Published on Aug 02, 2023 Updated 0 Hours ago

अगर राष्ट्रपति पुतिन, यूक्रेन पर क़ब्ज़ा करने में कामयाब हो जाते हैं, तो इससे साम्राज्यवाद के बाद के दौर में उसे एक ऐसी बड़ी शक्ति के रूप में उभरने में मदद मिल सकेगी, जिसकी हैसियत विश्व राजनीति में भी काफ़ी बढ़ जाएगी. इसके लिए रूस, उत्तर और दक्षिण दिशाओं में अपने भू-राजनीतिक और भू-आर्थिक हितों के विस्तार का नज़रिया अपना रहा है.

ड्रैगनबियर: बदलते वैश्विक परिदृश्य में पुतिन के विकल्प!
ड्रैगनबियर: बदलते वैश्विक परिदृश्य में पुतिन के विकल्प!

यह लेख रायसीना फाइल्स 2022 नामक सीरिज़ का हिस्सा है.


24 फ़रवरी को रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने तमाम दिशाओं से यूक्रेन के ख़िलाफ़ आक्रमण करने का फ़ैसला किया. [i] 2014 में क्राइमिया पर क़ब्ज़ा करने और पूर्वी यूक्रेन में अलगाववादी गतिविधियों को बढ़ावा देने [ii] के बाद रूस का यूक्रेन पर ये दूसरा हमला है, [iii] जिसने रूस के भू-राजनीतिक नज़रिए में एक नए अध्याय की शुरुआत की है. इससे भी ज़्यादा अहम बात तो इस युद्ध को लेकर चीन की प्रतिक्रिया और रूस को उसका खुला कूटनीतिक, वित्तीय और आर्थिक समर्थन थी. तो क्या एक नया भू-राजनीतिक गठबंधन बन रहा है- जिसे 2015 में मैंने ‘ड्रैगनबियर’ [iv] का नाम दिया था- जो रूस और चीन के बीच अहम सामरिक क्षेत्रों में गहरे होते संबंधों से खुलकर ज़ाहिर हो रहा है. अगर वाक़ई ऐसा है, तो पुतिन के भू-राजनीतिक विकल्प क्या है?

क्या एक नया भू-राजनीतिक गठबंधन बन रहा है- जिसे 2015 में मैंने ‘ड्रैगनबियर’ का नाम दिया था- जो रूस और चीन के बीच अहम सामरिक क्षेत्रों में गहरे होते संबंधों से खुलकर ज़ाहिर हो रहा है. अगर वाक़ई ऐसा है, तो पुतिन के भू-राजनीतिक विकल्प क्या है?

यूक्रेन में चल रहे युद्ध और अमेरिका व चीन के बीच बड़ी ताक़तों वाली होड़ के बीच रूस की कोशिश ये है कि वो ऐसी शक्ति बन जाए, जिसके बिना न तो चीन और न ही अमेरिका ऐसी स्थिति में पहुंच पाएं कि भविष्य में व्यवस्था पर नियंत्रण की लड़ाई में एक दूसरे पर जीत हासिल कर सकें. ये मक़सद हासिल करने के लिए रूस की कोशिश ये है कि वो यूक्रेन, और बेलारूस के साथ मिलकर अपने एक ख़ास ‘प्रभाव क्षेत्र’ का निर्माण करे. इससे रूस को पूर्वी यूरोप, दक्षिणी कॉकेशस और यूरेशिया [v] में एक बड़ी ताक़त के रूप में उभरने में मदद मिलेगी. अगर राष्ट्रपति पुतिन, यूक्रेन पर क़ब्ज़ा करने में कामयाब हो जाते हैं, तो इससे साम्राज्यवाद के बाद के दौर में उसे एक ऐसी बड़ी शक्ति के रूप में उभरने में मदद मिल सकेगी, जिसकी हैसियत विश्व राजनीति में भी काफ़ी बढ़ जाएगी. इसके लिए रूस, उत्तर और दक्षिण दिशाओं में अपने भू-राजनीतिक और भू-आर्थिक हितों के विस्तार का नज़रिया अपना रहा है. इसके दायरे में बैरेंट्स सागर से लेकर आर्कटिक महासागर भी आते हैं; और रूस का ये प्रभाव क्षेत्र पूर्वी यूरोप से शुरू होकर दक्षिणी कॉकेशस तक जाता है; यूरेशिया, मध्य पूर्व और उत्तरी अफ्रीका [vi] भी इसके दायरे में आते हैं. रूस के पश्चिमी इलाक़े में इसकी आबादी की घनी बसावट के चलते ये क्षेत्र, जो नेटो के यूरोपीय देशों की पूर्वी सीमा भी है, वो दुनिया के सबसे अहम भू-सामरिक टकराव के मोर्चों में से एक है. रूस धीरे धीरे ही सही, मगर पूरी मज़बूती से पश्चिमी यूरोप पर अपनी निर्भरता को यूरेशिया, दक्षिणी एशिया (भारत, पाकिस्तान, अफ़ग़ानिस्तान), और यहां तक कि हिंद-प्रशांत क्षेत्र की तरफ़ ले जा रहा है. इसके लिए रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन, हमेशा के लिए यूरोप की सुरक्षा के ढांचे को तब्दील करके, पूर्वी यूरोप में अपने ‘प्रभाव क्षेत्र’ का अध्याय बंद करना चाहते हैं. उनका मक़सद ये है कि यूरोप से फ़ारिग होकर वो दूरगामी अवधि में उपरोक्त भू-राजनीतिक और भू-आर्थिक क्षेत्रों पर अपना ध्यान केंद्रित कर सकें.

‘ड्रैगनबियर’ न तो कोई गठबंधन है, न कोई समझौता और न ही मौक़ापरस्त रिश्ता है. असल में ये एक ऐसा अस्थायी और असमान संबंध है, जिसकी राह चीन प्रभावशाली तरीक़े से तय करता है. लेकिन वो कई मामलों में रूस पर भी निर्भर है.

ये उचित ही है कि आज जब रूस, पश्चिमी देशों के साथ अलग-थलग पड़ रहा है, तो उसे एक ताक़तवर सहयोगी की दरकार है. वहीं, चीन को एक ऐसा वफ़ादार साझीदार चाहिए, जो एक क्षेत्रीय ताक़त हो, ताकि ख़ुद चीन अपना वैश्विक प्रभाव बढ़ा सके. इस संदर्भ में रूस ने मौक़े का फ़ायदा उठाते हुए चीन के साथ अहम और प्रासंगिक भू-राजनीतिक और भू-आर्थिक क्षेत्रों में चीन के साथ संस्थागत रूप से सहयोग को बढ़ावा दिया है. अमेरिका के लगतार दबाव बढ़ाने और पश्चिमी देशों के प्रतिबंधों के चलते, 2014 से ही चीन और रूस के रिश्ते गहरे होते जा रहे हैं.

आख़िर ‘ड्रैगनबियर’ क्या है?

‘ड्रैगनबियर’ न तो कोई गठबंधन है, न कोई समझौता और न ही मौक़ापरस्त रिश्ता है. असल में ये एक ऐसा अस्थायी और असमान संबंध है, जिसकी राह चीन प्रभावशाली तरीक़े से तय करता है. लेकिन वो कई मामलों में रूस पर भी निर्भर है. इस रिश्ते में जहां चीन को व्यापारिक, आर्थिक और वित्तीय दबदबा हासिल है. वहीं, रूस अभी भी मुख्य रूप से अपनी रक्षा शक्ति- और कई मामलों में- अपने क्षेत्रीय शक्ति प्रदर्शन और दुनिया के कई इलाक़ों में कामयाब सैन्य अभियानों के चलते कूटनीतिक रूप से ज़्यादा प्रभावशाली है. दोनों देशों के बीच इस असमान सहयोग को गहरे भू-राजनीतिक हितों के मेल से और मज़बूती मिलती है. क्योंकि दोनों देश आपस में तमाम नीतियों और क़दमों के मामले में संस्थागत समन्वय के ज़रिए अंतरराष्ट्रीय मामलों में अमेरिका के प्रभाव के मुक़ाबले में असरदार जवाब दे पाते हैं.

इससे भी ज़्यादा अहम बात ये है कि वैश्विक अर्थव्यवस्था, वित्त और व्यापारिक क्षेत्रों में दुनिया भर में चल रही उठा-पटक से निपटने के लिए दोनों देश साझा मक़सद से मिलकर काम कर रहे हैं, जिससे ‘ड्रैगनबियर’ और भी मज़बूत होता जा रहा है; लेकिन दोनों ही देश चौथी औद्योगिक क्रांति (4th IR) के चलते दुनिया भर में तेज़ी से बदल रहे सामरिक गठबंधनों और साझेदारियों का भी पूरा ख्याल रखते हैं. वो ये मानते हैं कि विश्व व्यवस्था में संस्थागत परिवर्तन आ रहा है, जिसके नतीजे का पूर्वानुमान नहीं लगाया जा सकता है. हालांकि, रूस और चीन के हितों पर इसके ऐसे असर देखने को मिल सकते हैं, जिनका अभी से अंदाज़ा नहीं लगाया जा सकता है. इसीलिए ‘ड्रैगनबियर’ कोई ऐसा मिसाली गठबंधन नहीं है, जो पश्चिमी विचारों और परिकल्पनाओं के ढांचे में फिट बैठता हो. असल में चीन और रूस ने रणनीतिक रूप से एक दूसरे से हाथ मिला लिया है, ताकि वो बिना किसी सैन्य या सामरिक गठबंधन का औपचारिक एलान करने के बग़ैर भी बदलाव के इस अनिश्चित दौर से से निपट सकें.

उपग्रहों और भविष्य में चांद पर स्टेशन बनाने जैसे कई और क्षेत्र हैं जिसमें दोनों देश आपस में सहयोग के मौक़े तलाश रहे हैं. पश्चिमी देशों की नज़र से देखें, तो अंतरिक्ष क्षेत्र में बड़ी ताक़तों के बीच बढ़ती होड़ के चलते चीन और रूस के बीच अंतरिक्ष या फिर चौथी औद्योगिक क्रांति से जुड़ी नई तकनीकों के क्षेत्रों में सहयोग चिंताजनक है.

इसमें चीन, ज़ाहिर तौर पर आर्थिक और वित्तीय रूप से ज़्यादा मज़बूत साझीदार है. लेकिन वो रूस को अपनी मातहत ताक़त मानने के बजाय बराबरी का दर्ज़ा देता है. इस द्विपक्षीय संबंध में दोनों देशों को एक दूसरे प्रति सम्मान जताना बहुत अहम भूमिका निभाता है. दोनों देशों के राष्ट्रपतियों के बीच 38 बार मुलाक़ात हो चुकी है. 4 फ़रवरी 2022 को जब बीजिंग में शीतकालीन ओलंपिक खेलों का उद्घाटन हुआ, तो दोनों देशों के रिश्ते उरूज़ पर पहुंच गए. तब रूस और चीन के राष्ट्रपति ने एक साझा बयान पर दस्तख़त किए थे, जिसे ‘अंतरराष्ट्रीय संबंधों के एक नए युग में प्रवेश करने और दुनिया के टिकाऊ विकास’ [vii] का बयान कहा गया था.

रूस कई दशकों से चीन को हथियारों का सबसे बड़ा आपूर्तिकर्ता है. रक्षा क्षेत्र में दोनों देशों के बीच सहयोग की बड़ी मिसाल, S-400 एयर डिफेंस सिस्टम और सुखोई-35 लड़ाकू विमान देना है, जिससे अमेरिका के जंगी जहाज़ों पर हमले करने की चीन की क्षमता बहुत बढ़ गई है. [viii] वर्ष 2019 से दोनों देश मिलकर चीन के लिए मिसाइल डिफेंस के अर्ली वार्निंग सिस्टम का विकास कर रहे हैं.[ix] इसके अलावा रूस, चीन की सेना को और भी ऐसी तकनीकी मदद दे रहा है, जिसकी जानकारी देने से रूस के राष्ट्रपति पुतिन ने इनकार कर दिया था.  रूस के वैज्ञानिक चीन की हुआवेई जैसी तकनीकी और दूरसंचार कंपनियों में काम कर रहे हैं.  रूस के लिए, चीन की उन्नत कंप्यूटर चिप, पश्चिमी देशों द्वारा लगाए गए प्रतिबंधों को धता बताकर सैन्य तकनीक हासिल करने का एक और ज़रिया हैं. उपग्रहों और भविष्य में चांद पर स्टेशन बनाने जैसे कई और क्षेत्र हैं जिसमें दोनों देश आपस में सहयोग के मौक़े तलाश रहे हैं. पश्चिमी देशों की नज़र से देखें, तो अंतरिक्ष क्षेत्र में बड़ी ताक़तों के बीच बढ़ती होड़ के चलते चीन और रूस के बीच अंतरिक्ष या फिर चौथी औद्योगिक क्रांति से जुड़ी नई तकनीकों के क्षेत्रों में सहयोग चिंताजनक है. [x]

रूस और चीन ने लंबे समय से चले आ रहे अपने सीमा विवाद को भी शांति से सुलझा लिया है और अपनी सीमाओं पर से सेना हटा ली है. इसी वजह से एक दूसरे के इलाक़ों पर दावे हों या फिर सीमा के विवाद, इन सब मसलों से दूरगामी अवधि में दोनों के रिश्तों पर कोई असर नहीं पड़ने वाला है. वैसे तो दोनों ही देश अन्य देशों के साथ क्षेत्रों के विवाद में उलझे हुए हैं. लेकिन वो आपस में सीधे टकराव से बचते आए हैं.

रूस और चीन खुलकर ये ज़ाहिर करते हैं कि वो यूरेशिया में अमेरिका और यूरोप का प्रभुत्व कम करने के मामले में एकजुट हैं. इस साल जनवरी में जब कज़ाख़िस्तान में हिंसक विरोध प्रदर्शन हुए थे, तो रूस ने कलेक्टिव सिक्योरिटी ट्रीटी ऑर्गेनाइज़ेशन (CSTO) के ज़रिए सैन्य अभियान चलाकर वहां के हालात क़ाबू पाने में मदद की थी. इससे पूरे क्षेत्र में अमेरिका और चीन की तुलना में उसकी हैसियत बेहतर हुई थी

ऊर्जा के क्षेत्र में दोनों देशों के हित, एक दूसरे के पूरक हैं. चूंकि रूस तेल और गैस को मिलाकर दुनिया का सबसे बड़ा आपूर्तिकर्ता देश है. वहीं, चीन दुनिया में ऊर्जा का सबसे बड़ा ग्राहक देश है. इसीलिए, आज जिस तरह यूरोपीय देश अपनी ऊर्जा संबंधी ज़रूरतों के लिए रूस पर निर्भर हैं, उसी तरह के संबंध भविष्य में रूस और चीन के बीच भी विकसित हो सकते हैं, क्योंकि रूस अलग अलग पाइपलाइनों के ज़रिए चीन को तेल और गैस की आपूर्ति करता है. वहीं दूसरी तरफ़ ऊर्जा के क्षेत्र में सहयोग से एशियाई बाज़ार में रूस का कद बढ़ता है और इसके ज़रिए वो यूरोप से अलग हटकर अपने निर्यात के लिए नए ग्राहक बना रहा है.

यूरेशिया में शक्ति दिखाने के लिए चीन को रूस की ज़रूरत है

दोनों देशों के बीच सबसे बड़ा साझा मक़सद अमेरिका की वैश्विक शक्ति के मुक़ाबले एक भरोसेमंद ताक़त की नुमाइश भर नहीं है. इसके अलावा आपसी सहयोग के ज़रिए दोनों देश हिंद-प्रशांत के समुद्री क्षेत्र में अमेरिका के प्रभुत्व के मुक़ाबले एक महत्वपूर्ण यूरेशियाई संपर्क का निर्माण भी कर रहे हैं, जिससे भविष्य में समुद्री रास्ते रोके जाएं तो भी आपूर्ति की सुरक्षा सुनिश्चित की जा सके.

रूस और चीन खुलकर ये ज़ाहिर करते हैं कि वो यूरेशिया में अमेरिका और यूरोप का प्रभुत्व कम करने के मामले में एकजुट हैं. इस साल जनवरी में जब कज़ाख़िस्तान में हिंसक विरोध प्रदर्शन हुए थे, तो रूस ने कलेक्टिव सिक्योरिटी ट्रीटी ऑर्गेनाइज़ेशन (CSTO) के ज़रिए सैन्य अभियान चलाकर वहां के हालात क़ाबू पाने में मदद की थी. इससे पूरे क्षेत्र में अमेरिका और चीन की तुलना में उसकी हैसियत बेहतर हुई थी. [xi] रूस ने कज़ाख़िस्तान के राष्ट्रपति टोकायेव को सत्ता में बने रहे और अपने देश में राजनीतिक प्रभाव बढ़ाने में मदद की थी. कज़ाख़िस्तान के पास काफ़ी मात्रा में कच्चा माल है और वो चीन की सिल्क रोड परियोजनाओं में अहम भूमिका भी निभाता है. [xii] कज़ाख़िस्तान, रूस और चीन के दो अहम संगठनों (शंघाई सहयोग संगठन) का भी एक सदस्य है. इसलिए, सुरक्षा की गारंटी देने के लिए भाड़े पर रूस की सेवाएं भी ली जा सकती हैं. यही नहीं, भविष्य में अगर कोई तानाशाही शासक सत्ता में बना रहना चाहता है तो उसके बुलावे पर रूस की सैन्य मदद भेजने की क़ीमत भी रूस के राष्ट्रपति पुतिन ने बढ़ा दी है. सीरिया के राष्ट्रपति असद और बेलारूस के राष्ट्रपति लुकाशेंको को सैन्य मदद देने के बाद, कज़ाख़िस्तान के राष्ट्रपति टूकायेव ऐसे तीसरे नेता बन गए हैं, जो अपने देश में और अन्य जगहों पर रूस के हितों की रक्षा करेंगे.

अगर पुतिन को चीन से वित्तीय, आर्थिक और कूटनीतिक सहयोग मिलने का भरोसा नहीं होता, तो वो यूक्रेन के ख़िलाफ़ कभी भी युद्ध की शुरुआत नहीं करते. हालांकि, ये भी ज़ाहिर है कि युद्ध क्षेत्र में रूस की सेना को जो झटके मिले हैं. जो मुश्किलें आ रही हैं, उनसे चीन को हैरानी हुई है.

निश्चित रूप से रूस को चीन के उस क्षेत्रीय विस्तार का भी फ़ायदा मिल रहा है, जिसके ज़रिए वो पूरे यूरेशियाई भौगोलिक क्षेत्र में एशिया और यूरोप को जोड़ रहा है. चीन की सिल्क रोड परियोजना एक ऐसा क्षैतिज भू-राजनीतिक विस्तार है, जो चीन के सबसे कम विकसित क्षेत्रों से यूरोप तक फैला हुआ है. इससे चीन का ध्यान रूस के सुदूर पूर्वी क्षेत्र से भी हटता है. चीन के बेल्ट ऐंड रोड इनिशिएटिव के चलते उन भौगोलिक क्षेत्रों में ख़ाली भू-राजनीतिक भूमिका निभाने में रूस की अहमियत बढ़ती जा रही है. ऐसा करके रूस, कच्चे माल तक सुरक्षित पहुंच बनाने में चीन की मदद करता है, और इससे उन देशों में हालात स्थिर होने के बाद उन्हें आर्थिक और वित्तीय लाभ भी मिलता है. रूस आज दुनिया भर में सुरक्षा के ऐसे प्रदाता के रूप में उभर रहा है जो यूरेशिया और दुनिया के अन्य क्षेत्रों में चीन के भू-आर्थिक हितों को साधने में मदद कर सके. हो सकता है कि इस तरह से ‘ड्रैगनबियर’ ने ज़िम्मेदारी को निभाने का एक कामयाब नुस्खा (जिसमें रूस सुरक्षा प्रदान करता है तो चीन वित्तीय और आर्थिक सेवाएं देता है) ईजाद कर लिया है, जिसे दुनिया के दूसरे हिस्सों में भी लागू किया जा सकता है.

चीन और रूस के बीच सहयोग का ये तरीक़ा यूरेशिया और दक्षिण एशिया के भौगोलिक क्षेत्र से परे भी फैला हुआ है. अफ़ग़ानिस्तान में स्थिरता लाने में भी रूस, चीन की मदद कर रहा है और वो कज़ाख़िस्तान, ताजिकिस्तान, उज़्बेकिस्तान और तुर्कमेनिस्तान [xiii] से चल रही आतंकवादी गतिविधियों का असर चीन पर पड़ने से रोकने में भी मददगार बन गया है. वैसे बहुत सी महाशक्तियां अफ़ग़ानिस्तान को अपनी भू-राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं का मंच बनाने की कोशिशों में नाकाम साबित हुई हैं. क़रीब दो दशक तक अफ़ग़ानिस्तान में नाकाम सैन्य अभियान चलाने के बाद, अमेरिका इसके तबाही वाले नतीजे भुगतने वाली नई महाशक्ति बन गया है. चीन ने, मध्य एशिया के देशों और पाकिस्तान व ईरान के साथ मिलकर अपना पूरा ध्यान क्षेत्रों के बीच कनेक्टिविटी (परिवहन, व्यापार और ऊर्जा) बढ़ाने पर लगाया हुआ है. इन देशों के बीच संपर्क के ज़रिए बढ़ाना रूस के हितों के भी मुफ़ीद है.

ऐसे हालात से इन देशों से यूरोप की ओर बड़े पैमाने पर लोगों के अप्रवास की स्थिति देखने को मिल सकती है, जहां पर 2021 के बेलारूस अप्रवास संकट के बाद और अब यूक्रेन युद्ध के चलते अप्रवासियों की व्यवस्था पहले से ही दबाव का सामना कर रही है.

रूस और चीन के बीच संघर्ष के संभावित क्षेत्र तब उभरते हैं, जब उनकी भौगोलिक प्राथमिकताएं और भू-राजनीतिक हित एक दूसरे से टकराते हैं. सोवियत संघ के विघटन के बाद से मध्य एशिया, सुदूर पूर्व और अपने प्रभाव के अन्य पारंपरिक क्षेत्रों में चीन के बढ़ते दख़ल से रूस डरता रहा है. हालांकि, इस वक़्त मध्य एशिया, भारत और आर्कटिक क्षेत्र में रूस और चीन के हित आपस में टकराते हैं और इससे दूरगामी अवधि में दोनों के बीच तालमेल में बाधा आ सकती है- इस बात की कम से कम अभी पुष्टि नहीं की जा सकती है.

यूक्रेन के ख़िलाफ़ रूस के युद्ध के बाद ‘ड्रैगनबियर’

हो सकता है कि चीन और रूस ने यूक्रेन पर दोबारा हमले के वक़्त को लेकर चीन के साथ तालमेल किया हो और रूस, बीजिंग शीतकालीन ओलंपिक के बाद ही आक्रमण करेगा, [xiv] इस बात पर तब दोनों देशों में सहमति बनी हो जब शी जिनपिंग और व्लादिमीर पुतिन के बीच 4 फ़रवरी को बीजिंग में मुलाक़ात हुई हो. उस वक़्त दोनों देशों ने अंतरराष्ट्रीय मुद्दों पर अपने रुख़ को लेकर लंबे समय से चले आ रहे कूटनीतिक प्रयासों को ठोस रूप देते हुए पांच हज़ार शब्दों का साझा बयान जारी किया था. [xv] उस द्विपक्षीय शिखर सम्मेलन के दौरान दोनों देशों के राष्ट्रपतियों ने एलान किया था कि उनकी ‘दोस्ती की कोई सीमा नहीं’ है. [xvi] साझा बयान के इस दस्तावेज़ में रूस और चीन के बीच द्विपक्षीय, क्षेत्रीय और अंतराष्ट्रीय संबंधों के कई मुद्दों को शामिल किया गया था. ये साझा बयान रूस और चीन के रिश्ते में आया निर्णायक बदलाव है. अगर पुतिन को चीन से वित्तीय, आर्थिक और कूटनीतिक सहयोग मिलने का भरोसा नहीं होता, तो वो यूक्रेन के ख़िलाफ़ कभी भी युद्ध की शुरुआत नहीं करते. हालांकि, ये भी ज़ाहिर है कि युद्ध क्षेत्र में रूस की सेना को जो झटके मिले हैं. जो मुश्किलें आ रही हैं, उनसे चीन को हैरानी हुई है. चीन के राष्ट्रपति जिनपिंग इस बात को लेकर भी ‘परेशान’ थे कि युद्ध में रूस का खुला समर्थन करने के चलते चीन की ‘इज़्ज़त पर बट्टा’ न लगे. उन्हें इस बात की भी फ़िक्र थी कि आज जब चीन अपने आर्थिक विकास को नई रफ़्तार देने की कोशिश कर रहा है, [xvii] तो रूस द्वारा पश्चिमी देशों पर लगाए जाने प्रतिबंधों के चलते वैश्विक आर्थिक हालात का उसकी विकास दर पर बुरा असर न पड़े.

पश्चिमी देशों द्वारा प्रतिबंध लगाए जाने के बाद, जिस तरह से चीन ने रूस की अर्थव्यवस्था संभालने में मदद की है, वो सामान के व्यापार के साथ साथ उन सामरिक क्षेत्रों में भी है, जिनका ज़िक्र ऊपर किया गया है. [xviii] रूस द्वारा क़र्ज़ चुकाने में नाकाम रहने के ख़तरे के बीच, उसकी अर्थव्यवस्था के लिए चीन की मदद बहुत अहम है. चीन, रूस की ऊर्जा और प्राकृतिक संसाधनों के कारोबार में लगी कंपनियों (मिसाल के तौर पर गैज़प्रॉम और रूसाल) में हिस्सेदारी ख़रीदने पर भी विचार कर रहा है. [xix] इसके अलावा रूस की करेंसी के ध्वस्त होने के बाद, चीन ने तय किया है कि वो रूबल में व्यापार का मार्जिन भी दोगुना कर देगा. [xx] पश्चिमी देशों द्वारा रूस पर प्रतिबंध लगाने के बाद ‘ड्रैगनबियर’ द्वारा उठाए गए कुछ क़दम इस बात का संकेत देते हैं कि दोनों देशों ने पश्चिमी देशों के प्रतिबंधों की आशंका को देखते हुए इनकी तैयारी पहले ही कर ली थी. मिसाल के तौर पर जब पश्चिमी देशों द्वारा प्रतिबंध लगाए जाने के बाद वीज़ा और मास्टरकार्ड ने रूस में अपना कारोबार रोकने का एलान किया था, [xxi] तो उसके फ़ौरन बाद रूस के सरकारी स्बेरबैंक ने कि वो वीज़ा और मास्टरकार्ड की जगह चीन के यूनियनपे की मदद से ‘मीर’ के नाम से नया कार्ड सिस्टम लागू करेगा. [xxii]

अगर अमेरिका ये चाहता है कि दूरगामी अवधि में रूस, चीन के प्रभाव क्षेत्र से अलग हो जाए, तो उसे अब ये अंदाज़ा हो गया है कि इसके लिए रूस की शर्त होगी कि वो यूरोप में अपने और अधिक बड़े प्रभाव क्षेत्र का निर्माण कर सके और भविष्य में यूरोप की सुरक्षा के ढांचे को अपने हिसाब से तय कर सके.

चीन कूटनीतिक तौर पर भी रूस का सहयोग कर रहा है. चीन के विदेश मंत्री वांग यी ने ‘रूस के साथ कभी न टूटने वाली दोस्ती’ का ज़िक्र किया और इस बात पर ज़ोर दिया कि दोनों देश मिलकर पूरी दुनिया में शांति और स्थिरता लाने में सहयोग करेंगे. [xxiii] ठीक उसी वक़्त चीन के विदेश मंत्रालय ने आग में घी डालने वाली अमेरिका की किसी भी कोशिश का विरोध किया और ये वादा किया कि अगर यूक्रेन को लेकर अमेरिका उसके ऊपर कोई प्रतिबंध लगाता है, तो वो भी इस क़दम का फ़ौरन और सख़्ती से जवाब देगा. [xxiv] चीन ने इस बात पर भी ज़ोर दिया कि अमेरिका के नेतृत्व वाले नेटो ने ही रूस और यूक्रेन के बीच तनाव को युद्ध के हालात तक पहुंचाया है. चीन ने आगे ये भी कहा कि यूक्रेन को लेकर चीन के रुख़ की आलोचना के पीछे अमेरिका की रूस और चीन को एक साथ दबाने की साज़िश है, जिससे कि दुनिया पर उसकी दादागीरी क़ायम रहे. [xxv] इसके अलावा, चीन के आधिकारिक बयानों में रूस को खुले समर्थन की बात साफ़ दिखती है और चीन ने ये भी कहा है कि वो पश्चिमी देशों की तरह रूस पर प्रतिबंध नहीं लगाने जा रहा है और उसके साथ व्यापार जारी रखेगा. आख़िर में जब रूस ने चीन से सैन्य मदद मांगी तो दुनिया भर के जानकार हैरान रह गए थे. अमेरिका ने भी चीन को चेतावनी दी थी कि अगर उसने रूस को पश्चिमी देशों के प्रतिबंधों से बचने में मदद की तो उसे इसके गंभीर नतीजे भुगतने होंगे. [xxvi]

चूंकि दुनिया में कई अहम वस्तुओं के व्यापार में रूस की बड़ी हिस्सेदारी है,तो रूस की ये योजना भी हो सकती है कि वो पश्चिमी देशों के ख़िलाफ़ कमोडिटी युद्ध छेड़े. रूस ने पहले ही 31 अगस्त तक यूरेशियन इकॉनमिक यूनियन के देशों को अनाज के निर्यात पर प्रतिबंध लगाने का एलान किया है. [xxvii] आज जब खाने पीने के सामान और ऊर्जा संसाधनों के दाम में आग लगी हुई है और खाद्य व कृषि संगठन (FAO) का फूड प्राइस इंडेक्स, पिछले साल दिसंबर [xxviii] में ही 12 साल पहले अरब क्रांति के स्तर पर जा पहुंचा हो, तब रूस अगर अनाज, फर्टिलाइज़र या अन्य ज़रूरी सामानों के निर्यात पर प्रतिबंध लगाता है, तो इससे क़ीमतों में और भी उछाल आएगा. इससे एक बार फिर से सामाजिक आर्थिक दबाव के चलते राजनीतिक विरोध प्रदर्शन बढ़ेंगे और सड़कों पर हिंसा का माहौल होगा, और कई एशियाई और अफ्रीकी देशों में उसी तरह का तख़्तापलट या सत्ता परिवर्तन देखने को मिल सकता है, जो 2011 की अरब क्रांति के दौरान देखने को मिला था. [xxix] ऐसे हालात से इन देशों से यूरोप की ओर बड़े पैमाने पर लोगों के अप्रवास की स्थिति देखने को मिल सकती है, जहां पर 2021 के बेलारूस अप्रवास संकट[xxx] के बाद और अब यूक्रेन युद्ध [xxxi] के चलते अप्रवासियों की व्यवस्था पहले से ही दबाव का सामना कर रही है. इसी दौरान, 4 फ़रवरी को रूस के साथ समझौते पर दस्तख़त करने के बाद से चीन ने रूस के सभी क्षेत्रों से गेहूं के आयात को मंज़ूरी दे दी है. रूस के साथ चीन का ये समझौता उसी दिन से अमल में आया जिस दिन रूस की सेना ने यूक्रेन पर हमला किया. इससे चीन को ये फ़ायदा हुआ है कि आज जब दुनिया भर में खाद्यान्न के दाम 10 साल के शीर्ष स्तर पर हैं, तो चीन को अपने खाद्यान की आपूर्ति सुरक्षित करने में मदद मिली है. [xxxii]

आगे क्या होगा?

आज दुनिया के दो संस्थागत प्रतिद्वंदियों अमेरिका और चीन के बीच वैश्विक शक्ति के मुक़ाबले में रूस मुफ़्त का मुनाफ़ा कमाने वाले सबसे बड़े देश के तौर पर उभरा है. अपने प्राथमिक हितों वाले भौगोलिक क्षेत्रों में अपना प्रभाव बढ़ाने या ताक़त दिखाने के लिए रूस, अपनी सैन्य ताक़त का इस्तेमाल करने से भी नही हिचकता है. यूरोप और नेटो को लेकर अमेरिका से रूस की अतार्किक मांगें और उसके बाद यूक्रेन के ख़िलाफ़ युद्ध से ज़ाहिर हो गया है कि रूस, ‘लंबे समय तक चलने वाले खेल’ यानी संस्थागत मुक़ाबले की तैयारी कर रहा है. रूस के राष्ट्रपति को ये उम्मीद है कि नवंबर में होने वाले मध्यावधि चुनावों और यूरोप में घटती अपनी दिलचस्पी के चलते अमेरिका, रूस से किसी भी सूरत में सीधे तौर पर युद्ध से परहेज़ करेगा. यूक्रेन में अपनी ताक़त की नुमाइश करके रूस ये साबित करना चाहता है कि वो एक ऐसा ज़रूरी खिलाड़ी है, जिसके बग़ैर दोनों ही प्रतिद्वंदी- फिर चाहे वो अमेरिका हो या चीन- भविष्य में आपस की होड़ में जीत हासिल नहीं कर पाएंगे. रूस के राष्ट्रपति इसे एक ऐसे मौक़े के तौर पर भी देखते हैं, जहां वो रूस के साथ द्विपक्षीय बातचीत की अमेरिका की इच्छाशक्ति और भविष्य में हासिल हो सकने वाली रियायतों की लक्ष्मण रेखा का अंदाज़ा लगा सकें. अगर अमेरिका ये चाहता है कि दूरगामी अवधि में रूस, चीन के प्रभाव क्षेत्र से अलग हो जाए, तो उसे अब ये अंदाज़ा हो गया है कि इसके लिए रूस की शर्त होगी कि वो यूरोप में अपने और अधिक बड़े प्रभाव क्षेत्र का निर्माण कर सके और भविष्य में यूरोप की सुरक्षा के ढांचे को अपने हिसाब से तय कर सके.

इस समय रूस, अफ्रीका में अपनी सैन्य मौजूदगी को बड़े पैमाने पर बढ़ा रहा है और वो मैडागास्कर, मोज़ांबीक़ और सूडान जैसे कई अफ्रीकी देशों में अपने सैनिक अड्डे बना रहा है. इस तरह से रूस को हिंद-प्रशांत क्षेत्र के समुद्री मार्गों तक पहुंच हासिल हो जाएगी और दूरगामी अवधि में वो चीन और भारत के साथ मिलकर हिंद-प्रशांत क्षेत्र में अपनी ताक़त को और बढ़ाएगा.

अमेरिका के लिए रूस और चीन के बीच ये मौक़ापरस्ती वाला गठबंधन भविष्य में दो मोर्चों से ख़तरों का मंज़र पेश करता है, जो आगे चलकर उसके लिए बहुत ख़तरनाक हो सकता है. इसमें कोई दो राय नहीं कि ‘ड्रैगनबियर’ को एक साथ रखने का सबसे बड़ा मक़सद, अंतरराष्ट्रीय राजनीति के हर मोर्चे पर अमेरिका के मुक़ाबले एक विकल्प पेश करना ही होगा. लंबी अवधि में अमेरिका से ये अपेक्षा की जा सकती है कि वो यूरोप से पीछे हटेगा और अपना पूरा ध्यान हिंद-प्रशांत क्षेत्र पर लगाएगा. ख़ास तौर से पूर्वी एशिया में चीन के उभार के चलते उसे ऐसा करना होगा. कई भू-राजनीतिक गलियारों के ज़रिए रूस को भी हिंद-प्रशांत क्षेत्र में पैठ बढ़ाने का अहम अवसर प्राप्त होगा. [xxxiii] इस समय रूस, अफ्रीका में अपनी सैन्य मौजूदगी को बड़े पैमाने पर बढ़ा रहा है और वो मैडागास्कर, मोज़ांबीक़ और सूडान जैसे कई अफ्रीकी देशों में अपने सैनिक अड्डे बना रहा है. [xxxiv] इस तरह से रूस को हिंद-प्रशांत क्षेत्र के समुद्री मार्गों तक पहुंच हासिल हो जाएगी और दूरगामी अवधि में वो चीन और भारत के साथ मिलकर हिंद-प्रशांत क्षेत्र में अपनी ताक़त को और बढ़ाएगा. इसके अलावा, चीन और रूस के बीच बढ़ती नज़दीकी के बावजूद, भारत भी रूस का भरोसेमंद साझीदार बना हुआ है. कूटनीतिक स्तर पर रूस हिंद-प्रशांत क्षेत्र में चीन के रुख़ का समर्थन करता है और अमेरिका- ब्रिटेन और ऑस्ट्रेलिया के बीच ऑकस (AUKUS) [xxxv] और भारत, अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया के बीच क्वाड (QUAD) [xxxvi] जैसे गठबंधनों का खुला विरोध करता है. ये बात चीन के साथ रूस के साझा बयान में ज़ाहिर भी हुई थी. रूस और भारत के बीच इस बात पर भी भू-आर्थिक सहमति है कि उन्हें दक्षिणी और मध्य एशिया में कनेक्टिविटी बढ़ाने के लिए चीन के सिल्क रोड के विकल्प का निर्माण करना चाहिए. यही वजह है कि वो इंटरनेशनल नॉर्थ साउथ ट्रांसपोर्ट कॉरिडोर (INSTC) [xxxvii] को बढ़ावा दे रहे हैं, जिसके ज़रिए भारत को यूरोप, मध्य एशिया और रूस से कई तरह के परिवहन के माध्यमों से जोड़ा जा सके. वैसे तो हिंद-प्रशांत क्षेत्र में इस वक़्त रूस किसी बड़ी ताक़त के साथ मुक़ाबला नहीं कर रहा है. लेकिन भविष्य में वो बेहद विवादित इस भौगोलिक क्षेत्र का एक बड़ा खिलाड़ी बन सकता है.

निष्कर्ष

चीन और अमेरिका के बीच महाशक्ति की होड़ में रूस एक अंधा दांव चल रहा है. रूस और चीन ‘हमेशा एक दूसरे के साथ भले न हों, मगर एक दूसरे के ख़िलाफ़ कभी नहीं होंगे’ की कहावत पर अमल कर रहे हैं. इस तरह से दोनों देशों ने आपसी संबंधों में दोनों के हित साधने वाले नुस्खे तलाश लिए हैं. दुतरफ़ा कूटनीतिक मोर्चे पर सहयोग के तहत, रूस जहां ताइवान के मसले पर खुलकर चीन का साथ देता है, वहीं चीन, यूक्रेन के मुद्दे पर खुलकर रूस का समर्थन करता है, इससे अमेरिका और ‘ड्रैगनबियर’ के बीच नए स्तर के टकराव की स्थिति बन रही है. इसीलिए, चीन जहां यूक्रेन को ‘रूस के सामरिक प्रभाव क्षेत्र’ का हिस्सा मानता है, वहीं, रूस भी ताइवान और दक्षिणी चीन सागर को ‘चीन के सामरिक क्षेत्र’ का हिस्सा मानता है.

अगर रूस और चीन, बाहरी दुनिया को पश्चिमी देशों के ख़िलाफ़ एक मज़बूत और लचीली साझेदारी का संदेश दे सकेंगे, तो ये बात दोनों ही देशों के हित में होगी. हालांकि, अभी दोनों ही साझीदार देशों के बीच सैन्य गठबंधन के कोई स्पष्ट संकेत नहीं दिखे हैं.

दुनिया के अधिकतर जियोपॉलिटिकल विशेषज्ञ अभी भी रूस और चीन को अलग अलग ख़तरा मानते हैं. लेकिन जिस तरह से रूस और चीन के बीच संस्थागत तरीक़े से तालमेल देखने को मिल रहा है, उससे दोनों देश मिलकर एक जटिल चुनौती पेश कर रहे हैं. साफ़ है कि रूस के राष्ट्रपति, अमेरिका के ख़िलाफ़ इस वक़्त चल रही भू-राजनीतिक होड़ का फ़ायदा उठाने की कोशिश कर रहे हैं. इस वक़्त वो एक साथ तीन आयामों वाली रणनीति पर काम कर रहे हैं: 1) यूक्रेन के ख़िलाफ़ एक युद्ध जो एक संप्रभु राष्ट्र के तौर पर रूस के अस्तित्व के लिए ख़तरा है और फिर बेलारूस और यूक्रेन के बीच संयुक्त राष्ट्र बनाने की एक नई भू-राजनीतिक परियोजना; 2) यूरोपीय संघ (EU) के ख़िलाफ़ संघर्ष जो रूस पर सबसे सख़्त प्रतिबंधन लगाने के बावजूद, यूक्रेन में रूस की हरकतों के विरुद्ध कोई अहम सैन्य ख़तरा नहीं है और भू-राजनीतिक रूप से अप्रासंगिक हो गया है; और आख़िर में 3) चीन और अमेरिका के ख़िलाफ़, जिसके तहते भविष्य में चीन और अमेरिका के बीच संस्थागत मुक़ाबले में रूस की भागीदारी की क़ीमत बढ़ाना.

रूस और चीन का ये रिश्ता वैश्विक व्यवस्था पर किस हद तक असर डालेगा, वो इस बात पर निर्भर करेगा कि क्या चीन अपनी आर्थिक तरक़्क़ी जारी रख पाता है और वो 2014 की तरह क़र्ज़ चुकाने में रूस के नाकाम होने को टाल पाता है. अगर रूस और चीन, बाहरी दुनिया को पश्चिमी देशों के ख़िलाफ़ एक मज़बूत और लचीली साझेदारी का संदेश दे सकेंगे, तो ये बात दोनों ही देशों के हित में होगी. हालांकि, अभी दोनों ही साझीदार देशों के बीच सैन्य गठबंधन के कोई स्पष्ट संकेत नहीं दिखे हैं. इस वक़्त दोनों ही देशों के बीच भू-राजनीतिक तालमेल, सामरिक से ज़्यादा वक़्ती दिख रहा है. ऐसा लगता है कि दोनों ही देशों के लिए यथास्थिति बनाए रखना भी स्वीकार्य होगा, अगर चीन के उभार से रूस के ख़ुद के ‘भौगोलिक प्रभाव क्षेत्र’ के  सामरिक हितों को ख़तरा नहीं पैदा होता है.

साफ़ है कि 1945 के बाद विश्व व्यवस्था में आ रहे सबसे बड़े बदलाव के बीच. भारत अपने भू-राजनीतिक और भू-आर्थिक हितों के हिसाब से काम कर रहा है. इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता है कि हिंद-प्रशांत क्षेत्र में चीन का मुक़ाबला करने की बनिस्बत अमेरिका को ‘ड्रैगनबियर’ से मुक़ाबले में भारत की ज़रूरत कहीं ज़्यादा है. इन हालात में एशियाई, अफ्रीकी और लैटिन अमेरिका के देशों के साथ अपने संबंधों का विस्तार करके रूस की अंतरराष्ट्रीय साझीदारों पर निर्भरता और बढ़ेगी. वहीं ‘ड्रैगनबियर’ के बाद, भारत ही रूस का सबसे अहम साझीदार होगा.

न तो अमेरिका और न ही चीन, ऐसी कोई स्थिति बनने देना चाहेंगे जिसमें रूस विरोधी भू-राजनीतिक खेमे का हिस्सा बन जाए. चीन के नज़रिए से देखें तो अमेरिका और रूस के बीच एक अस्थायी साझेदारी  बनना सबसे बुरी स्थिति होगी. इसके उलट रूस भी कभी ये नहीं चाहेगा कि यूरेशिया और आस-पास के क्षेत्रों (काला सागर क्षेत्र, पूर्वी भूमध्य सागर, दक्षिणी कॉकेशस और पूर्वी यूरोप) में चीन का दबदबा क़ायम हो.

यूक्रेन के ख़िलाफ़ रूस के युद्ध की अनिश्चितताओं और इसके भविष्य को लेकर कोई साफ़ तस्वीर न उभरने के चलते और ‘ड्रैगनबियर’ पर बढ़ती निर्भरता के चलते, ये भी हो सकता है कि रूस के राष्ट्रपति पुतिन, अपने देश को चीन के भू-आर्थिक हित साधने वाले वैश्विक ग़ुंडे में तब्दील कर दें. रूस पर पश्चिमी देशों द्वारा लगाए गए अब तक के सबसे सख़्त प्रतिबंधों के चलते उसका राजनीतिक, आर्थिक और वित्तीय अस्तित्व अब चीन पर निर्भर करता है. इसमें कोई दो राय नहीं कि यूक्रेन पर पूरी तरह आक्रमण करने से पहले पुतिन ने इन प्रतिबंधों के असर का हिसाब तो लगा ही लिया होगा. 2014 की तुलना में आज चीन के साथ संबंधों के चलते रूस के पास अपने व्यापार और आर्थिक संबंधों में विविधता लाने के ज़्यादा विकल्प हैं. इसकी बड़ी वजह विश्व व्यवस्था में हो रही दो-फाड़ और चीन के साथ गहरे होते संबंध ही हैं. ‘ड्रैगनबियर’ में छोटे भागीदार के तौर पर भी रूस अगर यूक्रेन में कामयाब होता है तो फिर वो यूरोप के सुरक्षा ढांचे को पूरी तरह से बदल सकता है. हालांकि, रूस के युद्ध के बाद पश्चिमी देशों का सबसे ग़लत आकलन रूस के समर्थन में चीन द्वारा उठाए गए व्यापक क़दम नहीं थे, बल्कि रूस के प्रति भारत का रवैया था. साफ़ है कि 1945 के बाद विश्व व्यवस्था में आ रहे सबसे बड़े बदलाव के बीच. भारत अपने भू-राजनीतिक और भू-आर्थिक हितों के हिसाब से काम कर रहा है. इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता है कि हिंद-प्रशांत क्षेत्र में चीन का मुक़ाबला करने की बनिस्बत अमेरिका को ‘ड्रैगनबियर’ से मुक़ाबले में भारत की ज़रूरत कहीं ज़्यादा है. [xxxviii] इन हालात में एशियाई, अफ्रीकी और लैटिन अमेरिका के देशों के साथ अपने संबंधों का विस्तार करके रूस की अंतरराष्ट्रीय साझीदारों पर निर्भरता और बढ़ेगी. वहीं ‘ड्रैगनबियर’ के बाद, भारत ही रूस का सबसे अहम साझीदार होगा. हालांकि, रूस, हिंद-प्रशांत क्षेत्र में चीन और भारत के साथ अपने पेचीदा संबंधों को संतुलित करने पर तब तक ध्यान केंद्रित नहीं देगा, जब तक वो यूरोप में अपनी सुरक्षा संबंधित चुनौतियों से निपट नहीं लेता है.


[i] Luke Harding and Emma Graham-Harrison, “Ukraine fighting to stop ‘a new iron curtain’ after Russian invasion,” The Guardian, February 24, 2022, https://www.theguardian.com/world/2022/feb/24/russia-attacks-ukraine-news-vladimir-putin-zelenskiy-russian-invasion.

[ii] “Ukraine and pro-Russia rebels sign ceasefire deal,” BBC, September 5, 2014, https://www.bbc.com/news/world-europe-29082574.

[iii] Fred Dews, comment on “NATO Secretary General: Russia’s Annexation of Crimea Is Illegal and Illegitimate,” Brookings Blog, comment posted March 19, 2014, https://www.brookings.edu/blog/brookings-now/2014/03/19/nato-secretary-general-russias-annexation-of-crimea-is-illegal-and-illegitimate/.

[iv] Velina Tchakarova, “The Dragonbear: An Axis of Convenience or a New Mode of Shaping the Global System?” IRMO Brief, May 2020, The Institute for the Development of International Relations, https://www.aies.at/publikationen/2020/the-dragon-bear.php.

[v] Becky Sullivan, “Why Belarus is so involved in Russia’s invasion of Ukraine,” NPR, March 11, 2022, https://www.npr.org/2022/03/11/1085548867/belarus-ukraine-russia-invasion-lukashenko-putin.

[vi] Tim Purcell, “Why Does This Map Matter?” Lykeion, February 10, 2022, https://www.thelykeion.com/why-does-this-map-matter/.

[vii] Presidential Executive Office, Joint Statement of the Russian Federation and the People’s Republic of China on the International Relations Entering a New Era and the Global Sustainable Development, 2022, http://en.kremlin.ru/supplement/5770.

[viii] Franz-Stefan Gady, “US Sanctions China Over Purchase of S-400 Air Defense Systems, Su-35 Fighter Jets From Russia,” The Diplomat, September 21, 2018, https://thediplomat.com/2018/09/us-sanctions-china-over-purchase-of-s-400-air-defense-system-su-35-fighter-jets-from-russia/.

[ix] Dmitry Stefanovich, “Russia to Help China Develop an Early Warning System,” The Diplomat, October 25, 2019, https://thediplomat.com/2019/10/russia-to-help-china-develop-an-early-warning-system/.

[x] William J. Broad, “How Space Became the Next ‘Great Power’ Contest Between the U.S. and China,” The New York Times, May 6, 2021, https://www.nytimes.com/2021/01/24/us/politics/trump-biden-pentagon-space-missiles-satellite.html.

[xi] Shaun Walker, “Kazakhstan: Russia-led military bloc to start withdrawing troops, says president,” The Guardian, January 11, 2022, https://www.theguardian.com/world/2022/jan/11/kazakhstan-russian-led-military-bloc-to-start-withdrawing-troops-says-president.

[xii] Velina Tchakarova and Alica Kizekova, “What the Kazakhstan crisis tells us about international relations,” Central European Institute of Asian Studies, January 20, 2022, https://ceias.eu/ceias-considers-the-kazakhstan-crisis-and-the-global-response/.

[xiii] Velina Tchakarova, “Will China Get Embroiled in the Graveyard of Empires?” 9 Dash Line, July 29, 2021, https://www.9dashline.com/article/will-china-get-embroiled-in-the-graveyard-of-empires.

[xiv] Edward Wong and Julian E. Barnes, “China Asked Russia to Delay Ukraine War Until After Olympics, U.S. Officials Say,” The New York Times, March 2, 2022, https://www.nytimes.com/2022/03/02/us/politics/russia-ukraine-china.html.

[xv] Presidential Executive Office, Joint Statement of the Russian Federation and the People’s Republic of China on the International Relations Entering a New Era and the Global Sustainable Development, 2022, http://en.kremlin.ru/supplement/5770.

[xvi] Lingling Wei, “China Declared its Russia Friendship Had ‘No Limits.’ It’s Having Second Thoughts,” The Wall Street Journal, March 3, 2022, https://www.wsj.com/articles/china-russia-xi-putin-ukraine-war-11646279098.

[xvii] David Brunnstrom and Michael Martina, “China unsettled by Ukraine, but don’t underestimate Xi’s Taiwan resolve – CIA head,” Reuters, March 8, 2022, https://www.reuters.com/world/china/china-unsettled-by-ukraine-dont-underestimate-xis-taiwan-resolve-cia-head-2022-03-08/.

[xviii] Laura He, “China lifts restrictions on Russian wheat imports,” CNN, February 25, 2022, https://edition.cnn.com/2022/02/25/business/wheat-russia-china-intl-hnk/index.html.

[xix] “China Considers Buying Stakes in Russian Energy, Commodity Firms,” Bloomberg, March 8, 2022, https://www.bloomberg.com/news/articles/2022-03-08/china-considers-buying-stakes-in-russian-energy-commodity-firms.

[xx] Hudson Lockett, “China to double trading band with rouble after Russian currency’s plunge,” Financial Times, March 10, 2022, https://www.ft.com/content/df240b8a-d7be-4f38-a289-8b5ebb09fba1.

[xxi] “Visa and Mastercard suspend Russian operations,” BBC, March 6, 2022, https://www.bbc.com/news/business-60637429.

[xxii] “Russian banks may issue cards with China’s UnionPay as Visa, Mastercard cut links,” Reuters, March 7, 2022, https://www.reuters.com/markets/europe/russian-banks-may-issue-cards-with-chinas-unionpay-visa-mastercard-cut-links-2022-03-06/.

[xxiii] “State Councilor and Foreign Minister Wang Yi Meets the Press,” Ministry of Foreign Affairs of the People’s Republic of China, March 7, 2022, https://www.fmprc.gov.cn/eng/zxxx_662805/202203/t20220308_10649559.html.

[xxiv] “China supports Russia-Ukraine direct talks, opposes any moves that add fuel to flames, Wang Yi says in phone talks with Blinken,” The Global Times, March 5, 2022, https://www.globaltimes.cn/page/202203/1254024.shtml.

[xxv] “U.S. spreading disinformation about China on Ukraine for own benefit: spokesperson,” Xinhua, March 9, 2022, http://www.xinhuanet.com/english/20220309/1fb4d783a3c24325b517154ddffb214e/c.html.

[xxvi] Richard Pérez-Peña and David E. Sanger, “The U.S. warns China not to give Russia military or economic aid.” The New York Times, March 14, 2022, https://www.nytimes.com/2022/03/14/world/europe/china-russia-military-aid-us.html

[xxvii] “Russia to impose temporary ban on exports of grain to EAEU,” 24KG, March 11, 2022, https://24.kg/english/227069_Russia_to_impose_temporary_ban_on_exports_of_grain_to_EAEU/#:~:text=According%20to%20the%20news%20agency,Federation%20until%20August%2031%2C%202022.

[xxviii] “World Food Situation: FAO Food Price Index,” Food and Agriculture Organization of the United Nations, https://www.fao.org/worldfoodsituation/foodpricesindex/en/.

[xxix] Marco Lagi, Yavni Bar-Yam, Karla Z. Bertrand and Yaneer Bar-Yam, “UPDATE February 2012 — The food crises: Predictive validation of a quantitative model of food prices including speculators and ethanol conversion,” March 6, 2012, https://static1.squarespace.com/static/5b68a4e4a2772c2a206180a1/t/5bff158a1ae6cfb7775d18f4/1543443850663/food_prices_update.pdf.

[xxx] European Council, https://www.consilium.europa.eu/en/press/press-releases/2021/11/15/belarus-eu-broadens-scope-for-sanctions-to-tackle-hybrid-attacks-and-instrumentalisation-of-migrants/.

[xxxi] Peter Beaumont, “Ukraine has fastest-growing refugee crisis since second world war, says UN,” The Guardian, March 6, 2022, https://www.theguardian.com/world/2022/mar/06/ukraine-fastest-growing-refugee-crisis-since-second-world-war.

[xxxii] He “China lifts restrictions on Russian wheat imports”

[xxxiii] Natasha Kuhrt, “2022: Russia the Other Pacific Power,” 9 Dash Line, January 14, 2022, https://www.9dashline.com/article/2022-russia-the-other-pacific-power.

[xxxiv] Anadolu Agency, “Russia to build military bases in 6 African countries: Report,” Daily Sabah, August 4, 2020, https://www.dailysabah.com/world/africa/russia-to-build-military-bases-in-6-african-countries-report.

[xxxv] Niklas SwanströmJagannath P. PandaAnna WieslanderMats EngmanLars VargöMahima DuggalMarc LanteigneJames RogersStephen R. NagyAntoine BondazZsuzsa Anna FerenczyVelina TchakarovaKapil Patil and Hina Pandey, “AUKUS: Resetting European Thinking on Indo-Pacific?,” Special Paper, October 2021, Institute for Security & Development Policy, https://isdp.eu/publication/aukus-resetting-european-thinking-on-the-indo-pacific/.

[xxxvi] Velina Tchakarova, “The QUAD Summit amid the Bifurcation of the Global System,” Medium, September 25, 2021, https://medium.com/@vtchakarova/the-quad-summit-amid-the-bifurcation-of-the-global-system-8be5a80410b9.

[xxxvii] Marjorie Van Leijen, “Missing link on the Russia-India corridor: will it ever be made?” RailFreight.com, July 6, 2021, https://www.railfreight.com/corridors/2021/07/06/the-iranian-missing-link-on-the-russia-india-corridor-do-we-miss-it/?gdpr=accept&gdpr=accept.

[xxxviii] Tchakarova, “India and China: Geopolitics in the Indo-Pacific Decade- Part 1”

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