Published on Aug 04, 2023 Updated 0 Hours ago

चूंकि यूरोपीय संघ का सदस्य बनने के दौरान, मध्य और पूर्वी यूरोपीय देशों ने लोकतांत्रिक सुधारों और एकीकरण की प्रक्रिया से गुज़रने का तजुर्बा हासिल किया है, तो ये देश पश्चिमी संगठनों से जुड़ने में यूक्रेन की मदद कर सकते हैं.

यूक्रेन: दर्शक की भूमिका से हट कर, बड़े मैदान का खिलाड़ी बनने की ओर!
यूक्रेन: दर्शक की भूमिका से हट कर, बड़े मैदान का खिलाड़ी बनने की ओर!

ये लेख हमारी सीरीज़- रायसीना एडिट 2022 का एक हिस्सा है.


आज जब यूक्रेन पर रूस द्वारा बिना उकसाए ही किए गए हमले का सिलसिला जारी है, तो संघर्ष को लेकर कई बड़े सवाल खड़े हो गए हैं; यूक्रेन के नागरिक कब तक रूस की सेना के हमले का मुक़ाबला कर पाएंगे और जवाबी अभियान चला पाएंगे? आगे चलकर अगर कोई समझौता होता है, तो वार्ताकार यूक्रेन के लिए किस तरह के समझौते करेंगे? क्या यूरोपीय देश एकजुट होकर यूक्रेन को नेटो और यूरोपीय संघ (EU) का सदस्य बनने का समर्थन करेंगे? क्या यूक्रेन के लिए उत्तर अटलांटिक संधि संगठन (NATO) की सदस्यता लेना उपयुक्त होगा? युद्ध के चलते जो लाखों लोग बेघर हुए हैं, उनका क्या होगा? क्या वो सुरक्षित रूप से अपनी मातृभूमि को लौट सकेंगे? इस प्रक्रिया में अलग अलग देशों की भूमिका क्या होगी और वो अपने अपने हितों के हिसाब से किस तरह इस प्रक्रिया का हिस्सा बनेंगे? क्या यूरोपीय संघ और अन्य देश यूक्रेन को स्थिर करने और उसके पुनर्निर्माण के लिए एकजुट होकर आपस में ज़िम्मेदारी बांटेंगे?

यूक्रेन की जनता ने दिखाया है कि वो अपनी आज़ादी की क़ुर्बानी नहीं देने वाले हैं. अब तक की जंग में जब यूक्रेन के नागरिक बड़ी मज़बूती से रूस के हमले का मुक़ाबला कर रहे हैं और अपनी ज़मीन पर दोबारा क़ब्ज़े की पुरज़ोर कोशिश कर रहे हैं.

यूक्रेन के नागरिक मज़बूत बने हुए हैं

वैसे तो इन सभी सवालों का टिकाऊ जवाब दे पाना अभी जल्दबाज़ी होगी. मगर, हक़ीक़त यही है कि यूक्रेन के नागरिक बड़े असरदार तरीक़े से हमले का विरोध कर रहे हैं. यूक्रेन के लोगों ने ये बात बिल्कुल साफ़ कर दी है कि वो ऐसी किसी भी राह पर चलने के लिए तैयार नहीं हैं, जिसमें किसी भी रूप में रूस का शासन या प्रभाव हो. यूक्रेन की जनता ने दिखाया है कि वो अपनी आज़ादी की क़ुर्बानी नहीं देने वाले हैं. अब तक की जंग में जब यूक्रेन के नागरिक बड़ी मज़बूती से रूस के हमले का मुक़ाबला कर रहे हैं और अपनी ज़मीन पर दोबारा क़ब्ज़े की पुरज़ोर कोशिश कर रहे हैं. पिछले एक दशक से चले आ रहे इस संघर्ष के चलते यूक्रेन में जंग का तजुर्बा रखने वाले लगभग पांच लाख लोग मौजूद हैं, जिनके अंदर मुक़ाबले का ज़बरदस्त जज़्बा है- जो किसी भी क़ीमत पर अपने शहरों की हिफ़ाज़त के लिए कटिबद्ध हैं.

युद्ध के दौरान रूस की सेना को तकनीकी, लॉजिस्टिक और सामरिक नाकामी का सामना करना पड़ा है. इसके अलावा उसे युद्धक्षेत्र में भारी नुक़सान भी उठाना पड़ा है. इससे ये ज़ाहिर हो गया है कि रूस को जितनी बड़ी ताक़त समझा जा रहा था, उतनी बड़ी शक्ति वो है नहीं. कई विश्लेषकों ने रूसी सेना द्वारा जंग के दौरान रूसी सेना में आपूर्ति की कमी और टैंक और बख़्तरबंद गाड़ियों के लिए ईंधन न होने का बड़े स्तर पर विश्लेषण किया. उनका कहना है कि ये सब इस बात का साफ़ संकेत है कि ‘युद्ध की योजना’ हड़बड़ी में तैयार हुई और उसे लागू करने में गड़बड़ी की गई. साफ़ है कि रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने यूक्रेन के नेतृत्व और नागरिकों की मुक़ाबला करने की मज़बूत इच्छाशक्ति को कम करके आंका. यही नहीं, युद्ध के चलते रूस को विश्व स्तर पर कड़ी आलोचना का सामना करना पड़ा है और उस पर बहुत से यूरोपीय देशों ही नहीं अन्य देशों से भी बड़े व्यापक प्रतिबंध लगा दिए हैं. इसके अलावा, रूस के भीतर भी विरोध प्रदर्शनों के ज़रिए युद्ध के ख़िलाफ़ माहौल बना है. रूस की जनता या तो इस युद्ध को लेकर देशभक्ति भरा नज़रिया रखती है, या फिर उसे कोई ख़ास फ़र्क़ नहीं पड़ता. किसी भी स्थिति में रूस के शासक वर्ग, निजी कंपनियों, संसद सदस्यों और जनता के बीच इस युद्ध को लेकर दरारें साफ़ दिखाई दे रही हैं. सभी की यही मांग है कि युद्ध को तुरंत रोककर युद्धविराम की कोशिश की जाए.

निष्पक्षता की ओर बढ़ते क़दम?

अप्रैल महीने की शुरुआत तक, रूस और यूक्रेन के बीच बातचीत युद्ध रोकने के लिए किसी ठोस दिशा में बढ़ती नहीं दिखाई दे रही थी. रूस के सार्वजनिक बयान ये ज़ाहिर करते हैं कि स्थायी शांति का कोई समझौता नहीं किया जा सकता है और सबको स्वीकार्य समाधान वाले युद्धविराम की कोशिशें कामयाब नहीं रही हैं. यूक्रेन के लिए निष्पक्षता और क्षेत्रीय अखंडता को सुरक्षित करने के लिए संवैधानिक संशोधन की ज़रूरत होगी. क्योंकि, यूक्रेन के संविधान में ‘यूरोपीय और यूरोप-अटलांटिक संबंध मज़बूत करने की बात निहित’ है. एक सामान्य जनमत संग्रह से ये संशोधन नहीं किए जा सकते हैं और इसके लिए यूक्रेन की संसद को पूरी तरह से कामकाजी होना होगा. आज जब देश में आपातकाल है तो संसद सामान्य रूप से कार्य नहीं कर सकती है. यूक्रेन के नेतृत्व को देश के अहम संस्थानों को आमंत्रित करना होगा ताकि स्पष्ट बहुमत हासिल किया जा सके. इसके अलावा, यूक्रेन के नागरिकों को भी एक जनमत संग्रह में शामिल होने के लिए आमंत्रित करना होगा, जिससे किसी भी संशोधन को व्यापक समर्थन की गारंटी सुनिश्चित की जा सके.

यूक्रेन के संविधान में ‘यूरोपीय और यूरोप-अटलांटिक संबंध मज़बूत करने की बात निहित’ है. एक सामान्य जनमत संग्रह से ये संशोधन नहीं किए जा सकते हैं और इसके लिए यूक्रेन की संसद को पूरी तरह से कामकाजी होना होगा.

आख़िर सुरक्षा की गारंटी की वार्ताएं किस तरह से की जाएं जिससे रूस को स्वीकार्य रियायतें हासिल की जा सकें? यूक्रेन को एक अलग संधि के ज़रिए संरक्षण की ज़रूरत तो है, मगर रूस बड़ी सक्रियता से ऑस्ट्रिया और स्वीडन जैसी निष्पक्षता की व्यवस्था की वकालत करता रहा है- जो स्वैच्छिक हैं और जिन्हें गंभीर क़िस्म की गारंटी हासिल नहीं है. इसके अलावा क्राइमिया का भी सवाल है- जहां तक यूक्रेन का सवाल है, तो वो इस मुद्दे को अलग करके रूस के साथ क्राइमिया के मसले पर अलग से समझौता करने को तैयार है. लेकिन, रूस का मानना है कि क्राइमिया से उसके पीछे हटने पर किसी तरह के समझौते की गुंजाइश ही नहीं है. सच तो ये है कि यूक्रेन में युद्ध की शुरुआत से बहुत पहले, यानी 2008 में जॉर्जिया पर हमले और 2014 में क्राइमिया पर क़ब्ज़े से ही ज़ाहिर हो गया था कि रूस के क़दमों से यूरेशिया के सुरक्षा संबंधी माहौल में धीरे धीरे बदलाव आ रहा है. राष्ट्रपति पुतिन और उनके समर्थन न केवल नेटो के पूरब की ओर विस्तार को रोकना चाहते हैं, बल्कि पूर्व सोवियत क्षेत्रों में किसी न किसी तरह से दोबारा अपना प्रभाव स्थापित करना चाहते हैं.

एकजुटता की कोशिश, यूक्रेन की जनता से तालमेल की कोशिश

शांति वार्ता में यूरोपीय देशों की सरकारों और वहां की जनता और अन्य लोगों की भागीदारी बढ़ाने की ज़रूरत है. यूक्रेन से पलायन कर रहे नागरिकों का पोलैंड, स्लोवाकिया, हंगरी, रोमानिया, मॉल्दोवा रूस और बेलारूस जैसे कई देशों में गर्मजोशी से स्वागत किया जा रहा है. बहुत से नागरिक अपनी अपनी मंज़िलों के सफ़र पर हैं. अपने रिश्तेदारों और दोस्तों के यहां पनाह ले रहे हैं. वहीं बहुत से लोगों ने शरण लेने की अर्ज़ी भी दी है. हालांकि, सभी देशों के पास इतने बड़े पैमाने पर शरणार्थियों को अपनाने की क्षमता नहीं है. इससे पहले जर्मनी और स्वीडन ने अपने यहां उस वक़्त अभूतपूर्व संख्या में शरणार्थियों का स्वागत किया था, जब यूरोप के अन्य देशों में इस मुद्दे को लेकर दुविधा बनी हुई थी. इन देशों के सामने शरणार्थियों को उचित रिहाइश उपलब्ध कराने और कमज़ोर तबक़े के लोगों की सुरक्षा को लेकर चिंता थी और उन्होंने तात्कालिक समाधान तलाशकर काम चलाया था. मौजूदा शरणार्थियों का स्वागत करने और उन्हें बसाने को लेकर उनके तजुर्बे राह दिखाने का काम कर सकते हैं.

मोटे अनुमानों के मुताबिक़ 10 अप्रैल 2022 तक, यूक्रेन के 45,47,735 नागरिकों ने भागकर पड़ोसी और अन्य देशों के यहां शरण ली है. इसके अलावा, यूक्रेन के लुहांस्क और डोनेत्स्क क्षेत्रों से 113,000 लोगों ने रूस में पनाह ले रखी है. यूरोपीय देशों में रहे रहे यूक्रेनी मूल के 15 लाख लोग, इन शरणार्थियों की मदद कर रहे हैं

मोटे अनुमानों के मुताबिक़ 10 अप्रैल 2022 तक, यूक्रेन के 45,47,735 नागरिकों ने भागकर पड़ोसी और अन्य देशों के यहां शरण ली है. इसके अलावा, यूक्रेन के लुहांस्क और डोनेत्स्क क्षेत्रों से 113,000 लोगों ने रूस में पनाह ले रखी है. यूरोपीय देशों में रहे रहे यूक्रेनी मूल के 15 लाख लोग, इन शरणार्थियों की मदद कर रहे हैं, और उन्हें ज़रूरी सामान, मेडिकल उपकरण और अन्य सामान की आपूर्ति करने के अलावा, उन लोगों को लड़ने के लिए हथियार भी मुहैया करा रहे हैं, जो अपने देश में डटे हुए हैं. इस बात की उम्मीद है कि ज़्यादातर शरणार्थी अपने देश लौटकर नए सिरे से अपने देश के पुनर्निर्माण में मदद कर सकेंगे. यूक्रेन के बहुत से नागरिक पश्चिमी संस्थानों और सहयोग वाले संगठनों से जुड़कर ख़ुद को रूस से दूर करना चाहते हैं. इन लोगों ने 2013-14 के यूरोमैदान आंदोलन के दौरान अपनी पसंद का साफ़ तौर पर इज़हार कर दिया था और पश्चिमी देशों के साथ अपने देश की नज़दीकी बढ़ाने के लिए बार बार अपीलें की थीं.

तमाशबीन बनने के बजाय मिलकर क़दम उठाना होगा

मौजूदा संघर्ष ने व्यापार के प्रवाह को बाधित कर दिया है और इसका असर यूक्रेन के प्रमुख व्यापारिक भागीदारों- चीन, पोलैंड, जर्मनी, तुर्की, मिस्र और रूस- पर भी पड़ा है. इसमें कोई शक नहीं कि इन देशों के साथ साथ अन्य राष्ट्र भी यूक्रेन के साथ अपने संबंध बनाए रखना चाहेंगे और पुराने समझौतों को बुनियाद बनाकर आपसी संबंधों की नई इमारत खड़ी करना चाहेंगे. तेल की क़िल्लत और कृषि उत्पादों के आयात की राह में बाधाओं ने अंतरराष्ट्रीय समुदाय को भी प्रभावित किया है. चूंकि यूक्रेन, कृषि उत्पादों का एक बड़ा निर्यातक है- वो तिलहन, मक्के और गेहूं के निर्यात में बड़ी भूमिका निभाता है. ऐसे में ये यूरोपीय संघ के ही हित में होगा कि वो आर्थिक और निवेश की तय योजना पर अमल करे और यूक्रेन के छोटे और मध्यम दर्जे के उद्योगों के साथ साथ छोटे खेतिहरों की भी मदद करे, जिससे कि युद्ध के बाद के दौर में वो उबरकर अपना विकास कर सकें.

अफ़ग़ानिस्तान से सेना की वापसी के दौरान फैली अफ़रा-तफ़री के चलते अमेरिका का बाइडेन प्रशासन काफ़ी संयम से काम ले रहा है. अमेरिकी नेतृत्व ने यूक्रेन की जनता को बड़ी मज़बूती से समर्थन देने के हक़ में आवाज़ उठाई है और रूस पर कई प्रतिबंध लगाए हैं

यूरोपीय देशों को यूक्रेन के नागरिकों द्वारा बड़ी मशक़्क़त से हासिल की गई उपलब्धियों में शामिल होना होगा और आपसी तालमेल से उनकी मदद करनी होगी. जंग के अपने ऐतिहासिक तजुर्बों और यूक्रेन के युद्ध से भौगोलिक नज़दीकी के चलते, अब तक मध्य और पूर्वी यूरोप (CEE) के देशों ने अपने अपने स्तर पर मदद का हाथ बढ़ाया है. कई देशों में रूस और यूक्रेन को लेकर राय बंटी हुई है. इन देशों की सरकारें तो यूक्रेन का समर्थन कर रही हैं. मगर मज़बूत रूस समर्थक परंपराओं (मिसाल के तौर पर स्लोवाकिया) और खुलकर रूस के समर्थन (जैसे कि बुल्गारिया, हंगरी या सर्बिया) में खड़े होने के चलते उनके समाज की राय दोनों देशों के बीच बंटी हुई है. वहीं दूसरी तरफ़, कई यूरोपीय देश ऐसे भी हैं, जिन्होंने यूक्रेन को बिना किसी हिचक के ठोस सैन्य समर्थन (जैसे कि बाल्टिक देश या चेक गणराज्य) या मानवीय मदद (पोलैंड) उपलब्ध कराई है.

चूंकि यूरोपीय संघ का सदस्य बनने के दौरान, मध्य और पूर्वी यूरोपीय देशों ने लोकतांत्रिक सुधारों और एकीकरण की प्रक्रिया से गुज़रने का तजुर्बा हासिल किया है, तो ये देश पश्चिमी संगठनों से जुड़ने में यूक्रेन की मदद कर सकते हैं. लेकिन, इन देशों को इसके लिए अमेरिका और दूसरे पश्चिमी देशों, ख़ास तौर से जर्मनी से मज़बूत समर्थन की दरकार है. अफ़ग़ानिस्तान से सेना की वापसी के दौरान फैली अफ़रा-तफ़री के चलते अमेरिका का बाइडेन प्रशासन काफ़ी संयम से काम ले रहा है. अमेरिकी नेतृत्व ने यूक्रेन की जनता को बड़ी मज़बूती से समर्थन देने के हक़ में आवाज़ उठाई है और रूस पर कई प्रतिबंध लगाए हैं. हालांकि, ये समय दूरी बनाने का नहीं है; पूर्वी मोर्चे को और खुलकर समर्थन की ज़रूरत है. इसके साथ साथ ऑर्गेनाइज़ेशन फॉर सिक्योरिटी ऐंड को-ऑपरेशन इन यूरोप (OECD) या फिर लुब्लिन ट्रायंगल जैसे संगठनों को यूक्रेन के समाज से संवाद करके, उसे पश्चिमी संस्थानों से जुड़ने में मदद करनी चाहिए. इस मोड़ पर यूक्रेन के यूरोपीय संघ या नेटो से जुड़ने की राह आसान नहीं दिख रही है. लेकिन अगर यूक्रेन के नागरिक इन संगठनों के सदस्य बनना चाहते हैं और युद्ध ख़त्म होने पर ज़रूरी सुधार करने के लिए तैयार हैं, तो उन्हें  उसी तरह हर ज़रूरी मदद उपलब्ध कराई जानी चाहिए, जैसी सहायता पूर्वी और मध्य यूरोप के देशों को उस समय मुहैया कराई गई थी, जब वो अपने यहां आर्थिक सुधार कर रहे थे और अपने यहां की क़ानूनी व्यवस्था को यूरोपीय संघ के मानकों के मुताबिक़ ढालने के लिए निगरानी कर रहे थे.

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