Author : Nidhi Razdan

Published on Oct 18, 2017 Updated 0 Hours ago

भारत ने डोकलाम गतिरोध का सामना भले ही बेहद परिपक्वता और संयम से किया है, लेकिन भारत अपनी सतर्कता में किसी तरह की कोताही बरतने की स्थिति में बिल्कुल नहीं है।

डोकलाम के बाद भी अड़चनों भरी है आगे की राह

इस महीने सिक्किम के नाथु-ला में भारत-चीन सरहद पर चीनी सैनिकों के साथ रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमण की बिना किसी पूर्व तैयारी की बातचीत पर चीन ने बहुत ही उत्साह से भरपूर प्रतिक्रिया व्यक्त की है। डोकलाम गतिरोध सुलझने के बाद से जारी सुखद दौर के बीच भारतीय मीडिया में यह खबर सुर्खियों में रही। कैमरे में कैद हुए क्षणों में सुश्री सीतारमण चीनी सैनिकों को ‘नमस्ते कहने’ का अंदाज सिखाती दिखाई दे रही हैं। यह वीडियो जल्द ही वायरल हो गया। इस खबर के सुख्रियां बटोरने के साथ ही, यह खबर भी जल्द ही मीडिया में छा गई : उपग्रह से प्राप्त हाई रेजोल्यूशन चित्रों ने दर्शाया कि चीन लगभग पिछले 10 साल से डोकलाम पठार के रास्तों को हर मौसम के अनुकूल सड़कों में तब्दील करता आया है। एनडीटीवी की एक रिपोर्ट में कहा गया: “उपग्रह से प्राप्त चित्रों में डोकलाम से चुम्बी घाटी के यातुंग शहर की ओर जाती हुई दो सड़कों को दर्शाया गया है, जहां चीन ने अपने सैनिकों के बेस बना रखे हैं, जिनका इस्तेमाल वह डोकलाम पठार के ऊचांई वाले इलाकों में अपनी कार्रवाइयों में करता है।”

दोनों देशों के बीच दशकों के बाद उपजा 70 दिन का जबरदस्त गतिरोध सुलझने के महज महीने भर बाद ही ऐसे खबरें सामने आने लगी हैं कि चीन ने डोकलाम पठार पर सड़क बनाने का दोबारा शुरू कर दिया है। यह कार्य गतिरोध वाली जगह से लगभग 10 किलोमीटर की दूरी पर हो रहा है।

28 अगस्त को गतिरोध समाप्त होने के कुछ ही अरसे बाद दोबारा शुरू हुई सड़क बनाने की कार्रवाई वाले स्थान पर करीब 500 सैनिकों के मौजूद होने की खबर है। हालांकि वहां किसी स्थायी ढांचे का कोई चिन्ह नहीं है। जहां एक ओर विदेश मंत्रालय ने 28 अगस्त को इस मसले का समाधान होने के बाद से “गतिरोध वाली जगह” पर आधिकारिक तौर पर “यथा स्थिति बहाल” होने की बात कही है, वहीं सैन्य अधिकारियों का मानना है कि यह चीन का अपने क्षेत्रीय दावों के बारे में संदेश देने का तरीका है।

इसलिए, जहां एक ओर भारत ने डोकलाम गतिरोध का सामना बेहद परिपक्वता और संयम से किया है, और चीनी सैनिकों को नमस्ते कहती रक्षा मंत्री की तस्वीरें भले ही अच्छा पीआर साबित हो सकती हों, लेकिन इसके बावजूद भारत अपनी सतर्कता में किसी तरह की कोताही बरतने की स्थिति में बिल्कुल नहीं है। मीडिया को भी आवश्यक तौर पर भारत-चीन संबंधों को कवर करते समय परिपक्वता​ से काम लेने की जरूरत है।


मीडिया को भी आवश्यक तौर पर भारत-चीन संबंधों को कवर करते समय परिपक्वता से काम लेने की जरूरत है।


सितम्बर में शियामेन में ब्रिक्स शिखर सम्मेलन के दौरान प्रधानमंत्री मोदी की चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के साथ मुलाकात के दौरान दोनों देशों के रक्षा कर्मियों के बीच बेहतर सम्पर्क स्थापित करने के बारे में जारी किए गए कुछ सकारात्मक बयानों के अलावा इस बात पर यकीन करने की कोई वजह नहीं है कि सरहद पर तनाव समाप्त हो जाएगा। दरअसल, इस बात की संभावना काफी अधिक है कि चीन वास्तविक नियंत्रण रेखा या एलएसी के विभिन्न ​भागों पर भारत को उकसाता रहेगा। भारत के कड़े दृढ़ रुख , ब्रिक्स शिखर सम्मेलन के आयोजन का समय और अक्टूबर के मध्य में होने वाली चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के सम्मेलन ने चीन के राष्ट्रपति को डोकलाम पर मंशा के विपरीत काम करने के लिए मजबूर कर दिया था।

पिछले महीने, साफ तौर पर चीन की ओर ही इशारा करते हुए सेना प्रमुख बिपिन रावत ने चेतावनी दी थी: “जहां तक उत्तरी ​विरोधी का सवाल है,ताकत का प्रदर्शन शुरू हो चुका है। क्षेत्र पर कब्जा जमाने के लिए धीरे-धीरे की जाने वाली कार्रवाइयां हमारे सब्र का इम्तिहान ले रही हैं या वे इस कगार पर आ पहुंची हैं, जहां हमें सजग रहना होगा। हमें ऐसी परिस्थितियों के लिए तैयार रहना होगा, जो धीरे-धीरे संघर्ष का रूप ले रही हैं।”

भारत सरकार के लिए उपयुक्त यही रहेगा कि वह सेना की ओर से लगातार की जा रही चीन से सटी 4,057 लम्बी वास्तविक नियंत्रण रेखा से सटे इलाकों में बेहतर बुनियादी ढांचा तैयार करने की मांग को मान लें। सेना के कमांडरों के हाल के सम्मेलन के दौरान इसी बात पर ध्यान केंद्रित किया गया है।


भारत सरकार के लिए उपयुक्त यही रहेगा कि वह सेना की ओर से लगातार की जा रही चीन से सटी 4,057 लम्बी वास्तविक नियंत्रण रेखा से सटे इलाकों में बेहतर बुनियादी ढांचा तैयार करने की मांग को मान लें।


ब्रिक्स के सितम्बर घोषणा पत्र के बारे में मीडिया में बहुत कुछ कहा गया, जिसमें पाकिस्तान से गतिविधियां चलाने वाले लश्कर-ए-तैयबा, जैश-ए-मोहम्मद और हक्कानी नेटवर्क जैसे गुटों की पहली बार चर्चा की गई, लेकिन ऐसा भारत के संदर्भ में नहीं, बल्कि अफगानिस्तान के सदंर्भ में किया गया। इसी तरह की घोषणा एशिया के केंद्र अमृतसर में,दिसम्बर, 2016 में की गई थी, जिसके भागीदार चीन और पाकिस्तान दोनों ही थे।

आतंकवाद के मसले पर चीन की मंशा की असली परीक्षा इस महीने के आखिर में उस समय होगी, जब जैश-ए-मोहम्मद के सरगना मसूद अजहर का नाम आतंकवादियों की सूची में शामिल करने के बारे में अमेरिका, ब्रिटेन और फ्रांस के आवेदन पर संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की प्रतिबंधों से संबंधित समिति में विचार होगा। जैश-ए-मोहम्मद के सरगना पर प्रतिबंध लगवाने के भारत और अन्य देशों के प्रयासों में चीन बार-बार रोड़े अटकाता आया है।

दिलचस्प बात यह है कि इस साल, चीन ने ब्रह्मपुत्र और सतुलत नदियों के हाइड्रोलॉजिकल या जलविज्ञान से संबंधित आंकड़े भारत के साथ साझा नहीं किए। आमतौर पर 15 मई से लेकर 15 अक्टूबर तक, बाढ़ की आशंका वाले सीजन के दौरान चीन इन आंकड़ों को भारत के साथ साझा किया करता था। दोनों देशों के बीच 2006 में स्थापित व्यवस्था के तहत, चीन को दिन में दो बार ये आंकड़े भारत को देने होते हैं। चीन के नदी के ऊपरी तट वाला देश होने के नाते ये आंकड़े बहुत महत्वपूर्ण हैं। इन आंकड़ों के प्राप्त होने के बाद नदी के निचले तट पर स्थित देश होने के नाते भारत पूर्वोत्तर में बाढ़ की स्थिति से निपटने की दिशा में आवश्यक कदम उठा पाता है। नई दिल्ली में सरकारी अधिकारियों ने इस बात की पुष्टि की है कि इस साल भारत को इन आंकड़ों की जानकारी नहीं दी गई, जबकि चीन ने ऐसा करने की वजह “तकनीकी और लॉजिस्किल” समस्या बताया है।

चीन के विरोध की बदौलत, परमाणु आपूर्तिकर्ता देशों के समूह या एनएसजी में भारत की सदस्यता के संबंध में भी कोई प्रगति नहीं हुई है। भारत पिछले साल वाली स्थिति से काफी आगे बढ़ चुका है, जब विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने बहुत यकीन के साथ घोषणा की थी कि इस साल के आखिर तक भारत इस समूह का सदस्य बन जाएगा। चीन ने उन योजनाओं को नाकाम कर दिया और भारत बहुत समझदारी के साथ इस मसले पर बहुत शांति के साथ आगे बढ़ रहा है।


चीन के विरोध की बदौलत, परमाणु आपूर्तिकर्ता देशों के समूह या एनएसजी में भारत की सदस्यता के संबंध में भी कोई प्रगति नहीं हुई है.. चीन ने उन योजनाओं को नाकाम कर दिया और भारत बहुत समझदारी के साथ इस मसले पर बहुत शांति के साथ आगे बढ़ रहा है।


चीन निश्चित तौर पर हमारा विरोधी है, लेकिन क्या उसे दुश्मन की दृष्टि से देखना समझदारी होगी? भारत की पूर्व विदेश सचिव और चीन में भारत की पूर्व राजदूत निरुपमा राव ने अपने हाल के एक लेख में यही दलील दी है। उन्होंने इस बारे में “संयमित व्यव​हारिकता से काम लेने का आह्वान किया है। चीन का शत्रु का दर्जा बहाल करना वांछित या सतत लक्ष्य नहीं है।”

शायद बेहतर यही होगा कि शीर्ष भारतीय सैन्य अधिकारी “दो मोर्चों पर जंग” के बारे में बयानबाजी न करें। हाल ही में एयर चीफ मार्शल बी.एस. धनोआ ने कहा था कि भारतीय वायु सेना चीन और पाकिस्तान के साथ दोनों-मार्चों पर जंग लड़ सकती है।

चीन के साथ इस लम्बे खेल में आगे बढ़ने का शायद सबसे बेहतरीन तरीका, “संयमित व्यवहारिकता” है। इसलिए जब रक्षा मंत्री चीनी सैनिकों को नमस्ते कहती हैं या फिर जब चीन की कोई यूनीवर्सिटी योग में पहली मास्टर्स डिग्री की पेशकश करती है, जैसा कि मिंजु यूनिवर्सिटी द्वारा हाल में किया जा रहा है, तो ऐसे कदमों की हर हाल में सराहना की जानी चाहिए। लेकिन भारत को अपने बुनियादी ढांचे और सबसे बढ़कर अपनी ​अर्थव्यवस्था को मजबूत बनाने की जरूरत है। असली जंग यहीं पर है।

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