निवर्तमान ट्रंप सरकार से तुलना करें तो जो बाइडेन प्रेसिडेंसी काफ़ी हद तक निरंतरता का प्रदर्शन कर सकती है, जिस तरह से अमेरिका दक्षिण एशिया में विदेश नीति के उद्देश्यों को देखता है, उससे क्षेत्र के लिए इसके तरीके में स्पष्ट अंतर दिखाई देगा. अमेरिका की एकदम फ़ौरी चिंता अफ़ग़ानिस्तान में तेजी से विकसित हो रही राजनीतिक और सुरक्षात्मक घटनाओं पर प्रतिक्रिया देना है, जहां जारी “शांति वार्ता” के मद्देनज़र तेज़ हुई चौतरफ़ा हिंसा, तालिबान द्वारा बातचीत में प्रभावशाली स्थिति रखने के लिए लाभकारी उपकरण के रूप में हिंसा का इस्तेमाल करने की मंशा का संकेत देती है.
बाइडेन भी हालांकि, अफ़ग़ान शांति प्रक्रिया का समर्थन करते है, लेकिन वह अफ़ग़ानिस्तान से अमेरिकी सैनिकों की ज़्यादा क्रमिक और ‘ज़िम्मेदार’ वापसी के हिमायती हैं. इसके साथ ही अमेरिका और अफ़ग़ान सरकार के लिए लगातार बने सुरक्षा ख़तरों का भी हवाला देते हुए ख़ासतौर से आतंकवाद विरोधी अभियान पर केंद्रित सैन्य उपस्थिति बनाए रखना चाहते हैं.
बाइडेन सरकार फरवरी 2020 के अमेरिका-तालिबान समझौते को कठोरता से लागू किए जाने पर भी ज़ोर दे सकती है, जो अपरिवर्तनीय रूप से अमेरिका के बाहर निकलने की सशर्त प्रकृति को इंगित करता है, और अफ़ग़ान सरकार के साथ औसत दर्जे के बेहतर रिश्ते रख सकती है.
बाइडेन सरकार फरवरी 2020 के अमेरिका-तालिबान समझौते को कठोरता से लागू किए जाने पर भी ज़ोर दे सकती है, जो अपरिवर्तनीय रूप से अमेरिका के बाहर निकलने की सशर्त प्रकृति को इंगित करता है, और अफ़ग़ान सरकार के साथ औसत दर्जे के बेहतर रिश्ते रख सकती है.
इस्लामाबाद पर बढ़ सकता है ‘दबाव’
तालिबान पर पाकिस्तान के असर को देखते हुए उस पर अमेरिका की निर्भरता और पाकिस्तान की अफ़ग़ानिस्तान में आंतरिक आयामों को आकार देने की अनूठी क्षमता को देखते हुए बाइडेन निकट भविष्य में अमेरिका के बड़े सामरिक हितों को आगे बढ़ाने के लिए इस्लामाबाद पर दबाव बनाने के बजाय, उसे प्रोत्साहित करना चुन सकते हैं.
बाइडेन जिस तरह से अफ़ग़ानिस्तान और पाकिस्तान से आने वाली आतंकवाद की चुनौती का जवाब देते हैं, क्षेत्र में भारत के अपने सामरिक हितों के लिए उसके महत्वपूर्ण निहितार्थ होंगे.
हालांकि, बाइडेन के ऐतिहासिक रूप से पाकिस्तानी नेतृत्व (नागरिक और सैन्य दोनों) के साथ मज़बूत रिश्तों के बावजूद उनकी सरकार जल्द से जल्द पाकिस्तान के बाहर मौजूद आतंकवादी नेटवर्क के मुद्दे को सुलझाने पर ध्यान केंद्रित करेगी — आख़िरकार, आतंकवाद के प्रति ‘नो टॉलरेंस’ (कोई रियायत नहीं) नीति दक्षिण एशिया के लिए उनके घोषित चुनावी एजेंडे में बुनियादी मुद्दा थी.
अंत में, बाइडेन जिस तरह से अफ़ग़ानिस्तान और पाकिस्तान से आने वाली आतंकवाद की चुनौती का जवाब देते हैं, क्षेत्र में भारत के अपने सामरिक हितों के लिए उसके महत्वपूर्ण निहितार्थ होंगे. हालांकि, भारत अमेरिका के लिए एक महत्वपूर्ण रणनीतिक साझीदार बना रहेगा, ख़ासतौर से हिंद-प्रशांत क्षेत्र में तेज़ी से बनती टकराव वाली चीनी मौजूदगी का मुकाबला करने और दक्षिण एशिया में साझा आतंकवाद विरोधी उद्देश्यों को हासिल करने के लिए. इसके अलावा, ट्रंप के पृथकतावादी रुख़ के उलट वैश्विक कूटनीति और सहयोग के प्रति बाइडेन के झुकाव और भारत व अमेरिका के ‘स्वाभाविक साझेदार’ होने पर ज़ोर देने को देखते हुए, दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय सहयोग का सुरक्षा से परे और भी क्षेत्रों में विस्तार होगा.
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