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कैपिटल हिल पर ट्रंप समर्थकों, जिनमें से कुछ ने QAnon (क्यूएनएन ग्रुप) लिखी टी-शर्ट पहन रखी थीं और निंदनीय कॉन्फेडरेट झंडे थामे हुए थे, उनके सामने आने से यह साफ़ हो गया है कि अमेरिका के उदार लोकतंत्र को अति-दक्षिणपंथियों से होने वाला ख़तरा अब पहले से कहीं अधिक स्पष्ट है.
सितंबर 2020 में, संघीय जांच ब्यूरो के निदेशक, क्रिस्टोफर ए. रे ने चेतावनी दी थी कि संयुक्त राज्य अमेरिका (यूएस) को सबसे बड़ा ख़तरा, सरकार विरोधियों और अति-दक्षिमपंथी समूहों से है. पिछले सप्ताह वाशिंगटन डीसी में कैपिटल हिल पर हुए हमले और सुरक्षा उल्लंघन के कारण अमेरिका की लोकतांत्रिक परंपराओं को इन आंदोलनों से पैदा हुए ख़तरे अब खुलकर सामने आ गए हैं. अमेरिका में बहुत से अति-दक्षिणपंथी समूह मौजूद हैं, लेकिन हाल ही में क्यूएनएन ग्रुप (QAnon), बूगलू बॉयज़ (Boogaloo Boys) और प्राउड बॉयज़ (Proud Boys) जैसे कई समूह, साज़िश के सिद्धांतों और विचारधाराओं पर विकसित आंदोलनों के रूप में सामने आए हैं. इन आंदोलनों की शुरुआत अक्सर ऑनलाइन यानी इंटरनेट माध्यमों पर होती है.
क्यूएनएन ग्रुप (QAnon) इंटरनेट जनित एक षड्यंत्रकारी विचार (कॉन्सपिरेसी थ्योरी) है, जिसके पंथ-संबंधी अनुयायियों का मानना है कि डोनाल्ड ट्रंप सरकार, ‘व्यापार और मीडिया क्षेत्र में मौजूद शैतान की पूजा करने वाले ऐसे लोगों के ख़िलाफ़ एक युद्ध का नेतृत्व कर रही है, जो पीडोफाइल (paedophile) यानी ऐसे लोग हैं जो बच्चों के साथ यौन शोषण करते हैं, और बाल यौन शोषण की गतिविधियों में लिप्त रहते हैं. इस आंदोलन का अनाम नेतृत्व करने वाला Q (क्यू) एक शीर्ष स्तर के सैन्य अधिकारी होने का दावा करता है, जो इस “विकट स्थिति” की कुटिलता से गहरे रूप में परिचित है. क्यूएनएन ग्रुप (QAnon) की विचारधाराएं भले ही कितनी भी विचित्र और अजीब लगें लेकिन माना जाता है कि कम से कम 24 अमेरिकी कांग्रेस के उम्मीदवारों ने क्यू (Q) के प्रति अपनी निष्ठा ज़ाहिर की थी और ट्रंप ने भी इन अनुयायियों को, “अपने देश से प्यार करने वाले” लोगों के रूप में संबोधित किया था. राष्ट्रपति की ओर से ऐसे प्रोत्साहन भरे शब्दों ने इन सीमांत विचारधाराओं को मुख्यधारा की अपील हासिल करने की अनुमति दी.
इस आंदोलन की उत्पत्ति को लेकर स्पष्टता नहीं है और यह इस तथ्य से और भी अधिक जटिल हो जाता है इसमें श्वेत वर्चस्ववादी और उदारवादी दोनों गुट शामिल हैं.
क्यूएनएन ग्रुप (QAnon) के इतर, बूगलू बॉयज़ के पास वैकल्पिक वास्तविकता को ले कर एक वैकल्पिक राय है. इस आंदोलन की उत्पत्ति को लेकर स्पष्टता नहीं है और यह इस तथ्य से और भी अधिक जटिल हो जाता है इसमें श्वेत वर्चस्ववादी और उदारवादी दोनों गुट शामिल हैं. 1980 के दशक की एक ब्रेक-डांसिंग फिल्म के नाम पर चलाया जाने वाला यह समूह, बेहद कम संगठन शक्ति वाला और दक्षिणपंथी झुकाव वाला गुट है, जिसके सदस्य, बंदूक रखने के अधिकारों के पक्षधर हैं, पुलिस की बर्बरता का विरोध करते हैं, और अमेरिका में दूसरे गृह युद्ध के बारे में कल्पना करते हैं. इस आंदोलन ने ऑनलाइन चैट रूम से बाहर असल दुनिया में भी तबाही मचाई, जब कैलिफ़ोर्निया में पुलिस अधिकारियों और ओकलैंड कोर्टहाउस में गार्ड्स की हत्या हुई. इस के चलते कई लोग, हवाईयन लोकप्रियता वाली फूलदार शर्टों द्वारा पहचाने जाने वाले लोगों को आतंकी ख़तरा मानने लगे.
वैचारिक मतभेद के बावजूद, दोनों आंदोलनों में समानताएं हैं. वे श्वेत नस्ल के पुरुषों की शिकायतों और तथाकथित कुलीन वर्ग के असंतोष पर अपनी धारणाओं को केंद्रित करते हैं. इसके अलावा, दोनों समूहों ने फोर-चैन (4Chan) नामक एक इंटरनेट माध्यम पर अपने अनुयायी बनाए, जो एक ऑनलाइन इमेज बोर्ड है, जो उपयोगकर्ताओं को बिना किसी पूछताछ या रोक-टोक व जांच पड़ताल के गुमनाम रूप से और पूरी स्वतंत्रता के साथ अकाउंट बनाने से लैस करता है. इसलिए, क्यूएनएन ग्रुप (QAnon) के लिए, यह माध्यम 9/11 के संबंध में ग़लत ख़बरें और जानकारियां फैलाने वाला एक माध्यम बना, या फिर यह झूठ की रोनाल्ड रीगन को ‘डीप-स्टेट’ के आदेशों पर गोली मार दी गई थी. इसी तरह, बूगलू बॉयज़ अधिक बंदूकें रखने, सामाजिक अशांति फैलाने और अमेरिकी सरकार के अधिकार को कम करने की अपनी इच्छा पर खुलकर चर्चा करने में सक्षम थे. भले ही फोर-चैन (4Chan) जैसे ऑनलाइन प्लेटफ़ॉर्म इन आंदोलनों के कारक नहीं हैं लेकिन फिर भी वह इन्हें बढ़ाने, उन्हें सक्षम बनाने और निरंतर जारी रखने में भूमिका निभाते हैं.
वैचारिक मतभेद के बावजूद, दोनों आंदोलनों में समानताएं हैं. वे श्वेत नस्ल के पुरुषों की शिकायतों और तथाकथित कुलीन वर्ग के असंतोष पर अपनी धारणाओं को केंद्रित करते हैं.
ये आंदोलन एक आम दुश्मन के खिलाफ समर्थन जुटाने पर भी भरोसा करते हैं. फ़र्ज़ी ख़बरों और असंबद्ध अफ़वाहों का उपयोग करके “हम” और “वो” के बीच के विभाजन को चौड़ा करने वाले ये आंदोलन समूह का अनुसरण करने में विश्वास रखते हैं. क्यूएनएन ग्रुप (QAnon) इस तरह की ग़लत जानकारियों को “क्यू ड्रॉप्स (Q-drops)” के माध्यम से फ़ैलाता है, जो क्यू (Q) द्वारा पोस्ट किए गए गुप्त संदेशों को दिया गया नाम है. उदाहरण के लिए, पिछले साल, क्यू (Q) ने एक अनाम द्वीप श्रृंखला की एक तस्वीर पोस्ट की थी और उसके तुरंत बाद, क्यूएनएन ग्रुप (QAnon) के अनुयायियों ने इस पोस्ट को इस प्रमाण के रूप में लिया कि यह चित्र एयर फ़ोर्स वन पर लिया गया था और इस के ज़रिए यह दावा किया गया कि क्यू (Q) ट्रंप के साथ यात्रा कर रहे होंगे.
बाहरी दुनिया को, “क्यू ड्रॉप्स” विचित्र और अतार्किक लग सकता है लेकिन, क्यूएनएन ग्रुप (QAnon) के अनुयायियों के लिए, ये गूढ़ और भ्रामक संदेश उपदेश की तरह हैं क्यू (Q) के अनुयायियों ने इन संदेशों पर अमल करते हुए इंटरनेट के इतर यानी ऑफलाइन स्तर पर हिंसा भड़काने का काम किया है. हूवर डैम में एक सशस्त्र गतिरोध, कनाडा के प्रधान मंत्री निवास में तोड़-फोड़ और पिज़्ज़ा पार्लर में कुख्यात शूट आउट जैसे उदाहरण इन अनुयायियों द्वारा किए गए वो काम हैं जो क्यूएनएन ग्रुप (QAnon) के चैट रूम में जारी किए जाने वाले काल्पनिक आख्यानों को मानने वालों या ग़लत तरीकों से समझने वालों द्वारा किए गए हैं.
बाहरी दुनिया को, “क्यू ड्रॉप्स” विचित्र और अतार्किक लग सकता है लेकिन, क्यूएनएन ग्रुप (QAnon) के अनुयायियों के लिए, ये गूढ़ और भ्रामक संदेश उपदेश की तरह हैं क्यू (Q) के अनुयायियों ने इन संदेशों पर अमल करते हुए इंटरनेट के इतर यानी ऑफलाइन स्तर पर हिंसा भड़काने का काम किया है.
कैपिटल हिल पर ट्रंप समर्थकों, जिनमें से कुछ ने QAnon (क्यूएनएन ग्रुप) लिखी टी-शर्ट पहन रखी थीं और निंदनीय कॉन्फेडरेट झंडे थामे हुए थे, के सामने आने से यह साफ़ हो गया है कि अमेरिका के उदार लोकतंत्र को अति-दक्षिणपंथ से होने वाला ख़तरा अब पहले से कहीं अधिक स्पष्ट है. ऐसे समूहों के प्रति ट्रंप के रुझान और उनकी महत्वाकांक्षा ने इन्हें और अधिक मज़बूत बनाया है और उन्हें मूर्त रूप दिया है. सोशल मीडिया माध्यमों पर ट्रंप और उनके राजनीतिक तंत्र पर प्रतिबंध लगाए जाने के बाद अब जब इन समूहों को सोशल मीडिया पर घेरा जा रहा है, तो ऐसे में अति-दक्षिणपंथ का ख़तरा एक अलग रूप धारण कर सकता है लेकिन यह ख़तरा जारी रहेगा.
यह लेख मूल रूप से हिंदुस्तान टाइम्स में प्रकाशित हो चुका है.
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Kabir Taneja is a Deputy Director and Fellow, Middle East, with the Strategic Studies programme. His research focuses on India’s relations with the Middle East ...
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