Published on Oct 14, 2020 Updated 0 Hours ago

जहां एक ओर ट्रंप ब्लू-कॉलर श्रमिकों से आगे बढ़कर अब श्वेत कामकाजी वर्ग को लुभाने और अपनी पैठ बनाने में जुटे हैं, वहीं जो बाइडेन का प्रगतिशीलों के प्रति रुझान, इस महत्वपूर्ण और निर्णायक मतदाता वर्ग को रिझाने की कोशिशों के सामने, ग्रहण बनकर खड़ा है.   

चॉकलेट को रिझाने की कोशिश में खेत और सुपरमार्केट

जनगणना आकलन और अनुमानों के मुताबिक, साल 2045 तक संयुक्त राज्य अमेरिका बहुसंख्यक-अल्पसंख्यकों वाला राष्ट्र होगा, जिसमें नस्लीय अल्पसंख्यक “देश का भविष्य तय करने और उसके विकास में अहम भूमिका निभाने का काम करेंगे. हालांकि, यह भी सच है कि आने वाले कुछ सालों में भी, चुनावों में श्वेत मतदाताओं की प्रासंगिकता बनी रहेगी.

साल 2045 तक अमेरिकी “श्वेत समुदाय के अल्पसंख्यक” होने से जुड़ा परिदृश्य इस बात का संकेत देता है कि समय के साथ गोरे लोगों की आबादी, अमेरिकी आबादी के 49.7 प्रतिशत तक सिमट कर रह जाएगी. हालांकि, ‘स्विंग-राज्यों’ यानी ऐसे राज्य जिनका वोट प्रतिशत आखिरी नतीजों को प्रभावित करने की क्षमता रखता है, में “श्वेत-मतदाताओं की ताकत और प्रभाव” बना रहेगा क्योंकि इन राज्यों की जनसांख्यिकीय बनावट इसके अनुरूप है. इसके विपरीत, नस्लीय रूप से विविध और बहुसंख्यक जनसंख्या (जैसे- 24.6 प्रतिशत हिस्पैनिक्स, 13.1 प्रतिशत अफ्रीकी अमेरिकी, 7.9 प्रतिशत एशियाई और 3.8 प्रतिशत अन्य) किसी एक राजनीतिक एजेंडे या विचारधारा के तहत, एकमत या एकजुट नहीं हो पाएंगे, जिसके चलते ‘इलेक्टोरल कॉलेज’ यानी ऐसे संगठन और समुदाय जो अपनी एकजुटता से किसी एक प्रत्याशी या पार्टी का चयन करते हैं, को प्रभावित करने की उनकी  गुंजाईश कम है. इसके अलावा, इलेक्टोरल कॉलेज पर उनका प्रभाव कम रहेगा क्योंकि नस्लीय रूप से विविध और बहुसंख्यक यह जनसंख्या, ज़्यादातर शहरों में केंद्रित है, जहां का राजनितिक माहौल वैसे भी उदार है. हाल के दिनों में,  आव्रजन (immigration) पर रिपब्लिकन पार्टी के कड़े रुख ने भी बड़े पैमाने पर श्वेत लोगों को डेमोक्रेटिक पार्टी से दूर किया है. इसके अलावा, नस्लीय ध्रुवीकरण के बढ़ने का संकेत देने वाले एक अध्ययन के मुताबिक डेमोक्रेट पार्टी के समर्थक, 64 प्रतिशत श्वेत अमेरीकी  भी यह “मानते हैं कि अप्रवासियों ने अमेरिकियों से उनकी नौकरी ले ली है”. इसके चलते डेमोक्रेट पार्टी के ये समर्थक भी रिपब्लिकन द्वारा आव्रजन विरोधी अभियान के पक्ष में परिवर्तित होने की गुंजाईश रखते हैं.

नस्लीय ध्रुवीकरण के बढ़ने का संकेत देने वाले एक अध्ययन के मुताबिक डेमोक्रेट पार्टी के समर्थक, 64 प्रतिशत श्वेत अमेरीकी भी यह “मानते हैं कि अप्रवासियों ने अमेरिकियों से उनकी नौकरी ले ली है”. इसके चलते डेमोक्रेट पार्टी के ये समर्थक भी रिपब्लिकन द्वारा आव्रजन विरोधी अभियान के पक्ष में परिवर्तित होने की गुंजाईश रखते हैं. 

साल 2016 में हुए चुनावों में भी यह दोनों कारक महत्वपूर्ण थे,  जिसके चलते ‘युद्ध का मैदान’ बनने वाले पांच राज्यों (मिशिगन, न्यू हैम्पशायर, विस्कॉन्सिन, पेन्सिलवेनिया और फ्लोरिडा) ने 73 प्रतिशत श्वेत मतों के साथ डोनाल्ड ट्रम्प को व्हाइट हाउस तक पहुंचाया. साथ ही, डेमोक्रेटिक पार्टी की तत्कालीन उम्मीदवार हिलेरी क्लिंटन ने 20 अंकों (58-37) के अंतर के साथ श्वेत मतदाताओं की जनसंख्या को ट्रंप की ओर जाते देखा क्योंकि ‘कामकाजी वर्ग’ से जुड़ी ये आबादी, ट्रंप के इस दावे को सही मानती थी, कि अमेरिका का औद्योगिक विकास, वाशिंगटन की मुक्त व्यापार नीति और आव्रजन संबंधी वैश्विक सोच की भेंट चढ़ रहा है.

उपनगरों पर लगी ट्रंप की बाज़ी

इस साल की शुरुआत में हुए चुनावों के अनुसार, ट्रंप ने अपने मूल समर्थकों यानी कामकाजी वर्ग के श्वेत समुदाय पर पकड़ कायम रखी है, “जिनपर उन्होंने लगभग 50 अंकों से जीत हासिल की थी” साथ ही गैर-कॉलेज-शिक्षित श्वेत महिलाओं पर भी यह कपड़ बनी रही, जिन्हें साल 2016  में भी उन्होंने 27 अंकों के साथ अपने साथ जोड़ा था. साल 2016 में हुए चुनावों में ‘छोटे आदमी’ के चैंपियन के रूप में बनाई गई ट्रंप की छवि को उनके प्रशासन के कुछ फ़ैसलों ने और मज़बूत किया है. इसमें बाज़ार तक बढ़ती पहुँच के लिए उत्तर अमेरिकी मुक्त व्यापार समझौता (NAFTA)  के अंर्तगत हुए समझौते व ‘फेज़ वन’ सौदे के तहत अमेरिका में चीन का आयात 200 अरब अमेरिकी डॉलर तक पहुंचाने वाले समझौतों को, नए सिरे से परिभाषित करने के अलावा, ऊर्जा क्षेत्र में प्रभुत्व के तहत ऊर्जा और विनिर्माण क्षेत्र में नौकरियों की सुरक्षा और कानूनी व गैर कानूनी आव्रजन गतिविधियों पर कार्यकारी कार्रवाई शामिल है. हालांकि, अमेरिकी अर्थव्यवस्था में गिरावट और बेरोज़गारी में वृद्धि के साथ, हालिया रिपोर्ट यह सुझाती हैं कि श्वेत श्रमिक वर्ग भी अब ट्रंप से दूर जा सकता है.

ट्रंप का अभियान भले ही ब्लू-कॉलर कामगारों की ओर लक्षित हो, लेकिन उपनगरीय क्षेत्रों में रहने वाले संपन्न श्वेत लोगों के बीच भी उन्होंने इसी नारे को बुलंद किया है, और रस्ट बेल्ट राज्यों में भी उनकी अपील स्पष्ट रूप से इसी विचारधारा को सम्प्रेषित करती है. 

फिर भी, ट्रंप ने मिशिगन जैसे महत्वपूर्ण और ब्लू-कॉलर कामगारों की बहुसंख्या वाले राज्यों में अपना अभियान ज़ोर शोर से जारी रखा है, यह दावा करने के लिए कि उनके डेमोक्रेटिक प्रतिद्वंद्वी जो बाइडेन “अमेरिकी नौकरियों को आउटसोर्स कर अप्रवासियों को सौंप देंगे और अमेरिका का भविष्य चीन को समर्पित कर देंगे.” ट्रंप का अभियान भले ही ब्लू-कॉलर कामगारों की ओर लक्षित हो, लेकिन उपनगरीय क्षेत्रों में रहने वाले संपन्न श्वेत लोगों के बीच भी उन्होंने इसी नारे को बुलंद किया है, और रस्ट बेल्ट राज्यों में भी उनकी अपील स्पष्ट रूप से इसी विचारधारा को सम्प्रेषित करती है. दो-तिहाई श्वेत आबादी वाली उपनगरीय क्षेत्रों को रिझाने और लुभाने के पीछे साल 2018  के मध्यावधि चुनावों में मिला अनुभव ही है, जब उन्होंने 2016 के अपने वोटिंग पैटर्न को पछाड़ते हुए, यूएस हाउस ऑफ रिप्रेजेंटेटिव्स का नियंत्रण डेमोक्रेट्स के हाथ दिया था. इसमें,  रिपब्लिकन पार्टी ने तीन-दर्जन से अधिक ज़िलों का नुक़सान उठाया था, क्योंकि उपनगरों ने 11 अंकों के अंतर के साथ डेमोक्रेट्स को समर्थन दिया था.

साल 2020 में, उपनगरीय इलाकों में रहने वाली श्वेत आबादी को लुभाने के लिए ट्रंप की बयानबाज़ी में, हाल ही में हुए हिंसक विरोधों को “कानून व व्यवस्था” के लिए ख़तरे के रूप में देखना और इन इलाकों को प्रदर्शनों से बचाने का संदेश भी शामिल है. इस आबादी के भीतर अलग-अलग नस्ल के लोगों के प्रति चिंता और डर पैदा करने के क्रम में ट्रंप ने यहां तक चेतावनी दी है कि बाइडेन “आपके उपनगरीय घरों के बगल में कम-आय वाली आवासीय कॉलोनियों को बसाएंगे.” यह परिदृश्य इन लोगों में मायूसी का संचार करने वाला और उन्हें असहज बनाने वाला हो सकता है. इसके अलावा, साल 2018  के परिदृश्य में देखें तो उपनगरीय महिलाओं की केंद्रीय भूमिका को देखते हुए,  ट्रंप ने डेमोक्रेट पार्टी द्वारा “सुंदर उपनगरों को नष्ट करने” संबंधी अपनी बयानबाज़ी को सीधे उपनगरों की गृहणियों की ओर लक्षित किया है.

अपने समर्थकों और संभावित समर्थकों तक पहुंचने की ट्रंप की ये कोशिश, “वामपंथी सांस्कृतिक क्रांति” के ख़िलाफ़ उनके घोषित विरोध से भी जुड़ी है, जिसके तहत वामपंथियों की “नकारने और रद्द करने की संस्कृति” की ज़्यादतियों का ज़िक्र करते हुए, कई स्मारकों और सैन्य ठिकानों का नाम बदलने की मांग की गई है. संस्थागत नस्लवाद का मुकाबला करने को लेकर छिड़ी बहस के बीच, ब्लैक लाइव्स मैटर (बीएलएम) जैसे आंदोलन ने “पुलिस को मिलने वाले फंड” को कम कर उसे, सामाजिक सुधार कार्यक्रमों के लिए इस्तेमाल करने और पुलिस की ताकत को संतुलित करने की मांग की. हालाँकि, इसने कुछ विवादित चर्चाओं को भी जन्म दिया, लेकिन ट्रंप ने यह कहकर रूढ़िवादियों का साथ दिया है कि जो बाइडेन “पुलिसकर्मियों को मिलने वाले फंड को कम करना चाहते हैं.” इसका उपनगरों में ट्रंप की चुनावी संभावनाओं पर सीधा असर पड़ा है,  क्योंकि 55 प्रतिशत श्वेत मतदाताओं ने ब्लैक लाइव्स मैटर संबंधी “विरोध प्रदर्शनों और गुस्से को पूरी तरह से उचित ठहराया.” जबकि, 58  प्रतिशत “उपनगरीय मतदाताओं ने पुलिस के लिए धन कम करने का विरोध किया.”

इस बात की उम्मीद की जा रही थी कि साल 2020 में डेमोक्रेटिक पार्टी अपने टिकट बंटवारे और वोट संबंधी आंकड़ों को देखकर, साल 2016 के चुनावों से कुछ सीखेगी और श्वेत कामकाजी-वर्ग को दरकिनार करने और हिलेरी क्लिंटन द्वारा ट्रंप के उपनगरीय समर्थकों को “निम्न श्रेणी के लोग” कहने जैसी गलतियां नहीं दोहराएगी. 

नतीजतन, मार्क और पैट्रीसिया मैकक्लोस्की, एक श्वेत दंपति, जिन्होंने हाल ही में सेंट लुइस में अपने घर के बाहर ब्लैक लाइव्स मैटर से जुड़े प्रदर्शनकारियों पर बंदूक तानकर एक विवाद को जन्म दिया था, उन्हें रिपब्लिकन नेशनल कन्वेंशन में भाषण देने के लिए प्रमुखता दी गई. उपनगरीय इलाकों की सुरक्षा पर अपने संबोधन को, रूढ़िवादियों की लंबे समय से चली आ रही मांगों के साथ जोड़ते हुए, उन्होंने ‘दूसरे संशोधन और नागरिकों को मिले संपत्ति की रक्षा के अधिकार’ का बचाव किया. उपनगरों में ट्रंप के बढ़ते समर्थकों के बीच, यह सब मुद्दे उनके दोबारा चुने जाने की चुनावी रणनीति का हिस्सा जान पड़ते हैं.

बाइडेन की गलत प्राथमिकताएं

इस बीच, इस बात की उम्मीद की जा रही थी कि साल 2020 में डेमोक्रेटिक पार्टी अपने टिकट बंटवारे और वोट संबंधी आंकड़ों को देखकर, साल 2016 के चुनावों से कुछ सीखेगी और श्वेत कामकाजी-वर्ग को दरकिनार करने और हिलेरी क्लिंटन द्वारा ट्रंप के उपनगरीय समर्थकों को “निम्न श्रेणी के लोग” कहने जैसी गलतियां नहीं दोहराएगी. राजनीतिक विश्लेषक अक्सर कहते हैं कि हिलेरी क्लिंटन की उस टिप्पणी को डेमोक्रेट्स के शहरी समर्थकों और मतदाताओं के ‘सांस्कृतिक अहंकार’ यानी “श्वेत वर्ग के कामकाजी लोगों के लिए तिरस्कार” के रूप में देखा गया. बहुत संभव है कि हिलेरी क्लिंटन ने इसी सोच की कीमत चुकाई हो, क्योंकि कामकाजी वर्ग की 700 काउंटी में से लगभग एक-तिहाई मतदाता, जो दो बार बराक ओबामा को वोट दे चुके थे, उन्होंने इस बयान के बाद, ट्रंप के समर्थन में वोट दिया.

हालांकि, जो बाइडेन का अभियान, उस गलती को न दोहराने पर ध्यान केंद्रित करने के बजाय तथाकथित “युवा मतदाताओं की समस्या” से बुरी तरह ग्रस्त है. इस चिंता की वजह है कि, प्रगतिशील विचारों वाला युवा वर्ग, बाइडेन के 77 साल के उम्र में राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार होने को प्रतिकूल रूप में ले सकता है, इस तथ्य के बावजूद की प्रगतिशीलों के आदर्श उम्मीदवार के रूप में बर्नी सैंडर्स, जिन्हें कई मायनों में प्रगतिवाद के पोस्टर-बॉय के रूप में पेश किया जा रहा है खुद 79 साल के हैं. अमेरिकी युवाओं और बाइडेन के बीच वैचारिक और तमाम तरह की तनातनी का स्रोत बाइडेन की राजनीतिक विरासत को भी माना जा रहा है, जिसमें उन्होंने प्रगतिशील विचारों का बढ़-चढ़ कर साथ देने के बजाय मध्यममार्ग को चुनने का रास्ता अपनाया. इसके चलते अमेरिकी सीनेट में अपने समय के दौरान बाइडेन का मतदान संबंधी रिकॉर्ड यह दिखाता है कि युवा मतदाताओं के साथ उनकी ठीक पटरी नहीं बैठती.

अमेरिकी युवाओं और बाइडेन के बीच वैचारिक और तमाम तरह की तनातनी का स्रोत बाइडेन की राजनीतिक विरासत को भी माना जा रहा है, जिसमें उन्होंने प्रगतिशील विचारों का बढ़-चढ़ कर साथ देने के बजाय मध्यममार्ग को चुनने का रास्ता अपनाया. 

कुछ मामलों में,  इसका एक कारण साल 1994  के अपराध बिल के पक्ष में उनका मतदान भी है,  जिसने असमान रूप से अल्पसंख्यकों और इराक़ युद्ध के लिए उनके वोट को प्रभावित किया. इसके अलावा, हाल ही में बाइडेन ने डेमोक्रेट्स से आग्रह किया कि वो “बहुत तेज़-तर्रार और आधुनिक (woke)” न बनें. इसके साथ ही क्लैरेंस थॉमस की सुनवाई के मामले को लेकर उनका रवैया और यौन दुराचार के आरोप चुनावी राजनीति के दौर में उन्हें युवा वर्ग और युवा मतदाताओं से अलग-थलग करने में अहम भूमिका निभा सकते हैं. इसलिए,  बाइडेन और उनका अभियान अब “होल फूड्स बबल” के रूप में चर्चित उस मतदाता वर्ग पर ध्यान केंद्रित कर रहा है- जो एक तरह से बिखरा हुआ है लेकिन युवा है, संभ्रांत है, कॉलेज में शिक्षा प्राप्त है, और आमतौर पर आर्थिक-सामाजिक विशेषाधिकार प्राप्त पीढ़ी का हिस्सा है. समस्या यह है कि यह तबका भले ही मतदाताओं का लगभग 40 प्रतिशत हिस्सा हो लेकिन जब वास्तव में वोट डालने की बात आती है तो युवाओं ने लगातार कमज़ोर प्रदर्शन किया है, और इसलिए इन पर ध्यान केंद्रित करना एक मुश्किल और शंकाओं से भरा फैसला हो सकता है. इसके अलावा यह तथ्य भी ध्यान रखने योग्य है कि युवा मतदाताओं की यह आबादी, कैलिफ़ोर्निया और मैसेचुसेट्स जैसे राज्यों में केंद्रित हैं, जहां वे मतदाता वर्ग के आधे से अधिक हिस्से का गठन करते हैं. जबकि, असल युद्ध के मैदान यानी फ्लोरिडा और पेंसिल्वेनिया जैसे राज्यों में,  जहां का मतदान और रुझान चुनावी नतीजों के लिए बेहद महत्वपूर्ण साबित होता है, यह वर्ग लगभग एक-तिहाई पर सिमट जाता है. यहां तक कि विस्कॉन्सिन और मिशिगन में यह वर्ग मतदाताओं के पांचवें हिस्से से भी कम है.  

ऐसे में युवा मतदाता भले ही बाइडेन को वोट देने के लिए पूरी तरह से सामने आए, तो भी यह चुनाव इलेक्टोरल कॉलेज को सुरक्षित रखने के लिए पर्याप्त नहीं होगा. जबकि, श्वेत कामकाजी वर्ग हर रूप में उन संगठनों और समुदायों की रीढ़ है, जो अपनी एकजुटता से किसी एक प्रत्याशी या पार्टी का चयन कर उसे जिता सकते हैं. यही वजह है कि डेमोक्रेटिक पार्टी पर नज़र रखने वाले रणनीतिकार जेम्स कारविल ने हाल ही में कहा कि, “यदि आप उत्तरी विस्कॉन्सिन में जीत हालिस करना चाहते हैं तो ‘सर्वनामों’ की चिंता छोड़िए और बिग-फार्मा यानी बड़ी दवा कंपनियों में हो रहे भ्रष्टाचार के बारे में अधिक से अधिक बात करना शुरू करिए.”

अब जब ट्रंप को लेकर स्पष्ट रूप से राजनीतिक और नीतिगत तनातनी हो रही है, जैसे ट्रंप द्वारा शुरु किए गए ट्रेड-वॉर यानी व्यापार युद्ध ने अमेरिका के कृषि-उद्योग को नुकसाने पहुंचाने का मुद्दा, या फिर अमीरों के लिए कर में हुई कटौती जो कामकाजी वर्ग को रास नहीं आई है, तब भी बाइडेन प्रगतिवादियों पर ही ध्यान केंद्रित कर अपने लिए पैदा हो रहे नए अवसरों को नकार रहे हैं.

हालाँकि, डेमोक्रेटिक नेशनल कन्वेंशन में, अपनी पार्टी का नामांकन स्वीकार करने के दौरान बाइडेन ने अपने भाषण में ऐसे किसी भी मुद्दे का ज़िक्र नहीं किया जो अमेरिका की श्वेत आबादी को प्रभावित करते हैं, जैसे- महामारी के रूप में फैलती ओपियोड नशे की लत, नौकरियों की आउटसोर्सिंग यानी बाहर के लोगों को मिलती घरेलू नौकरियां और चीन की अनुचित व्यापार नीतियां जिनसे व्यापारी वर्ग लगातार परेशान है. यह बात काफी रोचक है कि डेमोक्रेट्स और श्वेत कामकाजी-वर्ग के बीच की यह दूरी और खाई अपेक्षाकृत रूप से नई है, क्योंकि 90 के दशक के मध्य तक, उन्होंने डेमोक्रेट्स का साथ निभाया है और उनकी नीतियों को अपने लिए सकारात्मक पाया है क्योंकि वे रिपब्लिकन पार्टी को “अमीर लोगों का दल” और “बाइबिल को साथ लेकर चलने वालों” की पार्टी के रूप में देखते थे.

अब जब  ट्रंप को लेकर स्पष्ट रूप से राजनीतिक और नीतिगत तनातनी हो रही है, जैसे ट्रंप द्वारा शुरु किए गए ट्रेड-वॉर यानी व्यापार युद्ध ने अमेरिका के कृषि-उद्योग को नुकसाने पहुंचाने का मुद्दा, या फिर अमीरों के लिए कर में हुई कटौती जो कामकाजी वर्ग को रास नहीं आई है, तब भी बाइडेन प्रगतिवादियों पर ही ध्यान केंद्रित कर अपने लिए पैदा हो रहे नए अवसरों को नकार रहे हैं. बावजूद इसके कि उनके यह प्रयास प्रगतिशील मतदाता वर्ग में कोई खास उत्साह नहीं जगा पाए हैं. ऐसे में साल 2020  का चुनाव एक बार फिर डेमोक्रेट पार्टी के लिए “व्हाइट-बैकलैश”, या “व्हाइटलैश” के रूप में सामने आ सकता है.

The views expressed above belong to the author(s). ORF research and analyses now available on Telegram! Click here to access our curated content — blogs, longforms and interviews.