Published on Apr 25, 2017 Updated 0 Hours ago

आतंकवाद और आपराधिकता एक दूसरे से गहरे जुड़े हुए हैं और उन्हें एक ऐसी अर्थव्यवस्था से मदद मिलती है जो अफगानिस्तान को अस्थिर करती है तथा क्षेत्रीय सुरक्षा को कमतर बनाती है।

अफगान नेतृत्व के अंतर्गत संपन्न हो शांति प्रक्रिया

वैश्विक और क्षेत्रीय सुरक्षा खतरों की जटिलता और अफगानिस्तान में उनके आपस में जुड़ जाने से न केवल क्षेत्रीय बल्कि क्षेत्र से बाहर के हितधारकों की पेशानी पर भी बल पड़ने शुरु हो गए हैं। इनमें से कुछ हितधारकों ने अफगानिस्तान की रुकी हुई शांति प्रक्रिया को फिर से मजबूत बनाने के प्रयासों में तेजी लाने की मांग की है। अफगान सरकार अपने नजदीकी पड़ोसी देशों द्वारा किसी भी ऐसे ईमानदार प्रयासों का स्वागत करेगी जो अफगानिस्तान में वर्षों से थोपे गए युद्ध एवं हिंसा को समाप्त करने में मदद करेंगे जिनसे अफगानिस्तान के शहरों और गांवों में रोजाना लाखों लोगों की जानें जा रही हैं। वास्तव में, ऐसे प्रयासों से मिलने वाली सफलता न केवल अफगानिस्तान को स्थिर बनाएगी बल्कि यह क्षेत्रीय सुरक्षा भी सुनिश्चित करेगी जो लगातार बढ़ती आर्थिक आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए जरुरी है। साथ ही, एशिया की हªदय स्थली माने जाने वाले देशों को आर्थिक रुप से सक्षम बनाने के लिए यह एक पूर्व शर्त भी है।

नेशनल यूनिटी गवर्नमेंट (एनयूजी) अफगानिस्तान की वैध, चुनी हुई सरकार है। यह देश के प्रगतिशील संविधान के तहत समान अधिकारों के साथ सभी अफगाानियों का प्रतिनिधित्व करती है। एनयूजी को अफगानी लोगों का प्रबल समर्थन प्राप्त है जो कि आतंकवाद और उग्रवाद के खिलाफ लड़ाई में एक महत्वपूर्ण कारक है। यही वजह है कि तालिबान के पास अफगानी लोगों का प्रतिनिधित्व करने का कोई राष्ट्रीय और नैतिक अधिकार नहीं है। अफगानिस्तान के लोग तालिबान और इस्लाम — जो शांति, सहिष्णुता और सहअस्तित्व का एक मजहब है — के नाम पर उनके विदेशी आतंकवादी गुटों द्वारा समर्थित उग्रवाद को खारिज करते हैं।

अफगान सरकार का शांति में दृढ़ विश्वास है और उसने उन सशस्त्र समूहों से समझौता करने का हर संभव प्रयास किया है जिन्होंने हिंसा छोड़ने, आतंकवादी नेटवर्क एवं सरकार प्रायोजित आतंकवाद के साथ अपने संबंधों को तोड़ने तथा सार्थक बातचीत के जरिये शांति के मार्ग पर चलने की इच्छा जताई है। इस संबंध में, अफगान सरकार ने हाल ही में अफगानों के बीच आपसी संवाद एवं बातचीत की प्रक्रिया के जरिये हज्ब ए इस्लामी के साथ काबुल में एक सफल राजनीतिक समझौता किया है।

अफगान सरकार द्वारा शांति के लिए पुरजोर प्रयासों और इसे मिली सफलता से उत्साहित होकर अभी तक पाकिस्तान में रह रहे 650,000 अफगान विस्थापित पिछले एक वर्ष के दौरान अपने वतन लौट आए हैं। यह अफगान सरकार को शांति की अपनी कोशिशों को जारी रखने की एक ठोस उम्मीद प्रदान करती है जोकि अफगानिस्तान में एवं अफगानिस्तान से बाहर रह रहे प्रत्येक अफगानी की दिली इच्छा है।

वास्तव में, यह अफगानिस्तान के नेतृत्व एवं अफगानिस्तान के स्वामित्व वाली शांति प्रक्रिया और अफगान किस प्रकार आगे बढ़े हैं, इसका एक स्पष्ट उदाहरण है। अफगान सरकार प्रतिबंध की सूची से श्री गुलबुद्दीन हिकमतयार को हटाने के लिए संयुक्त राष्ट्र (यूएन) सुरक्षा परिषद सदस्यों एवं प्रतिबंध समिति की शुक्रगुजार है। साथ ही, इसी संबंध में रूसी फेडेरेशन के प्रति भी उनके सतत समर्थन के लिए कृतज्ञ है। इस प्रक्रिया के तहत अफगान सरकार के वर्तमान प्रयासों का फोकस उस समझौते के कार्यान्वयन पर है जो पूरे अफगानिस्तान में ठोस शांति की दिशा में सहयोग देगा।

गृह युद्ध नहीं

अफगानिस्तान के संघर्ष को किसी भी प्रकार एक गृह युद्ध नहीं माना जा सकता। वास्तव में अफगानिस्तान के निवासी अपने राष्ट्रपति अशरफ गनी एवं मुख्य कार्यकारी अब्दुल्ला अब्दुल्ला के साथ मजबूती से खड़े हैं, क्योंकि वह क्षेत्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय जड़ों वाले आतंकवाद के खिलाफ एक न्यायोचित, रक्षात्मक लड़ाई का नेतृत्व कर रहे हैं। संयुक्त राष्ट्र द्वारा घोषित 20 आतंकवादी समूहों — जिसमें एशिया की हªदय स्थली कहे जाने वाले इस क्षेत्र के कई लड़ाकू शामिल हैं — अफगानिस्तान में सक्रिय हैं। दुख की बात है कि अफगानिस्तान आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में क्षेत्रीय और वैश्विक युद्ध भूमि बना हुआ है क्योंकि ये सभी आतंकवादी समूह एक दूसरे के साथ मिल जुल कर अपने काम को अंजाम देते हैं और अलग अलग या फिर एक साथ मिल कर वे देश में सुरक्षित पनाहगारों का निर्माण करने का प्रयास करते हैं, जहां से वे क्षेत्रीय एवं वैश्विक आतंकी हमले करते हैं।

अफगानिस्तान के संघर्ष को किसी भी प्रकार एक गृह युद्ध नहीं माना जा सकता।

आतंकवाद और आपराधिकता एक दूसरे से गहरे जुड़े हुए हैं और उन्हें एक ऐसी अर्थव्यवस्था से मदद मिलती है जो अफगानिस्तान को अस्थिर करती है तथा क्षेत्रीय सुरक्षा को कमतर बनाती है। इसके अतिरिक्त, सुरक्षित पनाहगारों की उपलब्धता और अफगानिस्तान के बिल्कुल बगल में हिंसक उग्रवाद के प्रति संस्थागत समर्थक देश में एक घातक और विध्वंसात्मक युद्ध जारी रखने में मदद करते हैं। बिना ऐसे आतंकवाद समर्थक बुनियादी ढांचे के अफगानिस्तान में संघर्ष ज्यादा दिनों तक जारी नहीं रह सकता।

बहरहाल, इसके बावजूद, 2015 एवं 2016 में अफगानिस्तान ने चार देशों के समन्वय समूह (क्यूसीजी) की बैठकों में सक्रियतापूर्वक भाग लिया जिसमें पाकिस्तान, चीन एवं अमेरिका शामिल थे। अफगास्तिान के निवासियों ने उम्मीद जताई कि यह प्रक्रिया विभिन्न देशों द्वारा की गई प्रतिबद्धताओं के कारण सार्थक साबित होगी। वास्तव में, क्यूसीजी प्रक्रिया की सफलता एक सुस्पष्ट रूप से परिभाषित एवं सहमति प्राप्त बेचमार्को पर निर्भर करती थी जिन्हें पूरा नहीं किया गया। धीरे धीरे इससे यह साबित हुआ कि प्रक्रिया की प्रमुख चुनौती कुछ लोगों के लिए अच्छे और बुरे आतंकवादियों के बीच एक नीतिगत पसंद बनी हुई है। हालांकि, आतंकवाद एक ऐसा समान संकट है जो पूरे क्षेत्र पर हावी है और अगर कोई एक देश उसके खिलाफ मजबूती से खड़ा नहीं होता तो दूसरे देशों के आतंकविरोधी प्रयासों के अपेक्षित परिणाम सामने नहीं आएंगे।

प्रमुख प्रेरक

अफगानिस्तान में आज की स्थिति को पांच प्रमुख प्रेरकों का आधार प्राप्त है। पहला, अंतरराष्ट्रीय समुदाय लगातार देश की स्थिरता एवं सतत विकास को समर्थन दे रहे हैं। अमेरिका अंतरराष्ट्रीय नागरिक एवं सैन्य सहायता प्रयासों में अग्रणी बना हुआ है जिसके प्रति अफगान के नागरिक एवं सरकार उसके कृतज्ञ हैं।

इसके अतिरिक्त, अफगानिस्तान की सरकार रिज़ोल्यूट सपोर्ट मिशन (आरएसएम) को समर्थन देने के लिए पिछले वर्ष जुलाई में वारसॉ शिखर सम्मेलन में विभिन्न देशों द्वारा की गई प्रतिबद्धताओं की भी सराहना करती है, जो उनके देश की सुरक्षा एवं बचाव करने में अफगान के सैन्य बलों को प्रशिक्षित करने एवं उन्हें सैन्य सुसज्जित करने में मदद करती है। इतनी ही महत्वपूर्ण प्रतिबद्धता अफगानिस्तान के पश्चिमी एवं सहयोगी देशों तथा जापान समेत कई देशों द्वारा पिछले वर्ष अक्तूबर में ब्रसेल्स सम्मेलन में भी की गई थी, जो अफगानिस्तान में लगातार पुनर्निमाण एवं विकास प्रयासों से संबंधित थी।

दूसरा, अफगानिस्तान मुस्लिम विश्व के साथ अपने संबंधों को काफी महत्व देता है तथा कुछ मुस्लिम देशों द्वारा प्राप्त समर्थन की काफी सराहना करता है। 2015 में आतंकवाद — जोकि इस्लाम के मूल सिद्धांतों का उल्लंघन करता है — की सभी कार्रवाइयों के खिलाफ सऊदी अरब के ग्रैंड मुफ्ती द्वारा जारी फतवा एवं उसी वर्ष मक्का अल मुकराम में इस्लाम एवं आतंकवाद विरोध पर मुस्लिम वर्ल्ड लीग ग्लोबल सम्मेलन द्वारा जारी विज्ञप्ति ने करगर तरीके से उग्रवादियों के गैर-इस्लामी बयानों का विरोध करना शुरु कर दिया है।

जेद्दाह में हाल में आयोजित इंटरनेशनल कांट्रैक्ट ग्रुप (आईसीजी) की बैठक में, जिसकी सह अध्यक्षता अफगानिस्तान एवं जर्मनी ने की तथा जिसकी मेजबानी ऑर्गेनाइजेशन फॉर इस्लामिक कोपरेशन (ओआईसी) ने की थी, अफगानी शिष्टमंडल ने सऊदी अरब राजशाही द्वारा अफगानिस्तान पर शीघ्र आयोजित किए जाने वाले एक अंतरराष्ट्रीय मुस्लिम उलेमा सम्मेलन की ओआईसी की घोषणा का स्वागत किया। यह सम्मेलन अफगानिस्तान में इस्लाम के नाम पर की जाने वाली हिंसा एवं आतंकवाद की किसी भी कार्रवाई की निंदा करेगा जबकि अफगानिस्तान सरकार द्वारा स्थायी शांति की दिशा में किए गए प्रयासों का जोरदार तरीके से समर्थन करेगा।

तीसरा, अफगान अपने देश को एक उभरते एशिया का केंद्र मानते हैं जहां आतंकवाद न केवल उसके लिए बल्कि भारत, चीन, रूस, ईरान, मध्य एशिया एवं अन्य देशों समेत पूरे महादेश की सुरक्षा के लिए लगातार और समान खतरा बना हुआ है। इस संबंध में, अफगानिस्तान ने अभी हाल में कजाक, जो इस क्षेत्र के सबसे खतरनाक आतंकवादियों में एक माना जाता है, समेत कई विदेशी आतंकवादियों को गिरफ्तार किया है। कजाक ने बताया कि किस प्रकार वैश्विक और क्षेत्रीय आतंकी नेटवर्क इस क्षेत्र के देशों से युवा पुरुषों एवं महिलाओं की भर्ती करते हैं और उन्हें अपने ही लोगों का नृशंस हत्यारा बन जाने का यकीन दिला देते हैं। यही वजह है कि अफगानिस्तान अब मजबूती से यह विश्वास करता है कि जब तक इस क्षेत्र के देश अपने समान शत्रु के खिलाफ एक समान रणनीति तैयार करने के लिए हाथ नहीं मिलाते, एशिया में व्याप्त यह प्रमुख सुरक्षा खतरा समाप्त नहीं हो सकता।

अफगान अपने देश को एक उभरते एशिया का केंद्र मानते हैं जहां आतंकवाद न केवल उसके लिए बल्कि भारत, चीन, रूस, ईरान, मध्य एशिया एवं अन्य देशों समेत पूरे महाद्वीप की सुरक्षा के लिए लगातार और समान खतरा बना हुआ है।

चौथे और पांचवें प्रेरकों में अफगानिस्तान के पड़ोसी देशों के और उसके अपने आंतरिक मामले शामिल हैं। आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में एक ईमानदार क्षेत्रीय सहयोग की कमी सबसे बड़ी चुनौती बनी हुई है। अफगानिस्तान में स्थिरता से जुड़े सभी हितधारकों को इस पर सर्वसहमति बनानी चाहिए कि किस प्रकार कुछ देशों के बर्ताव में बदलाव लाने का प्रयास किया जाना चाहिए। इन देशों को अपनी आत्म पराजित करने वाली मानसिकता में बदलाव लाकर शांति को प्राथमिकता देनी चाहिए और अफगानिस्तान को संघर्ष का बिंदु बनाने के बजाये उसे सहयोग के बिंदु के रूप में स्वीकार करना चाहिए। एशिया की इस ह्दयस्थली क्षेत्र में बेशुमार प्राकृतिक एवं मानव संसाधन छुपे हैं जिनका दोहन अफगानिस्तान के तात्कालिक एवं निकट पड़ोस के दायरे के भीतर के सभी देशों की साझा प्रगति एवं सतत विकास के लिए क्षेत्रीय सहयोग के जरिये किया जाना चाहिए।

भविष्य की योजना 

संयुक्त राष्ट्र की वैश्विक आतंकवाद-रोधी रणनीति से यह स्पष्ट है कि आतंकवाद महज एक अल्पकालिक खतरा नहीं है। यह इस क्षेत्र एवं पूरे विश्व की शांति और समृद्धि के लिए एक स्थायी खतरा है। इसके लिए आवश्यक है कि इस क्षेत्र एवं इससे आगे के क्षेत्रों के हितधारक भी सामने आएं और इसके समाधान के लिए आवश्यक सामूहिक संकल्प करें। अफगानिस्तान के संदर्भ में उन्हें तालिबान को एक सुस्पष्ट और समेकित संदेश देना चाहिए: कि हम शांति चाहते हैं और इसके लिए हम लगातार प्रयास करते रहेंगे: कि तालिबान को उसके आतंकी एवं हत्याओं के अभियान में किसी का भी समर्थन नहीं मिलेगा: और यह कि हम चाहते हैं कि वे हिंसा का परित्याग करें, क्षेत्रीय एवं वैश्विक आतंकवादी नेटवर्कों के साथ अपने संबंध खत्म करें और शांति वार्ताओं के लिए उपलब्ध अवसरों को गले लगाएं।

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