Author : Nivedita Kapoor

Published on Jul 29, 2020 Updated 0 Hours ago

पहले ये उम्मीद थी कि कम शक्तिशाली ‘भविष्य का राष्ट्रपति’ दलीय प्रणाली पर ज़्यादा ‘भरोसा’ करेगा और इससे दलीय प्रणाली मज़बूत होगी. लेकिन पुतिन के फिर से चुनाव लड़ने की वजह से मौजूदा प्रणाली बरकरार रहेगी और इसके कारण संस्थानों के कमज़ोर होने का ख़तरा और बढ़ेगा.

पुतिन 2024: रूस में राजनीतिक संस्थान और लोकतंत्र

अगर रूस में पिछले दिनों संविधान संशोधन नहीं हुआ होता तो राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन का कार्यकाल 2024 में ख़त्म हो जाता. लेकिन रूस के 78 प्रतिशत लोगों की तरफ़ से प्रस्तावित फेरबदल को समर्थन मिलने के बाद ये संभावना ख़त्म हो गई है. संविधान संशोधन लागू होने के बाद पुतिन अगर चाहें तो 2024 और 2030 में छह-छह साल के दो कार्यकाल के लिए चुनाव लड़ सकते हैं.

आगे के किसी दूसरे उम्मीदवार के लिए राष्ट्रपति पद का कार्यकाल दो बार के लिए तय कर दिया गया है. इसका मतलब ये है कि पुतिन-मेदवेदेव के पद बदलने या पुतिन के चार कार्यकाल के बाद भी राष्ट्रपति बने रहने की संभावना बिना संविधान संशोधन के मुमकिन नहीं होता. वैसे तो कहने के लिए जनमत संग्रह का मक़सद क़रीब 206 प्रस्तावित संशोधनों- जिनमें न्यूनतम मज़दूरी, पेंशन, संघीय अदालतों में नियुक्ति, पुरुष और महिला के बीच शादी जैसे क़ानून शामिल हैं- के लिए मंज़ूरी हासिल करना था लेकिन किसी को इस बात पर शक नहीं था कि वोट का असली उद्देश्य क्या है. जैसा कि पता चला है कि प्रस्तावित बदलावों के लिए जनता के वोट की कोई ज़रूरत नहीं थी बल्कि संसद के दोनों सदनों की मंज़ूरी ही काफ़ी थी. एकमात्र प्रावधान जो राष्ट्रपति का कार्यालय लोगों की मंज़ूरी और उनकी वैधता के ज़रिए पारित कराना चाहता था वो राष्ट्रपति के कार्यकाल से जुड़ा था.

रूस की कम्युनिस्ट पार्टी जैसे विपक्षी दलों और एलेक्सी नवालनी जैसे विपक्षी नेताओं ने फिर से पुतिन के चुनाव लड़ने के प्रावधान पर जनमत संग्रह का विरोध किया, लेकिन कोरोना वायरस महामारी की वजह से उनके रैली करने या लोगों का समर्थन जुटाने की क्षमता कम हो गई. साथ ही एक जनमत संग्रह में 206 संविधान संशोधनों को शामिल करने- जिनमें लोगों का समर्थन हासिल करने वाले सामाजिक और आर्थिक कल्याण के क़दम भी शामिल हैं- की वजह से एक मुद्दे पर ज़ोर देना मुश्किल हो गया.

रूस की कम्युनिस्ट पार्टी जैसे विपक्षी दलों और एलेक्सी नवालनी जैसे विपक्षी नेताओं ने फिर से पुतिन के चुनाव लड़ने के प्रावधान पर जनमत संग्रह का विरोध किया, लेकिन कोरोना वायरस महामारी की वजह से उनके रैली करने या लोगों का समर्थन जुटाने की क्षमता कम हो गई

पुतिन की संभावित वापसी और राजनीतिक प्रक्रिया 

कार्यकाल बढ़ाने के पक्ष में एक दलील दी जाती है कि किसी कमज़ोर राष्ट्रपति के हाथ में सत्ता नहीं आए और 2024 के चुनाव से पहले पुतिन के उत्तराधिकारी को तलाशने में अफरातफरी न मचे. इससे पता चलता है कि रूस के कुलीन वर्ग में स्थायित्व बरकरार रखने में पुतिन की बड़ी भूमिका है लेकिन ये रूस के लोकतांत्रिक संस्थानों की कमज़ोरी को भी ज़ाहिर करता है जहां चुनाव जैसी सामान्य प्रक्रिया और सत्ता में बदलाव को अराजकता से जोड़ा जाता है. ये स्थिति इसलिए है क्योंकि पिछले दो दशक के दौरान पुश्तैनी संबंध बने हैं. ऐसा सिस्टम जहां विशिष्ट वर्ग- राजनीति, कारोबार और नौकरशाही- के बीच संरक्षण और सरपरस्ती ऊपरी नेतृत्व के साथ गहरे तौर पर जुड़ी हुई है, वहां शीर्ष में बदलाव का डर इस प्रक्रिया में साफ़ तौर पर दिखता है.

ताक़तवर विशिष्ट वर्ग के ग़ुस्से ने अंदरुनी झगड़े की संभावना को भी बढ़ा दिया है. शीर्ष पर एक ताक़तवर नेता की गैर-मौजूदगी की हालत में अनिश्चितता की वजह से ये झगड़ा और भी बढ़ सकता है. उत्तराधिकार को लेकर डर ‘गैर-लोकतांत्रिक शासन’ की पहचान है. जैसा कि रिचर्ड साकवा कहते हैं, नौकरशाही और विशिष्ट वर्ग एक-दूसरे के साथ ‘संरक्षक-ग्राहक का संबंध’ रखते हैं, लेकिन ये ‘स्वायत्त राजनीतिक स्थिति की स्थापना में नाकामी’ का भी संकेत है. ये रूस में राजनीतिक दलों के विकास में भी देखा जा सकता है जहां सत्ताधारी यूनाइटेड रूस पार्टी स्वतंत्र राजनीतिक ताक़त के तौर पर काम नहीं करती बल्कि बड़ी ‘शासन प्रणाली’ के अधीन काम करती है.

इसका नतीजा ये हुआ है कि संसद में राष्ट्रपति के राजनीतिक एजेंडे को बढ़ाने की ज़रूरी भूमिका के निर्वहन में राजनीतिक कामयाबी के लिए ये राष्ट्रपति कार्यालय पर निर्भर है. अपनी कमियों से पार पाने में लगे विपक्षी दलों को भी दबाया गया है क्योंकि उनके पास वित्तीय संसाधनों और मीडिया में पैठ की कमी है जबकि राष्ट्रपति के वफ़ादार या राष्ट्रपति द्वारा बनाए गए समूहों के पास इसकी कोई कमी नहीं है. साथ ही चुनाव के शुरुआती दिनों के दौरान ‘प्रशासनिक तकनीकों’ के इस्तेमाल से किसी ख़ास दल के पक्ष में नतीजों का रुख़ मोड़ने से भी विपक्ष के ख़ेमे में हताशा आई है. जहां आर्थिक विकास की सुस्त रफ़्तार और 2018 के पेंशन सुधारों की वजह से यूनाइटेड रूस की लोकप्रियता में अच्छी-ख़ासी कमी आई और उसकी रेटिंग नीचे गिरी, वहीं चुनाव के नतीजों में विपक्ष को इसका कोई ख़ास फ़ायदा नहीं मिला. इसकी वजह ऊपर बताए गए कारण तो हैं ही, साथ ही विश्वसनीय विकल्प की कमी के चलते लोगों का अनिर्णय भी है.

रूस में लोकतांत्रिक प्रणाली है क्योंकि यहां नियमित अंतराल पर चुनाव होते हैं और लोगों के बीच पुतिन वाकई बेहद लोकप्रिय हैं. जून 2020 में उनकी लोकप्रियता की रेटिंग 60 प्रतिशत थी. 20 साल के उनके शासन के हिसाब से ये भले ही कम हो लेकिन दूसरे देशों के नेताओं के मुक़ाबले ये फिर भी बेहतरीन है. मगर अपने मुताबिक़ चुनावी नतीजे तय करने के लिए प्रक्रियाओं और संस्थाओं से नियमित तौर पर खिलवाड़ के कारण मज़बूत संस्थानों के विकास में रुकावट आई है. इन संस्थानों में स्वतंत्र राजनीतिक दल और कार्यपालिका-विधायिका शामिल हैं. पहले ये उम्मीद थी कि कम शक्तिशाली ‘भविष्य का राष्ट्रपति’ दलीय प्रणाली पर ज़्यादा ‘भरोसा’ करेगा और इससे दलीय प्रणाली मज़बूत होगी. लेकिन पुतिन के फिर से चुनाव लड़ने की वजह से मौजूदा प्रणाली बरकरार रहेगी और इसके कारण संस्थानों के कमज़ोर होने का ख़तरा और बढ़ेगा.

रूस में लोकतांत्रिक प्रणाली है क्योंकि यहां नियमित अंतराल पर चुनाव होते हैं और लोगों के बीच पुतिन वाकई बेहद लोकप्रिय हैं. जून 2020 में उनकी लोकप्रियता की रेटिंग 60 प्रतिशत थी. 20 साल के उनके शासन के हिसाब से ये भले ही कम हो लेकिन दूसरे देशों के नेताओं के मुक़ाबले ये फिर भी बेहतरीन है.

इस परिदृश्य के कारण संविधान संशोधन के तहत राष्ट्रपति से प्रधानमंत्री और कैबिनेट को नियुक्त करने की शक्ति छीनकर संसद को सौंपकर उसे मज़बूत करने की कोशिश भी खटाई में पड़ गई है. पहले अगर संसद तीन बार राष्ट्रपति की पसंद के प्रधानमंत्री को खारिज करती थी तो राष्ट्रपति के पास संसद को भंग करने का अधिकार था लेकिन अब कैबिनेट और प्रधानमंत्री की नियुक्ति को लेकर ड्यूमा का फ़ैसला आख़िरी होगा. इस प्रणाली के असरदार ढंग से काम करने के लिए एक मज़बूत, स्वतंत्र, निष्पक्ष दलीय प्रणाली पूर्व शर्त है जिसकी रूस में फिलहाल कमी है.

अनिश्चितता जारी है 

अगर पुतिन 2024 में सत्ता में लौटते हैं तो ऊपरी परिदृश्य दिख सकता है लेकिन ख़ुद राष्ट्रपति ने अभी तक साफ़ प्रतिबद्धता दिखाने से इनकार कर दिया है. एक तरफ़ जहां उनके फिर से चुनाव जीतने का रास्ता साफ़ हो गया है, वहीं अनुभवी नेता ने ख़ुद को अभी तक इसी बात पर सीमित कर रखा है कि उन्होंने इस ‘संभावना को खारिज’ नहीं किया है. नतीजतन उनके कमज़ोर राष्ट्रपति होने की समझ से निपट लिया गया है और संशोधन पर जनमत संग्रह के पारित होने से ‘विशिष्ट वर्ग काबू में रहेगा’ लेकिन उत्तराधिकार का व्यापक सवाल अब भी कायम है. पुतिन के पहले से लंबे कार्यकाल और उनकी बढ़ती उम्र दोनों के आधार पर उत्तराधिकार का सवाल बना हुआ है.

लोगों के बीच यूनाइटेड रूस की अलोकप्रियता, जो उसकी लगातार कम होती रेटिंग से ज़ाहिर होती है, को देखते हुए 2021 का संसदीय चुनाव जनता के मिजाज़ को बताने के साथ-साथ यूनाइटेड रूस के भविष्य के लिए भी महत्वपूर्ण साबित होगा.

कोविड-19 महामारी और पहले से सुस्त अर्थव्यवस्था पर उसके असर की वजह से अनिश्चितता और बढ़ गई है. लोगों के बीच यूनाइटेड रूस की अलोकप्रियता, जो उसकी लगातार कम होती रेटिंग से ज़ाहिर होती है, को देखते हुए 2021 का संसदीय चुनाव जनता के मिजाज़ को बताने के साथ-साथ यूनाइटेड रूस के भविष्य के लिए भी महत्वपूर्ण साबित होगा. इन घटनाक्रमों का असर और भविष्य में पार्टी की प्रक्रिया में राष्ट्रपति कार्यालय का दखल अभी साफ़ नहीं है.

जैसा कि अभी लग रहा है, अगर पुतिन सत्ता में लौटते हैं तो रूस में ‘संरक्षणवाद’ को ख़त्म करना और मुश्किल होगा. सोवियत युग से आगे के देश में राजनीतिक संस्थानों और लोकतंत्र की नींव इससे और कमज़ोर होगी.

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