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ऑस्ट्रेलिया, नए अमेरिकी प्रशासन को इस मामले में अहम सुझाव देने में सक्षम होगा कि वो कैसे इंडो-पैसिफिक या हिंद-प्रशांत के क्षेत्र में रचनात्मक रूप से अपनी भागीदारी बढ़ा सकता है.
ये मुमकिन है कि अमेरिका की नवनिर्वाचित बाइडेन प्रशासन की प्राथमिकता सूची में कुछ समय के लिए विदेश नीति पर विशेष ध्यान नहीं दिया जाए. हो सकता है कि बाइडेन प्रशासन इस समय प्राथमिकता की नज़र से विदेश नीति को थोड़े समय के लिए नज़रअंदाज़ कर दें क्योंकि इस समय उनके लिए कोरोनोवायरस के दुष्प्रभावों से निपटने, अर्थव्यवस्था के पुनर्निर्माण और अमेरिकी समाज में बढ़ते मनमुटाव को कम करना पहली प्राथमिकता के तौर पर उभर सकती है. यह जानते हुए कि सुरक्षा सहयोग के मामले में अमेरिका के लिए ऑस्ट्रेलिया एक बेहद अहम सहयोगी है, इस वजह से अमेरिका की विदेश नीति और रणनीतिक सोच में उस देश की प्रासंगिकता और जगह हमेशा बरकरार रहेगी. ऑस्ट्रेलिया का महत्व अमेरिका के लिए कभी भी कम नहीं होगा. लेकिन ऑस्ट्रेलियाई विश्लेषकों के मुताबिक, “ऑस्ट्रेलिया और गठबंधन को लेकर कोई अहम कदम उठाना भले नए राष्ट्रपति की प्राथमिकता सूची में अभी नहीं हो, लेकिन ऐसा नहीं है कि नए प्रशासन में हमारी मौजूदगी नहीं दिखेगी.”
इसके अलावा, विश्लेषकों का कहना है कि , “ऑस्ट्रेलिया, अमेरिकी गठबंधन का एक अहम हिस्सा बना हुआ है – जबकि ट्रंप शासन के दौरान यह सत्य और प्रबल हुआ है – ऐसे में ऑस्ट्रेलिया 21 वीं शताब्दी के भू-राजनीतिक तनावग्रस्त इलाके के हॉट ज़ोन में है.” और, चीन हमेशा की तरह एक केंद्रीय रणनीतिक और आर्थिक प्रतिस्पर्धी बना रहेगा. लेकिन ओबामा युग की सामरिक संतुलन की नीतियां और ऑस्ट्रेलिया जैसे क्षेत्रीय सहयोगी के साथ घनिष्ट संबंध बनाने पर ज़ोर पहले जैसा ही रहेगा.
ये कहा जा रहा है, कि हिंद-प्रशांत की रणनीति को लेकर कोई खास बदलाव नहीं किया जाएगा, जिस लिहाज़ से ऑस्ट्रेलिया पहले की तरह ही इस रणनीति का अहम हिस्सा बना रहेगा. ऑस्ट्रेलिया, नए प्रशासन के लिए इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में रचनात्मक रूप से किस प्रकार अपनी भागीदारी बढ़ा सकेगा, इसके लिए सुझाव देने में सक्षम होगा.
हाल के वर्षों में इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में अमेरिका की बढ़ती सक्रियता, और तनावपूर्ण इलाकों में अमेरिका की दखलअंदाज़ी के कारण क्वॉड यानी क्वाड्रीलेटरल सिक्योरिटी डायलॉग जैसे लघु और बहुपक्षीय पहल को आगे बढ़ाया गया है. अपने चुनाव प्रचार अभियान के दौरान बाइडेन ने भी बहुपक्षीय मामलों में सक्रियता बढ़ाने पर ज़ोर दिया था. इसलिए, भविष्य में क्वॉड जैसे मंच, जहां ऑस्ट्रेलिया एक महत्वपूर्ण भागीदार है और जिसे हाल ही में मंत्री स्तर तक ले जाया गया है, उसे देखा जाना बाकी है. ऑस्ट्रेलिया में कई विश्लेषकों का मानना है कि “बाइडेन क्षेत्रीय गठबंधन को बनाए रखने में ट्रंप के मुकाबले ज्य़ादा निपुण होंगे, जिससे एशिया में शांति बनाए रखने में मदद मिलेगी. “एबीसी न्यूज की रिपोर्ट की मानें तो विदेश नीति में आक्रमकता की थोड़ी कमी और बाइडेन की जीत के साथ सामान्य स्थिति की वापसी से ऑस्ट्रेलिया अब राहत की सांस ले रहा है.
बहुपक्षवाद और वैश्विक संस्थानों के प्रति ट्रंप प्रशासन की बेरूख़ी ने ऑस्ट्रेलिया को हतोत्साहित कर दिया था, यही वजह है कि पेरिस समझौते जैसे बहुपक्षीय मंचों में अमेरिका की वापसी का ऑस्ट्रेलिया समेत दक्षिण प्रशांत के छोटे-छोटे देश स्वागत करेंगे. बाइडेन ने साफ किया है कि जलवायु को लेकर नीति बनाना उनकी प्राथमिकता होगी. कार्बन उत्सर्जन में कटौती का भी उन्होंने वादा किया है. पैसिफिक आइलैंड के छोटे-छोटे देशों के लिए जलवायु परिवर्तन एक बड़ा खतरा है, और इन देशों ने “जलवायु नीति को लेकर लगातार आस्ट्रेलिया समेत दूसरे देशों की सरकार की आलोचना की है.” अब तक ऑस्ट्रेलिया जलवायु परिवर्तन पर अंतर्राष्ट्रीय मांगों को खारिज करता आया है लेकिन अगर अमेरिका जलवायु नीति पर सख्त़ी बरतता है तो ज्य़ादातर देशों को मजबूरी में अमेरिकी नेतृत्व का पालन करना होगा. ऐसे में कार्बन उत्सर्जन को कम करने के लिए अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया के बीच तकनीकी सहयोग बढ़ने की उम्मीद है.
कैनबरा में ज्य़ादातर लोगों ने बाइडेन की जीत की सराहना की और जैसा कि लोवी इंस्टीट्यूट के कार्यकारी निदेशक माइकल फुलिलोव ने कहा, “ऑस्ट्रेलिया के हितों की रक्षा तब की जा सकेगी जब अमेरिका में सरकार बेहतर ढंग से काम करेगी. सरकार ऐसी हो जो सभी को साथ लेकर चल सके और दुनिया के लिए आकर्षक होने के साथ इतनी ताकतवर हो कि विरोधियों के बुरे वर्ताव पर अंकुश लगा सके.”
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Premesha Saha is a Fellow with ORF’s Strategic Studies Programme. Her research focuses on Southeast Asia, East Asia, Oceania and the emerging dynamics of the ...
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