Published on Jan 06, 2024 Updated 0 Hours ago

समावेशी धन (IW) का दृष्टिकोण पैसे और विकास का एक अधिक व्यापक विश्लेषण मुहैया कराता है जो कि भारत के विविध और जटिल सामाजिक-आर्थिक परिदृश्य के लिए आवश्यक है.

भारत के राज्यों के समावेशी धन के मूल्यांकन के लिए दलील

समावेशी धन या इन्क्लूसिव वेल्थ (IW) सामूहिक कल्याण के सामाजिक मूल्य को दर्शाता है. इसने पारंपरिक तरीकों जैसे कि सकल घरेलू उत्पाद (GDP) की सीमाओं को पार करते हुए समृद्धि के एक व्यापक माप के रूप में लोकप्रियता हासिल की है. इसका प्रस्ताव सबसे पहले संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (UNEP) और संयुक्त राष्ट्र विश्वविद्यालय- अंतर्राष्ट्रीय मानव आयाम कार्यक्रम (UNU-IHDP) के द्वारा रखा गया था. IW रूप-रेखा में किसी देश की प्राकृतिक, मानवीय, सामाजिक और भौतिक पूंजी का जोड़ शामिल किया गया है. भारत के विविध सामाजिक-आर्थिक ताने-बाने और एक सर्वव्यापी धन मूल्यांकन के मॉडल की आवश्यकता को देखते हुए इस विचार का भारत में अतिरिक्त महत्व है. 

भारत के विविध सामाजिक-आर्थिक ताने-बाने और एक सर्वव्यापी धन मूल्यांकन के मॉडल की आवश्यकता को देखते हुए इस विचार का भारत में अतिरिक्त महत्व है. 

एक समावेशी दृष्टिकोण की तरफ भारत का बदलाव

सकल घरेलू उत्पाद (GDP) दशकों से आर्थिक सफलता का छोटा तरीका रहा है लेकिन अल्पकालीन उत्पादन पर इसका ध्यान दिखाने से ज़्यादा छिपाता है. ये विकास की पर्यावरण से जुड़ी कीमत, प्राकृतिक संसाधनों के सामाजिक मूल्य और सामाजिक-आर्थिक असमानता की बढ़ती खाई को नज़रअंदाज़ करता है. भारत में तेज़ GDP विकास ने करोड़ों लोगों को ग़रीबी से बाहर निकाला है लेकिन विकास के साथ पर्यावरण को नुकसान और संसाधनों पर बोझ लंबे समय की समृद्धि के लिए बड़ा ख़तरा है. विश्व बैंक के 2014 के एक अध्ययन में अनुमान लगाया गया है कि पर्यावरण को नुक़सान की वजह से हर साल भारत को अपनी GDP के लगभग 5.7 प्रतिशत की हानि होती है. इससे ये संकेत मिलता है कि ऐसी व्यवस्था की सख़्त ज़रूरत है जिसमें विकास के पर्यावरणीय और सामाजिक पहलुओं का ध्यान रखा जाता है. 

GDP की कमियों को स्वीकार करते हुए विकास के एक व्यापक मापदंड के रूप में सस्टेनेबल डेवलपमेंट गोल या सतत विकास लक्ष्य (SDG) इंडेक्स का उदय हुआ. हालांकि ये प्रगति का पैमाना बना हुआ है कि लंबे समय के लिए संपत्तियों को जमा करने का. 2015 में 2030 एजेंडा को अपनाने के बाद भारत का SDG इंडेक्स स्कोर 2016 के 58.6 से बढ़कर 2022 में 63.45 हो गया है. लेकिन प्रगति की दर कुछ हद तक अनियमित रही है और ये 2016-17 में 2.5 प्रतिशत बढ़ोतरी और 2020-21 में 0.3 प्रतिशत बढ़ोतरी के बीच रही है. वास्तव में समग्र प्रगति के बावजूद भारत अपने SDG टारगेट में से सिर्फ 34 प्रतिशत को हासिल करने की राह पर है जबकि 43 प्रतिशत टारगेट के मामले में उसने सीमित सुधार ही दिखाया है और 23 प्रतिशत टारगेट के मामले में तो स्थिति और बिगड़ गई है. इसलिए असली तलाश एक ऐसे गतिशील (डायनेमिक) मॉडल की है जो सिर्फ साल-दर-साल सामानों और सेवाओं के प्रवाह को नहीं बल्कि सभी रूपों में देश में धन संग्रह को दर्शाता हो

आंकड़ा 1: भारत के SDG स्कोर में प्रगति (100 में से)

स्रोत: लेखक का अपना, SDSN SDG डैशबोर्ड से डेटा

यहां समावेशी धन पूंजीगत संपत्ति के स्टॉक पर ज़ोर के साथ एक भरोसेमंद विकल्प पेश करता है. ये आर्थिक गतिविधि और विकास से जुड़ी प्रगति के साथ-साथ स्थिरता (सस्टेनेबिलिटी) और समावेशी कल्याण को अहमियत देने में एक महत्वपूर्ण बदलाव का प्रतीक है. इस समग्र माप में प्राकृतिक पूंजी जैसे कि वन, खनिज और इकोसिस्टम; मानवीय पूंजी जैसे कि शिक्षा एवं स्वास्थ्य और उत्पादित पूंजी जैसे कि इंफ्रास्ट्रक्चर एवं मशीनरी शामिल हैं. UNEP की 2018 की इन्क्लूज़िव वेल्थ रिपोर्ट (IWR) IW को सतत नीतिगत निर्माण के लिए एक महत्वपूर्ण साधन के रूप में रखती है, एक नज़रिया पेश करती है जिसके ज़रिए SDG हासिल करने के माध्यम से एक पीढ़ी (इंट्रार्जेनरेशनल) और कई पीढ़ियों (इंटर्जेनरेशनल)- दोनों के कल्याण की दिशा में किसी देश की क्षमता को देखा जा सकता है

भारत में विकास का विमर्श काफी हद तक GDP पर केंद्रित रहा है जिसमें अक्सर सतत और समावेशी विकास की चिंताओं को नज़रअंदाज़ कर दिया जाता है. IWR 2023 एक जटिल तस्वीर उजागर करती है: जहां भारत की भौतिक पूंजी में लगातार बढ़ोतरी हुई है और मानवीय पूंजी का भंडार 2000 और 2019 के बीच में अपेक्षाकृत स्थिर रहा है, वहीं प्राकृतिक पूंजी में गिरावट आई है. पर्यावरण के नुकसान के शुद्ध प्रभाव के रूप में 1,222 अमेरिकी डॉलर प्रति व्यक्ति की लागत ने इस अवधि में SDG प्रगति के तौर पर 1,765 अमेरिकी डॉलर प्रति व्यक्ति के कल्याण मूल्यांकन को काफी हद तक कम कर दिया है. इस तरह के रुझानों ने भारत की तरक्की और विकास की राह की स्थिरता के बारे में चिंता बढ़ा दी है और ये देश के आर्थिक नियोजन और नीतिगत संवाद में IW को जोड़ने की आवश्यकता पर प्रकाश डालता है

इस दिशा में एक सकारात्मक कदम के रूप में सांख्यिकी एवं कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय (MOSPI) ने प्राकृतिक पूंजी लेखांकन एवं पारिस्थितिकी तंत्र की सेवाओं के मूल्यांकन (नेचुरल कैपिटल अकाउंटिंग एंड वैल्यूएशन ऑफ इकोसिस्टम सर्विसेज़ या NCAVES) के तहत हरित धन के लेखांकन को समेकित रूप देने की शुरुआत की. ये पर्यावरणीय एवं आर्थिक लेखांकन पद्धति (सिस्टम ऑफ एनवायरमेंटल एंड इकोनॉमिक अकाउंटिंग या SEWA) की रूप-रेखा के साथ जुड़ा है. पहले GDP से SDG और अब समावेशी धन की तरफ छलांग व्यवस्था से कहीं अधिक है. ये एक ऐसे भविष्य की तरफ बदलाव है जहां धन पैदा करने वाली पूंजीगत संपत्तियों का लगातार जमा होना, केवल सतत विकास नहीं, राष्ट्रीय समृद्धि का आधार है

भारत के राज्यों में SDG प्रगति और समावेशी धन 

राज्यों के स्तर पर 2030 एजेंडा के तहत अलग-अलग लक्ष्यों को हासिल करने या उनका पीछा करने में भी अलग-अलग सफलता देखी गई है. भारत के अलग-अलग राज्यों में SDG की प्रगति की समीक्षा दिखाती है कि जहां उत्तरी और दक्षिणी राज्यों ने महत्वपूर्ण रूप से अच्छा प्रदर्शन किया है, वहीं पूर्व और पूर्वोत्तर के राज्य लगातार पिछड़ रहे हैं. इसके अलावा विभिन्न राज्यों में प्रगति की दर एक समान नहीं रही है. बहुत कम राज्यों ने SDG स्कोर में अच्छा सुधार दिखाया है जबकि कुछ राज्यों ने पिछले साल की तुलना में केवल मामूली बदलाव दिखाया है.  

आंकड़ा 2: SDG स्कोर और भारतीय राज्यों में प्रगति की दर (2019-2020)

स्रोत: लेखक का अपना, नीति आयोग के SDG डैशबोर्ड का डेटा

भारत के अलग-अलग राज्यों में भारी असमानता धन के मूल्यांकन को लेकर एक स्थानीय दृष्टिकोण की आवश्यकता पैदा करती है जो विकास प्रक्रियाओं की दीर्घकालिक स्थिरता के लिए SDG के साथ इस प्रगति के योगदान की निगरानी करने में मदद कर सकता है. भारत में राज्य स्तर पर निगरानी के लिए राज्य स्तर का समावेशी धन पैमाना नहीं है. अलग-अलग क्षेत्रों में भौतिक, प्राकृतिक और मानवीय पूंजी की विशिष्टताओं पर आधारित इस तरह के इंडेक्स को विकसित करने से असमानताओं को उजागर किया जा सकता है और फिर लक्ष्य बनाकर नीतिगत हस्तक्षेप को बढ़ावा दिया जा सकता है. 

भारत के अलग-अलग हिस्सों में IW में क्षेत्रीय विविधता राज्य स्तर पर IW मूल्यांकन के लिए एक सटीक भौगोलिक और सामयिक दृष्टिकोण को आवश्यक बनाती है.

स्वतंत्रता के बाद भारत का अर्ध-संघीय ढांचा इस तरह से विकसित हुआ है कि सहकारी और प्रतिस्पर्धी संघवाद की धारणा को शामिल किया जा सके. प्रतिस्पर्धी संघवाद में अलग-अलग राज्य आर्थिक कुशलता बढ़ाने और विकास से जुड़ी गतिविधियों को तेज़ करने के उद्देश्य से वित्त और निवेश को आकर्षित करने के लिए आपस में मुकाबला करते हैं. इस संदर्भ में IW मूल्यांकन एक महत्वपूर्ण साधन के रूप में काम कर सकता है. वो राज्यों को अपने संसाधनों का उपयोग करने में एक बेहतर समझ मुहैया करा सकता है जो समय के साथ उनके समग्र धन संचय में योगदान कर सकता है

नीति बनाने के लिए IW किसी राज्य के प्राकृतिक, मानवीय और उत्पादित पूंजी पर विचार करते हुए उसके धन के बारे में एक विस्तृत दृष्टिकोण प्रदान करता है. ये व्यापक पहलू संसाधनों के अधिक प्रभावी आवंटन और विकास नियोजन का मार्गदर्शन कर सकता है. इसके अलावा भारत के अलग-अलग हिस्सों में IW में क्षेत्रीय विविधता राज्य स्तर पर IW मूल्यांकन के लिए एक सटीक भौगोलिक और सामयिक दृष्टिकोण को आवश्यक बनाती है. भारत में विशिष्ट SDG लक्ष्य का राज्यवार विश्लेषण काफी असमानता का खुलासा करता है. उदाहरण के लिए, पंजाब, हरियाणा और केरल जैसे राज्यों में कम संख्या में लोग ग़रीबी रेखा के नीचे रहते हैं जबकि ओडिशा और बिहार जैसे राज्यों में ग़रीबी का स्तर अधिक है. ये असमानताएं हर राज्य की अनूठी चुनौतियों का समाधान करने और मज़बूतियों को समझने के लिए एक IW दृष्टिकोण की आवश्यकता पर ज़ोर देती हैं

IW दृष्टिकोण धन और विकास की एक अधिक बारीक और व्यापक समझ प्रदान करता है जो भारत के विविध और जटिल सामाजिक-आर्थिक परिदृश्य के लिए आवश्यक है. GDP से परे घटकों को शामिल करके IW सतत विकास के उद्देश्यों की तरफ यात्रा में भारत की मदद कर सकता है और इस तरह अलग-अलग राज्यों में अधिक न्यायसंगत और संतुलित विकास को बढ़ावा दे सकता है


सौम्य भौमिक ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन के सेंटर फॉर न्यू इकोनॉमिक डिप्लोमेसी में एसोसिएट फेलो हैं.

देबोस्मिता सरकार ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन के सेंटर फॉर न्यू इकोनॉमिक डिप्लोमेसी में सस्टेनेबल डेवलपमेंट एंड इन्क्लूज़िव ग्रोथ प्रोग्राम में जूनियर फेलो हैं.

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