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1950 से चीन भूटान के इलाक़े को अपने नक्शे में प्रकाशित कर रहा है. इसमें क़रीब 764 वर्ग किमी का इलाक़ा है जिसमें 269 किमी उत्तरी-पश्चिम इलाक़े में और 495 वर्ग किमी उत्तरी-मध्य भूटान में शामिल है.
पूर्वी भूटान के एक बड़े हिस्से पर चीन का दावा दोहराना भारत को संदेश हो सकता है. हालांकि, चीन 1950 से उत्तरी और पश्चिमी भूटान के हिस्से पर पर दावा करता रहा है लेकिन अभी तक पूर्वी भूटान के हिस्से पर उसने सीधे तौर पर दावा नहीं किया था. इसकी वजह है कि ये दावा बीजिंग की उस मांग से जुड़ा हुआ है कि भारत सीमा विवाद के निपटारे के तहत तवांग मोनेस्ट्री और उसके आसपास का इलाक़ा चीन को लौटाए.
चीन का ये रुख़ जून की शुरुआत में जिस वक़्त आया उस समय चीन भारत के साथ वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) पर गतिरोध में उलझा हुआ था. इससे पता चलता है कि इस रुख़ का भारत से संबंध है.
चीन की तरफ़ से ये संकेत जून की शुरुआत में ही आया जब उसने UNDP की वैश्विक पर्यावरण सुविधा को पूर्वी भूटान के साकतेंग अभयारण्य की फंडिंग रोकने को कहा. इसके पीछे चीन ने ये दलील दी कि ये ‘विवादित इलाक़ा’ है. जब भूटान ने चीन के क़दम का विरोध किया तो चीन ने अपने दावे को और बढ़ाते हुए आधिकारिक घोषणा की. चीन के विदेश मामलों के मंत्रालय ने एक बयान के ज़रिए कहा, “चीन और भूटान के बीच सीमा का परिसीमन (सीमा निर्धारित करना) कभी नहीं हुआ. लंबे समय से पूर्वी, मध्य और पश्चिमी क्षेत्र में विवाद रहा है.”
चीन का ये रुख़ जून की शुरुआत में जिस वक़्त आया उस समय चीन भारत के साथ वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) पर गतिरोध में उलझा हुआ था. इससे पता चलता है कि इस रुख़ का भारत से संबंध है.
चीन का बयान अजीब तो था लेकिन उसके स्वभाव के मुताबिक़ था. चीन ने अचानक गोलपोस्ट बदल दिया है जिसकी वजह सिर्फ़ उसे ही पता है. चीन और भूटान के बीच सीमा को लेकर 24 दौर की बातचीत हो चुकी है. आख़िरी बार 2016 में बात हुई थी लेकिन पूर्वी भूटान का मुद्दा पहले कभी नहीं उठाया गया था. ये ठीक उसी तरह है जैसे 1959 में चीन ने भारत को बताया था कि पूरी सीमा विवादित है. चीन ने वियतनाम के साथ पार्सेल और स्प्रैटली द्वीप को लेकर और जापान के साथ सेनकाकु द्वीप को लेकर ऐसे ही किया था.
चीन और भूटान के बीच 470 किमी सीमा को लेकर 1984 से बातचीत हो रही है लेकिन चीन का दावा उससे पहले से है. शोध छात्रा मेधा बिष्ट के मुताबिक़ 1950 से चीन भूटान के इलाक़े को अपने नक्शे में प्रकाशित कर रहा है. इसमें क़रीब 764 वर्ग किमी का इलाक़ा है जिसमें 269 किमी उत्तरी-पश्चिम इलाक़े में और 495 वर्ग किमी उत्तरी-मध्य भूटान में शामिल है. उत्तरी-पश्चिम इलाक़े में डोकलाम, सिन्चुलुंग, ड्रमाना और शाखाटो शामिल हैं. मध्य हिस्से में पासामलुंग और जकरलुंग घाटी शामिल हैं (नीचे नक्शा 1 देखें). उसमें पूर्वी भूटान में विवाद का कोई ज़िक्र नहीं है जिसके बारे में चीन अब कह रहा है कि पूर्वी छोर में भूटान का 3,300 वर्ग किमी का इलाक़ा विवादित है.
इसका पता 1997 में भूटान के राजा के बयान से भी चलता है जब उन्होंने भूटान की संसद के 75वें सत्र में कहा था कि दोनों पक्ष चीन के उस प्रस्ताव पर चर्चा कर रहे हैं जिसके तहत पासामलुंग और जकरलुंग घाटी के साथ भूटान के पश्चिमी दावे को लेकर आदान-प्रदान पर चर्चा कर रहे हैं. चीन साफ़ तौर पर पश्चिमी इलाक़े पर निशाना साध रहा था जिससे उसे संकरे चुंबी घाटी को बढ़ाने में मदद मिलती और साथ ही डोकलाम के ज़रिए सिलिगुड़ी कॉरिडोर पर नज़र रखने में आसानी होती. चीन 2001 में इस समझौते के क़रीब आ गया था लेकिन तभी हालात बदल गए.
चीन के साथ समझौते को लेकर भूटान के इनकार के पीछे निस्संदेह भारत था जो चुंबी घाटी पर चीन की रणनीतिक चिंता को आसान करने में दिलचस्पी नहीं रखता था, न ही डोकलाम हासिल करके चीन को बढ़त बनाते हुए देखना चाहता था. किसी समझौते से इनकार करने में भूटान अभी तक भारत के साथ रहा है. हालांकि, वहां कुछ ऐसे लोग भी हैं जो चाहते हैं कि चीन के साथ विवाद का निपटारा जल्द-से-जल्द हो. LPG सब्सिडी के इस्तेमाल के ज़रिए 2012 में भूटान की तरफ़ भारत के झुकाव को भूला नहीं गया है. कहा गया कि उसी साल टिकाऊ विकास को लेकर ब्राज़ील में रियो+20 शिखर सम्मेलन के दौरान भूटान के प्रधानमंत्री जिग्मे थिनले और चीन के प्रधानमंत्री वेन जियाबाओ की मुलाक़ात को लेकर इसके ज़रिए नाख़ुशी जताई गई.
चीन के साथ समझौते को लेकर भूटान के इनकार के पीछे निस्संदेह भारत था जो चुंबी घाटी पर चीन की रणनीतिक चिंता को आसान करने में दिलचस्पी नहीं रखता था, न ही डोकलाम हासिल करके चीन को बढ़त बनाते हुए देखना चाहता था. किसी समझौते से इनकार करने में भूटान अभी तक भारत के साथ रहा है
हालांकि, भूटान अपने उत्तरी पड़ोसी की मांगों को लेकर समझौते के मूड में रहा है क्योंकि उसने उत्तर में कुला कांगड़ी के आस-पास के इलाक़ों पर अपने दावे को छोड़ दिया है. भूटान के अधिकारियों ने 2009 में माना कि उनका दावा ग़लत नक्शे पर आधारित था. जैसा कि भारत के मामले में है, सीमा को लेकर अंतहीन बातचीत जारी है जिसे दिसंबर 1998 में भूटान-चीन सीमा इलाक़े में शांति और स्थायित्व बरकरार रखने को लेकर समझौते पर हस्ताक्षर के ज़रिए ज़ाहिर किया गया. समझौते की उपधारा 3 में कहा गया है कि दोनों पक्ष सीमा क्षेत्र में यथास्थिति बरकरार रखेंगे. लेकिन चीन इस वादे की ज़रा भी परवाह नहीं करते हुए भूटान के क्षेत्र में सड़क बना रहा है. डोकलाम में ऐसी ही एक सड़क बनाते हुए 2017 में भारत और चीन के बीच गतिरोध खड़ा हो गया.
sina.com साइट पर जुलाई 2017 में एक ब्लॉग पोस्ट में, जिसे अब एन्क्रिप्ट कर दिया गया है, भूटान और चीन के बीच विवादित सीमा को दिखाया गया है (नक्शा 1 और नक्शा 2). नक्शे (नक्शा 2) में सात विषयों का ज़िक्र किया गया है जो चीन के मुताबिक़ भूटान-चीन सीमा को लाल और भूटान के मुताबिक़ सीमा को नीले में दिखाता है. चीन-भारत सीमा पर पीली रेखा तवांग इलाक़ा है. नक्शा कब आया इसका ठीक-ठीक पता नहीं है लेकिन माना जाता है कि नक्शा 1980 से है.
बाएं से शुरू पहले छह विषय डोकलाम, ड्रमाना, सिन्चुलुंग, शाखाटो, पासामलुंग और जकरलुंग इलाक़े की सीमा पर ज्ञात मतभेद को लेकर है. लेकिन दिलचस्पी का विषय है बिल्कुल दाएं में एक बॉक्स जो पूर्वी क्षेत्र से जुड़ा है और जहां साकतेंग अभयारण्य स्थित है जिसकी वजह से सबसे ताज़ा विवाद खड़ा हुआ है.
अनुवाद के मुताबिक़ इस इलाक़े को “मोलासाडिंग विवादित क्षेत्र” बताया गया है जो तवांग के दक्षिण में है और पूरा इलाक़ा 3,300 वर्ग किमी में फैला हुआ है. इसमें कहा गया है कि ये इलाक़ा तवांग मोनेस्ट्री और डालोंग ज़िले के दायरे में लाया गया था और वहां स्थित साडिंग मंदिर तवांग मोनेस्ट्री का था जिसने इसके आध्यात्मिक प्रमुख की नियुक्ति की थी. ये दावा करता है कि इस इलाक़े में भूटान का दखल 17वीं शताब्दी में हुआ था. ये दावा भी किया गया है कि 1949 में भारत ने स्थायी शांति और मैत्री समझौते के तहत मोलासाडिंग क्षेत्र भूटान को सौंपा. हालांकि, समझौते के शब्दों के मुताबिक़ कामरूप के नज़दीक देवनगिरी नाम के एक छोटे से भू-भाग को ही भूटान को सौंपा गया था.
दोनों देशों के उच्च स्तरीय प्रतिनिधिमंडल ने एक-दूसरे देश का दौरा किया है और चीन के पर्यटक भी भूटान घूमने के लिए जाते हैं. एक-दूसरे के देश में सीमा को लेकर बातचीत हो चुकी है लेकिन 2016 में 24वें दौर की बातचीत के बाद वार्ता नहीं हुई है. ये देखना बाक़ी है कि चीन पूर्वी क्षेत्र को भी बातचीत के एजेंडे में शामिल करता है या नहीं.
गूगल मैप पर न तो “मोलासाडिंग” न ही “साडिंग मंदिर” का पता लगाया जा सकता है. वैसे ये आलेख ख़ुद संकेत देता है कि चीन ने शायद इस क्षेत्र पर अपने दावे को छोड़ दिया है. लेकिन ये बात 2017 की है और ये आलेख वीबो पर एक छद्मनाम लेखक ने लिखा था. यहां तक कि भूटान के नक्शे में भी इलाक़े को ज़्यादातर जंगल और जंगली जीव के अभयारण्य के अलावा किसी और रूप में नहीं दिखाया गया है.
फिलहाल चीन और भूटान के बीच कोई औपचारिक राजनयिक संबंध नहीं है और इस मामले को दिल्ली में चीन के दूतावास के ज़रिए देखा जाता है. दोनों देशों के उच्च स्तरीय प्रतिनिधिमंडल ने एक-दूसरे देश का दौरा किया है और चीन के पर्यटक भी भूटान घूमने के लिए जाते हैं. एक-दूसरे के देश में सीमा को लेकर बातचीत हो चुकी है लेकिन 2016 में 24वें दौर की बातचीत के बाद वार्ता नहीं हुई है. ये देखना बाक़ी है कि चीन पूर्वी क्षेत्र को भी बातचीत के एजेंडे में शामिल करता है या नहीं.
भूटान का दौरा करने वाले वरिष्ठ अधिकारियों में उप विदेश मंत्री कोंग शुवानयू आख़िरी व्यक्ति थे जो डोकलाम गतिरोध के एक साल बाद जुलाई 2018 में दो दिनों के लिए वहां गए थे. भारत में चीन के पूर्व राजदूत लुओ झाउई ने जनवरी 2019 में भूटान का दौरा किया था और उनके उत्तराधिकारी सुन वीडोंग उसी साल नवंबर में भूटान गए. 2005 के मध्य में एशियाई मामलों के विभाग में उप निदेशक के तौर पर भूटान मामले को देखने वाले लुओ अब उप विदेश मंत्री बन गए हैं.
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Manoj Joshi is a Distinguished Fellow at the ORF. He has been a journalist specialising on national and international politics and is a commentator and ...
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