Author : Prithvi Gupta

Published on May 08, 2023 Updated 0 Hours ago

विश्व व्यापार संगठन (WTO) को सुधारने की ज़रूरत है क्योंकि ये विकासशील देशों के हितों की नुमाइंदगी करने में नाकाम रहा है

विश्व व्यापार संगठन को असरदार होने के लिए निष्पक्ष और पारदर्शी होना होगा

1995 में अंतरराष्ट्रीय व्यापार के प्रशासन के लिए एक वैश्विक संस्था के रूप में स्थापना के बाद से ही विश्व व्यापार संगठन (WTO) आर्थिक भूमंडलीकरण के लिए मददगार और वैश्विक व्यापार के उदारीकरण को बढ़ावा देने में अहम भूमिका निभाता रहा है. फिर भी, हाल के वर्षों में विश्व व्यापार संगठन कई चुनौतियों का सामना करता दिखा है. इनमें समानता, पारदर्शिता और प्रभावी न होने को लेकर आलोचना भी शामिल है. इसके बाद भी, WTO के अधिकार क्षेत्र में निष्पक्षता और पारदर्शिता लाने के पिछले प्रयास शोर गुल मचाने से आगे नहीं बढ़ सके हैं. 2001 में दोहा विकास दौर की वार्ता, 2013 का बाली पैकेज, 2015 का नैरोबी पैकेज और 2017 की साझा बयान वाली पहल, इसके सदस्यों और ख़ास तौर से विकासशील अर्थव्यवस्थाओं की मूल चिंताएं दूर करने में नाकाम रही हैं.

हाल के वर्षों में विश्व व्यापार संगठन कई चुनौतियों का सामना करता दिखा है. इनमें समानता, पारदर्शिता और प्रभावी न होने को लेकर आलोचना भी शामिल है. इसके बाद भी, WTO के अधिकार क्षेत्र में निष्पक्षता और पारदर्शिता लाने के पिछले प्रयास शोर गुल मचाने से आगे नहीं बढ़ सके हैं.

WTO के बरक्स दूसरे समझौतों का उभार

पिछले दो दशकों के दौरान दुनिया भर में क्षेत्रीय समूहों, और मज़बूत द्विपक्षीय व त्रिपक्षीय साझेदारियों का विकास होता देखा गया है. ये उभरता चलन विश्व व्यापार संगठन की प्रासंगिकता के लिए ख़तरा बन गया है और इससे बहुपक्षी व्यापार व्यवस्था के कमज़ोर होने को लेकर चिंताएं जताई जा रही हैं.

हाल के वर्षों में ख़ास तौर से दो देशों के बीच आपसी व्यापार बढ़ाने के लिए द्विपक्षीय साझेदारियां करने की रफ़्तार में तेज़ी आई है. कई देशों ने अपने राष्ट्रीय आर्थिक हित साधने के लिए विश्व व्यापार संगठन की बहुपक्षीय रूप-रेखा से दूरी बनाते हुए, द्विपक्षीय व्यापारिक साझेदारियां को तरज़ीह दी है. इसी तरह, पिछले कुछ वर्षों के दौरान, यूरोपीय संघ (EU), प्रशांत क्षेत्र के आर-पार व्यापक एवं प्रगतिशील समझौता (CPTPP) और अफ्रीकी महाद्वीप मुक्त व्यापार क्षेत्र (AfCFTA) जैसे क्षेत्रीय व्यापार समझौतों का भी काफ़ी विस्तार हुआ है. ये व्यापारिक साझेदारियां, क्षेत्रीय एकीकरण और इसके सदस्य देशों को WTO के दायरे से बाहर रहकर आपस में व्यापारिक संबंध और प्रगाढ़ करने को बढ़ावा देती हैं.

द्विपक्षीय, त्रिपक्षीय और क्षेत्रीय व्यापारिक व्यवस्थाओं का बढ़ता चलन ये दिखा रहा है कि विश्व व्यापार संगठन के तहत स्थापित की गई वैश्विक व्यापार व्यवस्था पर से देशों का भरोसा उठता जा रहा है.

एक तरफ़ तो, ये द्विपक्षीय आर्थिक साझेदारियां और क्षेत्रीय व्यापार के समझौते लक्ष्य आधारित बाज़ार तक पहुंच बढ़ाने और व्यापार कर कम करने में मदद देते हैं. वहीं दूसरी ओर, इनके विस्तार से छोटी अर्थव्यवस्थाओं पर नकारात्मक असर पड़ने की आशंका, वैश्विक व्यापार के नियमों के क्षेत्रों में बंटने, व्यापार की गतिविधियों में परिवर्तन की आशंकाओं को भी जन्म देती हैं. इसके अलावा, जो देश इन क्षेत्रीय समझौतों का हिस्सा नहीं हैं, उनके अलग थलग पड़ने और अंतरराष्ट्रीय व्यापार के क़ानून की एकजुटता पर भी विपरीत असर पड़ता है. इसीलिए, द्विपक्षीयवाद और क्षेत्रीय समूहों का उभार बहुपक्षीय व्यापार व्यवस्था  और इसके प्रतीक WTO के प्रभावी बने रहने की राह में चुनौती बनता जा रहा है. द्विपक्षीय, त्रिपक्षीय और क्षेत्रीय व्यापारिक व्यवस्थाओं का बढ़ता चलन ये दिखा रहा है कि विश्व व्यापार संगठन के तहत स्थापित की गई वैश्विक व्यापार व्यवस्था पर से देशों का भरोसा उठता जा रहा है. 

सुधार और वैश्विक व्यवस्था को फिर से ढालना

WTO का सुधार बहुत बड़ी चुनौती है. इसीलिए, इसके तमाम विवादों जैसे कि संगठन चलाने में पारदर्शिता, विवादों के समाधान की व्यवस्था और विश्वस्त वार्ता प्रक्रियाओं जैसे बहुआयामी और विविध मसलों से निपटने के लिए एकजुटता भरा सघन नज़रिया अपनाना होगा. विश्व व्यापार संगठन के देशों और ख़ास तौर से विकासशील देशों के विविधता भरे हितों और ज़रूरतों को देखते हुए, इसमें सुधार के प्रयास के लिए व्यापक और समावेशी नज़रिए की ज़रूरत होगी. जैसे कि WTO में सुधार के दौरान ये सुनिश्चित करना होगा कि विकासशील देशों को निर्णय लेने की प्रक्रिया में अपनी राय रखने का पूरा हक़ मिले. और, सांस्कृतिक सब्सिडी और बौद्धिक संपदा जैसे मुद्दों पर उनकी चिंताओं का पर्याप्त रूप से समाधान किया जाए.

बहुपक्षीय संगठनों के आपसी संबंध को मज़बूत बनाना, व्यापक वैश्विक लक्ष्यों से विश्व व्यापार संगठन की ज़िम्मेदारियों का तालमेल बिठाने के लिए ज़रूरी होगा. जैसे कि स्थायी विकास के लक्ष्यों (SDGs) और अंतरराष्ट्रीय व्यापार को लेकर एक बड़ा और समावेशी नज़रिया अपनाना. संयुक्त राष्ट्र और उसकी विशेषज्ञ एजेंसियों के साथ WTO का तालमेल भी इसके सुधार का प्रमुख एजेंडा होना चाहिए. बहुपक्षीय संगठनों के बीच आपसी तालमेल से वैश्विक आर्थिक प्रशासन को लेकर एक सहयोगात्मक और एकजुटता भरा नज़रिया विकसित किया जा सकेगा.

विश्व व्यापार संगठन में सुधार का एक अहम क्षेत्र समानता का है. मौजूदा व्यवस्था की अक्सर ये कहकर आलोचना की जाती है कि ये विकसित देशों को विकासशील देशों पर तरज़ीह देता है, जिससे वैश्विक व्यापार संबंधों में असंतुलन पैदा होता है. व्यापार की बाधाओं, मूलभूत ढांचे की कमी और अपनी सीमित क्षमताओं के कारण, विकासशील देश अक्सर अंतरराष्ट्रीय व्यापार में पूरी तरह भागीदार बनने में चुनौतियों का सामना करते हैं. WTO को समानता को बढ़ावा देने के लिए सुधारने से, हर देश को दूसरों के बराबर ही विश्व व्यापार में शामिल होने का मौक़ा मिलेगा. फिर चाहे कोई देश कितना भी बड़ा या छोटा क्यों न हो और उसकी मोल-भाव कर पाने की क्षमता कम हो या ज़्यादा. समानता वाला विश्व व्यापार संगठन छोटी अर्थव्यवस्थाओं को हाशिए पर धकेले जाने को रोकेगा और अधिक समावेशी व निष्पक्ष वैश्विक व्यापार व्यवस्था को बढ़ावा देगा. अहम बात ये है कि WTO को सुधारा गया, तो क्षेत्रीय और द्विपक्षीय समझौतों के कारण वैश्विक व्यापार को टुकड़ों में बंटने और बाधित होने से रोका जा सकेगा.

WTO में सुधार का एजेंडा

विश्व व्यापार संगठन में सुधार का एजेंडा लागू करने से वैश्विक व्यापार प्रशासन में पारदर्शिता को भी बढ़ावा मिलेगा. अपने अपादर्शी होने और विकासशील देशों और अन्य साझीदारों की सीमित भागीदारी को लेकर WTO के निर्णय लेने की प्रक्रिया की आलोचना लगातार बढ़ती जा रही है. पारदर्शिता में इस कमी से WTO की वैधता पर सवाल खड़े होते हैं और सदस्य देशों के बीच इसके प्रति भरोसा कम होता है. विश्व व्यापार संगठन के भीतर पारदर्शिता से संगठन के प्रति स्वीकार्यता और इसमें भरोसा बढ़ेगा. तब इसे अंतरराष्ट्रीय व्यापार की बदलती सच्चाइयों के मुताबिक़ एक पारदर्शी, अच्छे प्रशासन वाले और उत्तरदायी बहुपक्षीय संगठन माना जाएगा.

बढ़ती चुनौतियों के कारण WTO की विवाद के निपटारे की व्यवस्था की आलोचना भी बढ़ती जा रही है. इसमें विवाद के समाधान में देरी और अपने फ़ैसले लागू कर पाने में चुनौती की समस्याएं शामिल हैं. चूंकि विश्व व्यापार संगठन में विवाद के निपटारे की व्यवस्था अच्छी नहीं है. इससे संगठन के प्रभावी होने पर सवाल उठ रहे हैं. विवादों के निपटारे की व्यवस्था को दुरुस्त करके और इसकी प्रक्रिया को प्रभावी बनाकर WTO, व्यापारिक विवादों के निपटारे की भरोसेमंद और कुशल व्यवस्था उपलब्ध करा सकता है. इससे देशों को द्विपक्षीय और क्षेत्रीय समझौतों की आवश्यकता कम महसूस होगी. इसके अतिरिक्त, व्यापार को बढ़ावा देने, सेवाओं और ई-कॉमर्स के क्षेत्र में में ठोस नतीजे उपलब्ध कराकर, विश्व व्यापार संगठन 21वीं सदी में अंतरराष्ट्रीय व्यापार और ज़रूरतों के मुताबिक़ अपनी प्रासंगिकता और प्रभाव को दिखा सकता है.

इसके अलावा, विश्व व्यापार संगठन को चाहिए कि वो अपने नियम क़ायदों में सामाजिक और पर्यावरण से जुड़ी चिंताओं को भी शामिल करे. जलवायु परिवर्तन, श्रम के मानक और टिकाऊ विकास जैसे मुद्दे अंतरराष्ट्रीय व्यापार की राह में आने वाली वैश्विक चुनौतियां हैं. WTO की रूप-रेखा में पर्यावरण को टिकाऊ बनाने, सामाजिक उत्तरदायित्व और निष्पक्ष श्रम नीतियों को बढ़ावा देने वाले प्रावधान शामिल करने से ये सुनिश्चित किया जा सकेगा कि व्यापार टिकाऊ विकास में योगदान दे और सभी भागीदारों के लिए फ़ायदेमंद हो. हालांकि, भारत, दक्षिण अफ्रीका और ब्राज़ील जैसे देशों के लिए इन जवाबदेहियों का बोझ उठाना अन्याय होगा, क्योंकि, इनकी तुलना में विकसित देशों ने कमज़ोर श्रमिक क़ानूनों और पर्यावरण के शोषण से अपना तेज़ मगर असमान और ऐसा विकास हासिल किया है, जो जलवायु के लिहाज़ से टिकाऊ नहीं है. ऐसे में समान और निष्पक्ष अंतरराष्ट्रीय व्यापार के लिए WTO के सुधार के एजेंडे में ‘साझा मगर अलग अलग ज़िम्मेदारियों’ का सिद्धांत शामिल किया जाना चाहिए, जिसका प्रस्ताव पेरिस समझौते में दिया गया था.

अपनी G20 अध्यक्षता में भारत ने वादा किया है कि वो विकासशील देशों की आवाज़ बनेगा, जिन्हें वैश्विक प्रशासन की नाकामी ‘त्रासद नतीजे’ भुगतने पड़े हैं. ये विडम्बना ही है कि 1999 में G20 ने अपना सफ़र एशियाई वित्तीय संकट के बाद एक ऐसे मंच के तौर पर शुरू किया था, जहां वैश्विक आर्थिक और वित्तीय मसलों पर चर्चा हो सके. ऐसे में G20 की अध्यक्षता के रूप में भारत को ऐसा मौक़ा मिला है कि वो विश्व व्यापार संगठन में सुधार के लिए वैश्विक क़दम उठाने का दबाव बना सके और वैश्विक प्रशासन के ढांचे में विकासशील देशों के हितों की नुमाइंदगी करने वाली आवाज़ बन सके.

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