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Published on Mar 18, 2024 Updated 0 Hours ago

दुनिया उथल-पुथल भरे हालात, भारत और खाड़ी देशों के बीच ख़ुफ़िया क्षेत्र में सहयोग के बुनियादी उसूलों को नहीं बदले. बल्कि इन हालात में उपलब्ध अवसरों का दायरा अवश्य बढ़ जाता है.

अनजान क्षेत्र में साझीदार: बदलते पश्चिमी एशिया में भारत और खाड़ी देशों के बीच ख़ुफ़िया संबंध

30 जनवरी 2019 को जब भारत की बाहरी ख़ुफ़िया एजेंसी रिसर्च एंड एनालिसिस विंग की हवाई शाखा एविएशन रिसर्च सेंटर का एक विमान खाड़ी क्षेत्र से आकर भारत के इंदिरा गांधी अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे पर उतरा तो उस पर जासूस निगाह रख रहे थे. जब दुबई से आए उस विमान से ‘दो तैयार पार्सल’ राजीव सक्सेना और दीपक तलवार ने दिल्ली के हवाई अड्डे पर क़दम रखा, तो उनको भारत की जांच एजेंसियों ने हिरासत में ले लिया. ये दोनों, हथियारों के ब्रिटिश सौदागर चार्ल्स माइकल के बेहद क़रीबी थे. दोनों का भारत लाया जाना, खाड़ी देशों की ख़ुफ़िया एजेंसियों के साथ भारतीय एजेंसियों के बढ़ते गोपनीय सहयोग के एक और अंजाम तक पहुंचने का सबूत था.

सवाल ये है कि भारत और खाड़ी देशों के बीच गोपनीय सहयोग में क्या अवसर और उनसे जुड़े जोखिम हैं? और इन रिश्तों का भविष्य क्या हो सकता है?

हाल के दशकों में भारत ने खाड़ी इलाक़े की क्षेत्रीय ताक़तों और विशेष रूप से संयुक्त अरब अमीरात (UAE और सऊदी अरब (KSA) के साथ अपने नज़दीकी रिश्ते बनाने पर काफ़ी ज़ोर दिया है. चूंकि, आज की बहुध्रुवीय दुनिया में भारत के सामरिक हित अक्सर इस क्षेत्र के शक्तिशाली देशों के साथ मेल खाते हैं, ऐसे में इन देशों के बीच ख़ुफ़िया क्षेत्र में सहयोग एक ऐसा मसला है, जिसका पर्याप्त अध्ययन नहीं किया गया है. पर ये दोनों पक्षों की साझेदारी का एक बड़ा ही अहम पहलू है. ऐसे में सवाल ये है कि भारत और खाड़ी देशों के बीच गोपनीय सहयोग में क्या अवसर और उनसे जुड़े जोखिम हैं? और इन रिश्तों का भविष्य क्या हो सकता है?

पृष्ठभूमि

राजीव सक्सेना की गिरफ़्तार, भारत और खाड़ी देशों की ख़ुफ़िया एजेंसियों के बीच गोपनीय जानकारियां साझा करने की तमाम मिसालों में से महज़ एक है. हाल के वर्षों में भारत ने सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात की ख़ुफ़िया एजेंसियों से साथ सहयोग को विशेष रूप से आगे बढ़ाया है. 2010 से 2018 के बीच विदेश से भारत लाए गए 24 भगोड़े अपराधियों में से 18 तो सिर्फ़ सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात (UAE) से पकड़कर लाए गए हैं. इस फ़ेहरिस्त में सैयद ज़बीहुद्दीन अंसारी (ये मुंबई पर 26/11 का आतंकवादी हमला करने की योजना बनाने में शामिल था) और सबील अहमद (2020 में सऊदी अरब से प्रत्यर्पित) तक शामिल रहे हैं. निश्चित रूप से ख़ुफ़िया सहयोग का ये दायरा मध्य पूर्व से आगे तक बढ़ चुका है. दाऊद इब्राहिम का क़रीबी और लश्कर-ए-तैयबा में आतंकवादियों की भर्तियां करने वाले अब्दुल करीम ‘टुंडा’, और इंडियन मुजाहिदीन के सह-संस्थापक यासीन भटकल का 2010 के दशक के मध्य में भारत नेपाल की खुली सीमा से पकड़े जाने में UAE की ख़ुफ़िया एजेंसी ने बड़ी अहम भूमिका अदा की थी. आज भारत और खाड़ी देशों के रिश्ते जिस तरह नई नई ऊंचाइयां छू रहे हैं, ऐसे में ऐसा ख़ुफ़िया सहयोग और बढ़ना तय है. इसकी एक मिसाल रिसर्च ऐंड एनालिसिस विंग और सऊदी अरब की प्रेसीडेंसी ऑफ स्टेट सिक्योरिटी (PSS) के बीच ‘आतंकवादी अपराध और फाइनेंसिंग’ के मामले में हुआ समझौता है, जिस पर अप्रैल 2023 में मुहर लगाई गई थी.

आज जब भारत के सामरिक हित अपने प्रारूप और महत्वाकांक्षा में अधिक वैश्विक होते जा रहे हैं, वैसे में खाड़ी देश भारत को एक निरपेक्ष तीसरे पक्ष के तौर पर ऐसा ठिकाना मुहैया कराते हैं, जहां से वो ख़ामोशी से गोपनीय और पर्दे के पीछे की कूटनीति चला सकता है

फिर भी वैश्विक परिदृश्य बदल रहा है और इसके साथ साथ भारत और खाड़ी देशों के बीच खुफिया संबंधों का सामरिक केंद्र बिंदु भी बदलना चाहिए. एक वक़्त में आतंकवाद से लड़ाई, दुनिया के सुरक्षा एजेंडे और साझेदारियों का प्रमुख क्षेत्र हुआ करता था. वैसे तो ये मुद्दा अब भी चिंता का विषय बना हुआ है. लेकिन, दुनिया के तमाम देशों के बीच बढ़ती प्रतिद्वंदिता की वजह से धीरे धीरे आतंकवाद से लड़ाई का मुद्दा दोयम दर्जे का होता जा रहा है. आज देशों के बीच होड़ और इनके आपूर्ति श्रृंखलाओं और अहम मूलभूत ढांचे की रक्षा पर प्रभाव और उभरती हुई तकनीकों को लेकर विवाद जैसे मसले ज़्यादा अहम हो गए हैं. मध्य पूर्व के देशों में भारत का सामरिक निवेश उसकी क्षेत्रीय बहुपक्षीय कूटनीति के ज़रिए अधिक गहरा होता जा रहा है. जैसे कि I2U2, जो 2020 की शुरुआत में अब्राहम समझौते की वजह से पैदा हुआ था. यही नहीं, आज जब भारत के सामरिक हित अपने प्रारूप और महत्वाकांक्षा में अधिक वैश्विक होते जा रहे हैं, वैसे में खाड़ी देश भारत को एक निरपेक्ष तीसरे पक्ष के तौर पर ऐसा ठिकाना मुहैया कराते हैं, जहां से वो ख़ामोशी से गोपनीय और पर्दे के पीछे की कूटनीति चला सकता है, क्योंकि ख़ुद भारत के लिए इन देशों के साथ पर्दे के पीछे का संवाद विकसित करने की आवश्यकता बढ़ती जा रही है. भारत और खाड़ी देशों के ख़ुफ़िया संबंधों में ऐसी बातों की अहमियत बढ़ती जा रही है. आज ऐसे रिश्तों में उपलब्ध अवसरों, चुनौतियों और उनसे उभरते हुए समाधानों को देखते हुए इनका सावधानी से आकलन आवश्यक होता जा रहा है.

बदलते हुए हालात

आज की दुनिया में बढ़ते हुए ख़तरों के मुद्दे और इनके परिदृश्य बदलते जा रहे हैं. इस वजह से ख़ुफ़िया गतिविधियों पर भी असर पड़ रहा है. भारत और खाड़ी देश, विशेष रूप से संयुक्त अरब अमीरात और सऊदी अरब इस बात को स्वीकार कर रहे हैं. हाल के वर्षों में दोनों ही देशों ने अपनी सामरिक प्राथमिकताओं में बदलाव किए हैं, ताकि वो बहुध्रुवीय विश्व में एक ताक़त के रूप में काम करने की अपनी क्षमता का विस्तार कर सकें. इससे भारत के हितों के साथ तालमेल बिठाने का एक नया मैदान तैयार हुआ है. ये बात हम UAE और सऊदी अरब के BRICS का सदस्य बनने के रूप में देख रहे हैं.

ऐसे सामरिक मंज़र में आपूर्ति श्रृंखलाएं सुरक्षित बनाने और क्षेत्रीय कनेक्टिविटी को बढ़ावा देने की साझा प्रतिबद्धताओं ने भी भारत और मध्य पूर्व के बीच आर्थिक गलियारे (IMEC) जैसी योजनाएं बनाने को प्रोत्साहन देने का काम किया है. इन देशों द्वारा आर्थिक विविधता और अहम एवं उभरती तकनीकों पर ज़ोर देते हुए दुनिया भर में अपनी ताक़त का प्रदर्शन करने पर भी ज़ोर दिया जा रहा है, जैसे कि सऊदी अरब नियोम (NEOM) जैसे स्मार्ट शहरों और अहम खनिजों के क्षेत्र में निवेश कर रहा है. वहीं, संयुक्त अरब अमीरात ऊर्जा क्षेत्र में विविधता लाने और नई तकनीकों जैसे कि ग्रीन हाइड्रोजन के क्षेत्र में निवेश को बढ़ावा दे रहा है. ये बातें भी दोनों खाड़ी देशों के राष्ट्रीय सुरक्षा और विदेश नीति के औज़ारों में शामिल हैं, जिनके ज़रिए वो आज की बहुध्रुवीय दुनिया में अपने अपने निजी प्रभाव को दिखाते हुए अधिक साहस के साथ काम करने की क्षमता दिखा सकें. बहुध्रुवीय विश्व की वजह से सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात, IMEC जैसे व्यापक सामरिक लक्ष्य हासिल करने के लिए इज़राइल के साथ अपने रिश्ते सामान्य बना रहे हैं. दोनों ही देशों ने संकेत दिया है कि जब गाज़ा में इज़राइली सेना का अभियान समाप्त हो जाएगा, तो वो इज़राइल के साथ अपने संबंध सामान्य बनाने की प्रक्रिया को दोबारा बहाल करेंगे. इन सभी मामलों में सऊदी अरब और UAE के सामरिक हित भारत के हितों से मिलते जुलते हैं; ये ऐसी आम सहमति है, जिसे ख़ुफ़िया सहयोग की मौजूदा प्राथमिकताओं को नई धार देकर हासिल किया जा सकता है.

ऐसे में भारत की ख़ुफ़िया एजेंसियों को पूरे मध्य पूर्व और उससे आगे भी अपनी गतिविधियों का दायरा बढ़ाना होगा, और इलाक़े की अन्य ख़ुफ़िया एजेंसियों की तारीख़ी भूमिका के मुताबिक़ नज़दीकी रिश्ते स्थापित करने होंगे.

ऐसे में राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए महत्वपूर्ण इन उभरते हुए क्षेत्रों को देखते हुए अरब सागर के दोनों छोरों पर ख़ुफ़िया प्राथमिकताओं में विविधता लाई जानी चाहिए. समुद्र में कारोबारी परिवहन और आपूर्ति श्रृंखलाओं को यमन के हूतियों के हमलों जैसी मुश्किलों से सुरक्षित बनाने के लिए गोपनीय समुद्री जानकारी साझा करना, दोनों पक्षों के बीच सहयोग का एक नया क्षेत्र हो सकता है. भारत और खाड़ी देशों के बीच गोपनीय जानकारियां साझा करने के मौजूदा बहुपक्षीय मंचों जैसे कि BRICS और I2U2 और यहां तक कि SCO के साथ साथ द्विपक्षीय स्तर पर भी ऐसी जानकारियों के आदान-प्रदान का दायरा बढ़ाया जाना चाहिए. सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात के अंतरराष्ट्रीय वित्त के बड़े केंद्रों के तौर पर उभरने के पहलू को देखते हुए, गोपनीय जानकारियों के क्षेत्र में सहयोग में फाइनेंशियल इंटेलिजेंस (FININT) पर अधिक ज़ोर दिया जाना चाहिए. इस मामले में ख़ुफ़िया गतिविधियों का क्षेत्र होने की वजह से निजी क्षेत्र को भी शामिल किया जाना चाहिए. चूंकि आज की तारीख़ में निजी क्षेत्र वो जगह है, जहां ख़तरा पैदा करने वाले पैसों के प्रवाह को हथियार बनाते हैं और अवैध फंड को अपने लिए जुटाते हैं. चूंकि निजी क्षेत्र में अधिक पारदर्शिता होती है, इस वजह से दुश्मन ताक़तों द्वारा इसका दुरुपयोग करने की आशंका भी बढ़ जाती है.

इस बुनियादी पारदर्शिता की वजह से काउंटर इंलेजिलेंज की जो चुनौतियां पैदा होती हैं, वो रिसर्च और विकास के क्षेत्र तक फैली हुई हैं. इससे भारत, सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात के बीच बौद्धिक संपदा की चोरी जैसे मसलों पर सहयोग की और ज़रूरत लगती है. चूंकि इस क्षेत्र में विकसित की गई तकनीकें अंतत: कनेक्टिविटी की क्षेत्रीय परियोजनाओं और क्रिटिकल इंफ्रास्ट्रक्चर के क्षेत्र में शामिल की जाती हैं, और इन्हें घुसपैठ की सूरत में दुश्मन सामरिक ताक़तें हथियार बनाकर इस्तेमाल कर सकती हैं. ऐसे में काउंटर इंटेलिजेंस के प्रयास और अहम बन जाते हैं. ऐसे में मशविरा यही है कि इन तीनों देशों के बीच काउंटर इंटेलिजेंस के क्षेत्र में सहयोग में राष्ट्रीय सुरक्षा को महफ़ूज़ बनाने के लिए ज़रूरी उन क्षेत्रों को प्राथमिकता दी जानी चाहिए, जिनमें दुश्मन ताक़तें, मानवीय और साइबर क्षमताओं और आक्रामक और रक्षात्मक पंक्तियों के ज़रिए घुसपैठ कर सकती हैं.

पर्दे के पीछे की कूटनीति: खाड़ी देश और बैक चैनल

चूंकि खाड़ी देश इस इलाक़े के साथ साथ, क्षेत्र के बाहर की अन्य ताक़तों के साथ अपने रिश्तों में विविधता लाने की कोशिश कर रहे हैं. ऐसे में भारत की ख़ुफ़िया एजेंसियों के लिए खाड़ी देशों द्वारा गोपनीय और पर्दे के पीछे की कूटनीति में निभाई जाती रही ऐतिहासिक भूमिकाएं और अहम हो जाती हैं. सऊदी अरब और UAE ने रूस, चीन और यहां तक कि ईरान के साथ भी अपना संवाद काफ़ी बढ़ा लिया है. जबकि ईरान ऐतिहासिक रूप से दोनों देशों का दुश्मन रहा है. लेकिन, इज़राइल और हमास के बीच चल रहे युद्ध के दौरान, सऊदी अरब ने ईरान और अमेरिका के बीच संदेशों आदान-प्रदान का काम किया है. आज की बहुध्रुवीय दुनिया में पर्दे के पीछे की कूटनीति में मध्यस्थ की अहम भूमिका निभाकर दोनों खाड़ी देश दुनिया के कई संघर्षों में अपनी क्षमता से कहीं बड़ी भूमिका अदा कर सकते हैं.

ऐसे में सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात की सुरक्षा एजेंसियों के साथ भारत का सहयोग इस अपेक्षा और उम्मीद के साथ बढ़ाया जा सकता है कि इससे इन देशों द्वारा भारत की सरकार लिए कई देशों के साथ पर्दे के पीछे की बातचीत में सहयोग करने की इच्छा बनी हुई है, फिर चाहे वो दोस्त देशों हों या दुश्मन ताक़तें. खाड़ी देशों के साथ नज़दीकी रिश्तों ने लंबे समय से भारत को अपनी विरोधी ताक़तों के साथ ख़ामोश और गोपनीय बातचीत का मौक़ा मुहैया कराया है. इसकी सबसे उल्लेखनीय मिसाल जनवरी 2021 में देखने को मिली थी, जब पता ये चला था कि संयुक्त अरब अमीरात ने दुबई में भारत और पाकिस्तान के सुरक्षा अधिकारियों के बीच बातचीत की मेज़बानी की थी. हालांकि, बाद में पाकिस्तान ने बड़ी सख़्ती से ऐसे किसी संवाद से इनकार कर दिया था.

फिर भी जोखिम तो बने हुए हैं. 2023 में जासूसी के इल्ज़ाम में आठ भारतीय नागरिकों की क़तर में गिरफ़्तारी और फिर सज़ा दिए जाने की घटना ये दिखाती है कि इस मामले में आज कैसी चुनौतियां हैं, जिनका भारत की सरकार को सामना करना होगा. यही नहीं, इस घटना से खाड़ी देशों की बड़ी शक्तियों के साथ भारत के पर्दे से पीछे चलने वाले प्रभावी संबंधों की ज़रूरत भी उजागर होती है. ऐसे में भारत की ख़ुफ़िया एजेंसियों को पूरे मध्य पूर्व और उससे आगे भी अपनी गतिविधियों का दायरा बढ़ाना होगा, और इलाक़े की अन्य ख़ुफ़िया एजेंसियों की तारीख़ी भूमिका के मुताबिक़ नज़दीकी रिश्ते स्थापित करने होंगे. फिर चाहे क़तर और भारत के मामले में उनके रिश्ते दोस्ताना रहे हों, या फिर निरपेक्ष. ऐसे देशों में मोरक्को, ओमान और बहरीन जैसे देशों की ख़ुफ़िया और कूटनीतिक सेवाएं शामिल की जा सकती हैं. वैसे तो ये छोटे देश हैं. लेकिन, इस क्षेत्र को लेकर उनकी विशेषज्ञता और खाड़ी के देशों के दूसरे देशों की एजेंसियों के साथ उनके संबंध उस वक़्त काफ़ी अहम साबित होंगे, जब भारत और खाड़ी देशों के सुरक्षा आयाम में कोई विपरीत स्थिति पैदा होती है.

निष्कर्ष

भारत और खाड़ी देशों के रिश्ते वैसे तो लंबे समय से साझा दोस्ती पर आधारित रहे हैं. लेकिन, दोनों पक्षों के बीच सुरक्षा और ख़ुफ़िया साझेदारी की डोर बनने वाली आतंकवाद के विरुद्ध लड़ाई के बावजूद, हाल के वर्षों में इन संबंधों में सामरिक पेचीदगी का पहलू बढ़ता गया है. फिर भी, आज की बहुध्रुवीय दुनिया में बढ़ता हुआ दायरा, दोनों पक्षों के बीच गोपनीय सहयोग के अवसर और चुनौतियां, दोनों उपलब्ध कराता है. वैश्विक वित्तीय चुनौतियां, उभरती हुई तकनीकों और निजी क्षेत्रों पर अधिक ज़ोर ही इस साझेदारी को आगे अधिक परिभाषित करेगा. इसी गोपनीय सहयोग से खाड़ी देशों के साथ और उनके ज़रिए छुपकर और पर्दे के पीछे की जाने वाली कूटनीति का मज़बूत आधार स्थापित हो सकेगा. आख़िर में दुनिया के उथल-पुथल

भरे सुरक्षा के हालात, भारत और खाड़ी देशों के बीच ख़ुफ़िया सहयोग की बुनियादी बातों में कोई बदलाव तो नहीं लाते. बल्कि, इनसे उपलब्ध अवसरों का दायरा और बढ़ता है. ज़रूरी है कि हम इन अवसरों का लाभ उठाएं.

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