Author : Rhea Sinha

Published on Mar 04, 2022 Updated 0 Hours ago

वैसे तो भारत ने तालिबान सरकार को मान्यता नहीं दी है लेकिन इसके बावजूद अफ़ग़ानिस्तान में खाद्य संकट को देखते हुए भारत ने अफ़ग़ानिस्तान को मानवीय सहायता की पेशकश की है. 

अफ़ग़ानिस्तान में भारत की ‘अनाज’ कूटनीति!

एक महत्वपूर्ण कूटनीतिक घटनाक्रम के तहत 22 फरवरी को 2,500 मीट्रिक टन भारतीय गेहूं की पहली खेप अटारी से काबुल भेजी गई. भारतीय मदद ऐसे वक़्त में पहुंची है जब अफ़ग़ानिस्तान बहुत बड़े खाद्य संकट से जूझ रहा है. क़रीब 2 करोड़ 30 लाख अफ़ग़ान नागरिक- कुल आबादी में आधे से ज़्यादा- बहुत ज़्यादा भुखमरी का सामना कर रहे हैं. अफ़ग़ानिस्तान को भारत की मदद पाकिस्तान के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (एनएसए) डॉ. मोईद यूसुफ के लिए काफ़ी निराशाजनक है जिन्होंने भारत की सहायता को ‘पब्लिसिटी स्टंट’ करार दिया था. 

अनाज की ये कूटनीति भारत के लिए अफ़ग़ानिस्तान की सरकार के साथ सीधा संवाद स्थापित करने का एक अवसर है. भारतीय अधिकारियों ने अतीत में तालिबान के साथ दोहा में एक कूटनीतिक बैठक करने की बात मानी थी.

7 अक्टूबर 2021 को भारत ने 50,000 टन गेहूं और जीवन रक्षक दवाओं को पाकिस्तान के रास्ते काबुल भेजने की पेशकश की थी. लेकिन ये प्रस्ताव पाकिस्तान और भारत के बीच नौकरशाही के जाल में फंस गया. गेहूं को अटारी-वाघा सीमा से सड़क रास्ते के ज़रिए ही अफ़ग़ानिस्तान भेजा जा सकता था क्योंकि हवाई रास्ते के ज़रिए इतनी बड़ी खेप भेजना अव्यवहारिक था. तालिबान के विदेश मंत्री आमिर ख़ान मुत्ताक़ी ने अपनी इस्लामाबाद यात्रा के दौरान पाकिस्तान को अपना रवैया बदलने के लिए तैयार किया और इस तरह पाकिस्तान ने वाघा सीमा के रास्ते गेहूं की खेप को ले जाने की इजाज़त दी. ये रास्ता भारत से अफ़ग़ानिस्तान तक जाने का सबसे छोटा रास्ता है. 

भारत की तरफ़ से ये मानवीय पहल भारत और विश्व खाद्य कार्यक्रम (डब्ल्यूएफपी) के बीच एक संधि के बाद की गई. लेकिन ये एक संकेत है कि भारत की सरकार अफ़ग़ानिस्तान की शासन व्यवस्था की वास्तविकता को समझ रही है. अनाज की ये कूटनीति भारत के लिए अफ़ग़ानिस्तान की सरकार के साथ सीधा संवाद स्थापित करने का एक अवसर है. भारतीय अधिकारियों ने अतीत में तालिबान के साथ दोहा में एक कूटनीतिक बैठक करने की बात मानी थी. अफ़ग़ानिस्तान पर तालिबान के कब्ज़े के छह महीने के बाद काबुल में बातचीत का सीधा माध्यम होना वहां के ज़मीनी हालात को समझने में भारत के लिए उपयोगी साबित होगा. 

इस तरह की बातचीत विश्वास बहाली के उपायों की तरह भी काम करती, इससे भारत को लेकर अफ़ग़ानिस्तान के लोगों का भरोसा बहाल होता.

तालिबान के साथ तालमेल 

ख़ुद को बेहतर स्थिति में रखने के लिए भारत एक छोटी टीम के साथ विशेष दूत को भेज सकता था. ये टीम विश्व खाद्य कार्यक्रम के साथ मिलकर अफ़ग़ानिस्तान के लोगों के बीच अनाज को बांटने के तौर-तरीक़ों की निगरानी कर सकती थी. इससे भारत को तालिबान तक पहुंचने के साथ-साथ ग़ैर-तालिबान सदस्यों और पूर्व की सरकार के सहयोगियों के साथ फिर से जुड़ने का मौक़ा मिल जाता. उनके साथ बातचीत से अफ़ग़ानिस्तान की उम्मीदों और ज़रूरतों के बारे में बेहतर ढंग से समझने का मौक़ा मिलता. इस तरह की बातचीत विश्वास बहाली के उपायों की तरह भी काम करती, इससे भारत को लेकर अफ़ग़ानिस्तान के लोगों का भरोसा बहाल होता. इसके बावजूद ये भारत के लिए चुनौतीपूर्ण संतुलन साधने का काम है क्योंकि भारत तालिबान की सरकार को मान्यता दिए बिना अफ़ग़ानिस्तान के बढ़ते मानवीय संकट का समाधान करने की कोशिश कर रहा है. 

जब पाकिस्तान ने जान-बूझकर भारत के अनाज को अफ़ग़ानिस्तान तक पहुंचने से रोक रखा था, तब ईरान ने भारतीय सहायता को अफ़ग़ानिस्तान तक पहुंचाने में मदद की पेशकश की थी. भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 27 जनवरी को पहली भारत-मध्य एशिया शिखर वार्ता की जिसका नतीजा एक साझा कार्यकारी समूह के गठन के रूप में निकला. इस समूह का उद्देश्य मानवीय आपात स्थिति और तालिबान की मान्यता के मुद्दे को सुलझाना था. इससे भारत को अफ़ग़ानिस्तान पर दृष्टिकोण को आकार देने में एक भूमिका मिली और अलग-अलग हिस्सेदारों से वहां चल रहे घटनाक्रम के बारे में जानने का मौक़ा मिला. भारत के लिए इस तरह की बातचीत ज़रूरी है क्योंकि क्षेत्रीय चर्चाओं में भारत का एक सक्रिय सदस्य बनना आवश्यक है. 

भारत की सहायता उसके लिए एक कूटनीतिक अवसर है लेकिन पाकिस्तान और वहां मौजूद आतंकी समूहों के साथ तालिबान की नज़दीकी की वजह से जो सुरक्षा चिंताएं हैं, उसकी वजह से भारत की कोशिशें सीमित बनी रहेंगी.

भारत के विदेश मंत्री एस. जयशंकर के अनुसार पिछले एक दशक में भारत ने अफ़ग़ानिस्तान को 10 लाख टन से ज़्यादा गेहूं मुहैया कराया है. इसके अतिरिक्त, काबुल पर तालिबान के कब्ज़े के बाद भारत ने कोविड वैक्सीन की 5 लाख डोज़ अफ़ग़ानिस्तान को सप्लाई की. साथ ही विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के ज़रिए 1.6 टन चिकित्सा सहायता भी भेजी. वैसे तो भारत ने अंतर्राष्ट्रीय समुदाय से तालिबान शासन को मान्यता देने के नतीजों पर विचार करने के लिए ख़बरदार किया है लेकिन उसने अफ़ग़ान नागरिकों को सहायता मुहैया कराने की अपनी इच्छा जताई है. भारत की अनाज कूटनीति की तालिबान ने ख़ूब सराहना की है. इससे पहले 7 जनवरी को दवाओं की आपूर्ति मिलने के बाद तालिबान के नेतृत्व ने मानवीय सहायता के लिए भारत की तारीफ़ की थी. उस वक़्त तालिबान के आधिकारिक केंद्रीय प्रवक्ता ज़बीउल्लाह मुजाहिद ने ट्वीट किया था  “भारत की मानवीय सहायता और सहयोग के लिए इस्लामिक अमीरात भारत का आभारी है”.

भारत की सहायता उसके लिए एक कूटनीतिक अवसर है लेकिन पाकिस्तान और वहां मौजूद आतंकी समूहों के साथ तालिबान की नज़दीकी की वजह से जो सुरक्षा चिंताएं हैं, उसकी वजह से भारत की कोशिशें सीमित बनी रहेंगी. तालिबान-पाकिस्तान के बीच रिश्तों में बढ़ते तनाव और हताश होकर क्षेत्रीय ताक़तों से तालिबान की तरफ़ से मांगी जा रही मदद के कारण भारत की ज़्यादा हिस्सेदारी उसके लिए अफ़ग़ानिस्तान में अपने हितों को सुरक्षित रखने की जगह बनाएगी. 

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