Published on Oct 07, 2020 Updated 0 Hours ago

अभी यह कहना कि हम लोग सुधार की राह पड़ चल पड़े हैं, बहुत सुधार हो गया है, ज़ल्दबाजी होगी.

अर्थव्यवस्था में और सुधार की दरकार

इस वित्त वर्ष में अप्रैल और मई दो महीने पूरी तरह लॉकडाउन रहने से अर्थव्यवस्था ठप रही़ जून में लॉकडाउन में थोड़ी छूट मिली, लेकिन उसमें भी बहुत-सी दिक्कतों का सामना करना पड़ा़, क्योंकि लंबे समय तक बंद रहने के बाद बड़े-बड़े कल-कारखानों को चालू करना इतना आसान नहीं होता है. इसी कारण जून में भी अर्थव्यवस्था लगभग ठप ही रही. उसके बाद जुलाई-अगस्त में स्थिति में थोड़ा सुधार हुआ. हालांकि, इसे सामान्य नहीं कहा जा सकता़ आज भी स्थिति सामान्य नहीं हुई है, क्योंकि अभी भी कई तरह के प्रतिबंध लागू है..

मांग कम होने से उत्पादन भी कम हो रहे है.. अर्थव्यवस्था में जो सकारात्मक संकेत दिख रहे हैं, दरअसल वह बंदी के बाद फिर से उत्पादन के शुरू होने का असर है. ऐसा तो होना ही था़ रेलवे में भी मार्च के बाद सुधार होने की बात कही जा रही है, तो यह तो होना ही था. क्योंकि, रेलवे भी लॉकडाउन में ठप पड़ा हुआ था. जब ट्रेनें चलने लगीं, तो रेलवे की आमदनी तो बढ़ेगी ही.

यदि तिमाही की बात छोड़ भी दें, तो सितंबर मध्य से नवंबर मध्य तक का समय अर्थव्यवस्था के लिए बहुत महत्वपूर्ण है, ख़ासकर अक्तूबर का महीना़ दुर्गापूजा, दीवाली और दूसरे पर्व-त्योहारों का मौसम होने से इस समय ख़ूब खरीदारी होती है, नतीजा बिक्री बढ़ती है., जिससे अर्थव्यवस्था को गति मिलती है.

पिछले साल के मुकाबले भी देखें तो इस वर्ष ज्यादा वृद्धि होनी तय है, क्योंकि पिछले वर्ष की वृद्धि पेंडिंग रह गयी थी. मान लीजिये, किसी उत्पादक को अपने उद्योग के लिए किसी वस्तु की आवश्यकता थी और उसने लॉकडाउन से पहले रेलवे के जरिये उसे बुक किया था, लेकिन लॉकडाउन के कारण ट्रेन की आवाजाही रुक गयी़, और जैसे ही लॉकडाउन खुला, तो वह सामान उत्पादक तक पहुंचाया गया़ तो यह वृद्धि और लॉकडाउन के बाद जो नयी बुकिंग हुई, दोनों के कारण ही रेलवे की स्थिति में सुधार दिखायी दे रहा है., जो स्वाभाविक है. यदि ऐसा नहीं होता, तो चिंता वाली बात होती.

अर्थव्यवस्था का अभी जो आंकड़ा आया है, वह अप्रैल-मई-जून की तिमाही का आंकड़ा है., इसकी गहराई से पड़ताल की जरूरत है. जुलाई-अगस्त-सितंबर, जो दूसरी तिमाही है, उसका आंकड़ा नवंबर में आयेगा. इस तिमाही का परिणाम बहुत महत्वपूर्ण होगा, यानी अर्थव्यवस्था में सुधार के आंकड़े को लेकर अभी हमें थोड़ा इंतजार करना होगा. पहली तिमाही के परिणाम के आधार पर कुछ भी कहना अभी सही नहीं होगा़ दूसरी तिमाही और उसके बाद अक्तूबर-नवंबर-दिसंबर तीसरी तिमाही का आंकड़ा बहुत महत्वपूर्ण होगा.

यदि तिमाही की बात छोड़ भी दें, तो सितंबर मध्य से नवंबर मध्य तक का समय अर्थव्यवस्था के लिए बहुत महत्वपूर्ण है, ख़ासकर अक्तूबर का महीना़ दुर्गापूजा, दीवाली और दूसरे पर्व-त्योहारों का मौसम होने से इस समय ख़ूब खरीदारी होती है, नतीजा बिक्री बढ़ती है., जिससे अर्थव्यवस्था को गति मिलती है. इसके बाद दिसंबर मध्य से जनवरी मध्य तक का समय भी बहुत महत्व रखता है., क्योंकि नये वर्ष के उपलक्ष्य में भी लोग घूमने-फिरने जाते हैं, ख़र्च करते है.. हालांकि, यह दीवाली के स्तर से छोटा होता है. इस वर्ष लोगों का घूमना तो पहले के मुकाबले कम होगा, लेकिन ख़रीदारी तो हाेगी. दिवाली और नये वर्ष के उपलक्ष्य में खरीदारी होने की पूरी संभावना है, जो एक अच्छी बात है. यही वो आंकड़े हैं, जो निर्णायक साबित होंगे.

अभी यह कहना कि हम लोग सुधार की राह पड़ चल पड़े हैं, बहुत सुधार हो गया है, ज़ल्दबाजी होगी. इसके लिए नवंबर वाला और उसके बाद की तिमाही के परिणाम की प्रतीक्षा करनी होगी़ हर महीने और तीमाही के आंकड़े को बार-बार देखने की अभी ज़रूरत है. इसके बाद ही अगले वर्ष फरवरी-मार्च में हम ये कह सकते हैं कि अर्थव्यवस्था की दशा क्या है. फरवरी-मार्च वाली तिमाही में यदि हम नकारात्मक से निकल पाते हैं, शून्य पर भी आ जाते हैं, तभी जाकर हम कह पायेंगे कि अर्थव्यवस्था में कुछ सुधार हुआ है.

जहां तक निर्यात की बात है, तो उससे बहुत ज्यादा उम्मीद नहीं दिख रही है. निर्यात तो तभी होगा और बढ़ेगा, जब दूसरे देश के लोग ख़रीदारी करेंगे. महामारी का प्रभाव तो दुनियाभर में पड़ा है. ऐसे में निर्यात पर बुरा असर पड़ेगा, वहां किसी तरह के सुधार की संभावना अभी नहीं दिख रही है. यदि निर्यात में थोड़ी-बहुत वृद्धि हो भी जाये, तो वह इतना नहीं होगा कि उससे जीडीपी में वृद्धि दर्ज हो़ क्योंकि अभी जो पहली तिमाही का आंकड़ा आया है, उसके अनुसार, आयात में भी गिरावट आयी है. आयात में केवल तेल नहीं आता है, बल्कि बहुत से मशीनरी इक्विपमेंट आते है़ं, जो आयातित वस्तुओं का बड़ा हिस्सा होते है़ंं, इसलिए आयात का गिरना अच्छी बात नहीं है., ख़ासकर अाज की स्थिति में.

अभी तक सरकार ने जो पैकेज दिया है, उसमें उपभोक्ता मांग का हिस्सा बहुत कम है. प्रत्यक्ष लाभ के लिए सरकार को आठ लाख करोड़ का पैकेज देने की ज़रूरत है

रोजगार की समस्या अभी भी बरकरार है, क्योंकि बहुत से लाेगों की नौकरी चली गयी है. अभी जो भी काम-काज हो रहे हैं, जो भी कल-कारखाने चल रहे हैं, वहां भी 50 प्रतिशत कर्मचारियों से ही काम चलाया जा रहा है. पचास प्रतिशत लोगों के पास तो अभी भी काम नहीं है. यदि लोगों के पास काम नहीं होगा, तो उन्हें पैसे की तंगी होगी, ऐसे में मांग का सृजन कहां से होगा. लोग खरीदारी कहां से करेंगे़ इसका असर वस्तुओं के उत्पादन पर भी पड़ेगा. उत्पादन के कम होने का असर दूसरी तिमाही के आंकड़े में निश्चित तौर पर देखने को मिलेगा.

तो यहां सरकार द्वारा रोजगार सृजन को लेकर काम करने की जरूरत है. मांग में वृद्धि हो, इसके लिए लोगों के हाथ में नकद देना बहुत ज़रूरी है. जन वितरण प्रणाली के तहत बीपीएल कार्डधारकों को नि:शुल्क राशन मुहैया कराया जाये, ताकि उनके खाने-पीने की समस्या दूर हो़ इससे उनके हाथ में जो पैसा बचेगा, उससे हो सकता है कि वह कुछ न कुछ खरीदारी करे़ साथ ही, यह सुनिश्चित करना ज़रूरी है कि सरकार जो पैसा दे रही है, वह सही हाथों में पहुंचे़ दूसरा, सभी उद्योगों के लिए सरकार को इनपुट टैक्स, जीएसटी को कम करने की जरूरत है, ताकि उद्योगों के लाभ में थोड़ी वृद्धि हो.

अभी तक सरकार ने जो पैकेज दिया है, उसमें उपभोक्ता मांग का हिस्सा बहुत कम है. प्रत्यक्ष लाभ के लिए सरकार को आठ लाख करोड़ का पैकेज देने की ज़रूरत है. मनरेगा के आवंटन को बढ़ाने और प्रति बीपीएल परिवार 1500 से 2000 प्रतिमाह नकद भुगतान करने की ज़रूरत है, इससे अर्थव्यवस्था बच जायेगी. इसके अलावा सरकार घरेलू और एनआरआइ के लिए कोविड बॉण्ड जारी करे, फॉरेन क्रेडिट मार्केट में ब्याज़ दर कम है, वहां से पैसा लेने की कोशिश करे, डेफिसिट फाइनेंस करे और उस पैसे को मार्केट में डाले, तो इससे अर्थव्यवस्था में सुधार होगा.

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