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बांग्लादेश में आतंकवादी नेटवर्क का तेजी से बदलता स्वरूप केवल बांग्लादेश ही नहीं बल्कि भारत सहित कई अन्य पड़ोसी देशों के लिए खतरे की घंटी है।
बांग्लादेश में, आतंकवाद में शामिल होने वाले युवाओं के तरीके एवं उनकी फितरत में तेजी से बदलाव आता दिख रहा है। एक लोकप्रिय अखबार ढाका ट्रिब्यून में हाल में छपी एक लेख में दावा किया गया है कि अब केवल ‘मदरसों’ के युवक ही जिहादी भर्तियों के स्रोत नहीं रह गए हैं। अब बड़ी तादाद में विज्ञान एवं टेक्नोलॉजी पृष्ठभूमि के छात्र भी उग्रवादी समूहों में शामिल हो रहे हैं।
हाल में सुरक्षा एजेन्सियों द्वारा गिरफ्तार किए गए युवा आतंकियों में से कईयों पृष्ठभूमि विज्ञान से जुड़ी है। खबर में बताया गया कि नया जमातुल मुजाहिदीन बांग्लादेश (जेएमबी) या अनसारुल बांग्ला टीम (एटीबी) जैसे नए उग्रवादी समूहों के गिरोह में कई ऐसे युवक है जिन्होंने विज्ञान में तालीम हासिल की है। इस वर्ष मार्च में सुरक्षा एजेंसियों ने जेएमबी के नेता ओलीउज्मा उर्फ ओली को गिरफ्तार किया जो देश के एक बेहतरीन टेक्नोलॉजी संस्थान बीयूईटी से एक इलेक्ट्रिकल इंजीनियर है। एक महीने पहले उन्होंने एटीबी के आईटी प्रकोष्ठ के प्रमुख को भी गिरफ्तार किया था जो एक सॉफ्टवेयर इंजीनियर है।
इस वर्ष मार्च में सुरक्षा एजेंसियों ने जेएमबी के नेता ओलीउज्मा उर्फ ओली को गिरफ्तार किया जो देश के एक बेहतरीन टेक्नोलॉजी संस्थान बीयूईटी से एक इलेक्ट्रिकल इंजीनियर है।
अप्रैल में एक बार फिर सुरक्षा बलों ने कई आतंकवादियों को गिरफ्तार किया जिनमें से कुछ की पृष्ठभूमि विज्ञान एवं टेक्नोलॉजी की रही है। इनमें से एक प्रमुख गिरफ्तारी न्यू जेएमबी के मुस्फुकूर रहमान की थी। उसने 2005 में बीयूईटी के कम्प्यूटर साईंस विभाग में दाखिला लिया था लेकिन उसने कोर्स नहीं पूरा नहीं किया क्योंकि वह आतंकवादी समूह की ओर आकर्षित हो गया। एक दूसरी गिरफ्तारी के दौरान सुरक्षा एजेंसियों ने जेएमबी के 8 और सदस्यों को बंदी बनाया, इन उग्रवादियों में से भी कई विज्ञान एवं आईटी पृष्ठभूमि के थे। इस गिरोह के सरगना के पास कम्प्यूटर हार्डवेयर में डिप्लोमा था जबकि दूसरा एक र्साइंस ग्रेजुएट था तथा एक और आतंकवादी कम्प्यूटर ग्राफिक्स एवं हार्डवेयर में डिप्लोमा धारी था।
बांग्लादेश के शिक्षाविद अलीरियाज ने अपने शोध पत्र (कौन हैं बांग्लादेशी इस्लामी आतंकवादी) में रेखांकित किया है कि आतंकवादियों (2014-15 के बीच गिरफ्तार) में से लगभग 61 प्रतिशत समाज के मध्यवर्ग या उच्च मध्य वर्ग से जुड़े थे जिनमें एक बड़ी संख्या इंजीनियरों या विज्ञान की पढाई करने वालों की थी। रियाज का शोधपत्र मीडिया प्रकाशित डाटा पर आधारित था इस अध्ययन से पता चला कि 65 मामलों में से, जहां आतंवादियों के पेशों का जिक्र किया गया, उनमें से केवल 25 शारीरिक श्रम से जुड़े रोजगारों या मदरसा के छात्र थे। शेष उग्रवादियों में से नौ इंजीनियर, नौ छात्र, पांच शिक्षक (उनमें से एक मदरसा का शिक्षक) और दो आईटी विशेषज्ञ थे। अध्ययन में इस बात पर भी जोर दिया गया कि जिन उग्रवादियों के बारे में यह कहा गया कि उनके पेशे अलग थे, उनमें से एक बड़ी संख्या इंजीनियरिंग या विज्ञान के छात्रों की थी। उदाहरण के लिए, एक शिक्षक ने कैमिकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई की थी। इसी प्रकार, छात्रों में से एक इंजीनियरिंग कॉलेज से जुड़ा था जबकि एक अन्य विज्ञान कॉलेज का छात्र था। व्यवसाय से जुड़े आतंवादियों में से एक के पास मृदा विज्ञान मे मास्टर्स डिग्री थी जबकि दो अन्य आतंकवादियों ने आईटी का अध्ययन किया था।
विशेषज्ञों का कहना है कि नैचुरल साईंस एवं टेक्नोलॉजी की पृष्ठभूमि वाले युवकों की मौजूदगी आतंकवादी समूहों को अपने नेटवर्को को विस्तारित करने तथा हमले की तकनीकों को बेहतर बनाने के लिए अत्याधुनिक टेक्नोलॉजी प्राप्त करने में सहायता कर रही है। जुलाई 2016 में होली आर्टिसन बेकरी पर हमला उस हिंसा की हद को बताता है जिससे नई पीढ़ी के ये जिहादी अंजाम दे सकते हैं। होली आर्टिसन पर हमला देश में अब तक के सबसे खूनी आतंकी हमलों में से एक था। बंदूकधारियों का एक गिरोह एक संपन्न रेस्तरां में घुस आया और लगभग 20 लोगों की हत्या कर दी जिसमें से अधिकतर विदेशी थे। दिलचस्प बात यह है कि ये आतंकी ऐसे कुलीन परिवारों के है जहां उदार शिक्षा का माहौल है।
विशेषज्ञों का कहना है कि नैचुरल साईंस एवं टेक्नोलॉजी की पृष्ठभूमि वाले युवकों की मौजूदगी आतंकवादी समूहों को अपने नेटवर्को को विस्तारित करने तथा हमले की तकनीकों को बेहतर बनाने के लिए अत्याधुनिक टेक्नोलॉजी प्राप्त करने में सहायता कर रही है।
नैचुरल साइंस एवं टेक्नोलॉजी की पृष्ठभूमि वाले युवकों के प्रति उग्रवादी समूहों का आकर्षण कई वजहों से है। पहला, उनका ज्ञान बम बनाने में मददगार साबित होगा। दूसरा, उनका कौशल देश में एवं दुनिया भर में नेटवर्क को विस्तारित करने में सहायक होगा। और तीसरा, वे इस विचारधारा को आसानी से ग्रहण करते प्रतीत होते है जबकि मानविकी विषय (ह्यूमेनिटीज) वाले छात्र अधिक सवाल जवाब करते है।
बहरहाल, यह रूझान केवल बंग्लादेश के लिए ही अनूठा नहीं है। ब्रिटेन के अखबार गार्जियन में 3 दिसम्बर 2015 को छपे एक लेख में यह दावा किया गया था कि मध्य पूर्व एवं उत्तरी अफ्रीका में भर्ती किए गए लगभग आधे जिहादियों के पास नैचुरल साइंस या टेक्नोलॉजी की डिग्री थी। रिपोर्ट मंत दावा किया गया कि उनमें से 44 प्रतिशत के पास इंजीनियरिंग की डिग्री थी। इसके अतिरिक्त, यह भी रेखांकित किया गया कि जिन 18 ब्रिटिश मुस्लिम आतंकियों पर आतंकी गतिविधियों में संलिप्त होने का आरोप था, उनमें से 8 ने इंजीनियरिंग या आईटी की पढ़ाई की थी जबकि अन्य आतंकियों ने फार्मेसी या गणित जैसे विषयों का अध्ययन किया था। केवल एक आतंकी ने मानविकी की पढ़ाई की थी। उग्रवादी समूह वैसे युवकों की भर्ती करना पसंद करते हैं जो ‘बुद्धिमान और उत्सुक तो हों, लेकिन उनकी मंशा या आधिपत्य को लेकर कोई सवाल न करें।’
नैचुरल साईस वाली पृष्ठभूमि के छात्रों की भर्ती करने के पीछे के कारणों का विश्लेषण करते हुए, रिपोर्ट में कहा गया कि वैज्ञानिक शिक्षा के पीछे की विषय-वस्तु ज्यादातर सही या गलत, शुद्ध या अशुद्ध के समाधान पर फोकस करती है। इसलिए, छात्रों में मुद्वों की गहन छानबीन करने वाले कौशलों की कमी होती है जोकि मानविकी की पढ़ाई करने वालों के साथ यह एक सामान्य प्रचलन है। हालांकि, आभिजात्य पृष्ठभूमि वाले युवकों के उग्रवादी समूहों में शामिल होने के पीछे के कारणों या प्रेरणा की वजह पर विस्तृत अनुसंधान किए जाने की आवश्यकता है, लेकिन इस नजरिये को भी नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।
बांग्ला देश 1990 के दशक से ही आतंकवाद की समस्या से जूझ रहा है। हरकत-उल-जिहाद, बांग्ला देश को देश में पहला उग्रवादी समूह माना जाता है। इस समूह की स्थापना लौट कर वतन आने वाले अफगान जिहादियों द्वारा की गई थी। बाद के वर्षों में, मदरसों के छात्र, खासकर, जिन्हें कौमी मदरसा कहा जाता है, इस संगठन में शामिल हो गए और उन्होंने देश में उग्रवादी समूहों के लिए कैडर आधार का गठन किया। लेकिन अब, देश को कुलीन पृष्ठभूमि वाले युवकों के उग्रवादी समूहों में शामिल होने के पीछे की प्रेरणा को लेकर ताज्जुब हो रहा है।
सरकार ने देश में आतंकवाद से निपटने के लिए सख्त कदम उठाए हैं। बांग्ला देश में 2007 में जेएमबी के छह शीर्ष नेताओं को फांसी की सजा सुनाई दी गई। इस वर्ष अप्रैल में, देश में एक बार फिर आतंकी गतिविधियों में संलिप्त होने के आरोप में हाजी-बी मुफ्ती हन्नान के नेता को मौत की सजा सुनाई गई। सुरक्षा एजेन्सियों ने जेएमबी एवं एटीबी जैसे आतंकी समूहों के कई नेताओं एवं कैडरों को भी गिरफ्तार किया है। यह महसूस करते हुए कि केवल सैन्य कार्रवाई ही मजहबी उग्रवाद से निपटने के लिए पर्याप्त नहीं है, सरकार ने उग्रवादी बनने की प्रवृति के खिलाफ व्यापक रूप से एक कार्यक्रम चलाने की रूपरेखा बनाई है।
सरकार द्वारा उग्रवादी रोधी/उनमें सुधार लाने के लिए निम्नलिखित प्रयास आरंभ किए गए हैं:
इस्लामिक फाउंडेशन ने लोगों के बीच जागरुकता फैलाने के लिए देश भर में लगभग 300,000 मस्जिदों में जुम्मा की नमाज से पहले उग्रवाद विरोधी खुतबों की आपूर्ति की है। |
फाउंडेशन ने मक्का एवं मदीना के पवित्र मस्जिदों से धार्मिक गुरुओं को बुलवाया है। इन विद्वानों ने लोगों को बताया कि इस्लाम आतंकवाद की इजाजत नहीं देता। |
इस्लामिक फाउंडेशन ने सभी इमामों और मुअज्जिनों को प्रशिक्षण उपलब्ध कराया है और उग्रवाद के खिलाफ हजारों पुस्तिकाएं एवं किताबें प्रकाशित की हैं और उन्हें देश की प्रत्येक मस्जिद में वितरित किया है। |
अगस्त 2016 में, मौलाना फरीद उद्दीन मसुद, जो देश में सबसे बड़े ईद समूह का नेतृत्व करते हैं, की अगुवाई में लगभग 100,000 इस्लामी विद्वानों ने उग्रवाद के खिलाफ फतवे पर हस्ताक्षर किए और उन्हें प्रधानमंत्री शेख हसीना को सुपुर्द कर दिया। |
सरकार ने विभिन्न दूरसंचार प्रसारणों, किताबों और प्रकाशनों, जो उग्रवाद को प्रचारित करती है, के साथ पीस टीवी को प्रतिबंधित कर दिया। |
देश भर के शैक्षणिक संस्थानों के साथ परामर्श के बाद ऐसे छात्रों की फेहरिस्त तैयार की गई है, जो गैर मौजूद है या गायब हो चुके हैं। |
अभियोजकों को निर्देश दिया गया है कि वे आतंकवाद से जुड़े मामलों में सावधानी बरतें विभिन्न मंत्रालय ने क्षेत्र स्तरीय अधिकारियों को आतंकरोधी गतिविधियों के संबंद्ध में निर्देश जारी किए हैं। |
सांस्कृतिक मंत्रालय ने विभिन्न सांस्कृतिक गतिविधियों को आगे बढ़ाने की शैक्षणिक संस्थानों को सलाह दी है। फिल्म एवं प्रकाशन विभाग ने उग्रवाद के खिलाफ लगभग 18 वृत्तचित्रों का निर्माण किया है। |
कानून प्रवर्तन एजेंसियों एवं संबंधित मंत्रालयों ने उग्रवाद के नकारात्मक प्रभाव पर फोकस करते हुए टेलीविजन विज्ञापन तैयार किए है। |
स्रोतः ढाका ट्रिब्यून, 30 अप्रैल 2017
दुनिया भर में ऐसी गतिविधियों में बढ़ोतरी के बाद देश में आतंकवाद में हुए इजाफे के कारण एक मजबूत उग्रवाद रोधी कार्यक्रम आवश्यक हो गया है। कुछ सुरक्षा विश्लेषकों ने तो देश में अलकायदा एवं इस्लामिक स्टेट जैसे समूहों की उपस्थिति के बारे में भी संदेह प्रकट किया है।
बांग्लादेश ने आतंकवाद पर अंकुश लगाने में कुछ हद तक जरुर सफलता अर्जित की है लेकिन उग्रवादी समूह देश में अब भी सक्रिय बने हुए है। नए उग्रवादियों की भर्ती सुरक्षा एजेंसियों के लिए एक बड़ी चुनौती बनी हुई है क्योंकि अब उन्हें टेक्नोलॉजी के अधिक जानकार आतंकियों से निपटना पड़ता है। नए युग के आतंकवाद से निपटने के लिए सुरक्षा एजेंसियों को निश्चित रुप से अधिक तैयारी करनी होगी। आतंकरोधी प्रयासों के साथ-साथ नैचुरल साइंस एवं इंजीनियरिंग के पाठ्यक्रमों पर भी गौर करने की जरूरत है। यह न केवल बांग्लादेश के लिए आवश्यक है बल्कि पूरे उप महाद्वीप के लिए भी जरूरी है क्योंकि उनके साथ हमारे साझा सांस्कृतिक और ऐतिहासिक संबंध रहे हैं। बांग्लादेश की यह समस्या पूरे उप महाद्वीप के लिए एक बड़े खतरे की घंटी बन सकती है।
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Joyeeta Bhattacharjee (1975 2021) was Senior Fellow with ORF. She specialised in Indias neighbourhood policy the eastern arch: Bangladeshs domestic politics and foreign policy: border ...
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