Published on Jan 14, 2019 Updated 0 Hours ago

महासागरों का ऐतिहासिक महत्व विभिन्‍न राष्ट्रों और समुदायों के बीच व्यापार को सुविधाजनक बनाना है।

रायसीना संवाद | ‘धौंस’ हमारे महासागरों पर हुकूमत का आधार नहीं हो सकती: नार्वे प्रधानमंत्री

नॉर्वे की प्रधानमंत्री सुश्री एर्ना सोलबर्ग ने रायसीना डायलॉग में कहा कि ‘जिसकी लाठी उसकी भैंस’ अथवा ‘धौंस’ का सिद्धांत हमारे महासागरों या किसी भी अन्य चीज को अपने नियंत्रण में रखने या उस पर हुकूमत करने का आधार नहीं हो सकता है।

सुश्री सोलबर्ग चौथे रायसीना संवाद के दौरान उद्घाटन भाषण दे रही थीं जिसका आयोजन विदेश मंत्रालय और ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन, नई दिल्ली द्वारा किया गया। रायसीना संवाद दरअसल भू-राजनीति और भू-अर्थशास्त्र पर भारत का प्रमुख सम्मेलन है।

इस सम्‍मेलन में प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी, विदेश मंत्री श्रीमती सुषमा स्वराज और राज्य मंत्री जनरल वी.के. सिंह ने भी शिरकत की। दुनिया भर के कई वरिष्ठ सरकारी अधिकारियों ने भी इस सम्‍मेलन में भाग लिया।

नॉर्वे और भारतीय उपमहाद्वीप के बीच ऐतिहासिक समुद्री जुड़ाव या संपर्कों का उल्‍लेख करते हुए प्रधानमंत्री सोलबर्ग ने यह प्रस्ताव रखा कि महासागर दोनों देशों के बीच सहयोग के एक प्रमुख क्षेत्र के रूप में उभर सकते हैं।

उन्‍होंने कहा, “इस सदी के मध्य तक दुनिया की आबादी बढ़कर दस अरब के स्‍तर पर पहुंच जाने की संभावना है। इसका मतलब यही है कि पर्याप्त भोजन, रोजगार, ऊर्जा और आर्थिक विकास सुनिश्चित करने के लिए हमें निश्चित रूप से महासागरों पर अपना ध्‍यान केंद्रित करना चाहिए।”

प्रधानमंत्री सोलबर्ग ने अंतर्राष्ट्रीय समुदाय से ‘समुद्र के कानून पर संयुक्त राष्ट्र संविदा’ का पालन करने की भी अपील की। उन्‍होंने कहा, “सफल सहयोग को निश्चित तौर पर समुद्र से जुड़ी सुदृढ़ कानूनी और अपेक्षित एवं संस्थागत रूपरेखा पर आधारित होना चाहिए।”

उन्‍होंने कहा कि भारत और नॉर्वे दोनों ही नियम-आधारित अंतर्राष्ट्रीय व्‍यवस्‍था के पक्षधर हैं।

प्रधानमंत्री सोलबर्ग ने आर्कटिक महासागर में अंतर्निहित व्‍यापक क्षमता पर भी प्रकाश डाला। उन्‍होंने कहा कि यह “उत्तरी अमेरिका, यूरोप और एशिया के बीच सहयोग के लिए एक अहम कार्यक्षेत्र” बन गया है। उन्होंने इस नए और तेजी से विकसित होते भौगोलिक क्षेत्र में मजबूत भारतीय सहभागिता का आह्वान किया।

प्रधानमंत्री सोलबर्ग ने कहा कि महासागरों का ऐतिहासिक महत्व विभिन्‍न राष्ट्रों और समुदायों के बीच व्यापार को सुविधाजनक बनाना है।

उन्‍होंने कहा, “मुक्त व्यापार की बदौलत व्यापक समृद्धि सुनिश्चित होने के बावजूद आज बड़ी संख्‍या में लोग स्‍वयं को भूमंडलीकरण के लाभों से वंचित मानते हैं।” प्रधानमंत्री सोलबर्ग ने आगाह करते हुए कहा कि वैश्‍वीकरण के लाभ न मिलने पर अंतर्राष्ट्रीय कानून एवं संस्थानों, मानवाधिकारों और सामूहिक सुरक्षा के सिद्धांतों के प्रति सम्मान कम हो जाने का अंदेशा है। उन्होंने व्यापार मानकों में सुधार का आह्वान किया, ताकि स्थानीय समुदायों को भी वैश्विक विकास और वैश्वीकरण के लाभ अवश्‍य मिल सकें। उन्होंने यह भी कहा कि सतत विकास लक्ष्यों को प्राप्त कर लेने से “उन कई असुरक्षाओं को दूर करने में काफी मदद मिलेगी जो आज लोगों को काफी परेशान कर रही हैं।”

ORF के अध्यक्ष संजय जोशी ने अपने स्वागत भाषण में प्रधानमंत्री सोलबर्ग के कथन को ही एक तरह से दोहराया। उन्होंने यह सवाल किया कि क्या हम ‘वैश्वीकरण और विकास के लिए एक ऐसे नए प्रतिमान’ की खोज कर सकते हैं जो अगले छह अरब लोगों को लाभान्वित करेगा।

इसी तरह ओआरएफ के अध्यक्ष सुंजॉय जोशी ने अंतर्राष्ट्रीय समुदाय से 21वीं सदी की संभावनाओं को साकार करने का आह्वान किया। उन्होंने कहा कि धन, शक्ति एवं प्रौद्योगिकी के कहीं और उन्‍मुख हो जाने के कारण टकराव नहीं होना चाहिए, इसके बजाय उन्हें अवश्‍य ही नई उपयुक्‍त व्यवस्था का मार्ग प्रशस्‍त करना चाहिए।

ORF के अध्‍यक्ष और रायसीना संवाद के संचालक (क्यूरेटर) समीर सरन ने 600 से भी अधिक प्रतिनिधियों एवं वक्ताओं सहित उन 1,800 प्रतिभागियों का धन्यवाद किया, जो चौथे रायसीना संवाद में शिरकत करने के लिए दुनिया भर से यात्रा करके यहां पहुंचे।

उन्‍होंने कहा कि टीम रायसीना ने इस वर्ष 80 से भी अधिक परस्‍पर संवादों का संचालन किया है: 41 पैनल, 7 मुख्‍य संबोधन, 3 अनौपचारिक वार्तालाप, 25 से भी अधिक स्टूडियो पैनल और 9 संबंधित कार्यक्रम। इनका उद्देश्‍य उन सवालों का हल ढूंढ़ना था जिन्‍होंने वैश्विक समुदाय को बेचैन कर दिया है।

माननीया विदेश मंत्री श्रीमती सुषमा स्वराज ने धन्यवाद ज्ञापन करते हुए कहा कि प्रधानमंत्री एर्ना सोलबर्ग की यात्रा ने “दोनों देशों के बीच बहुआयामी और प्रगतिशील साझेदारी को रेखांकित किया है।”

उन्‍होंने कहा, “रायसीना संवाद का स्‍वरूप कुछ इस तरह से तैयार किया गया जिससे कि हमारे चारों ओर हो रहे अहम बदलावों के मद्देनजर अभिनव समाधानों और साझेदारियों की तलाश की जा सके।”

माननीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ-साथ नई दिल्‍ली में एकत्रित अन्य राजनेताओं और प्रतिनिधियों का धन्यवाद करते हुए उन्होंने विश्वास व्यक्त किया कि रायसीना संवाद के तहत अगले दो दिनों में होने वाले विचार-विमर्श के दौरान हमारी आम चुनौतियों का सामना करने के लिए अनगिनत नए विचार या आइडिया पेश किए जाएंगे और इसके साथ ही अंतर्दृष्टि भी प्रदान की जाएगी।

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