारियों को क्रमश: 80 लाख डॉलर और 11.9 लाख डॉलर की रकम घूस के तौर पर दी थी. लौरेंको की हुकूमत ने भ्रष्टाचार की रोकथाम और उससे निपटने के लिए रणनीतिक योजना तैयार की. इसके लिए उसने अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) और विश्व बैंक (WB) से मदद मांगी. इसके अलावा शीर्ष के पदों पर बैठे 60 अधिकारियों को उनके पदों से हटा दिया गया. बहरहाल अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष के कार्यक्रमों के तहत अंगोला ने 2.5 अरब अमेरिकी डॉलर की सहायता हासिल की है. IMF से इतनी बड़ी आर्थिक मदद हासिल करने वाला अंगोला पहला अफ़्रीकी देश है. इसके साथ ही लौरेंको की सरकार ने भ्रष्टाचार विरोधी अधिनियम, मनी लॉन्ड्रिंग के ख़िलाफ़ कानून और चुराई गई सरकारी संपत्तियों की वसूली से जुड़े नियम भी लागू किए हैं.

बाज़ार सुधारों की शुरुआत

बाज़ार अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देते हुए अंगोला तक़रीबन 176 सरकारी कंपनियों के निजीकरण पर विचार कर रहा है. ईंधन जैसे अहम क्षेत्र में चीन पर अंगोला की ज़रूरत से ज़्यादा निर्भरता हमेशा से ज़ाहिर रही है. अंगोला पिछले 2 दशकों में चीन से 42.6 अरब अमेरिकी डॉलर का ऋण ले चुका है. 2021 तक अंगोला के ऊपर चीन की तमाम इकाइयों का तक़रीबन 20 अरब अमेरिकी डॉलर से भी ज़्यादा के कर्ज़ का बोझ था. इस रकम में चाइना डेवलपमेंट बैंक का 14.5 अरब अमेरिकी डॉलर और एक्सपोर्ट बैंक ऑफ़ चाइना का लगभग 5 अरब डॉलर का हिस्सा था. एक निवेशक और कर्ज़दाता के तौर पर चीन पर अपनी निर्भरता कम करने के लिए अंगोला ने यूरोपीय संघ के देशों और अमेरिका से पश्चिमी पूंजी आकर्षित करने के लिए ज़ोरशोर से लुभावने कार्यक्रमों की शुरुआत की. अमेरिका के स्वामित्व वाले टेलीकॉम सेवा प्रदाता एफ़्रीसेल ने दिसंबर 2021 में लुआंडा में अपनी शाखा खोल दी है. इसके अलावा दुबई के बंदरगाह संचालक डीपी वर्ल्ड ने लुआंडा के बहुद्देशीय टर्मिनल पोर्ट को अपनी निगरानी में लेते हुए मार्च 2021 से कामकाज शुरू कर दिया है. इसी तरह अर्जेंटीना की बहुराष्ट्रीय कंपनी ग्रुपो एरकॉर भी अंगोला में 4.5 करोड़ अमेरिकी डॉलर लगाकर कंफ़ेक्शनरी फ़ैक्ट्री खोलने की प्रक्रिया पूरी करने वाली है. इतना ही नहीं, दिसंबर 2020 में अंगोला हीरा खनन और प्रॉसेसिंग के काम के लिए भारत को निवेश करने का न्योता दे चुका है. बहरहाल चीन के साथ अंगोला के रिश्ते वहां की पिछली हुकूमत के दो दशकों के कार्यकाल में लगातार परवान चढ़ते रहे हैं. लिहाज़ा ऊपर बताई गई तमाम क़वायदों के बावजूद दूसरे देशों के साथ अपने आर्थिक संबंधों में विविधता लाने में अंगोला को अभी काफ़ी वक़्त लगने वाला है. इसी तरह निर्यात वस्तु के रूप में तेल पर ज़रूरत से ज़्यादा निर्भरता में कमी लाने की कोशिशें भी धीरे-धीरे ही असर दिखाएंगी.

एक निवेशक और कर्ज़दाता के तौर पर चीन पर अपनी निर्भरता कम करने के लिए अंगोला ने यूरोपीय संघ के देशों और अमेरिका से पश्चिमी पूंजी आकर्षित करने के लिए ज़ोरशोर से लुभावने कार्यक्रमों की शुरुआत की.

लोकतंत्र की दिशा में बढ़ते क़दम

पद संभालने के फ़ौरन बाद लौरेंको लॉरेंकसू की सरकार ने शुरुआत में दमनकारी वातावरण को खुलेपन के माहौल से बदलने की कोशिश की थी. उन्होंने राफेल मार्क्स डी मोराइस  जैसे खोजी पत्रकार, मानव अधिकारों का बचाव करने वाले और भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ मुहिम छेड़ने वाले शख़्स को भी तरजीह दी. ग़ौरतलब है कि मोराइस को सैंटोस की अगुवाई वाली हुकूमत के प्रमुख आलोचकों में शुमार किया जाता है. बहरहाल राष्ट्रपति की शक्तिशाली कार्यकारी सत्ता और राजकाज से जुड़ी तमाम संस्थाओं में MPLA के दबदबे की वजह से अंगोला में लोकतंत्र से जुड़ी क़वायद मुश्किलों से भरी रही है. मिसाल के तौर पर 2012 में निर्वाचित अंगोला की विधायिका नेशनल असेंबली (वहां एक सदन वाली विधायी व्यवस्था है) में सत्तारूढ़ MPLA को स्पष्ट बहुमत हासिल था. ऐसे में वो किसी भी अप्रिय प्रस्ताव के सामने रोड़े अटका सकती थी. हाल ही में संसद ने 2010 में लागू किए गए संविधान की समीक्षा से जुड़े बिल को मंज़ूरी दे दी है. अंगोला में पारित संविधान समीक्षा क़ानून ने राष्ट्रपति को सबसे ताक़तवर हस्ती बना दिया है. इसके तहत विधायिका और न्यायपालिका को कार्यपालिका के मातहत ला दिया गया है. इसके नतीजे के तौर पर कार्यपालिका को बढ़ती क़ीमतों के ख़िलाफ़ प्रदर्शन कर रहे कार्यकर्ताओं और प्रदर्शनकारियों की आवाज़ कुचलने का अधिकार मिल गया है. संवैधानिक अदालत और चुनाव आयोग जैसी निगरानी संस्थाएं और मीडिया क्षेत्र के नियमन के लिए ज़िम्मेदार इकाई- सभी अब एक तरह से बेअसर हो गई हैं. टीवी चैनल या तो सरकारी स्वामित्व में हैं या प्रतिकूल विचार पेश करने पर उन्हें ग़ैर-क़ानूनी क़रार दे दिया जाता है. इतना ही नहीं चुनाव आयोग में बेहद विवादास्पद अधिकारी की तैनाती से लोकतंत्र को लेकर हुकूमत की विश्वसनीयता और कमज़ोर हो गई है.

संवैधानिक अदालत और चुनाव आयोग जैसी निगरानी संस्थाएं और मीडिया क्षेत्र के नियमन के लिए ज़िम्मेदार इकाई- सभी अब एक तरह से बेअसर हो गई हैं. टीवी चैनल या तो सरकारी स्वामित्व में हैं या प्रतिकूल विचार पेश करने पर उन्हें ग़ैर-क़ानूनी क़रार दे दिया जाता है.

इन तमाम क़दमों के ख़िलाफ़ असंतोष की आवाज़ें भी उठती रही हैं. UNITA के नेता एडलबर्टो कोस्टा जूनियर ने “संपूर्ण सेंसरशिप” पर अमल करने के लिए MPLA की अगुवाई वाली हुकूमत को लोकतंत्र विरोधी क़रार दिया है. इसके साथ ही अंगोला के पत्रकार संघ के महासचिव टेक्सीरा कैंडिडो  ने भी सरकार की हिमायत करने वाले मीडिया की आलोचना की है. मौजूदा MPLA हुकूमत के तहत बढ़ते एकाधिकारवादी रुझानों से पैदा हुई चुनौतियों से निपटने के लिए दिसंबर 2021 से अंगोला की तीन विपक्षी पार्टियों ने मिलकर यूनाइटेड पेट्रियॉटिक फ़्रंट (UPF) का गठन किया है. इनमें UNITA, द डेमोक्रैटिक ब्लॉक और प्राजा सर्विंग अंगोला शामिल हैं. वैसे फ़िलहाल ये फ्रंट शक्तिशाली MPLA हुकूमत से लोहा लेने को लेकर बेहद नाज़ुक और कमज़ोर दिखाई देता है. मुख्य धारा की विपक्षी पार्टियों के सियासी वार के साथ-साथ अंगोला की तमाम हुकूमतें काबिंडा में अलगाववादी आंदोलन के हमलों का भी सामना करती रही हैं. मुख्य रूप से कैबिंडा फ्रंट ऑफ द लिबरेशन ऑफ द एन्क्लेव ऑफ कैबिंडा  (FLEC) नाम का संगठन तेल के मामले में समृद्ध कैबिंडा प्रांत से 2002 से सक्रिय रहा है. 2019 में और कोविड-19 की आमद के बाद सरकार ने तमाम मानव अधिकारों को ताक पर रखते हुए कैबिंडा  कार्यकर्ताओं के ख़िलाफ़ ज़बरदस्त मुहिम छेड़ने का रास्ता चुना है.

शुरुआती दौर में निरंकुश सत्ता से निपटने की कोशिशों के बाद ऐसा लगता है कि मौजूदा हुकूमत ख़ुद ही एकाधिकारवाद के जाल में फंस चुकी है. अंगोला की कार्यपालिका वहां की विधायिका और न्यायपालिका के ऊपर विस्तृत और गहन अधिकारों का लाभ उठा रही है.

निष्कर्ष

MPLA के नेता के तौर पर राष्ट्रपति लौरेंको दूसरे कार्यकाल के लिए चुनावों में जा रहे हैं. ऐसे में उनके प्रशासनिक रिकॉर्ड के बारीक़ विश्लेषण से मिले-जुले नतीजे सामने आते हैं. अब तक उन्होंने शीर्ष स्थानों पर भ्रष्टाचार और भाई-भतीजावाद के ख़िलाफ़ क़दम उठाए हैं. साथ ही भ्रष्टाचार जैसी विशाल और बेहद गहरी समस्या से निपटने के लिए वैधानिक उपायों की भी शुरुआत हुई है. हालांकि, ये तमाम उपाय ज़रूरी तो हैं लेकिन अंगोला में गहराई तक जड़ें जमा चुकी भ्रष्टाचार की समस्या के निपटारे के लिए पर्याप्त नहीं हैं. अंगोला ने विदेशी निवेशकों को आकर्षित करने के लिए भी कई उपाय किए हैं. बहरहाल अंगोला की अर्थव्यवस्था में चीन की ज़बरदस्त मौजूदगी के चलते अंगोला पर चीन का काफ़ी कर्ज़ चढ़ गया है. इसके अलावा निर्यात वस्तु के रूप में तेल पर निर्भरता कम करने की क़वायद अब भी टेढ़ी खीर दिखाई देती है. शुरुआती दौर में निरंकुश सत्ता से निपटने की कोशिशों के बाद ऐसा लगता है कि मौजूदा हुकूमत ख़ुद ही एकाधिकारवाद के जाल में फंस चुकी है. अंगोला की कार्यपालिका वहां की विधायिका और न्यायपालिका के ऊपर विस्तृत और गहन अधिकारों का लाभ उठा रही है. बहरहाल मीडिया पर लगातार जारी सेंसरशिप और विरोध प्रदर्शनों को कुचलने की मौजूदा रवायतों के चलते निकट भविष्य में MPLA की हुकूमत को अस्थिर करने की क़वायद UDF के लिए और भी ज़्यादा मुश्किल साबित होने वाली है.

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