Published on Jul 19, 2023 Updated 0 Hours ago

कम समय के लिए सेना में भर्ती की योजना अग्निपथ, (Agnipath Military Recruitment Scheme)जिसकी घोषणा इस साल जून में की गई थी, अतीत में भारत की भर्ती की नीतियों से पूरी तरह अलग है. इस संक्षिप्त लेख में दूसरे देशों जैसे कि अमेरिका, चीन, रूस और यूनाइटेड किंगडम में सैन्य भर्ती की कार्यप्रणाली (global practice) की पड़ताल की गई है. इस छानबीन में पता चलता है कि पश्चिमी देशों में कम समय के लिए सेना में भर्ती की परंपरा ऐसी ज़रूरतों की वजह से अपनाई गई थी जो कि भारतीय संदर्भ में शायद लागू न हो. भारत की परिस्थितियां अनूठी हैं क्योंकि ऐतिहासिक रूप से भारत की सेना में पूरी तरह से स्वेच्छा से काम करने वाले लोग रहे हैं. हालांकि इसके साथ-साथ पश्चिमी देशों की सेनाओं के द्वारा इस तरह की भर्ती की प्रक्रिया को लागू करने में जिन चुनौतियों का सामना किया गया, वो भारत के लिए ऐसे समय में एक सबक़ हो सकती है जब वो अग्निपथ योजना को अमल में ला रहा है.

Agnipath Military Recruitment Scheme: ‘अग्निपथ सैन्य भर्ती योजना यानी भारतीय परिवेश में वैश्विक कार्यप्रणाली को अपनाना’
Agnipath Military Recruitment Scheme: ‘अग्निपथ सैन्य भर्ती योजना यानी भारतीय परिवेश में वैश्विक कार्यप्रणाली को अपनाना’

भूमिका

14 जून 2022 को भारत में कम समय के लिए सेना में भर्ती की योजना अग्निपथ की शुरुआत हुई. इसका उद्देश्य कम उम्र के भारतीयों को चार साल के कार्यकाल के लिए सेना में भर्ती करना है.[1][i]ये भर्ती के पहले के तौर-तरीक़ों से पूरी तरह अलग है. ‘अग्निवीर’ कहे जाने वाले ये योद्धा भारतीय सेना में वो रैंक बनाएंगे जो मौजूदा रैंक से पूरी तरह अलग है.

दुनिया के कई देश पिछले कुछ दशक से कम समय के लिए भर्ती की योजना पर निर्भर हैं. विशेष रूप से यूरोप के देशों ने अनिवार्य सैन्य सेवा- जिसके तहत योग्य नौजवानों को कुछ वर्षों के लिए सेना में काम करना ज़रूरी है- से स्वैच्छिक भर्ती की तरफ़ बदलाव करते हुए इस तौर-तरीक़े को अपनाया है. चूंकि सेना न सिर्फ़ राष्ट्रीय सुरक्षा को लेकर ख़तरे के परिदृश्य के हिसाब से बल्कि नौकरीके बाज़ार की गतिशीलता में बदलाव का भी जवाब देती है, ऐसे में अग्निपथ योजना को शुरू करके भारत भी वैश्विक रुझान का अनुसरण कर रहा है.

दुनिया के कई देश पिछले कुछ दशक से कम समय के लिए भर्ती की योजना पर निर्भर हैं. विशेष रूप से यूरोप के देशों ने अनिवार्य सैन्य सेवा- जिसके तहत योग्य नौजवानों को कुछ वर्षों के लिए सेना में काम करना ज़रूरी है- से स्वैच्छिक भर्ती की तरफ़ बदलाव करते हुए इस तौर-तरीक़े को अपनाया है.

अग्निपथ योजना के तहत 17.5 से 21 वर्ष के भारतीय युवा भर्ती के लिए योग्य होंगे.[2][ii]इस योजना के तहत हर साल 46,000 अग्निवीरों की भर्ती की जाएगी: थल सेना के लिए 40,000 और नौसेना एवं वायु सेना के लिए 3-3 हज़ार.[3][iii]उन्हें सैन्य प्रशिक्षण दिया जाएगा और वो नेतृत्व क्षमता एवं अन्य कौशल सीखेंगे.[4][iv] मासिक वेतन एवं बीमा जैसे दूसरे फ़ायदों के अलावा अग्निवीरों को एक रिटायरमेंट पैकेज भी मिलेगा.

प्रत्येक सेवानिवृत अग्निवीर सेना में स्थायी भर्ती के लिए आवेदन कर सकता है लेकिन हर बैच से अधिकतम 25 प्रतिशत अग्निवीरों को ही सेना में रखा जाएगा और इसके बाद उन्हें न्यूनतम 15 वर्ष के लिए सेना में काम करना होगा. उन पर भारतीय थल सेना में काम करने वाले जूनियर कमीशंड ऑफिसर/दूसरे रैंक और भारतीय नौसेना एवं भारतीय वायु सेना के उनके समकक्ष रैंक के साथ-साथ वायु सेना के ग़ैर-योद्धाओं पर लागू होने वाले नियम और शर्तें और उनमें समय-समय पर होने वाले फेरबदल लागू होंगे. गृह मंत्रालय ने रिटायर होने वाले अग्निवीरों के लिए भर्ती का एक अतिरिक्त अवसर खोला है जिसके तहत केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बल और असम राइफल्स में 10 प्रतिशत वैकेंसी को उनके लिए रिज़र्व रखा गया है.[5][v]रक्षा मंत्रालय ने भी वादा किया है कि कोस्ट गार्ड, रक्षा मंत्रालय के ग़ैर-सैन्य पदों और रक्षा मंत्रालय के सार्वजनिक उपक्रमों में अग्निवीरों के लिए 10 प्रतिशत आरक्षण को लागू किया जाएगा.[6][vi]

पश्चिमी देशों की सेनाओं में कम समय के लिए भर्ती

लंबे समय से दुनिया भर के देशों में सैन्य भर्ती में अनिवार्य सैन्य सेवा का नियम था और भारत उन देशों में से था जो इस मामले में अपवाद था.[7][vii]लेकिन पिछले कुछ दशकों के दौरान कई देश, ख़ास तौर पर यूरोप के देश, पूरी तरह से स्वैच्छिक भर्ती पर निर्भर हो गए हैं. इसका कारण बड़ी संख्या में लोगों को इकट्ठा करने के तौर-तरीक़े का पतन था जिसकी शुरुआत 60 के दशक में हुई.[8][viii]इसका परिणाम सशस्त्र बलों की संख्या में नाटकीय कमी के रूप में निकला है. यूरोप के देशों की सेनाओं में शीत युद्ध के युग के बाद के शुरुआती वर्षों में 25-40 प्रतिशत की कमी हुई.[9][ix]

अमेरिका में अनिवार्य सैन्य सेवा से स्वैच्छिक भर्ती की तरफ़ बदलाव की शुरुआत वियतनाम युद्ध के ख़त्म होने के साथ 1973 में हुई. अमेरिकी सरकार के एक पूर्व अधिकारी बर्नार्ड डी. रोस्टकर ने कहा है कि ये बदलाव कई कारणों से हुआ: (a) अनिवार्य सैन्य सेवा के लिए योग्य लोगों और सेना की ज़रूरत के बीच अंतर; (b) स्वीकार्य बजट के स्तर पर स्वैच्छिक सेवा के लिए तैयार युवाओं की उपलब्धता या कमी; (c) नैतिक आधार पर अनिवार्य सैन्य सेवा का रूढ़िवादियों और नागरिक स्वतंत्रता का समर्थन करने वालों की तरफ़ से बढ़ता विरोध; (d) वियतनाम युद्ध की वजह से अनिवार्य सैन्य सेवा का लोगों के द्वारा विरोध; और (e) वियतनाम युद्ध के दौरान तैनात सैनिकों के बीच अनुशासन से जुड़ी दिक़्क़तें.[10][x]सैनिकों की संख्या में कमी के साथ-साथ शीत युद्ध ख़त्म होने के बाद पश्चिमी देशों के बीच ख़तरे का अनुभव भी कम हुआ. सैनिकों के नौकरी छोड़ने (अनिवार्य सैन्य सेवा के बाद) से और उनकी ट्रेनिंग पर आने वाली लागत पर सेना का खर्च भी कम हुआ.[11][xi]

इस बदलाव का एक नुक़सान ये हुआ कि पश्चिमी देशों में सेना में काम करने की तरफ़ लोगों की अनिच्छा बढ़ गई. इस अनिच्छा के पीछे भी कई कारण थे जैसे कि लोगों की औसत आमदनी में बढ़ोतरी एवं सामान्य आर्थिक समृद्धि, ग़ैर-सैन्य क्षेत्र में बेहतर वेतन और अच्छे जीवन के लिए लोगों की बढ़ती चाह. पारिवारिक व्यवस्था में भी बदलाव होने की शुरुआत हो गई थीजिसके तहत हिंसा को समस्या समझा जाने लगा और सेना को रूढ़िवादी मूल्यों के गढ़ की तरह देखा जाने लगा.[12][xii]इसके अलावा, दूसरे विश्व युद्ध के दौरान नाज़ी शासन व्यवस्था की विरासत को देखते हुए जर्मनी में सैन्य सेवा एक विवादित मुद्दा बन गया था.[13][xiii]

नौकरी के बाज़ार की बदलती प्रकृति के साथ अमेरिका में भी ऐसी ही कहानी है जहां नौकरी के लिए तैयार युवा सरकारी नौकरियों पर बहुत ज़्यादा निर्भर नहीं हैं. ये बात STEM  की पृष्ठभूमि वाले ग्रैजुएट के मामले में विशेष तौर पर सही है. अमेरिकी सेना में भर्ती करने वाले लोगों ने माना है कि जब से अमेरिका ने पूरी तरह से स्वयंसेवी सशस्त्र बल की तरफ़ बदलाव किया है, तब से श्रम बाज़ार की स्थिति उनके लिए चुनौतीपूर्ण रही है.

जहां फ्रांस जैसे देश पर्याप्त युवाओं को भर्ती के लिए आकर्षित करने में सफल रहे हैं, वहीं अमेरिका और UK समेत कई देशों को इस मामले में संघर्ष करना पड़ रहा है.[14][xiv]उदाहरण के लिए, UK में 1962- जब अनिवार्य सैन्य सेवा ख़त्म हुई- स्वेच्छा से सेना में भर्ती होने के मामले में एक रिकॉर्ड वर्ष था. लेकिन जल्द ही UK की सेना कर्मियों की संख्या में कमी का सामना करने लगी, ख़ास तौर पर इन्फैंट्री बटालियन में.[15][xv]

नौकरी के बाज़ार की बदलती प्रकृति के साथ अमेरिका में भी ऐसी ही कहानी है जहां नौकरी के लिए तैयार युवा सरकारी नौकरियों पर बहुत ज़्यादा निर्भर नहीं हैं.[16][xvi]ये बात STEM (साइंस, टेक्नोलॉजी, इंजीनियरिंग और मैथमेटिक्स) की पृष्ठभूमि वाले ग्रैजुएट के मामले में विशेष तौर पर सही है. अमेरिकी सेना में भर्ती करने वाले लोगों ने माना है कि जब से अमेरिका ने पूरी तरह से स्वयंसेवी सशस्त्र बल की तरफ़ बदलाव किया है, तब से श्रम बाज़ार की स्थिति उनके लिए चुनौतीपूर्ण रही है.

अमेरिकी सेना एक और संकट का सामना कर रही है. अमेरिकी सेना का अनुमान है कि मोटापे, मादक पदार्थों के इस्तेमाल, शारीरिक एवं मानसिक स्वास्थ्य से जुड़े मुद्दों, ग़लत आचरण और योग्यता की कमी के कारण 71 प्रतिशत अमेरिकी युवा सैन्य सेवा के लिए अयोग्य हैं.[17][xvii]इन कारणों से भर्ती के लिए संभावित युवाओं की संख्या में काफ़ी कमी आ गई है.

वैश्विक कार्यप्रणाली

अमेरिका में कम समय के लिए भर्ती की कोशिशें 2003 में शुरू हुई थी जब अमेरिकी संसद ने ‘नेशनल डिफेंस ऑथोराइज़ेशन एक्ट’ के तहत ‘नेशनल कॉल टू सर्विस’ कार्यक्रम को पारित किया था. अमेरिकी संसद ने सभी अमेरिकी सैन्य सेवाओं को एक नया, कम समय के लिए भर्ती कार्यक्रम शुरू करने का निर्देश दिया था. इसके तहत नये भर्ती युवाओं को आठ साल के लिए भर्ती का विकल्प दिया गया: दो वर्ष की सक्रिय ड्यूटी, इसके बाद चार वर्ष के लिए सक्रिय गार्ड/रिज़र्व की ड्यूटी और अंत में दो साल के लिए निष्क्रिय रिज़र्व ड्यूटी.[18][xviii]वास्तव में इसका मतलब ऐसे युवाओं को आकर्षित करना था जो एक लंबे समय के लिए सेना में सेवा की ज़िम्मेदारी नहीं निभाना चाहते थे.

इसके साथ-साथ अमेरिका संसद ने विशिष्ट सेवाओं के लिए लचीला विकल्प भी दिया. ‘नेशनल कॉल टू सर्विस’ के अलावा अमेरिकी सेना में कम समय वाले कई अन्य भर्ती कार्यक्रम भी थे. ये कार्यक्रम दो वर्ष से लेकर छह वर्ष तक के थे. भर्ती का समय काम के दौरान आने वाली मुश्किलों के हिसाब से बढ़ता है. उदाहरण के लिए, सेना की कुछ नौकरियों में कम समय के लिए भर्ती किया जाता है क्योंकि उनमें बेहद कम ट्रेनिंग की ज़रूरत होती है लेकिन यहां सेना को पर्याप्त संख्या में युवा मिलने में दिक़्क़त आती है. इसके विपरीत नौसेना में परमाणु क्षेत्र में नौकरी पांच वर्ष के लिए होती है क्योंकि यहां विशेष जानकारी की ज़रूरत होती है.[19][xix]

हाल के समय में अमेरिकी सेना ने अपने दो वर्ष के भर्ती विकल्प का विस्तार किया है. इसके तहत बुनियादी और उच्च श्रेणी की ट्रेनिंग के बाद नये भर्ती सैनिकों को दो साल एक्टिव ड्यूटी करने की ज़रूरत पड़ेगी.[20][xx] ये योजना अब 84 युद्धक्षेत्रों के लिए उपलब्ध है जिनमें इन्फैंट्री, कॉम्बैट इंजीनियर, क़ानूनी सहायता और उड्डयन अभियान विशेषज्ञ शामिल हैं. दो साल पूरे करने के बाद सैनिकों के पास ये विकल्प रहेगा कि वो रिज़र्व सेना में दो और साल के लिए ख़ुद को पार्ट-टाइम जोड़ सकें.

यूरोप के देशों में फ्रांस की सेना कम समय के लिए भर्ती के दो विकल्प पेश करती है: स्वैच्छिक और नॉन-कमीशंड ऑफिसर (NCO). सशस्त्र बलों में काम करने की स्वैच्छिक योजना के तहत फ्रांस के युवा नागरिक सेना की किसी भी ब्रांच- थल सेना, वायु सेना, राष्ट्रीय नौसेना, राष्ट्रीय सशस्त्र पुलिस या सशस्त्र बल स्वास्थ्य सेवा- में एक साल के लिए काम कर सकते हैं. वो मासिक वेतन और दूसरे फ़ायदे हासिल करते हैं.[21][xxi]

भर्ती होने वाले युवाओं में से कुछ को किसी ख़ास विषय में ट्रेनिंग दी जाती है जिसमें वो अपने दूसरे कॉन्ट्रैक्ट के दौरान अभियान चला सकते हैं. फ्रांस की सेना सैन्य दस्ते की कमान या विशेषज्ञ पद जैसे कि साइबर या नौसेना के पद के लिए एक साल के कॉन्ट्रैक्ट का विकल्प भी देती है. इसे अधिकतम 15 साल तक के लिए बढ़ाया जा सकता है.

भर्ती होने वाले युवाओं की संभावित कमी और नौजवानों को सैन्य सेवा की तरफ़ आकर्षित करने के उद्देश्य से फ्रांस की सेना NCO के लिए कम समय की भर्ती योजना पेश करती है. उन्हें तीन साल के कॉन्ट्रैक्ट पर रखा जाता है जिसको आगे भी बढ़ाया जा सकता है. भर्ती होने वाले युवाओं में से कुछ को किसी ख़ास विषय में ट्रेनिंग दी जाती है जिसमें वो अपने दूसरे कॉन्ट्रैक्ट के दौरान अभियान चला सकते हैं. फ्रांस की सेना सैन्य दस्ते की कमान या विशेषज्ञ पद जैसे कि साइबर या नौसेना के पद के लिए एक साल के कॉन्ट्रैक्ट का विकल्प भी देती है. इसे अधिकतम 15 साल तक के लिए बढ़ाया जा सकता है. ऐसे कॉन्ट्रैक्ट कर्मियों ने फ्रांस की सेना के सभी अभियानों, जिनमें अफ्रीका के साहेल क्षेत्र का अभियान भी शामिल है, में भाग लिया है.

ब्रिटिश सेना में 18 वर्ष से ऊपर के युवाओं के लिए न्यूनतम सेवा की अवधि चार साल है और 18 वर्ष से कम के युवाओं को 22 साल पूरा होने तक काम करना पड़ता है. इस अवधि को पूरा करने के बाद युवाओं के पास सेना को छोड़ने का विकल्प रहता है. नौसेना में न्यूनतम अवधि ट्रेनिंग ख़त्म होने के बाद साढ़े तीन साल या चार साल की सेवा, जो ज़्यादा हो, है. वायु सेना में ट्रेनिंग ख़त्म होने के बाद तीन साल या चार साल की सेवा, जो ज़्यादा हो, है.[22][xxii]

इसी तरह जर्मनी में स्वेच्छा से भर्ती के लिए आने वाले युवाओं, जो कम-से-कम 17 साल की उम्र के हों, को शुरुआत में सात महीने से लेकर 23 महीने तक का कॉन्ट्रैक्ट पेश किया किया जाता है. इसमें ज़्यादा समय की बाध्यता नहीं रहती है. बाद के चरण में जो युवा चाहते हैं वो कॉन्ट्रैक्ट बढ़ाने के लिए आवेदन कर सकते हैं.[23][xxiii] इस कम समय की सेवा के तौर-तरीक़े को लागू कर जर्मनी ने अपनी सेना का आकार शीत युद्ध ख़त्म होने के समय के 5,00,000 से कम करके वर्तमान में 2,00,000 कर लिया है.[24][xxiv]

सारिणी1: पश्चिमी देशों में सैन्य भर्ती की प्रमुख विशेषताएं

स्रोत: लेखक का अपना

पश्चिमी देशों की सेनाओं ने कम समय के लिए भर्ती के तौर-तरीक़े को लागू करने में कई चुनौतियों का सामना किया है. इन चुनौतियों में सबसे प्रमुख है युवाओं के भीतर सेना में काम करने की सामान्य अनिच्छा. कम समय के लिए भर्ती के आकर्षण से भी इस चुनौती से पार नहीं पाया जा सका है.

2020 और 2021 के लिए अमेरिकी सेना की भर्ती कमांड के सामान्य आंकड़े से पता चलता है कि उसने सैनिकों की भर्ती के अपने लक्ष्य को पूरा किया है. लेकिन रिज़र्व सैनिकों की भर्ती लक्ष्य से कम हुई है.[25][xxv]

सारिणी 2: अमेरिकी सेना में भर्ती (2020-21)

स्रोत: अमेरिका सेना भर्ती कमांड

 

चूंकि सैनिकों की भर्ती ज़्यादा कठिन हो गई है, ऐसे में अमेरिकी सेना ने इस साल घोषणा की है कि वो कुल सैनिकों की संख्या में 12,000 की कमी करने की तैयारी कर रही है.[26][xxvi]दूसरी सैन्य शाखाएं भी इसी तरह के संघर्षों का सामना कर रही हैं.[27][xxvii]

युवा आबादी को ग़ैर-सैन्य नौकरियों से अपनी तरफ़ आकर्षित करने के लिए अमेरिकी सेना कॉलेज में फंडिंग, भर्ती पर बोनस (40,000 अमेरिकी डॉलर तक) और रिटायरमेंट के बाद पेंशन जैसे फ़ायदों की पेशकश कर रही है.[28][xxviii]हाल के समय में अमेरिकी सेना ने नई प्रतिभाओं को आकर्षित करने के लिए 50,000 अमेरिकी डॉलर के बोनस की पेशकश की क्योंकि कोविड-19 महामारी की वजह से बड़े पैमाने पर भर्ती का अभियान चलाना मुश्किल हो गया था.[29][xxix]

दुनिया भर की सेनाएं युवाओं के नौकरी छोड़ने की चुनौती का भी सामना कर रही हैं. इसकी वजह से न सिर्फ़ कर्मियों की कमी की चिंता जताई जा रही है बल्कि इसके साथ-साथ समय, ट्रेनिंग, निवेश और संसाधनों का मुद्दा भी है. अमेरिका में 90 के दशक के आख़िर में जनरल अकाउंटिंग ऑफिस के एक अध्ययन में ये पता चला कि सेना में भर्ती होने वाले युवाओं में से 14 प्रतिशत से ज़्यादा शुरुआती छह महीनों के भीतर नौकरी छोड़ देते हैं और 30 प्रतिशत से ज़्यादा अपने पहले कार्यकाल के ख़त्म होने से पहले सेना छोड़ देते हैं. इसकी वजह से संसाधनों की बर्बादी होती है.[30][xxx] 2003 में अमेरिका के आर्मी वॉर कॉलेज के अध्ययन में इस नतीजे पर पहुंचा गया कि युवाओं के सेना छोड़ने की समस्या को केवल अतिरिक्त पैसे की पेशकश से ख़त्म नहीं किया जा सकता है. इसके बदले भर्ती, पद संभालने, ट्रेनिंग और संचालन के बीच संरचनात्मक एकजुटता की आवश्यकता है.[31][xxxi]

आख़िर में जनरल अकाउंटिंग ऑफिस के एक अध्ययन में ये पता चला कि सेना में भर्ती होने वाले युवाओं में से 14 प्रतिशत से ज़्यादा शुरुआती छह महीनों के भीतर नौकरी छोड़ देते हैं और 30 प्रतिशत से ज़्यादा अपने पहले कार्यकाल के ख़त्म होने से पहले सेना छोड़ देते हैं. इसकी वजह से संसाधनों की बर्बादी होती है.

UK की बात करें तो वहां नये रंगरूटों को तलाशने के लिए संघर्ष इस बात में दिखता है कि सेना ने भर्ती के लिए न्यूनतम उम्र बढ़ाने से इनकार कर दिया है- यूरोप में UK इकलौता देश है जहां 16 साल में सैनिकों की भर्ती की जाती है.[32][xxxii]मानवाधिकार संगठन और बाल अधिकारों पर संयुक्त राष्ट्र की समिति के द्वारा इस व्यवस्था की आलोचना की गई है. UK से कहा गया है कि वो “सशस्त्र सेना में बच्चों की भर्ती की सक्रिय नीति पर फिर से विचार करे और सुनिश्चित करे कि ये इस ढंग से नहीं हो जो ख़ास तौर पर जातीय अल्पसंख्यकों और कम आमदनी वाले परिवारों के बच्चों को लक्ष्य बनाए.”[33][xxxiii],[34][xxxiv]

फ्रांस के लिए चुनौती अलग तरह की है. वैसे तो फ्रांस की सेना में भर्ती होने के लिए पर्याप्त संख्या में रंगरूट आते हैं लेकिन उन्हें दूसरे और उसके बाद के कॉन्ट्रैक्ट के लिए तैयार करना चुनौती है. पेरिस के एक थिंक टैंक के रिसर्च फेलो थिबॉल्ट फोइलेट के अनुसार, “अभियानों और कुछ विशिष्ट गतिविधियों की कमी (जैसे पैराशूट यूनिट अपनी क्लास ख़त्म होने के बाद अब पैराशूट मिशन को अंजाम नहीं देती है क्योंकि बहुत ज़्यादा सामान्य मिशन चलाए जाते हैं) के कारण काफ़ी प्रशिक्षित सैनिक चले जाते हैं.”[35][xxxv]ये एक महत्वपूर्ण मुद्दा है क्योंकि सैनिक अपने पहले कॉन्ट्रैक्ट के दौरान ज़्यादातर समय ट्रेनिंग हासिल करने में बिताते हैं और अपनी क्षमता के आदर्श स्तर तक दूसरे कॉन्ट्रैक्ट के दौरान ही पहुंच पाते हैं.

वैसे तो दुनिया भर में अनिवार्य सैन्य सेवा से हटकर स्वैच्छिक सेवा की तरफ़ बदलाव हो गया है लेकिन दो बड़ी सेनाएं, चीन और रूस, अभी भी अनिवर्य सैन्य सेवा का पालन कर रही हैं जबकि वहां भी संभावित रंगरूटों की कोई कमी नहीं है. इसके साथ-साथ वहां कॉन्ट्रैक्ट वाली नौकरी की पेशकश के ज़रिए कम समय के लिए भर्ती की योजनाएं भी हैं. मिसाल के तौर पर चीन ने बिना रैंक वाले कैडर, जिसे ‘कॉन्ट्रैक्ट नागरिक’ कहा जाता है, की एक नई श्रेणी बनाई है जो सेना के लिए ग़ैर-सैन्य काम करते हैं जैसे कि रिसर्च, अनुवाद और इंजीनियरिंग.[36][xxxvi]इस कैडर में भर्ती होने वाले युवाओं के सामने तीन से पांच साल तक के कॉन्ट्रैक्ट का विकल्प होता है और वो 50 साल की उम्र तक सेवा में रह सकते हैं.[37][xxxvii] इसके अतिरिक्त हाल के समय में सैन्य भर्ती में जो सुधार किए गए हैं, उनमें विश्वविद्यालय के छात्रों और ग्रैजुएट पर ध्यान दिया गया है. इनमें भी जिन छात्रों ने विज्ञान और इंजीनियरिंग की पढ़ाई की है और जिनके पास “युद्ध की तैयारी के लिए आवश्यक कौशल हैं”, उन्हें प्राथमिकता दी गई है.[38][xxxviii]

इसी तरह रूस ने भी कॉन्ट्रैक्ट कर्मियों को शामिल करने की कोशिशें तेज़ की हैं और सेना को पेशेवर बनाने पर ज़ोर दिया है. मार्च 2020 में रूस के रक्षा मंत्री सर्गेई शोइगु ने कहा कि सात साल पहले अनिवार्य सैन्य सेवा के तहत भर्ती सैनिकों की संख्या 2,25,000 थी जबकि कॉन्ट्रैक्ट के तहत भर्ती सैनिकों की संख्या 4,05,000 थी.[39][xxxix]कॉन्ट्रैक्ट के तहत काम करने वाले सैनिकों ने सभी सार्जेंट और सार्जेंट-मेजर के पदों पर, विशेष अभियान बलों की कॉम्बैट यूनिट, एयरबोर्न यूनिट, मरीन कॉर्प्स, बटालियन लेवल टैक्टिकल ग्रुप और आधुनिक हार्डवेयर के रखरखाव से जुड़े पदों पर काम किया.[40][xl]

भारत के लिए सबक़

भारत में परिस्थितियां निश्चित रूप से अलग हैं. भारत की सेना ऐतिहासिक तौर पर पूरी तरह से स्वैच्छिक सेना रही है. पश्चिमी देशों से अलग, भारत के सशस्त्र बलों को देशभक्ति का आदर्श और गर्व का स्रोत समझा जाता है. भारत में सशस्त्र बलों को राष्ट्र निर्माण के लिए महत्वपूर्ण संस्थान के तौर पर भी देखा जाता है.[41][xli]भारत में सैन्य सेवाओं के लिए संभावित रंगरूटों की कोई कमी नहीं है. सेना में काम करना सामाजिक प्रतिष्ठा का विषय माना जाता है. भारत में कई समुदाय रोज़गार के लिए सेना पर बहुत ज़्यादा निर्भर करते हैं.

लेकिन चुनौती है प्रतिभा से संपन्न और गुणात्मक रूप से बेहतर रंगरूटों को आकर्षित करना. क्योंकि तकनीकी बदलावों ने सैन्य अभियानों को मुश्किल बना दिया है. अब सैन्य अभियानों में कई तरह के पेशेवर हुनर की ज़रूरत पड़ती है. अग्निपथ योजना से उम्मीद की जाती है कि वो नई प्रतिभाओं को आकर्षित करेगी. लेकिन इसके बावजूद कम समय के लिए भर्ती की योजनाओं को लागू करने वाली विदेशी सेनाओं का अनुभव दिखाता है कि सर्वश्रेष्ठ प्रतिभाओं, ख़ास तौर पर STEM पृष्ठभूमि से, को आकर्षित करना एक चिंता का विषय बना हुआ है. कम समय के लिए भर्ती की योजना के तहत कई तरह के आकर्षक अवसर की पेशकश किए जाने के बावजूद अमेरिकी सेना STEM पृष्ठभूमि वाली प्रतिभाओं को आकर्षित करने में नाकाम रही है क्योंकि इस तलाश में उसे कॉरपोरेट सेक्टर से मुक़ाबला करना पड़ता है.[42][xlii]

25 प्रतिशत अग्निवीरों को स्थायी रूप से सेना में शामिल करने के प्रावधान के साथ भारत के रक्षा योजनाकार सेना की ज़रूरतों को पूरा करने वाली सर्वश्रेष्ठ प्रतिभा को अपने साथ बनाए रखने में सक्षम होंगे.[43][xliii]इसके अलावा योजना के तहत जिस चार वर्ष की सेवा अवधि के बारे में सोचा गया है, वो आबादी के एक बड़े हिस्से के लिए इसे आकर्षक बना सकती है. इसमें वो युवा आबादी भी शामिल है जो सेना के लिए एक दीर्घकालीन प्रतिबद्धता निभाने से झिझकती है. लेकिन STEM से जुड़ी प्रतिभा को आकर्षित करने में इस योजना की संभावित क्षमता बहस का विषय बनी हुई है क्योंकि एक अग्निवीर को महीने में औसतन 21,000 रुपये का वेतन मिलेगा (लगभग 250 अमेरिकी डॉलर) और ग्रैच्युटी एवं पेंशन का प्रावधान भी नहीं है.[44][xliv]

ये पहला मौक़ा है जब भारत NCO के लिए कम समय की भर्ती का तौर-तरीक़ा लागू करेगा. अग्निपथ को उस वक़्त लागू किया जा रहा है जब सेना कोविड-19 महामारी की वजह से दो साल तक भर्ती नहीं कर पाई थी. इसी कारण से अग्निपथ के तहत आवेदन के शुरुआती चरण में अभूतपूर्व संख्या में युवाओं का जवाब मिला है.

भारत के रक्षा योजनाकारों को महत्वपूर्ण वित्तीय संसाधनों का निवेश करना होगा, बेहतर सेवा शर्त सुनिश्चित करनी होगी और तकनीक में पारंगत युवाओं की भर्ती के लिए एक योजना (शायद अग्निपथ के उपवर्ग के तौर पर) तैयार करनी होगी जो STEM प्रतिभा को आकर्षित करेगी. चीन में रक्षा योजनाकार विज्ञान और इंजीनियरिंग के छात्रों के लिए दो साल काम करने के बाद सेना छोड़ने के बदले दीर्घकालीन भर्ती की पेशकश वाली योजना बना रहे हैं.[45][xlv]

ये पहला मौक़ा है जब भारत NCO के लिए कम समय की भर्ती का तौर-तरीक़ा लागू करेगा. अग्निपथ को उस वक़्त लागू किया जा रहा है जब सेना कोविड-19 महामारी की वजह से दो साल तक भर्ती नहीं कर पाई थी. इसी कारण से अग्निपथ के तहत आवेदन के शुरुआती चरण में अभूतपूर्व संख्या में युवाओं का जवाब मिला है.[46][xlvi] हालांकि योजना की असली परीक्षा न सिर्फ़ युवा आबादी को सैन्य सेवा का अनुभव पेश करने की इसकी क्षमता में होगी बल्कि अग्निवीरों को उनके चार साल के कार्यकाल के बाद नागरिक जीवन से फिर से जोड़ने की उसकी योग्यता में भी होगी. अग्निपथ पहले के मुक़ाबले ज़्यादा अनुपात में सैन्य अनुभव वाले युवाओं को नौकरी के बाज़ार में लाएगी.

जैसा कि पहले भी बताया गया है, सरकार ने सैन्य सेवा के बाद अग्निवीरों की बेहतर ढंग से तैयारी को सुनिश्चित करने के लिए अलग-अलग उपायों की घोषणा की है. प्राइवेट सेक्टर ने भी अग्निवीरों की बहाली के लिए उत्सुकता जताई है.[47][xlvii]हालांकि नौकरी के मामले में पूर्व सैन्य कर्मियों (जो 37-38 साल में रिटायर होते हैं) का अनुभव उतना उत्साहजनक नहीं रहा है. उचित नौकरी पाने में उनकी मुश्किलें- और कभी-कभी अक्षमता- एक विवादित मुद्दा रहा है[48][xlviii] जबकि पश्चिमी देशों में रिटायर सैन्यकर्मी काफ़ी हद तक ख़ुद को नौकरी के बाज़ार में फिर से जोड़ने में सक्षम रहे हैं.

मिसाल के तौर पर अमेरिकी श्रम सांख्यिकी ब्यूरो के आंकड़ों से पता चलता है कि रिटायर सैन्यकर्मियों के लिए बेरोज़गारी का अनुपात महज़ 4.4 प्रतिशत है.[49][xlix]वैसे तो रिटायर होने वाले अग्निवीरों की कम आयु उनकी रोज़गार की संभावना पर महत्वपूर्ण असर डाल सकती है लेकिन इसके लिए सरकार को चुनिंदा सरकारी सेवाओं में अग्निवीरों के लिए कोटा का विस्तार करने की भी आवश्यकता होगा. इस बात की भी ज़रूरत है कि सोच में बदलाव किया जाए और पूर्व सैन्यकर्मियों को‘कौशल केंद्रित मैनेजर’ के रूप मेंव्यापक रूप से देखना शुरू किया जाए.[50][l]

अंत में, सेना की लड़ाई लड़ने की संभावना और अभियान की तैयारी पर अग्निपथ योजना के संभावित असर के बारे में सवाल उठाए गए हैं क्योंकि उन्हें सिर्फ़ छह महीने की ट्रेनिंग दी जाएगी.[51][li] सेना के प्रमुखों ने निश्चित रूप से योजना की शुरुआत करने से पहले इस पहलू पर विचार किया होगा.[52][lii]यहां भी वैश्विक कार्यप्रणाली बताती है कि ट्रेनिंग के उद्देश्य से अधिक तकनीक, ज़्यादा सिमुलेशन समेत, को लाने से ‘कम में ज़्यादा’ हासिल किया जा सकता है.[53][liii], [54][liv]

अग्निपथ ‘किफ़ायती रक्षा’ को लेकर बहस को फिर से शुरू कर एक संरचनात्मक जांच और मरम्मत का वादा करती है. सशस्त्र बलों में सैनिकों के रखरखाव की भारी लागत ने चिंताएं बढ़ाई हैं. भारत के रक्षा योजनाकारों से उम्मीद है कि वो आधुनिकीकरण के लिए ज़्यादा संसाधन देंगे और साइबर, अंतरिक्ष एवं उभरती तकनीक जैसे क्षेत्रों में ज़्यादा निवेश करेंगे.

वास्तव में अग्निपथ योजना भारत की सैन्य भर्ती के लिए काफ़ी उम्मीद रखती है. सफलता मिलने पर इसको भारतीय सेना के अन्य क्षेत्रों (जैसे कि ऑफिसर कैडर) और अर्धसैनिक बलों में भी दोहराया जा सकता है. रक्षा योजनाकारों को दीर्घकालीन रंगरूटों को कम समय के लिए रंगरूटों से अलग करके कर्मी केंद्रित चिंताओं जैसे कि मूल्य वर्धन की तरफ़ ध्यान देना चाहिए. अगर ये योजना शुरुआती चरण में सफल होती है तो इससे आने वाले वर्षों में इसकी क्षमता की गारंटी मिल जाएगी और संभावित रंगरूटों के अनुभव को आकार देगी.

निष्कर्ष

अगले कुछ वर्षों में जैसे-जैसे अग्निपथ के तहत भर्तियां होंगी, वैसे-वैसे अग्निपथ की ख़ूबियों-खामियों के बारे में पता चलेगा. दुनिया के कई हिस्सों में सेनाओं ने भू-राजनीतिक बदलावों और युद्ध के बदलते रूप एवं राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़े ख़तरों के परिदृश्य के जवाब में संरचनात्मक सुधारों को लागू किया है. भारत के क़दम व्यापक रुझानों के अनुसार हैं. कम समय के लिए सेना में भर्ती को लेकर वैश्विक अनुभव जहां भारतीय सेना को उन योजनाओं के फ़ायदों और नुक़सानों को समझने और उनके आकलन के लिए एक उदाहरण पेश करते हैं, वहीं भारत में सशस्त्र बलों के आकार और युवा जनसांख्यिकी को देखते हुए भारत का तजुर्बा भी अनोखा होगा.

अग्निपथ ‘किफ़ायती रक्षा’ को लेकर बहस को फिर से शुरू कर एक संरचनात्मक जांच और मरम्मत का वादा करती है. सशस्त्र बलों में सैनिकों के रखरखाव की भारी लागत ने चिंताएं बढ़ाई हैं. भारत के रक्षा योजनाकारों से उम्मीद है कि वो आधुनिकीकरण के लिए ज़्यादा संसाधन देंगे और साइबर, अंतरिक्ष एवं उभरती तकनीक जैसे क्षेत्रों में ज़्यादा निवेश करेंगे. चूंकि भारत एक महाद्वीपीय समुद्री संतुलन पाने के लिए अपने सामरिक दृष्टिकोण में सुधार करना चाहता है, ऐसे में ये महत्वपूर्ण है कि तकनीक को केंद्र में जगह मिले, भले ही लड़ाई, क्षमता और ट्रेनिंग को लेकर ज़रूरतें बदल रही हैं. अग्निपथ योजना से उम्मीद की जाती है कि वो एक विशिष्ट ढंग से इस कमी की भरपाई करेगी.


समीर पाटिल ORF मुंबई में सीनियर फेलो हैं

विवेक मिश्रा ORF के सामरिक अध्ययन कार्यक्रम में फेलो हैं


Endnotes

[1] Ministry of Defence, “In a transformative reform, Cabinet clears ‘AGNIPATH’ scheme for recruitment of youth in the Armed Forces,” Press Information BureauBureau.

[2] Ministry of Defence, “Extension of entry age: Agnipath scheme,” Press Information Bureau.

[3] Rajat Pandit, “Agniveers will be 50% of Army by 2032: Vice-chief Lt-General BS Raju, Times of India, June 16, 2022.

[4] Ministry of Skill Development and Entrepreneurship, “Agnipath to boost the creation of a young and skilled workforce for Indian Armed Forces,” Press Information Bureau.

[5] Ministry of Home Affairs, “The Ministry of Home Affairs (MHA) decides to reserve 10 percent vacancies for recruitment in CAPFs and Assam Rifles for Agniveers, completing four years under the Agnipath Scheme announced by the Government of India, led by Prime Minister Shri Narendra Modi,” Press Information Bureau.

[6] Ministry of Defence, “Agnipath – RakshaMantri Shri Rajnath Singh approves 10% reservation of jobs for Agniveers in Indian Coast Guard, Defence Civilian posts & 16 DPSUs,” Press Information Bureau.

[7] EU nations continue to phase out military conscription”, Deutsche Welle, July 1, 2010.

[8] Morris Janowitz, “Youth and National Service,” Teachers College Record73, no. 1 (1971): 1–3.

[9] Bernard Boene, “Shifting to All-Volunteer Armed Forces in Europe: Why, How, With What Effects?,”Forum Sociológico19 (2009): 49-60.

[10] Bernard D. Rostker, “The Evolution of the All-Volunteer Force,” RAND Corporation, 2006.

[11] Dwight R. Lee and Robert McNown, “The High Cost of the Draft, Foundation for Economic Education, October 1, 1974.

[12] Tom Rosentiel and Nicole Speulda, “Youth and War,” Pew Research Centre.

[13] Christopher Woody, “Germany’s military has a manpower problem, and its solution may be foreigners and teenagers, Business Insider India, August 25, 2018.

[14] Boene, “Shifting to All-Volunteer Armed Forces in Europe: Why, How, With What Effects?”

[15] Peter J. Dietz and J. F. Stone, “The British All-Volunteer Army,” Armed Forces & Society1, no. 2 (1975): pp. 164.

[16] Wes O’Donnell, “Why Don’t America’s Young People Want to Join the Military?

[17] Recruiting Challenges,” US Army Recruiting Command.

[18] National Call to Service program,” US Department of Veterans Affairs.

[19] Rod Powers, “US Military Enlistment Contracts and Enlistment Incentives, The Balance Careers, August 28, 2019.

[20]Mia Figgs, “Army expands short-term enlistment options,” US Army Recruiting Command, February 7, 2022,

https://recruiting.army.mil/News/Article/2925198/army-expands-short-term-enlistment-options/.

[21]“Volontariatdans les armées,” Direction de l’informationlégale et administrative, https://www.service-public.fr/particuliers/vosdroits/F1292.

[22]“British Army Questions And Answers,” https://daysackmedia.co.uk/resources/joining-the-british-army/.

[23]“Voluntary Military Service: An Opportunity, Not an Obligation,” Bundeswehr, https://www.bundeswehr.de/en/about-bundeswehr/ranks-and-careers/voluntary-military-service.

[24]AFP, “Ukraine war raises spectre of conscription in Germany,” France 24, March 1, 2022, https://www.france24.com/en/live-news/20220301-ukraine-war-raises-spectre-of-conscription-in-germany.

[25] US Army Recruiting Command, “Facts and Figures,” https://recruiting.army.mil/pao/facts_figures/.

[26] Elizabeth Howe, “In About-Face, Army Expects to Shrink Next Year,” Defense One, March 31, 2022, https://www.defenseone.com/policy/2022/03/about-face-army-expects-shrink-next-year/363878/.

[27] Thomas Spoehr, “Military Recruiting Faces Its Biggest Challenge in Years,” The Heritage Foundation, May 13, 2022, https://www.heritage.org/defense/commentary/military-recruiting-faces-its-biggest-challenge-years.

[28] Beth J. Asch, Navigating Current and Emerging Army Recruiting Challenges: What Can Research Tell Us?, RAND Corporation, 2019, https://www.rand.org/pubs/research_reports/RR3107.html.

[29] Jonathan Franklin, “The Army is increasing its largest signing bonus to $50,000 for some new recruits, NPR, January 12, 2022.

[30] General Accounting Office, U.S., “Military Attrition: Better Screening of Enlisted Personnel,” March 13, 1997.

[31] Santhi Jaidev, “Attrition in Central Armed Police Forces(CAPFs) – A study of the Socio-Psychological, Environmental & Economic/Financial factors leading to the situation of increasing cases of VR, Suicides/ Fratricides in Central Armed Police Forces and recommendations to overcome the situation,” Sardar Vallabhbhai Patel National Police Academy.

[32] Ewen MacAskill, “Inside the college that trains the UK’s youngest soldiers, The Guardian, February 8, 2018.

[33] The recruitment of under 18s into the UK armed forces,” ForcesWatch briefing, February 2011.

[34] “The recruitment of under 18s into the UK armed forces”

[35] Thibault Fouillet, Email conversation with the authors, June 29, 2022.

[36] Marcus Clay and Dennis J. Blasko, “People win wars: The PLA enlisted force, and other related matters, War on the Rocks, July 31, 2020.

[37] Xinhua, “China’s National Defense in 2006,” December 29, 2006.

[38] Amber Wang, “The new rules China hopes will build more professional soldiers, South China Morning Post, April 30, 2022.

[39] Conscripts’ share in Russian Army declines to 30%, says lawmaker”, Tass, March 15, 2021.

[40] Kateryna Stepanenko, Frederick W. Kagan, and Brian Babcock-Lumish, “Explainer on Russian Conscription, Reserve, and Mobilization, Institute for the Study of War, March 5, 2022.

[41] Manoj Joshi and Sameer Patil, “Civil-military relations in Independent India,” Observer Research Foundation, August 15, 2022.

[42] Yasmin Tadjdeh, “Vital Signs 2020: Defense Sector Straining to Attract STEM Talent, National Defense, January 1, 2020.

[43] Raj Shukla, “The Agnivir Scheme: Only the test of fire will make fine steel,” Observer Research Foundation, June 27, 2022.

[44] Alok Bansal, “‘Tour of Duty’ will expose youth to military life. Don’t let bureaucracy fail it like note ban, The Print, June 15, 2022.

[45] Liu Xuanzun, “China’s amendment of the military service law highlights the role of non-commissioned officer, ‘key to modernization’: expert, Global Times, August 23, 2021.

[46] Special Correspondent, “Indian Navy receives 9.55 lakh applications under Agnipath, The Hindu, August 4, 2022.

[47] Suraksha P., “Amid protests, corporate leaders extend support to Agnipath scheme, The Economic Times, June 21, 2022.

[48] Arindam Majumder, Dhruvaksh Saha, and Shreya Jai, “Agnipath: Data shows veterans fail to find govt jobs after retirement, Business Standard, June 21, 2022.

[49] Employment Situation of Veterans — 2021,” Bureau of Labour Statistics, US Department of Labor.

[50] Bhartendu Kumar Singh, “Attrition in armed forces is more of a myth, The Tribune, July 27, 2019.

[51] Abhijit Singh, “Agnipath’s merit is debatable,” Observer Research Foundation, June 20, 2022.

[52] Diptendu Choudhury, “The firewalking braves,” Observer Research Foundation, June 20, 2022.

[53] Defence cuts make Britain’s armed forces leaner but not meaner, The Economist, March 25, 2021.

[54] The French armed forces are planning for high-intensity war, The Economist, March 31, 2021.

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Sameer Patil

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Dr Sameer Patil is Director, Centre for Security, Strategy and Technology at the Observer Research Foundation.  His work focuses on the intersection of technology and national ...

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Vivek Mishra

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Vivek Mishra is Deputy Director – Strategic Studies Programme at the Observer Research Foundation. His work focuses on US foreign policy, domestic politics in the US, ...

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