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नस्लीय आधार पर नेपाल में दूसरे नंबर के प्रांत को दिए गए नये नाम मधेश प्रदेश, भविष्य में एक दुविधाजनक स्थिति पैदा करेगी?
17 जनवरी को, नेपाल के द्वितीय प्रांत की प्रांतीय सभा ने द्वितीय प्रांत को मधेस प्रदेश और जनकपुर को उसकी राजधानी के तौर पर दो तिहाई बहुमत के आधार पर पारित कर दिया. उस दिन मतदान करने वाले 99 प्रांतीय सभा के सदस्यों में से, 78 मत जनकपुर के समर्थन मे पड़े; जबकी 80 मत प्रांत को मधेश नाम दिए जाने के पक्ष में पड़े. सितंबर 28 को प्रख्यापित, नेपाल के संघीय लोकतान्त्रिक गणराज्य संविधान के अंतर्गत, इस प्रांत को सांख्यिकी नाम प्रांत द्वितीय दिया गया और अस्थायी तौर पर जनकपुर को इस प्रांत की राजधानी घोषित की गई.
द्वितीय प्रांत को मधेश प्रदेश का नाम दिए जाने के संबंध में अपनी टिप्पणी देते हुए, पूर्व उप प्रधानमंत्री और लोकतांत्रिक साम्यवादी पार्टी के वरिष्ट नेता, राजेन्द्र महतो ने कहा कि नवगठित नए मधेश प्रदेश, नेपाल की संघवाद की दिशा में किए जा रहे प्रयास में, एक मील का पत्थर साबित होगा.
नेपाली संविधान के अंतर्गत, इस संघीय ढांचे के तहत, हर प्रांत को ये अधिकार है कि उनके प्रांतीय असेंबली में दो तिहायी बहुमत के आधार पर वे अपने प्रांत का नामांकन और साथ ही उसकी राजधानी का चयन कर सकते है. इस आधार पर सभी पांचों प्रांत ने, जिनमें प्रांत 3, प्रांत 4, प्रांत 5, प्रांत 6 और प्रांत 7 शामिल हैं उन्होंने सफलतापूर्वक अपने-अपने प्रांत का नामांकन किया. प्रांत प्रथम का नामांकन किया जाना अभी शेष है, हालांकि, उन्होंने अपने प्रांत की राजधानी का चयन पहले से ही कर रखा है.
प्रांतीय सभा सदस्यों द्वारा द्वितीय प्रांत को दिए जाने वाले नाम ‘मधेश प्रदेश’ का देश के नागरिकों ने खुले दिल से स्वागत किया है. द्वितीय प्रांत को मधेश प्रदेश का नाम दिए जाने के संबंध में अपनी टिप्पणी देते हुए, पूर्व उप प्रधानमंत्री और लोकतांत्रिक साम्यवादी पार्टी के वरिष्ट नेता, राजेन्द्र महतो ने कहा कि नवगठित नए मधेश प्रदेश, नेपाल की संघवाद की दिशा में किए जा रहे प्रयास में, एक मील का पत्थर साबित होगा. मधेश प्रदेश के मुख्यमंत्री लाल बाहु राऊत ने कहा कि द्वितीय प्रांत को दिए गए नाम मधेश प्रदेश ने, नेपाली इतिहास में पहली बार अपनी मधेशी जनता को खुद की अपनी एक पहचान दी है. उसी तरह से, जनता समाजवादी पार्टी के नेता उपेन्द्र चौहान ने द्वितीय प्रांत को दिए गए मधेश प्रांत की संज्ञा को मधेशी आंदोलन की भावना का सम्मान किये जाने के तौर पर स्वीकार किया.
मधेश प्रदेश में रहने वाले नागरिकों को हमेशा से ये शिकायत रही है कि राज्यों द्वारा उनके साथ हमेशा से पक्षपात की गई है, चूंकि प्रशासन के विभिन्न पायदानों, जिसमें एक्ज़ुक्यूटिव, वैधानिक, न्यायिक, सुरक्षा एजेंसी और विदेश मामले शामिल हैं, उनमें उनके ओर से समुचित प्रतिनिधित्व की कमी रही है.
यद्यपि, भूमि क्षेत्र के आधार पर, नेपाल के सातों प्रांतों में मधेश प्रदेश सबसे छोटा प्रांत है, पर वह बाकी सभी प्रांतों की तुलना में सबसे ज़्यादा आबादी वाला इलाका है. तराई क्षेत्रों के 22 जिलों में से कुल 8 ज़िले, जिनमें सप्तरी, सिराहा, धनुषा, महोत्तरी, सर्लाही, रौतहल, बारा, और परसा शामिल है, ये इस प्रदेश के अधीन आते है. मधेश प्रदेश की राजधानी जनकपुर की सीमा, उत्तर स्थित पूर्वी वेस्ट हाइवे के नज़दीक ढलकेवर से जुड़ती है, पूर्व में कमला नदी से, पश्चिम में मिथिला माधमिक प्रक्रिमा रोड से, और दक्षिण में नेपाल-भारत सीमा से जुड़ रही है. मधेश प्रदेश की बहुसंख्यक आबादी मैथिली और भोजपुरी भाषा में बात करती है. उनकी विशिष्ट संस्कृति, भाषा और पहचान की वजह से, देश के बाकी अन्य छह राज्यों से हर मायनों में ये प्रदेश काफी भिन्न है. अन्य प्रांतों की तुलना में इस प्रदेश का देश की जीडीपी एवं रेवेन्यू अथवा राजस्व में योगदान भी काफी ज़्यादा है.
ग़ौर करने वाली बात ये है कि, सांस्कृतिक पहचान के आधार पर द्वितीय प्रांत को दिया गया मधेश प्रदेश का नाम नेपाली राजनीति में हलचल पैदा कर सकती है. क्योंकि देश के बाकी अन्य प्रदेशों को उनका नाम या तो बहने वाली नदियों अथवा भौगोलिक क्षेत्रों के आधार पर दिया गया है. चूंकि, नेपाल में विभिन्न जातीय गुट या राष्ट्रीयता वाले लोग रहते है, संभव है कि इस घटना के बाद वे भी मधेश प्रदेश की ही तरह से जातीयता के आधार पर अपने लिये अलग-अलग प्रदेशों की मांग उठा सकते हैं.
मधेश प्रदेश में रहने वाले नागरिकों को हमेशा से ये शिकायत रही है कि राज्यों द्वारा उनके साथ हमेशा से पक्षपात की गई है, चूंकि प्रशासन के विभिन्न पायदानों, जिसमें एक्ज़ुक्यूटिव, वैधानिक, न्यायिक, सुरक्षा एजेंसी और विदेश मामले शामिल हैं, उनमें उनके ओर से समुचित प्रतिनिधित्व की कमी रही है. राजनीतिक रूप से, विभिन्न राजनीतिक दलों में उनका प्रतिनिधित्व करने वाले लोगों का योगदान समुचित नहीं रहा है. राष्ट्रीय प्रशासन में अधिकार, प्रतिनिधित्व और स्वायत्ता और राजनीतिक संरचना को सुरक्षित करने के लिए, इस प्रांत के नागरिकों नें 2015-16 के मधेश आंदोलन के वक्त लगभग छह महीनों के लिये आर्थिक नाकेबंदी का आह्वान किया था. हालांकि, 2015-16 में हुए मधेश आंदोलन मुख्यतः विफल रही थी कारण की उनके प्रमुख मांगों पर कोई ध्यान नहीं दिया गया था. फिर भी, इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता है कि मधेशी नागरिकों के दबाव की वजह से ही नेपाली संविधान संघीय ढांचे को अपनाने को तैयार हुआ, जिसके अंतर्गत 753 स्थानीय ग्राम काउंसिल/नगरपालिका स्थानीय स्तर पर, सात प्रांतीय लेवल पर और एक केन्द्रीय स्तर पर कार्य कर रहा है.
पूर्व में, नेपाल सरकार ने मधेशी नेताओं के “एक मधेश, एक प्रदेश” की मांग पर सहमति जतायी थी और “एक मधेश,एक प्रांत” को पूर्ण स्वायत्त राज्य का अधिकार दिया जाएगा. परंतु, बाद में इस सहमति को अमल में नहीं लाया जा सका.
हालांकि, ये देश संघीय, लोकतान्त्रिक गणतंत्रिय संविधान को अपनाने का दावा करती है, प्रांतीय एवं स्थानीय सरकारों को किसी भी प्रकार की अतिरिक्त शक्ति प्रदान नहीं की गई है. विकास के लिए ज़रूरी हर छोटे और बड़े संसाधनों के आवंटन एवं सिविल सेवकों की आपूर्ति के लिए, इन प्रांतीय एवं स्थानीय निकायों को केन्द्रीय सरकार की दया पर आश्रित रहना पड़ता है. देखने में ऐसा लगता है कि, राजनीतिक ढांचे को लोकतांत्रिक तरीके से डिजाइन किया गया है, पर सच्चाई ये है कि ये देश अब भी बिल्कुल वैसे ही केन्द्रीकृत तरीके से कार्य कर रहा है जैसे वो पूर्व में एकीकृत अवस्था में कार्य किया करती थी.
देश के तीन पारिस्थितिक क्षेत्रों, जैसे पहाड़ी क्षेत्र, पर्वतीय क्षेत्र और मधेश/ तराई के वो क्षेत्र जो मधेशी प्रांत के पूर्व में स्थित मेची नदी से पश्चिम स्थित महाकाली नदी, उत्तर स्थित हिमालय के शिवालिक रेंज/अंदरूनी तराई से दक्षिण में भारत की सीमा से सटे बिहार और उत्तरप्रदेश राज्य तक फैली हुई है. हालांकि, इस लोकतांत्रिक ढांचे में, इस मधेश प्रदेश को विभिन्न टुकड़ों में विभाजित किया गया है. सिवाये मधेश प्रांत के उन बाईस में से आठ ज़िलों के जो पर अपना आधिपत्य रखती है, मधेशी क्षेत्र के शेष हिस्सों को बाकी अन्य चार पर्वतीय प्रांतों में शामिल कर लिया गया था.
इसलिए, व्यापक परिप्रेक्ष्य में, ज़्यादातर मधेसी नेता, जिनमें महंत ठाकुर और राजेन्द्र महतो भी शामिल है, का अब भी ये सोचना है कि मधेश क्षेत्र, एकीकृत तौर पर इन आठ जिलों तक की सीमित नहीं है. तराई क्षेत्र में, देश के विस्तृत फ्रेमवर्क के तहत, पूर्व से पश्चिम तक समान संस्कृति और पहचान कायम है. पूर्व में, नेपाल सरकार ने मधेशी नेताओं के “एक मधेश, एक प्रदेश” की मांग पर सहमति जतायी थी और “एक मधेश,एक प्रांत” को पूर्ण स्वायत्त राज्य का अधिकार दिया जाएगा. परंतु, बाद में इस सहमति को अमल में नहीं लाया जा सका. द्वितीय प्रांत को दिए गए मधेश प्रदेश की पहचान ने मधेशियों को काफी उत्साहित किया है. ऐसी कोई भी प्रगति नेपाली राजनीति पद्धति में, एक नई तरंग प्रवाहित करेगी इसलिए कि इसके उपरांत बाकी अन्य प्रांतों के विभिन्न जातीय गुट भी चाहेंगे कि इस आधार पर बाकी अन्य प्रदेशों का निर्धारण किया जाना चाहिए. हालांकि, जातिगत आधार पर,किसी प्रांत का नामांकन अथवा स्थापना अपने आप में अति महत्वपूर्ण नहीं है. जो महत्वपूर्ण है वो ये कि इस लोकतान्त्रिक ढांके के अंतर्गत एक ऐसा माहौल तैयार किया जाना चाहिए जहां विभिन्न प्रांतों को, वित्तीय और प्रशासनिक मुद्दों दोनों ही में, पूर्ण स्वायत्ता मिल सके. ऐसी आशा की जा सकती है कि देश का राजनीतिक नेतृत्व, इस नज़रिए को समझेगा और संघीय, लोकतान्त्रिक और गणतांत्रिक व्यवस्था को मज़बूती प्रदान करने की दिशा में प्रांतीय और स्थानीय निकायों को उनके लिए ज़रूरी अधिकार अथवा शक्ति प्रदान करेंगे.
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Hari Bansh Jha was a Visiting Fellow at ORF. Formerly a professor of economics at Nepal's Tribhuvan University, Hari Bansh’s areas of interest include, Nepal-China-India strategic ...
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