Published on Dec 30, 2021 Updated 0 Hours ago

क्या ग्लोबल गेटवे की पहल यूरोपीय संघ को बदलती वैश्विक व्यवस्था में इसकी भूमिका को फिर से स्थापित करने में मददगार होगी?

यूरोपीय संघ विश्व का प्रवेश द्वार : प्रासंगिकता और अदृश्यता के बीच संकीर्ण रास्ता

यूरोपीय संघ (ईयू) की नई अंतर्राष्ट्रीय इन्फ्रास्ट्रक्चरल कनेक्टिविटी प्रोग्राम, द ग्लोबल गेटवे, हर तरह से विदेश नीति की उन सभी  ज़रूरतों को पूरी करता है जिसके बारे में विश्व भर के पर्यवेक्षक और आलोचक अपनी राय साझा करेंगे. वास्तव में, 1 दिसंबर, यानी जिस दिन से इसकी आधिकारिक शुरुआत हुई, उसी दिन से इसके ख़िलाफ़ आलोचना के  स्वर मुखर होने लगे और यह मान लिया गया कि यह महज यूरोपियन कमीशन की रिब्रैंडिंग की कोशिश है. दो अहम धारणाओं में अंतर को लेकर इसके प्रति संदेह की स्थिति पैदा होती है. पहला, इस पहल के लिए 300 बिलियन यूरो का बज़टीय प्रावधान महज मौजूदा वित्तीय प्रतिबद्धता जो कि साल 2021 – 2027 तक के लिए किया गया है, उसकी रिपैकेजिंग है. दूसरा, ग्लोबल गेटवे के टीम यूरोप गवर्नेंस स्ट्रक्चर में भी कई ख़ामियां हैं जो इसके विकासशील महत्वाकांक्षाओं और इसकी प्रभावशीलता को लेकर सवाल खड़े करता है.

आलोचकों की दोनों राय में कुछ सच्चाई है. कमीशन के ग्लोबल गेटवे के अपने वित्तीय ब्रेकडाउन  के बाद 135 बिलियन यूरो मौजूदा यूरोपियन फंड फॉर सस्टेनेबल डेवलपमेंट से आ रहा है इसके साथ ही 145 बिलियन यूरो “यूरोपियन वित्तीय और विकासशील वित्तीय संस्थानों के योजनागत निवेश” का हिस्सा हैं, और इसके अतिरिक्त 18 बिलियन यूरो यूरोपीय संघ के बाह्य मदद कार्यक्रम से ग्रान्ट के तौर पर उपलब्ध होगा. दूसरे शब्दों में इसका मतलब यह हुआ कि इससे कोई ताजा नकद नहीं आने वाला है. जब बात टीम यूरोप स्ट्रक्चर की होती है, यह कहना सही होगा कि ऐसे व्यापक स्तर और विकेंद्रित दृष्टिकोण को इसलिए विकसित किया गया क्योंकि कोरोना महामारी की चुनौतियों का सामना किया जा सके जो ब्रूसेल्स में शुरुआती समन्वय की कमी और विचारों के विभाजन के कारण नहीं हो सका था. इसके साथ ही ऑपरेशनल स्तर पर टीम यूरोप की शुरूआत यूरोपीय संघ की दीर्घकालिक रणनीति के साथ कोई अच्छे ढ़ंग से नहीं जोड़ी गई, क्योंकि सदस्य देशों पर ज़रूरत से ज़्यादा निर्भरता, जो एक दूसरे के विशिष्ट प्रस्तावों की ओर देख रहे हैं, इसकी एक बड़ी वजह है. ग्लोबल गेटवे कनेक्टिविटी प्रोजेक्ट को अमल में लाने में भी यही सारी बाधाएं पैदा हो सकती हैं.

अगर ग्लोबल गेटवे को लिस्बन संधि के बाद की संस्थागत और राजनीतिक वास्तविकताओं से उपजी हालत मानी जा रही है तो इसकी कमियों को नज़रअंदाज़ कर पाना आसान हो जाएगा और यूरोपीय संघ की वैश्विक रणनीति के विकास में इसकी भूमिका और अधिक स्पष्ट हो पाएगी.

इसे कहने के बाद, यूरोपीय विदेश नीति एकीकरण की लंबी प्रक्रिया में आलोचनाओं को केंद्रित किया जाना चाहिए. वास्तव में, अगर ग्लोबल गेटवे को लिस्बन संधि के बाद की संस्थागत और राजनीतिक वास्तविकताओं से उपजी हालत मानी जा रही है तो इसकी कमियों को नज़रअंदाज़ कर पाना आसान हो जाएगा और यूरोपीय संघ की वैश्विक रणनीति के विकास में इसकी भूमिका और अधिक स्पष्ट हो पाएगी.

2009 की लिस्बन संधि निश्चित रूप से कार्यकारी स्तर पर सही मायने में यूरोपीय विदेश नीति के लिए संस्थागत शर्तों को जन्म देने के लिए सराहनीय है, ख़ास तौर पर यूरोपियन एक्सटर्नल  एक्शन सर्विस (ईईएएस) की स्थापना जब से हुई है. हालांकि, इसमें किसी भी विदेश नीति को वीटो करने के लिए हर सदस्य  देश के विशेषाधिकार भी शामिल हैं. क्योंकि यूरोपीय संघ की विदेश मामलों की परिषद अभी भी सर्वसम्मति के नियम के तहत ही संचालित होती है.  इसलिए पिछले दशक में, यूरोपीय विदेश नीति ना केवल आयोग और परिषद की प्राथमिकताओं के बीच एक समझौता है,  बल्कि यह सत्ता से संबंधित और ख़ास तर्कों ने भी इसे बढ़ावा दिया है. ग्लोबल गेटवे को समझने के लिए यूरोपीय संघ में विदेश नीति के संयोजन को संचालित करने वाले कारणों को जानना होगा.

अंतर सरकारीवाद और परिषद

यूरोपीय संघ की परिषद में एकीकरण को बेहतर अंतर सरकारीवाद के मापदंड  के पालन करने के तौर पर समझा जाता है, जो हितों को ध्यान में रखते हुए दूसरे मुल्कों की भूमिका को रेखांकित करता है, जो संरक्षण और प्रक्रिया के विभिन्न चरणों में अपनी प्राथमिकताओं को बढ़ावा देता है.  लिस्बन संधि के संस्थागत संदर्भ में, अंतरसरकारी वाद ने सहायक भूमिका – साझा मानदंडों, विश्वास और पारस्परिकता के आधार पर – एक प्रतिस्पर्द्धी के रूप में – काम कर रहा है. पहली किस्म से ज़्यादा आसानी से ईयू की घरेलू नीति के एकीकरण प्रक्रिया के उदाहरण का निष्कर्ष निकाला जा सकता है, इसमें प्रमुख इस साल से पहले रिकवरी फंड को लागू करने का ऐतिहासिक क्षण सम्मिलित है, जो उत्तर और दक्षिण के बीच अंतर को कम करने के लिए समझौते का एक सकारात्मक नतीजा है.

इसके बजाय, विदेश नीति के मोर्चे पर, प्रतिस्पर्द्धी ‘ बंधक बनाने ‘ की कोशिश ज़्यादा सक्रिय होती जा रही है और यह तब होता है जब एक सदस्य राज्य अपने ख़ुद के, कई बार असंबंधित, नीतिगत प्राथमिकताओं का समाधान करने में जुटा होता है और इस तरह वह सामूहिक फैसलों की तेजी को बाधित करता है. ‘ बंधक बनाने ‘ का एक उदाहरण सितंबर 2020 में मिलता है, जब परिषद बेलारूस के ख़िलाफ़ प्रतिबंध लगाने में असमर्थ दिख रहा था जबकि लुकाशेंको के भ्रष्ट चुनाव गतिविधियों के चलते हज़ारों प्रदर्शनकारियों के ख़िलाफ़ कार्रवाई की गई थी. नैतिक रूप से बेलारूस के ख़िलाफ़ फैसले लेने की सोच सभी सदस्य देशों की थी  लेकिन तब साइप्रस ने यह कह कर इस पर वीटो लगा दिया कि जबतक पूर्वी भूमध्य सागर में तुर्की की आक्रामक नीति से उसकी शंकाओं को दूर नहीं किया जाता है सदस्य देश बेलारूस के ख़िलाफ़ भी कार्रवाई नहीं कर सकते हैं. उपरोक्त उदाहरण यह बताने को काफी है कि सतरह प्रतिस्पर्धात्मक नीतियों से पैदा होने वाले गतिरोध किसी फैसले को बाधित करते हैं.

अंतरसरकारीवाद ने ना केवल विदेश नीति के एकीकरण के निष्कर्षों को निर्धारित किया है – यानी, परिषद द्वारा अपनाए गए निर्णयों – बल्कि इसकी संरचनाएं, मतलब, संस्थागत ढांचा जिसके जरिए यह एकीकरण मुमकिन हो पाता है.  विशेष रूप से, जनादेश, बज़ट और यूरोप की बाहरी कार्रवाई सेवा (ईईएएस) के विशेषाधिकार की व्याख्या सदस्य देशों की अलग-अलग प्राथमिकताओं के बीच एक समझौते का नतीजा था. इसकी वजह से कॉमन सिक्युरिटी एंड डिफेंस पॉलिसी (सीएसडीपी) को कभी भी संस्थागत स्वतंत्रता नहीं प्रदान की गई, यहां तक कि इसके मिशन को भी तदर्थ आधार पर सदस्य देशों, जो संसाधन देने को राजी होते हैं, द्वारा डिज़ाइन किया जाता रहा है.  प्रभावी रूप से, अंतर सरकारीवाद यूरोपीय विदेश नीति एकीकरण प्रक्रिया को ध्यान में रख कर तैयार किया गया है. यह कल्पना करना मुश्किल नहीं है कि अगर ग्लोबल गेटवे के प्रस्ताव को परिषद के सामने रखा जाता तो इसका क्या हश्र होता.

संस्थानवाद और आयोग

यूरोपीय आयोग और ईईएएस अपने बज़टीय और संरचनात्मक बदलावों के लिए परिषद पर निर्भर है, उसने वैकल्पिक साधनों के जरिए यूरोपीय विदेश नीति के एकीकरण को बढ़ावा दिया है.  संस्थागत स्पष्टीकरण, जो एकीकरण प्रक्रिया में नियमों और आदर्श की रचनात्मक भूमिका पर जोर देते हैं, यूरोपीय संघ के कार्यकारी निकायों के व्यवहार को समझने के लिए सबसे बेहतर जरिया हैं.  जब कोरोना महामारी के लिए वैक्सीन ख़रीद की रणनीति की बात आई तो आयोग इस प्रक्रिया को केंद्रीकृत करने और इसके लिए ज़िम्मेदारी संभालने के लिए तर्क देने में कामयाब रहा और उसने एक ऐसे मज़बूत तर्क पर भरोसा करके ऐसा किया. सच में, आयोग ने यूरोपीय एकता के लिए सदस्य देशों की प्रतिबद्धता को बढ़ावा दिया और धनी देशों को इस बात के लिए तैयार किया कि वो सामान्य ख़रीद योजनाओं, जो आनुपातिक आवंटन के आधार पर तय होगा, के लिए पृष्ठभूमि तैयार किया.  यह मानदंड संबंधी उकसावे का उदाहरण है. जो विशेष राष्ट्रीय हितों या नीतिगत वरीयताओं को छोड़ने के लिए एकीकरण को अहम बताता है.

2019 से ही बाहरी कार्रवाई के लिए आयोग के दृष्टिकोण में ऐसी ही कोशिशों को करते देखा गया, जिसमें यूरोपीय संघ के कार्यकारी के लिए एक नई ‘ भू-राजनीतिक पहचान ‘ को बनाने की कोशिश शामिल थी. 

जब इन मानदंडों को संस्थागत वास्तविकताओं में शामिल किया जाता है तब कहा जाता है कि एकीकरण की प्रक्रिया मानदंड संबंधी बाधाओं से आगे निकलती है. आयोग द्वारा नीति निर्माण करना निश्चित रूप से बाधा पहुंचाने के तर्क के जरिए आगे बढ़ा है, जो नीति सामंजस्य और प्रामाणिक निरंतरता की इच्छा पर स्थापित किया गया है. उदाहरण के लिए, यूरोपीय संघ ग्रीन डील और एक समर्पित आयुक्त के संस्थानीकरण के जरिए से आयोग द्वारार शुरू की गई सभी प्रमुख घरेलू और विदेश नीति पहलों में पर्यावरणीय स्थिरता के आदर्श को सम्मिलित किया गया है. नतीजतन, आयोग यूरोपीय संघ के निर्णय लेने की प्रक्रिया को बदलने के लिए आवश्यक नौकरशाही पर दबाव बनाता है और इसे सही ठहराने के लिए वैधता के मूल्य आधारित स्रोत का इस्तेमाल करता है.  2019 से ही बाहरी कार्रवाई के लिए आयोग के दृष्टिकोण में ऐसी ही कोशिशों को करते देखा गया, जिसमें यूरोपीय संघ के कार्यकारी के लिए एक नई ‘ भू-राजनीतिक पहचान ‘ को बनाने की कोशिश शामिल थी. यह ‘यूरोपीय रणनीतिक स्वायत्तता’ के आसपास की चर्चा द्वारा आगे बढ़ाया गया है, जो एक मानक अवधारणा है जिसे आयोग और ईईएएस  द्वारा उनकी अंतर्राष्ट्रीय संबंध रणनीतियों के लिए बुना गया है, जिसमें उनकी सबसे हाल में इंडो-पैसिफ़िक रणनीति भी शामिल हैं. कनेक्टिविटी, बतौर सामान्य विदेश नीति की प्राथमिकता, भी इसी तरह की प्रक्रियाओं के तहत गुजर रही है.

एजेंडा निर्माण और ग्लोबल गेटवे

यूरोपीय विदेश नीति एकीकरण के दो परिदृ्यों पर वैश्विक गेटवे परियोजना के लिए कई असुविधाजनक बातें सामने आती हैं : परिषद की बिगड़ती हालत और बाहरी संबंधों में आयोग की बढ़ती सक्रियता इसकी मुख्य वजह है. इसलिए बड़ी चालाकी से इस पहल को ऐसा डिज़ाइन किया गया है जिससे यह घाटे का सौदा लगे ना कि एक नए विवादित कार्यक्रम की तरह, जिसे विकेंद्रित तरीके से प्रशासित किया जाएगा, जिसमें ब्रूसेल्स हिस्से की नौकरशाही शक्तियों को हटा दिया जाएगा. हालांकि, ग्लोबल गेटवे को ना केवल संरचनात्मक नतीजे के रूप में देखा जाना चाहिए बल्कि आयोग की ओर से एजेंसी के लिए कोशिशों के तौर पर भी इसे देखा जाना चाहिए. असल में, ग्लोबल गेटवे के एक अहम पहलू को इसके आलोचकों ने पूरी तरह से नज़रअंदाज़ कर दिया है और वो है इसकी एजेंडा निर्माण करने की क्षमता. आयोग और ईईएएस, मौजूदा परियोजनाओं की पब्लिक रिब्रांडिंगके जरिए, अपनी प्राथमिकताओं को पहले सामने लाने का काम कर रहे हैं – ख़ास कर आर्थिक, पर्यावरण, स्वास्थ्य और इन्फ्रास्ट्रक्चर कनेक्टिविटी को लेकर यह ज़्यादा हो रहा है.

नीतियों के एकीकरण का हाल पहले से ज़्यादा बेहतर है, क्योंकि, पहला, कनेक्टिविटी के मुद्दे को सामने ला कर इसे बढ़ाया जा रहा है.  इस तरह की अवधारणाएं बहुत तेजी से आयोग की आधिकारिक संवाद का हिस्सा बनती जा रही हैं, अलग-अलग दस्तावेजों को दर्शाते हुए, जिसमें बड़े प्रोजेक्ट जैसे फिट फॉर 55, ईयू ईस्टर्न पार्टनरशिप, द डिज़िटल कम्पास, और इंडो-पैसिफिक रणनीति भी शामिल हैं.  सबसे अहम सितंबर 2021 में  राष्ट्रपति वॉन डेर लेवेन के आधिकारिक संबोधन में  कनेक्टिविटी और ग्लोबल गेटवे का जिक्र किया गया था.  इन सभी कार्यों से कनेक्टिविटी के मुद्दे के बारे में रुचि पैदा होने लगी जिससे भविष्य में इसके लिए समर्थन और संसाधनों को जुटाने में सदस्य देशों की लामबंदी होने लगी. ग्लोबल गेटवे का एक दूसरा प्रमुख असर यह है कि यह आयोग और ईईएएस के लिए कनेक्टिविटी के मुद्दे पर विश्वसनीयता और वैधता का निर्माण करने में एक तरह से नेतृत्व करता है. संसाधनों और लोगों को फिर से तैयार करके, यूरोपीय संघ के कार्यकारी निकाय क्षमता, विशेषज्ञता और प्राधिकरण प्राप्त कर सकते हैं,  जो ग्लोबल  गेटवे के अस्तित्व से परे रह सकता है और जिस पर ईयू भरोसा कर सकता है कि इसके जरिए भविष्य के वैश्विक विकास कार्यक्रमों को लागू कराया जा सकता है.

ग्लोबल गेटवे के राजनीतिक असर को फिलहाल नज़रअंदाज़ किया जा रहा है लेकिन जो बातें महत्वपूर्ण हैं वो यह कि वित्तीय आकार और भौतिक असर के संदर्भ में विकासशील देशों पर इसकी कामयाबी को किस तरह आंका जाएगा.

ग्लोबल गेटवे के राजनीतिक असर को फिलहाल नज़रअंदाज़ किया जा रहा है लेकिन जो बातें महत्वपूर्ण हैं वो यह कि वित्तीय आकार और भौतिक असर के संदर्भ में विकासशील देशों पर इसकी कामयाबी को किस तरह आंका जाएगा. इसलिए इसे आसानी से अस्वीकार नहीं किया जा सकता है, बल्कि इसे आयोग के रास्ते में बढ़ाए गए एक कदम के तौर पर देखना होगा और नतीजतन वैश्विक परिदृश्य में ईयू के लिए एक ज़्यादा सक्रिय भूमिका निभाने की ज़िम्मेदारी होगी. हालांकि एक संकीर्ण रास्ता है जो इसकी प्रासंगिकता और अदृश्यता के बीच खींची हुई है.

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