Author : Satu Limaye

Published on Dec 24, 2021 Updated 0 Hours ago

ताज़ा उभरते, अनिश्चितताओं से भरे और लगातार बढ़ते टकरावों वाले इलाक़े में इन क़वायदों के सामने अनेक प्रकार की चुनौतियां हैं. 

दक्षिण पूर्व एशिया: आर्थिक, सियासी और भूराजनीतिक एकीकरण के पेचीदा होते हालात

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अंतरराष्ट्रीय स्तर पर और अमेरिका के लिए दक्षिण पूर्व एशिया की अहमियत को कम करके आंका जाता रहा है. आंकड़ों पर नज़र डालें तो दुनिया के इस हिस्से में तक़रीबन 65 करोड़ की आबादी रहती है. साझा तौर पर यहां का सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) 3 खरब अमेरिकी डॉलर के आसपास है. यहां आर्थिक विकास की दर ऊंची है और अगले दशक तक मध्यम वर्ग की आबादी दोगुनी हो जाने की उम्मीद है. दक्षिण पूर्व एशिया में 35 साल के कम उम्र वाले युवाओं की तादाद 40 करोड़ है. ये पूरा इलाक़ा विवादित, अनिश्चित और अस्थिर भूराजनीति के दौर से गुज़र रहा है. इसमें कोई शक़ नहीं है कि दक्षिण पूर्व एशिया या 10 देशों वाला दक्षिण पूर्वी एशियाई देशों का संगठन (आसियान) हिंद-प्रशांत क्षेत्र के भविष्य के लिहाज़ से बेहद अहम है. एक लंबे अर्से से हिंद-प्रशांत क्षेत्र के हालात तनावपूर्ण हैं और तेज़ी से बदल रहे हैं. ऐसे में आर्थिक नीति, राजनीतिक एकीकरण, क्षेत्रीय सुरक्षा और कूटनीति से जुड़े मसलों पर दक्षिण पूर्वी एशिया के फ़ैसलों से यहां के भावी हालात तय होंगे. लिहाज़ा आर्थिक, राजनीतिक और अंतरराष्ट्रीय मोर्चों पर दक्षिण पूर्वी एशियाई देशों की प्रमुख गतिविधियों और इन प्रयासों के सामने की चुनौतियों पर ध्यान देना ज़रूरी है. इसके साथ ही कार्यकारी और बहुपक्षीय सहयोग पर पड़ने वाले प्रभावों और सामरिक प्रतिस्पर्धा और सुरक्षा उपायों के प्रबंधन पर भी ग़ौर करने की ज़रूरत है. 

एक लंबे अर्से से हिंद-प्रशांत क्षेत्र के हालात तनावपूर्ण हैं और तेज़ी से बदल रहे हैं. ऐसे में आर्थिक नीति, राजनीतिक एकीकरण, क्षेत्रीय सुरक्षा और कूटनीति से जुड़े मसलों पर दक्षिण पूर्वी एशिया के फ़ैसलों से यहां के भावी हालात तय होंगे.

आर्थिक एकीकरण

पिछले क़रीब तीन दशकों में दक्षिण पूर्व एशिया ने आर्थिक एकीकरण और तेज़ आर्थिक विकास (20 वर्षों में तक़रीबन दोगुनी) का सफ़र तय किया है. एकीकरण और आर्थिक वृद्धि के दोहरे आयाम वाले प्रदर्शन के कारक बहुस्तरीय और पेचीदा हैं. इस सिलसिले में अक्सर कुछ चुनिंदा घटकों की मिसाल दी जाती है. इनमें घरेलू स्तर पर लाए गए सुधार और तमाम सुधारवादी फ़ैसले शामिल हैं. इनके अलावा पूंजी, सहयोग और तकनीकी सहायता वाले प्रावधानों के ज़रिए जापान की अहम भूमिका भी एक प्रमुख घटक है. ख़ासतौर से 1980 और 1990 के दशकों में शीत युद्ध के बाद के दौर में वैश्वीकरण की प्रक्रिया में इस पूरे इलाक़े में जापान की अहम भूमिका रही है. विनिर्माण और आपूर्ति श्रृंखला की महाशक्ति के तौर पर चीन के उभार और आम तौर पर अमेरिका के खुले बाज़ारों का भी दक्षिण पूर्व एशिया की आर्थिक प्रगति में बड़ा योगदान रहा है. चीन कारोबारी लिहाज़ से इस इलाक़े के तक़रीबन हरेक देश के बड़े भागीदार के तौर पर उभरा है. दूसरी ओर अमेरिका, यूरोप और जापान के साथ दक्षिण पूर्वी एशिया के कारोबारी रिश्तों में अपेक्षाकृत गिरावट देखी गई है. हाल के एक आकलन के मुताबिक चीन के साथ वैश्विक मूल्य श्रृंखला आसियान के लिए बेहद फ़ायदेमंद रही है. वैसे तो वाणिज्यिक सहयोग के तमाम मसलों में से कारोबार सिर्फ़ एक हिस्सा है, लेकिन ये कार्यकारी तालमेल के दूसरे स्वरूपों को पर्दे के पीछे धकेलने का माद्दा रखता है. मिसाल के तौर पर आसियान के साथ अमेरिका, जापान और यूरोपीय संघ के कारोबार में गिरावट की एक बड़ी वजह इन देशों की सहायक कंपनियों द्वारा स्थानीय तौर पर आसियान में अपने निवेशों में की गई बढ़ोतरी है. दरअसल ये कंपनियां आसियान में बाज़ारों और उत्पादन से जुड़ी कुशलताओं का लाभ उठाना चाहती हैं. इसी वजह से उन्होंने अपनी सहायक कंपनियों के ज़रिए यहां निवेश कर रखा है. अब सवाल ये है कि भविष्य के वाणिज्यिक सहयोगों को कौन से कारक आगे बढ़ाएंगे. मोटे तौर पर मौजूदा हालात के मद्देनज़र दक्षिण पूर्व एशिया के सामने यही गुत्थी है. क्षेत्रीय सरकारों के बीच कार्यकारी सहयोग का सबसे प्राथमिकता वाला प्रश्न भी यही है.   

दक्षिण पूर्व एशिया में बुनियादी ढांचागत परिवर्तनों के साथ-साथ नीतिगत स्तर पर अहम चुनौतियों के निपटारे की ज़रूरत है.

दक्षिण पूर्व एशिया में 25 सालों से मज़बूत विकास और लगातार बढ़ते क्षेत्रीय एकीकरण का दौर रहा है. हालांकि इलाक़े की विकास यात्रा को अब कई विपरीत परिस्थितियों से दो-चार होना पड़ रहा है. संकट पैदा करने वाले इन कारकों में अमेरिका और चीन का “अलगाव”, कोविड-19 महामारी के चलते पैदा हुई अनिश्चितताओं के अलावा बदलते और बाधित होते सप्लाई चेन समेत तमाम दूसरे रुझान शामिल हैं. दक्षिण पूर्व एशिया में बुनियादी ढांचागत परिवर्तनों के साथ-साथ नीतिगत स्तर पर अहम चुनौतियों के निपटारे की ज़रूरत है. पिछले 30 वर्षों से जारी मज़बूत विकास और एकीकरण की प्रक्रिया को जारी रखने के लिए ये क़वायद निहायत ज़रूरी है. आसियान के हिसाब से देखें तो यहां की बड़ी समस्याओं में इलाक़े में आर्थिक विकास का विविधतापूर्ण स्वरूप और उपलब्ध नीतिगत विकल्प शामिल हैं. कुछ उदाहरणों से ये बात पूरी तरह से साफ़ हो जाती है. एक तरफ़ क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक भागीदारी (RCEP) में आसियान के सभी सदस्य देश शामिल हैं तो वहीं दूसरी ओर कॉम्प्रिहैंसिव प्रोग्रेसिव ट्रांस-पैसिफ़िक पार्टनरशिप (CPTPP) से आसियान के कई देश बाहर हैं. RCEP और CPTPP दोनों ही तंत्रों का मकसद क्षेत्रीय आर्थिक एकीकरण और आर्थिक वृद्धि को बढ़ावा देना है. हालांकि दोनों व्यवस्थाओं के वजूद के बीच समानांतर रूप से कुछ और भी क़वायद जारी हैं. इनमें आर्थिक मोर्चे पर चीन का ज़ोर-ज़बरदस्ती वाला बर्ताव, क्षेत्रीय व्यापार समझौतों से जुड़ने को लेकर अबतक अमेरिका की ओर से दिखाई जाने वाली बेदिली और चीन, ताइवान और यूनाइटेड किंगडम द्वारा CPTPP से जुड़ने की कोशिशें शामिल हैं. इतना ही नहीं वैश्विक स्तर पर भी अनिश्चितताओं का दौर जारी है. इस सिलसिले में विश्व व्यापार संगठन (WTO) के सुधार से जुड़े मसले की मिसाल दी जा सकती है. दरअसल दक्षिण पूर्व एशिया के पास इतनी हैसियत नहीं है कि वो नियम-क़ायदे तय कर सके. लिहाज़ा वो अपने हितों की रक्षा और अपने लक्ष्यों को हासिल करने के लिए वैश्विक स्तर पर तय किए गए नियमों के सहारे है. सौ बात की एक बात ये है कि व्यापार के मोर्चे पर प्रगति के अभाव और खड़े होने वाले विवादों से इन देशों के लिए हालात पेचीदा हो जाते हैं. ज़ाहिर तौर पर आज कई जटिल मसले और हालात सामने आ रहे हैं. दूसरी ओर अनिश्चितताओं का माहौल भी गहरा रहा है. ये तमाम हालात दक्षिण पूर्व एशिया में विजेताओं और फिसड्डियों के नए स्वरूप गढ़ सकते हैं. इतना ही नहीं ये तमाम मसले पिछले तीन दशकों में क्षेत्रीय एकीकरण और विकास के सकारात्मक रुझानों को बदल देने का माद्दा भी रखते हैं.  

मिसाल के तौर पर एक आर्थिक विश्लेषण में दलील दी गई है कि मलेशिया, सिंगापुर, थाईलैंड और वियतनाम जैसे कुछ दक्षिण पूर्वी एशियाई देश आपूर्ति श्रृंखला से फ़ायदा उठा रहे हैं जबकि बाक़ी देशों को इस क्षेत्र में कुछ ख़ास लाभ नहीं हो रहा है. ऐसे देश प्राकृतिक संसाधनों से जुड़ी वस्तुओं की खुदाई और कारोबार पर कहीं अधिक निर्भर हैं.

राजनीतिक एकीकरण

दक्षिण पूर्व एशिया में क्षेत्रीय तौर पर दूसरी क़वायद राजनीतिक एकीकरण को लेकर चलती रही है. कंबोडिया शांति समझौते पर दस्तख़त हुए 30 साल बीत चुके हैं. मौलिक तौर पर आसियान के संस्थापक देश 30 साल पहले चीन के क्रांतिकारी किरदार और वियतनाम के प्रभाव को लेकर चिंतित थे. आज इन दोनों ही देशों को आर्थिक और कूटनीतिक तौर पर इलाक़े के भविष्य के लिए अभिन्न माना जा रहा है. इसके साथ ही सुरक्षा और बचाव के नज़रिए से भी इनको अहम किरदार के तौर पर देखा जाने लगा है. कंबोडिया को लेकर निपटारे से जुड़ी क़वायद ने आसियान में क्षेत्रीय स्तर पर तीन राजनीतिक घटनाक्रमों को जन्म दिया. पहला मूल रूप से आसियान के संस्थापक सदस्य अपने समूह में कंबोडिया, लाओस, म्यांमार और वियतनाम को शामिल कर उसका विस्तार करने में कामयाब रहे हैं. दूसरा, अतीत में शक़ की नज़रों से देखे जाने वाले और विरोधी राज्यसत्ताओं को सदस्यता देकर समूह का “विस्तार” किए जाने से आसियान की अगुवाई में विस्तृत बहुपक्षीय समूहों की स्थापना की बुनियाद रखने का काम किया है. तीसरा, भौगोलिक रूप से आसियान के विस्तार के साथ पूरे समूह में कम होते सामंजस्य की ओर भी कई हलकों का ध्यान गया है. वैसे “आसियान प्रोजेक्ट” का लक्ष्य सियासत, सुरक्षा और आर्थिक और सामाजिक-सांस्कृतिक तत्वों वाला समूह खड़ा करना है.

दक्षिण पूर्व एशिया ने वैश्विक संवाद भागीदारों और सदस्यों को आसियान की अगुवाई वाले संगठनों के साथ जोड़कर सामरिक मोर्चे पर अंतरराष्ट्रीयकरण को बढ़ावा दिया है. ऐसे जुड़ावों से दक्षिण पूर्व एशिया को कई फ़ायदे हुए हैं. इसके अलावा कार्यसूची की “मध्यस्थता” और विभिन्न संगठनों के इस्तेमाल में भी ये मददगार साबित हुआ है.

बहरहाल राजनीतिक एकीकरण के इस कार्यक्रम के रास्ते में कई कारक रुकावट बनकर खड़े हैं. दरअसल कई देश आसियान को एक दिशाहीन संगठन मानते हैं. इतना ही नहीं क्षेत्रीय चुनौतियों के समाधान ढूंढने में इसकी काबिलियत को लेकर भी संदेह जताया जाता रहा है. सदस्य देश और वहां की राज्यसत्ता या हुकूमत आसियान के उसूलों और फ़ैसलों को जब-तब ठेंगा दिखाते रहे हैं. असलियत ये है कि आसियान और उसके फ़ैसले उनके लिए बाध्यकारी नहीं हैं. इन तमाम हालातों के चलते कई नए समूह सामने आने लगे हैं. इन जमावड़ों में सबसे ताज़ा और अहम क्वॉड और ऑकस हैं. हालांकि इनमें से कोई भी समूह जानबूझकर या खुले तौर पर आसियान या आसियान की अगुवाई वाली संस्थाओं (जैसे पूर्वी एशिया शिखर सम्मेलन या आसियान देशों के रक्षा मंत्रियों की बैठक-ADDM Plus) की जगह लेने या उनकी अहमियत को कमतर करने की कोशिश नहीं करता. हालांकि दिखावे और व्यावहारिक स्तर पर इन घटनाक्रमों के नतीजे साफ़ तौर पर देखे जा सकते हैं. अब आगे दक्षिण पूर्व एशिया के भीतर और बाहर की प्रमुख शक्तियां सुरक्षा, आर्थिक और तमाम दूसरे हितों को लेकर दूसरी व्यवस्थाओं की ताक में रहेंगे. अपने भिन्न-भिन्न हित साधने के लिए इन देशों द्वारा वैकल्पिक समूहों की तलाश जारी रहेगी. 

हालांकि केवल ऑकस और क्वॉड ही दक्षिण पूर्व एशिया के राजनीतिक एकीकरण के रास्ते की एकमात्र या सबसे अहम समस्या नहीं हैं. म्यांमार या दक्षिण चीन सागर को लेकर कोई समाधान न ढूंढ पाना भी आसियान की कमज़ोरी के इकलौते सबब नहीं हैं. दरअसल सापेक्षिक आर्थिक शक्ति के गहरे रुझान, दूसरी बड़ी ताक़तों के साथ राजनीतिक और सियासी संबंध और यहां तक कि घरेलू शासन-प्रशासन से जुड़े मसले दक्षिण पूर्व एशिया के किरदारों की तकदीर और रास्तों में बदलाव ला रहे हैं. मिसाल के तौर पर एक आर्थिक विश्लेषण में दलील दी गई है कि मलेशिया, सिंगापुर, थाईलैंड और वियतनाम जैसे कुछ दक्षिण पूर्वी एशियाई देश आपूर्ति श्रृंखला से फ़ायदा उठा रहे हैं जबकि बाक़ी देशों को इस क्षेत्र में कुछ ख़ास लाभ नहीं हो रहा है. ऐसे देश प्राकृतिक संसाधनों से जुड़ी वस्तुओं की खुदाई और कारोबार पर कहीं अधिक निर्भर हैं. राजनीतिक, सुरक्षा और कूटनीतिक मोर्चों पर भी बाहरी शक्तियों के लिए आसियान में अहम किरदार के तौर पर अलग-अलग देशों का उभार हो सकता है. मिसाल के तौर पर अमेरिका के साथ-साथ जापान और दूसरी ताक़तें वियतनाम के साथ सामरिक रिश्तों में और नज़दीकी लाने की क़वायद कर रहे हैं. ज़ाहिर है कि आसियान को नए कार्यकारी माहौल में चुनौतयों का सामना करना पड़ रहा है. इसके अलावा दक्षिण पूर्वी एशिया से बाहर के देशों के साथ आसियान के कुछ सदस्य देशों के नए बन रहे समूहों से भी आसियान पर असर पड़ रहा है. सबसे बड़ी बात ये है कि दक्षिण पूर्वी एशियाई देशों के अपने तौर-तरीक़े और उनकी विकास यात्राएं आसियान देशों के राजनीतिक एकीकरण की क़वायद को और भी ज़्यादा नाज़ुक और बोझिल बना सकते हैं.  

अंतरराष्ट्रीय एकीकरण

आख़िर में दक्षिण पूर्व एशिया के अंतरराष्ट्रीय एकीकरण से जुड़ी प्रक्रिया की बात आती है. हालांकि ये पूरी क़वायद “आंतरिक रूप से” राजनीतिक एकीकरण की दिशा में किए जा रहे प्रयासों से पूरी तरह से अलग नहीं हैं. दक्षिण पूर्व एशिया ने वैश्विक संवाद भागीदारों और सदस्यों को आसियान की अगुवाई वाले संगठनों के साथ जोड़कर सामरिक मोर्चे पर अंतरराष्ट्रीयकरण को बढ़ावा दिया है. ऐसे जुड़ावों से दक्षिण पूर्व एशिया को कई फ़ायदे हुए हैं. इसके अलावा कार्यसूची की “मध्यस्थता” और विभिन्न संगठनों के इस्तेमाल में भी ये मददगार साबित हुआ है. दूसरी ओर तेज़ी से बदलते और टकरावों से भरे अंतरराष्ट्रीय माहौल में दक्षिण पूर्व एशिया के सामने अंतरराष्ट्रीय मंच पर तमाम तरह की प्रतिस्पर्धाओं के सामने सामरिक तौर पर बेपर्दा हो जाने का ख़तरा है. इनमें न केवल अमेरिका और चीन के बीच की रस्साकशी बल्कि जापान और दक्षिण कोरिया के बीच की प्रतिद्वंदिता भी शामिल है. हालांकि मौजूदा हालात में भी दक्षिण पूर्व एशिया के पास आसियान और हरेक सदस्य देश के हितों का प्रबंधन और संचालन करने के लिए पर्याप्त शक्ति और आगे बढ़ने का स्थान मौजूद है. वैसे इतना तय है कि भविष्य के कुछ हालातों मसलन “सामरिक रस्साकशी” में तेज़ी आने पर दक्षिण पूर्व एशिया पर दबाव बढ़ सकता है.  

कुल मिलाकर आर्थिक एकीकरण/विकास, क्षेत्रीय राजनीतिक एकीकरण और अंतरराष्ट्रीय एकीकरण को लेकर दक्षिण पूर्व एशिया के प्रयासों से कई फ़ायदे हासिल हुए हैं. हालांकि ताज़ा उभरते, अनिश्चितताओं से भरे और लगातार बढ़ते टकरावों वाले इलाक़े में इन क़वायदों के सामने अनेक प्रकार की चुनौतियां हैं. आसियान में कार्यकारी सहयोग, बहुपक्षीय तालमेल, सामरिक प्रतिस्पर्धाओं के प्रबंधन और सुरक्षा सुनिश्चित करने से जुड़े प्रयासों पर इन चुनौतियों का असर पड़ना तय है. 

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