Published on Dec 05, 2019 Updated 0 Hours ago

प्रधानमंत्री शेख़ हसीना वाजेद ने फ़ेनी नदी का कुछ पानी भारत के पूर्वोत्तर के राज्य त्रिपुरा को देने पर सहमति जताई, तो उनके इस फ़ैसले की बांग्लादेश में कई लोगों ने आलोचना की थी.

बांग्लादेश में आख़िर क्यों मोदी बने हैं चर्चा का केंद्र?

हाल ही में बांग्लादेश की राजधानी ढाका में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की एक चिट्ठी को लेकर काफ़ी हंगामा खड़ा हो गया था. माना जाता है कि प्रधानमंत्री मोदी ने ये चिट्ठी, भारत के उस समय के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस रंजन गोगोई को लिखी थी. जिसके मुताबिक़, मोदी ने अयोध्या में बाबरी मस्जिद और मंदिर के विवाद में फ़ैसला सुनाने के लिए जस्टिस गोगोई को धन्यवाद दिया था. ये चिट्ठी जिस काग़ज़ पर लिखी हुई थी, उसे देखकर पहली नज़र में ऐसा लगता था कि ये भारत के प्रधानमंत्री के दफ़्तर से उनके आधिकारी लेटर पैड पर लिखी गई है. क्योंकि लेटरहेड पर भारत के प्रधानमंत्री के दफ़्तर की मुहर लगी हुई थी. और चिट्ठी के आख़िर में प्रधानमंत्री मोदी के दस्तख़त भी बने हुए थे. बांग्लादेश में सोशल मीडिया पर ये चिट्ठी बड़ी तेज़ी से फैलाई जा रही थी. सब से ज़्यादा हैरान करने वाली बात तो ये है कि इस चिट्ठी की तस्वीरों को ढाका के कई अख़बारों ने प्रमुखता से अपने यहां छापा भी था. इस का नतीजा वही हुआ, जिस की उम्मीद थी. पाठकों की प्रतिक्रियाएं आने लगीं.

भारत के उच्चायोग ने स्पष्ट किया कि भारत के प्रधानमंत्री की लिखी चिट्ठी के नाम पर फैलाया जा रहा ये लेटर बिल्कुल फ़र्ज़ी है. और, इसका मक़सद भारत और बांग्लादेश के मौजूदा दोस्ताना ताल्लुक़ात में दरार डालने का है

ये सिलसिला तब तक चलता रहा, जब तक ढाका में भारत के उच्चायोग ने सामने आ कर इस चिट्ठी को फ़र्ज़ी और पूरी कहानी को झूठी करार नहीं दिया. भारत के उच्चायोग ने स्पष्ट किया कि भारत के प्रधानमंत्री की लिखी चिट्ठी के नाम पर फैलाया जा रहा ये लेटर बिल्कुल फ़र्ज़ी है और, इसका मक़सद भारत और बांग्लादेश के मौजूदा दोस्ताना ताल्लुक़ात में दरार डालने का है. भारतीय उच्चायोग के बयान में नाराज़गी साफ़ तौर से झलक रही थी. ख़ास तौर से इसलिए भी कि बांग्लादेश में कुछ लोग इस फ़र्ज़ी चिट्ठी के माध्यम से अयोध्या पर सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले के बाद उग्र प्रतिक्रिया भड़काने की कोशिश कर रहे थे. इस मुद्दे पर भारतीय उच्चायोग का बयान आने का अच्छा असर भी हुआ. जिन अख़बारों ने भारत के प्रधानमंत्री द्वारा भारत के तब के मुख्य न्यायाधीश को लिखी ये ‘चिट्ठी’ प्रकाशित की थी, उन्होंने इसे तुरंत अपने प्रकाशन और वेबसाइट से हटा लिया. इस के बाद इस फ़र्ज़ी चिट्ठी को लेकर चल रही चर्चाएं समाप्त हो गईं. लेकिन, इस पूरे हंगामे की वजह से इन अख़बारों की विश्वसनीयता पर ज़रूर कई सवाल उठ खड़े हुए हैं.

इसमें कोई दो राय नहीं है कि बांग्लादेश के अवाम के बीच भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी काफ़ी लोकप्रिय हैं. क्योंकि वो लगातार भारत और बांग्लादेश के बीच अच्छे संबंधों की वक़ालत करते रहे हैं. भले ही भारत सरकार, बांग्लादेश के साथ तीस्ता नदी के जल के बंटवारे का विवाद सुलझा नहीं सकी है. लेकिन, इस बात पर किसी को शक नहीं है कि नरेंद्र मोदी, इस विवाद को जल्द से जल्द समाप्त करने को लेकर प्रतिबद्ध हैं. हालांकि हाल ही में जब अपने भारत के दौरे में बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख़ हसीना वाजेद ने फ़ेनी नदी का कुछ पानी भारत के पूर्वोत्तर के राज्य त्रिपुरा को देने पर सहमति जताई, तो उनके इस फ़ैसले की बांग्लादेश में कई लोगों ने आलोचना की थी. इस मुद्दे पर बांग्लादेश में जो प्रतिक्रियाएं आईं, उनमें ज़ाहिर है तारीफ़ का भाव नहीं था. नतीजा ये हुआ कि शेख़ हसीना की सरकार को अपने अवाम को ये समझाने में काफ़ी मशक़्क़त करनी पड़ी कि, उन की सरकार ने भारत के किसी दबाव में आ कर फ़ेनी नदी का पानी त्रिपुरा को देने का ये फ़ैसला नहीं किया. हालांकि बांग्लादेश में इन मामलों के जानकार कहते रहे हैं कि अगर बांग्लादेश ने फ़ेनी नदी का पानी भारत के त्रिपुरा राज्य को देने पर सहमति जताई है. तो, साथ ही साथ, शेख़ हसीना की सरकार को ये चाहिए था कि वो इस के बदले में भारत से तीस्ता नदी का पानी बांग्लादेश के लिए हासिल करने पर भी ज़ोर देती.

फ़र्ज़ी चिट्ठी को लेकर चल रही चर्चाएं समाप्त हो गईं. लेकिन, इस पूरे हंगामे की वजह से इन अख़बारों की विश्वसनीयता पर ज़रूर कई सवाल उठ खड़े हुए हैं

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और शेख़ हसीना वाजेद के बीच सकारात्मक संबंध रहे हैं. जब कि दोनों ही नेता अपने अपने घरेलू मोर्चे पर बिल्कुल मुख़्तलिफ़ क़िस्म की राजनीतिक विचारधारा का पालन करते हैं. 2014 में जब बीजेपी, भारत में सत्ता में आई थी, तब भारत और बांग्लादेश के बीच संबंधों के भविष्य को लेकर कई सवालों पर चिंताएं जताई गई थीं. बांग्लादेश की सत्ताधारी पार्टी अवामी लीग के पारंपरिक रूप से भारत की कांग्रेस पार्टी से दोस्ताना संबंध रहे हैं. लेकिन, मोदी के सत्ता में आने के बाद से दोनों देशों के संबंधों में नयापन दिखा है. भारत और बांग्लादेश के प्रधानमंत्री, कई बार मिल चुके हैं. ये मुलाक़ातें, ढाका, दिल्ली और कोलकाता के अलावा तीसरे देशों में भी हुई हैं. इन मुलाक़ातों के ज़रिए ये संदेश साफ़ तौर से दिया गया है कि इन दोनों नेताओं के सत्ता में रहते हुए, भारत और बांग्लादेश के संबंध बेहतर हो रहे हैं.

दोनों ही देशों के नेताओं के परस्पर संबंध में और मधुरता बढ़ने की संभावना है. क्योंकि बताया गया है कि जब बांग्लादेश के संस्थापक शेख मुजीबुर रहमान के जन्म शताब्दी समारोहों का आयोजन अगले साल ढाका में शुरू होगा, तो भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, इस के मुख्य वक्ता होंगे. शेख़ मुजीबुर रहमान को बंग बंधु और बंगाल का पिता भी कहा जाता है. उनके बारे में मशहूर है कि उन्होंने पाकिस्तान का हिस्सा रहते हुए पूर्वी बंगाल की स्वायत्तता के लिए लंबा संघर्ष किया था. इसका नतीजा 1971 में बांग्लादेश के अस्तित्व के रूप में सामने आया था. बांग्लादेश के स्वाधीनता संग्राम के दौरान शेख़ मुजीबुर रहमान को पाकिस्तान ने देशद्रोह के आरोप में क़ैद कर के मुक़दमा चलाया था. पाकिस्तान ने उन्हें आख़िरकार जनवरी 1972 को रिहा किया था. जिसके बाद उन्होंने अपने नए बने देश की हुक़ूमत की कमान संभाली थी. 1975 में शेख़ मुजीबुर रहमान के ख़िलाफ़ तख़्ता पलट का अभियान चलाया गया था. इस दौरान शेख़ मुजीब के साथ साथ उनके परिवार के ज़्यादातर सदस्यों की हत्या कर दी गई थी. इस हत्याकांड में शेख़ हसीना और उनकी छोटी बहन शेख़ रेहाना बच गई थीं, क्यों कि तख्तापलट के वक़्त दोनों ही बहनें देश से बाहर थीं.

बांग्लादेश के स्वाधीनता संघर्ष के दौरान भारत की उस समय की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने शेख़ मुजीबर और बांग्लादेश के नागरिकों का जम कर समर्थन किया था और पाकिस्तान से लड़ने में उन्हें हर तरह का सहयोग दिया था. इसी वजह से बांग्लादेश की जनता हमेशा ही भारत के प्रति कृतज्ञता का प्रदर्शन करती आई है. यही वजह है कि बंग बंधु शेख़ मुजीबुर रहमान के मार्च 2020 में शुरू होने जा रहे जन्म शताब्दी समारोह की शुरुआत के मौक़े पर भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को मुख्य वक्ता के तौर पर आमंत्रित किया है.

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