Author : Kanchan Gupta

Published on Feb 23, 2021 Updated 0 Hours ago

अब ये सरकार को तय करना है कि वो पहले चरण में 20-25 करोड़ लोगों को कोरोना वायरस का टीका लगाकर संतुष्ट हो जाना चाहती है. या फिर, वैक्सीन की ख़ुराक देने के इस लक्ष्य को निजी क्षेत्र की मदद से और बड़ा बनाना चाहती है.

‘भारत को कोविड-19 के टीकाकरण के लिए ‘निजी’ और ‘सार्वजनिक’ क्षेत्र के बीच साझेदारी के मॉडल को अपनाने की ज़रूरत है’

पिछले कुछ महीनों के दौरान, भारत में जैसे-जैसे लॉकडाउन को चरणबद्ध तरीक़े से ख़त्म करके, पाबंदियां हटाई जा रही हैं, वैसे-वैसे लोगों की दिलचस्पी कोविड-19 के आंकड़ों से कम होती जा रही है. फिर चाहे बात नए संक्रमणों की हो, रिकवरी की या इस महामारी से मौत की हो. वहीं दूसरी ओर, अब लोगों की दिलचस्पी और उत्सुकता कोविड-19 के तमाम टीकों में बढ़ती जा रही है, जिनकी मदद से इस जानलेवा महामारी से बचा जा सकता है. इस वक़्त कोविड-19 को लेकर होने वाली परिचर्चा में तीन सवाल सबसे अधिक हावी हैं: कौन से टीके उपलब्ध हैं? ये टीके कब लगवाए जा सकते हैं? और, किस किसको ये टीके मिलेंगे?

इस वक़्त दुनिया भर में कोरोना वायरस से बचाने वाले टीकों की भारी मांग है. हर देश को अपने नागरिकों के लिए टीकों की दरकार है. वैक्सीन की आमद के साथ ही हमारे देश में भी एक वाजिब सवाल उठाया गया. वो ये कि इनमें से कितनी वैक्सीन भारत के हिस्से में आएगी? ख़ास कर शुरुआती महीनों में. इस सवाल से जुड़ी दो चिंताएं भी थीं: क्या भारत के पास इतने वित्तीय संसाधन हैं कि वो अपनी बड़ी आबादी को लगाने के लिए कोई टीका (या एक से अधिक वैक्सीन) की पर्याप्त ख़ुराक का जुगाड़ कर सके? और शायद इससे भी महत्वपूर्ण सवाल ये था कि, क्या भारत के पास अपने हर इलाक़े में वैक्सीन के वितरण, भंडारण और लगाने के लिए पर्याप्त क्षमता और संसाधन हैं? क्योंकि, इतनी बड़ी आबादी को टीका लगाने के लिए कोल्ड चेन की सुविधाओं और प्रशिक्षित कर्मचारियों की ज़रूरत होती है.

भारत ने जुलाई-अगस्त 2021 तक 20-25 करोड़ लोगों को टीका लगाने का लक्ष्य रखा है. टीका लगाने के मामले में भारत कई देशों से आगे चल रहा है. देश में लगभग सवा करोड़ लोगों को टीका लगाया जा चुका है

टीकों की उपलब्धता संबंधी चिंता तो विश्व स्वास्थ्य संगठन के नेतृत्व में चलाए जा रहे कोवैक्स (COVAX) कार्यक्रम से काफ़ी हद तक दूर हो गई है. इस कार्यक्रम को अभूतपूर्व वैश्विक सहयोग की योजना कहा जा रहा है, जिसका मक़सद ‘टीकों के विकास और निर्माण को तेज़ करने के साथ साथ दुनिया के सभी देशों के बीच निष्पक्षता और बराबरी से टीकों का वितरण करना है.’ हमारे लिए ये सुनिश्चित करना ज़रूरी है कि कोविड-19 की वैक्सीन पर उसी तरह अमीरों और ताक़तवर लोगों का क़ब्ज़ा न हो जाए, जिस तरह वो हाल के दिनों में अन्य संस्थानों पर क़ाबिज़ हो गए हैं. देश भर में कोविड-19 के टीकाकरण में आने वाली चुनौतियों को लेकर उठ रहे सवालों के जवाब ख़ुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अक्टूबर में राष्ट्र के नाम अपने संदेश दे दिए थे. जब उन्होंने राष्ट्र के नाम अपने संदेश में कहा था कि, ‘सरकार हर भारतीय नागरिक को कोविड-19 का टीका लगाने के तरीक़ों पर विचार कर रही है. जैसे ही भारत में कोविड-19 की वैक्सीन आएगी, वैसे ही सरकार हर नागरिक को तेज़ी से ये टीका उपलब्ध कराना सुनिश्चित करेगी.’

तब से अब तक भारत ने टीकाकरण अभियान की दिशा में काफ़ी प्रगति कर ली है. इस साल 16 जनवरी से देश भर में टीकाकरण अभियान की शुरुआत हो चुकी है. पहले चरण में स्वास्थ्य कर्मियों और फ्रंटलाइन वर्कर (यानी सफ़ाईकर्मियों, पुलिस, सैन्य और अर्धसैनिक बलों के कर्मचारियों) को कोरोना वायरस की वैक्सीन दी जा रही है. टीकाकरण अभियान के दूसरे चरण में 50 साल से ज़्यादा उम्र के उन लोगों को टीका लगेगा, जिन्हें अन्य बीमारियां भी हैं. भारत ने जुलाई-अगस्त 2021 तक 20-25 करोड़ लोगों को टीका लगाने का लक्ष्य रखा है. टीका लगाने के मामले में भारत कई देशों से आगे चल रहा है. देश में लगभग सवा करोड़ लोगों को टीका लगाया जा चुका है.

भारत, कोविड-19 की महामारी से किस तरह उबर सकेगा?

ये इस बात पर निर्भर करेगा कि टीकाकरण अभियान कितना तेज़ और व्यापक है. क्योंकि, अभी कोरोना वायरस की महामारी की न तो कम हुई है और न ही ये साल 2021 में ख़त्म होने जा रही है. महाराष्ट्र और केरल में जिस तरह से नए संक्रमण बढ़ने के बाद पाबंदियां लगाई जा रही हैं, वो इस बात का सबूत हैं. ऐसे में कोविड-19 पर भारत की जीत या हार का लोगों की ज़िंदगी के साथ-साथ उनकी रोज़ी-रोटी से भी गहरा ताल्लुक़ है. यही कारण है कि आज कोविड-19 का टीकाकरण अभियान सिर्फ़ लोगों की सेहत का मसला नहीं है. ये एक राजनीतिक मुद्दा बन चुका है. बीजेपी ने बिहार विधानसभा चुनाव और मध्य प्रदेश के उप-चुनावों के दौरान लोगों को मुफ़्त कोविड वैक्सीन देने का चुनावी वादा किया था. तमिलनाडु की सरकार ने भी चुनाव क़रीब देखकर ऐसा ही वादा किया था. उधर, अमेरिका में जो बाइडेन ने भी अपने चुनाव प्रचार के दौरान मतदाताओं से यही वादा किया था. ज़ाहिर है, अपने देश के नागरिकों को सबसे पहले टीका लगाने की ये होड़ पूरी दुनिया में चल रही है. ये एक बड़ा राजनीतिक मुद्दा बन चुका है. नेताओं की क़ाबिलियत आज इस बात से मापी जा रही है कि वो कितनी जल्दी अपने नागरिकों को कोरोना वायरस के टीके उपलब्ध करा पा रहे हैं. ऐसे में टीके हासिल करने को लेकर दुनिया भर में मुक़ाबले और प्रतिद्वंदिता के दौर भी देखने को मिल रहे हैं.

कोरोना वायरस की वैक्सीन को लेकर मची होड़ के बीच, केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री हर्षवर्धन पूरे आत्मविश्वास के साथ कहते रहे हैं कि भारत टीकाकरण का अपना लक्ष्य हासिल कर लेगा. उन्हें इस बात को लेकर कोई चिंता नहीं है कि अमीर देश पैसे के बल पर ज़्यादा वैक्सीन हासिल कर रहे हैं. बल्कि, डॉक्टर हर्षवर्धन ने तो यहां तक कहा था कि चूंकि, निगरानी एजेंसियों और नियामक संस्थाओं से मंज़ूरी मिलने के बाद, दुनिया भर के लिए वैक्सीन बनाने का सबसे बड़ा केंद्र भारत ही होगा. ऐसे में भारत सरकार को अपने यहां टीके बनने से काफ़ी फ़ायदा होगा. हम न सिर्फ़ अपने नागरिकों के लिए टीकों की पर्याप्त आपूर्ति सुनिश्चित कर सकेंगे, बल्कि बाक़ी दुनिया की सेवा भी कर पाएंगे. भारत का वैक्सीन मैत्री अभियान इसकी मिसाल बन चुका है. जब दुनिया के तमाम अमीर देश अपने लिए ज़्यादा से ज़्यादा टीकों का जुगाड़ करने में लगे हैं, तब भारत ने क़रीब बीस देशों को अपने वैक्सीन मैत्री अभियान के तहत कोविड-19 के टीकों की ख़ुराक उपलब्ध करायी है.

भारत का वैक्सीन मैत्री अभियान इसकी मिसाल बन चुका है. जब दुनिया के तमाम अमीर देश अपने लिए ज़्यादा से ज़्यादा टीकों का जुगाड़ करने में लगे हैं, तब भारत ने क़रीब बीस देशों को अपने वैक्सीन मैत्री अभियान के तहत कोविड-19 के टीकों की ख़ुराक उपलब्ध करायी है.

हालांकि, हक़ीक़त अक्सर सरकारी दावों के उलट होती है. उम्मीदों और ज़मीनी सच्चाई में फ़र्क़ होता है. भारत में टीकाकरण अभियान तो शुरू हो गया है. लेकिन, अभी भी टीकों के दाम का सवाल अनुत्तरित है. क्योंकि पहले चरण में जिन्हें टीका लगाया जा रहा है, उसका ख़र्च सरकार उठा रही है, और टीका बना रही कंपनियों ने सरकार को ये टीका रियायती दरों पर उपलब्ध कराया है. पर, अभी कोविड-19 का टीका देश में आसानी से सबके लिए सुलभ नहीं है. टीकों के दाम तय नहीं किए गए हैं. सवाल उठाए जा रहे हैं कि क्या सरकार क़ानून के वो प्रावधान लागू करेगी, जिनसे टीके बनाने वाली भारतीय कंपनियों को इनका फॉर्मूला विकसित करने वाली विदेशी कंपनियों को लाइसेंस फीस देने से रोका जा सके? क्या सरकार कोविड के टीकों का दाम तय करेगी? क्या देश के सभी नागरिकों को कोरोना वायरस की वैक्सीन मुफ़्त में लगेगी? अगर सरकार का अपना टीकाकरण अभियान गिने-चुने लोगों के लिए होगा, तो बाक़ी लोगों को टीका लगवाने के लिए क्या करना होगा? उन्हें इसके लिए कितने पैसे ख़र्च करने पड़ेंगे? इसके लिए वैक्सीन ख़रीदने, उनके वितरण और टीके लगाने का काम कौन करेगा? चूंकि, अभी टीकाकरण अभियान की बड़ी ज़िम्मेदारी राज्य सरकारों पर ही है, तो क्या वो सभी नागरिकों को कोरोना वायरस की वैक्सीन देने की क्षमता रखते हैं? ये सवाल इसलिए भी उठ रहा है कि हमारे देश की स्वास्थ्य व्यवस्था पहले से ही बदहाल है और इस महामारी ने तो उस पर दबाव और भी बढ़ा दिया है.

ORF से बातचीत के दौरान, भारत सरकार के प्रधान वैज्ञानिक सलाहकार प्रोफ़ेसर के विजय राघवन ने जानकारी दी थी कि टीकाकरण अभियान के लिए एक राष्ट्रीय विशेषज्ञ समूह बनाया गया है, जो टीकाकरण अभियान के हर पहलू पर नज़र रख रहा है. केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री डॉक्टर हर्षवर्धन का कहना है कि देश के ‘ग्रामीण और सुदूर क्षेत्रों तक टीका पहुंचाने के लिए ये विशेषज्ञ समूह नए दृष्टिकोण से काम ले रहा है.’ वैसे तो भारत में टीकाकरण अभियान चलते हुए एक महीने से ज़्यादा समय बीत चुका है. लेकिन अभी भी इससे जुड़े कई सवालों के जवाब मिलने बाक़ी हैं. देश के हर कोने तक कोविड-19 का टीका पहुंचाने के लिए बड़े पैमाने पर क्षमता ही नहीं, पैसों की भी ज़रूरत होगी. जिससे अभूतपूर्व रफ़्तार से वैक्सीन का वितरण देश भर में किया जा सके.

भारत को पोलियो टीकाकरण अभियान का अच्छा तजुर्बा रहा है. इस अभियान की तारीफ़ पूरी दुनिया में होती है. इस अभियान की कामयाबी के पीछे सबसे बड़ा हाथ डॉक्टर हर्षवर्धन का ही था. ऐसे में उन्हें अच्छे से पता होगा कि जुलाई 2021 तक 20-25 करोड़ भारतीयों को कोविड-19 वैक्सीन की 40-50 करोड़ ख़ुराक कैसे उपलब्ध करायी जा सकती है.

हालांकि, भारत को पोलियो टीकाकरण अभियान का अच्छा तजुर्बा रहा है. इस अभियान की तारीफ़ पूरी दुनिया में होती है. इस अभियान की कामयाबी के पीछे सबसे बड़ा हाथ डॉक्टर हर्षवर्धन का ही था. ऐसे में उन्हें अच्छे से पता होगा कि जुलाई 2021 तक 20-25 करोड़ भारतीयों को कोविड-19 वैक्सीन की 40-50 करोड़ ख़ुराक कैसे उपलब्ध करायी जा सकती है.

टीकाकरण अभियान में भारत का लंबा तजुर्बा

डॉक्टर हर्षवर्धन के आत्मविश्वास के पीछे, टीकाकरण अभियान में भारत का लंबा तजुर्बा है: भारत पहले से ही दुनिया का सबसे बड़ा टीकाकरण अभियान चलाता रहा है. हर साल देश में 2.7 करोड़ नवजात बच्चों को टीके लगाए जाते हैं. भारत के पास टीकों की आपूर्ति, उनके भंडारण और दूर-दराज़ के इलाक़ों तक टीके पहुंचाने का बुनियादी ढांचा पहले से स्थापित है. इसके लिए सरकार ने पहले से बनाए गए डिजिटल प्लेटफॉर्म e-Vin (electronic Vaccine Intelligent Network) को अपग्रेड करके उसे Co-Win (Covid-Vaccine Intelligent Work) का नाम दिया गया है. इसे आरोग्य सेतु ऐप से भी जोड़ा गया है, जिससे ज़रूरतमंद लोगों की पहचान करके उन तक वैक्सीन को आसानी से पहुंचाया जा सके. इसके अलावा भारत अपने विशेष पहचान पत्र (UID) यानी आधार के डेटाबेस का भी इस्तेमाल कर रहा है. जिससे राष्ट्रीय सुरक्षा की इस ज़रूरत यानी टीकाकरण अभियान में मदद मिल सके. इसमें कोई दो राय नहीं कि 135 करोड़ से अधिक आबादी वाले देश में कोरोना वायरस के टीकों की ज़बरदस्त मांग है और स्वास्थ्य सेवाओं पर दबाव भी ज़बरदस्त है.

क्या टीके लगाने की राह में पैसे का रोड़ा आ सकता है?

पहले चरण के टीकाकरण को मुफ़्त करने और दूसरे चरण में 50 साल से ज़्यादा उम्र के लोगों को टीका लगाने का लक्ष्य तो रखा गया है. पर सरकार इसके बाद बाक़ी नागरिकों को कैसे टीका उपलब्ध कराएगी? उसकी क़ीमत क्या होगी? टीके लगाने का ख़र्च कौन वहन करेगा? इन सभी सवालों के जवाब अब तक नहीं मिले हैं. इसमें कोई दो राय नहीं कि देश के सभी नागरिकों को कोरोना वायरस की वैक्सीन देने में भारी रक़म ख़र्च होगी. सीरम इंस्टीट्यूट के अदार पूनावाला का आकलन है कि इसमें 80 हज़ार करोड़ रुपए का ख़र्च आएगा. लेकिन, ये तो सिर्फ़ वैक्सीन की लागत है. वैक्सीन के वितरण, उसके भंडारण और टीके लगाने का ख़र्च इससे अलग होगा.

हो सकता है कि सबको कोविड वैक्सीन टीका देने का जो ख़र्च अदार पूनावाला बता रहे हों, वो आंकड़ा बढ़ा-चढ़ाकर पेश किया गया हो. केंद्रीय स्वास्थ्य सचिव ने इस पर पहले ही सवाल उठाए थे. हालांकि, इस आकलन के सामने आने के बाद भारत के व्यय सचिव टी वी सोमनाथन ने ऐसी चिंताओं को ख़ारिज किया था कि सबको टीके लगाने की राह में पैसे का रोड़ा आ सकता है. उन्होंने कहा था कि, ‘टीके लगाने की राह में पैसे की कमी आड़े नहीं आने दी जाएगी. ज़रूरत मंद लोगों को टीका लगाना हमारी ज़िम्मेदारी है.’

अगर देश के सभी नागरिकों को कोरोना वायरस का टीका देने का फ़ैसला किया जाता है, तो इसके लिए कुछ पैमाने तय करने होंगे. जोखिम के आधार पर तय किया जाएगा कि किसे टीका पहले लगेगा.

तो, मोटे तौर पर भारत ने जुलाई 2021 तक 20-25 करोड़ लोगों को कोविड वैक्सीन देने का लक्ष्य रखा है. इसके लिए सरकार पैसे की कमी नहीं होने देने का वादा कर रही है. अब तक का कोविड-19 टीकाकरण अभियान मुफ़्त ही चलाया जा रहा है. आगे क्या होगा, ये सरकार ही बता सकती है. अगर देश के सभी नागरिकों को कोरोना वायरस का टीका देने का फ़ैसला किया जाता है, तो इसके लिए कुछ पैमाने तय करने होंगे. जोखिम के आधार पर तय किया जाएगा कि किसे टीका पहले लगेगा. केंद्र सरकार को इस बात का विश्वास है कि वो पूरे देश में टीकाकरण अभियान चला सकती है.

लेकिन, अब तक की योजना के हिसाब से देखें तो कोरोना वैक्सीन लगाने के अभियान में भारत की कुल 135 करोड़ आबादी में से एक चौथाई से भी कम लोगों को इसके दायरे में रखा गया है. हालांकि, विकसित देशों की तुलना में 20-25 करोड़ लोगों को भी टीका लगाने का आंकड़ा भी बहुत बड़ा है. लेकिन, हमारे देश की आबादी भी तो अधिक है. फिर भी, देश के एक चौथाई लोगों को कोविड-19 का टीका लगाने की आदर्श स्थिति से अब भी हम बहुत दूर हैं.

ऐसे में सवाल ये उठता है कि: इस टीकाकरण कार्यक्रम का दायरा बढ़ाने के लिए सरकार निजी क्षेत्र को भागीदार बनाने से क्यों हिचक रही है?

टीकाकरण अभियान में भारत के बड़े कारोबारियों की हिस्सेदारी एक फ़ायदेमंद सौदा

इस महामारी ने देश की अर्थव्यवस्था पर बहुत बुरा असर डाला है. लोगों की रोज़ी-रोटी पर गहरा असर पड़ा है. भारत, लोगों की जान बचा पाने में काफ़ी हद तक सफल रहा है. लेकिन, कोरोना वायरस के टीकाकरण अभियान में हिस्सेदारी भारत के बड़े कारोबारियों के लिए भी फ़ायदे का ही सौदा होगी. उन्हें अपनी ताक़त इस अभियान में लगानी चाहिए. इससे करोड़ों भारतीयों को टीका लगाने की चुनौती से निपटने में मदद मिलेगी. सरकार का बोझ हल्का होगा, तो वो ग़रीबों और समाज के ऐसे कमज़ोर लोगों की मदद पर अधिक ध्यान केंद्रित कर सकेगी, जिनकी जान को इस महामारी और दूसरी बीमारियों से सबसे अधिक ख़तरा है.

देश की बड़ी कंपनियों को अपने-अपने स्तर पर कोरोना वायरस का टीका लगाने के लिए प्रोत्साहित किया जा सकता है. उन्हें कम से कम अपने कर्मचारियों, उनके परिजनों और अन्य सहयोगियों को अपने ख़र्च पर टीके लगाने का विकल्प दिया जा सकता है. केंद्र की एजेंसियां और स्वास्थ्य मंत्रालय इस काम की निगरानी कर सकते हैं. उन्हें खुले बाज़ार से वैक्सीन निर्माताओं से टीके ख़रीदने के सौदे करने की छूट दी जा सकती है. इन कंपनियों को वैक्सीन के भंडारण और वितरण के लिए अपनी कोल्ड चेन का इस्तेमाल करने की भी इजाज़त दी जा सकती है. जहां पर कोल्ड चेन नहीं हैं, वहां ये कंपनियां इस तरह से अपना निवेश कर सकती हैं जिससे टीकाकरण के बाद उस कोल्ड चेन का दूसरा कारोबारी इस्तेमाल भी हो सके.

कोरोना वायरस के टीकाकरण अभियान में हिस्सेदारी भारत के बड़े कारोबारियों के लिए भी फ़ायदे का ही सौदा होगी. उन्हें अपनी ताक़त इस अभियान में लगानी चाहिए. इससे करोड़ों भारतीयों को टीका लगाने की चुनौती से निपटने में मदद मिलेगी.

निजी कंपनियां, टीकाकरण अभियान के लिए निजी अस्पतालों के कर्मचारियों की मदद ले सकती हैं. जिन कंपनियों के पास अपनी ज़रूरत से अधिक टीके ख़रीदने की क्षमता है, वो बचे हुए टीकों से सरकार की मदद भी कर सकती हैं. या फिर वो इन टीकों से अपने कर्मचारियों के अलावा, अपनी आपूर्ति श्रृंखला से जुड़े लोगों और परिवारों को टीके लगाने का काम कर सकती हैं. निजी क्षेत्र की भागीदारी से करोड़ों भारतीयों को बड़ी तेज़ी के साथ टीके लगाए जा सकते हैं. इससे देश के उद्योग जगत की कोविड-19 महामारी से लड़ने की ताक़त ही बढ़ेगी. इससे वो अपने कारोबार पर पड़ने वाले महामारी के दुष्प्रभावों से बच सकेंगे. अपना उत्पादन बढ़ा सकेंगे. टीकाकरण अभियान में निजी क्षेत्र की भागीदारी से लोगों की ज़िंदगी के साथ-साथ उनकी रोज़ी-रोज़गार को भी बचाया जा सकेगा.

किसी महामारी या संक्रामक रोग से निपटने की ज़िम्मेदारी केवल सरकार की नहीं होनी चाहिए. महामारी से लड़ने के सरकार के प्रयासों को ‘कॉरपोरेट सोशल रिस्पॉन्सिबिलिटी’ या निजी क्षेत्र द्वारा उठाई जा सकने वाली सामाजिक ज़िम्मेदारियों से भी मदद मिलनी चाहिए. ये काम केवल कंपनी द्वारा अपने वार्षिक लाभ के वितरण तक सीमित नहीं होना चाहिए.

इस महामारी के शुरुआती दौर में हमने देखा था कि सरकार को बुनियादी ज़रूरतों जैसे कि टेस्ट किट की आपूर्ति में ही बहुत मशक्कत करनी पड़ी थी. स्वास्थ्य कर्मचारियों की भी भारी कमी थी. जब इस काम में निजी क्षेत्र को भागीदार बनाया गया, तभी जाकर भारत में कोविड-19 के टेस्ट ने रफ़्तार पकड़ी थी. यही वजह थी कि जैसे-जैसे कोरोना की महामारी बढ़ी, उससे निपटने में देश और सक्षम होता नज़र आया था.

इसी तरह, जब इस महामारी ने हमला बोला, तो देश में ही नहीं, अंतरराष्ट्रीय बाज़ार में भी निजी सुरक्षा के उपकरणों (PPE), मास्क और शरीर ढकने वाले कवर की भारी और मुश्किल बढ़ाने वाली कमी हो गई थी. यहां तक कि जब इन्हें ख़रीदा भी जा सकता था, तो अंतरराष्ट्रीय आपूर्ति श्रृंखलाएं बाधित होने से ये सामान भारत पहुंचने में देर हो रही थी. भारत को सख़्त ज़रूरत होने के बावजूद अक्सर ये सामान कहीं और भेज दिए जाने की मिसालें भी हमने देखी थीं.

तभी एक चमत्कार हुआ था. निजी सुरक्षा उपकरण (PPE) बनाने में निजी क्षेत्र को भी भागीदार बनाया गया. इसके बाद तो तस्वीर बिल्कुल ही बदल गई. पहले जहां भारत इन सामानों का ख़रीदार भर था. वहीं, आज भारत निजी सुरक्षा उपकरणों का एक बड़ा निर्यातक देश बन चुका है. ये बदलाव निजी क्षेत्र की मज़बूत भागीदारी और राष्ट्रीय स्तर के प्रयासों से ही आया है.

इस महामारी के शुरुआती दौर में हमने देखा था कि सरकार को बुनियादी ज़रूरतों जैसे कि टेस्ट किट की आपूर्ति में ही बहुत मशक्कत करनी पड़ी थी. स्वास्थ्य कर्मचारियों की भी भारी कमी थी. जब इस काम में निजी क्षेत्र को भागीदार बनाया गया, तभी जाकर भारत में कोविड-19 के टेस्ट ने रफ़्तार पकड़ी थी. 

इसी तरह अगर निजी क्षेत्र को टीकाकरण अभियान में शामिल किया जाता है. उन्हें अपने स्तर पर टीके लगाने की छूट दी जाती है. तो, ये क़दम भी टीकाकरण अभियान की दशा-दिशा बदलने वाला साबित हो सकता है. लेकिन, ऐसा होने के लिए राष्ट्रीय कोविड निरोधक अभियान के मंच पर सार्वजनिक क्षेत्र के साथ निजी क्षेत्र को तुरंत जोड़ने की ज़रूरत है.

कोविड टीकाकरण अभियान के लिए बने राष्ट्रीय विशेषज्ञ समूह को सिर्फ़ सरकारी कर्मचारियों और महामारी विशेषज्ञों का विशिष्ट क्लब नहीं बनाया जाना चाहिए; इसके सदस्यों का दायरा बढ़ाकर इसमें निजी क्षेत्र को भी भागीदार बनाया जाना चाहिए. टीकाकरण अभियान में सरकारी और निजी क्षेत्र की साझेदारी के बारे में उनकी राय भी ली जानी चाहिए. इसके बाद एक ऐसा मॉडल तैयार किया जाना चाहिए, जिससे टीकाकरण अभियान को कुशलतापूर्वक, तेज़ रफ़्तार और व्यापक तरीक़े से चलाया जा सके. सरकार की प्राथमिक ज़िम्मेदारी लोगों की जान बचाने की है; लोगों की रोज़ी-रोटी बचाने में निजी क्षेत्र को भी ज़िम्मेदारी निभाने का मौक़ा दिया जाना चाहिए.

बहुत सी बड़ी कंपनियां हैं जो अपने संसाधन लगाकर कोविड-19 के टीकाकरण अभियान में मदद के लिए तैयार हैं. वो स्वास्थ्य अधिकारियों द्वारा मान्यता प्राप्त वैक्सीन को काफ़ी मात्रा में ख़रीदकर, ऐसे टीकों का भंडारण, उनकी आपूर्ति करने और अपने स्तर पर टीका लगाने की ज़िम्मेदारी निभाने के लिए भी तैयार हैं. उनके पास इस बात की क्षमता है कि वो टीके लगाने की रफ़्तार और दायरा दोनों को बढ़ा सकें. निजी क्षेत्र के ज़रिए ऐसे लोगों को भी कोरोना वायरस का टीका दिया जा सकता है, जो सीधे या अप्रत्यक्ष रूप से उनके अपने कर्मचारी नहीं हैं. अगर कोरोना के टीकाकरण अभियान में हम देश के निजी क्षेत्र की स्वास्थ्य सुविधाएं को भी जोड़ लें, तो निजी और सार्वजनिक क्षेत्र की साझेदारी (PPP) का ये मॉडल कोविड टीकाकरण अभियान को कई गुना बड़ा बना सकता है.

अब ये सरकार को तय करना है कि वो पहले चरण में 20-25 करोड़ लोगों को कोरोना वायरस का टीका लगाकर संतुष्ट हो जाना चाहती है. या फिर, वैक्सीन की ख़ुराक देने के इस लक्ष्य को निजी क्षेत्र की मदद से और बड़ा बनाना चाहती है. ये एक ऐसा फ़ैसला है जिसे हम किसी और वक़्त के लिए नहीं टाल सकते हैं. ये निर्णय अभी ही लेना होगा.

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