-
CENTRES
Progammes & Centres
Location
असली मुद्दों से ध्यान भटकाने की असली साजिश तो रूसी सांठ-गांठ की कहानी है। इस बात के वास्तव में कोई सबूत नहीं हैं कि रूस ने वास्तव में ट्रंप को अमेरिकी चुनाव जीतने में मदद की है।
डोनाल्ड ट्रंप के राष्ट्रपति के तौर पर सौ दिन पूरे होने से पहले ही वामपंथी उनके खिलाफ साजिश में लग गए। इसके लिए उन्होंने रूसी साजिश की कहानी का सहारा लिया है ताकि वे ट्रंप के करीबियों को एक-एक कर झटका दे सकें। शतरंज के खेल की तरह वे बादशाह तक पहुंचने से पहले बारी-बारी उसके सभी सहयोगियों को खत्म कर देना चाहते हैं।
डोनाल्ड ट्रंप के राष्ट्रपति के तौर पर सौ दिन पूरे होने से पहले ही वामपंथी उनके खिलाफ साजिश में लग गए। इसके लिए उन्होंने रूसी साजिश की कहानी का सहारा लिया है ताकि वे ट्रंप के करीबियों को एक-एक कर झटका दे सकें। शतरंज के खेल की तरह वे बादशाह तक पहुंचने से पहले बारी-बारी उसके सभी सहयोगियों को खत्म कर देना चाहते हैं।
ट्रंप ने 2016 के राष्ट्रपति चुनाव जीतने के लिए रूस के साथ मिल कर सांठ-गांठ की थी यह आरोप ऐसे बेवकूफी भरे थे कि जो लोग उनकी उम्मीदवारी के खिलाफ भी थे, वे भी परोक्ष रूप से उनके बचाव में आ गए।
जम कर बोलने वाले अरबपति मार्क क्यूबन ने हाल ही में ट्वीटर पर तर्क दिया कि यह “डीजीटी-नेतृत्व में रची गई साजिश कतई नहीं है। क्योंकि ट्रंप इतने विस्तार में नहीं जाते, ना इतने व्यवस्थित हैं और ना इतनी बड़ी तस्वीर ले कर चलते हैं कि ऐसी चीज रची जा सके।” क्यूबन ने यह भी दावा किया कि रूस के साथ किसी तरह के रिश्ते रखने वाला कोई व्यक्ति ट्रंप के अभियान में शामिल हुआ भी था तो “उन्हें इस बात का कोई एहसास नहीं था कि इन रिश्तों को रूस की ओर से प्रभावित किया जा रहा था” और ना ही उन्हें इस बात का “तनिक भी गुमान था कि वास्तव में क्या हो रहा है।”
रूस में कारोबार और सरकार के बीच की लकीर अक्सर धुंधली रहती है।
वामपंथियों की रूसी कहानी को परखने से पहले इस संभावना पर विचार करने की जरूरत है कि ओबामा प्रशासन के सदस्यों ने ट्रंप के प्रचार अभियान और उसके सहयोगियों की जासूसी की थी या नहीं। भले ही यह निगरानी सूचना जुटाने के इरादे से की गई हो और बाद में इन्हीं सूचनाओं के आधार पर उन्होंने ट्रंप पर रूस के साथ गठजोड़ करने का आरोप लगा दिया हो। जिन लोगों की निगरानी की गई थी, उनमें देसी और विदेशी दोनों तरह के लोग शामिल थे।
राष्ट्रपति ट्रंप ने आरोप लगाया है कि ओबामा प्रशासन ने ट्रंप टॉवर पर जासूसी तार बिछाए हुए थे ताकि उनकी टीम के बारे में सूचना जुटा सकें और इस बात का पता कर सकें कि रूसी कहानी के सामने आने के बाद विदेशी कूटनीतिक उन्हें किस तरह देख रहे हैं।
पिछले महीने खुफिया सूचना संबंधी सदन की समिति के अध्यक्ष रेप. डेविन नन्स (आर-सीए) ने एलान किया कि व्हाईट हाउस के दो कर्मियों ने उन्हें दर्जनों खुफिया सूचनाएं दीं जिनमें ऐसे ब्योरे शामिल थे जिन्हें सामने लाना बेहद गलत था। इन ब्योरों में ट्रंप की ट्रांजीशन टीम की सूचनाएं भी शामिल थी। इसके बावजूद डेमोक्रेटिक पार्टी के लोग रूसी साजिश की कहानी को लगातार तूल दे रहे हैं और दावा कर रहे हैं कि ट्रंप टॉवर पर जासूसी करने के आरोप महज ध्यान भटकाने की कोशिश हैं।
सदन के अल्पसंख्यक नेता नैन्सी पेलोसी (डी-सीए) ने ट्रंप पर की गई जासूसी के दावे को अधिनायकवादी नेताओं की ओर से अमल में लाए जाने वाले दुष्प्रचार के तरीकों का उदाहरण बताया है। पेलोसी ने सीएनएन पर कहा, “इसे चौतरफा दुष्प्रचार कहा जाता है। इसमें आप कोई कहानी रचते हैं। फिर प्रेस को इस बारे में लिखने में लगाते हैं और फिर आप कहते हैं कि देखिए हर कोई इस आरोप के बारे में चर्चा कर रहा है। यह अधिनायकवाद का एक औजार है।”
हालांकि, हकीकत यह है कि ध्यान भटकाने की असली साजिश तो अमेरिकी चुनाव को रूस की ओर से प्रभावित करने के आरोप हैं जिसके बारे में अब तक कोई सबूत नहीं मिले हैं। हिलेरी क्लिंटन ने नौकरीपेशा वर्ग के एक बड़े समूह को और मिशिगन और विसिकोन्सिन जैसी जगहों पर गोरे पुरुष वोटरों को उपेक्षित कर खुद ही अपने प्रचार अभियान में पलीता लगा दिया। ये ऐसे राज्य थे जो ट्रंप को व्हाईट हाउस तक पहुंचाने में काफी मददगार साबित हुए।
इस तरह की साजिशों की असली तस्वीर को समझना है तो आपको ज्यादा पीछे जाने की जरूरत नहीं। वर्ष 2015 का वह उदाहरण याद कीजिए, जब ओबामा प्रशासन ने इजराइली चुनाव में उस समूह को हजारों डॉलर की मदद की जो प्रधानमंत्री बेजामिन नेतनयाहू को सत्ता से हटाने में मदद करने का दावा कर रहा था।
कुछ लोग तो यहां तक कहते हैं कि ट्रंप के राष्ट्रपति कार्यालय को कमजोर करने की जिस तरह कोशिश की जा रही है वह तो वाटरगेट कांड से भी ज्यादा खतरनाक है जिसने रिपब्लिक पार्टी के राष्ट्रपति रिचर्ड एम. निक्सन की सत्ता छीन ली थी।
लेकिन इसे कौन याद कर रहा है।
ओबामा प्रशासन अपने राजनीतिक फायदे के लिए खुफिया तंत्र का किस तरह इस्तेमाल करता है, इसका सबसे बड़ा उदाहरण 2014 का सेंटकॉम कांड है। उस वर्ष के दौरान अमेरिकी केंद्रीय कमांड के वरिष्ठ सदस्यों ने खुफिया आकलन को बदल कर उसे इस तरह पेश किया कि तब के राष्ट्रपति ओबामा के नेतृत्व में अमेरिका इस्लामिक स्टेट के खिलाफ लड़ाई में जीत रहा है। यह वही इस्लामिक स्टेट (आईएसआईएस, आईएसआईएल, दाएश) है जिसे ओबामा प्रशासन ने आतंकवादी समूह की “जेवी टीम” बुलाया था।
डेमोक्रेटिक नेशनल कमेटी (डीएनसी) के हजारों ईमेल के लीक किए जाने के पीछे रूसी हाथ होने के आरोप को विकिलिक्स के संस्थापक जूलियन असांज ने भी पूरी तरह नकार दिया है। इन ईमेल ने ही क्लिंटन प्रचार अभियान के भ्रष्टाचार का पर्दाफाश किया था। असांज ने रूसी साजिश से इंकार करते हुए कहा, “इस बात के परिस्थितिजन्य साक्ष्य मिलते हैं कि अन्य मीडिया संस्थानों से तो कोई ऐसा व्यक्ति संबंधित था जो रूसी था या फिर कोई चाहता था कि वह रूसी प्रतीत हो। लेकिन जो सामग्री हमने जारी की, उस मामले में ऐसा नहीं था।”
पिछले महीने पेलोसी के डेमोक्रेटिक पार्टी के समकक्ष रेप. एडम शिफ (डी-सीए) ने भी मीडिया में जो कहा उससे इस बात को दम मिलता है। सदन की खुफिया सूचना समिति के इस सदस्य के मुताबिक, “अमेरिका के राष्ट्रपति के लिए ऐसे आरोप लगाना जो दुनिया की नजर में हमारे लोकतंत्र की गरिमा को घटाता हो वह बेहद विध्वंसात्मक है और साथ ही आधारहीन भी है।”
फिर भी रविवार को सीएनएन के स्टेट ऑफ द यूनियन पर शिफ ने कहा कि वह नन की ओर से ट्रंप की ट्रांजीशन टीम पर की गई जासूसी के आरोपों से “सहमत” नहीं हैं। साथ ही यह भी कहा कि वे यह भी नहीं कह रहे के नन ने जो कहा वह पूरी तरह गलत था।
ओबामा प्रशासन के एक पूर्व खुफिया अधिकारी और एफबीआई के निदेशक जेम्स कोमी ने ट्रंप टॉवर पर जासूसी के आरोपों से इंकार किया है। लेकिन पिछले महीने फॉक्स न्यूज के वरिष्ठ राजनीतिक सहयोगी ब्रिट ह्यूम ने कोमी के बयान में एक संभावित विरोधाभास की ओर संकेत किया है। कोमी ने यह बयान सदन की खुफिया मामलों की समिति के सामने दिया था। इसमें उन्होंने ट्रंप के 2016 के चुनाव अभियान को रूस के कथित सहयोग के बारे में कहा था और जिससे लोगों की भवें तन गई थीं।
ह्यूम ने ध्यान दिलाया है कि इस बयान के दौरान कोमी ने माना कि पिछली गर्मियों के दौरान एक जांच शुरू की गई थी, लेकिन उन्होंने जासूसी की बात से इंकार किया। लेकिन यह नहीं भूलना चाहिए कि ऐसी जासूसी करने के लिए जरूरी है कि उसे किसी जांच ऑपरेशन का जामा पहनाया जाए।
ह्यूम ने ट्रकर कार्लसन को कहा, “एफबीआई निदेशक ने एक सवाल के जवाब में यह भी कहा कि उन्हें डोनाल्ड ट्रंप या ट्रंप टॉवर पर जासूसी तार बिछाने को ले कर कोई सबूत नहीं मिले हैं और ना ही ऐसी कोई सूचना मिली है जो इस ओर इशारा करती हो। लेकिन ट्रंप के सहयोगियों और उनके प्रचार अभियान को ले कर जुलाई से ही यह जो जांच चल रही है उसका क्या तर्क है? क्या हम यह मान लें कि उससे संबंधित कोई जासूसी नहीं हो रही? हम सभी जानते हैं, जैसा कि आपने इशारा भी किया कि माइक फ्लिन को ऐसी ही जासूसी में पकड़ गया था। वह रूसी राजदूत पर की जा रही रुटीन जासूसी हो सकती है जिससे वे बात कर रहे थे। लेकिन कौन जाने सच क्या है?”
ह्यूम ने यह भी कहा है कि जब उन्होंने यह एलान किया कि एक जांच चल रही है तो “उन्हें यह एलान करने के लिए ऊपर से इजाजत मिली थी।” ह्यूम न्यूयॉर्क टाइम्स में छपी 19 जनवरी की एक खबर की ओर ध्यान दिलाते हैं जिसमें कहा गया था कि निगरानी से मिली उस सूचना के आधार पर जांच को शुरू किया गया था जिसमें पाया गया था कि कुछ संपर्क मौजूद हैं। उस खबर में यह भी कहा गया था कि यह स्पष्ट नहीं है कि उस जासूसी में ट्रंप के प्रचार अभियान को ले कर कुछ हासिल हो सका या नहीं। यानी, हमें वास्तव में पता नहीं है कि हकीकत क्या है। और ध्यान रखिए कि यह खुफिया अभियान का मुकाबला करने के लिए शुरू की गई जांच है जिसका मतलब है कि यह मूल रूप से राष्ट्रीय सुरक्षा का मसला है। यानी, इसका क्या मतलब है? मेरा मतलब है कि ऐसा क्या है जो हमें यह बता सके कि उनको पुतिन या उसकी सांठ-गांठ के बारे में जानकारी हासिल करने की कितनी संभावना है। पता नहीं।”
साथ ही कार्लसन ने कहा, “अगर जांच हो रही थी.. जो कि वास्तव में हो रही थी.. तो जासूसी भी हो रही थी।”
न्यूयॉर्क टाइम्स के एक रिपोर्टर ने हाल में कहा कि ओबामा प्रशासन ने इस संबंध में “बहुत सी सूचनाएं उपलब्ध छोड़ दी हैं” जिनसे ट्रंप के प्रचार अभियान को रूसियों के साथ जोड़ने के प्रयासों के सबूत मिलते हैं। हालांकि यह सच है कि पिछली सरकार की ओर से ट्रंप के प्रचार अभियान की निगरानी की जा रही थी ताकि पता चल सके कि वे किस से मिल रहे हैं और वे उनके बारे में क्या कह रहे हैं।
लेकिन सौ बातों की एक बात यह है कि आप कई बार सच के बेहद करीब पहुंच कर भी उससे बहुत दूर रह जाते हैं।
ट्रंप ने 2016 के राष्ट्रपति चुनाव जीतने के लिए रूस के साथ मिल कर सांठ-गांठ की थी यह आरोप ऐसे बेवकूफी भरे थे कि जो लोग उनकी उम्मीदवारी के खिलाफ भी थे, वे भी परोक्ष रूप से उनके बचाव में आ गए।
जम कर बोलने वाले अरबपति मार्क क्यूबन ने हाल ही में ट्वीटर पर तर्क दिया कि यह “डीजीटी-नेतृत्व में रची गई साजिश कतई नहीं है। क्योंकि ट्रंप इतने विस्तार में नहीं जाते, ना इतने व्यवस्थित हैं और ना इतनी बड़ी तस्वीर ले कर चलते हैं कि ऐसी चीज रची जा सके।” क्यूबन ने यह भी दावा किया कि रूस के साथ किसी तरह के रिश्ते रखने वाला कोई व्यक्ति ट्रंप के अभियान में शामिल हुआ भी था तो “उन्हें इस बात का कोई एहसास नहीं था कि इन रिश्तों को रूस की ओर से प्रभावित किया जा रहा था” और ना ही उन्हें इस बात का “तनिक भी गुमान था कि वास्तव में क्या हो रहा है।”
रूस में कारोबार और सरकार के बीच की लकीर अक्सर धुंधली रहती है।
वामपंथियों की रूसी कहानी को परखने से पहले इस संभावना पर विचार करने की जरूरत है कि ओबामा प्रशासन के सदस्यों ने ट्रंप के प्रचार अभियान और उसके सहयोगियों की जासूसी की थी या नहीं। भले ही यह निगरानी सूचना जुटाने के इरादे से की गई हो और बाद में इन्हीं सूचनाओं के आधार पर उन्होंने ट्रंप पर रूस के साथ गठजोड़ करने का आरोप लगा दिया हो। जिन लोगों की निगरानी की गई थी, उनमें देसी और विदेशी दोनों तरह के लोग शामिल थे।
राष्ट्रपति ट्रंप ने आरोप लगाया है कि ओबामा प्रशासन ने ट्रंप टॉवर पर जासूसी तार बिछाए हुए थे ताकि उनकी टीम के बारे में सूचना जुटा सकें और इस बात का पता कर सकें कि रूसी कहानी के सामने आने के बाद विदेशी कूटनीतिक उन्हें किस तरह देख रहे हैं।
पिछले महीने खुफिया सूचना संबंधी सदन की समिति के अध्यक्ष रेप. डेविन नन्स (आर-सीए) ने एलान किया कि व्हाईट हाउस के दो कर्मियों ने उन्हें दर्जनों खुफिया सूचनाएं दीं जिनमें ऐसे ब्योरे शामिल थे जिन्हें सामने लाना बेहद गलत था। इन ब्योरों में ट्रंप की ट्रांजीशन टीम की सूचनाएं भी शामिल थी। इसके बावजूद डेमोक्रेटिक पार्टी के लोग रूसी साजिश की कहानी को लगातार तूल दे रहे हैं और दावा कर रहे हैं कि ट्रंप टॉवर पर जासूसी करने के आरोप महज ध्यान भटकाने की कोशिश हैं।
सदन के अल्पसंख्यक नेता नैन्सी पेलोसी (डी-सीए) ने ट्रंप पर की गई जासूसी के दावे को अधिनायकवादी नेताओं की ओर से अमल में लाए जाने वाले दुष्प्रचार के तरीकों का उदाहरण बताया है। पेलोसी ने सीएनएन पर कहा, “इसे चौतरफा दुष्प्रचार कहा जाता है। इसमें आप कोई कहानी रचते हैं। फिर प्रेस को इस बारे में लिखने में लगाते हैं और फिर आप कहते हैं कि देखिए हर कोई इस आरोप के बारे में चर्चा कर रहा है। यह अधिनायकवाद का एक औजार है।”
हालांकि, हकीकत यह है कि ध्यान भटकाने की असली साजिश तो अमेरिकी चुनाव को रूस की ओर से प्रभावित करने के आरोप हैं जिसके बारे में अब तक कोई सबूत नहीं मिले हैं। हिलेरी क्लिंटन ने नौकरीपेशा वर्ग के एक बड़े समूह को और मिशिगन और विसिकोन्सिन जैसी जगहों पर गोरे पुरुष वोटरों को उपेक्षित कर खुद ही अपने प्रचार अभियान में पलीता लगा दिया। ये ऐसे राज्य थे जो ट्रंप को व्हाईट हाउस तक पहुंचाने में काफी मददगार साबित हुए।
इस तरह की साजिशों की असली तस्वीर को समझना है तो आपको ज्यादा पीछे जाने की जरूरत नहीं। वर्ष 2015 का वह उदाहरण याद कीजिए, जब ओबामा प्रशासन ने इजराइली चुनाव में उस समूह को हजारों डॉलर की मदद की जो प्रधानमंत्री बेजामिन नेतनयाहू को सत्ता से हटाने में मदद करने का दावा कर रहा था।
कुछ लोग तो यहां तक कहते हैं कि ट्रंप के राष्ट्रपति कार्यालय को कमजोर करने की जिस तरह कोशिश की जा रही है वह तो वाटरगेट कांड से भी ज्यादा खतरनाक है जिसने रिपब्लिक पार्टी के राष्ट्रपति रिचर्ड एम. निक्सन की सत्ता छीन ली थी।
लेकिन इसे कौन याद कर रहा है।
ओबामा प्रशासन अपने राजनीतिक फायदे के लिए खुफिया तंत्र का किस तरह इस्तेमाल करता है, इसका सबसे बड़ा उदाहरण 2014 का सेंटकॉम कांड है। उस वर्ष के दौरान अमेरिकी केंद्रीय कमांड के वरिष्ठ सदस्यों ने खुफिया आकलन को बदल कर उसे इस तरह पेश किया कि तब के राष्ट्रपति ओबामा के नेतृत्व में अमेरिका इस्लामिक स्टेट के खिलाफ लड़ाई में जीत रहा है। यह वही इस्लामिक स्टेट (आईएसआईएस, आईएसआईएल, दाएश) है जिसे ओबामा प्रशासन ने आतंकवादी समूह की “जेवी टीम” बुलाया था।
डेमोक्रेटिक नेशनल कमेटी (डीएनसी) के हजारों ईमेल के लीक किए जाने के पीछे रूसी हाथ होने के आरोप को विकिलिक्स के संस्थापक जूलियन असांज ने भी पूरी तरह नकार दिया है। इन ईमेल ने ही क्लिंटन प्रचार अभियान के भ्रष्टाचार का पर्दाफाश किया था। असांज ने रूसी साजिश से इंकार करते हुए कहा, “इस बात के परिस्थितिजन्य साक्ष्य मिलते हैं कि अन्य मीडिया संस्थानों से तो कोई ऐसा व्यक्ति संबंधित था जो रूसी था या फिर कोई चाहता था कि वह रूसी प्रतीत हो। लेकिन जो सामग्री हमने जारी की, उस मामले में ऐसा नहीं था।”
पिछले महीने पेलोसी के डेमोक्रेटिक पार्टी के समकक्ष रेप. एडम शिफ (डी-सीए) ने भी मीडिया में जो कहा उससे इस बात को दम मिलता है। सदन की खुफिया सूचना समिति के इस सदस्य के मुताबिक, “अमेरिका के राष्ट्रपति के लिए ऐसे आरोप लगाना जो दुनिया की नजर में हमारे लोकतंत्र की गरिमा को घटाता हो वह बेहद विध्वंसात्मक है और साथ ही आधारहीन भी है।”
फिर भी रविवार को सीएनएन के स्टेट ऑफ द यूनियन पर शिफ ने कहा कि वह नन की ओर से ट्रंप की ट्रांजीशन टीम पर की गई जासूसी के आरोपों से “सहमत” नहीं हैं। साथ ही यह भी कहा कि वे यह भी नहीं कह रहे के नन ने जो कहा वह पूरी तरह गलत था।
ओबामा प्रशासन के एक पूर्व खुफिया अधिकारी और एफबीआई के निदेशक जेम्स कोमी ने ट्रंप टॉवर पर जासूसी के आरोपों से इंकार किया है। लेकिन पिछले महीने फॉक्स न्यूज के वरिष्ठ राजनीतिक सहयोगी ब्रिट ह्यूम ने कोमी के बयान में एक संभावित विरोधाभास की ओर संकेत किया है। कोमी ने यह बयान सदन की खुफिया मामलों की समिति के सामने दिया था। इसमें उन्होंने ट्रंप के 2016 के चुनाव अभियान को रूस के कथित सहयोग के बारे में कहा था और जिससे लोगों की भवें तन गई थीं।
ह्यूम ने ध्यान दिलाया है कि इस बयान के दौरान कोमी ने माना कि पिछली गर्मियों के दौरान एक जांच शुरू की गई थी, लेकिन उन्होंने जासूसी की बात से इंकार किया। लेकिन यह नहीं भूलना चाहिए कि ऐसी जासूसी करने के लिए जरूरी है कि उसे किसी जांच ऑपरेशन का जामा पहनाया जाए।
ह्यूम ने ट्रकर कार्लसन को कहा, “एफबीआई निदेशक ने एक सवाल के जवाब में यह भी कहा कि उन्हें डोनाल्ड ट्रंप या ट्रंप टॉवर पर जासूसी तार बिछाने को ले कर कोई सबूत नहीं मिले हैं और ना ही ऐसी कोई सूचना मिली है जो इस ओर इशारा करती हो। लेकिन ट्रंप के सहयोगियों और उनके प्रचार अभियान को ले कर जुलाई से ही यह जो जांच चल रही है उसका क्या तर्क है? क्या हम यह मान लें कि उससे संबंधित कोई जासूसी नहीं हो रही? हम सभी जानते हैं, जैसा कि आपने इशारा भी किया कि माइक फ्लिन को ऐसी ही जासूसी में पकड़ गया था। वह रूसी राजदूत पर की जा रही रुटीन जासूसी हो सकती है जिससे वे बात कर रहे थे। लेकिन कौन जाने सच क्या है?”
ह्यूम ने यह भी कहा है कि जब उन्होंने यह एलान किया कि एक जांच चल रही है तो “उन्हें यह एलान करने के लिए ऊपर से इजाजत मिली थी।” ह्यूम न्यूयॉर्क टाइम्स में छपी 19 जनवरी की एक खबर की ओर ध्यान दिलाते हैं जिसमें कहा गया था कि निगरानी से मिली उस सूचना के आधार पर जांच को शुरू किया गया था जिसमें पाया गया था कि कुछ संपर्क मौजूद हैं। उस खबर में यह भी कहा गया था कि यह स्पष्ट नहीं है कि उस जासूसी में ट्रंप के प्रचार अभियान को ले कर कुछ हासिल हो सका या नहीं। यानी, हमें वास्तव में पता नहीं है कि हकीकत क्या है। और ध्यान रखिए कि यह खुफिया अभियान का मुकाबला करने के लिए शुरू की गई जांच है जिसका मतलब है कि यह मूल रूप से राष्ट्रीय सुरक्षा का मसला है। यानी, इसका क्या मतलब है? मेरा मतलब है कि ऐसा क्या है जो हमें यह बता सके कि उनको पुतिन या उसकी सांठ-गांठ के बारे में जानकारी हासिल करने की कितनी संभावना है। पता नहीं।”
साथ ही कार्लसन ने कहा, “अगर जांच हो रही थी.. जो कि वास्तव में हो रही थी.. तो जासूसी भी हो रही थी।”
न्यूयॉर्क टाइम्स के एक रिपोर्टर ने हाल में कहा कि ओबामा प्रशासन ने इस संबंध में “बहुत सी सूचनाएं उपलब्ध छोड़ दी हैं” जिनसे ट्रंप के प्रचार अभियान को रूसियों के साथ जोड़ने के प्रयासों के सबूत मिलते हैं। हालांकि यह सच है कि पिछली सरकार की ओर से ट्रंप के प्रचार अभियान की निगरानी की जा रही थी ताकि पता चल सके कि वे किस से मिल रहे हैं और वे उनके बारे में क्या कह रहे हैं।
लेकिन सौ बातों की एक बात यह है कि आप कई बार सच के बेहद करीब पहुंच कर भी उससे बहुत दूर रह जाते हैं।
The views expressed above belong to the author(s). ORF research and analyses now available on Telegram! Click here to access our curated content — blogs, longforms and interviews.
Adelle Nazarian is an international journalist and foreign policy analyst currently working with Breitbart News. She is covering the US presidential elections and has been ...
Read More +