जब भारत ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की अपनी अस्थायी सदस्यता के कार्यकाल (2021-2022) के लिए अपनी प्राथमिकताओं को बताने वाली पुस्तिका जारी की, तो इसके पहले पन्ने पर एक बेहद महत्वपूर्ण प्रतीकात्मक तस्वीर लगाई गई थी. ये तस्वीर थी, अफ्रीकी देश लाइबेरिया में संयुक्त राष्ट्र शांति मिशन के अंतर्गत भारत द्वारा भेजी गई पुलिस की टुकड़ी, जिसकी सभी सदस्य महिलाएं थीं. लाइबेरिया की पूर्व राष्ट्रपति एलेन जॉनसन सरलीफ के साथ खड़ी भारतीय महिला पुलिसकर्मियों की इस तस्वीर की अनदेखी नहीं की जा सकती थी. लाइबेरिया में संयुक्त राष्ट्र शांति मिशन के लिए महिलाओं की ये टुकड़ी भेजकर भारत ने संयुक्त राष्ट्र के बेहद अहम महिला, शांति और सुरक्षा (WPS) के एजेंडे में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाने का संकेत दिया था. WPS एजेंडे के केंद्र में सभी शांति प्रक्रियाओं में महिलाओं की अर्थपूर्ण भागीदारी बढ़ाना है. इसके तहत, दुनिया के तमाम क्षेत्रों में चलने वाले शांति के अभियानों में महिलाओं की सहभागिता को भी और बढ़ावा देना है.
भारत ने संयुक्त राष्ट्र के शांति अभियानों में केवल महिलाओं वाली अतिरिक्त पुलिस इकाइयां तैनात करने की प्रतिबद्धता भी जताई है. भारत, भविष्य के शांति अभियानों में तैनात किए जाने वालों को लैंगिक रूप से संवेदनशील विषयों को लेकर प्रशिक्षित करने में भी सक्रिय रहा है.
2007-2015 से भारत ने केवल महिला पुलिसकर्मियों वाली पहली शांति बहाली टीम तैनात करने से लेकर, 2019 में संयुक्त राष्ट्र के MONUSCO मिशन (कॉन्गो लोकतांत्रिक गणराज्य) में त्वरित तैनाती बटालियन के तहत एक फीमेल एंगेजमेंट टीम को तैनात किया है. इसके अलावा भारत ने संयुक्त राष्ट्र के शांति अभियानों में केवल महिलाओं वाली अतिरिक्त पुलिस इकाइयां तैनात करने की प्रतिबद्धता भी जताई है. भारत, भविष्य के शांति अभियानों में तैनात किए जाने वालों को लैंगिक रूप से संवेदनशील विषयों को लेकर प्रशिक्षित करने में भी सक्रिय रहा है. भारत ने संयुक्त राष्ट्र के अपने वुमेन इंडिया मिशन के साथ मिलकर, फीमेल मिलिट्री ऑफ़िसर्स कोर्स भी विकसित किया है.
अंतरराष्ट्रीय समुदाय शांति और सुरक्षा के अभियानों में महिलाओं की भागीदारी बढ़ाने में भारत की भूमिका की सराहना करता रहा है. जबकि अपनी शुरुआत के दो दशक बीत जाने के बावजूद WPS एजेंडा आज भी पूरी तरह लागू न हो पाने की चुनौती से जूझ रहा है. उदाहरण के लिए, संयुक्त राष्ट्र के अभियानों में महिला कर्मियों की संख्य़ा बहुत धीमी गति से आगे बढ़ी है. 1993 में ऐसे अभियानों में शामिल सैन्य टुकड़ियों में महिलाओं की तादाद एक प्रतिशत थी. वर्ष 2020 तक संयुक्त राष्ट्र की सैन्य टुकड़ियों में महिलाओं की संख्य़ा 4.8 फ़ीसद और पुलिस टुकड़ियों में 10.9 महिलाओं तक ही बढ़ी है. संयुक्त राष्ट्र को धीरे-धीरे ये एहसास हो रहा है कि, उसके सदस्य देश शांति अभियानों में महिलाओं की भागीदारी इसलिए नहीं बढ़ा पा रहे हैं, क्योंकि उनकी अपनी घरेलू पुलिस और सैन्य इकाइयों में महिलाओं की संख्य़ा बेहद कम है. इसके अलावा WPS का एजेंडा लागू करने की राह में हर देश में व्यापक स्तर पर मौजूद लैंगिक असमानता का रोड़ा भी है. संयुक्त राष्ट्र के ज़्यादातर सदस्य देशों की घरेलू सुरक्षा इकाइयों मे महिलाओं की और पुरुषों की संख्य़ा में बहुत फ़र्क़ है.
देश के तमाम राज्यों की पुलिस सेवा के बारे में सरकार के अपने आंकड़ों पर आधारित एक रिपोर्ट कहती है कि इनमें केवल 7.28 प्रतिशत महिलाएं ही काम करती हैं. तीनों सेनाओं और पुलिस बलों में महिलाओं की संख्या बढ़ाने के सरकार के प्रयास अब तक असफल साबित हुए हैं.
भारत भी उपरोक्त समस्याओं का का शिकार है. इसमें कोई दो राय नहीं कि भारत ने WPS एजेंडा में योगदान के लिए कई नए नए तरीक़े अपनाए हैं. उसने महिला पुलिस टीमें और महिला संपर्क टीमों की तैनाती की है. इनसे उन देशों के समाजों पर बहुत फ़र्क़ पड़ा है, जहां महिलाओं की टीमें तैनात की गई हैं. फिर भी, भारत के सुरक्षा ढांचे में महिलाओं की संख्या बहुत कम है. आज भी सुरक्षा के कई ऐसे मोर्चे हैं जहां महिलाएं, पुरुषों की बराबरी कर पाने में नाकाम रही हैं. उदाहरण के लिए, 2019 में भारत की तीनों सेनाओं में कुल लगभग 14 लाख सैनिक और अधिकारी थे. थल सेना में कुल कार्यरत महिलाओं की संख्या चार प्रतिशत से भी कम थी. वहीं, नौसेना में केवल 6 फ़ीसद और वायुसेना में 13 प्रतिशत महिलाएं काम कर रही हैं. देश के सबसे बड़े सशस्त्र पुलिस बल, केंद्रीय रिज़र्व पुलिस बल (CRPF) में लगभग तीन लाख पुलिस अधिकारी काम करते हैं. इनमें से केवल 2.65 प्रतिशत महिलाएं हैं. देश के तमाम राज्यों की पुलिस सेवा के बारे में सरकार के अपने आंकड़ों पर आधारित एक रिपोर्ट कहती है कि इनमें केवल 7.28 प्रतिशत महिलाएं ही काम करती हैं. तीनों सेनाओं और पुलिस बलों में महिलाओं की संख्या बढ़ाने के सरकार के प्रयास अब तक असफल साबित हुए हैं.
सेना, सरकार की रूढ़ीवादी सोच
सुरक्षा के क्षेत्र में लैंगिक असमानता की बात करें-तो इस क्षेत्र में कुछ प्रगति तो हुई है. लेकिन अभी भी सुधार की बहुत गुंजाइश है. सैन्य बलों में अभी हाल के दिनों तक महिलाओं को केवल 14 साल तक अधिकारी बने रहने की इज़ाज़त थी. 2020 में सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद जाकर ही सेना और नौसेना में महिलाओं के स्थायी कमीशन प्राप्त करने का रास्ता साफ़ हुआ. जिसके चहते वो रिटायरमेंट तक अधिकारी बनी रह सकेंगी और उन्हें सेवा के पूरे लाभ यानी वेतन और भत्ते मिल सकेंगे. सुप्रीम कोर्ट के इस आदेश से सेनाओं में महिलाओं की भागीदारी बढ़ाने की राह में आने वाली एक अड़चन तो दूर हुई है. मगर, इस मामले की सुनवाई के दौरान सरकार की ओर से जिस तरह के बयान आए थे, वो इस बात का इशारा करते हैं कि महिलाओं को लेकर रुढ़िवादी सोच की जड़ें बेहद गहरी हैं. मिसाल के तौर पर, सरकार की नज़र में महिलाएं कमज़ोर होती हैं. ऐसे में उन्हें युद्ध के मोर्चे पर तैनात करना या कमान की ज़िम्मेदारी देना ठीक नहीं होता. यही नहीं, सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में तर्क दिया था कि बच्चों की देखभाल की बुनियादी ज़िम्मेदारी महिलाओं की होती है. इसलिए, वो सेना के विशिष्ट तरह के रहन-सहन के योग्य नहीं होतीं. क्योंकि, सेना में परिवार से ऊपर उठकर देश की रक्षा के कर्तव्य के प्रति प्रतिबद्धता की ज़रूरत होती है.
जहां तक भारत के पुलिस बलों की बात है, तो वहां पर हमें लैंगिक समानता के मोर्चे पर अधिक प्रगति देखने को मिलती है. भारत के पुलिस बलों में महिलाएं सिपाही से लेकर अधिकारी तक की भूमिकाओं में दिखती हैं. उदाहरण के लिए CRPF ने महिला कर्मचारियों के रहने और नहाने-धोने व शौचालय की अलग व्यवस्था बनाने में काफ़ी प्रगति की है.
जहां तक भारत के पुलिस बलों की बात है, तो वहां पर हमें लैंगिक समानता के मोर्चे पर अधिक प्रगति देखने को मिलती है. भारत के पुलिस बलों में महिलाएं सिपाही से लेकर अधिकारी तक की भूमिकाओं में दिखती हैं. उदाहरण के लिए CRPF ने महिला कर्मचारियों के रहने और नहाने-धोने व शौचालय की अलग व्यवस्था बनाने में काफ़ी प्रगति की है. CRPF के इन प्रयासों में महिला कर्मचारियों को परिवार की देखभाल और मेल-मिलाप के अवसर देना भी शामिल है. इसके अलावा, वर्ष 2002 से ही पुलिस में महिलाओं को लेकर राष्ट्रीय सम्मेलन भी आयोजित किए जा रहे हैं. ये सम्मेलन महिला पुलिस कर्मियों को अधिक लैंगिक समानता की वकालत करने का मंच प्रदान करता है. इसके बावजूद, भारत में पुलिस के हालात पर 2019 की एक रिपोर्ट में पाया गया है कि पुरुष पुलिसकर्मी आज भी अपनी महिला साथियों के प्रति पक्षपात भरा रवैया अपनाते हैं. उनकी शारीरिक शक्ति और गंभीर अपराधों से निपटने में उनकी क्षमताओं को लेकर सवाल उठाते हैं. इस रिपोर्ट में शामिल आधे से अधिक लोगों ने कहा था कि महिलाओं और पुरुषों की तो कोई तुलना ही नहीं. इस रिपोर्ट में ये भी पाया गया था कि महिला पुलिसकर्मियों को अक्सर दफ़्तर में बैठकर करने वाले काम ही दिए जाते हैं, जैसे कि कंप्यूटर चलाना. वहीं, उनके पुरुष साथियों को फील्ड में भेजा जाता है. इसी कारण से महिलाएं ज़मीनी अभियानों में अपनी क़ाबिलियत को नहीं साबित कर पातीं. उनकी तरक़्क़ी की राह में मुश्किलें आती हैं और पुलिस बल में महिलाओं की स्वीकार्यता नहीं बढ़ पाती है. यही नहीं, सरकार की अपनी रिपोर्ट कहती हैं कि पुलिस बलों और अन्य क्षेत्रों में लैंगिक संवेदनशीलता को बढ़ावा देना महिलाओं की ज़िम्मेदारी है. नतीजा ये होता है कि लैंगिक रूप से संवेदनशील बनाने की ट्रेनिंग, पुरुषों से ज़्यादा महिलाओं को ही दी जाती हैं.
भारत के सैन्य बलों में महिलाओं की संख्या बहुत कम है. इसलिए, वो अंतरराष्ट्रीय शांति अभियानों में उनकी संख्या चाहकर भी नहीं बढ़ा सकता. एक जून 2020 तक संयुक्त राष्ट्र के तमाम शांति अभियानों में भारत के कुल योगदान में महिलाओं की संख्या एक प्रतिशत से भी कम थी.
संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की अस्थायी सदस्यता की शुरुआत के वक़्त यानी 1 जनवरी 2021 शुरुआती भाषण में भारत की ओर से कहा गया था कि भारत सुरक्षा परिषद में, संयुक्त राष्ट्र के शांति अभियानों और शांति बहाली के प्रयासों को अधिक तवज्जो देगा. ऐसे में इस बात की संभावना काफ़ी अधिक है कि भारत सरकार, सुरक्षा परिषद में अपने इस कार्यकाल के दौरान WPS के एजेंडे को लागू करने की राह में आने वाली मुश्किलों को दूर करने के लिए भी प्रयास करेगी. भारत में इस बात की संभावना है कि वो महिला, शांति और सुरक्षा (WPS) के एजेंडे का चैंपियन बनकर उभरे. लेकिन, इसके लिए भारत को ये समझना होगा कि अंतरराष्ट्रीय शांति अभियानों के लिए तैनाती में उसे महिलाओँ की भागीदारी को बढ़ाना होगा. इसका सीधा संबंध घरेलू सुरक्षा के क्षेत्र में लैंगिक समानता को बढ़ाने से है. उदाहरण के लिए, चूंकि भारत के सैन्य बलों में महिलाओं की संख्या बहुत कम है. इसलिए, वो अंतरराष्ट्रीय शांति अभियानों में उनकी संख्या चाहकर भी नहीं बढ़ा सकता. एक जून 2020 तक संयुक्त राष्ट्र के तमाम शांति अभियानों में भारत के कुल योगदान में महिलाओं की संख्या एक प्रतिशत से भी कम थी. इसके अलावा, लैंगिक समानता को बढ़ावा देने की ज़िम्मेदारी भी केवल महिलाओं के ऊपर थोपने से भी सुरक्षा बलों में महिलाओं की संख्य़ा नहीं बढ़ाई जा सकती. क्योंकि, सुरक्षा के क्षेत्र में महिलाओं की तादाद ही बेहद कम है.
कुल मिलाकर कहें तो WPS के एजेंडे को आगे बढ़ाने में भारत का नेतृत्व केवल महिलाओं की इकाइयों की तैनाती तक सीमित नहीं रखा जा सकता. इसके लिए भारत सरकार को घरेलू सुरक्षा क्षेत्र में महिलाओं की संख्य़ा बढ़ाने की अधिक प्रतिबद्धता दिखानी होगी. महिलाओं और पुरुषों दोनों के मिलकर काम करने के लिए उचित माहौल तैयार करना होगा.
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