Published on Sep 04, 2020 Updated 0 Hours ago

नेपाल में चीन की बढ़ती शार्प पावर बड़े पैमाने पर प्रचार और अपने राष्ट्रीय हितों का दायरा बढ़ाने की चुनौती लेकर आई है.

नेपाल में भारत के ख़िलाफ चीन का प्रॉक्सी वार

वास्तविक नियंत्रण रेखा पर भारत के साथ ज़बरदस्त तनाव के बीच, भारत के एक क़रीबी पड़ोसी देश नेपाल के साथ चीन के संबंध ख़ूब फल-फूल रहे हैं. एक दौर में नेपाल को चीन और भारत जैसी बड़ी ताक़तों के बीच का ‘बफर स्टेट’ कहा जाता था. लेकिन, अब प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली के दौर में नेपाल ने साफ़ संकेत दिए हैं कि वो अब नेपाल की ओर झुकाव बढ़ा रहा है. चीन के इशारे पर नेपाल भारत के ख़िलाफ़ कई उकसावे वाले बयान दे रहा है. भड़काऊ कार्रवाई कर रहा है. और नेपाल की ये हरकत सिर्फ़ अपने नक़्शे को बदलने तक सीमित नहीं है. देश का नया नक़्शा जारी करना तो एक प्रतीकात्मक क़दम होता है. नेपाल ने तो इससे काफ़ी आगे बढ़ते हुए, भारत के साथ लगने वाली सीमा पर अपने सैनिक तैनात कर दिए हैं.

नेपाल ने चीन का प्रस्ताव स्वीकार करते हुए, अपने स्कूलों में मैन्डैरिन भाषा पढ़ने को अनिवार्य कर दिया है. इसके बदले में चीन, नेपाल के अध्यापकों को तनख़्वाह देगा.

वहीं, एक अन्य अभूतपूर्व क़दम उठाते हुए नेपाल ने चीन का प्रस्ताव स्वीकार करते हुए, अपने स्कूलों में मैन्डैरिन भाषा पढ़ने को अनिवार्य कर दिया है. इसके बदले में चीन, नेपाल के अध्यापकों को तनख़्वाह देगा. इसके अलावा, नेपाल की कम्युनिस्ट पार्टी ने चीन की कम्युनिस्ट पार्टी के नेताओं के साथ एक वर्चुअल बैठक की योजना बनाई. जिससे कि दोनों देशों के वामपंथी दल सरकार और पार्टी चलाने से जुड़े अपने अनुभव साझा कर सकें. केपी शर्मा ओली के नेपाल का प्रधानमंत्री रहते हुए ऐसा लग रहा है कि चीन के प्रभाव में आकर भारत का एक और पड़ोसी उसका दामन छोड़ने वाला है. भारत के लिए ज़रूरी होगा कि वो अपने पड़ोसी देशों के लिए और अधिक प्रभावशाली नीति बनाए. या फिर ये स्वीकार कर ले कि दक्षिण एशिया में चीन की सबसे बड़ी ताक़त है.

नेपाल में तेज़ी से बढ़ती चीन की शार्प पावर

नेपाल पर चीन के बढ़ते प्रभाव को विशेषज्ञ, चीन से ख़तरा 3.0 कहा कहते हैं. नेपाल में चीन की बढ़ती शार्प पावर बड़े पैमाने पर प्रचार और अपने राष्ट्रीय हितों का दायरा बढ़ाने की चुनौती लेकर आई है. इसका असर पूरे क्षेत्र में भारत के प्रभाव पर पड़ेगा. शार्प पावर का अर्थ होता है, ज़ोर ज़बरदस्ती से काम लेकर अन्य देशों में दखल देना, उनकी प्रशासनिक व्यवस्था पर नियंत्रण स्थापित करना और उनके फ़ैसलों पर प्रभाव डालना. बहुत जल्द ही नेपाल के स्कूलों में हज़ारों बच्चे चीन की भाषा पढ़ने को मजबूर होंगे, क्योंकि इसे उनके पाठ्यक्रम का हिस्सा बना दिया गया है. ये चीन की कम्युनिस्ट पार्टी की शार्प पावर का क़दम ही कहा जाएगा. क्योंकि, इसमें चीन ने नेपाल के अध्यापकों को वेतन देने के बदले में नेपाल के स्कूलों में मैन्डैरिन पढ़ाने की शर्त रखी.

ऊपरी तौर पर देखें, तो चीन और नेपाल के बीच ये बढ़ता सहयोग केवल नेपाली जनता के बीच चीन की भाषा और संस्कृति को बढ़ावा देने वाला क़दम भर नहीं है. बल्कि, इस क़दम का इस्तेमाल करके चीन की नीतियों और हितों को भी बढ़ावा दिया जाएगा. इसकी मदद से नेपाल की जनता के ख़यालत को अपने हित में मोड़ा जाएगा. और इसके लिए चीन अपने साहित्य, सांस्कृतिक मामलों और प्रदर्शनियों का सहारा लेगा. ये कन्फ्यूशियस कक्षाएं बेहद विवादास्पद हैं. इसकी बड़ी वजह चीन की कम्युनिस्ट पार्टी और सरकार से इनका संबंध है. और इन कक्षाओं की शुरुआत चीन के राजनीतिक हित साधने के लिए की गई है. ऐसा भी संभव है कि इन कक्षाओं और नेपाल की सरकार से अपने अच्छे संबंधों का लाभ उठाकर चीन, आगे चल कर नेपाल का इस्तेमाल भारत के ख़िलाफ़ करेगा.

चूंकि नेपाल एक हिंदू बहुल राष्ट्र है. इसलिए, यहां पर सांस्कृतिक प्रभाव के मामले में चीन, भारत से बहुत पीछे है. लेकिन, इस मामले में भारत से संतुलन बनाने का मौक़ा चीन को तब मिला जब नेपाल में कम्युनिस्ट पार्टियों का गठबंधन, भारी बहुमत से चुनाव जीत गया. नेपाल के वामपंथी दलों का झुकाव चीन की तरफ़ ही रहता है. नेपाल में कम्युनिस्ट पार्टी का चुनाव जीतना, चीन के लिए बहुत अच्छी ख़बर थी. इसकी बड़ी वजह ये भी है कि नेपाल, चीन और भारत के बीच बफर स्टेट है.

साझा अनुभवों से सीखने की कोशिश

हाल ही में नेपाल के सत्ताधारी वामपंथी गठबंधन ने चीन की कम्युनिस्ट पार्टी के साथ वर्चुअल बैठक की. इसमें दोनों पक्षों ने सरकार और पार्टी चलाने के अनुभव साझा किए. ऐसा दूसरी बार था जब चीन और नेपाल की कम्युनिस्ट पार्टियों के बीच इस तरह की बैठक हो रही थी. हालांकि, नेपाल के राजनीतिक दलों ने ये बात बताई कि नेपाल के नेता, चीन की सत्ताधारी पार्टी से सीखने की कोशिश कर रहे थे. मगर, बहुत से विशेषज्ञों को लगता है कि दोनों देशों की कम्युनिस्ट पार्टियां एक जैसी राजनीतिक विचारधारा से ताल्लुक रखती हैं. इससे चीन की कम्युनिस्ट पार्टी को इस बात का मौक़ा मिलेगा कि वो चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के मशहूर, ‘जिनपिंग थॉट’ को नेपाल में भी प्रचारित कर सकेगी. चीन और नेपाल की कम्युनिस्ट पार्टियों के बीच इन वर्चुअल बैठकों का असल मक़सद नेपाल की कम्युनिस्ट पार्टी को चीन के वामपंथी विचारों का प्रशिक्षण देना है. जिससे कि वो अपनी विचारधारा का निर्यात नेपाल को कर सके. नेपाल में अपना प्रचार अभियान तेज़ कर सके और पूरे क्षेत्र मे अपनी ताक़त का और बलपूर्वक प्रदर्शन कर सके.

नेपाल और चीन की कम्युनिस्ट पार्टियों के इस शिखर सम्मेलन को नेपाल के वामपंथियों के लिए चीन द्वारा चलाई जा रही कक्षाएं ही कहा जा सकता. इनकी मदद से चीन अपनी सीमाओं के दायरे के पार भी अपनी विचारधारा का प्रचार कर रहा है. यहां, पर इस बैठक की टाइमिंग पर भी ध्यान देने की ज़रूरत है. ये बैठक उस समय हुई, जब एक दिन पहले ही नेपाल ने संवैधानिक रूप से मान्यता प्राप्त अपने नए नक़्शे को जारी किया था. इस विवादित नक़्शे के ज़रिए नेपाल ने भारत के कई क्षेत्रों पर अपना अधिकार जताया था. नेपाल और चीन के वामपंथियों की बैठक, गलवान घाटी में भारत और चीन के बीच हिंसक संघर्ष के चार दिन बाद हुई. जोखिम इस बात का है कि नेपाल, चीन के साथ दोस्ती बढ़ाकर भारत के साथ अपने पुराने संबंधों को दांव पर लगा रहा है. इससे नेपाल की समस्याएं और बढ़ेंगी ही. क्योंकि अगर नेपाल, चीन के इशारे पर चलता रहा तो, इससे ख़ुद नेपाल के सामने पहचान का संकट खड़ा होगा.

दक्षिण एशिया में नेपालचीन की बढ़ती नज़दीकी से निपटने के लिए भारत को क्या करना चाहिए?

नेपाल में चीन के बढ़ते निवेश का मुक़ाबला करने के लिए भारत ने अन्य देशों को दी जाने वाली मदद में नेपाल का हिस्सा 375 करोड़ रुपए से बढ़ाकर 1050 करोड़ रुपए कर दिया है. इसके अलावा भारत सरकार ने नेपाल के धारचुला, धनुषा और कपिलवस्तु ज़िलों में नए स्कूलों की इमारतें बनाने के लिए दस करोड़ नेपाली रूपए की मदद देने का भी वादा किया है. नेपाल में चीन के बढ़ते दख़ल को रोकने के लिए भारत की ओर से ऐसे प्रयास किए जाने की ज़रूरत है. लेकिन, जब हम नेपाल में चीन के निवेश को देखते हैं, तो साफ़ हो जाता है कि भारत की ये कोशिशें नाकाफ़ी हैं. भारत को चाहिए कि वो नेपाल को दी जाने वाली ऐसी सहायता का दायरा भी बढ़ाए और उनमें विविधता भी लगाए. तभी वो नेपाल के साथ अपने पुराने संबंधों में नई जान डाल सकेगा और नेपाल में चीन की बढ़ती दख़लंदाज़ी को रोक सकेगा.

नेपाल, पिछले छह वर्षों से चीन के बेल्ट ऐंड रोड इनिशिएटिव का हिस्सा बना हुआ है. BRI प्रोजेक्ट, शी जिनपिंग की विदेश नीति की धुरी कहा जाता है. इस प्रोजेक्ट के कारण दस देश चीन के क़र्ज़ वाली कूटनीति के दलदल में फंस गए. चीन के सबसे क़रीबी देश पाकिस्तान को हाल ही में 63 करोड़ डॉलर के एक ऐसे घोटाले को भुगतना पड़ा जो उसके हर मुश्किल दौर के साथी चीन ने ही किया. ख़बरें तो ऐसी भी हैं कि विश्व स्तर पर BRI प्रोजेक्ट में पारदर्शिता नहीं है. ऐसे में नेपाल को पाकिस्तान से सबक़ लेते हुए चीन से सावधान रहना चाहिए. पाकिस्तान में चीन की धोखाधड़ी के अलावा श्रीलंका को भी चीन के क़र्ज़ के जाल में फंस कर हंबनटोटा बंदरगाह को चीन के हवाले करने को मजबूर होना पड़ा. इसी तरह, मध्य एशियाई देश ताजिकिस्तान को अपनी क़रीब एक हज़ार वर्ग किलोमीटर ज़मीन, चीन को सौंपनी पड़ी है. इन मिसालों से साफ़ है कि तमाम देशों को किस तरह चीन के साथ दोस्ती की भारी क़ीमत चुकानी पड़ी है. BRI एक ऐसा जाल है, जिसकी मदद से चीन पूरी दुनिया में अपनी विस्तारवादी नीति को अंजाम दे रहा है. ऐसे में भारत को चाहिए कि वो नेपाल को अपने बुनियादी ढांचे की दिक़्क़तें दूर करने में मदद करे. तभी हिमालय की गोद में बैठा भारत का ये पड़ोसी देश, चीन के शोषण वाले एजेंडे से ख़ुद को बचा सकेगा.

इसके अतिरिक्त, भारत को नेपाल से अपना संवाद बढ़ाना होगा. उसकी परेशानियों और शिकायतों को और गंभीरता से समझना होगा. नेपाल के साथ तमाम मुद्दों पर भारत की ख़ामोशी के कारण ही दोनों देशों के बीच लगातार तनाव पैदा होता रहा है. इसी वजह से दोनों देशों के संबंधों में अनिश्चितताएं आई हैं. नेपाल पर चीन की बढ़ती राजनीतिक पकड़ की शिकायत करने के बजाय, भारत को चाहिए कि वो नेपाल के साथ अपने ऐतिहासिक संबंधों की जड़ों में नई जान डाले. और दोनों देशों के रिश्तों को नई दिशा में आगे बढ़ाए. भारत को चाहिए कि वो नेपाल के साथ ‘ख़ास दोस्ती’ के दावे को बार-बार दोहराने से बचे. इससे, नेपाल की भारत से अपेक्षाएं कम होंगी. इसके अलावा भारत को चाहिए कि वो नेपाल के साथ मिलकर वास्तविक और व्यवहारिक संबंधों को मज़बूत बनाने के लिए कड़ी मेहनत करे. इन संबंधों का ज़ोर दोनों देशों के सांझा हितों और आपसी विश्वास बढ़ाने पर होना चाहिए. जिससे कि दोनों देशों को लाभ हो और रिश्ते प्रगाढ़ हों.

BRI एक ऐसा जाल है, जिसकी मदद से चीन पूरी दुनिया में अपनी विस्तारवादी नीति को अंजाम दे रहा है. ऐसे में भारत को चाहिए कि वो नेपाल को अपने बुनियादी ढांचे की दिक़्क़तें दूर करने में मदद करे. तभी हिमालय की गोद में बैठा भारत का ये पड़ोसी देश, चीन के शोषण वाले एजेंडे से ख़ुद को बचा सकेगा.

जैसा कि भारत को बार-बार बताया गया है कि नेपाल के साथ अपने मज़बूत संबंधों का अधिकतम लाभ उठाने के लिए उसे अपने सदियों पुराने सांस्कृतिक रिश्तों की मदद लेना चाहिए. लेकिन, ये सुझाव बार-बार नाकाम साबित हुआ है. मौजूदा बीजेपी सरकार ने काठमांडू के पशुपतिनाथ मंदिर में साफ़ सफाई की नई व्यवस्था बनाने के लिए 2.33 करोड़ रुपए की मदद का एलान किया. लेकिन, भारत को इसके लिए वो वाहवाही नहीं मिली, जिसकी नेपाल से अपेक्षा की जा रही थी. 2018 में भी भारत ने नेपाल को काठमांडू के धर्मशाला में 400 बेड का अस्पताल बनाने में मदद की थी. अस्पताल को बनाने में भारत-नेपाल मैत्री योजना के तहत 14 करोड़ रुपए दिए गए थे. ज़ाहिर है कि जितना पैसा चीन नेपाल के बुनियादी ढांचे के विकास में लगा रहा है. भारत, नेपाल का बुनियादी ढांचा विकसित करने के लिए उतनी मात्रा में निवेश नहीं कर रहा है. इससे भी अधिक अहम बात ये है कि हिंदू धर्म भले ही नेपाल में सबसे बड़ा धर्म हो. लेकिन, नेपाल के राष्ट्रीय हित केवल हिंदू धर्म की दृष्टि से परिभाषित नहीं होते. इसीलिए, भारत को चाहिए कि वो नेपाल को लेकर अपनी नीति को नए सिरे से परिभाषित करे और ख़ुद को नेपाल के बड़े भाई के तौर पर देखना बंद करे.

अहम बात ये है कि हिंदू धर्म भले ही नेपाल में सबसे बड़ा धर्म हो. लेकिन, नेपाल के राष्ट्रीय हित केवल हिंदू धर्म की दृष्टि से परिभाषित नहीं होते.

फरवरी 2020 में नेपाल और चीन ने ट्रांज़िट प्रोटोकॉल लागू किया था. इससे नेपाल ने अंतरराष्ट्रीय व्यापार को लेकर भारत पर अपनी निर्भरता ख़त्म करने की दिशा में बड़ा क़दम बढ़ाया था. इसकी बड़ी वजह भारत ने ही दी. जब 2015 में भारत की ओर से नेपाल की आर्थिक नाकेबंदी की गई थी. भारत के इस क़दम से नेपाल की आर्थिक दिक़्क़तें बहुत बढ़ गईं. इसके अलावा, भारत ने नेपाल में नया संविधान लागू करने की प्रक्रिया में भी दखल देने की कोशिश की थी, जो पूरी तरह से असफल रही थी. इसी वजह से नेपाल के प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली ने भारत पर निशाना साधते हुए आरोप लगाया था कि कोरोना वायरस असल में ‘इंडियन वायरस’ है. केपी शर्मा ओली का बयान उनके उस बयान के कुछ दिनों बाद ही आया था, जब ओली ने कोरोना वायरस से निपटने के नेपाल के प्रयासों में भारत के सहयोग की तारीफ़ की थी. नेपाल पर भारत का जो सांस्कृतिक, राजनीतिक, और आर्थिक प्रभाव रहा है, उससे हाल के वर्षों में भारत के लिए फायदेमंद होने से ज़्यादा नुक़सानदेह ही साबित हुआ है. भारत को चाहिए कि वो नेपाल के साथ अपने रिश्तों को नया आयाम दे. इन संबंधों को नए सिरे से परिभाषित करे. और नेपाल को लेकर सार्वजनिक कूटनीति को भी नई दिशा दे. नेपाल के संबंधों में भारत को ये देखना होगा कि हर छोटी बात पर दखल देने के कारण, आज उसके और नेपाल के संबंध कितने निचले स्तर तक जा पहुंचे हैं.


यह द चाइना क्रॉनिकल्स की श्रृंखला का 98 वां लेख है.

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