Author : Nisha Holla

Published on Dec 17, 2021

भारत के लिए तकनीकी संप्रभुता को प्रभावी तौर पर अमल में लाना ज़रूरी हो गया है. इसके लिए डिजिटल नेटवर्क की तमाम अपस्ट्रीम और डाउनस्ट्रीम निर्भरताओं को सुरक्षित करना लाजिमी हो जाता है

तकनीकी मोर्चे पर भारत की संप्रभुता की सुरक्षा की बुनियादी शर्त है घरेलू स्तर पर फ़ैब्रिकेशन की शुरुआत!

Source Image: Getty

आज हमारी ज़िंदगी का लगभग हर हिस्सा डिजिटल व्यवस्थाओं (digital system) के दायरे में आ गया है. इनमें वित्त, स्वास्थ्य, संचार, मनोरंजन और शिक्षा जैसे तमाम क्षेत्र शामिल हैं. ऐसे में भारत के लिए तकनीकी संप्रभुता (India’s Technology) को प्रभावी तौर पर अमल में लाना ज़रूरी हो गया है. इसके लिए डिजिटल नेटवर्क (Digital Network) की तमाम अपस्ट्रीम और डाउनस्ट्रीम निर्भरताओं को सुरक्षित करना लाजिमी हो जाता है. इनमें डिजिटल प्लैटफ़ॉर्मों के साथ-साथ साइबर सुरक्षा से जुड़े प्रोटोकॉल, संचार नेटवर्क, क्लाउड और डेटा सेंटर्स, अपग्रेड और पारस्परिकता (interoperability) से जुड़ा तंत्र शामिल है. इतना ही नहीं इस पूरे तंत्र से जुड़े बुनियादी हार्डवेयर उपकरणों की आपसी संरचना और जुड़ाव भी इसी व्यवस्था का हिस्सा हैं.

भारत के पास दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा स्टार्ट अप इकोसिस्टम है. ये तंत्र बाज़ार से जुड़ी अपनी ज़रूरतों को पूरा करने और भारतीय नागरिकों तक अपनी सेवाएं पहुंचाने के लिए टेक्नोलॉजी नेटवर्क और DPG का सहारा लेता है. 

डिजिटल व्यवस्था के तहत सार्वजनिक वस्तुओं (digital public goods) या DPG के क्षेत्र में भारत ने सबसे पहले क़दम रखा था. इस कड़ी में भारत ने बड़े पैमाने पर, पारस्परिकता पर आधारित और बहुद्देश्यीय या अनेक मोर्चों पर (multi-platform) तकनीक का जाल बिछा दिया. सामूहिक तौर पर इसे इंडिया स्टैक का नाम दिया गया है. इसका मकसद 1.39 अरब भारतीय नागरिकों तक सस्ते दर पर डिजिटल और वित्तीय सेवाओं की पहुंच सुनिश्चित करना है. भारत के पास दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा स्टार्ट अप इकोसिस्टम है. ये तंत्र बाज़ार से जुड़ी अपनी ज़रूरतों को पूरा करने और भारतीय नागरिकों तक अपनी सेवाएं पहुंचाने के लिए टेक्नोलॉजी नेटवर्क और DPG का सहारा लेता है. इतना ही नहीं पिछले साल से भारत ने बाहरी किरदारों से अपनी राष्ट्रीय संप्रभु हितों की सुरक्षा के लिए कड़ा रुख़ भी अख़्तियार कर रखा है. जून 2020 में निजता के हनन से जुड़े संदेहों और डेटा को राष्ट्रीय सुरक्षा के ख़िलाफ़ इस्तेमाल किए जाने की आशंकाओं के बीच भारत सरकार ने 200 से ज़्यादा चीनी मोबाइल फ़ोन ऐप्लिकेशंस पर पाबंदी लगा दी थी. भारत सरकार के इस क़दम से भारतीय तकनीक मुहैया कराने वालों को देसी ऐप्लिकेशंस और प्लैटफ़ॉर्म तैयार करने को लेकर ज़बरदस्त प्रोत्साहन मिला. एक ओर जहां दुनिया के ज़्यादातर देश ऐप के निष्क्रिय उपभोक्ता बन गए हैं, वहां भारत ऐप के उपभोक्ता के साथ-साथ ऐप और तमाम डिजिटल मीडिया का निर्माता भी है.

ज़ाहिर है हार्डवेयर की बेतहाशा बढ़ती मांग को पूरा करने के लिए आपूर्ति के स्रोत ढूंढना अगली बड़ी चुनौती है. इन ज़रूरतों में 1.39 अरब हिंदुस्तानियों के लिए मोबाइल फ़ोन और हैंडहेल्ड डिवाइस के साथ-साथ दूसरे उपभोक्ता इलेक्ट्रॉनिक्स सामान शामिल हैं. 

भारत अपनी 1.39 अरब की आबादी को पूरी तरह से तकनीकी जुड़ावों वाला नागरिक समूह बनाने की जुगत में है. इस सिलसिले में महादेशीय स्तर की तीन डिजिटल ताक़तों में चीन और अमेरिका के साथ-साथ भारत भी शुमार है. नतीजतन भारत में अब बड़े पैमाने पर विश्वस्तरीय हार्डवेयर की मांग पैदा होने लगी है. ज़ाहिर है हार्डवेयर की बेतहाशा बढ़ती मांग को पूरा करने के लिए आपूर्ति के स्रोत ढूंढना अगली बड़ी चुनौती है. इन ज़रूरतों में 1.39 अरब हिंदुस्तानियों के लिए मोबाइल फ़ोन और हैंडहेल्ड डिवाइस के साथ-साथ दूसरे उपभोक्ता इलेक्ट्रॉनिक्स सामान शामिल हैं. इस कड़ी में सरकारी और निजी दफ़्तरों के लिए हार्डवेयर जुटाने की ज़रूरत, क्लाउड इंफ़्रास्ट्रक्चर, दूरसंचार नेटवर्क, लगातार बढ़ते डेटा लोकलाइज़ेशन के लिए डेटा सेंटर और स्टोरेज और औद्योगिक और सामरिक इलेक्ट्रॉनिक्स भी शुमार हैं. इसके अलावा भारत की स्वास्थ्य व्यवस्था का तेज़ी से विस्तार और डिजिटलीकरण हो रहा है. कोविड-19 से जुड़े तमाम नियम-क़ायदों के साथ-साथ प्रस्तावित नेशनल हेल्थ स्टैक से हार्डवेयर की ये ज़रूरतें और बढ़ने वाली हैं. भारत का स्कूली और कॉलेज तंत्र दुनिया के विशाल शिक्षा तंत्रों में से एक है. 2020 में प्रस्तावित राष्ट्रीय शिक्षा नीति के तहत तकनीक को साथ जोड़कर पूरी शिक्षा व्यवस्था के कायपलट का लक्ष्य रखा गया है. ऐसे में स्कूलों, कॉलेजों समेत आने वाली पीढ़ियों को नई अत्याधुनिक तकनीक और उपकरण मुहैया कराने के लिए हार्डवेयर की मांग में बेतहाशा बढ़ोतरी होना तय है. अगले 10 सालों में इन तमाम ज़रूरतों को पूरा करने के लिए बुनियादी तौर पर हार्डवेयर इंस्टॉल करने की विशाल व्यवस्था की दरकार होगी. लिहाज़ा इतने बड़े पैमाने पर आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिए देश में आवश्यकताओं का पूर्वानुमान लगाना, पहले से योजनाएं बनाना और टिकाऊ और भरोसेमंद आपूर्ति श्रृंखला खड़ी करना निहायत ज़रूरी हो जाता है.

 

घरेलू उत्पादन और मांग में उछाल

दरअसल अब तक भारत हार्डवेयर टेक्नोलॉजी डिज़ाइन और सप्लाई के लिए मुख्य रूप से आयात पर निर्भर रहा है. भारत में इलेक्ट्रॉनिक्स के सामानों का आयात 2000-01 में 4 अरब अमेरिकी डॉलर था जो 2018-19 में बढ़कर 55.6 अरब अमेरिकी डॉलर हो गया. ज़ाहिर है इस कालखंड में भारत के इलेक्ट्रॉनिक्स वस्तुओं के आयात में सालाना 15.7 प्रतिशत की चक्रवृद्धि दर से बढ़ोतरी हुई है. भारत में इलेक्ट्रॉनिक वस्तुओं का कुल उत्पादन 2013-14 में 28.7 अरब अमेरिकी डॉलर था जो 2017-18 में तक़रीबन दोगुना होकर 60.2 अरब अमेरिकी डॉलर तक पहुंच गया. इनमें उपभोक्ता, औद्योगिक और सामरिक महत्व वाले इलेक्ट्रॉनिक्स, कम्प्यूटर हार्डवेयर, मोबाइल फ़ोन, कल पुर्ज़े, और LED शामिल हैं. नीतिगत स्तर पर उठाए गए कई क़दमों का भारत में इलेक्ट्रॉनिक्स उत्पादन में आए इस उछाल में हाथ रहा है. इनमें विशेष आर्थिक क्षेत्र, उत्पादन आधारित प्रोत्साहन योजना और इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों और सेमीकंडक्टर्स के निर्माण के लिए प्रोत्साहन योजना शामिल हैं. इसके अलावा सार्वजनिक क्षेत्र की ज़रूरतों पूरी करने के लिए देसी स्रोतों को वरीयता दिए जाने समेत तमाम दूसरे उपायों का भी इलेक्ट्रॉनिक्स विनिर्माण में आए इस उछाल में बड़ा योगदान रहा है. भारत आज दुनिया में मोबाइल बनाने वाला दूसरा सबसे बड़ा देश बन गया है.

भारत में तैयार होने वाले इलेक्ट्रॉनिक वस्तुओं की गुणवत्ता और उनकी मात्रा हमारी घरेलू ज़रूरतों को पूरा करने के हिसाब से नाकाफ़ी हैं. साथ ही इलेक्ट्रॉनिक वस्तुओं से जुड़ा व्यापार घाटा भी लगातार बढ़ता जा रहा है. 

बहरहाल भारत में तैयार होने वाले इलेक्ट्रॉनिक वस्तुओं की गुणवत्ता और उनकी मात्रा हमारी घरेलू ज़रूरतों को पूरा करने के हिसाब से नाकाफ़ी हैं. साथ ही इलेक्ट्रॉनिक वस्तुओं से जुड़ा व्यापार घाटा भी लगातार बढ़ता जा रहा है. इतना ही नहीं घरेलू उत्पादन का एक बहुत बड़ा हिस्सा कल-पुर्ज़ों को जोड़ने (sub-assembly) से संबंधित है, जबकि हमारी ज़रूरत घरेलू तौर पर फ़ुल-स्टैक निर्माण की है. ऊपर भी इस बात की चर्चा की गई है कि भारत में हार्डवेयर की ज़रूरतों में तेज़ी से इज़ाफ़ा होने का अनुमान है. ऐसे में भारत में घरेलू स्तर पर फुल-स्टैक डेवलपमेंट और फ़ैब्रिकेशन से जुड़ी रणनीति को रफ़्तार देने की ज़रूरत है.

इलेक्ट्रॉनिक्स की घरेलू मांग को पूरा करने के लिए दूसरे देशों पर निर्भर रहने की व्यवस्था के आर्थिक और व्यापारिक संतुलन पर दुष्प्रभाव साफ़ हैं. साथ ही इसका राष्ट्रीय सुरक्षा पर होने वाले प्रभावों से भी इनकार नहीं किया जा सकता. दुनिया को जिस संकट का सामना देर-सवेर करना ही था उसे कोरोना महामारी ने पूरी तरह से बेपर्दा कर दिया है. वो संकट है विनिर्माण और आपूर्ति श्रृंखला के लिए चीन पर केंद्रित ज़रूरत से ज़्यादा निर्भरता. डिजिटल अर्थव्यवस्था की ओर तेज़ी से पैर पसारते भारत के लिए ख़ासतौर से इस बारे में सोच-विचार करने की आवश्यकता है. भारत को अपनी ज़रूरतों के लिए हार्डवेयर, संचार से जुड़े उपकरणों, क्लाउड इंफ़्रास्ट्रक्चर और दूसरे महत्वपूर्ण कल-पुर्ज़ों की बेरोकटोक आपूर्ति सुनिश्चित करनी होगी. एक ओर भारत अपना स्वदेशी डिजिटल सुरक्षा जाल, ऐप्लिकेशंस और प्लैटफ़ॉर्म्स तैयार करने समेत तमाम अत्याधुनिक क़वायदों में जुटा है. ऐसे में हार्डवेयर और उपकरणों के निर्माण में भी स्वदेशी क्षमता विकसित करने पर ज़ोर देना निहायत ज़रूरी हो जाता है. दरअसल नागरिकों के डिजिटल हितों पर मौजूद ख़तरों को तभी जड़ से मिटाया जा सकता है जब हार्डवेयर उपकरण भी घरेलू स्तर पर तैयार किए गए हों.

ह्यूमन रिसोर्स केंद्रित रणनीति से बढ़ सकते हैं आगे

आज चतुराई इसी में है कि हम पूरी तरह से घरेलू स्तर पर निर्माण कार्य (fabrication) शुरू कर दें. निश्चित रूप से सरकार को हर राज्य में विनिर्माण के अधिक से अधिक केंद्र स्थापित करने के लिए निवेश और ज़रूरी प्रोत्साहन मुहैया कराना चाहिए. ये औद्योगिक समूह और विनिर्माण के केंद्र विश्व-स्तरीय होने चाहिए. इसके साथ ही यहां श्रम की गहनता और मशीनी तौर-तरीक़ों की मिली-जुली रणनीतियों का इस्तेमाल सुनिश्चित किया जाना चाहिए. दरअसल मक़सद ऐसी अत्याधुनिक तकनीकी का विकास करना है जो चीनी, कोरियाई और अमेरिकी निर्माताओं की बराबरी कर सके. इन औद्योगिक समूहों को भविष्य की ज़रूरतों, नियम-क़ायदों और संरचना या डिज़ाइन के उभार के मुताबिक निरंतर उन्नत तकनीक (upgrade) और विस्तार से जुड़ी रणनीतियां अपनानी होंगी. तेज़ रफ़्तार रेल और सड़कमार्गों के ज़रिए बाज़ार से जुड़े ये समर्पित औद्योगिक समूह अगले दशक तक भारत के हार्डवेयर क्षेत्र की कायापलट कर सकते हैं.

एक ओर भारत अपना स्वदेशी डिजिटल सुरक्षा जाल, ऐप्लिकेशंस और प्लैटफ़ॉर्म्स तैयार करने समेत तमाम अत्याधुनिक क़वायदों में जुटा है. ऐसे में हार्डवेयर और उपकरणों के निर्माण में भी स्वदेशी क्षमता विकसित करने पर ज़ोर देना निहायत ज़रूरी हो जाता है. 

भारत को अपनी बौद्धिक संपदा की हिफ़ाज़त और शोध और विकास पर ज़रूरत के मुताबिक निवेश करना होगा. इसके साथ ही अंतिम पायदान तक और कल पुर्ज़े जोड़ने की मौजूदा व्यवस्था से आगे निकलकर फ़ुल-स्टैक डेवलपमेंट और विनिर्माण की ओर तेज़ी से क़दम बढ़ाना होगा. घरेलू स्तर पर विनिर्माण से जुड़े प्रयासों की पूरी क़ीमत तभी मिलेगी जब उसमें घरेलू डिज़ाइन का इस्तेमाल किया गया हो. पेटेंट के इस्तेमाल के लिए भारी-भरकम रकम चुकाकर दूसरी अर्थव्यवस्थाओं से IP का आयात कर हम अपने विनिर्माण का मोल नहीं बढ़ा सकते. ज़ाहिर है भारत को हार्डवेयर और उपकरणों के डिज़ाइन से जुड़े बौद्धिक संपदा अधिकारों पर मालिक़ाना हक़ हासिल करना ही होगा. इस क़वायद के लिए अत्याधुनिक शोध और प्रयोगशालाओं सुविधाएं, प्रायोगिक तौर पर विकास और नवाचार से जुड़ी सहूलियतें और वैज्ञानिक अनुसंधानों और खोजों के लिए दीर्घकालिक शोध अनुदान मुहैया कराया जाना बेहद ज़रूरी है. इसके साथ ही बौद्धिक संपदा अधिकारों से जुड़ी अर्ज़ियां दायर करने की सुविधाएं उपलब्ध कराने की भी ज़रूरत पड़ेगी. हालांकि आवश्यक सुविधाओं की उपलब्धता के साथ-साथ बौद्धिक और मानव संसाधन को प्रोत्साहित करना और उन्हें दीर्घकाल तक बरकरार रखना भी निहायत ज़रूरी है

फ़िलहाल दुनिया भर में चिप की ज़बरदस्त किल्लत चल रही है. इस सिलसिले में फ़ैब्रिकेशन में दबदबा कायम करने को लेकर दुनिया के देशों में होड़ मची है. चीन इस प्रतिस्पर्धा में दूसरों से काफ़ी आगे है. भारत को तत्काल इस प्रतिस्पर्धा में शामिल होकर जल्द से जल्द दूसरों से आगे निकलना होगा. 

बहरहाल इस पूरी क़वायद की कामयाबी के लिए अत्याधुनिक सेमीकंडक्टर चिप्स की उपलब्धता भी बेहद ज़रूरी है. फ़िलहाल दुनिया भर में चिप की ज़बरदस्त किल्लत चल रही है. इस सिलसिले में फ़ैब्रिकेशन में दबदबा कायम करने को लेकर दुनिया के देशों में होड़ मची है. चीन इस प्रतिस्पर्धा में दूसरों से काफ़ी आगे है. भारत को तत्काल इस प्रतिस्पर्धा में शामिल होकर जल्द से जल्द दूसरों से आगे निकलना होगा. हमें देश में विश्व स्तरीय चिप फ़ैब्रिकेशन प्लांटों के कई जेनरेशंस तैयार करने होंगे. इसके लिए भारी भरकम निवेश जुटाकर, भौतिक बुनियादी ढांचा खड़ा कर, मानवीय पूंजी को प्रोत्साहन देकर और रणनीतिक तौर पर अंतरराष्ट्रीय भागीदारियां बनाकर बेहद तेज़ गति से आगे बढ़ना होगा. घरेलू स्तर पर हार्डवेयर और इलेक्ट्रॉनिक्स के फ़ुल-स्टैक डिज़ाइन और फ़ैब्रिकेशन से समूची अर्थव्यवस्था को कई गुणा ताक़त मिलेगी. इसमें नौकरियों के लाखों अवसर (श्रम की गहनता और विशेषज्ञता- दोनों तरह की) पैदा करने की काबिलियत है. इसके साथ ही आपूर्ति श्रृंखला, निर्यात और अन्य बेहद फ़ायदेमंद आर्थिक गतिविधियों के अवसर भी पैदा हो सकते हैं. कोविड-19 के प्रभावों के चलते अर्थव्यवस्था में आई सुस्ती के बाद भारत के आर्थिक विकास के इंजन में नई जान आती दिख रही है. ऐसे में इस बहुआयामी प्रयास से आर्थिक गतिविधियों की रफ़्तार में तेज़ी आना तय है. 5 ट्रिलियन इकॉनोमी बनने की राह में ये एक निर्णायक क़दम साबित हो सकता है.

The views expressed above belong to the author(s). ORF research and analyses now available on Telegram! Click here to access our curated content — blogs, longforms and interviews.