Author : Samir Saran

Published on Sep 13, 2022 Updated 24 Days ago

डिजिटल इंडिया उस बदलाव का शुरुआती बिंदु बनने जा रहा है जो ये दिखाएगा कि बहुजातीय, विविधतापूर्ण और खुले समाज किस तरह से ऑनलाइन माध्यमों और असल संसार में एक साथ वजूद बनाए रख सकते हैं.

Accountable Tech: क्या जवाबदेही से जुड़े भारत के तौर-तरीक़ों को अमेरिका अपनाएगा?

लोकतंत्र और उदारवादी व्यवस्था के लिए 2024 एक निर्णायक साल साबित होने वाला है. उस वर्ष भारत और अमेरिका के 1.8 अरब लोग अपनी-अपनी सरकारों का चुनाव करने वाले हैं. इन दोनों देशों में दुनिया की तक़रीबन एक चौथाई आबादी की रिहाइश है. आज दुनिया में प्लेटफ़ॉर्मों की मध्यस्थता और मध्यवर्ती भूमिकाएं बढ़ती जा रही हैं. व्यक्तिगत पसंदों, मतदाताओं की प्राथमिकताओं और ज़ाहिर तौर पर नतीजों को आकार देने में इन किरदारों की अहम भूमिका रहने वाली है. दुनिया की इतनी बड़ी आबादी द्वारा एक ही वर्ष में इस तरह की क़वायद को अंजाम देने का ये पहला वाक़या होगा. लिहाज़ा इन प्लेटफ़ॉर्मों को सिर्फ़ अच्छे मध्यवर्तियों की बजाये किरदारों के तौर पर पहचाने जाने की ज़रूरत है.     

लोकतंत्र और उदारवादी व्यवस्था के लिए 2024 एक निर्णायक साल साबित होने वाला है. उस वर्ष भारत और अमेरिका के 1.8 अरब लोग अपनी-अपनी सरकारों का चुनाव करने वाले हैं.

प्रधानमंत्री मोदी की सरकार ने, ख़ासतौर से अपने दूसरे कार्यकाल में, डिजिटल नियमनों को खुलेपन, भरोसे और सुरक्षा और जवाबदेही की स्थापना के मक़सद से आगे बढ़ाया है. इसी साल जून में केंद्रीय इलेक्ट्रॉनिक्स और टेक्नोलॉजी राज्यमंत्री राजीव चंद्रशेखर ने सूचना प्रौद्योगिकी नियमावली 2021 में संशोधनों के मसौदा पत्र पर आम जनता से सुझाव आमंत्रित किए. एक ‘मुक्त, सुरक्षित और भरोसेमंद, जवाबदेह इंटरनेट’ इन संशोधनों के केंद्र में है. 

भारत जवाबदेह टेक की आकांक्षा रखता है. उदार और मुक्त स्वभाव वाले सभी समाजों का भी यही उद्देश्य होना चाहिए. सार्वजनिक दायरों को सशक्त बनाने, नवाचार को बढ़ावा देने, समावेशी भागीदारी को आगे बढ़ाने और ख़ुद लोकतंत्र के बचाव के लिए ये क़वायद अनिवार्य है. अगर हम इस वक़्त एकजुटता के साथ क़दम उठाने में नाकाम रहे तो हमें 2024 के नतीजों में विकृति देखने को तैयार रहना होगा. भगोड़े प्लेटफ़ॉर्म और भटकता पूंजीवाद हमारे चुनावों की गरिमा के लिए घातक हैं. सियासी नतीजों को जनता द्वारा मंज़ूर किए जाने की क़वायद के लिए भी ये बड़ा ख़तरा हैं. विशाल टेक कंपनियां जिन भौगोलिक क्षेत्रों में अपनी सेवाएं दे रही हैं वहां उन्हें जवाबदेह बनाए जाना ज़रूरी है. भारत ने साफ़ तौर से इस ज़रूरत को महसूस करते हुए इस दिशा में क़दम आगे बढ़ाए हैं. ऐसा लगता है कि इन प्रयासों की अहमियत समझने वाला ताज़ा मुल्क संयुक्त राज्य अमेरिका है. 

अगर हम इस वक़्त एकजुटता के साथ क़दम उठाने में नाकाम रहे तो हमें 2024 के नतीजों में विकृति देखने को तैयार रहना होगा. भगोड़े प्लेटफ़ॉर्म और भटकता पूंजीवाद हमारे चुनावों की गरिमा के लिए घातक हैं.

टेक प्लेटफ़ॉर्मों की नुक़सानदेह क़वायदों और ज़्यादा जवाबदेही की ज़रूरत पर विशेषज्ञों और उपयोगकर्ताओं के साथ‘ व्हाइट हाउस ने 8 सितंबर 2022 को एक लिसनिंग सेशन का आयोजन किया. टेक प्लेटफ़़ॉर्मों की जवाबदेही से जुड़े इस सत्र में ‘छह प्रमुख क्षेत्रों- प्रतिस्पर्धा, निजता, युवाओं के मानसिक स्वास्थ्य, झूठी सूचनाओं और दुष्प्रचार, यौन उत्पीड़न समेत अवैध और बदसलूकी भरे बर्ताव और एल्गोरिदम से जुड़े भेदभाव और पारदर्शिता के अभाव- से जुड़ी चिंताओं की पहचान की गई.‘ उम्मीद है कि इस सत्र से और अधिक समसामयिकता वाले नियामक और जवाबदेह ढांचे की ओर आगे बढ़ना मुमकिन हो सकेगा, जो भारत में जारी प्रक्रिया के साथ तालमेल बिठाने वाली होगी.

बहुलतावादी व मुक्त समाज

ये मध्यवर्ता किरदार निजी तौर पर सेंसरशिप और ग़ैर-जवाबदेह संवादों की मेज़बानी करते रहे हैं. साथ ही इनके ज़रिए ध्रुवीकरण वाले नज़रियों को भी आगे बढ़ाया जाता रहा है. ये सारी हरकतें लोकतंत्रों के लिए स्पष्ट तौर पर ख़तरा पेश करती हैं. भारत और अमेरिका सबसे ज़्यादा बहुलतावादी, मुक्त और शोरगुल वाले डिजिटल समाज हैं, लिहाज़ा ये दोनों देश ख़तरे की ज़द में हैं. निश्चित रूप से डिजिटल इंडिया उस बदलाव का शुरुआती बिंदु होने जा रहा है जो ये दिखाएगा कि बहुजातीय, विविधतापूर्ण और खुले समाज किस तरह से ऑनलाइन माध्यमों और असल संसार में साथ-साथ रह सकते हैं. असल में भारत सरकार द्वारा समझदारी भरे नियमनों को सामने रखने की क़वायद कई और भौगोलिक क्षेत्रों और समुदायों को फ़ायदा पहुंचा सकती है. अगर भारत अपने जटिल मानवीय वातावरण में कारगर रहने वाला मॉडल तैयार कर लेता है तो इसके तमाम स्वरूप दुनिया भर में लागू हो सकते हैं. 

भले ही दुनिया भर में खुलेपन, विश्वास, सुरक्षा और जवाबदेही को बढ़ावा देने की व्यापक और साझा हसरत हो सकती है, लेकिन यहां ये बात भी अच्छे से समझना ज़रूरी है कि प्लेटफ़ॉर्मों के प्रबंधन का कोई एकाकी रुख़ नहीं है. इस महत्वाकांक्षा के चलते सामने आने वाले नियमन लाज़िमी तौर पर अलग-अलग देशों और संदर्भों के हिसाब से होंगे. लिहाज़ा इन सार्वभौम सिद्धांतों के बचाव के लिए भारत, अमेरिका और दूसरे डिजिटल केंद्रों को एक-दूसरे के साथ तालमेल और गठजोड़ क़ायम करने होंगे, भले ही वो ख़ुद के या क्षेत्र-आधारित नियमन ही क्यों न तैयार कर रहे हों. 

भले ही दुनिया भर में खुलेपन, विश्वास, सुरक्षा और जवाबदेही को बढ़ावा देने की व्यापक और साझा हसरत हो सकती है, लेकिन यहां ये बात भी अच्छे से समझना ज़रूरी है कि प्लेटफ़ॉर्मों के प्रबंधन का कोई एकाकी रुख़ नहीं है.

मिसाल के तौर पर अमेरिका का नीतिगत ढांचा अमेरिकी क़ानून के तहत काम करने वाले और उनकी संवैधानिक भावनाओं के अनुरूप चलने वाले प्लेटफ़ॉर्मों और प्रौद्योगिकीय कंपनियों के प्रबंधन पर ज़ोर देगा. दूसरी ओर भारत के ऊपर ये सुनिश्चित करने की कठिन ज़िम्मेदारी है कि ये तमाम कॉरपोरेशंस भारतीय क़ानून और भारत के संवैधानिक मूल्यों का पालन करें.  विश्व स्तर पर सोशल मीडिया के उपयोगकर्ताओं के हिसाब से भारत और अमेरिका मुक्त संसार की अगुवाई करते हैं. जनवरी 2022 के आंकड़ों के मुताबिक भारत में 32.97 करोड़ फ़ेसबुक, 2.36 करोड़ ट्विटर और 48.75 करोड़ व्हाट्सऐप (जून 2021) यूज़र्स हैं. दूसरी ओर अमेरिका में 17.7 करोड़ फ़ेसबुक, 7.69 करोड़ ट्विटर और 7.97 करोड़ व्हाट्सऐप (जून 2021) यूज़र्स हैं

ज़िम्मेदारी और जवाबदेही

ऑनलाइन संसार अब समाज का ऐसा हिस्सा बन गया है जिसे नगण्य मानकर नहीं चला जा सकता. ऑनलाइन माध्यमों का प्रयोग करने वाले ज़्यादातर लोग इसे अधिकार या प्रतिनिधित्व बढ़ाने वाले कारक के तौर पर देखते हैं. वो अपने नज़रियों को आगे बढ़ाने और दूसरों की सोच को प्रभावित करने के मक़सद से इसका इस्तेमाल करने को बेताब हैं. इनमें से कई तो अपने स्थानीय दायरों में प्रभावकारी शख़्सियत बने हुए हैं. ऑनलाइन माध्यमों पर संचालित होने वाली क़वायदों का आम आबादी पर असर पड़ता है. मुख्य धारा की मीडिया इनका अध्ययन करती है, सोशल मीडिया के ट्रेंड्स अगले दिन की सुर्ख़ियां तय करते हैं, और टेलीविज़न पर प्राइम टाइम की चर्चाओं में भी इसी हिसाब से मुद्दे तय किए जाते हैं. 

मध्यवर्तियों के दायित्व के तहत इन प्लेटफ़ॉर्मों को सामाजिक उम्मीदों से अलग करने की क़वायद होती रही है. बहरहाल अब इस विचार में बदलाव लाकर मध्यवर्तियों की जवाबदेही को सामने लाने का वक़्त आ गया है.

इन प्लेटफ़ॉर्मों पर सामग्रियों के प्रबंधन में ढीला-ढाला रुख़ अपनाना अब आगे व्यावहारिक नहीं हो सकता. हाल की घटनाओं ने ये दर्शाया है कि ऐसे बर्तावों के घातक नतीजे सामने आ सकते हैं. मध्यवर्तियों के दायित्व के तहत इन प्लेटफ़ॉर्मों को सामाजिक उम्मीदों से अलग करने की क़वायद होती रही है. बहरहाल अब इस विचार में बदलाव लाकर मध्यवर्तियों की जवाबदेही को सामने लाने का वक़्त आ गया है. अब इसे एक सकारात्मक और सक्रिय जवाबदेही एजेंडे के तौर पर ढल जाना चाहिए, जहां प्लेटफ़ॉर्म ज़िम्मेदार प्रशासन और उत्तरदायी नागरिकता का हिस्सा बन जाएं. 

अपेक्षित नियमन कारोबार के लिए भी अच्छा है. नीतिगत मध्यस्थता कॉरपोरेट नियोजन को नुक़सान पहुंचाती है, लिहाज़ा अपने बोर्ड रूम और नेतृत्व को जवाबदेह बनाने में प्लेटफ़ॉर्मों के भी हित छिपे हैं. उन्हें एलगोरिदम आधारित निर्णय-प्रक्रिया की आड़ में छिपना बंद करना चाहिए क्योंकि इससे सबको नुक़सान पहुंचने का ख़तरा है. इनसे भविष्य में इन प्लेटफ़ॉर्मों की ख़ुद की विकास संभावनाओं को चोट पहुंचने की आशंका है. लिहाज़ा इन्हें अपने कोड और संरचनाओं को संदर्भों के हिसाब से तय करना चाहिए. 2024- वो साल है जब टेक्नोलॉजी, स्वतंत्र संसार की क़िस्मत तय कर सकती है, लिहाज़ा उस ओर आगे बढ़ती दुनिया की महत्वाकांक्षाओं में इसे ज़रूर शुमार किया जाना चाहिए.

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