26 फऱवरी को इस्लामिक गणराज्य ईरान एक छोटे लेकिन संख्या के मामले में महत्वपूर्ण देशों में शामिल हुआ जिसने अफ़ग़ानिस्तान के इस्लामिक अमीरात को तेहरान में अफ़ग़ानिस्तान के दूतावास का ज़िम्मा संभालने की इजाज़त दी. ये घटनाक्रम अतीत में ईरान की उस ज़िद से चालाकी भरा बदलाव है जिसके तहत वो दूतावास को ऐसी सरकार को सौंपने से इनकार करता था जिसे वो मान्यता नहीं देता है. पहले ईरान इस बात को दोहराता था कि वो सभी समुदायों की नुमाइंदगी वाली समावेशी सरकार को लेकर प्रतिबद्ध है.
ईरान-अफ़ग़ानिस्तान संबंध लगातार सहयोग और संघर्ष के दौर के बीच दुविधा में रहा है. कुछ मुद्दे जैसे कि बार-बार सीमा पर भिड़ंत, अफ़ग़ानिस्तान से लगती पूर्वी सीमा से शरणार्थियों का लगातार ईरान में आना और पानी के उचित बंटवारे को लेकर विवाद स्थायी रूप से बना रहा है, भले ही काबुल की सत्ता में कोई भी हो.
ईरान-अफ़ग़ानिस्तान संबंध लगातार सहयोग और संघर्ष के दौर के बीच दुविधा में रहा है. कुछ मुद्दे जैसे कि बार-बार सीमा पर भिड़ंत, अफ़ग़ानिस्तान से लगती पूर्वी सीमा से शरणार्थियों का लगातार ईरान में आना और पानी के उचित बंटवारे को लेकर विवाद स्थायी रूप से बना रहा है, भले ही काबुल की सत्ता में कोई भी हो. लेकिन अब अफ़ग़ानिस्तान की कमान तालिबान के पास होने के साथ ईरान के लिए इस्लामिक स्टेट खोरासान प्रॉविंस (ISKP) का कथित तौर पर सीमा पार ख़तरा और दूसरे सुरक्षा से जुड़े सोच-विचार सहयोग के लिए अवसर पैदा कर सकते हैं. भूगोल और भू-राजनीति के बीच जकड़े हुए दोनों पक्ष ये सोचकर संबंधों को महत्व देते हैं कि भागीदारी का कोई रूप उनके हितों को सुरक्षित करने के लिए आवश्यक है. लेकिन कुछ प्रतिस्पर्धी हितों के बीच असहमति ने सहयोग को मुश्किल बना दिया है जिसका इस क्षेत्र पर अप्रत्यक्ष असर होगा.
सहयोग और संघर्ष के बीच आगे-पीछे
अफ़ग़ानिस्तान पर तालिबान के कब्ज़े के बाद ईरान के सर्वोच्च नेता अयातोल्लाह ख़ामेनेई ने पड़ोस के देश के शासन के प्रति ईरान के दृष्टिकोण की रूप-रेखा प्रस्तुत की. उनके अनुसार ईरान की नीति पारस्परिक होगी, इस क्षेत्र में ईरान के हितों और प्राथमिकताओं की तरफ़ तालिबान के द्वारा दिखाई गई संवेदनशीलता से प्रभावित होगी. हालांकि, ये दीर्घकालीन रणनीति के लिए आवश्यकता से परहेज़ नहीं करता है लेकिन ये पूरी तरह से तालिबान पर भरोसे को लेकर ईरान के संदेह के बारे में बताता है. ईरान में किसी की भी सत्ता रही हो लेकिन वो हमेशा अफ़ग़ानिस्तान को लेकर सावधान रहा है. मगर बदले हुए अंतर्राष्ट्रीय संदर्भ और नाराज़गी भरे आंतरिक माहौल ने कठिनाइयों में बढ़ोतरी की है. एक स्पष्ट नीतिगत प्रतिक्रिया तैयार करने से ईरान के भीतर घरेलू बंटवारे में भी बढ़ोतरी हुई है. कुछ वर्ग तालिबान के साथ भागीदारी के विचार को लेकर ज़्यादा तैयार हैं.
भूगोल और साझा राजनीतिक, आर्थिक एवं सभ्यतागत संबंधों से एक साथ बंधे ईरान और अफ़ग़ानिस्तान के बीच ऐतिहासिक रूप से महत्वपूर्ण लेकिन उथल-पुथल भरे द्विपक्षीय संबंध रहे हैं. पिछले कुछ वर्षों के दौरान व्यापार एवं आर्थिक सहयोग में काफ़ी तेज़ी आई है और अफ़ग़ानिस्तान चेंबर ऑफ कॉमर्स के अनुसार दोनों तरफ़ का व्यापार 1 अरब अमेरिकी डॉलर तक पहुंच गया है. ईरान के लिए अफ़ग़ानिस्तान के साथ व्यापार अमेरिका के आर्थिक प्रतिबंधों, जो 2005 से बीच-बीच में लगा रहा है, के पंगु कर देने वाले असर से पार पाने का एक माध्यम है और इससे ईरान की ‘प्रतिरोधक अर्थव्यवस्था’ को मदद मिली है. सीमावर्ती क्षेत्र भी गहन रूप से एकीकृत हैं और अफ़ग़ानिस्तान के सरहदी शहर ज़रांज में ईरान की मुद्रा रियाल का इस्तेमाल होता है और सुपरमार्केट में ईरान के सामान हर जगह मिल जाते हैं. लेकिन व्यापार में जहां तेज़ी आई है वहीं दूसरे पहलुओं को लेकर मतभेद लगातार बढ़ रहे हैं.
मतभेदों का समाधान नहीं?
अगस्त 2021 से लेकर फरवरी 2023 तक ईरान और अफ़ग़ानिस्तान के अधिकारियों के बीच 67 बार मुलाक़ात हुई है. ज़्यादातर अवसरों पर ये बैठक द्विपक्षीय हुई है. इन बैठकों का तथाकथित एजेंडा संबंधों में रुकावट बनने वाले मुद्दों पर सर्वसम्मति स्थापित करना और बीच का रास्ता बनाना है. इन ‘मुद्दों’ में कुछ तो ऐसे हैं जो संबंधों को और अधिक ख़राब कर सकते हैं. पिछले साल (मार्च 2022-फरवरी 2023) अफ़ग़ानिस्तान के 4,45,403 शरणार्थियों ने ईरान में शरण ली. ऐतिहासिक रूप से ईरान अफ़ग़ानिस्तान के शरणार्थियों के एक बड़े हिस्से का मेज़बान बनता रहा है. ये शरणार्थी मुख्य रूप से शिया हज़ारा और ताजिक समुदायों से हैं और लगभग 36 लाख शरणार्थी पहले से ईरान में मौजूद हैं. ईरान की शरणार्थी नीति जहां तुलनात्मक तौर पर समावेशी है लेकिन इसके बावजूद उसने कई शरणार्थियों को वापस अफ़ग़ानिस्तान भेजा है. इनमें से कई अपनी मर्ज़ी से गए हैं तो कई बार उन्हें ज़बरदस्ती भेजा गया है. मार्च के महीने में अवैध ढंग से सीमा पार कर रहे 11 शरणार्थियों को ईरान के सुरक्षा जवानों ने गोली मारी दी जिसकी वजह से हंगामा मचा और काबुल में ईरान के ख़िलाफ़ प्रदर्शन हुए. तालिबान के सत्ता में आने के बाद अवैध ढंग से ईरान में प्रवेश कर रहे लगभग 100 लोगों का यही अंजाम हुआ है. वैसे ईरान ने वीज़ा की सुविधा को आसान बनाने और अफ़ग़ानिस्तान की सीमा पर नांगरहर में हवाई अड्डे के पुनर्निर्माण में योगदान की पेशकश के ज़रिए अपने देश में शरणार्थियों की संख्या को नियंत्रित करने के लिए कुछ क़दम उठाए हैं. दोनों पक्षों ने शरणार्थियों के साथ दुर्व्यवहार और ज़बरदस्ती उनको वापस भेजने पर चर्चा के लिए नियमित रूप से बैठक भी की है लेकिन कोई महत्वपूर्ण प्रगति दर्ज नहीं की गई है.
हेलमंड का पानी
अफ़ग़ानिस्तान से ईरान के सिस्तान-बलूचिस्तान प्रांत की हमाउन दलदली ज़मीन तक बहने वाली हेलमंड नदी के पानी के उचित बंटवारे को लेकर मतभेद भी एक मुश्किल मुद्दा रहा है. चूंकि अफ़ग़ानिस्तान और ईरान- दोनों देश पानी की कमी और जल प्रबंधन के मज़बूत बुनियादी ढांचे की कमी का सामना करते हैं, ऐसे में इस मुद्दे को लेकर किसी भी ग़लत कार्रवाई का घरेलू स्तर पर राजनीतिक तात्पर्य हो सकता है. ईरान के लिए पानी की कमी अशांत सिस्तान-बलूचिस्तान प्रांत से दूसरी जगह पलायन को तेज़ करेगी और देश में पहले से ही पनप रहे असंतोष को बढ़ाएगी. मार्च 2021 में जब कमाल ख़ान बांध का उद्घाटन किया गया था तो अफ़ग़ानिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति अशरफ़ ग़नी ने अपने पानी पर अफ़ग़ानिस्तान के अधिकार का फिर से दावा किया था और मुफ़्त में पानी देने से इनकार कर दिया था. उन्होंने ईरान से कहा कि वो पानी के बदले अफ़ग़ानिस्तान को तेल दे.
अफ़ग़ानिस्तान से ईरान के सिस्तान-बलूचिस्तान प्रांत की हमाउन दलदली ज़मीन तक बहने वाली हेलमंड नदी के पानी के उचित बंटवारे को लेकर मतभेद भी एक मुश्किल मुद्दा रहा है.
ईरान के द्वारा अफ़ग़ानिस्तान में पहले की अमेरिका समर्थित सरकार से हटकर तालिबान हुकूमत से अपनी भावनाओं का सम्मान करने की उम्मीदों को उस वक़्त झटका लगा जब बांध के पानी को अफ़ग़ानिस्तान के खेतों की तरफ़ मोड़ दिया गया. इस तरह ईरान के विरोध को दरकिनार कर दिया गया. ईरान के द्वारा समझौते के तहत अपने अधिकारों को सुरक्षित करने के लिए क़ानूनी चुनौती पेश करने की धमकी का भी अफ़ग़ानिस्तान पर कोई असर नहीं हुआ. अफ़ग़ानिस्तान ने अपने राष्ट्रीय हितों की प्रधानता को दोहराया और बांध की शुरुआत को अफ़ग़ानिस्तान के द्वारा अपने उचित हिस्से पर फिर से दावे के रूप में देखा. ऊर्जा एवं जल के उप मंत्री मुजीब उर रहमान उमर ने अफ़ग़ानिस्तान के राष्ट्रीय हितों के प्रति प्रतिबद्धता को स्पष्ट किया और कहा कि उनका देश और अधिक बांधों के निर्माण पर ध्यान देगा. इस मुद्दे के भावनात्मक स्वभाव की वजह से दोनों देशों के संबंध के दूसरे पहलुओं तक इसके फैलने और दोनों देशों के भीतर इसे उठाने वाले तत्वों की संभावना भी अधिक है. ऐसा इसलिए क्योंकि ईरान के सांसदों ने सीमावर्ती शहरों से अफ़ग़ानिस्तान के शरणार्थियों को बेदख़ल करने की धमकी दी है और अफ़ग़ानिस्तान में ईरान के दूतावास और वाणिज्य दूतावासों के बाहर लोगों ने प्रदर्शन किया है.
सीमा पर भी बार-बार झड़प हो रही है क्योंकि स्पष्ट रूप से दोनों देशों के बीच कुछ ‘ग़लतफ़हमी’ है. इसका नतीजा कभी-कभी दोनों देशों के सुरक्षा बलों के बीच फायरिंग और सुरक्षा चौकी पर कब्ज़े के रूप में निकलता है. पिछले कुछ महीनों के दौरान हिरमंड इलाक़े, हेरात और निमरोज़ प्रांत में कई बड़ी घटनाएं हुई हैं. ईरान के बॉर्डर गार्ड ने उन इलाक़ों में तालिबान के द्वारा अपना झंडा फहराने और अवैध सड़क बनाने की कोशिशों को रोका है जिन पर ईरान दावा करता है. ईरान बॉर्डर गार्ड ने चेतावनी दी है कि इस तरह की घुसपैठ को लेकर उसकी ख़ामोश प्रतिक्रिया को कमज़ोरी न समझा जाए. इस मुद्दे पर सहयोग के लिए साझा आयोग का गठन अगस्त 2022 में किया गया था लेकिन इसके बावजूद संघर्ष थमने का नाम नहीं ले रहे. 5 मार्च को भी इस मुद्दे पर टकराव हुआ था. सीमा पर अस्थिरता नशीले पदार्थों की तस्करी के जोखिम को बढ़ाती है और इससे इस क्षेत्र में सक्रिय आपराधिक गिरोहों को भी बढ़ावा मिलता है.
क्या ISIS के ख़तरे की वजह से सहयोग करने को मजबूर?
ईरान के लिए अफ़ग़ानिस्तान की सत्ता में परिवर्तन को लेकर सबसे बड़ी नकारात्मकता ये आई है कि तालिबान, जो सत्ता पर काबिज़ होने के बाद से काफ़ी मज़बूत हो गया है, के अलावा भी चरमपंथियों और आतंकवादी संगठनों से ख़तरा नये सिरे से शुरू हो गया है. इस इलाक़े में ISIS के गुट ISKP ने तालिबान के सामने तो चुनौती पेश की ही है, उसका ख़तरा ईरान के ऊपर भी मंडरा रहा है. ISKP के कई अड्डे ईरान-अफ़ग़ानिस्तान सीमा के नज़दीक ज़रांज में मिले हैं. ये संगठन अफ़ग़ानिस्तान में दूसरे देशों जैसे कि रूस और चीन के हितों पर हमले के लिए भी ज़िम्मेदार रहा है. इसलिए तालिबान का समर्थन हासिल करना और ये सुनिश्चित करना कि वो ISKP की साज़िशों का जवाब दे, ईरान के लिए एक महत्वपूर्ण प्राथमिकता है.
पूरी तरह से अलग-थलग तालिबान के लिए ईरान का सीमित समर्थन भी अपने देश में मज़बूत स्थिति बनाने के लिए महत्वपूर्ण है. वहीं ईरान के लिए ISKP को दूर रखना उसकी दीर्घकालीन रणनीति को निर्धारित करेगा.
इस असुविधाजनक वास्तविकता की वजह से ही ईरान तालिबान के साथ सहयोग के लिए इच्छुक है और उसने अफ़ग़ानिस्तान के विरोधी समूहों, विपक्षी नेताओं को शासन व्यवस्था का समानांतर ढांचा खड़ा करने में अपने समर्थन को कम किया है. ये तालिबान की छवि को बदलने की कोशिशों, तालिबान की ‘स्थानीय’ प्रकृति को ISKP के ‘बाहरी’ स्वरूप से अलग करने के बारे में भी बताता है और कैसे ISKP से हटकर तालिबान ख़िलाफ़त की स्थापना के बारे में नहीं सोच रहा है. अतीत में शिया समुदाय के ख़िलाफ़ तालिबान के अत्याचारों को भी उतना महत्व नहीं दिया जा रहा है. ईरान की विदेश नीति के इस विरोधाभासी पहलू के जारी रहने का मक़सद हर तरफ़ से अपने हितों को सुरक्षित करने और अपने जवाब को मज़बूत करना है.
असर बनाने के लिए कोशिश
कुछ वर्गों में ये उम्मीद जताई जा रही है कि अफ़ग़ानिस्तान ईरान के नेताओं को अंतर्राष्ट्रीय समुदाय के साथ ‘रचनात्मक भागीदारी’ का अवसर पेश करता है. इस तरह अफ़ग़ानिस्तान पर तालिबान के कब्ज़े को पश्चिमी देशों और ईरान के बीच संबंधों में नयापन लाने के माध्यम के तौर पर देखा जा रहा है. इसमें अफ़ग़ानिस्तान ‘कूटनीतिक हिस्सेदारी और सहयोग के लिए एक रास्ता’ बन गया है जो सभी पक्षों के हितों को आगे बढ़ाता है. जब अमेरिकी सुरक्षा बल अफ़ग़ानिस्तान से बाहर हुए थे तो ईरान ने दो दशकों तक अफ़ग़ानिस्तान में अमेरिका के हस्तक्षेप के बाद उसकी नाकामी का मज़ाक़ उड़ाने के एक मौक़े के रूप में इसका फ़ायदा उठाया था और ख़ुद को इस क्षेत्र में एक ज़िम्मेदार देश के तौर पर पेश किया था जो कि ‘प्रतिरोध की धुरी’ का समर्थक है.
इस तरह ईरान के लिए आगे बढ़ना, इस क्षेत्र में पश्चिमी देशों की साज़िशों के ख़िलाफ़ प्रतिरोध का नेतृत्व करने वाले देश की छवि को बनाए रखना प्राथमिकता होगी. पूरी तरह से अलग-थलग तालिबान के लिए ईरान का सीमित समर्थन भी अपने देश में मज़बूत स्थिति बनाने के लिए महत्वपूर्ण है. वहीं ईरान के लिए ISKP को दूर रखना उसकी दीर्घकालीन रणनीति को निर्धारित करेगा. तालिबान के अधिकारियों के साथ सबसे ताज़ा बैठक के दौरानकाबुल में ईरान के दूतावास ने उम्मीद जताई कि “दोनों देशों के बीच संबंधों और समानताओं में विस्तार” तालिबान को ईरान की मांगों को स्वीकार करने के लिए प्रेरित करेगा. वैसे तो ये अफ़ग़ानिस्तान में ईरान के मौजूदा असर को लेकर ग़लत उम्मीद हो सकती है लेकिन ये दोनों पक्षों के बीच सहयोग की आवश्यकता का संकेत देती है. इससे ये भी पता चलता है कि कैसे अल्पकाल में ईरान की नीति अधिक प्रतिक्रियात्मक और अस्थायी होगी.
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