करगिल युद्ध की 25वीं वर्षगांठ पर, हमें यह समझने की जरूरत है कि इस संघर्ष ने हमें क्या सिखाया और क्या बदला है. पिछले पच्चीस वर्षों में, हमने इंटेलिजेंस और रणनीतिक निर्णयों के मामलों में महत्वपूर्ण सबक सीखे हैं. लेकिन यह भी स्पष्ट है कि हमारी कई विफलताएँ सिर्फ इंटेलिजेंस की नहीं, बल्कि इंटेलेक्चुअल रणनीति की भी हैं.
युद्ध के दौरान और इसके बाद उठे मुद्दों ने हमें उत्साह और विश्वासघात के मिश्रण से गुजरने पर मजबूर किया. बालाकोट एयर स्ट्राइक के बाद पाकिस्तान पर कठोर कार्रवाई की कमी और रिएक्टिव दृष्टिकोण ने हमारे सुरक्षा तंत्र को चुनौती दी है. धारा 370 की समाप्ति के बाद कश्मीर में स्थिरता की उम्मीदें पूरी नहीं हो सकीं, और राजनीतिक पहल में भी कई बार विफलता देखने को मिली.
हमने देखा है कि राजनीति और प्रशासनिक विफलता अक्सर जटिल समस्याओं को जन्म देती हैं. सॉफ्ट अलगाववाद की बातें और प्रशासनिक गड़बड़ियाँ हमारे राष्ट्रीय मुद्दों को और जटिल बनाती हैं. अंततः, सभी निर्णय राजनीति से जुड़े होते हैं, और हमें इसके प्रभाव को समझते हुए सही दिशा में कदम बढ़ाने की आवश्यकता है.
करगिल युद्ध की 25वीं वर्षगांठ हमें आत्ममंथन का अवसर देती है. हमें चाहिए कि हम इन सबक को समझें और भविष्य में एक मजबूत और प्रभावशाली रणनीति तैयार करें ताकि हम आने वाली चुनौतियों का सामना बेहतर ढंग से कर सकें.