प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अमेरिका यात्रा पर बहुत कुछ लिखा गया. इसमें दुनिया के दूसरे देशों के साथ उनके ताल्लुकात बढ़ाने के नफ़ा – नुक़सान गिनाए गए, जिसकी उम्मीद भी थी. मोदी समर्थकों ने उनकी यात्रा को देश की शानदार जीत बताया तो आलोचकों ने तंज कसा कि इससे देश के हाथ कुछ ठोस नहीं लगा. लेकिन इस पर कोई विवाद नहीं है कि मोदी ने समूची यात्रा के दौरान फ्रंट फुट पर बल्ले बाज़ी की और संयमित तरीके से दुनिया के सामने भारत का पक्ष रखा. उन्होंने भारत की विदेश नीति के परंपरागत रक्षात्मक रवैये को अलविदा कह दिया है और अमेरिका यात्रा के दौरान भी वे देश की जनता की आकांक्षाओं को सबके सामने रखने से पीछे नहीं हटे.
इस दौरे पर उन्हें चार अलग-अलग दायित्व निभाने थे. पहले तो उन्हें अमेरिका के साथ तनाव कम करना था, ख़ासतौर पर व्यापारिक मसलों को लेकर. अमेरिका के राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप कुछ समय से व्यापारिक मुद्दों को लेकर भारत को लगातार निशाने पर ले रहे थे . ऐसे में प्रधानमंत्री के लिए अमेरिका को यह संदेश देना ज़रूरी था कि भारत उसके साथ एक हाथ दे, एक हाथ ले की नीति पर चलकर सुलह के लिए तैयार है. पिछले कुछ हफ्ते में भारतीय अधिकारियों और ख़ासतौर पर वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल ने अपने अमेरिकी समकक्ष के साथ व्यापारिक गतिरोध को दूर करने की कोशिश की है. मोदी ने ख़ुद अपनी ह्यूस्टन रैली में बेझिझक ट्रंप की हौसलाफज़ाई की, जहां वह ख़ुद को भारत और भारतीय अमेरिकियों के दोस्त के रूप में पेश करने को बेताब थे. हालांकि, इसमें भी शक की गुंजाईश नहीं है कि ट्रंप को मनाने की इस पहल की शर्तें मोदी ने तय की थीं. मोदी की अमेरिका यात्रा के दौरान ट्रेड डील की उम्मीद तो पूरी नहीं हुई, लेकिन ट्रंप सरकार को इसका भरोसा हो गया है कि भारत इस मुद्दे को सुलझाने की ख़ातिर बातचीत को लेकर गंभीर है. दोनों देशों के बीच इंफॉर्मेशन एंड कम्युनिकेशंस टेक्नोलॉजी (ICT) प्रॉडक्ट्स पर सहमति नहीं बन पाई, जिससे ट्रेड डील अटक गई. हालांकि, ट्रंप का यह कहना कि भारत के साथ व्यापार सौदा होने जा रहा है, इस बात का सबूत है कि दोनों देश एक दूसरे को लेकर कितने सहज हैं.
दूसरा, मोदी पर अमेरिका और वैश्विक निवेशकों के बीच भारत को ऐसे वक्त में व्यापार और निवेश के आकर्षक ठिकाने के तौर पर पेश करने की चुनौती थी, जब भारत की आर्थिक सुस्ती को लेकर चिंता बढ़ रही है. मोदी ने ह्यूस्टन में एनर्जी कंपनियों के सीईओ के साथ बैठक और ब्लूमबर्ग ग्लोबल बिज़नेस फोरम में मास्टरकार्ड, वीज़ा और वॉलमार्ट जैसी 40 दिग्गज कंपनियों के सीईओ को भारत में निवेश का न्योता दिया. प्रधानमंत्री ने यहां तक कहा कि अगर उन्हें निवेश में कोई बाधा आती है तो वह निजी तौर पर पहल करके उसे सुलझाएंगे. मोदी ने लोकतंत्र, युवा आबादी, डिमांड और निर्णायक सरकार को भारत की ग्रोथ स्टोरी का अनिवार्य पहलू बताया. उन्होंने निवेशकों से कहा कि वे इसका लाभ उठा सकते हैं. मोदी भारत के सर्वश्रेष्ठ ब्रांड एंबेसडर बने हुए हैं. आज जब भारत की इकॉनमिक स्टोरी पर सवाल उठ रहे हैं, तब उनके इस कौशल की देश को ज़रूरत भी है.
तीसरा, मोदी को अंतरराष्ट्रीय समुदाय के सामने भारत की वैश्विक नेतृत्व की क्षमताओं पर फिर से ज़ोर देना पड़ा. इस संदर्भ में संयुक्त राष्ट्र में दिया गया उनका भाषण यादगार रहा. इसमें मोदी ने देश में हो रहे बदलावों को दुनिया की भारत से अपेक्षाओं के साथ जोड़ा. एक वैश्विक ताक़त के रूप में भारत की उम्मीदों को उन्होंने बड़ी ही ख़ूबसूरती से पेश किया. प्रधानमंत्री ने बहुउद्देश्यीय व्यवस्था पर ज़ोर दिया ताकि भारत को दुनिया की बड़ी ताक़त के रूप में उभरने का मौका मिले. उन्होंने कहा कि भारत पूरी दुनिया के सपने की ख़ातिर काम कर रहा है. मोदी ने यह संदेश दिया कि दुनिया को परिवार की तरह देखना भारतीय सभ्यता के मूल्यों से जुड़ा है और यह भारत के लिए अपनी ताक़त के प्रदर्शन का माध्यम नहीं है. उन्होंने संयुक्त राष्ट्र में दिए गए अपने भाषण में पाकिस्तान की अनदेखी की, लेकिन इसके साथ ही अंतरराष्ट्रीय समुदाय से आतंकवाद के ख़िलाफ़ मिलकर लड़ने की अपील भी की. सबसे बड़ी बात यह है कि पीएम ने ट्रंप के मल्टीलेटरलिज्म़ के ख़त्म होने के दावे को सीधी चुनौती दी. इससे मोदी ने यह संदेश दिया कि वैश्विक व्यवस्था को बनाए रखने में भारत ऐसी संस्थाओं की भूमिका को ज़रूरी मानता है. उन्होंने बढ़ते संरक्षणवाद पर भी हमला बोला. प्रधानमंत्री ने कहा कि हमारे पास’खुद को अपनी सीमाओं के अंदर कैद करने का विकल्प नहीं बचा है.’
आख़िर में मोदी ने कश्मीर में अनुच्छेद 370 ख़त्म करने के संदर्भ में भारत का पक्ष रखा और पाकिस्तान की तरफ से लगातार चलाए जा रहे दुष्प्रचार का मुंहतोड़ जवाब दिया. इसके लिए उन्होंने ह्यूस्टन रैली का भी इस्तेमाल किया, जहां ट्रंप के सामने उन्होंने देश की कश्मीर नीति में बदलाव पर अपनी बात रखी. प्रधानमंत्री ने यह भी बताया कि पारदर्शी और लोकतांत्रिक तरीके से भारत ने अनुच्छेद 370 ख़त्म करने का फैसला लिया. रैली में मौजूद 50 हजार भारतीय अमेरिकियों से इस पर जो वाहवाही मिली, उससे अमेरिका के राजनीतिक नेतृत्व के सामने यह बात साफ हो गई कि आर्टिकल 370 को खत्म करने पर लोग सरकार के साथ हैं. इस मामले में मोदी की अमेरिका यात्रा काफ़ी हद तक सफल रही.
यह बात सही है कि अमेरिका के साथ व्यापारिक गतिरोध अभी ख़त्म नहीं हुआ है और ट्रंप कभी कुछ तो कभी कुछ कहते हैं, दूसरी तरफ, अमेरिकी एडमिनिस्ट्रेशन में अभी भी पाकिस्तान के पैरोकार मौजूद हैं, लेकिन मोदी वहां इन सभी समस्याओं को सुलझाने नहीं गए थे. उनका मकसद ट्रंप को भरोसा दिलाकर अमेरिका के साथ बिगड़ रहे भारत के रिश्तों को ठीक करना और दुनिया के सामने अपना नज़रिया पेश करना था. इन दोनों ही मामलों में वह सफल साबित हुए. मोदी की अमेरिका यात्रा से अधिक से अधिक लाभ लेने की ज़िम्मेदारी अब भारतीय राजनयिकों पर है.
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