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Published on Apr 30, 2024 Updated 0 Hours ago

बढ़ती राजनीतिक अस्थिरता और आर्थिक संकट के साथ गिनी के साहेल देशों के गठबंधन में शामिल होने की संभावना बहुत ज़्यादा है.

गिनी में लोकतंत्र को बहाल करना महत्वपूर्ण क्यों है?

ढाई साल पहले पश्चिम अफ्रीका का देश गिनी उस समय सुर्खियों में आया जब 5 सितंबर 2021 को राष्ट्रपति अल्फा कोंडे के तख्तापलट का जश्न मनाने के लिए यहां के लोग सड़कों पर उतर गए. राष्ट्रपति कोंडे एक तानाशाह थे जो 2010 से देश की सत्ता संभाल रहे थे. कोंडे के पतन ने पूरे महाद्वीप में दिलचस्पी जगा दी और इस क्षेत्र के दूसरे निरंकुश नेता घबरा गए. इसका नतीजा माली, बुर्किना फासो और नाइजर पर सेना के कब्ज़े के रूप में निकला

महज़ ढाई साल के भीतर लोकतांत्रिक रूप से चुने गए लेकिन अलोकप्रिय माली, बुर्किना फासो और नाइजर के नेताओं का सत्ता से बेदखल होना और सैन्य सरकार का आना इस क्षेत्र की राजनीतिक संस्कृति को लेकर लंबे समय से चले रहे यकीन पर ज़ोर देता है. वैसे तो पश्चिम अफ्रीका में अतीत में भी कई सैन्य विद्रोह हुए थे लेकिन ये क्षेत्र लगभग 20 वर्षों तक शांत रहा. फिर भी पूरे महाद्वीप में सैन्य विद्रोहों में अचानक तेज़ी- जिसमें बुर्किना फासो, चाड, माली और नाइजर का विद्रोह शामिल है- एक ऐसे क्षेत्र के बंटवारे के बारे में चिंता को जन्म देती है जो अपेक्षाकृत अच्छी तरह से एकजुट है

इस आपसी रक्षा संधि में अलायंस ऑफ साहेल स्टेट्स इस बात पर सहमत हुए कि किसी एक देश पर हमले की स्थिति में वो एक-दूसरे की रक्षा करेंगे. समझौते में ये शर्त भी है कि किसी हथियारबंद विद्रोह को रोकने के लिए तीनों देश आपस में सहयोग करेंगे. 

इसके अलावा सितंबर 2023 में माली, बुर्किना फासो और नाइजर ने 15 सदस्यों वाले क्षेत्रीय आर्थिक संगठन इकोनॉमिक कम्युनिटी ऑफ वेस्ट अफ्रीकन स्टेट्स (ECOWAS) से बाहर निकलने और साहेल देशों का गठबंधन (अलायंस ऑफ साहेल स्टेट्स) स्थापित करने का फैसला लिया जिसे ला अलायंस डेस ईटैटस डू साहेल (AES) के नाम से भी जाना जाता है. इस आपसी रक्षा संधि में अलायंस ऑफ साहेल स्टेट्स इस बात पर सहमत हुए कि किसी एक देश पर हमले की स्थिति में वो एक-दूसरे की रक्षा करेंगे. समझौते में ये शर्त भी है कि किसी हथियारबंद विद्रोह को रोकने के लिए तीनों देश आपस में सहयोग करेंगे. 

अंतर्राष्ट्रीय राजनीति में तुलना करने के अपने ख़तरे हैं. फिर भी गिनी के मौजूदा हालात को देखते हुए गिनी और AES देशों के घटनाक्रम के बीच समानताओं को नज़रअंदाज़ करना मुश्किल है. वास्तव में इस बात की अच्छी संभावना है कि सैन्य धमकियों और प्रतिबंधों से मुश्किल में आया गिनी रक्षा के लिए सैन्य गठबंधन की तरफ रुख कर सकता है. इसके अलावा, चूंकि तीनों में से किसी भी देश की समुद्र तक सीधी पहुंच नहीं है, ऐसे में समुद्री पहुंच होना इस संगठन के भीतर गिनी की स्वीकार्यता को और मज़बूत करता है.

इमेज: अलायंस ऑफ साहेल स्टेट्स और गिनी

गिनी में घटनाक्रम

पश्चिम अफ्रीकी देश गिनी प्राकृतिक संसाधनों से भरा-पूरा है. गिनी दुनिया के कुल बॉक्साइट का 22 प्रतिशत से ज़्यादा उत्पादन करता है, इस तरह ये दुनिया में बॉक्साइट का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक है. गिनी लौह अयस्क, हीरे और सोने का भी उत्पादन करता है. चीन के कुल बॉक्साइट आयात का 55 प्रतिशत गिनी सप्लाई करता है. इस तरह ये चीन का सबसे बड़ा बॉक्साइट सप्लायर है. फिर भी वर्षों की अस्थिरता ने गिनी को दुनिया के सबसे ग़रीब देशों में से एक बना दिया है. 2010 में कोंडे के देश के पहले लोकतांत्रिक नेता के रूप में चुने जाने से पहले ही गिनी दो सैन्य विद्रोहों का गवाह बन चुका था. 1984 में लंसाना कोंटे और 2008 में मूसा दादीस कमारा के सैन्य शासन के दौरान गिनी में ड्रग्स की तस्करी और सरकारी पैसे के भ्रष्टाचार का बोलबाला था

तथ्य ये है कि संवैधानिक तौर पर मंज़ूर राष्ट्रपति के पद पर दो कार्यकाल के बाद राष्ट्रपति कोंडे की काफी आलोचना की गई. इसकी वजह ड्रग्स की तस्करी और सरकारी पैसे के दुरुपयोग का व्यापक आरोप है. इसके बावजूद उन्होंने राष्ट्रपति के रूप में दो बार से ज़्यादा के कार्यकाल की मंज़ूरी के लिए संविधान में बदलाव को हरी झंडी दी. इसलिए जब कर्नल ममाडी डौंबौया के नेतृत्व में गिनी की स्पेशल फोर्स ने कोंडे की सरकार का तख्तापलट किया तो गिनी के लोग एक मज़बूत और ख़ुशहाल लोकतंत्र की ठोस संभावना को लेकर बेहद उत्साहित थे. 

उम्मीद के मुताबिक तख्तापलट के बाद एलान के दौरान कर्नल डौंबौया ने सच्ची देशभक्ति जगाई. सत्ता संभालने के बाद डौंबौया ने दावा किया कि किसी भी कीमत पर कब्ज़ा बनाए रखने की कोशिश करने वाले राष्ट्रपति को हटाकर विद्रोह ने गिनी के लोगों के हित में काम किया है

उन्होंने एक शांतिपूर्ण और समावेशी बदलाव को आसान बनाने के लिए राष्ट्रीय स्तर पर सलाह का वादा भी किया. इसके अलावा उन्होंने अपनी सैन्य सरकार को नेशनल कमेटी ऑफ रैली एंड डेवलपमेंट (NCRD) का नया नाम भी दिया. इस तरह उन्होंने इन अफवाहों को बढ़ावा दिया कि वो ख़ुद को एक नागरिक उम्मीदवार के तौर पर पेश करने के कोशिश कर रहे हैं

जब कर्नल ममाडी डौंबौया के नेतृत्व में गिनी की स्पेशल फोर्स ने कोंडे की सरकार का तख्तापलट किया तो गिनी के लोग एक मज़बूत और ख़ुशहाल लोकतंत्र की ठोस संभावना को लेकर बेहद उत्साहित थे. 

ये दावा करना ठीक नहीं होगा कि डौंबौया के प्रशासन ने अपने ढाई साल के कार्यकाल के दौरान कोई काम नहीं किया. कोंडे की सरकार के दौरान हुए वित्तीय और आर्थिक अपराधों की सुनवाई के लिए एक कोर्ट की स्थापना की गई. कोंडे के कई सहयोगियों, जिन पर भ्रष्टाचार और हेरफेर के आरोप थे, को हिरासत में लिया गया. डौंबौया प्रशासन ने 28 सितंबर 2009 को कोनाक्री स्टेडियम में हुए नरसंहार, जिसे संयुक्त राष्ट्र (UN) ने मानवता के ख़िलाफ़ अपराध बताया था, के लिए ज़िम्मेदार लोगों पर मुकदमा चलाने की प्रक्रिया भी आसान बना दी. इसके अलावा, डौंबौया ने वास्तविक बुनियादी ढांचे की परियोजनाओं के निर्माण और राष्ट्रीय परामर्श की भी शुरुआत की

लेकिन ढाई साल के बाद लोकतंत्र को लेकर उम्मीद निराशा में बदल गई. 2022 में सैन्य सरकार ने सभी तरह के प्रदर्शनों पर रोक लगा दी और विपक्ष के कई नेताओं, सिविल सोसायटी के सदस्यों और पत्रकारों को हिरासत में ले लिया. इंटरनेट की उपलब्धता पर कई बार पाबंदियां लगाई गईं. इससे भी ख़राब बात ये हुई कि फरवरी 2024 में सैन्य सरकार ने अस्थायी प्रशासन, जो कि जुलाई 2022 से सत्ता में था, को भंग कर दिया. इसके अलावा सैन्य सरकार ने सभी अस्थायी सरकारी सदस्यों के खातों को फ्रीज़ करने का आदेश दिया. उनके यात्रा दस्तावेज़ों को ज़ब्त कर लिया गया और बिना कुछ कारण बताए उनकी सरकारी गाड़ियों, बॉडीगार्ड और सहायकों को हटा लिया गया. वैसे तो इस कदम को लेकर लोगों की प्रतिक्रिया के बारे में अभी तक पता नहीं चला है, लेकिन ये लोकतांत्रिक चुनाव की दिशा में उठाया गया सही कदम नहीं लगता जिसकी उम्मीद गिनी के ज़्यादातर लोग कर रहे थे

गिनी की घटनाओं का व्यापक अर्थ

गिनी की स्थिति इस समझ के मामले में अंतरराष्ट्रीय नीति निर्माताओं के लिए महत्वपूर्ण जानकारी उपलब्ध कराती है कि वहां का लोकतांत्रिक प्रयोग असफल क्यों हुआ और लोकतंत्र की तरफ बदलाव को फिर से शुरू करने के लिए किस तरह की घरेलू और विदेशी सहायता गिनी की मदद कर सकती है. गिनी की मौजूदा घटनाएं माली की तरह की हैं जो सैन्य सरकार के द्वारा नागरिक प्रशासन को बिना किसी बाधा के सत्ता सौंपने के अपना दायित्वों को पूरा करने में विफलता के बाद राजनीतिक अस्थिरता से घिरा देश है. सैन्य सरकार ने राष्ट्रपति का चुनाव टालने का फैसला लिया और अस्थायी संप्रभु परिषद (ट्रांज़िशनल सॉवरेन काउंसिल) के तहत निर्धारित चुनाव के ठीक एक महीने पहले ECOWAS से अलग हो गया

AES के तीन देशों से अलग गिनी सक्षम हाथों में दिखता है. हालांकि ये नया घटनाक्रम कई लोगों को फिर से सोचने पर मजबूर कर सकता है इसकी वजह से गृहयुद्ध की स्थिति बन सकती है. राजनीतिक सुधार और अंत में लोकतंत्र की तरफ बदलाव को सभी विद्रोही नेताओं के मुख्य लक्ष्य के रूप में बताया जाता है लेकिन ऐतिहासिक सबूत संकेत देते हैं कि लोकतंत्र लाने की प्रक्रिया में सेना एक विश्वसनीय सहयोगी नहीं है. दूसरी तरफ सैन्य दखल का नतीजा संभवत: ऐसे लोकतंत्र के रूप में निकल सकता है जो स्थिर हो जाता है, देश को फिर से तानाशाह की तरफ ले जाता है

रूस और गिनी के बीच ऐतिहासिक रूप से मज़बूत संबंधों को देखते हुए ये AES में शामिल होने के गिनी के फैसले को बढ़ावा दे सकता है और उसमें तेज़ी ला सकता है. 

मौजूदा समय में गिनी गंभीर आर्थिक संकट का सामना कर रहा है. गिनी की लगभग आधी जनसंख्या बेहद ग़रीबी में गुज़र-बसर कर रही है. आर्थिक संकट के साथ जुड़ी सामाजिक व्यवस्था में तेज़ गिरावट ने वास्तव में सत्ता पर डौंबौया के कब्ज़े को आसान बना दिया है. कई विशेषज्ञ नव-उपनिवेशवाद के लिए अफ्रीका की स्तरहीन लोकतांत्रिक और आर्थिक स्थिति को ज़िम्मेदार ठहराते हैं. ये नैरेटिव निश्चित रूप से गैर-पश्चिमी उभरते देशों जैसे कि ईरान, चीन और रूस को फायदा पहुंचाएगा. साफ तौर पर रूस को इन घटनाक्रमों का सबसे अधिक लाभ मिलेगा. वागनर ग्रुप, जिसे अब अफ्रीका कॉर्प्स का नाम दिया गया है, और अलायंस ऑफ साहेल स्टेट्स, जिसे रूस पहले ही मान्यता दे चुका है, इस क्षेत्र में रूस का अपना दबदबा स्थापित करने में मदद कर सकते हैं. रूस और गिनी के बीच ऐतिहासिक रूप से मज़बूत संबंधों को देखते हुए ये AES में शामिल होने के गिनी के फैसले को बढ़ावा दे सकता है और उसमें तेज़ी ला सकता है. 

गिनी की खाड़ी में दुनिया के कुल पेट्रोलियम भंडार का 35 प्रतिशत से ज़्यादा मौजूद है. ये क्षेत्र पहले से समुद्री डकैती की व्यापक गतिविधियों से घिरा हुआ है. गिनी के AES में शामिल होने से इस क्षेत्र में अराजकता और बढ़ेगी. मौजूदा स्थिति में अंतर्राष्ट्रीय किरदारों के लिए केवल दो व्यावहारिक विकल्प ही उपलब्ध दिखते हैं: नए सिरे से कठोर आर्थिक प्रतिबंध लगाना या सैन्य कार्रवाई करना या दोनों का मिला-जुला कदम उठाना. फिर भी, इनमें से कोई भी उपाय सैन्य सरकार को अलायंस ऑफ साहेल स्टेट्स में शामिल होने की तरफ प्रेरित कर सकता है. एक और तरीका हो सकता है जो कि तीसरा विकल्प है: संवाद. लोकतांत्रिक सरकार के ढांचे की तरफ गिनी का बदलाव संवाद के ज़रिए सही समावेशिता को बढ़ावा देने के असर और स्थिरता पर निर्भर करेगा


समीर भट्टाचार्य ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन के स्ट्रैटेजिक स्टडीज़ प्रोग्राम में एसोसिएट फेलो हैं.

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