Author : Bart W. Edes

Published on Dec 30, 2021 Updated 0 Hours ago

काबुल पर तालिबान के कब्ज़े के बाद से अफ़ग़ानिस्तान में महिलाएं और लड़कियां बेहद ख़राब स्थिति में रह रही हैं.

तालिबान के शासन में अफ़ग़ान महिलाओं की हालत

अगस्त के मध्य में काबुल (Kabul) पर तालिबान (Taliban) के कब्ज़े और उसके बाद अफ़ग़ानिस्तान (Afghanistan) पर तालिबान के शासन में मज़बूती से पिछले 20 वर्षों में महिलाओं और लड़कियों के (Afghan Women in Talibani Rule) द्वारा हासिल की गई स्वतंत्रता के ख़त्म होने को लेकर गंभीर चिंताएं खड़ी हो गई हैं. अफ़ग़ानिस्तान पर फिर से कब्ज़ा करने के बाद तालिबान के नुमाइंदों ने ग़लत ढंग से परिभाषित इस्लामिक रूप-रेखा के तहत महिलाओं के काम करने और शिक्षा हासिल करने के अधिकारों का सम्मान करने का वादा किया है. लेकिन पिछले कुछ महीनों के दौरान सरकार की गतिविधियां मज़बूती से संकेत देती हैं कि जब महिलाओं और लड़कियों के दमन के लिए सत्ता के इस्तेमाल की बात आती है तो ये कट्टर इस्लामिक समूह अपने पुराने रंग-रूप में लौट रहा है.

पिछले तीन महीनों से 12 वर्ष से ज़्यादा उम्र की लड़कियों के स्कूल जाने पर रोक लगा दी गई है

कई तरह की पाबंदियां लगी

अफ़ग़ानिस्तान पर कब्ज़ा करने के बाद से तालिबान प्रशासन ने महिलाओं और लड़कियों की गतिविधियों पर काफ़ी हद तक पाबंदियां लगा दी हैं. एमनेस्टी इंटरनेशनल के मुताबिक़, महिलाओं को ये बताया गया है कि वो काम पर नहीं जा सकतीं या पुरुष अभिभावक के बिना यात्रा नहीं कर सकतीं. पिछले तीन महीनों से 12 वर्ष से ज़्यादा उम्र की लड़कियों के स्कूल जाने पर रोक लगा दी गई है. साथ ही विश्वविद्यालयों में महिलाओं और पुरुषों को अलग-अलग करने की वजह से उच्च स्तरीय संस्थानों में महिलाओं के लिए अवसरों पर नकारात्मक असर पड़ रहा है. काम-काज के कई क्षेत्रों से महिलाओं को बाहर कर दिया गया है जिनमें मीडिया और मनोरंजन के सेक्टर भी शामिल हैं. अक्टूबर में संयुक्त राष्ट्र के महासचिव एंटोनियो गुटेरेस ने अफ़ग़ानिस्तान की महिलाओं और लड़कियों से किए गए वादों को तोड़ने के लिए तालिबान पर प्रहार किया.

तालिबान ने बुरे बर्ताव से बचाने वाले आश्रय केंद्रों को बंद करने के लिए मजबूर कर दिया. इसकी वजह से असहाय लोगों को ज़रूरी मदद और सुरक्षा के बिना रहना पड़ रहा है. एमनेस्टी इंटरनेशनल के मुताबिक़, “कई असहायों- साथ ही आश्रय केंद्रों के कर्मचारियों, वक़ीलों, न्यायाधीशों, सरकारी अधिकारियों और सहायता में लगे दूसरे लोगों के सामने अब हिंसा और मौत का ख़तरा है.” दिसंबर की शुरुआत में तालिबान के सैनिकों ने कंधार में कनाडा के सशस्त्र बलों के लिए काम कर चुके एक अफ़ग़ान शख़्स की 10 साल की बेटी की गोली मारकर हत्या कर दी. साथ ही उस लड़की की एक महिला रिश्तेदार को भी मार दिया.

“कई असहायों- साथ ही आश्रय केंद्रों के कर्मचारियों, वक़ीलों, न्यायाधीशों, सरकारी अधिकारियों और सहायता में लगे दूसरे लोगों के सामने अब हिंसा और मौत का ख़तरा है.” 

सरकार के महिला मामलों के मंत्रालय की जगह पर शराफ़त के प्रचार और बुरी आदतों की रोकथाम के लिए एक मंत्रालय काम कर रहा है. साथ ही महिलाओं को कैबिनेट से बेदखल कर दिया गया है.

तालिबान के पिछले शासन के दौरान “शराफ़त के प्रचार का मंत्रालय” महिलाओं के द्वारा अपने शरीर को पूरी तरह कपड़ों से नहीं ढंकने पर उनकी पिटाई करता था. यहां तक कि कलाई और टखने को भी नहीं ढंकने पर महिलाओं को पीटा जाता था. साथ ही किसी क़रीबी पुरुष रिश्तेदार के बिना बाहर घूमने पर भी महिलाओं को पीटा जाता था. महिलाएं अपनी व्यक्तिगत सुरक्षा के लिए डरती थीं.

मुश्किल हालात को और ज़्यादा समझने के लिए टोरंटो के एक डाटा कलेक्शन संस्थान रिवि ने एक अध्ययन[1] किया है. इस अध्ययन के ज़रिए अफ़ग़ानिस्तान के लोगों से बिना उनका नाम ज़ाहिर किए सुरक्षित ढंग से आंकड़े जुटाए गए हैं. रिवि ने 27 अगस्त से 1 नवंबर 2021 के बीच 15 वर्ष से ज़्यादा उम्र के 12,000 से ज़्यादा लोगों से जानकारी जुटाने के लिए रैंडम डोमेन इंटरसेप्ट टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल किया. ये तकनीक सुनिश्चित करती है कि इंटरनेट की सर्फिंग करने वाला कोई भी व्यक्ति इस सर्वे में शामिल हो सकता है, भले ही वो किसी भी तरह की डिवाइस का इस्तेमाल कर रहा है. अफ़ग़ानिस्तान के 70 लाख से ज़्यादा लोगों तक इंटरनेट की पहुंच है.

स्कूल जाने की मंज़ूरी नहीं

सर्वे में जवाब देने वाले 40 प्रतिशत से ज़्यादा लोगों- जिनके घरों में स्कूल जाने वाली उम्र की लड़कियां हैं- ने बताया कि उनके घर की लड़कियां स्कूल नहीं जा रही हैं. उनमें से 41 प्रतिशत ने बताया कि लड़कियों/महिलाओं को उनके क्षेत्र में स्कूल जाने की मंज़ूरी नहीं है जबकि 29 प्रतिशत ने बताया कि लड़कियों/महिलाओं को स्कूल जाने की मंज़ूरी है लेकिन उनके लिए स्कूल जाकर पढ़ाई करना सुरक्षित नहीं है. बाल विवाह का ख़तरा, जो तालिबान के सत्ता पर फिर से काबिज होने से पहले ग्रामीण क्षेत्रों में सामान्य था, बढ़ रहा है क्योंकि किशोरावस्था की लड़कियों को स्कूल जाने से रोका जाता है.

रिवि ने 27 अगस्त से 1 नवंबर 2021 के बीच 15 वर्ष से ज़्यादा उम्र के 12,000 से ज़्यादा लोगों से जानकारी जुटाने के लिए रैंडम डोमेन इंटरसेप्ट टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल किया.

60 प्रतिशत से ज़्यादा जवाब देने वालों ने बताया कि उनके क्षेत्रों में महिलाएं सुरक्षित ढंग से काम करने में सक्षम नहीं थीं. जवाब देने वाले 63 प्रतिशत लोगों ने कहा कि उन्हें ऐसा लगता है कि निकट भविष्य में भी महिलाओं के लिए काम करना असुरक्षित रहेगा.

रिवि के सर्वे के आंकड़े अफ़ग़ानिस्तान के निवासियों और शरणार्थियों के द्वारा बताई गई कहानी- जो महिलाओं और लड़कियों के लिए ख़राब होते माहौल के बारे में बताती हैं- को पुष्ट करते हैं. महिलाओं और लड़कियों के अधिकारों का ध्वस्त होना और उनके लिए अवसरों से इनकार की घटनाएं उस वक़्त हो रही हैं जब पूरी तरह से एक मानवीय संकट खड़ा हो गया है. ये ऐसा संकट है जो महिला आबादी को ज़्यादा प्रभावित करता है.

अफ़ग़ानिस्तान की लगभग आधी आबादी अत्यधिक खाद्य असुरक्षा से जूझ रही है और जैसे-जैसे इस पहाड़ी देश में सर्दियां बढ़ रही हैं, वैसे वैसे हालात और भी बिगड़ते जा रहे हैं. ग़रीबी की वजह से फटेहाल परिवार अपनी लड़कियों की कम उम्र में शादी कर रहे हैं. रिवि के सर्वे में 10 में से सात लोगों ने कहा कि तालिबान की वजह से उनकी ज़िंदगी ख़तरे में है और आधे से ज़्यादा लोगों ने कहा कि तालिबान की गतिविधियों के कारण या तो उन्होंने अपना घर छोड़ दिया है या घर छोड़ने की कोशिश की है.

इस सर्वे के नतीजे स्पष्ट रूप से बताते हैं कि अंतर्राष्ट्रीय समुदाय की तरफ़ से मज़बूत जवाब के बिना अफ़ग़ानिस्तान की स्थिति और भी ख़राब हो जाएगी और उस स्थिति में लड़कियों और महिलाओं को सबसे ज़्यादा नुक़सान होगा. अमेरिका, कनाडा और उनके सहयोगी देशों को तुरंत अपनी मानवीय सहायता बढ़ानी चाहिए, यहां की लड़खड़ाती बैंकिंग प्रणाली को ध्वस्त होने से बचाना चाहिए और तालिबान नेताओं पर लगातार दबाव बनाना चाहिए कि वो अपने लोगों के बुनियादी अधिकारों की रक्षा करें. इन बुनियादी अधिकारों में लड़कियों और महिलाओं के शिक्षा हासिल करने के अलावा काम-काज और सामान्य जनजीवन में उनकी भागीदारी शामिल हैं.


बार्ट डब्ल्यू. एडेस मैकगिल विश्वविद्यालय के विकास अध्ययन संस्थान में प्रोफेसर, और एशिया पैसिफिक फाउंडेशन ऑफ कनाडा के मशहूर फेलो हैं. इस लेख में सर्वे के जिन आंकड़ों का ज़िक्र किया गया है वो रिवि के ग्लोबल रिसर्च हेड डैनियेले गोल्डफार्ब ने मुहैया कराया है.

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