टास्क फोर्स 6: एक्सीलरेटिंग एसडीजीज़: एक्सप्लोरिंग न्यू पाथवेज़ टू द 2030 एजेंडा
सार
G20, बेहतर स्वास्थ्य और कल्याण के लिए प्रतिबद्ध है. इस कार्य पर ध्यान केंद्रित करने के लिए विकास और स्वास्थ्य कार्य समूह बनाए गए हैं. एजेंडा 2030 के लिए कार्रवाई के दशक के संदर्भ के तहत ये पॉलिसी ब्रीफ G20 देशों में मातृ, नवजात शिशु, बच्चे और किशोर स्वास्थ्य और कल्याण (MNCAH&W) की मौजूदा स्थिति की समीक्षा करता है. ब्रीफ में इस बात की जांच की गई है कि इन क्षेत्रों के परिणाम, कोविड-19 महामारी से कैसे प्रभावित हुए हैं. G20 देश जनसंख्या के इस वर्ग को हुए नुक़सानों की भरपाई कैसे कर सकते हैं, इस पर विशिष्ट प्रस्ताव भी पेश किए गए हैं. तमाम सिफ़ारिशें G20 की वर्तमान स्वास्थ्य प्राथमिकताओं के अनुरूप हैं. ये वरीयताएं स्वास्थ्य आपात स्थितियों की रोकथाम, तैयारी और प्रतिक्रिया, डिजिटल स्वास्थ्य नवाचार और सार्वभौमिक स्वास्थ्य कवरेज में सहायता के लिए समाधान के साथ-साथ वैश्विक स्वास्थ्य ढांचे को मज़बूत करने पर ज़ोर देती हैं.
1.चुनौती
महिलाओं, बच्चों और किशोरों का स्वास्थ्य और बेहतरी किसी देश की मानव पूंजी के विकास में केंद्रीय स्थान रखता है. लिहाज़ा, इस पर बारीक़ी से ध्यान देना ज़रूरी है. दुनिया भर में करोड़ों महिलाएं, बच्चे और किशोर ग़रीबी, खाद्य असुरक्षा, गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुंच की कमी के साथ-साथ शिक्षा और सामाजिक सुरक्षा नीतियों की कमी से जूझ रहे हैं. इसके चलते वो स्वास्थ्य, विकास और कल्याण को लेकर अपने अधिकारों से वंचित रह जाते हैं. तकनीक के मोर्चे पर तेज़ रफ़्तार नवाचारों वाले मौजूदा युग में आबादी के बड़े समूह पीछे छूट रहे हैं, जिससे विषमताएं बढ़ रही हैं. ऐसे हालात टकरावों और प्रवास यानी पलायन के साथ-साथ पर्यावरण संबंधी गिरावटों को जन्म देते हैं. इससे ग़रीबी का ऐसा दुष्चक्र पैदा होता है जो पीढ़ी दर पीढ़ी चलता रहता है. जलवायु परिवर्तन से जुड़े ख़तरे लगातार बढ़ते जा रहे हैं. ऐसे ख़तरे और कोविड-19 जैसी महामारियां हालात को और गंभीर बना रहे हैं.
MNCAH&W में निवेश की आवश्यकता और अनिवार्यता
MNCAH&W में निवेश करने के छह प्रमुख कारण हैं:
- मानवाधिकार: दरअसल महिलाओं, बच्चों और किशोरों के स्वास्थ्य और कल्याण में निवेश करना नीतिगत विकल्पों में से एक नहीं है; बल्कि ये अपने आप में एक लक्ष्य है. ये क़वायद मानवाधिकारों से जुड़ी अनिवार्यता है, लिहाज़ा सरकारों का बुनियादी कर्तव्य है.[i] वयस्कों की तुलना में, बच्चों और किशोरों के पास अपने अधिकारों को लेकर मांग उठाने की क्षमता कम होती है. इसलिए सरकारों का कर्तव्य है कि वो बच्चों और किशोरों को उनके अधिकार दिलाने में मदद करें और उन सेवाओं तक पहुंच प्रदान करें जो उनके स्वास्थ्य और कल्याण को बढ़ावा देती हैं.
- बीमारी और चोट का बोझ और जनसांख्यिकीय (demographic) और महामारी विज्ञान से जुड़े परिवर्तन: बच्चे और किशोर (20 साल से कम आयु वाले) वैश्विक आबादी का एक तिहाई हिस्सा हैं. साथ ही प्रसव उम्र की महिलाएं कुल आबादी का एक चौथाई हिस्सा और हैं. लिहाज़ा महिलाएं, बच्चे और किशोर दुनिया के आधे से अधिक आबादी की हिस्सेदारी करते हैं.[ii]यह वैश्विक समुदाय के भले में होगा कि वो इन समूहों के स्वास्थ्य और कल्याण के साथ-साथ तथाकथित ‘डेमोग्राफिक डिविडेंड’ की अनदेखी ना करे. दरअसल युवाओं की यही आबादी भविष्य के समाज में समृद्धि और जन-कल्याण लाती है. जलवायु के मोर्चे पर आपात परिस्थितियां प्रतिकूल परिणाम दिखा रही हैं. रोज़गार और कामकाज की प्रकृति बदलती जा रही है, जिसके लिए उच्चस्तरीय कौशल की दरकार है. ऐसे में जनसंख्या के इन वर्गों के स्वास्थ्य और कल्याण को सुनिश्चित करने और उन्हें 21वीं सदी के लिए ज़रूरी कौशलों से लैस करने की तात्कालिकता बढ़ गई है. बेशक़, 1990 के बाद से छोटे बच्चों की मृत्यु दर आधी हो गई है, लेकिन ये नाटकीय गिरावट दूसरे या तीसरे दशक में दिखाई नहीं दी है (परिशिष्ट 1 देखें). इसके अलावा, बहुत से बच्चे, जो भले ही जीवित रह जाते हैं, लेकिन जीवन में आगे बढ़ पाने में नाकाम रहते हैं.[iii] मातृ मृत्यु दर में गिरावट का दौर तो कोविड-19 महामारी से पहले ही सुस्त पड़ गया था. लिहाज़ा मातृ मृत्यु दर को कम करने के प्रयासों को दोगुना किया जाना चाहिए. अहम बात ये है कि पिछले दशकों में शिशु, बाल और किशोर मृत्यु दर और रुग्णता (morbidity) को कम करने की दिशा में हासिल की गई कामयाबियां हाथ से फिसल भी सकती हैं. इस तरह के अनेक उदाहरण मौजूद भी हैं. मिसाल के तौर पर जब भी टीकाकरण के दायरे में गिरावट आई, खसरे के प्रकोप ने दोबारा सिर उठा लिया है.[iv] कोविड-19 महामारी के दौरान किशोरों के बीच मानसिक स्वास्थ्य विकारों में ज़बरदस्त बढ़ोतरी हुई;[v] टकरावों के दौरान दस्त और निमोनिया से छोटे बच्चों की मृत्यु में तेज़ी से इज़ाफ़ा हुआ;[vi] और जलवायु परिवर्तन के कारण वेक्टर-जनित बीमारियों (vector-borne diseases) में वृद्धि हुई है.[vii] हाथ से फिसल गई कामयाबियों को दोबारा हासिल करने की क़ीमत काफ़ी ज़्यादा हो सकती है.
- मानव पूंजी विकास और निवेश पर रिटर्न: MNCAH&W में निवेश की अहमियत, मृत्यु दर (जिसकी ऊपर चर्चा हो चुकी है) और दिव्यांगता के तत्कालिक बोझ तक सीमित नहीं है. बचपन और किशोरावस्था के दौरान अपनाए गए व्यवहारों का भविष्य के वयस्क स्वास्थ्य और कल्याण पर गहरा और अक्सर आजीवन रहने वाला प्रभाव पड़ता है.इनमें उत्पादकता और जीवन संतुष्टि शामिल हैं.[viii] महिलाओं, बच्चों और किशोरों के स्वास्थ्य और कल्याण में निवेश करने से देश की मानव पूंजी मज़बूत होती है. साथ ही, देश की संपत्ति, भविष्य के विकास की क्षमता, और दरिद्रता (extreme poverty) को समाप्त करने के साथ-साथ अधिक समावेशी समाज बनाने की क्षमता भी बढ़ती है.[ix], [x], [xi] शुरुआती दौर में बाल विकास में निवेश से आजीवन मिलने वाले फ़ायदों को ठीक ढंग से (G20 समेत) पहचाना गया है.[xii], [xiii] G20 समर्थित पोषण देखभाल ढांचे[xiv] ने अनेक देशों में नीतियों और कार्यक्रमों पर असर डाला है.[xv] हाल ही में, किशोर स्वास्थ्य और कल्याण में निवेश पर बेहतरीन रिटर्न भी प्रदर्शित हुए हैं. इस कड़ी में “बेस्ट-बाय” हस्तक्षेपों के अधिकांश पैकेजों के लिए निवेश किए गए प्रत्येक डॉलर के बदले 5-10 डॉलर का आर्थिक रिटर्न और कुछ दख़लों के लिए तो 10 से ऊपर का अनुपात प्राप्त हुआ है.[xvi], [xvii]
- प्रभावी हस्तक्षेप और वितरण प्रणालियां मौजूद हैं: विशिष्ट प्रकार के हस्तक्षेप और हस्तक्षेपों का समूह प्रभावी हो सकता है. इस बात के ठोस प्रमाण उपलब्ध हैं. राष्ट्रीय स्तर पर कामयाबी भरे कार्यक्रमों के उदाहरण बढ़ रहे हैं. WTO ने सार्वभौम स्वास्थ्य कवरेज को लेकर ज़रूरी हस्तक्षेपों के सार का एक संग्रह तैयार किया है, जिसमें इन्हें शामिल किया गया है.[xviii] प्राथमिक स्वास्थ्य सेवा प्रणालियों के ज़रिए इन्हें बड़े पैमाने पर प्रभावी ढंग से लागू किया जा सकता है.
- कोविड-19 महामारी, जलवायु संकट और टकराव के प्रभाव: बच्चों, किशोरों और माताओं पर कोविड-19 महामारी का ख़ास तौर पर हानिकारक प्रभाव पड़ा है. उदाहरण के तौर पर बच्चों में टीकाकरण सेवाओं (immunization services) के कवरेज में 2019 से 2020 और 2021 तक नाटकीय रूप से गिरावट आई.[xix] विद्यालयों और उच्च शिक्षण संस्थानों के बंद होने के चलते करोड़ों बच्चे, किशोर और युवा आमने-सामने हासिल होने वाली शिक्षा से वंचित हो गए.[xx] सबसे ग़रीब छात्रों पर इसका सबसे बुरा प्रभाव पड़ा.[xxi] देखभाल सेवा पहुंचाने वाले कर्मियों (caregivers) के मानसिक स्वास्थ्य पर भी कुप्रभाव पड़ा.[xxii]इन कुप्रभावों को दूर करने के लिए लक्षित पहल और निवेश की दरकार होगी. जलवायु संकट भी महिलाओं, बच्चों और किशोरों पर नकारात्मक असर डाल रहा है. इसके चलते जीवन के हर मोड़ पर दीर्घकालिक परिणाम झेलने होंगे. आज के बच्चे और युवा ही भविष्य में जलवायु संकट के कुप्रभावों का सामना करेंगे. बेहिसाब गर्मी, सूखे और बाढ़ का उनके स्वास्थ्य और पोषण, स्कूली शिक्षा और शैक्षणिक प्राप्ति, सुरक्षा और संरक्षा (safety) पर सीधा असर होगा. इसमें कोई शक़ नहीं कि जलवायु परिवर्तन पहले से ही विस्थापन और प्रवासन के साथ-साथ परिवारों में अफ़रातफ़री का कारण बन रहा है. घबराहट, भय, बेबसी, उदासीनता और मोहभंग की भावनाओं के कारण किशोरों के जुझारूपन में कमी आ रही है.[xxiii], [xxiv] टकराव, जीवन के सभी पहलुओं को बाधित कर देता है. वैसे तो आम तौर पर युवा पुरुष ही प्रत्यक्ष रूप से लड़ाइयों में शामिल होते हैं, लेकिन ऐसे संघर्ष के अप्रत्यक्ष प्रभावों का सबसे बड़ा बोझ महिलाओं, बच्चों और किशोरों को उठाना पड़ता है. टकरावों का भोजन, स्वास्थ्य, शिक्षा और सामाजिक सुरक्षा प्रणालियों पर अप्रत्यक्ष प्रभाव पड़ता है. आकलन के अनुसार बचपन में होने वाली मृत्यु का आधा हिस्सा, संघर्ष और मानवतावादी आवश्यकताओं से जूझ रहे स्थानों में होता है.[xxv]
- डिजिटल कायाकल्प से पैदा होने वाले अवसर और जोख़िम: दुनिया तेज़ रफ़्तार डिजिटल परिवर्तनों के दौर से गुज़र रही है.[xxvi]डिजिटल कायाकल्पों से पैदा अवसर और जोख़िम, बच्चों और किशोरों के लिए विशेष रूप से अहम हैं. बच्चों का लालन-पालन कर रही माताओं के घर से काम करने की क्षमता पर इसका पहले से ही अहम प्रभाव पड़ रहा है.
नीतियों और कार्यक्रमों के केंद्र में महिलाएं, बच्चे और किशोर:
इन चुनौतियों का प्रभावी ढंग से जवाब देने के लिए कार्यक्रमों की संरचना तैयार कर उन्हें क्रियान्वित करना होगा. महिलाओं, बच्चों और किशोरों को ऐसे कार्यक्रमों के केंद्र में रखने की आवश्यकता तेज़ी से महसूस की जा रही है. इसके अलावा, उनकी बेहतरी के सभी आयामों पर विचार करते हुए बहुक्षेत्रीय, समग्र, प्रणाली-आधारित दृष्टिकोण का उपयोग किया जाना चाहिए.[xxvii], [xxviii] इस क़वायद के लिए नीति निर्माताओं और कार्यक्रम लागू करवाने वालों द्वारा महिलाओं, बच्चों और किशोरों के साथ-साथ उनके परिवारों के साथ सार्थक रूप से जुड़ाव बनाना आवश्यक होगा.[xxix] वैसे तो अभी इस दिशा में बहुत कुछ किया जाना बाक़ी है, लेकिन अब धीरे-धीरे MNCAH&W में प्रगति की लगातार निगरानी की जा रही है. हालांकि इस कड़ी में महत्वपूर्ण डेटा अंतराल बने हुए हैं. यहां तक कि G20 देशों के भीतर भी इस तरह के अंतर दिखाई देते हैं. बहरहाल, ग्लोबल एक्शन फॉर मेज़रमेंट ऑफ एडॉलोसेंट हेल्थ (GAMA) समूह जैसी पहल इन अंतरालों को पाटने के तौर-तरीक़ों पर सिफ़ारिश कर रही हैं.[xxx]
महिलाओं, बच्चों और किशोरों के लिए सतत विकास लक्ष्यों को हासिल करने के लिए प्रगति में रफ़्तार भरना:
संयुक्त राष्ट्र महासचिव ने दुनिया भर में महिलाओं, बच्चों और किशोरों के स्वास्थ्य और कल्याण को बढ़ावा देने के 2015 में एक रोडमैप तैयार किया था. सतत विकास से जुड़े लक्ष्यों (SDGs)[xxxi] को हासिल करना इस क़वायद का मक़सद है. इसे महिलाओं, बच्चों और किशोरों के स्वास्थ्य के लिए वैश्विक रणनीति के रूप में विकसित और लॉन्च किया गया था. इसकी 2022 की रिपोर्ट बताती है कि दुनिया भर में, कई देश MNCAH&W से जुड़ने वाले SDGs को पूरा करने से जुड़े लक्ष्य के रास्ते पर नहीं हैं. साथ ही ये भी कहा गया है कि कोविड-19 महामारी, जलवायु संकट और भू-राजनीतिक संघर्षों के घालमेल की वजह से पूर्व में हासिल की गई कामयाबियों पर पानी फिरता जा रहा है.[xxxii] वैसे तो ऐसी प्रतिकूलताएं ग़रीब और उथल-पुथल भरी राज्यसत्ताओं में सबसे गंभीर रही हैं, लेकिन उच्च मध्यम आय वाले देशों (UMICs) और उच्च आय वाले देशों (HIC) के समूह में से ज़्यादातर देशों में हाशिए पर रहने वाली आबादी को भी ऐसी ही चोट सहनी पड़ी है.
- G20 की भूमिका
G20, अंतरराष्ट्रीय आर्थिक सहयोग से जुड़ा एक अहम मंच है. लिहाज़ा MNCAH&W की चुनौतियों का समाधान करने में उसकी भूमिका महत्वपूर्ण है. G20 के देश वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद (GDP) के लगभग 80 प्रतिशत और वैश्विक जनसंख्या के तक़रीबन 60 प्रतिशत हिस्से की नुमाइंदगी करते हैं.[xxxiii] लिहाज़ा G20 सदस्यों की नीतियां और कार्रवाइयां दुनिया भर में स्वास्थ्य और बेहतरी से जुड़े परिणामों पर असर डाल सकती हैं. G20 के राष्ट्र अपने यहां प्रत्यक्ष सुधारों, राष्ट्रीय नेतृत्व और पथ-प्रदर्शन (trailblazing) के माध्यम से और बाक़ी दुनिया को विकास सहायता उपलब्ध कराकर इस क़वायद को अंजाम दे सकते हैं.[xxxiv] ज़ाहिर है, 2030 एजेंडा प्राप्त करने के लिहाज़ से G20 बेहद अहम है. 1999 में अपनी स्थापना के बाद से G20 ने अपने एजेंडे में स्वास्थ्य को तेज़ी से प्राथमिकता दी है, लेकिन आज तक MNCAH&W के मसलों का व्यापक रूप से सीधे तौर पर निपटारा नहीं किया है.
स्वास्थ्य एजेंडे में G20 का नेतृत्व
2017 में G20 स्वास्थ्य कार्य समूह (HWG) की स्थापना की गई थी. इसने स्वास्थ्य और पोषण से संबंधित प्रमुख नीतिगत मुद्दों पर एक साझा अंतरराष्ट्रीय एजेंडा विकसित करने का अवसर दिया. उस समय से ये कार्य समूह मातृ एवं शिशु स्वास्थ्य समेत स्वास्थ्य से जुड़े तमाम मसलों के निपटारे में सक्रिय रूप से शामिल रहा है.[xxxv] 2018 में G20 देशों के स्वास्थ्य मंत्रियों ने एक संयुक्त बयान को स्वीकृति दी. इसमें स्वास्थ्य के सामाजिक निर्धारकों का निपटारा करने की ज़रूरत को पहचाना गया. इस कड़ी में ख़ासतौर से महिलाओं, बच्चों और किशोरों के बीच स्वास्थ्य साक्षरता में सुधार पर ज़ोर दिया गया.[xxxvi] उसी साल G20 के विकास कार्य समूह ने शुरुआती दौर में बचपन के विकास के लिए पहल शुरू की. ये कार्यक्रम जीवन-क्रम (life-course) दृष्टिकोण को बढ़ावा देता है और बच्चों से जुड़े परिणामों में सुधार के लिए एक बहु-क्षेत्रीय रणनीति की वक़ालत करता है.[xxxvii], [xxxviii]
2019 में ओसाका शिखर सम्मेलन में G20 नेताओं के घोषणापत्र में वैश्विक स्वास्थ्य में सुधार के लिए G20 की प्रतिबद्धता को दोहराया गया. साथ ही सार्वभौमिक स्वास्थ्य कवरेज को बढ़ावा देने का आह्वान भी किया गया. इनमें स्वास्थ्य प्रणालियों में मज़बूती लाने की क़वायद भी शामिल है. घोषणापत्र में महिलाओं, बच्चों और किशोरों के स्वास्थ्य और कल्याण से जुड़े मसलों पर ध्यान देने की आवश्यकता की पहचाना की गई. गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुंच में सुधार और लैंगिक समानता को बढ़ावा देकर इन क़वायदों को अंजाम देने की बात कही गई.[xxxix]
2021 में आयोजित स्वास्थ्य मंत्रियों की बैठक में कोविड-19 महामारी और वैश्विक स्वास्थ्य पर इसके प्रभाव पर ध्यान केंद्रित किया गया. इसमें स्वीकारे गए G20 स्वास्थ्य घोषणापत्र में महामारी से निपटने और पहले से अधिक लचीली स्वास्थ्य प्रणालियों के निर्माण को लेकर वैश्विक सहयोग, एकजुटता और नवाचार की आवश्यकताओं पर बल दिया गया. G20 ने स्वास्थ्य के क्षेत्र में भावी आपात स्थितियों से निपटने के लिए टीकों के समान वितरण को बढ़ावा देने और स्वास्थ्य प्रणालियों को मज़बूत करने को लेकर भी प्रतिबद्धता जताई.[xl], [xli]
भारत सरकार ने 2023 में G20 की अध्यक्षता के मद्देनज़र स्वास्थ्य प्राथमिकताओंa में सार्वभौमिक स्वास्थ्य कवरेज और स्वास्थ्य सेवा वितरण में सुधार को एक महत्वपूर्ण मुद्दे के तौर पर चिन्हित किया है. साथ ही डिजिटल स्वास्थ्य नवाचार और समाधानों के लिए कई कार्यक्रमों का प्रस्ताव भी किया है. इनमें वैश्विक स्वास्थ्य डेटा मंच का निर्माण, डिजिटल स्वास्थ्य प्रौद्योगिकियों को बढ़ावा देना और G20 स्वास्थ्य टास्क फोर्स की स्थापना करने जैसी क़वायद शामिल हैं.[xlii] G20 की भारत की अध्यक्षता, महिलाओं, बच्चों और किशोरों के स्वास्थ्य और कल्याण के लिए समूह की प्रतिबद्धताओं की ओर एक बड़ा क़दम आगे बढ़ाने का अवसर प्रदान देती है.
महिलाओं, बच्चों और किशोरों के स्वास्थ्य और सलामती के लिए नीतियों और निवेश की प्रक्रिया को मज़बूत करना
G20 ने महिलाओं, बच्चों और किशोरों के स्वास्थ्य और कल्याण में निवेश के महत्व को स्वीकार किया है. इसके बावजूद, इस दिशा में संदर्भित आवश्यकताओं का प्रभावी ढंग से निपटारा करने के रास्ते में कई चुनौतियां हैं. इनमें लक्षित स्वास्थ्य कार्यक्रमों के लिए पर्याप्त रकम की कमी भी शामिल है. G20 के कई देश, स्वास्थ्य और कल्याण कार्यक्रमों के लिए सीमित बजट की समस्या से जूझ रहे हैं. महिलाओं, बच्चों और किशोरों के स्वास्थ्य और बेहतरी के लिए फंडिंग उनकी प्राथमिकता सूची में अक्सर काफ़ी नीचे होता है. स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुंच की कमी है एक और चुनौती है. ख़ासतौर से निम्न आय वाले (LICs) और मध्यम आय वाले देशों (MICs) में ऐसे हालात देखे जाते हैं. अनेक महिलाओं, बच्चों और किशोरों की बुनियादी स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुंच नहीं हो पाती. इनमें मातृ एवं शिशु स्वास्थ्य सेवाएं, किशोर स्वास्थ्य और/या स्कूलों में स्वास्थ्य सेवाएं, आयु के हिसाब से उपयुक्त यौन और प्रजनन स्वास्थ्य सेवाएं और मानसिक स्वास्थ्य सेवाएं शामिल हैं.
3.G20 के लिए सिफ़ारिशें
- सतत और बढ़ी हुई फ़ाइनेंसिंग:G20 कोMNCAH&W के लिए निरंतर और बढ़ी हुई फंडिंग को प्राथमिकता देनी चाहिए. इसका उद्देश्य स्वास्थ्य प्रणालियों को मज़बूत करना, आवश्यक स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुंच में सुधार करना और ग़रीबी और लैंगिक असमानता जैसे स्वास्थ्य के सामाजिक निर्धारकों का निपटारा करना है. G20 को नई और बेहतर स्वास्थ्य तकनीकों के साथ-साथ टीकों के लिए शोध और विकास में निवेश को भी प्राथमिकता देनी चाहिए. MNCAH&W पर ज़ोर दिए जाने की क़वायद स्वास्थ्य के क्षेत्र में आपात स्थितियों की रोकथाम, तैयारी और प्रतिक्रिया को लेकर भारत सरकार की G20 प्राथमिकताओं के अनुरूप है. इन प्राथमिकताओं में सुरक्षित, प्रभावी, उच्च गुणवत्ता वाले, किफ़ायती टीकों, उपचार और निदान तक पहुंच और उपलब्धता को बढ़ावा देना; और सार्वभौम स्वास्थ्य कवरेज में मदद करने और स्वास्थ्य सेवा वितरण में सुधार के लिए डिजिटल स्वास्थ्य नवाचार और समाधान विकसित करने की क़वायद शामिल हैं. इस मसले पर अपनी निरंतर जारी प्रतिबद्धताओं का इज़हार करने को लेकर G20 नेताओं को एक बड़ा मौक़ा सितंबर 2023 में होने वाले SDG शिखर सम्मेलन में मिलेगा.[xliii] किशोरों के लिए वैश्विक मंच 11 और 12 अक्टूबर 2023 को नियत है.[xliv] इसके अलावा 2024 में समिट ऑफ द फ्यूचर[xlv] भी होनी है, जिसमें जीवन के पहले दो दशकों पर ध्यान केंद्रित किया जाएगा. G20 को इन दोनों क़वायदों (यानी वैश्विक मंच और शिखर सम्मेलन) को बढ़ावा देने, आकार देने और समर्थन देने में अहम भूमिका निभानी चाहिए.
- बहुक्षेत्रीय, समग्र औरप्रणालियों परआधारित दृष्टिकोण: G20 को महिलाओं, बच्चों और किशोरों के स्वास्थ्य परिणामों में सुधार के लिए बहुक्षेत्रीय, समग्र और प्रणालियों पर आधारित दृष्टिकोण अपनाना चाहिए. इस दृष्टिकोण में आवश्यक स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुंच में सुधार के लिए डिजिटल स्वास्थ्य नवाचारों में निवेश को शामिल किया जाना चाहिए. ख़ासतौर से ग्रामीण और वंचित क्षेत्रों में इस तरह के प्रयास किए जाने की दरकार है. G20 को जीवन रक्षक दवाओं और टीकों तक सार्वभौम पहुंच सुनिश्चित करने के लिए दवाओं में निवेश (शोध और विकास समेत) को प्राथमिकता देना जारी रखना चाहिए. G20 को अपने तमाम कार्यक्रमों के लिए जीवन-क्रम दृष्टिकोण अपनाना चाहिए. इस सिलसिले में इस बात की तस्दीक़ की जानी चाहिए कि किसी व्यक्ति के जीवन के हरेक चरण की समस्याएं बाद के चरणों में नकारात्मक प्रभाव डाल सकती हैं. इन समस्याओं में- उचित पोषण और शारीरिक गतिविधि की कमी; बदसलूकी और अनदेखी; और ख़राब मानसिक स्वास्थ्य शामिल हैं. दूसरी ओर, जीवन क्रम के दौरान हस्तक्षेप, एक दूसरे को सुदृढ़ कर सकते हैं. इसमें पालन-पोषण और देखभाल के साथ-साथ खान-पान में सुधार शामिल है. कोविड-19 का प्रकोप थमने के बाद राष्ट्रीय स्वास्थ्य प्रणालियों को मज़बूत करने और विकास सहायता को टिकाऊ रूप देने का काम जारी है. बहुपक्षीय और वैश्विक कार्यक्रमों में निरंतर नेतृत्वकारी पहलों और योगदानों के ज़रिए G20 देशों को नीचे दिए गए कार्यों को प्राथमिकता देनी चाहिए:
* MNCAH&W सेवाओं पर ध्यान केंद्रित करते हुए प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल में निवेश बढ़ाएं;
* आवश्यक स्वास्थ्य सेवाओं और सूचनाओं तक पहुंच में सुधार के लिए डिजिटल स्वास्थ्य समाधान तैयार करें और उनको लागू करें, इनमें टेलीमेडिसिन और ई-स्वास्थ्य प्लेटफॉर्म शामिल हैं;
* सेवाओं के समग्र पैकेज तक न्यायसंगत पहुंच को बढ़ावा देना, इनमें MNCAH&W सेवाओं को प्राथमिकता देने वाली सार्वभौम स्वास्थ्य कवरेज (UHC) नीतियों और रणनीतियों को अपनाने और लागू करने की क़वायद शामिल है; साथ ही उन नीतियों और कार्यक्रमों के क्रियान्वयन में निवेश करें, जो स्वास्थ्य के सामाजिक निर्धारकों का निपटारा करते हैं. इनमें ग़रीबी उन्मूलन के साथ-साथ शिक्षा कार्यक्रम और लैंगिक समानता को बढ़ावा देने वाली नीतियां शामिल हैं;
* स्वास्थ्य के मोर्चे पर आपात स्थितियों का डटकर सामने करने वाली लचीली स्वास्थ्य प्रणालियां तैयार कर उन्हें मज़बूत बनाना. तैयारियों के साथ-साथ स्वास्थ्य आपात स्थितियों के लिए प्रतिक्रिया में निवेश करना, साथ ही स्वास्थ्य निगरानी प्रणालियों और प्रतिक्रिया क्षमताओं में सुधार लाना;
* MNCAH&W को प्रभावित करने वाले कार्यक्रमों और सेवाओं के लिए बजटीय तालमेल सुनिश्चित करना, इसके लिए स्वास्थ्य, शिक्षा, सामाजिक सुरक्षा, वित्त और अन्य में अंतर-मंत्रालयी कार्रवाई समेत अंतर-क्षेत्रीय सहभागिता और समन्वय स्थापित करना. साथ ही ये सुनिश्चित करना कि स्वास्थ्य संबंधी लक्ष्यों और MNCAH&W परिणाम को प्राप्त करने के लिए कई क्षेत्रों को जवाबदेह ठहराया जाए, इसके लिए स्पष्ट प्रदर्शन संकेतकों और रिपोर्टिंग तंत्र स्थापित करना; और
* ज्ञान साझा किए जाने, संसाधनों जुटाने और सामूहिक कार्रवाई को बढ़ावा देने के लिए बहुपक्षीय समन्वय और सहयोग में सुधार लाना, इससे वैश्विक स्वास्थ्य प्रशासन को मज़बूत बनाया जा सकेगा और बेहतर वैश्विक स्वास्थ्य परिणामों के लिए कई क्षेत्रों और उद्योगों में सहयोग को आगे बढ़ाने में मदद मिलेगी.
- नीतियों और कार्यक्रमों की निगरानी और क्रियान्वयन के लिए डेटा प्रणालियों को मज़बूत करना:G20 को नीतियों और कार्यक्रमों की निगरानी और कार्यान्वयन के लिए मज़बूत डेटा प्रणालियों में निवेश को प्राथमिकता देनी चाहिए. इस तरह महिलाओं, बच्चों और किशोरों का स्वास्थ्य और कल्याण सुनिश्चित करने में मदद मिलेगी. इन क़वायदों में डिजिटल डेटा संग्रह, विश्लेषण और शेयरिंग में सुधार के लिए डिजिटल डेटा समाधानों और डेटा इंटर-ऑपरेबिलिटी में निवेश शामिल है.स्वास्थ्य सूचना प्रणालियों में मज़बूती लाने और डेटा की गुणवत्ता और सटीकता सुनिश्चित करने के लिए स्वास्थ्य कर्मियों को कौशल से लैस करना ज़रूरी है. इसके लिए G20 को क्षमता निर्माण और प्रशिक्षण में निवेश को प्राथमिकता देनी चाहिए. इसमें डिजिटल स्वास्थ्य नवाचारों के विकास को सहारा देने की प्रक्रिया शामिल है, जो वास्तविक समय में स्वास्थ्य परिणामों और स्वास्थ्य प्रणाली के प्रदर्शन की निगरानी की सुविधा देता है.
- G20 के वित्त ट्रैक और शेरपा ट्रैक के भीतर महिलाओं, बच्चों और किशोरों के स्वास्थ्य और कल्याण को एक आवर्ती (recurring) एजेंडे के रूप में शामिल करें: महिलाओं, बच्चों और किशोरों के स्वास्थ्य और कल्याण का मसला G20 के वित्त ट्रैक और शेरपा ट्रैक के भीतर G20 की परिचर्चाओं में बार-बार सामने आने वाला एजेंडा आइटम होना चाहिए. G20 को ये बात सुनिश्चित करनी चाहिए. इन क़वायदों में सिविल सोसाइटी, शिक्षा जगत, संयुक्त राष्ट्र एजेंसियों, विकास भागीदारों और निजी क्षेत्र के किरदारों का जुड़ाव बनाने की दरकार है. इससे ये सुनिश्चित हो सकेगा कि नीतियों और कार्यक्रमों के लिए ताज़ातरीन प्रमाण और बेहतरीन तौर-तरीक़ों के बारे में सारी सूचनाएं उपलब्ध रहें. इस महत्वाकांक्षी एजेंडे को लागू करने के लिए G20 को MNCAH&W पर एक समर्पित कार्य समूह भी स्थापित करना चाहिए. इसके अलावा G20 को साझेदारी स्थापित करने और उनमें मज़बूती लाने की दिशा में भी काम करना चाहिए. इससे संसाधनों का भरपूर लाभ उठाने, नवाचार को बढ़ावा देने और MNCAH&W लक्ष्यों को प्राप्त करने की दिशा में प्रगति के लिए जवाबदेही सुनिश्चित हो सकेगी.
- महिलाओं, बच्चों और किशोरों की सार्थक भागीदारी: अंत में, ये आवश्यक है कि महिलाओं, बच्चों और किशोरों को उनके स्वास्थ्य और सलामती से संबंधित नीतियों के विकास और निर्णय लेने की प्रक्रियाओं में सक्रियता से शामिल किया जाए. G20 को नीतिगत निर्णय लिए जाते वक़्त परामर्शी प्रयासों के ज़रिए इन तबक़ों की सार्थक भागीदारी को प्राथमिकता देनी चाहिए. नियमित संवादों और जुड़ाव सत्रों के माध्यम से महिलाओं, बच्चों और किशोरों के संगठनों, नेटवर्कों और प्रतिनिधियों को सक्रिय रूप से शामिल किया जाना चाहिए. इसके लिए सक्षम वातावरण बनाने को लेकर तंत्र स्थापित करने होंगे. इन वर्गों को G20 नेताओं के साथ अपने जीवंत अनुभवों, विचारों और सिफारिशों को सीधे-सीधे साझा करने का अवसर मुहैया कराया जाना चाहिए. इस कड़ी में जहां संभव हो, मौजूदा सहभागिता समूहों का भरपूर लाभ उठाया जाना चाहिए (मिसाल के तौर पर सिविल 20, वूमेन 20 और यूथ 20). साथ ही जहां ज़रूरी हो, नए समूहों की स्थापना भी करनी चाहिए (मसलन, चिल्ड्रेन 20 और/या एडॉलॉसेंट्स 20). इन उपायों से सहभागी परिचर्चाओं को बल मिलेगा और नीतिगत सिफ़ारिशें हासिल हो सकेंगी. साथ ही ये भी सुनिश्चित हो सकेगा कि आबादी के इन वर्गों के स्वास्थ्य और सलामती के क्षेत्र में उनके योगदान G20 के एजेंडे को आकार दे पाएं!
एट्रिब्यूशन: फ्लाविया बस्ट्रेओ, अंशु बनर्जी, डेविड ए. रॉस, थाहिरा शिरीन मुस्तफा, ओमन सी. कुरियन और अंशु मोहन, “मैटरनल, न्यूबॉर्न, चाइल्ड एंड एडॉलॉसेंट हेल्थ एंड वेल-बींग: ए क्रिटिकल एजेंडा फॉर द G20,” T20 पॉलिसी ब्रीफ, मई 2023.
सभी लेखक, बर्नाडेट डेलमैन्स (WHO), कैथलीन स्ट्रॉन्ग (WHO), चियारा सर्विली (WHO), लिसा रॉजर्स (WHO), थेरेसा डियाज़ (WHO) और लोरी मैकडॉगल (PMNCH) को उनके योगदानों के लिए धन्यवाद देते हैं.
परिशिष्ट
परिशिष्ट 1. बीमारी और चोट के बोझ के साथ-साथ जनसांख्यिकीय (demographic) और महामारी विज्ञान में परिवर्तनकारी क़वायदें: अधिक जानकारी
G20 में जीवन के पहले ढाई दशकों के दौरान बीमारी और चोट का बोझ
जैसा कि पॉलिसी ब्रीफ में उल्लेख किया गया है, हाल के समय की प्रमुख वैश्विक उपलब्धियों में से एक ये है कि 1990 के बाद से छोटे बच्चों (पांच वर्ष से कम) के बीच मृत्यु दर आधी हो गई है (टेबल A1). वैसे तो बड़े बच्चों, किशोरों और युवाओं में वैश्विक मृत्यु दर में गिरावट आई है, लेकिन दूसरे या तीसरे दशक में ये गिरावट उतनी दमदार नहीं रही है.[xlvi], [xlvii], [xlviii]
G20 समूह में इन आयु समूहों में बहुत निम्न मृत्यु दर वाले देशों से लेकर मध्यम रूप से उच्च मृत्यु दर वाले राष्ट्र शामिल हैं (चित्र A1).[xlix] पांच साल से कम उम्र के बच्चों में, जैसे-जैसे मृत्यु दर में कमी आती है, जन्मजात विसंगतियों के चलते होने वाली मौतों का अनुपात 5 साल से कम उम्र की मौतों में बढ़ जाता है. संक्रामक रोग, और विशेष रूप से सांस का जटिल संक्रमण, दस्त और टीबी के साथ-साथ समय से पहले जन्म, जन्म के समय दम घुटना/सदमा और सेप्सिस, G20 के भीतर उच्च मृत्यु दर वाले देशों में होने वाली मौतों के प्रमुख कारण हैं (चित्र A2).A1 A2 चित्र 3 में G20 समूह के 19 देशों में बड़ी उम्र वाले किशोरों की मृत्यु के कारणों को दर्शाया गया है. A1 A2 इससे यह देखा जा सकता है कि जैसे-जैसे बड़ी उम्र वाले किशोरों की मृत्यु दर में गिरावट आती है, चोटों और ख़ुद को नुक़सान पहुंचाने की प्रवृतियां, प्रमुख जानलेवा कारक बन जाते हैं. किशोरों की ऊंची मृत्यु दर वाले G20 देशों के लिए कारणों में ज़्यादा भिन्नता रहती है, लेकिन कुछ देशों में छूआछूत वाले रोग (कुछ देशों में विशेष रूप से टीबी और HIV/AIDS) और पारस्परिक हिंसा और अनजाने में लगी चोटें (ख़ासतौर से सड़क यातायात के दौरान लगने वाली चोटें) प्रमुख हैं.
बहरहाल, जीवन के पहले ढाई दशकों में मृत्यु दर में अलग-अलग दरों से गिरावट आ रही है, लेकिन बीमारियों और उनके कारण होने वाली दिव्यांगताओं (disability) का बोझ काफ़ी हद तक स्थिर रहा है. लिहाज़ा रोगों और दिव्यांगता के कारण बीमारी और चोट के बोझ का समग्र अनुपात बढ़ गया है. चित्र A4, G20 के 19 देशों के भीतर, पांच वर्ष से कम उम्र के बच्चों में दिव्यांगता के कारणों को प्रदर्शित करता है. यह दर्शाता है कि जैसे-जैसे इस आयु समूह में मृत्यु दर का बोझ बाएं से दाएं (चित्र में) घटता जाता है, प्रोटीन-ऊर्जा कुपोषण के चलते होने वाली दिव्यांगता के बोझ का अनुपात बढ़ता जाता है, जबकि जन्मजात विसंगतियों के कारण होने वाली दिव्यांगता बढ़ जाती है. नवजात बच्चों में जन्मजात स्थितियों (समय से पहले जन्म, जन्म के समय सदमा और सेप्सिस), दस्त और अस्थमा के कारण होने वाली दिव्यांगता G20 के सभी या लगभग हर देश में महत्वपूर्ण है. जहां तक अपेक्षाकृत बड़ी उम्र वाले किशोरों (15-19 वर्ष) में दिव्यांगता का सवाल है, चित्र A5 से पता चलता है कि G20 के 19 देशों में से उच्च मृत्यु दर वाले देशों में संक्रामक रोगों और आयरन की कमी से होने वाले एनीमिया से दिव्यांगता का बोझ ज़्यादा है. उधर, चोटों के कारण होने वाली दिव्यांगता के अनुपात का बोझ निम्न मृत्यु दर वाले देशों में बढ़ जाता है.A1, A2 मानसिक स्वास्थ्य और नशीले पदार्थों के सेवन से जुड़े विकार सभी 19 देशों में इस आयु वर्ग में दिव्यांगता के प्रमुख कारण हैं.
मृत्यु दर से संबंधित जनसांख्यिकीय परिवर्तन, G20 देशों में प्रदर्शित किए गए हैं (चित्र A1). चित्र A1 में शामिल G20 समूह के सभी 19 देशों में जीवन के पहले 28 दिनों के भीतर मृत्यु की संभावना ज़्यादा होती है. ये अनुपात, नवजात शिशु के जन्म के तत्काल बाद या पहले और पांचवें जन्मदिन के बीच मृत्यु की संभावना से अधिक है. दक्षिण अफ्रीका और जापान इसके अपवाद हैं. हालांकि, पांच वर्ष से कम उम्र में सबसे अधिक मृत्यु दर वाले देशों और सबसे कम मृत्यु दर वाले देशों के संदर्भ में पैदाइशी समय में और नवजात शिशु मृत्यु दर में विशेष रूप से मज़बूत संबंध मौजूद है. सभी 19 देशों में 15वें और 20वें जन्मदिन के बीच मृत्यु की आशंका 5-9 साल और 10-14 साल के आयु समूहों की तुलना में ज़्यादा है. बाद के आयु समूहों मे मृत्यु दर बेहद समान और अपेक्षाकृत नीची है (चित्र A1). कुल मिलाकर रोगों और चोटों के बोझ में ऐसे ही रुझान दिखाई देते हैं, जिन्हें दिव्यांगता समायोजित जीवन वर्षों की हानि (DALYs) के ज़रिए मापा जाता है (चित्र A6).
G20 देशों में महामारी विज्ञान के क्षेत्र में हुए परिवर्तन, मानसिक स्वास्थ्य और नशीले पदार्थों के सेवन संबंधी विकारों, चोटों और ग़ैर-संचारी रोगों (non-communicable diseases) के बढ़ते महत्व पर ज़ोर देते हैं. इनमें जन्मजात विसंगतियों और अस्थमा जैसे रोग शामिल हैं. उधर, संचारी रोगों (communicable diseases) में कमी आई है. इनमें विशेष रूप से सांस के जटिल संक्रमण, छोटे बच्चों में दस्त और टीबी और कुछ देशों में किशोरों में टीबी और HIV/AIDS में आई गिरावट शामिल है, हालांकि ये अब भी अहम बनी हुई है. जन्मजात विसंगतियां,[l] समय से पहले जन्म, A5 मानसिक स्वास्थ्य और नशीले पदार्थों के सेवन से जुड़े विकार,[li] एनीमिया[lii] और पारस्परिक हिंसा,[liii] अनजाने में लगी चोटें[liv] और ख़ुद को नुकसान पहुंचाना/आत्महत्या,[lv] G20 के सभी देशों की प्राथमिकताओं में हैं (चित्र A7 और A8).
मृत्यु दर में सबसे बड़ी कमी संचारी रोगों से हुई है, हालांकि इससे जुड़ा एजेंडा अभी आधा-अधूरा है (टेबल A2)[lvi], [lvii] खासकर इसलिए क्योंकि अधिकांश संचारी रोगों से मृत्यु दर को रोका जा सकता है. संचारी रोगों के बोझ में गिरावटों ने ग़ैर-संचारी रोगों के सापेक्षिक महत्व को बढ़ा दिया है. इनमें समय से पहले जन्म, जन्मजात विसंगतियां, एनीमिया, मानसिक स्वास्थ्य विकार और हिंसा, अनजाने में चोटें और आत्महत्या शामिल हैं. इसने बीमारी और दिव्यांगता के कारण बीमारी और चोट के बोझ का अनुपात भी बढ़ा दिया है।
टेबल A1. वैश्विक मृत्यु दर (0-24 वर्ष) और आयु के अनुसार उनमें आई गिरावटें और मृत्यु का अनुपात A3
आयु |
मृत्यु दर, 2021 |
मृत्यु दर में गिरावट (%) 1990-2021 i |
25 वर्ष की आयु से पहले सभी मौतों का अनुपात (%), 2021 ii |
नवजात शिशु (0-27 दिन) (मृत्यु/1000 जीवित प्रसव) |
18 |
52 |
33 |
1-59 महीने (मृत्यु/आयु सीमा में प्रवेश करने वाली 1000 जनसंख्या) |
21 |
64 |
38 |
5-9 वर्ष (मृत्यु/1000 जनसंख्या) |
3 |
70 |
7 |
10-14 वर्ष (मृत्यु/1000 जनसंख्या) |
3 |
40 |
5 |
15-19 वर्ष (मृत्यु/1000 जनसंख्या) |
5 |
38 |
8 |
20-24 वर्ष (मृत्यु/1000 जनसंख्या) |
6 |
33 |
10 |
Key: I डेटा को पूर्णांक बनाए जाने की वजह से अनुमानित
ii पूर्णांक में तब्दील किए जाने के कारण प्रतिशतों का योग 100% नहीं होता.
टेबल A2. मृत्यु के कारणों के प्रमुख समूहों के हिसाब से जीवन के पहले 25 वर्षों में वैश्विक मृत्यु दर, 2019 A11, A12
मृत्यु की वजह |
5 वर्ष से कम (%) |
5-24 वर्ष (%) |
संचारी, मातृ, प्रसवकालीन और पोषण संबंधी स्थितियां |
72.3 |
38.5 |
चोट |
5.0 |
32.9 |
ग़ैर संचारी रोग (जन्मजात विसंगतियों और मानसिक स्वास्थ्य समेत) |
22.5 |
28.6 |
चित्र A1: G20 के 19 सदस्य देशों में उम्र के हिसाब से मृत्यु की संभावना
चित्र A2: G20 के 19 सदस्य देशों में 5 साल से कम उम्र वाले बच्चों में कारणों के हिसाब से होने वाली मृत्यु का अनुपात
चित्र A3: G20 के 19 सदस्य देशों में 15 से 19 साल के युवाओं में कारणों के हिसाब से होने वाली मौतों का अनुपात
चित्र A4: G20 के 19 सदस्य देशों में 5 वर्ष से कम आयु वाले बच्चों में आनुपातिक दिव्यांगता (दिव्यांगता के कारण स्वस्थ जीवन के वर्षों की हानि (YLD))
चित्र A5: G20 के 19 सदस्य देशों में 15-19 वर्ष के युवाओं में आनुपातिक दिव्यांगता (दिव्यांगता के कारण स्वस्थ जीवन के वर्षों की हानि (YLD))
चित्र A6: G20 के 19 सदस्य देशों में उम्र के हिसाब से बीमारियों और चोटों का बोझ (दिव्यांगता-समायोजित जीवन वर्षों (DALYs) का नुक़सान)
चित्र A7: G20 के 19 सदस्य देशों में 5 वर्ष से कम उम्र के बच्चों में कारणों के हिसाब से बीमारियों और चोटों का आनुपातिक बोझ (दिव्यांगता-समायोजित जीवन वर्षों (DALYs) का नुक़सान)
चित्र A8: G20 के 19 सदस्य देशों में 15-19 वर्ष के युवाओं में कारणों के हिसाब से बीमारियों और चोटों का आनुपातिक बोझ (दिव्यांगता-समायोजित जीवन वर्षों (DALYs) का नुक़सान)
a 2023 में G20 अध्यक्षता के लिए भारत सरकार की स्वास्थ्य प्राथमिकताओं में: 1) स्वास्थ्य के मोर्चे पर आपात स्थिति की रोकथाम, तैयारी और प्रतिक्रिया (वन हेल्थ और रोगाणुरोधी प्रतिरोध पर ध्यान देते हुए); 2) सुरक्षित, प्रभावी, गुणवत्तापूर्ण और किफ़ायती चिकित्सा उपायों (टीकों, उपचारों और निदान) तक पहुंच और उपलब्धता पर ध्यान देने के साथ फार्मास्युटिकल क्षेत्र में सहयोग को मज़बूत करना; और 3) सार्वभौम स्वास्थ्य कवरेज में मदद और स्वास्थ्य सेवा वितरण में सुधार के लिए डिजिटल स्वास्थ्य नवाचार और समाधान उपलब्ध कराना; शामिल हैं.
Endnotes
[i] Markus Kaltenborn, et al., Sustainable development goals and human rights (Switzerland: Springer Open, 2020).
[ii] United Nations, World Population Prospects 2022 (New York, USA; UNDESA Population Division, 2022).
[iii] Mark Tomlinson, et al., “What will it take for children and adolescents to thrive? The global strategy for women’s, children’s, and adolescents’ health.” The Lancet Child & Adolescent Health 3, no. 4 (2019): 208-209.
[iv] Venkatesan P. “Worrying global decline in measles immunisation.” The Lancet Microbe (2022): 3:E9.
[v] Cohen, ZP, et al., “The impact of COVID-19 on adolescent mental health: preliminary findings from a longitudinal sample of healthy and at-risk adolescents.” Front Pediatr. (2021): 9:622608.
[vi] WHO and UNICEF. End preventable deaths: Global Action Plan for Prevention and Control of Pneumonia and Diarrhoea. (Geneva, Switzerland: WHO, 2013).
[vii] Thomson MC, et al., “Climate Change and Vectorborne Diseases.” N Engl J Med (2022): 387:1969-78.
[viii] WHO, UNAIDS, UNESCO et al., Global AA-HA! (Accelerated Action for the Health of Adolescents). Guidance to Support Country Implementation (Geneva, Switzerland: 2017).
[ix] World Bank, The human capital project (Washington DC, USA: 2018).
[x] World Bank, The human capital project: frequently asked questions (Washington DC, USA: 2018).
[xi] Donald Bundy, et al., “A commentary on the interagency symposium: ‘Building a healthier future: a human capital perspective on health and education’, presented at the European Congress of Tropical Medicine and International Health, Liverpool, UK, October 2019.” International health 12, no. 4 (2020): 235-237.
[xii] G20, G20 Initiative for Early Childhood Development: Building human capital to break the cycle of poverty and inequality. (Buenos Aires, Argentina: 2018).
[xiii] G20, G20 Leaders’ declaration: Building consensus for fair and sustainable development (Buenos Aires, Argentina: 2018).
[xiv] WHO et al., Nurturing care for early childhood development: a framework for helping children survive and thrive to transform health and human potential (Geneva, Switzerland: WHO, 2018).
[xv] WHO and UNICEF, Nurturing Care Progress Report (Geneva, Switzerland: WHO, in press)
[xvi] Peter Sheehan, et al., “Building the foundations for sustainable development: a case for global investment in the capabilities of adolescents.” The Lancet 390, no. 10104 (2017): 1792-1806.
[xvii] Peter Sheehan et al., The economic case for investment in adolescent well-being (Geneva, Switzerland: PMNCH, 2021)
[xviii] WHO, UHC compendium (Geneva, Switzerland: WHO, 2023)
[xix] WHO, Global Strategy for Women’s, Children’s and Adolescents’ Health (2016–2030). Report to the World Health Assembly by the Director-General. Executive summary (Geneva, Switzerland: WHO, 2023)
[xx] UNESCO, Education: from school closure to recovery (Paris: UNESCO, 2023)
[xxi] World Bank, UNESCO and UNICEF, The state of the global education crisis: A path to recovery. (Washington DC, Paris, New York: 2021)
[xxii] WHO, Global initiative to support parents (Geneva, Switzerland: WHO, 2023)
[xxiii] WHO and UNICEF, Investing in our future: a comprehensive agenda for the health and well-being of children and adolescents (Geneva, Switzerland: WHO, 2021)
[xxiv] Alice McGushin, et al., “Adolescent well-being and climate crisis: adolescents are responding, what about health professionals?.” BMJ; 379 (2022).
[xxv] Neha Singh et al., “Adolescent well-being in humanitarian and fragile settings: moving beyond rhetoric.” BMJ;380 (2023)
[xxvi] Ilona Kickbusch, et al., “The Lancet and Financial Times Commission on governing health futures 2030: growing up in a digital world.” Lancet;398 (2021)
[xxvii] David A Ross et al., “Adolescent well-being: a definition and conceptual framework.” J Adolesc Health;67:472-476 (2020)
[xxviii] Anshu Mohan et al., “Improving adolescent well-being is an urgent global priority.” BMJ;379 (2022) .
[xxix] PMNCH et al, Global consensus statement: Meaningful adolescent & youth engagement (Geneva, Switzerland: PMNCH, 2020)
[xxx] WHO, Global Action for Measurement of Adolescent Health (GAMA) (Geneva, Switzerland: 2023).
[xxxi] Every Woman Every Child, The global strategy for women’s, children’s and adolescents’ health (2016-2030) (Geneva, Switzerland: WHO, 2015)
[xxxii] WHO and UNICEF, Protect the promise: 2022 progress report on the Every Woman Every Child Global Strategy for Women’s, Children’s and Adolescents’ Health (2016–2030) (Geneva, Switzerland: WHO, 2022)
[xxxiii] United Nations, Department of Economic and Social Affairs, Population Division, World Population Ageing 2019 (New York, USA: UNDESA, 2020)
[xxxiv] UNDP, Beyond Recovery: Towards 2030 (2020)
[xxxv] G20, Health Working Group (2017)
[xxxvi] G20, Declaration G20 Meeting of Health Ministers (Mar del Plata, Argentina: 2018)
[xxxvii] G20, Initiative.
[xxxviii] G20, Building consensus.
[xxxix] G20, G20 Osaka Leaders’ Declaration (Osaka, Japan: 2019)
[xl] G20, Italian G20 Presidency. Joint G20 Finance and Health Ministers meeting Communiqué (Rome, Italy: 2021)
[xli] G20, G20 Rome Leaders’ Declaration (Rome, Italy: 2021)
[xlii] G20, G20 India Health Track. Ministry of Health and Family Welfare (New Delhi, India: Press Information Bureau, 2023)
[xliii] United Nations, The 2023 SDG Summit – the High-level Political Forum on Sustainable Development under the auspices of the General Assembly (2023).
[xliv] PMNCH, 1.8 Billion Young People for Change Campaign and the Global Forum for Adolescents (2023).
[xlv] United Nations, The Summit of the Future in 2024 (2023).
[xlvi] WHO, Global health estimates (Geneva: WHO, 2019).
[xlvii] United Nations, Levels and trends in child mortality report (New York, USA: UN IGME, UNICEF, WHO, World Bank, United Nations, 2021)
[xlviii] United Nations, Levels and trends in child mortality report 2022 (New York, USA: UN IGME, UNICEF, WHO, World Bank, United Nations, 2023)
[xlix] WHO, Maternal, newborn, child and adolescent health and ageing data portal (Geneva: WHO, 2023).
[l] WHO, Every Newborn Action Plan (Geneva: WHO, 2023).
[li] WHO, Comprehensive Mental Health Action Plan (Geneva: WHO, 2021)
[lii] WHO, Comprehensive implementation plan on maternal, infant and young child nutrition (Geneva: WHO, 2014)
[liii] WHO, UNODC, UNDP 2014. Global status report on violence prevention (Geneva: WHO, 2014).
[liv] WHO, Injuries and violence (Geneva: WHO, 2023).
[lv] WHO, LIVE LIFE: an implementation guide for suicide prevention in countries (Geneva: WHO, 2021).
[lvi] Jamie Perin et al., “Global, regional and national causes of under-5 mortality in 2000-19: an updated systematic analysis with implications for the sustainable development goals.” Lancet Child Adolesc Health; 6:106-15 (2022)
[lvii] Li Liu et al., “National, regional and global causes of mortality in 5-19-year-olds from 2000-2019: a systematic analysis.” Lancet Glob Health; 10:e337-47 (2022)
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