Published on Jun 23, 2023 Updated 0 Hours ago
BIMSTEC को अधिक संस्थागत बनाने की मांग

जून को बिम्सटेक (बे ऑफ बंगाल इनिशिएटिव फॉर मल्टी सेक्टोरल टेक्निकल एंड इकोनॉमिक कोऑपरेशनने अपनी स्थापना के 26 साल पूरे कर लिएइसकी स्थापना 1997 में हुई थीशुरुआत में भारतथाईलैंडबांग्लादेश और श्रीलंका इसके सदस्य थेबिम्सटेक का एजेंडा बंगाल की खाड़ी क्षेत्र में स्थित देशों के बीच आर्थिक सहयोग और आपस में एक दूसरे से जुड़ने के साथ साथ दक्षिणी और दक्षिणी पूर्वी एशियाई अर्थव्यवस्थाओं के साथ नज़दीकी बढ़ाने को बढ़ावा देना थाबाद में बिम्सटेक की सदस्यता का विस्तार हुआ और म्यांमारनेपाल और भूटान को भी सदस्य बनाया गयाइसके साथ साथ बिम्सटेक के एजेंडे में सुरक्षा और विकास संबंधी मुद्दे भी शामिल कर लिए गएअपने 26 साल के पूरे सफ़र के दौरान ये क्षेत्रीय संगठन कई मामलों में सफल रहातो कई मामलों में नाकाम भी रहा हैजब बिम्सटेक की स्थापना हुई थीतो दुनिया एकध्रुवीय थीलेकिनआज दुनिया एकध्रुवीय नहीं रह गई हैआज क्षेत्रीय शक्तियां वैश्विक अर्थव्यवस्था को आकार देने और सुरक्षा संबंधी नई चुनौतियों का सामना करने में महत्वपूर्ण भूमिकाएं अदा कर रही हैंइससे बिम्सटेक के लिए भी नए अवसर और नई चुनौतियां पैदा हुई हैंऔर इनके कारण BIMSTEC को और अधिक संस्थागत बनाने की मांग भी बढ़ती जा रही है.

अपनी स्थापना के बाद भी बिम्सटेक लंबे वक़्त तक जड़ बना रहा था. लेकिन, 2014 में जब ये स्पष्ट हो गया कि सार्क (SAARC) अब बिल्कुल कारगर नहीं रह गया है, और बंगाल की खाड़ी का आर्थिक और सामरिक महत्व बढ़ने लगा, तो दक्षिण एशिया के बिम्सटेक सदस्यों ने इस क्षेत्रीय समूह के ज़रिए आर्थिक एकीकरण और कनेक्टिविटी को आगे बढ़ाना शुरू कर दिया.

अपनी स्थापना के बाद भी बिम्सटेक लंबे वक़्त तक जड़ बना रहा थालेकिन2014 में जब ये स्पष्ट हो गया कि सार्क (SAARC) अब बिल्कुल कारगर नहीं रह गया हैऔर बंगाल की खाड़ी का आर्थिक और सामरिक महत्व बढ़ने लगातो दक्षिण एशिया के बिम्सटेक सदस्यों ने इस क्षेत्रीय समूह के ज़रिए आर्थिक एकीकरण और कनेक्टिविटी को आगे बढ़ाना शुरू कर दिया. 2016 में भारत ने गोवा में पहली बार BRICS-BIMSTEC के बीच संपर्क का शिखर सम्मेलन आयोजित कियाइससे पहले काठमांडू में बिम्सटेक का चौथा और कोलंबो में पांचवां शिखर सम्मेलन हो चुका थाइन सभी शिखर सम्मेलनों के दौरान सदस्यों ने कई क्षेत्रों में सहयोग की अपनी क्षमता का प्रदर्शन किया थाइन देशों ने तकनीक के लेनदेन और ग्रिड इंटरकनेक्शन के सहमति पत्रों पर दस्तख़त किएइसके अलावा BIMSTEC के सदस्य देशों ने कनेक्टिविटी के अपने 10 साल के मास्टर प्लान के लिए एशियाई विकास बैंक से भी मदद मांगी.

BIMSTEC: नए अवसर और चुनौतियां

आज बिम्सटेक के सामने कई नई चुनौतियां खड़ी हैकोविड-19 महामारी और रूसयूक्रेन युद्ध ने आपूर्ति श्रृंखलाओं में ख़लल पड़नेवैश्विक आर्थिक दुष्प्रभावोंक़र्ज़ के बढ़ते बोझमहंगाई के साथ साथ ऊर्जा और खाद्य सुरक्षा जैसी समस्याओं को बढ़ा दिया हैजलवायु परिवर्तन की लगातार बढ़ती चुनौती ने चिंता और भी बढ़ा दी हैचूंकि इनमें से ज़्यादातर चुनौतियां बहुत से देशों से जुड़ी हैंऐसे में क्षेत्रीय साझेदारियां ज़रूरी हो गई हैवहींमुद्दों पर आधारित सीमित बहुपक्षीय सहयोग भी बढ़ रहे हैं.

इसके साथ साथ, BIMSTEC देश ख़ुद भी ऐसी कई चुनौतियों का सामना कर रहे हैंजिनका असर पूरे क्षेत्र पर पड़ने की आशंका हैइसके कई सदस्य देशों को ऊर्जा और खाद्य सुरक्षा का ख़ौफ़ सता रहा हैनेपाल की अर्थव्यवस्थाआर्थिक सुस्ती के दौर में दाख़िल हो गई हैश्रीलंकाअपनी आज़ादी के बाद के सबसे बड़े आर्थिक और मानवीय संकट से धीरेधीरे उबर रहा हैअभी भी दोनों देश विदेशी मुद्रा भंडार में गिरावटखाद्य और ईंधन की महंगाई और ज़रूरी सामान की क़िल्लत का सामना कर रहे हैंअपने विदेशी मुद्रा भंडार को बचाने के लिए बांग्लादेश ने अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) से एहतियातन क़र्ज़ देन की गुहार लगाई हैम्यांमार की अर्थव्यवस्था और वहां की सुरक्षा के हालात बेहद ख़राब हैंरोहिंग्या के मुद्दे की वजह सेबांग्लादेश और म्यांमार के रिश्तों में पेचीदगी बनी हुई हैऔरहिंद प्रशांत क्षेत्र में बिम्सटेक की व्यापक महत्वाकांक्षाओं की पूर्ति के लिएक्षेत्रीय एकीकरण और संस्थागत व्यवस्था को मज़बूत बनाना पहले से कहीं ज़्यादा महत्वपूर्ण हो गया है. इसीलिएबिम्सटेक के सदस्य देशों के लिए ये संगठन विदेश नीति की प्राथमिकता बनता जा रहा है.

इरादे और संस्थाकरण

राजनीतिक इच्छाशक्ति ने BIMSTEC में नई जान डाल दी हैअब अपनी सामरिक गतिशीलता का फ़ायदा उठाते हुएमौजूदा भूराजनीतिक माहौल में बिम्सटेक अपनी प्रासंगिकता और ख़ुद को प्रभावी बनाने में नई जान डाल रहा हैबंगाल की खाड़ी क्षेत्र में स्थित देशों के बीच द्विपक्षीयवाद का चलन ज़्यादा असरदार हैऐसे सियासी माहौल में फलने फूलने के लिएबहुपक्षीय संगठनों को अपनी संस्थागत व्यवस्थाओं को मज़बूत बनाने की ज़रूरत हैइस मक़सद से BIMSTEC ने पिछले कुछ वर्षों के दौरान कई क़दम उठाए हैंइनमें सबसे अहम क़दम, 30 मार्च 2022 को हुए पांचवें शिखर सम्मेलन में बिम्सटेक चार्टर को अपनाना थाइस चार्टर से बिम्सटेक के लिए क़ानूनी और संस्थागत ढांचा स्थापित हुआजिससे बिम्सटेक को अपनी भविष्य की प्रगति के लिए एक ठोस आधार मिल गया.

म्यांमार की अर्थव्यवस्था और वहां की सुरक्षा के हालात बेहद ख़राब हैं. रोहिंग्या के मुद्दे की वजह से, बांग्लादेश और म्यांमार के रिश्तों में पेचीदगी बनी हुई है. और, हिंद प्रशांत क्षेत्र में बिम्सटेक की व्यापक महत्वाकांक्षाओं की पूर्ति के लिए, क्षेत्रीय एकीकरण और संस्थागत व्यवस्था को मज़बूत बनाना पहले से कहीं ज़्यादा महत्वपूर्ण हो गया है.

इस बुनियाद पर आगे बढ़ते हुए BIMSTEC ने, 9 मार्च 2023 को बैंकॉक में हुई 19वीं मंत्रिस्तरीय बैठक में अपने कामकाज को और अधिक संस्थागत स्वरूप देने के लिए अहम दस्तावेज़ों को मंज़ूरी देते हुए अपनी प्रशासनिक प्रक्रिया को मज़बूत बनाना शुरू कर दिया हैइन दस्तावेज़ों में बिम्सटेक की केंद्रीय व्यवस्थाओं की प्रक्रियाओं के नियम (मंत्रिस्तरीय शिखर बैठकवरिष्ठ अधिकारियों की बैठक और बिम्सटेक की स्थायी कार्यकारी समिति); बिम्सटेक की सेक्टर स्तरीय व्यवस्थाऔर बिम्सटेक के विदेशी रिश्तों से जुड़े दस्तावेज़ शामिल हैंप्रक्रियाओं के इन नियमों पर इस साल नवंबर में होने वाले शिखर सम्मेलन के दौरान मुहर लगने की संभावना हैइनके अलावासदस्य देशों ने एमिनेंट पर्सन्स ग्रुप की सेवा शर्तों को भी मंज़ूरी दे दी हैये समूहबिम्सटेक की भविष्य की राह तय करने के लिए सुझाव देगासमुद्री परिवहन में सहयोग का समझौताजिस पर छठे शिखर सम्मेलन के दौरान दस्तख़त किए जाएंगेऔर बिम्सटेक बैंकॉक विज़न 2030, जिसकी शुरुआत भी छठवें शिखर सम्मेलन के दौरान होगी.

सहयोग के तमाम क्षेत्रों की संख्या को भी BIMSTEC ने 14 से घटाकर सात व्यापक क्षेत्रों में बांट दिया हैवैसे तो इससे निश्चित रूप से बिम्सटेक के लक्ष्य ज़्यादा हासिल करने लायक़ बन जाएंगेमगरकेवल दो लाख डॉलर का मामूली सा बजट एक चिंता का विषय बना हुआ हैवैसे तो बिम्सटेक डेवलपमेंट फंड बनाने के लिए पहल की गई हैताकि योजना बनाना और सहयोग के तमाम क्षेत्रों से जुड़ी परियोजनाओं को लागू करना आसान हो सकेलेकिनअभी इसे लागू नहीं किया जा सकासही मायनों में असरदार होने के लिए बिम्सटेक को पर्याप्त मात्रा में पूंजी की आवश्यकता होगी.

बहुपक्षीयवाद की बेहतरीन मिसालों का अनुकरण

अपने अंदरूनी प्रयासों के साथ साथ, BIMSTEC को अपने जैसे दूसरे बहुपक्षीय संगठनों के कामकाज से भी सीख लेनी चाहिए.

बिम्सटेक के बेहद क़रीब ही एसोसिएशन ऑफ साउथ ईस्ट एशियन नेशंस (ASEAN) स्थित हैजो विकासशील देशों के बीच बहुपक्षीय सहयोग की एक कामयाब मिसाल हैचूंकिबिम्सटेक के कई देश आसियान के भी सदस्य हैं और उनकी चुनौतियां भी साझी हैंऐसे में आसियान का उदाहरणबिम्सटेक को भविष्य में बहुपक्षीय साझेदारियां विकसित करने की राह दिखा सकता हैप्रभावी ढंग से सीखने के लिए आगे चलकर आसियान और बिम्सटेक आपस में भी साझेदारियां कर सकते हैंइस मामले में बिम्सटेक के एक सचिवालय प्रतिनिधिमंडल ने इंडोनेशिया की राजधानी जकार्ता स्थित आसियान मुख्यालय के साथ कई बैठकें की थीइन बैठकों का मक़सद, ‘आसियान की व्यवस्था और बेहतरीन उदाहरणों के बारे में जानकारी बढ़ाने के साथ साथ भविष्य में आसियान और बिम्सटेक के बीच सहयोग की संभावनाएं तलाशना था.’ हालांकिआसियान के अनुभव से सबक़ सीखने के साथ साथबिम्सटेक को ये बात भी याद रखनी होगी कि जहां आसियान की शुरुआत एक सुरक्षा संगठन के रूप में हुई थीवहीं बिम्सटेक मोटे तौर पर एक आर्थिक साझेदारी का मंच है.

सदस्य देशों ने एमिनेंट पर्सन्स ग्रुप की सेवा शर्तों को भी मंज़ूरी दे दी है. ये समूह, बिम्सटेक की भविष्य की राह तय करने के लिए सुझाव देगा; समुद्री परिवहन में सहयोग का समझौता, जिस पर छठे शिखर सम्मेलन के दौरान दस्तख़त किए जाएंगे

दोनों ही संगठनों के सदस्य के रूप में थाईलैंड ऐसे सहयोग को मज़बूती देने में अहम भूमिका निभा सकता हैवहीं इस काम में भारत भी उसकी बख़ूबी मदद कर सकता हैक्योंकि वो बिम्सटेक का सदस्य है और आसियान का डायलॉग पार्टनर हैइन रिश्तों को आगे बढ़ाने में म्यांमार भी महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता थालेकिनउसके घरेलू हालात इस मामले में बाधा बन सकते हैंफिर भीम्यांमार की सत्ताधारी सेना ने बिम्सटेक के साथ जुड़े रहने में लगातार दिलचस्पी दिखाई हैम्यांमार की सरकारी प्रशासनिक परिषद के सदस्य– सीनियर जनरल मिंग ऑन्ग हलाइग ने बिम्सटेक के 26वें स्थापना दिवस पर दोहराया था किउनका देश ‘बिम्सटेक चार्टर में रखे गए लक्ष्यों और मक़सदों को हासिल करने’ को लेकर प्रतिबद्ध हैइससेबिम्सटेक में म्यांमार की दिलचस्पी ज़ाहिर होती है.

आगे की राह

अब चूंकिउभरती आर्थिक और सुरक्षा की चिंताएं दूर करने के लिए बंगाल की खाड़ी क्षेत्र के देशों में एक सक्रिय क्षेत्रीय संगठन की ज़रूरत और उसे लेकर दिलचस्पी बढ़ रही हैतो ये बिल्कुल सही समय है जब BIMSTEC इस क्षेत्र में अपनी एक ख़ास जगह बना लेये इसलिए और भी अहम हो जाता है कि उभरती हुई विश्व व्यवस्था के सामरिक तानेबाने में बंगाल की खाड़ी का क्षेत्र ज़्यादा अहम होगाक्योंकिवैश्विक राजनीति और अर्थव्यवस्था की धुरी अब हिंद प्रशांत की ओर खिसक रही हैजैसा कि भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बिम्सटेक की वर्षगांठ पर अपने संदेश में कहा है कि, ‘लंबे वक़्त से बंगाल की खाड़ीबिम्सटेक क्षेत्र के लोगों के बीच एक पुल का काम करती रही हैसमुद्री सहयोग का समझौता करने और पूरे क्षेत्र में मोटर गाड़ियों की आवाजाही की निर्बाध सुविधा देने के लिए समझौते करने के हमारे मौजूदा प्रयासहमारी सामूहिक सुरक्षाकनेक्टिविटी और समृद्धि के लिए बंगाल की खाड़ी की महत्ता को दोहराने वाले हैं.’

आज जब बिम्सटेक, बंगाल की खाड़ी के एक समुदाय के रूप में उभरने की कोशिश कर रहा है, तो उसे इंडोनेशिया को अपने यहां पर्यवेक्षक देश के तौर पर आमंत्रित करना चाहिए. चूंकि इंडोनेशिया, आसियान का एक प्रमुख देश है और बिम्सटेक के बाक़ी सदस्यों की तरह ही वो समान भू-राजनीतिक दर्जे में आता है.

अधिक प्रभावी ढंग से काम करने के लिए BIMSTEC द्वारा संस्थागत व्यवस्था को मज़बूत बनाने के लिए जो क़दम उठाए गए हैंवो निश्चित रूप से एक अच्छी शुरुआत हैलेकिनआगे की डगर अगर मुश्किल नहीं तो लंबी ज़रूर हैइन कोशिशों को अधिक प्रासंगिक और अर्थपूर्ण बनाने के लिए बिम्सटेक को अपने कामकाज में अलग अलग भागीदारोंऔर ख़ास तौर से स्थानीय समुदायों को शामिल करके अधिक समावेशी बनना होगाइसके अलावाराष्ट्रीय हित बिम्सटेक की प्रगति की राह में रोड़ा  बनेंइसके लिए वो विवादों के समाधान की एक व्यवस्था बना सकता हैजो विचार विमर्श और आम सहमति के सिद्धांत पर काम करेंआज जब बिम्सटेकबंगाल की खाड़ी के एक समुदाय के रूप में उभरने की कोशिश कर रहा हैतो उसे इंडोनेशिया को अपने यहां पर्यवेक्षक देश के तौर पर आमंत्रित करना चाहिएचूंकि इंडोनेशियाआसियान का एक प्रमुख देश है और बिम्सटेक के बाक़ी सदस्यों की तरह ही वो समान भूराजनीतिक दर्जे में आता है. इसलिएअगर उससे मदद मांगी गईतो इंडोनेशिया में बिम्सटेक के कामकाज को और बेहतर बनाने की काफ़ी संभावना हैबिम्सटेक द्वारा बंगाल की खाड़ी में अपनी नियति और दिशा तय करने की काफ़ी संभावना हैऔर इसे पाने के लिए समय की मांग यही है कि ज़्यादा विचार विमर्श किया जाएतुरंत फ़ैसले लिए जाएं और उन्हें प्रभावी ढंग से लाग किया जाए.

The views expressed above belong to the author(s). ORF research and analyses now available on Telegram! Click here to access our curated content — blogs, longforms and interviews.

Authors

Aditya Gowdara Shivamurthy

Aditya Gowdara Shivamurthy

Aditya Gowdara Shivamurthy is an Associate Fellow with ORFs Strategic Studies Programme. He focuses on broader strategic and security related-developments throughout the South Asian region ...

Read More +
Sohini Bose

Sohini Bose

Sohini Bose is an Associate Fellow at Observer Research Foundation (ORF), Kolkata with the Strategic Studies Programme. Her area of research is India’s eastern maritime ...

Read More +