पिछले महीने प्रधानमंत्री मोदी ने फ्रांस की दो दिनों की बेहद सफल यात्रा की. वो वहां फ्रांस के राष्ट्रीय बास्तील दिवस परेड के ख़ास मेहमान बनकर गए थे. ये एक दुर्लभ सम्मान है. क्योंकि फ्रांस, हर साल इस परेड में किसी विदेशी मेहमान को नहीं आमंत्रित करता है. पिछली बार बास्तील दिवस परेड में किसी विदेशी मेहमान को 2018 में बुलाया गया था, जब सिंगापुर के प्रधानमंत्री ली सिएन लूंग ख़ास मेहमान बने थे.
ये प्रधानमंत्री मोदी का पांचवां फ्रांस दौरा था. और, 2017 में सत्ता में आने के बाद से राष्ट्रपति मैक्रों इनमें से चार बार उनकी मेज़बानी कर चुके हैं. इससे पता चलता है कि दोनों देश इस आपसी साझेदारी को कितनी अहमियत देते हैं. इस यात्रा के दौरान मोदी और मैक्रों की दोस्ती खुलकर दिखी थी. लेकिन, ये दौरा जितना प्रतीकात्मक रूप से अहम था, उतने ही इससे ठोस नतीजे भी निकले.
दोनों देशों द्वारा मिलकर लड़ाकू विमान के इंजन का विकास करने की चर्चाएं भी चल रही हैं. भारत अपने ‘मेक इन इंडिया’ मिशन के तहत हथियारों के स्वदेश में ही उत्पादन को बढ़ावा देने में जुटा है. इस मामले में फ्रांस, भारत का सबसे भरोसेमंद और अहम साझीदार बनकर उभरा है.
भारत और फ्रांस के बीच इस बहुआयामी साझेदारी के तहत दोनों देश, रक्षा, जलवायु परिवर्तन, ऊर्जा परिवर्तन, अंतरिक्ष में सहयोग, ब्लू इकॉनमी, बहुपक्षीयवाद और यहां तक की आतंकवाद निरोधक प्रयासों में सहयोग करते रहे हैं. संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) में भारत की स्थायी सदस्यता का फ्रांस लगातार समर्थन करता रहा है. फ्रांस ने कश्मीर और आतंकवाद जैसे मसलों पर भी संयुक्त राष्ट्र (UN) और फाइनेंशियल एक्शन टास्क फ़ोर्स (FATF) जैसे अंतरराष्ट्रीय मंचों और संगठनों में भारत का लगातार समर्थन करता आया है. दोनों देशों के बीच ऊर्जा परिवर्तन के क्षेत्र में भी लगातार सहयोग बढ़ रहा है, और 2015 में फ्रांस और भारत ने मिलकर जिस इंटरनेशनल सोलर एलायंस की शुरुआत की थी, उसमें अब 100 से ज़्यादा सदस्य देश शामिल हो चुके हैं.
दोस्ती के केंद्र में सुरक्षा सहयोग
चूंकि, पारंपरिक रूप से भारत और फ्रांस की साझेदारी का सबसे मज़बूत स्तंभ रक्षा क्षेत्र रहा है, इसलिए प्रधानमंत्री मोदी के इस दौरे में अगर रक्षा सौदों की चर्चा सबसे ज़्यादा हुई, तो इसमें हैरानी की कोई बात नहीं है. रूस के बाद फ्रांस भारत को हथियारों की आपूर्ति करने वाला दूसरा सबसे बड़ा देश है. और, यूक्रेन के साथ युद्ध के चलते रूस के हथियारों का ज़ख़ीरा जितनी तेज़ी से ख़त्म हो रहा है, उसे देखते हुए भारत और फ्रांस के बीच इस क्षेत्र में सहयोग और बढ़ना तय है. भारतीय नौसेना के लिए फ्रांस से 26 रफ़ाल विमान ख़रीदने के सौदे पर बातचीत अंतिम दौर में है. इसके अलावा भारत, तीन स्कॉर्पीन पनडुब्बियां भी ख़रीदने जा रहा है. दोनों देशों द्वारा मिलकर लड़ाकू विमान के इंजन का विकास करने की चर्चाएं भी चल रही हैं. भारत अपने ‘मेक इन इंडिया’ मिशन के तहत हथियारों के स्वदेश में ही उत्पादन को बढ़ावा देने में जुटा है. इस मामले में फ्रांस, भारत का सबसे भरोसेमंद और अहम साझीदार बनकर उभरा है. दोनों देशों के बीच रक्षा सहयोग सिर्फ़ हथियारों के सौदे तक सीमित नहीं है. भारत और फ्रांस नियमित रूप से साझा सैन्य अभ्यास और संस्थागत स्तर पर भी सहयोग करते रहे हैं.
फ्रांस के लिए ये आकर्षक सौदे बहुत अच्छा कारोबार हैं. लेकिन, हिंद प्रशांत क्षेत्र में स्थिरता जैसे सुरक्षा के मामलों में भारत और फ्रांस का नज़रिया एक होना भी काफ़ी प्रासंगिक है. हिंद प्रशांत क्षेत्र से दुनिया का सबसे ज़्यादा कारोबार गुज़रता है और इस क्षेत्र में चीन की आक्रामक गतिविधियां चिंता का विषय बन गई हैं. ऐसे में भारत और फ्रांस का इस क्षेत्र में स्थित ताक़तें होना महत्वपूर्ण हो जाता है. हिंद प्रशांत क्षेत्र में फ्रांस के लगभग 15 लाख नागरिक रहते हैं और इसी वजह से फ्रांस यहां सबसे ज़्यादा सक्रिय यूरोपीय शक्ति है. 2022 की शुरुआत में जब फ्रांस, यूरोपीय संघ (EU) की परिषद का अध्यक्ष था, तब भी हिंद प्रशांत क्षेत्र उसकी प्राथमिकता वाला इलाक़ा था. भारत और फ्रांस के बीच सामरिक मसलों पर तालमेल की वजह से समान विचारधारा वाले देशों जैसे कि ऑस्ट्रेलिया और संयुक्त अरब अमीरात (UAE) के साथ त्रिपक्षीय समझौते करने में भी मदद मिली है. इसके अलावा, 2022 में दोनों देशों ने मिलकर, हिंद प्रशांत त्रिपक्षीय विकास सहयोग फंड की शुरुआत की थी, जिसका मक़सद इस क्षेत्र में इनोवेशन पर आधारित विकास की परियोजनाओं को बढ़ावा देना था.
अपने कारोबार में विविधता लाना और चीन से ‘जोखिम कम करने (de-risking)’ के साथ साथ, नियमों पर आधारित विश्व व्यवस्था और हिंद प्रशांत क्षेत्र की स्थिरता अब यूरोप की विदेश नीति निर्माण के अहम तत्व बन गए हैं.
पश्चिमी देशों द्वारा भारत को रिझाने की कोशिशें और भारत की उनके साथ साझेदारी की प्रमुख वजह चीन है. रूस और यूक्रेन के युद्ध ने यूरोपीय देशों को उनकी चीन पर बहुत अधिक आर्थिक निर्भरता के जोखिमों का एहसास कराया है. अपने कारोबार में विविधता लाना और चीन से ‘जोखिम कम करने (de-risking)’ के साथ साथ, नियमों पर आधारित विश्व व्यवस्था और हिंद प्रशांत क्षेत्र की स्थिरता अब यूरोप की विदेश नीति निर्माण के अहम तत्व बन गए हैं. भारत को एक ऐसे देश के तौर पर देखा जाता है, जो आर्थिक रूप से चीन से संतुलन स्थापित कर सकता है और हिंद प्रशांत क्षेत्र में सुरक्षा मुहैया करा सकता है. अमेरिका और चीन के बीच बढ़ती सामरिक प्रतिद्वंदिता भी भारत और फ्रांस जैसी मध्यम दर्जे की ताक़तों को आपस में सहयोग बढ़ाकर बहुपक्षीय विश्व व्यवस्था बनाने के लिए प्रयास करने की वजह बन रही है.
सामरिक स्वायत्तता बनाए रखने की कोशिश
दोनों देशों को एक सूत्र में बांधने की एक और वजह ये है कि भारत और फ्रांस दोनों ही अपनी विदेश नीतियों में ‘सामरिक स्वायत्तता’ का पालन करते हैं. भारत तो आज़ादी के बाद से ही शीत युद्ध के दौर में सामरिक स्वायत्तता की राह पर चलता आया है. वहीं, मैक्रों के नेतृत्व में फ्रांस ने भी यूरोप के स्तर पर इस विचार को पूरे जोश के साथ आगे बढ़ाया है.
पारंपरिक रूप से देखें, तो फ्रांस ने भारत को लेकर हमेशा स्वतंत्र नीति अपनाई है. 1998 में जब भारत ने एटमी धमाके करके ख़ुद को परमाणु शक्ति संपन्न देश घोषित किया था, तो फ्रांस पहला पश्चिमी देश था, जिसने अमेरिका द्वारा लगाए गए प्रतिबंधों के बावजूद भारत से बातचीत शुरू की थी. उसी साल भारत ने फ्रांस के साथ अपनी पहली सामरिक साझेदारी पर हस्ताक्षर किए थे. यानी भारत और फ्रांस के बीच ये ख़ास रिश्ते उस दौर से चले आ रहे हैं, जिस दौर में पश्चिम के बाक़ी देशों के साथ भारत के संबंध बहुत अच्छे नहीं थे. फ्रांस और भारत की दोस्ती का ये सिलसिला आज भी बरक़रार है. और, फ्रांस ने भारत की इस ज़रूरत को समझा है कि वो अपने विकल्पों का चुनाव स्वतंत्र रूप से करना चाहता है. इस समझदारी ने रूस यूक्रेन जैसे मसलों पर मतभेद के बावजूद आपसी टकराव की गुंजाइश ख़त्म कर दी है. प्रधानमंत्री मोदी के फ्रांस दौरे के बाद जारी साझा बयान में ज़ोर देकर कहा गया था कि दोनों देशों के संबंध ‘स्याह तूफ़ानों के बीच भी मज़बूत बने रहे हैं और अवसरों की ऊंची लहरों के दौरान भी साहसिक और महत्वाकांक्षी साबित हुए हैं.’
हालांकि, अभी भी फांस के साथ भारत की साझेदारी पर सुरक्षा क्षेत्र का दबदबा है और व्यापार पिछड़ गया है. ये भारत और जर्मनी के रिश्तों से ठीक उलट है, जहां दोनों देशों की साझेदारी में अर्थव्यवस्था का पहलू सबसे मज़बूत है. आंकड़े ख़ुद इसकी गवाही देते हैं. 2022 में भारत में फ्रांस 11वां सबसे बड़ा विदेशी निवेशक था और दोनों देशों के बीच आपसी व्यापार 15.8 अरब डॉलर का था, जो साल दर साल बढ़ रहा है. लेकिन, अभी भी ये अपनी संभावनाओं से काफ़ी कम है. वहीं दूसरी तरफ़, उसी साल जर्मनी के साथ भारत का आपसी व्यापार 30 अरब डॉलर तक पहुंच गया था. प्रधानमंत्री मोदी के इस दौरे के दौरान, दोनों देशों के कारोबारियों की जो CEO फोरम की बैठक हुई थी, वो इसी कमी को दूर करने की कोशिश थी. फिर भी, भारत और फ्रांस के बीच कारोबार की अधिकतम संभावनाओं के द्वार यूरोपीय संघ (EU) और भारत के बीच मुक्त व्यापार से ही खोले जा सकते हैं.
दोनों देशों के बीच लंबे समय से संस्थागत साझेदारी के बावजूद, मोदी और मैक्रों की निजी दोस्ती इस रिश्ते को और बेहतर बनाने में अहम भूमिका निभाती है.
भारत और फ्रांस ने अगले 25 वर्षों के दौरान द्विपक्षीय सहयोग को बढ़ाने के लिए ‘होराइज़न 2047’ के नाम से एक रूप-रेखा जारी की है. 2047 में भारत की आज़ादी के 50 साल पूरे होंगे, और उसी साल भारत और फ्रांस की सामरिक साझेदारी भी 50 वर्ष की हो जाएगी. भविष्य को लेकर ये नज़रिया, दोनों देशों के संबंधों को नई ऊंचाई पर पहुंचाने वाली छलांग है.
रूस और यूक्रेन के बीच युद्ध शुरू होने से पहले ही फ्रांस, भारत के सबसे अच्छे दोस्त के तौर पर रूस की जगह ले चुका था. शायद इस रिश्ते की सबसे ख़ास बात यही है कि ये आपसी विश्वास की गहराइयों और किसी भी तरह के मतभेदों से बोझिल नहीं है. और, दोनों देशों के बीच लंबे समय से संस्थागत साझेदारी के बावजूद, मोदी और मैक्रों की निजी दोस्ती इस रिश्ते को और बेहतर बनाने में अहम भूमिका निभाती है.
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