पाकिस्तान: ग्वादर के विरोध के ज़रिये अपने अधिकारों के लिए तन कर खड़े होने की कोशिश में बलूचिस्तान प्रांत
पाकिस्तान में जातिगत और धार्मिक दोनों ही वर्ग सरीख़े के कई समूह हैं, जो कि लगातार सरकारी उदासीनता और राजनीतिक नजरअंदाज़ी के शिकार रहे हैं. विशेष रूप से बलूचिस्तान जैसे प्रतिरोधी प्रांत में, इस्लामाबाद और रावलपिंडी के ख़िलाफ़ व्याप्त शिकायतों को मीडिया ब्लैकआउट अथवा क्रूर कार्यवाही के डर से कभी भी आवाज़ नहीं मिलती है या फिर उन्हें नज़रअंदाज़ कर दिया जाता है. लेकिन दिसंबर 2021 में हुई घटना को एक अपवाद स्वरूप देखा जा सकता है जब सरकार ने ग्वादर के स्थानीय रिहायशी लोगों द्वारा उठायी गई आपत्तियों और मांगों न सिर्फ़ स्वीकार किया बल्कि उनपर हामी भी भरी. इसे सरकार द्वारा अपने नागरिकों के प्रति दयाभाव के तौर पर एक महत्वपूर्ण टर्निंग पॉइंट के रूप में बिल्कुल भी नहीं देखा जाना चाहिए, परंतु पाकिस्तानी सरकार का चीन एवं उनके जेब के प्रति दिखायी जाने वाली उदारते का एक स्पष्ट सिग्नल के रूप में देखा जाना चाहिए.
आंदोलनकारियों की मांग की एक लंबी फेहरिस्त है, जिनमें बिजली और शिक्षा की बेहतर पहुँच, बेवजह के चेकपोस्ट को हटाए जाने, और ट्राउलर माफियाओं- जिन्होंने तटीय क्षेत्र में रहने वाले स्थानीय मल्लाहों के बेहतर जीवन-शैली को नष्ट कर दिया है उन्हें वहां से हटाने की मांग शामिल है.
स्थानीय निवासियों द्वारा बेहतर जीवन की मांग
नवंबर 2021 में, बलूचिस्तान के ग्वादर में, स्थानीय निवासियों द्वारा बेहतर अधिकार और जीवन की मांग करते हुए विरोध प्रदर्शन शुरू किया गया. ग्वादर को हक दो (या फिर, ग्वादर को उनका हक दो) आंदोलन नें लाखों महिलाओं, पुरुषों और युवा बच्चों को शहर के मुख्य सड़क जो की चीन – पाकिस्तानी आर्थिक कॉरिडर (सीपीईसी) – ग्वादर बंदरगाह – का बेशकीमती हिस्सा’ है, में प्रांतीय सरकार के ख़िलाफ़ नारे लगाते हुए देखा गया. आंदोलनकारियों की मांग की एक लंबी फेहरिस्त है, जिनमें बिजली और शिक्षा की बेहतर पहुँच, बेवजह के चेकपोस्ट को हटाए जाने, और ट्राउलर माफियाओं- जिन्होंने तटीय क्षेत्र में रहने वाले स्थानीय मल्लाहों के बेहतर जीवन-शैली को नष्ट कर दिया है उन्हें वहां से हटाने की मांग शामिल है. इस विरोधप्रदर्शन के शुरू होने के एक माह के पश्चात, बलूचिस्तान की सरकार ने विरोध-प्रदर्शन कर रहे लोगों की मांगों पर अमल करने का वादा किया है, ताकि विरोधी नेतृत्व शांत बैठ जाएँ. एक तरफ जहां राज्य बहुतया नागरिक समाज में होने वाले ऐसे किसी भी विरोध को राज्य विरोधी गतिविधि के नाम पर तत्काल से ख़ारिज करती है, ग्वादर में हुए इस प्रदर्शन का ऐसा अंत नहीं हुआ. प्रधानमंत्री इमरान खान ने उनकी मांगों को न सिर्फ़ ‘वैद्य’ बताया बल्कि उनपर त्वरित कार्यवाही भी की.
एक तरफ जहां पाकिस्तानी की सरकार ये भ्रम फैला रही है कि चीनी सहयोग से बलूचिस्तान में चल रहे ‘विकास कार्य’ से स्थानीय आबादी को फ़ायदा मिलेगा, वहीं इस सिक्के का दुख़द पहलू ये भी है कि इन विरोध प्रदर्शनों में स्थानीय लोग पीने के लिए स्वच्छ जल और बुनियादी जरूरतें जैसे बुनियादी स्वास्थ्य सुविधाएं की मांग कर रहे हैं.
ग्वादर में हुए घटनाओं के मायने
ग्वादर में लगातार हुई घटनाओं के ख़ुलासे से दो मुख्य चीजें दिखती है. पहली तो ये कि ये सब ‘चीनी के साथ होने वाली साझा प्रगति’ का नतीजा है. पाकिस्तान का यह मानना है कि सीपीईसी के निर्माण और ग्वादर में बनी स्टेट ऑफ़ द आर्ट बंदरगाह के इस्तेमाल से आर्थिक लचीलापन और रोज़गार का सृजन होगा. ये वही पुराना झूठ था, जिसे श्रीलंका या जीबोटी जैसे अन्य राष्ट्रों को बेचा गया था; उन सब ने यही आशा की थी कि, चीन की इस योजना के साथ जाने पर उनके लिए आर्थिक समृद्धि और विकासात्मक वृद्धि की राह प्रशस्त हो जाएगी. दुर्भाग्यवश, चीनी कंपनियों अपने किए गए वादे के अनुरूप, स्थानीय आबादी को रोज़गार के अवसर दिला पाने में असमर्थ रही है. एक तरफ़ जहां चीनी ट्राउलरों ने ग्वादर स्थित मछलियों के स्टॉक को खाली कर दिया और प्राकृतिक संसाधनों का भी दुरुपयोग किया है, वहीं इसके साथ ही इस प्रोजेक्ट ने प्रमुख पदों पर आसीन सेना के रिटायर्ड आर्मी अधिकारियों के बीच, सीपीएसी के कामकाज को ग्वादर में जारी आर्थिक गतिविधि से चीनी उद्यम और श्रमिकों को लगातार फायदा हो रहा है, जिसकी वजह से स्थानीय लोगों में, बीजिंग के प्रति एक शत्रुता की गहरी भावना घर करते जा रही है. एक तरफ जहां पाकिस्तानी की सरकार ये भ्रम फैला रही है कि चीनी सहयोग से बलूचिस्तान में चल रहे ‘विकास कार्य’ से स्थानीय आबादी को फ़ायदा मिलेगा, वहीं इस सिक्के का दुख़द पहलू ये भी है कि इन विरोध प्रदर्शनों में स्थानीय लोग पीने के लिए स्वच्छ जल और बुनियादी जरूरतें जैसे बुनियादी स्वास्थ्य सुविधाएं की मांग कर रहे हैं. इस पोर्ट प्रोजेक्ट ने बजाए इसके कि ग्वादर, बलूचिस्तान का एक आर्थिक सेंटर बने, इस प्रांत को पाकिस्तान के दूसरे हिस्सों के साथ एकीकृत करे, इसने यहां के स्थानीय लोगों को देश के दूसरे हिससे से बिल्कुल ही अलग-थलग करने का का किया है. और पाकिस्तान की सरकार अब भी वहां के स्थानीय लोगों को खोख़ले वादे करना जारी किये हुए है.
पाकिस्तान में, तह़रीक़-ए-लबैक जैसे संगठन देश में हिंसक हत्या जैसी चरमपंथी कार्यवाही, सार्वजनिक संपत्तियों को हानि, और सरकारी अधिकारियों का अपहरण करके अपनी बेतुकी मांगों को मँगवाने जैसे कार्य में प्रभावशाली रहे हैं.
ग्वादर का विरोध प्रदर्शन हमें इस बात को भी समझने में सहायता प्रदान कर रहा है कि कैसे पाकिस्तानी राज्य विभिन्न सिविल सोसाइटी के साथ किस तरह से निपटती है. इस देश में, राज्यों द्वारा नागरिकों के अधिकारों के शोषण के ख़िलाफ विरोध एक आम बात है. एक मल्टी-पार्टी विरोधी संगठन, पाकिस्तान डेमोक्रेटिक मूवमेंट (पीडीएम) ने हमेशा ही पाकिस्तान की तह़रीक़-ए-इंसाफ (पीटीआई) की सरकार की उनके आर्थिक नीतियों एवं बढ़ती महंगाई के कारण हमेशा से आलोचना की है. पश्तून समुदाय के लोगों ने भी, आदिवासी क्षेत्र ख़ैबर पख्त़ूनख्व़ा और बलूचिस्तान में अधिकारों के हनन को लेकर, राज्य के ख़िलाफ़, पश्तून तहफ़ूज मूवमेंट के बैनर तले शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शन किया है.
ये लोग सरकार द्वारा लगाए गए पाकिस्तान का विरोधी होने के आरोपों के आधार पर, राज्य द्वारा किए गए दमन और उत्पीड़न से पीड़ित रहे है. ये बिल्कुल वैसा ही है जैसा राज्यों ने कुछेक बलूची समूह के साथ सलूक किया था, जहां शांतिपूर्ण तरीकों से प्रदर्शनकारियों को देशद्रोही होने का ठप्पा लगाकर, मिलिट्री ताक़त की मदद से उनका दमन कर शांत कर दिया गया. जबकि, कई धर्मान्ध संगठनों की अगुवाई में किए गए विरोध प्रदर्शन भी सफ़ल रहे है. पाकिस्तान में, तह़रीक़-ए-लबैक जैसे संगठन देश में हिंसक हत्या जैसी चरमपंथी कार्यवाही, सार्वजनिक संपत्तियों को हानि, और सरकारी अधिकारियों का अपहरण करके अपनी बेतुकी मांगों को मँगवाने जैसे कार्य में प्रभावशाली रहे हैं. पाकिस्तान की सरकार, ख़ुश करने की अपनी नीतियों को लेकर बिल्कुल तटस्थ रवैया अपनाती रही है – चाहे वो हिंसक हो अथवा शांतिपूर्ण – क्योंकि उनको इस बात का डर है कि ऐसा करने से कहीं (ग्वादर विरोध की तरह) उनका चीन या फ़िर कट्टरपंथी समूह (जैसे टीएलपी) से किसी भी तरह से उनके संबंध कहीं ख़राब ना होने पाए
चीनी मायाजाल का भ्रम
हो सकता है कि थोड़े वक्त़ के लिए ग्वादर में हो रहे विरोध प्रदर्शन को रोक भी दिया जाए और सरकार को भी शायद स्थानीय लोगों को साथ रखने का महत्व समझ में आ जाए, इस विरोध प्रदर्शन ने ये साबित कर दिया है कि न केवल ग्वादर के स्थानीय निवासी, बल्कि समूचे मकरान तट के इर्द-गिर्द में बसे लोग कम से कम कुछ समय तक के लिए, लामबंद रहने, शांतिपूर्वक तरीके से रहते हुए अपने वाजिब हक़ की मांग कर सकने में सक्षम हैं. प्रांतीय सरकार, पीटीआई सरकार, और सबसे महत्वपूर्ण मिलिट्री सेवा को ये समझने की ज़रूरत है कि स्थानीय नागरिक, ना की विदेशी सरकार, अपने देश में होने वाले इन विकास योजनाओं से होने वाले फायदे के सबसे प्रथम हक़दार है. अगर ऐसा नहीं होता है तो शीघ्र ही इस भ्रम का विस्तारपूर्वक ख़ुलासा भी हो जाएगा की चीन उनके देश में किसी तरह का परिवर्तनकारी बदलाव ला पाने में सक्षम है.
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