Author : Sushant Sareen

Published on Mar 27, 2024 Updated 0 Hours ago

अगर पाकिस्तान, अफ़ग़ानिस्तान के आतंकवादियों के ख़िलाफ़ अपनी लड़ाई जारी रखना चाहता है, तो उसे इसके लिए एक साथ दो मोर्चों पर संघर्ष करना होगा- एक तो अपने इलाक़े के भीतर और इसके साथ साथ अफ़ग़ानिस्तान के भीतर भी

अफ़ग़ानिस्तान का बवंडर: पाकिस्तान के लिए अपनी बोयी फ़सल काटने का वक़्त

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अगर लड़ाकू विमानों और ड्रोन से बमबारी, गोपनीय तरीक़े से हत्याएं करने के अभियान और अफ़ग़ानिस्तान के जिहादी अड्डों पर हमला करके वापस आने जैसी रणनीतियां कारगर होतीं, तो अमेरिका को हार का सामना नहीं करना पड़ता. इसी तरह, अगर पाकिस्तानी फ़ौज के आला अधिकारी, और सामान्य नागरिक हुकूमत ये सोचते हैं कि वो अफ़ग़ानिस्तान में आतंकवादियों के संदिग्ध शिविरों/ अड्डों पर हमला करके अपने देश के भीतर आतंकवादी हमलों मे हुए भयंकर इज़ाफ़े पर क़ाबू पा सकेंगे, या ऐसे हमले रोक सकेंगे, तो उन्हें सच में ज़रूरत इस बात की है कि वो आतंकवाद के ख़तरे से निपटने की अपनी रणनीति पर विचार करें, जो हर गुज़रते दिन के साथ भयानक होता जा रहा है. लेकिन, अगर राष्ट्रीय सुरक्षा की रणनीति बनाने और उसे लागू करने की ज़िम्मेदारी हाई स्कूल पास जनरलों के हाथों में होगी, तो वो या तो सोचते ज़्यादा हैं और कार्रवाई कम करते हैं, या फिर बिना पूरी तरह सोचे समझे कार्रवाई पर ज़ोर देते हैं. ऐसे में अफ़ग़ानिस्तान को लेकर उनकी रणनीति या तो पूरी तरह ख़ामोशी अख़्तियार करने की होगी, या फिर वो बेहद आक्रामक कार्रवाई पर ज़ोर देंगे. फिर भी, पाकिस्तान के प्रति निष्पक्ष नज़रिया रखते हुए हमें ये मानना पड़ेगा कि उसके पास ज़्यादा विकल्प हैं भी नहीं, और जिन विकल्पों में से उसे चुनाव करना भी है, वो सब के सब बेहद ख़राब हैं. इससे भी बुरी बात ये है पाकिस्तान किसी भी विकल्प पर कार्रवाई करता है- फिर चाहे वो आक्रामक तरीक़े से जंग को अफ़ग़ानिस्तान के भीतर ले जाने की हो, संघर्ष को अपनी सीमा के भीतर सीमित रखते हुए एक रक्षात्मक नीति पर चलना हो, पाकिस्तानी तालिबान के साथ शांति समझौता करने का विकल्प हो या फिर इन तीनों का मिला-जुला विकल्प हो- पर इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि अफ़ग़ानिस्तान के दलदल में पाकिस्तान बहुत गहरे धंसता जा रहा है, और विडम्बना ये है कि ये दलदल ख़ुद पाकिस्तान का बनाया हुआ है.

इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि अफ़ग़ानिस्तान के दलदल में पाकिस्तान बहुत गहरे धंसता जा रहा है, और विडम्बना ये है कि ये दलदल ख़ुद पाकिस्तान का बनाया हुआ है.

हमले और पलटवार

18 मार्च को तड़के पाकिस्तान ने अफ़ग़ानिस्तान के पकतिका और खोस्त सूबों में हवाई हमले किए. इन हमलों के निशाने पर वो ठिकाने थे, जिनका ताल्लुक़, हफ़ीज़ गुल बहादुर की अगुवाई वाले सबसे भयानक और डरावने जिहादी गुट से बताया जाता है. पाकिस्तान ने ये हवाई हमले, दो दिन पहले मीर अली में पाकिस्तानी फ़ौज के अड्डे पर किए गए बेहद जटिल आतंकवादी हमले के पलटवार के तौर पर किए थे. इस आतंकवादी हमले में पाकिस्तानी सेना के सात जवान शहीद हो गए थे, और इनमें दो अधिकारी भी शामिल थे. पाकिस्तानी फ़ौज के ठिकाने पर हुए इस हमले की ज़िम्मेदारी हफ़ीज़ गुल बहादुर ने ही ली थी. ये पहली बार नही था, जब पाकिस्तान ने अफ़ग़ानिस्तान के भीतर हमला किया था. अप्रैल 2022 में पाकिस्तानी फ़ौज पर के बाद एक कई घातक दहशगर्द हमलों के बाद पाकिस्तान ने खोस्त और कुनार सूबों में तहरीक--तालिबान पाकिस्तान (TTP) के ठिकानों पर ड्रोन से हमले किए थे. ये भी माना जाता है कि अफ़ग़ानिस्तान में छुपे TTP के आतंकवादी आक़ाओं और दूसरे जिहादी कमांडरों को ख़त्म करने के लिए, पाकिस्तानी फ़ौज ने खुफ़िया ऑपरेशंस को भी अंजाम दिया है. संदिग्ध ड्रोन हमलों, रहस्यमय बम धमाकों और निशाना बनाकर हत्याएं करने जैसी कई संदिग्ध घटनाएं सामने आई हैं. लेकिन, इन कार्रवाई के बावजूद, तो पाकिस्तान में आतंकवादी हमलों में कमी आई, और ही अफ़ग़ान तालिबान ने अपने यहां डेरा जमाकर बैठे पाकिस्तानी तालिबान और दूसरे आतंकवादियों के ख़िलाफ़ कोई कार्रवाई की. इसके उलट, पाकिस्तान के भीतर आतंकवादी हमलों का सिलसिला और तेज़ हो गया है. पाकिस्तानी की सैन्य कार्रवाइयों की वजह से सिर्फ़ एक बदलाव आया है और वो ये है कि पाकिस्तान में बड़े आतंकवादी हमलों की ज़िम्मेदारी TTP द्वारा लेने के बजाय, इसके दूसरे मुखौटा संगठन, जैसे कि तहरीक--जिहाद पाकिस्तान लेने लगे हैं. कई बार, जब पाकिस्तान ने अपने ग़ुस्से का इज़हार किया है, तो अफ़ग़ान तालिबान ने आतंकवादियों पर कार्रवाई करने के वादे तो कर लिए, मगर, TTP पर कोई शिकंजा नहीं कसा.

जब पाकिस्तान ने पहली बार 2022 में अफ़ग़ानिस्तान के भीतर हमला करने का फ़ैसला किया था, तो उसकी फ़ौज ने आधिकारिक रूप से इस बात को स्वीकार तक नहीं किया था, जबकि अफ़ग़ान तालिबान ने सार्वजनिक रूप से अपनी हवाई सीमा के उल्लंघन पर प्रतिरोध जताया था. अफ़ग़ान तालिबान के प्रवक्ता ज़बीउल्लाह मुजाहिद ने तो पाकिस्तान को अफ़ग़ानिस्तान के सब्र का इम्तिहान लेने की चेतावनी भी दी थी. लेकिन, हाल में किए गए हवाई हमलों की बात पाकिस्तान ने क़बूल की है. पाकिस्तान के विदेश मंत्रालय ने इस कार्रवाई को जायज़ ठहराते हुए, ये कहते हुए अफ़ग़ान तालिबान के साथ बातचीत की गुंजाइश भी छोड़ी थी कि, पाकिस्तानअफ़ग़ानिस्तान के साथ रिश्तों को चोट पहुंचाने की कोशिश कर रहे आतंकवादी संगठनों और दहशतगर्द हमलों से निपटने के लिए मिल जुलकर समाधानकरना चाहता है. हालांकि पाकिस्तानी फ़ौज ने ज़्यादा सख़्त रुख़ दिखाया था. फ़ौज ने अफ़ग़ान तालिबान पर आतंकवादियों से हाथ मिलाने का इल्ज़ाम लगाते हुए ये संकेत दिए थे कि भविष्य में भी वो अफ़ग़ान सीमा के भीतर सैन्य कार्रवाई जैसी सख़्त रणनीति पर चलती रहेगी. इन हमलों के ख़िलाफ़ अफ़ग़ान तालिबान ने सख़्त ग़ुस्से का इज़हार किया था. ज़ुबानी हमलों के अलावा, अफ़ग़ान तालिबान ने सरहद पर पाकिस्तानी फ़ौज की चौकियों पर बमबारी और गोलीबारी भी की थी.

निर्भरता की ज़ंजीरें टूट गई हैं

साफ़ है कि पाकिस्तान और अफ़ग़ान तालिबान के रिश्ते बुरी तरह बिगड़ चुके हैं. दोनों ही पक्षों को अब एक दूसरे पर भरोसा नहीं रहा है, और अब दोनों ही एक दूसरे ख़िलाफ़ तल्ख़ी और विरोध का खुलकर इज़हार कर रह हैं. इससे दोनों ही पक्षों द्वारा एक दूसरे पर हमलों का सिलसिला और तेज़ होगा. वैसे तो अफ़ग़ानिस्तान और पाकिस्तान के बीच खुलकर युद्ध होने की आशंका बहुत कम है. लेकिन, आने वाले लंबे वक़्त तक पाकिस्तान- अफ़ग़ानिस्तान के एक दूसरे से लगे हुए इलाक़ों में अराजकता बनी रहने वाली है. अफ़ग़ान तालिबान, तहरीक़--तालिबान को समर्थन देना बंद नहीं करने जा रहे. हां, ये ज़रूर होगा कि रणनीतिक ज़रूरतों के लिए वो अपने अभियान में कुछ तब्दीली लाएंगे. TTP के ज़रिए अफ़ग़ान तालिबान को पंजाब के दबदबे वाली पाकिस्तानी फ़ौज के ख़िलाफ़ बढ़त देता है. पश्तून, पंजाबियों को धोखेबाज़ और साज़िश रचने वाला मानते हैं. बिरादराना रिश्ते, जातीयता और विचारधारा भी पाकिस्तानी और अफ़ग़ान तालिबान को एक सूत्र में बांधते हैं; अफ़ग़ान और पाकिस्तानी तालिबान के लड़ाके पिछले तीन दशकों से एक दूसरे से कंधे से कंधा लगाकर दुश्मन के ख़िलाफ़ जिहाद करते आए हैं. ये बात भी उनको नज़दीक लाती है. इसमें अगर हम अफ़ग़ानिस्तान द्वारा पाकिस्तान के पश्तून इलाक़ों पर दावेदारी जताने और डूरंड लाइन को वास्तविक सीमा मानने से इनकार करने को भी जोड़ दें, तो पाकिस्तान के लिए स्थिति और भी विस्फोटक हो जाती है.

अफ़ग़ान तालिबान की रणनीति एकदम साफ़ है: वो कभी गर्म तो कभी नर्म रवैया दिखाते रहेंगे; वो पाकिस्तान की नाराज़गी दूर करने के लिए रणनीतिक तौर पर दो क़दम पीछे भी हटते रहेंगे. लेकिन वो पाकिस्तान की कोई बड़ी मांग पूरी करने नहीं जा रहे हैं; और वो पाकिस्तान को चोट पहुंचाना भी जारी रखेंगे.

सियासी तौर पर भी अफ़ग़ान तालिबान के लिए ये दिखाना ज़रूरी है कि वो पाकिस्तान के मोहरे नहीं हैं; उनका अपना अलग अस्तित्व है. उन्हें ये बात केवल अपनी जनता की नज़र में साबित करनी है, जो पाकिस्तानियों से नफ़रत करती है, बल्कि दूसरे संभावित साझीदारों (मिसाल के तौर पर भारत) के सामने भी साबित करनी है, जिनके दिल में पाकिस्तान के लिए ज़रा भी हमदर्दी नहीं बची है. या फिर उन्हें उन देशों के सामने भी अपनी हस्ती मनवानी है, जो पाकिस्तान के ज़रिए अफ़ग़ान तालिबान से संबंध रखना चाहते हैं. अफ़ग़ान तालिबान की रणनीति एकदम साफ़ है: वो कभी गर्म तो कभी नर्म रवैया दिखाते रहेंगे; वो पाकिस्तान की नाराज़गी दूर करने के लिए रणनीतिक तौर पर दो क़दम पीछे भी हटते रहेंगे. लेकिन वो पाकिस्तान की कोई बड़ी मांग पूरी करने नहीं जा रहे हैं; और वो पाकिस्तान को चोट पहुंचाना भी जारी रखेंगे. उसके इल्ज़ामों को ख़ारिज करते रहेंगे. अफ़ग़ान तालिबान बार बार यही कहते रहे हैं कि TTP अपने सारे आतंकवादी हमले, पाकिस्तानी सरहद के भीतर से ही अंजाम देते हैं और संयुक्त राष्ट्र की निगरानी टीम की हालिया रिपोर्ट भी इस बात को कुछ हद तक सही बताती है. इसके साथ साथ अफ़ग़ान तालिबान, पाकिस्तान को उसी तरह वादों का लॉलीपॉप भी देते रहेंगे, जैसा ख़ुद पाकिस्तान, अमेरिका के साथ करता रहा था. इस बीच अफ़ग़ान तालिबान बड़ी सक्रियता से उन विकल्पों को तलाश करके अंजाम दे रहे हैं, जिनसे वो पाकिस्तान पर अपनी निर्भरता की ज़ंजीरों को तोड़ सकें. पहले ही ऐसी ख़बरें रही हैं कि तालिबान, ईरान के चाबहार बंदरगाह में निवेश कर रहा है, ताकि वो पाकिस्तान से अपना कारोबार ईरान की तरफ़ ले जा सके. इसके अलावा, उज़्बेकिस्तान से एक रेलवे लाइन भी विकसित की जा रही है, जिससे अफ़ग़ानिस्तान मध्य एशिया और उससे आगे के इलाक़ों से जुड़ सकेगा.

पाकिस्तान की दुविधा

साफ़ है कि पाकिस्तान के सब्र का बांध टूट चुका है. अफ़ग़ानिस्तान पर तालिबान के दोबारा क़ब्ज़ा करने के कुछ हफ़्तों के भीतर, पाकिस्तान में उसकी जीत को लेकर जश्न का जो माहौल था, वो अब ख़त्म हो चुका है. अफ़ग़ान तालिबान द्वारा पाकिस्तान की पश्चिमी सीमा को सुरक्षित बनाना तो दूर, इसके उलट उस मोर्चे पर लगातार संघर्ष की स्थिति बनी हुई है. पिछले लगभग ढाई वर्षों के दौरान पाकिस्तान ने हालात पर क़ाबू करने के लिए संवाद और कूटनीति से लेकर धार्मिक प्रभाव और सैन्य अभियान तक, सारे नुस्ख़े आज़मा लिए हैं. उसके सारे दांव नाकाम साबित हुए हैं. अफ़ग़ानिस्तान पर हालिया हवाई हमले ये संकेत देते हैं कि अब पाकिस्तान ने तालिबान को सबक़ सिखाने के लिए सैन्य ताक़त का इस्तेमाल ज़्यादा करने का फ़ैसला कर लिया है (भारत के विश्लेषकों की नज़र में ये ऐसी बात है, जो पहले भी सुनी जा चुकी है). अब पाकिस्तानी फ़ौज ने सैन्य अभियान छेड़ने- हवाई और ज़मीनी हमले- का फ़ैसला किया है, ताकि वो अफ़ग़ान तालिबान से अपनी बात मनवा सके. आने वाले समय में हालात ऐसे ही रहने वाले हैं. कम से कम पाकिस्तानी सेना के मौजूदा नेतृत्व के दौर तक तो यही रहेगा. क्योंकि, पाकिस्तान के मौजूदा सेनाध्यक्ष ने तहरीक--तालिबान पाकिस्तान (TTP) के साथ किसी भी तरह की बातचीत की संभावना को ख़ारिज कर दिया है. यही नहीं, पाकिस्तान ने पूर्व कार्यवाहक प्रधानमंत्री अनवाल उल हक़ काकड़ जैसे अपने वफ़ादारों से तालिबान कोआतंकवाद को पालने पोसने वालाकहलाना भी शुरू कर दिया है.

अगर अफ़ग़ानिस्तान के भीतर दहशतगर्दों के ख़िलाफ़ पाकिस्तान के हवाई हमलों को लेकर मीडिया और अवाम की शुरुआती प्रतिक्रिया को देखें, तो पाकिस्तान के आम लोग, इस्लामिक कट्टरपंथियों पर क़ाबू पाने के लिए इस नई आक्रामक रणनीति को बहुत पसंद कर रहे हैं.

अगर अफ़ग़ानिस्तान के भीतर दहशतगर्दों के ख़िलाफ़ पाकिस्तान के हवाई हमलों को लेकर मीडिया और अवाम की शुरुआती प्रतिक्रिया को देखें, तो पाकिस्तान के आम लोग, इस्लामिक कट्टरपंथियों पर क़ाबू पाने के लिए इस नई आक्रामक रणनीति को बहुत पसंद कर रहे हैं. सियासी तौर पर भी ये बात पाकिस्तानी फ़ौज के हक़ में जाती है, क्योंकि इस वजह से बेहद नापसंद की जाने वाली फ़ौज के पीछे पाकिस्तान के अवाम भले ही अस्थायी तौर पर, लेकिन अभी तो लामबंद हो गए हैं. इस मामले में पाकिस्तान की हुकूमत भी फ़ौज के बहाने से अपनी इमेज चमकाने में जुट गई है. हुकूमत की कोशिश है कि वो पंजाब की जज़्बाती जनता के बीच अपनी विश्वसनीयता कुछ बढ़ा सकेगी. अब पाकिस्तान की सरकार, TTP को पूरी दुनिया के लिए ख़तरा साबित करने के लिए विश्व स्तर पर भी लॉबीइंग कर रही है. पाकिस्तान के लिए इसका मक़सद TTP के ख़िलाफ़ अपनी लड़ाई के लिए अंतरराष्ट्रीय समुदाय का समर्थन इस उम्मीद में जुटाना है कि इससे उसको कुछ वित्तीय लाभ भी मिल सकेगा.

अस्पष्ट रणनीति

लेकिन, जिसे नई रणनीति बता कर ज़ोर-शोर से प्रचारित किया जा रहा है, क्या पाकिस्तान ने उसके दूरगामी परिणामों के बारे में ख़ूब सोच-विचार कर लिया है? पाकिस्तान के नाज़ुक माली हालात और बेहद विभाजित और अस्थिर सियासी माहौल को देखते हुए, ये सवाल बेहद अहम हो जाता है. क्योंकि, जहां अमेरिका के पास ये विकल्प था कि वो अपना नुक़सान सीमित करने के लिए अफ़ग़ानिस्तान छोड़कर भाग जाए, वहीं अफ़ग़ानिस्तान के ठीक बगल में बसे होने की वजह से पाकिस्तान के पास ये विकल्प क़तई नहीं है. और, भले ही अमेरिका की तुलना में पाकिस्तान के पास अफग़ानिस्तान में ज़मीनी ख़ुफ़िया जानकारी का बेहतर नेटवर्क हो और तालिबान के ऊपर कुछ दबाव हो, क्योंकि उनके परिवार पाकिस्तान में रहते हैं, और पाकिस्तानी फ़ौज, अफ़ग़ानिस्तान की तुलना में ताक़तवर हो. लेकिन, ये लड़ाई बहुत ही लंबी होने वाली है और ये पाकिस्तान की बची ख़ुची ताक़त भी सोख लेने की ताक़त रखती है. पाकिस्तान पहले ही पूर्वी मोर्चे पर फंसा हुआ है, क्योंकि वो भारत के साथ दुश्मनी को हर क़ीमत पर बनाए रखने पर आमादा है. ऐसे में उसके सामने खड़ी चुनौतियां और भी जटिल हो जाती हैं.

अमेरिका, अफ़ग़ानिस्तान में भारी आर्थिक, सैन्य और कूटनीतिक क्षमताएं झोंककर तालिबान से लड़ सकता था. अमेरिका ने आतंकवाद के कई निशानों का ख़ात्मा भी किया. फिर भी, 20 साल तक चली अंतहीन लड़ाई के बाद, अमेरिका को शर्मनाक तरीक़े से अफ़ग़ानिस्तान छोड़कर भागना पड़ा. पाकिस्तान के पास तो अमेरिका के पासंग के बराबर भी संसाधन और क़ुव्वत नहीं है. फिर चाहे वो सैन्य ताक़त हो या फिर आर्थिक और तकनीकी क्षमता हो. अगर वो ये सोचते हैं कि वो अमेरिका की रणनीति अपनाते हुए, अफ़ग़ान तालिबान को अपनी शर्तें मानने के लिए मजबूर कर सकते हैं, तो हो सकता है कि वो अपने ही गुरूर का शिकार बनने वाले हों. हो सकता है कि अगर पाकिस्तानी सेनाके जनरलों ने इन बातों पर गंभीरता से विचार कर लिया होता, तो फिर वो अफ़ग़ानिस्तान के भीतर तहरीक--तालिबान पाकिस्तान (TTP) के संदिग्ध ठिकानों पर हवाई हमले करने से ग़ुरेज़ करते. लेकिन, पाकिस्तानी फ़ौज का रणनीतिक तौर पर चालाक और दूरगामी सामरिक रणनीति के मामले में मूर्ख रहने का बेहद अनूठा रिकॉर्ड रहा है. पाकिस्तानी फौज की आदत है कि वो ख़ुद को अपने ही बुने हुए जाल में फंसा ले.

जब तक तालिबान, तालिबान के तौर पर बर्ताव करना बंद नहीं करते, तब तक पाकिस्तान को एक साथ दो मोर्चों पर संघर्ष करना होगा: अपनी सीमा के भीतर भी और अफ़ग़ानिस्तान में भी. ऐसी लड़ाई में आम तौर पर दो ही संभावित नतीजे निकलते हैं. एक थका देने वाली जीत, या फिर तबाह कर देने वाली शिकस्त. पाकिस्तान इनमें से किसी का बोझ उठाने की हालत में नहीं है.

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