Author : Ramanath Jha

Published on Jul 28, 2023 Updated 0 Hours ago

विश्‍व जनसंख्‍या दिवस को एक सचेत चेतावनीकी तरह लिया जाना चाहिये कि भारत को विकेन्द्रीकृत शहरीकरण में निवेश करके अपने नागरिकों के लिए बेहतर भविष्‍य की पेशकश करनी चाहिए.

भारत की बढ़ती जनसंख्या और ‘शहरीकरण’ की प्रक्रिया!

विश्व जनसंख्या दिवस का वार्षिक उत्सव 11 जुलाई को मनाने से हमारी स्मृति ताज़ा होती है, जो मानवता की उपलब्धियों और आगामी चुनौतियों को दर्शाता है.इसमें बिल्कुल कोई संदेह नहीं है कि वर्तमान समयमें जन्मे लोग पहले की तुलना में बेहतर  और लंबा जीवन जी रहे हैं, इसके लिए  बेहतर दवाओं और उत्कृष्ट स्वास्थ्य सेवाओं  को हमें धन्यवाद करना चाहिये. हालांकि, मानवता को उसके अस्तित्व से जुड़े  कई अन्य तरह के संकेतों का भी सामना करना पड़ता है. अब तक विश्व की जनसंख्या ने 8 बिलियन के आंकड़े को पार कर लिया है, जो अब तक का सबसे उच्चतम आंकड़ा है.  कुछ लोगों को डर है, और यह डर बिल्कुल अच्छे कारणों के कारण ही है कि दुनिया भर में  लोगों की भीड़ बढ़ी हुई है और पृथ्वी के संसाधनों का उपयोग आम आदमी की ज़रूरतों के अनुसार कई गुणा ज़्यादा किया जा रहा है. वहीं, कुछ ऐसे देश भी हैं जहां जन्म दर  चिंताजनक तरीके से गिर रही हैं, और एक बड़ीजनसंख्या, जो वृद्ध हो रही है उन्हें किसी तरह की सुविधा मुहैय्या नहीं हो रही है.जिससे भविष्य के बारे में अनिश्चितता की स्थिति और चिंता उत्पन्न हो रही है. इसके साथ ही, हमारे सामने जलवायु परिवर्तन, उससे होने वाली बाढ़, लू, और जलवायु अत्याधिकताएं,लगातारजारी रहने वाले संघर्ष और महामारी के खतरे का भी अंदेशा है, जो भविष्य के  और डरावना होने के डर को बढ़ा देते हैं.  

साथ ही, दुनिया भर में शहरीकरण में काफी तेज़ी से वृद्धि हो रही है, जिस वजह से, देशों के बीच शहरीकरण की गति और तीव्रता में विशाल अंतर है.

साथ ही, दुनिया भर में शहरीकरण में काफी तेज़ी से वृद्धि हो रही है, जिस वजह से, देशों के बीच शहरीकरण की गति और तीव्रता में विशाल अंतर है. विकसित देश या उच्च-आय वाले देश पहले से ही शहरीकरण के अंत तक पहुंच चुके हैं, जो लगभग 80 प्रतिशत या उससे अधिक है; मध्य-आय वाले देश बीच में हैं और अधिक शहरीकरण की दिशा में हैं – 50 प्रतिशत  या उससे भी ज़्यादा. हालांकि, विकसित होने वाले देशों  जिनके लगभग तिहाई हिस्सों का शहरीकरण हो  चुका है वहां आमतौर पर  तेज़ गति से और अधिक शहरीकरण का अलग-अलग स्तर पर सामना कर रहे हैं. जनसांख्यिकीय सांख्यिकी  बताती है कि वर्ष2050 तक दुनिया की जनसंख्या का लगभग दो-तिहाई हिस्सा शहरों में बसेगा. इससे आने वाले कुछ दशकों में शहरों में जीवन की गुणवत्ता भविष्य की मानव गुणवत्ता को अत्यंत प्रभावित करेगी. जबकि अनचाहे बच्चों के जन्म को रोकने के प्रयास जारी रहेंगे, मनुष्य की प्राथमिकता  ये होनी चाहिये कि वोजीवन की गुणवत्ता और भी बेहतर, दिशा में  ले जा पाये. जैसा कि संयुक्त राष्ट्र महासचिव ने कहा, “वैश्विक जनसंख्या का8 बिलियन के आंकड़े तक पहुंचना एक  ऐतिहासिक लैंडमार्क है, लेकिन हमारा ध्यान हमेशा लोगों पर होना चाहिए.”

सबसे अधिक जनसंख्या

विश्व जनसंख्या दिवस भारत को याद दिलाता है कि उपरोक्त सभी चिंताएं यहां भी लागू होती हैं.भारत ने 1.4 बिलियन का आंकड़ा पार कर लिया है और चीन को पछाड़ते हुए विश्व में सबसे अधिक जनसंख्या वाला देश बन चुका है; और  इस संख्या में वृद्धि अब भी जारी है. इसके अलावा, जलवायु परिवर्तन की चुनौती भी देश के लिए एक खतरे का सबब बनती जा रही है. हम अभी-अभी COVID-19 महामारी की समस्या का सामना करके उबरे  हैं और इसके बदले में जीवन और अर्थव्यवस्था की भारी कीमत चुकाई है. इन सभी पीड़ाओं के बावजूद, भारत एक आर्थिक शक्ति बन कर उभरा है. आर्थिक तंदुरुस्त वैश्विक परिस्थिति में, भारत के चल रहे आर्थिक प्रदर्शन के प्रमुख स्रोत भारत के शहर हैं. लगभग 6 प्रतिशत राष्ट्रीय भूगोल के साथ और एक-तिहाई जनसंख्या के साथ, शहरों ने राष्ट्र की अर्थव्यवस्था के लगभग दो-तिहाई भाग का उत्पादन किया है. स्पष्ट है कि भारत का शहरीकरण आगामी कई दशकों तक सतत् जारी रहेगा.  

इस परिप्रेक्ष्य में, भारत के समक्ष दो महत्वपूर्ण प्रश्न हैं – पहली कि, भारत का एक देश के तौर पर कितनी जल्दी पूरी तरह से शहरीकरण हो जाएगा, और दूसरा भारतीय शहर अपने नागरिकों को अच्छी गुणवत्ता वाला जीवन कैसे प्रदान करेंगे? दोनों प्रश्न स्वाभाविक रूप से गहरे तौर पर संबंधित हैं – शहरीकरण, अर्थव्यवस्था को सक्रिय करता है, अधिक आर्थिक उत्पादकता को प्रोत्साहित करता है, और लोगों के हाथ में अधिक पैसे देता है. अगर अच्छी  शहरी ढांचों और सेवाओं के साथ सहायता की जाए, तो नागरिक बेहतर जीवन जी सकते हैं और उत्पादकता के संदर्भ में और भी बेहतर प्रदर्शन कर सकते हैं. हालांकि, 1951 के उपरांत में  2.3 प्रतिशत प्रति दशक की रफ्त़ार से विकास दर्ज करने के बावजूद, भारत का शहरीकरण काफी धीमी गति से हुआ है. पूर्व प्रकाशित ओआरएफ़ के  एक लेख में ये बेहतर तरीके से दर्शाया गया है कि वर्तमान शहरों में पुन:वर्गीकरण और विलय के बावजूद, जनसंख्या की स्वाभाविक/प्राकृतिक वृद्धि, शहरीकरण की रफ्त़ार को और गति प्रदान नहीं करेगी. आंतरिक शहरी गुणात्मकता, आवास का पुन:वर्गीकरण, और शहरीकृत ग्रामीण क्षेत्रों का शहरों में विलय, खुद की गति में बढ़ते रहते है और उत्प्रेरण के लिए वाकई अनुकूल नहीं है.

भारत के समक्ष दो महत्वपूर्ण प्रश्न हैं – पहली कि, भारत का एक देश के तौर पर कितनी जल्दी पूरी तरह से शहरीकरण हो जाएगा, और दूसरा भारतीय शहर अपने नागरिकों को अच्छी गुणवत्ता वाला जीवन कैसे प्रदान करेंगे?

‘शहरी स्थानांतरण अभाव’ – की वजह से आजकल यह प्रतिबंधित है. मजबूत अर्थव्‍यवस्‍थाओं और क्षमताओं के साथ देश भर में फैले कई शहरों के अभाव से जबरन पलायन गंतव्‍यों के लिए रोज़गार सृजन होता है. इसलिए, सरकार को ऐसे उपायों की ओर ध्यान देने की आवश्यकता है जहां गांवों से शहर में होने वाले पलायन तेज़ गति के साथ सम्पन्न हो सके. भारत का शहरीकरण तभी गति पकड़ सकता है जब इसमें कम से कम 500 ऐसे शहर हों,  जिनमें बड़ी आर्थिक प्रोफाइल है और पर्याप्त रोज़गार के अवसर उत्पन्न होते रहे, ताकि ग्रामीण बेहतर जीवन और जीविका के लिए उन शहरों में शिफ्ट होने के लिए प्रेरित हो सके. इसके लिए इंफ्रास्ट्रक्चर अथवा आधारभूत ढांचों  में निवेश की आवश्यकता है और उद्योगों को उन 500 शहरों में आधार स्थापित करने के लिए प्रोत्साहन स्वरूप इनाम/पुरस्कार दिए जाने की आवश्यकता है. सीमित संख्या के मेगाशहर और महानगरीय शहरों ने ही लगभग सभी प्रवासीयों के भार को उठा रखा है. इन शहरों ने, सक्रीय शहरी अर्थव्यवस्था बनने की दिशा में, सरकारी और निजी निवेश के भारी हिस्से की अवहेलना करते हुए, सफलता प्राप्त की है. हालांकि, इनकी जनसांख्यिकीय घनत्व अस्थायी है और इंफ्रास्ट्रक्चर और सेवाओं पर काफी दबाव बना रही है. विशेष रूप से मुंबई, दिल्ली और बेंगलुरु में, जो कि भारत की आर्थिक राजमुद्रा के तीन मोती हैं. सतत् जनसांख्यिकीय वृद्धि ने उनके लिए परेशानी पैदा करना शुरू कर दिया है और व्यापक निवेश के माध्यम से इनके जैसे शहरी अर्थव्यवस्थाओं को बनाने के लिए एक सतर्क प्रयास से इस स्थिति को टाल सकता था.

वर्तमान समय में देश को IDSMT की एक बेहतर और अपग्रेडेड वर्ज़न/ संस्करण की ज़रूरत है, जिसमें पूर्व की योजना की तरह ही अधिकृत नगरीकरण का दृष्टिकोण रहे, लेकिन इसमें अधिक वित्तीय खर्च करने के साथ ही सक्रिय और कठोर एवं समयबद्ध क्रियान्वयन समय-अवधि हो.

राज्यों की साझेदारी

अपनी “एकीकृत छोटे और मध्यम शहरों के विकास” (Integrated Development of Small and Medium Towns – IDSMT) योजना के माध्यम से, भारत सरकार ने 1970 के दशक में अपने एकीकृत छोटे और मध्यम शहरों के विकास की कोशिश की थी. इस योजना के पीछे की सोच व्यापक थी. माना गया था कि एक शहर की आर्थिक कुशलता, जनसंख्या स्तर के करीब कम होती है, जिस वजह से माना गया कि सरकारी और निजी निवेश को और अन्य जगह पर स्थानांतरित किया जाना चाहिए. जैसा कि राष्ट्रीय नगरीकरण आयोग (1988) द्वारा सुझाया गया था. इस प्रकार के निवेश के पुनर्वितरण से जनसंख्या वितरण और विकासी लक्ष्यों के प्रसार को  समर्थन भी मिलता है. हालांकि, सीमित वित्तीय बजट की वजह से, IDSMT एक कमज़ोर प्रयास था. इसमे भारत जैसे बड़े देश पर असर डालने की क्षमता/ताकत नहीं थी. इसके बाद इस योजना को समर्थन देने और राशि नियोजित करने की जगह उसे बंद कर दिया गया. वर्तमान समय में देश को IDSMT की एक बेहतर और अपग्रेडेड वर्ज़न/ संस्करण की ज़रूरत है, जिसमें पूर्व की योजना की तरह ही अधिकृत नगरीकरण का दृष्टिकोण रहे, लेकिन इसमें अधिक वित्तीय खर्च करने के साथ ही सक्रिय और कठोर एवं समयबद्ध क्रियान्वयन समय-अवधि हो. इसके अभाव में, कार्यक्रम को मज़बूत करने और उसमें संसाधन डालने के बजाय इस योजना को समाप्त कर दिया गया. जैसा पहले हुआ करता था, देश को आज हुबहू उसी तरह के शहरीकरण के विकेंद्रीकृत विज़न, की दरकार है, परंतु जो कि बहुत बड़ा, सशक्‍त और सख़्त कार्यान्‍वयन के समय सीमा वाली, IDSMT की एक बेहतर और परिष्कृत वर्ज़न हो.      

किसी राष्ट्रीय कार्यक्रमों की अनुपस्थिति और बदतर राज्य साझेदारी से भारत के शहरीकरण और उसके महत्वपूर्ण शहरों को क्षति पहुंचेगी. शहरी सेंटरों की कमी से भारत के शहरीकरण में सुस्ती आएगी, जैसा कि अतीत में भी देखा गया था. इसके साथ ही, मेगासिटी अपनी ओर ले जाने की क्षमताओं से परे, अपर्याप्त बुनियादी सुविधाओं  और विफलताओं व खराब होते रहने की गुंजाईश को निरंतर कम करते रहेंगे. सीमित उत्पादकता के बावजूद, मेगाशहर और भी ज़्यादा राजस्व अर्जित करेंगी, परंतु साथ ही यह नागरिकों के लिए भी कमी पैदा करेगी. प्रत्येक आने वाले व्यक्ति को शहर में समायोजित करने का मतलब अपनी बहु-आवश्यकताओं के लिए जगह बनाना है – जैसे आवासीय, कार्यक्षेत्र, मनोरंजन, शिक्षा, हेल्थकेयर, जल, सैनिटेशन, और अपशिष्ट प्रबंधन. ये सारी चीजें शहर के पर्यावरणीय स्थिरता की कीमत पर आती है. विश्‍व जनसंख्‍या दिवस को एक सोचा-समझा हुआ स्मरण-पत्र बनाने के लिए, भारत को विकेन्द्रीकृत शहरीकरण में निवेश करके, अपने नागरिकों के लिए बेहतर भविष्‍य की पेशकश करनी चाहिए.

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Ramanath Jha

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Dr. Ramanath Jha is Distinguished Fellow at Observer Research Foundation, Mumbai. He works on urbanisation — urban sustainability, urban governance and urban planning. Dr. Jha belongs ...

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