Author : Karen Smith

Published on Dec 22, 2020 Updated 0 Hours ago

जब दुनिया भर में सरकारें कोरोना महामारी की चुनौतियों का सामना करने में जुटी है, तब उनके सामने एक बात जो सामने लाई जानी चाहिए वो यह है कि सरकारों की जिम्मेदारी अपने नागरिकों को सिर्फ स्वास्थ्य संबंधी सेवाएं मुहैया कराने की ही नहीं है, बल्कि ज़रुरत पड़ने पर अत्याचार संबंधी अपराधों से भी उन्हें बचाने की है.

महामारी के दौरान सरकारों को अत्याचार संबंधी अपराधों से भी बचाने की ज़रूरत

सरकारों साल 2019 के अंत में चीन से शुरू हुई कोरोना वायरस महामारी ने साल 2020 में लगभग पूरी दुनिया को अपनी चपेट में ले लिया है. कोरोनावायरस का कहर दुनियाभर में जारी है. हालत यह कि कोविड-19 से संक्रमित मरीजों की कुल संख्या 7 करोड़ को पार कर गई है तो अब तक इस महामारी ने 16 लाख से अधिक लोगों की सांसें छीन ली हैं.

लेकिन जैसे जैसे हम इस साल के अंत की ओर अग्रसर हो रहे हैं – यह साल जो खास तौर पर कोरोना संक्रमण के चलते दुनिया भर में कई तरह के व्यवधान पैदा करने के लिए याद किया जाएगा – एक बात जो हर एक लोगों को स्पष्ट होता जा रहा है वह यह कि कोरोना संक्रमण महज एक स्वास्थ्य से जुड़ी समस्या भर नहीं है,  बल्कि इस महामारी का स्थानीय, राष्ट्रीय और वैश्विक शासन पर कई मायनों में असर हुआ है.

संयुक्त राष्ट्र महासचिव के विशेष सलाहकार के रूप में इस महामारी की रोकथाम में मेरी भूमिका के दौरान मैं कोरोना संक्रमण के प्रभावों को लेकर खासा चिंतित हूं. विशेष तौर पर महामारी के चलते सबसे कमजोर और समाज के अंतिम हाशिये पर खड़े लोग जिनके ऊपर इस महामारी के संक्रमण का जोख़िम सबसे ज्यादा है – उनपर होने वाली ज्यादतियों के संदर्भ मैं बेहद गंभीर और चिंतित हूं.

यही वजह है कि इस संकट के लिए राष्ट्रीय और वैश्विक रिसपॉन्स सिस्टम खड़ा करने में इस बात का ध्यान देना ज़रुरी है कि इसे लेकर उठाए गए किसी भी उपाय का प्रतिकूल असर समाज पर ना पड़े जिससे की ज्यादतियों से संबंधित अपराध के बढ़ने की आशंका हो. 

मेरी चिंता नस्लीय समूह , जातीय और धार्मिक अल्पसंख्यक, स्वदेशी नागरिक, प्रवासी, शरणार्थी, आंतरिक रूप से विस्थापित लोग, महिलाएं , बच्चे और बुजुर्ग समेत दूसरे वर्ग के लोगों के लिए है. संयुक्त राष्ट्र के कोविड 19 और मानवाधिकार से जुड़ी नीतियों में विशेष जोर देकर कहा गया है कि  “समाज के हाशिये पर खड़े लोगों को ना सिर्फ कोरोना वायरस का सबसे ज्यादा जोख़िम है बल्कि ऐसे लोग इस महामारी को रोकने के लिए उठाए गए कदमों के नकारात्मक असर के प्रभाव में भी हैं.“(p.7) और तो और “भले ही यह वायरस लोगों में भेदभाव पैदा नहीं करता लेकिन इसके नतीजे से ऐसा ज़रुर करते हैं.“(p.10) और यही वजह है कि इस महामारी को रोकने और हमारे द्वारा इसे कम करने के लिए की जा रही कोशिशों के दौरान इसका विशेष ख्याल रखा जाना चाहिए.

आज से पंद्रह साल पहले संयुक्त राष्ट्र के सभी सदस्य देशों ने सर्वसम्मति से अपनी आबादी को सबसे जघन्य अपराधों जैसे नरसंहार, युद्ध अपराध, जाति विशेष की हत्या, और मानवता के ख़िलाफ किए जाने वाले अपराधों से बचाने के लिए एकमत हुए थे. उस समाज और देश में जहां संघर्ष, कमजोर राज्य संरचनाएं, उच्च स्तर के सामाजिक-आर्थिक असमानताएं, राजनीतिक अस्थिरता, मानव अधिकारों के उल्लंघन या फिर अत्याचार से जुड़े अपराधों का इतिहास पहले से ही मौजूद हैं , वहां ऐसे संकट जिसका सामना हम मौजूदा समय में कर रहे हैं, इस तरह के अपराध के बढ़ने का जोख़िम हमेशा से रहता है.

यही वजह है कि इस संकट के लिए राष्ट्रीय और वैश्विक रिसपॉन्स सिस्टम खड़ा करने में इस बात का ध्यान देना ज़रुरी है कि इसे लेकर उठाए गए किसी भी उपाय का प्रतिकूल असर समाज पर ना पड़े जिससे की ज्यादतियों से संबंधित अपराध के बढ़ने की आशंका हो. यह उस पारंपरिक दावे को मजबूत करता है जिसमें कहा जाता है कि रोकथाम इलाज से बेहतर होता है. इसी तरह शुरूआती चेतावनी देना का अर्थ भले ही  इससे संबंधित महामारी को रेखांकित करना ही क्यों ना हो. नरसंहार रोकथाम और सुरक्षा की जिम्मेदारी के तहत संयुक्त राष्ट्र कार्यालय ने अत्याचार संबधी अपराधों के विश्लेषण के लिए एक फ्रेमवर्क बनाया है  जो ऐसे अपराधों के जोख़िम को व्यवस्थित करने में सहयोग देता है.  हम लोग इस बात को जानते हैं कि जैसे अत्याचार संबंधी अपराध के लिए मानवीय अधिकारों का गला घोंटना शुरुआती कदम होता है. हम लोग यह भी जानते हैं कि घृणा पैदा करने वाले भाषण, और भेदभाव को बढ़ावा देना,  शत्रुता और खास लोगों को केंद्रित कर किए जाने वाले  हिंसा ना सिर्फ नफरत और असहिष्णुता को बढ़ावा देने के संकेत है बल्कि अत्याचार संबंधी अपराधों के बढ़ने की गंभीर चेतावनी भी हैं.

कोविड 19 महामारी से निपटने के दौरान जो सबक सीखे गए उनकी प्रासंगकिता अत्याचार संबंधी अपराधों को रोकने के संदर्भ में भी है. इनमें स्पष्ट तौर से वो उपाय शामिल हैं जो रोकथाम से बेहतर इलाज है जैसी पारंपरिक सोच को कम प्राथमिकता देते हैं.

कोविड 19 संबंधित नफरत वाले बयान दरअसल मौजूदा भेदभाव, समाजिक और आर्थिक असमानता, हिंसा और हिंसक उग्रवाद, समाजिक सामंजस्य और एकजुटता को बढ़ावा देते हैं जिनकी रोकथाम महामारी की चुनौतियों से निपटने के लिए बेहद ज़रुरी है. इसके दीर्घकालिक और अल्पकालिक नतीजे भी हो सकते हैं जैसे अलगाव, हाशिए पर रखा जाना, मानवाधिकार उल्लंघन, हिंसा और अत्याचार संबंधी अपराध शामिल हैं.  

हाल के महीनों में कई देशों में हमने अति राष्ट्रवाद की भावना को बढते देखा है. इसके साथ ही महामारी के नाम पर संक्रमण बढ़ाने के आरोप में अल्पसंख्यक समुदायों को निशाना बनाते भी देखा है. मेरे कार्यालय द्वारा विकसित कोविड 19 को लेकर नफरत वाले बयानों पर संयुक्त राष्ट्र गाइडेंस नोट में भी इस बात पर जोर  दिया गया है कि कोरोना महामारी को, पहले से ही समाज के हाशिये पर खड़े लोगों, भेदभाव का शिकार हुए जातीय और धार्मिक अल्पसंख्यकों पर निशाना साधने के लिए नेता और समाज में प्रभाव रखने वाले लोग इस्तेमाल करते रहे हैं. कोविड 19 संबंधित नफरत वाले बयान दरअसल मौजूदा भेदभाव, समाजिक और आर्थिक असमानता, हिंसा और हिंसक उग्रवाद, समाजिक सामंजस्य और एकजुटता को बढ़ावा देते हैं जिनकी रोकथाम महामारी की चुनौतियों से निपटने के लिए बेहद ज़रुरी है. इसके दीर्घकालिक और अल्पकालिक नतीजे भी हो सकते हैं जैसे अलगाव, हाशिए पर रखा जाना, मानवाधिकार उल्लंघन, हिंसा और अत्याचार संबंधी अपराध शामिल हैं.  यही वजह है कि यह संयुक्त राष्ट्र के मूल्यों और सिद्धांतों के लिए और वायरस से निपटने के प्रयासों और “बेहतर निर्माण” के लिए एक बड़ा ख़तरा है.

क्या सरकारें अपनी जिम्मेदारियों से मुंह मोड़ रही हैं?

जब सरकारें इन चेतावनियों को नज़रअंदाज़ करती हैं तब इसका मतलब साफ होता है कि वो सुरक्षा मुहैया कराने की अपनी प्राथमिक जिम्मेदारी से मुंह मोड़ रही हैं. इसके साथ ही चिंता की बात तो महामारी को लेकर कुछ सरकारों की सक्रियता को लेकर भी है. हालांकि, मानवाधिकार कानून इस बात को मानता है जो कुछ मानवाधिकारों के प्रयोग के लिए आपात स्थिति की सीमाएं लगाने की आवश्यकता होती है तो सरकारों को जवाबदेह बनाना भी ज़रुरी है जिससे की वो महामारी को दमनकारी मकसद को पूरा करने के लिए उपयोग न कर सकें. देखा गया है कि कुछ सरकारों ने कोरोना संकट का इस्तेमाल अपने लोगों पर कड़े प्रतिबंध लगाने के लिए जिसमें निगरानी और सैन्य प्रतिक्रिया शामिल है, वो  आलोचनाओं को दबा कर, सेंसरशिप और मानवाधिकार रक्षकों पर शिकंजा  कस कर भी ऐसा करते हैं. इसके अलावा, सीमाओं के बंद होने का अर्थ है कि हजारों शरणार्थियों, प्रवासियों और अन्य विस्थापित लोगों को जिन्हें सुरक्षा और सहायता की आवश्यकता है , एक खतरनाक और अनिश्चित स्थिति का सामना करने पर मजबूर हैं, जहां वे दैनिक संघर्ष या उत्पीड़न से ख़ुद को आजाद कराने में असमर्थ हैं, और ख़ुद को वो कानूनी अड़चनों में फंसे पाते देखते हैं.

हालांकि, सुरक्षा मुहैया कराने की जिम्मेदारी राज्यों को अपने दायित्वों को पूरा करने में अपने नागरिकों की सहायता करने के लिए प्रतिबद्ध तो करती हैं, लेकिन देखा गया है कि कोरोना महामारी ने दुनिया भर की सरकारों में इसे लेकर तेजी से नकारात्मकता आई है.

यह प्रवृत्ति साफ तौर पर उनकी घरेलू परिस्थितियों को केंद्रित करता है लेकिन अत्याचार संबंधी आदर्शों के ख़िलाफ राज्य अक्सर क्षमता बढ़ाने में आनाकानी करते हैं. इतना ही नहीं जो अत्याचार संबंधी अपराध अहम हैं या जो वर्तमान समय में मौजूद है, जिनका असर उनपर होता है  जिन्हें सुरक्षा की सबसे ज्यादा ज़रुरत होती है, वहां भी राज्य ऐसे अपराधों के ख़िलाफ व्यवस्था खड़ी करने के प्रति संवदेनशील नहीं दिखते हैं.

जब दुनिया भर में सरकारें कोरोना महामारी की चुनौतियों का सामना करने में जुटी है, तब उनके सामने एक बात जो सामने लाई जानी चाहिए वो यह है कि सरकारों की जिम्मेदारी अपने नागरिकों को सिर्फ स्वास्थ्य संबंधी सेवाएं मुहैया कराने की ही नहीं है, बल्कि ज़रुरत पड़ने पर अत्याचार संबंधी अपराधों से भी उन्हें बचाने की है

अत्याचार संबंधी अपराधों की रोकथाम सुरक्षा मुहैया कराने की जिम्मेदारी के केंद्र में होती है. हम इस बात को जानते हैं कि जो समाज मानवाधिकार का सम्मान करने वाला और कानून को मानने वाला होता है, जो सहिष्णु और अनेकता में एकता की भावना को दर्शाता है, जहां उच्च स्तर की आर्थिक समानता होती है – वो समाज संघर्ष और अत्याचार संबंधी अपराधों के प्रति ज्यादा सहिष्णु होता है. हम सभी की अतंर्राष्ट्रीय संगठन, सिविल सोसाइटी के सदस्य और व्यक्ति के रूप में कोविड 19 के संकट के ख़िलाफ सुरक्षा मुहैया कराने में अहम भूमिका होती है. हमारा समाज दूसरी प्राथमिकताओं के प्रति आंखें मूंद नहीं सकता है. किसी भी चुनौती का सामना करने और सभी लोगों के साथ समान व्यवहार सुनिश्चित करने के लिए हमें किसी भी समस्या को मानवीय पहलू की नजर से देखने की ज़रुरत है.

आखिर में जब दुनिया भर में सरकारें कोरोना महामारी की चुनौतियों का सामना करने में जुटी है, तब उनके सामने एक बात जो सामने लाई जानी चाहिए वो यह है कि सरकारों की जिम्मेदारी अपने नागरिकों को सिर्फ स्वास्थ्य संबंधी सेवाएं मुहैया कराने की ही नहीं है, बल्कि ज़रुरत पड़ने पर अत्याचार संबंधी अपराधों से भी उन्हें बचाने की है. विशिष्ट जोखिमों के संदर्भ में इस उद्देश्य की प्राप्ति के लिए अल्पकालिक कदमं और दीर्घकालीन उपायों पर विचार किया जाना चाहिए जिससे समाज के कमजोर तबके और हाशिए पर खड़े लोगों को ये भरोसा दिया जा सके कि किसी को भी असुरक्षित नहीं छोड़ा जाएगा. जिस वर्ष हम संयुक्त राष्ट्र संघ की 75 वीं वर्षगांठ मना रहे हैं उसमें सामूहिक कार्रवाई और वैश्विक एकजुटता हमारी प्राथमिकता होना चाहिए जिसके लिए हम प्रयासरत हैं.

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