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विश्व दूरसंचार औऱ सूचना समाज दिवस (WTISD) की स्थापना 2006 में संयुक्त राष्ट्र के विश्व दूर संचार दिवस और विश्व सूचना समाज दिवस को मिलाकर की गई थी. विश्व दूरसंचार दिवस 1969 से इंटरनेशनल टेलीकम्युनिकेशन यूनियन के स्थापना दिवस के जश्न के तौर पर मनाया जा रहा था. वहीं, विश्व सूचना समाज दिवस की स्थापना 2005 में की गई थी, ताकि इन्फ़ॉर्मेशन और क्रिटिकल तकनीकों (ICTs) की बढ़ती अहमियत को रेखांकित किया जा सके.
उसके बाद के बीस वर्षों के दौरान विश्व दूरसंचार औऱ सूचना समाज दिवस लगातार आगे बढ़ रही डिजिटल क्रांति के देशों और लोगों पर पड़ रहे प्रभाव पर विचार करने का एक मौक़ा बन गया है; इस अवसर पर दुनिया भर में फैले टेलीकॉम नेटवर्क के दूरगामी प्रभाव और इन नेटवर्कों के ऊपर निर्मित करोड़ों मूलभूत ढांचों, सेवाओं और ऐप की वजह से आए बदलाव की नैरेटिव पर भी एक नज़र डाली जाती है.
निबंधों की इस श्रृंखला में इस बात की एक झलक देखने को मिलेगी कि सूचना समाज आज कहां खड़े हैं. इस सीरीज़ की शुरुआत कनेक्टिविटी की नए सिरे से परिकल्पना करने के भारत के प्रयासों की पड़ताल की गई है, जबकि अभी भी दुनिया के 2.6 अरब लोग ऑनलाइन दुनिया से नहीं जुड़े हैं. इसके बाद सीरीज़ के दूसरे लेखों में 6G के मामले में अगुवा बनने की वैश्विक होड़ और अगली पीढ़ी के दूरसंचार नेटवर्कों पर पड़ने वाले आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस के प्रभावों का आकलन किया गया है. इस सीरीज़ के केंद्र में चार निबंध हैं, जो 2025 के विश्व दूरसंचार औऱ सूचना समाज दिवस की मुख्य थीम की पड़ताल करते हैं, जो ‘डिजिटल परिवर्तन में लैंगिक समानता’ है. इन लेखों में डिजिटल देख-रेख की अर्थव्यवस्थाओं में महिलाओं की भागीदारी की पड़ताल करते हैं; महिलाओं पर केंद्रित तकनीकी उद्योग की संभावनाओं और चुनौतियों का विश्लेषण करते हैं; डिजिटल भुगतान के मामले में लैंगिक फ़ासले को कम करने का तर्क देते हैं; और आंकड़ों की उस खाई पर नज़र डालते हैं, जो महिलाओं के डिजिटल समावेशन में बाधा बन गए हैं.
इस सीरीज़ का समापन सेमीकंडक्टर का केंद्र बनने की भारत की महत्वाकांक्षाओं की पड़ताल करने के साथ होता है.