Author : Sushant Sareen

Published on Dec 05, 2020 Updated 0 Hours ago

पाकिस्तान की नेशनल असेंबली में भाषण देते हुए, उसके पूर्व अध्यक्ष अयाज़ सादिक़ ने ये राज़ खोला कि तब घबराए हुए इमरान ख़ान की सरकार ने अपने देश के विपक्षी दलों को हालात की जानकारी देने के लिए, बंद कमरे में एक बैठक बुलाई थी.

पाकिस्तान: जहां पैर हिलाने से भी कहा जाता है भूकंप

27 फ़रवरी 2019 को भारत और पाकिस्तान के बीच हवाई झड़प, जिससे पहले भारत ने बालाकोट में जैश-ए-मोहम्मद के आतंकी ठिकाने पर एयर स्ट्राइक की थी, के दो महीने बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गुजरात में एक चुनावी सभा को संबोधित किया था. सभा में आए लोगों से संवाद करते हुए, प्रधानमंत्री मोदी ने ये राज़ खोला कि पाकिस्तान को इस बात की चेतावनी दी गई थी कि वो पकड़े गए भारतीय पायलट विंग कमांडर अभिनंदन, जिनका विमान पाकिस्तान के क़ब्ज़े वाले कश्मीर में क्रैश कर गया था, को कोई नुक़सान न पहुंचाए.

क़रीब डेढ़ साल बाद, पाकिस्तान के एक दिग्गज राजनेता ने न केवल नरेंद्र मोदी के दावे की पुष्टि की, बल्कि इस चक्कर में ये भी बताया कि उस वक़्त भारत के आक्रामक रुख़ अपनाने और हमला करने के ख़ौफ़ से पाकिस्तान के हुक्मरान किस तरह कांप रहे थे.

प्रधानमंत्री मोदी ने दावा किया था कि ‘ख़ुशक़िस्मती से पाकिस्तान ने एलान कर दिया था कि वो भारतीय पायलट को लौटा देगा. वरना वो क़त्ल की रात होती.’ उस समय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बयान को एक चुनावी भाषण के तौर पर देखा गया था और इसे लेकर कोई ख़ास चर्चा नहीं हुई थी. लेकिन, उस घटना के क़रीब डेढ़ साल बाद, पाकिस्तान के एक दिग्गज राजनेता ने न केवल नरेंद्र मोदी के दावे की पुष्टि की, बल्कि इस चक्कर में ये भी बताया कि उस वक़्त भारत के आक्रामक रुख़ अपनाने और हमला करने के ख़ौफ़ से पाकिस्तान के हुक्मरान किस तरह कांप रहे थे.

पाकिस्तान की नेशनल असेंबली में भाषण देते हुए, उसके पूर्व अध्यक्ष अयाज़ सादिक़ ने ये राज़ खोला कि तब घबराए हुए इमरान ख़ान की सरकार ने अपने देश के विपक्षी दलों को हालात की जानकारी देने के लिए, बंद कमरे में एक बैठक बुलाई थी. इस मीटिंग का मक़सद भारत के सामने अमन का प्रस्ताव रखने से पहले विपक्षी दलों का समर्थन हासिल करना था. अयाज सादिक़ के मुताबिक़, उस मीटिंग में पाकिस्तान के आर्मी चीफ़ जनरल क़मर जावेद बाजवा भी मौजूद थे. डर के मारे उनके पसीने छूट रहे थे और पैर कांप रहे थे. जनरल बाजवा के साथ पाकिस्तान के विदेश मंत्री शाह महमूद क़ुरैशी भी थे, जिन्होंने विपक्षी दलों से गुज़ारिश की कि वो भारतीय पायलट अभिनंदन को छोड़ने की रज़ामंदी दे दें, वरना रात नौ बजे के बाद भारत पाकिस्तान के ऊपर हमला कर देगा. विपक्ष के एक और नेता, ख्वाजा आसिफ़ जो पाकिस्तान के रक्षा मंत्री भी रहे थे, ने दावा किया कि बाजवा ने उस मीटिंग में इशारा किया था कि उन्हें भारत को किसी न किसी तरह मनाना होगा, ताकि तनाव कम हो सके.

पाकिस्तान की हक़ीक़त इस तरह बेपर्दा होने के बाद, उम्मीद के मुताबिक़ पाकिस्तान आर्मी के प्रवक्ताओं ने पाकिस्तान के ‘स्वतंत्र’ मीडिया पर अपने आक़ाओं के बचाव में बयान देने शुरू कर दिए. यहां तक कि पाकिस्तान की सेना के आधिकारिक प्रवक्ता को भी हड़बड़ी में एक प्रेस कांफ्रेंस करनी पड़ी, ताकि ‘सच्चाई को सबके सामने’ रखा जा सके. लेकिन, तब तक तो पाकिस्तान की हुकूमत और उसकी फौज की इज़्ज़त को पलीता लग चुका था और बड़ी चालाकी से पाकिस्तान आर्मी द्वारा बनाई गई उसकी उस छवि पर बट्टा लग चुका था, जिसके तहत वो ख़ुद को पाकिस्तानी क़ौम और उसकी सरहदों की सबसे ईमानदार और ताक़तवर निगहबान कहती रही है. अब ये एक रणनीति के तहत किया गया-क्योंकि पाकिस्तान के विपक्षी दल और ख़ास तौर से पाकिस्तान मुस्लिम लीग नून (PMLN) के प्रमुख और पूर्व प्रधानमंत्री नवाज़ शरीफ़ लगातार पाकिस्तानी फ़ौज के आला अधिकारियों पर हमले कर रहे हैं- या फिर अयाज़ सादिक़ के बयान को ग़लत समझा गया-क्योंकि सादिक़ ने बाद में सफाई दी कि, उस मीटिंग में बाजवा के नहीं बल्कि असल में इमरान ख़ान के पैर डर के मारे कांप रहे होंगे.

इमरान ख़ान और उनके ‘सेलेक्टर्स’ यानी पाकिस्तान की आर्मी ने ख़ुद ही अपने आपको इस मुश्किल में डाला है. जब से पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री नवाज़ शरीफ़ ने पाकिस्तान की सियासत की लक्ष्मण रेखा पार करते हुए जनरल बाजवा और ख़ुफ़िया एजेंसी ISI के प्रमुख पर हमला किया है, तब से ही पाकिस्तान की सत्ताधारी पार्टी तहरीक़-ए-इंसाफ़ विपक्ष के प्रति और हमलावर हो गई है.

अब ये बातें तो महज़ अटकलें लगाने की हैं. पाकिस्तानी अवाम की बात करें, तो उसके ख़याल में ये दोनों ही बातें एक जैसी हैं- पाकिस्तान, भारत के दबाव में झुक गया और भारत ने पाकिस्तान पर दबाव बनाकर, उसे पकड़े गए भारतीय पायलट को छोड़ने पर मजबूर कर दिया. इमरान ख़ान और मौजूदा आर्मी चीफ जनरल बाजवा के कट्टर समर्थकों के बीच भी उन्हें लेकर संशय के बीज तो बो ही दिए गए. पाकिस्तान की ‘सेलेक्टेड सरकार’ और उनके सेलेक्टर पाकिस्तान आर्मी को लगा ये सदमा तब और गहरा हो गया, जब ख़ुद को सबसे बड़ा वफ़ादार साबित करने के लिए इमरान ख़ान की सरकार में कैबिनेट मंत्री फवाद चौधरी ने पाकिस्तान की संसद में अपने इस एलान से अपनी ही सरकार और सेना को मुश्किल में डाल दिया कि कि फ़रवरी 2019 में भारत के पुलवामा में हुआ हमला, इमरान ख़ान की हुकूमत की बड़ी उपलब्धियों में से एक थी.

एक तरह से देखें तो इमरान ख़ान और उनके ‘सेलेक्टर्स’ यानी पाकिस्तान की आर्मी ने ख़ुद ही अपने आपको इस मुश्किल में डाला है. जब से पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री नवाज़ शरीफ़ ने पाकिस्तान की सियासत की लक्ष्मण रेखा पार करते हुए जनरल बाजवा और ख़ुफ़िया एजेंसी ISI के प्रमुख पर हमला किया है, तब से ही पाकिस्तान की सत्ताधारी पार्टी तहरीक़-ए-इंसाफ़ विपक्ष के प्रति और हमलावर हो गई है. इमरान ख़ान विपक्षी दलों पर पाकिस्तान के दुश्मनों (यानी भारत) के सुर में बोलने के आरोप लगा रहे हैं. अब जबकि पाकिस्तान की सियासत में देश से ग़द्दारी करने के इल्ज़ाम मिसाइलों की तरह फेंके जा रहे हैं, तो विपक्ष का इमरान हुकूमत पर पलटवार करना लाज़मी था. असल में अयाज सादिक़ का इरादा, अपने बयान से आर्मी चीफ़ का मज़ाक उड़ाने का नहीं था. बल्कि वो तो अपनी पार्टी यानी PMLN को ज़्यादा देशभक्त साबित करना चाह रहे थे. अयाज़ सादिक़ असल में कहना ये चाह रहे थे कि जब देश बेहद मुश्किल में पड़ा था, जब देश की सरकार और फ़ौज दोनों ही घबराए हुए थे और उन्हें विपक्षी दलों के समर्तन की दरकार थी, तब विपक्षी दलों ने आगे आकर अपना समर्थन सरकार और आर्मी को दिया था. विपक्षी दलों ने देशभक्ति का परिचय देते हुए, पाकिस्तान की सरकार को इस मुश्किल से निकाला था, जबकि वो अपनी हुकूमत के इस आकलन से इत्तेफ़ाक़ नहीं रखते थे कि भारत, पाकिस्तान पर हमला करने वाला है. ये ठीक वैसी ही बात थी, जैसा कारगिल युद्ध के दौरान उस वक़्त पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज़ शरीफ़ ने किया था. जब उस समय पाकिस्तान की फ़ौज हार के मुहाने पर खड़ी थी, तो नवाज़ शरीफ़ ने वॉशिंगटन जाकर बिल क्लिंटन से मुलाक़ात की थी. तब नवाज़ शरीफ़ ने कारगिल की चोटियों से अपनी फौज को वापस बुलाने का एलान करते हुए फौज की ग़लतियों का इल्ज़ाम अपने सिर ले लिया था.

ज़ाहिर तौर पर अयाज़ सादिक़ अपने असल मक़सद में नाकाम रहे. अपनी पार्टी की इमेज चमकाने और इमरान सरकार व इसके फौजी समर्थकों पर हमला करने की कोशिश में उन्होंने इमरान-बाजवा की जोड़ी को कमज़ोर दिल वाला बताया, जो हालात से घबराकर भारत के आगे झुक गए. लेकिन, सादिक़ के इस बयान से पाकिस्तान के जनरल बहुत ग़ुस्से में हैं और नवाज़ शरीफ़ की पार्टी को इसकी भारी क़ीमत चुकानी पड़ सकती है. ऐसा भी हो सकता है कि सरकारी मशीनरी का इस्तेमाल करते हुए अयाज़ सादिक़ और फ़ौज के ख़िलाफ़ बयान देने वालों को ऐसा सबक़ सिखाया जाए, जो फौज को ललकारने वाले दूसरे नेताओं के लिए भी नज़ीर बने. पाकिस्तान के सूचना मंत्री ने पहले ही इस बात के संकेत दे दिए हैं. लेकिन, ऐसा होता है तो विपक्षी नेताओं के फौज और उनके समर्थन से चल रही इमरान सरकार पर हमले रुकेंगे या फिर पाकिस्तान के विपक्षी दल और तीखे तेवर अपना लेंगे और हुकूमत व आर्मी को शर्मसार करने वाले और राज़ बाहर आएंगे, ये तो आने वाले समय में ही पता चलेगा. अयाज़ सादिक़ के एक साथी, राना सनाउल्लाह ने पहले ही हवा का रुख़ ये कह कर बता दिया कि अभिनंदन को रिहा करने का फ़ैसला जनरल बाजवा ने लिया था और संसद में इसका एलान करने की ज़िम्मेदारी इमरान खान के सिर मढ़ दी थी.

साफ़ है कि विपक्ष का मुंह बंद करने की इमरान सरकार और पाकिस्तानी फ़ौज की हर कोशिश अब तक उल्टी पड़ी है. अब तो पाकिस्तान आर्मी पर खुलकर ये इल्ज़ाम लगाए जा रहे हैं कि उसने क़्वेटा, पेशावर और पाकिस्तान के दूसरे हिस्सों में बम धमाके करा कर फाल्स फ्लैग हमलों को अंजाम दिया, जिससे कि पाकिस्तान डेमोक्रेटिक मूवमेंट (PDM) के झंडे तले देश के विपक्षी दलों के आंदोलन में बाधा डाली जा सके. PDM के अध्यक्ष मौलाना फ़ज़लुर्रहमान के छोटे भाई और सीनेटर मौलाना अता-उर-रहमान ने हाल ही में पाकिस्तान की सीनेट में एक विस्फोटक भाषण दिया था, जिसमें मौलाना ने न केवल पाकिस्तान की आर्मी पर ये इल्ज़ाम लगाया था कि वो बम धमाकों के ज़रिए PDM के आंदोलन को नुक़सान पहुंचाना चाहती है, बल्कि ये चेतावनी भी दी थी अगर आर्मी के जनरल मुल्क की राजनीति में दख़लंदाज़ी कर रहे हैं, तो फिर उन्हें इसका अंजाम भुगतने के लिए भी तैयार रहना होगा. अन्य विपक्षी दलों ने भी PDM के मंच का इस्तेमाल करते हुए फ़ौज पर ज़ुबानी हमले किए हैं. कई नेताओं ने तो और आगे बढ़कर बलूचिस्तान की आज़ादी की मांग भी कर डाली है.

पाकिस्तान की फ़ौज ने दशकों तक अपने ख़ौफ़ के बूते, अपने मुल्क पर राज किया है. अब अचानक उसे दिख रहा है कि देश के सियासी लीडर, आला फ़ौजी अधिकारियों पर हमले करने में ज़रा भी नहीं हिचक रहे हैं. मौजूदा और रिटायर हो चुके जनरलों (जिनमें से ज़्यादातर अपनी सेना के अनधिकृत प्रवक्ता के तौर पर काम करते हैं) का ग़ुस्सा इस बात से और भड़क उठा है कि आज विपक्ष के नेता अपने बयानों में फ़ौज के आला अधिकारियों और निचले दर्जे के फ़ौजियों के बीच साफ़ तौर पर फ़र्क़ कर रहे हैं.

ख़बरें तो ये भी हैं कि पाकिस्तान की फ़ौज की ओर से नवाज़ शरीफ़ और दूसरे विपक्षी नेताओं से संपर्क करने की कोशिश की गई है, जिससे कि वो पाकिस्तानी फ़ौज के आला अधिकारियों के प्रति अपने कड़े रुख़ को थोड़ा नरम कर लें. 

पाकिस्तान की आर्मी विपक्षी नेताओं की इस चालाकी को अपने अधिकारियों और आम फ़ौजियों भीतर दरारें डालने की कोशिशों के तौर पर देख रही है. वहीं, पाकिस्तान के राजनेता अपनी इस चाल के ज़रिए एक क़ानून (ख़ास तौर से Art.63(1)(g) ) से बचने की कोशिश कर रहे हैं, जिससे वो एक संस्था के तौर पर फ़ौज पर निशाना साधने के इल्ज़ाम से बच सकें. तकनीकी तौर पर, जब तक कोई इस क़ानून की व्याख्या इस तरह से न करे कि जनरल बाजवा और उनके मातहत ISI चीफ ही पाकिस्तान की फ़ौज हैं, तब तक उन पर निशाना साधने को एक संस्था के रूप में पाकिस्तान आर्मी का मज़ाक़ उड़ाना या अपमानित करना नहीं माना जा सकता. सच तो ये है कि पाकिस्तान के विपक्षी नेता अपने भाषणों में फ़ौज की शान में क़सीदे पढ़ते हैं और मुल्क के लिए उनकी शहादतें गिनाते हुए फ़ौज को पूरा समर्थन देने का वादा करते हैं. पर, इसके साथ साथ पाकिस्तान के विपक्षी दल एक संस्था के तौर पर पाकिस्तान की फ़ौज पर दबाव भी बढ़ाते जा रहे हैं कि वो ‘इमरान ख़ान की सेलेक्टेड सरकार’ का बचाव करना बंद करे.

इसमें कोई दो राय नहीं कि दबाव बढ़ रहा है. इमरान सरकार की ओर से विपक्ष के ख़िलाफ़ जिस तरह के बयान आ रहे हैं, उसी से लगता है कि विपक्ष के लगातार अटैक करने से वो किस क़दर परेशान है. ख़बरें तो ये भी हैं कि पाकिस्तान की फ़ौज की ओर से नवाज़ शरीफ़ और दूसरे विपक्षी नेताओं से संपर्क करने की कोशिश की गई है, जिससे कि वो पाकिस्तानी फ़ौज के आला अधिकारियों के प्रति अपने कड़े रुख़ को थोड़ा नरम कर लें. अब तक नवाज़ शरीफ़ ने तो जनरलों को कोई रियायत देने से इनकार कर दिया है. इस बीच पाकिस्तान के आर्मी चीफ ये संदेश देने की कोशिश कर रहे हैं कि न केवल फ़ौज उनके साथ मज़बूती से खड़ी है, बल्कि आर्मी पूरी ताक़त से इमरान ख़ान का भी समर्थन कर रही है. अयाज़ सादिक़ के भाषण के एक दिन बाद, जनरल बाजवा ने इमरान ख़ान से मुलाक़ात की थी. और फ़ौज के प्रवक्ता ने एलान किया था कि ‘आर्मी के जनरलों को सामान्य फ़ौजियों से अलग नहीं किया जा सकता. वो एकजुट हैं और रहेंगे.’

हालात को देखकर ऐसा लग रहा है कि पाकिस्तान एक अनजान सियासी डगर पर चल पड़ा है. अब न केवल पाकिस्तान की फ़ौज के प्रभुत्व और सियासत में उसकी दख़लंदाज़ी को चुनौती दी जा रही है, बल्कि अलग अलग सियासी दलों के बीच क़ाज़ी बनने की फ़ौज की भूमिका को भी ऐसी चोट पहुंचाई जा रही है, जैसा पहले कभी नहीं हुआ था. न सिर्फ़ पाकिस्तान की फ़ौज बल्कि उसके अवाम के लिए भी, ये बिल्कुल अनजान डगर है. फ़ौज जितना ही अपनी ‘सेलेक्टेड हुकूमत’ के बचाव में उतरेगी, उतना ही विपक्षी दलों को इमरान ख़ान के साथ साथ फ़ौज पर हमला करने का मौक़ा मिलेगा. मुल्क की मुसीबतों और कुव्यवस्था के लिए फ़ौज भी उतनी ही ज़िम्मेदार ठहराई जाएगी, जितनी वहां की सरकार. इसके उलट, जितना ही विपक्ष आर्मी के जनरलों पर हमले करेगा, उतना ही फ़ौज के लिए मौजूदा हुकूमत के बचाव (कुछ तो अपनी इमेज बचाने के लिए और कुछ विपक्षी दलों को संदेश देने के लिए भी) करना मजबूरी बनता जाएगा. ज़ाहिर है, ऐसे हालात को अनिश्चित काल के लिए बने रहने देना संभव नहीं है. किसी न किसी को तो झुकना पड़ेगा. सवाल ये है कि क्या विपक्ष के लगातार हमलों से फ़ौज की टांगें फिर से कांपेंगी और वो इमरान ख़ान का बचाव करना बंद करेगी? या फिर पाकिस्तान के जनरल, हुकूमउदूली करने वाले नेताओं से छुटकारा पाने के लिए, एक बार फिर से मुल्क पर क़त्ल की रात का क़हर बरपाएंगे? फ़ौरी तौर पर, या आगे चलकर, विकल्प कोई भी आज़माया जाए, इसके अंजाम ज़रूर देखने को मिलेंगे. दिलचस्प दौर में जीने का चीनी श्राप, पाकिस्तान एक बार फिर से भुगत रहा है.

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