-
CENTRES
Progammes & Centres
Location
1001 results found
As of now, the Quad’s formal agenda is modest. It remains a platform for leaders of the four countries to meet each other collectively and bilaterally. Meetings have so far taken up the issue of providing vaccines, building supply chains, mitigating climate change and providing humanitarian relief. An unstated aspect of the Quad grouping is supply-chain resilience and the need to have a chain which is not linked to China.
But New Delhi's decision to send a contingent of the Indian Army for the September 1-7 Vostok 2022 military drill in Russia's far east has raised eyebrows, particularly in the West that is trying to isolate Moscow after the Russian invasion of Ukraine. This is a major exercise involving more than 50,000 troops and 5,000 weapons units, including 140 aircraft and 60 warships, with the participation of troops from China, India, Laos, Mongolia, Nicar
For steady growth in the face of fragile geopolitical contestations, New Delhi needs access to different platforms to pursue interests in multiple geographies
Modi’s visit to Ukraine isn’t about appeasing Western powers after his Moscow visit. It’s about being a credible voice of the global South, the poor nations that suffer when richer ones fight
Though China has gained from the Ukraine crisis, the present situation also places China in a diplomatic bind. A strong proponent of the absolute nature of sovereignty, it does not support separatist movements.
A closer look at a recent interaction between the two sides.
Hasina’s victory will likely put Delhi-Dhaka relations under more scrutiny -with the West expecting India to be vocal about the state of democracy in Bangladesh
Since Putin and Modi last took stock of ties, a new energy and economic relationship has emerged, driven by Russia’s war
European efforts to find a footing in China present opportunities for India.
यूक्रेन युद्ध की बड़ी वजह ही नाटो के प्रति उसकी दिलचस्पी थी. यूक्रेन की नाटो की सदस्यता को लेकर ही रूस ने उस पर हमला किया था. स्वीडन और फिनलैंड की नाटो सदस्यता को लेकर ए�
अमेरिका का यह बयान भारत-अमेरिका के संबंधो के लिए अहम है. पहली बार अमेरिका ने भारत और रूस के संबंधो के स्वीकार किया है. आइए जानते हैं कि बाइडेन प्रशासन के दृष्टिकोण के क्या �
अमेरिकी कांग्रेस द्वारा यूक्रेन के लिए मंजूर किया गया नया सहायता पैकेज निकट भविष्य के लिए भले पर्याप्त हो, वाइट हाउस में नए राष्ट्रपति के आने या आगामी चुनावों में कांग्रे�
हालिया अमेरिका यात्रा के दौरान यूक्रेनी राष्ट्रपति वोलोदिमीर जेलेंस्की ने गर्व से कहा कि यूक्रेन जिंदा है और कभी समर्पण नहीं करेगा.
पिछले दिनों यूक्रेन के मसले पर डोनाल्ड ट्रंप और वोलोडिमिर जेलेंस्की के बीच हुई तीखी नोंकझोक के बाद अमेरिका और यूरोपीय देशों के बीच तनाव बढ़ गया है. लेकिन क्या इस तनाव से वै�
ऐसी भी खबरें आई है जिनमें रूस के अपने कैदियों को युद्ध में झोंकने का दावा किया गया
सुरक्षेच्या गंभीर मुद्द्याच्या पार्श्वभूमीवर आणि युक्रेनचे प्रतिहल्ले चालू असताना लिथुआनिआ येथे होणाऱ्या आगामी शिखर परिषदेसाठी नाटो सदस्य देश एकत्र येणार आहेत.
शेख हसीना यांच्या विजयामुळे भारत आणि बांगलादेशाचे सबंधांवर आणखीन शंका वाढण्याची शक्यता आहे. बांगलादेशातील लोकशाहीच्या स्थितीबद्दल भारताने आवाज उठवावा अशी पश्चिमेची �
रूस आज जिस मुश्किल स्थिति में है, उससे बाहर निकलने के लिए उसे भारत की मदद चाहिए
जपान-नाटो भागीदारी प्रभावी ठरण्याची अपेक्षा आहे. चीन आणि रशियाकडून निर्माण झालेल्या वाढत्या धोक्याच्या पार्श्वभूमीवर नजीकच्या भविष्यात आणखी विस्तारणार आहे.
यूक्रेन युद्ध में अपनी सेना को पीछे करने के बाद पुतिन ने अपनी रणनीति क्यों बदलाव किया है. पुतिन का आंशिक सैन्य लामबंदी क्या है. क्या यूक्रेन जंग एक खतरनाक मोड़ पर पहुंच �
रशियाने केलेल्या चुकांपासून शिकून, पीएलए आक्रमण झाल्यास तैवानच्या राष्ट्रीय संकल्पाला झटपट फटका देऊ शकते.
चीन को लेकर डोनाल्ड ट्रम्प के दिमाग में क्या खिचड़ी पक रही है, इसका अनुमान लगाना आसान नहीं है. एक तरफ वे शी जिनपिंग की सराहना कर रहे हैं, दूसरी तरफ चीन को दुश्मन बताकर उस पर टै�
यह उम्मीद की जा सकती है कि भारतीय नीति-निर्माता और सैन्य योजनाकार अंतहीन से दिखते इन युद्धों से सही सबक ले रहे होंगे.
दुनिया के कई हिस्से इन दिनों लड़खड़ाते दिख रहे हैं, लेकिन एक लिहाज से यह पश्चिमी देशों और संयुक्त राष्ट्र जैसी संस्थाओं की रणनीतिक विफलता का भी संकेत है.
फिलहाल जो परिस्थितियां आकार ले रही हैं उनका यही सार निकलता दिख रहा है कि निवेश के आकर्षक ठिकाने के रूप में उभरता भारत नई वैश्विक व्यवस्था में अपनी अहम जगह बनाता जा रहा है. भा
नाटोची नुकतीच झालेली शिखर परिषद युक्रेनच्या सदस्यत्वाबाबतच्या अपेक्षा पूर्ण करण्यात अयशस्वी ठरली असली, तरी अन्य बाबतीत युक्रेनविषयीची बांधिलकी दुप्पट करण्यात मात्र �
स्थायी शांति का कोई भी प्रस्ताव तभी कारगर हो सकता है जब वह संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता का सम्मान करे और संयुक्त राष्ट्र चार्टर में निहित सिद्धांतों पर आधारित हो.
रूस यूक्रेन जंग में पुतिन की रणनीति से यूरोपीय देशों में बेचैनी है. इसके चलते यूरोपीय देशों में फूट पड़ने की आशंका प्रबल हो गई है. नेटो और अमेरिका की क्या है रणनीति. इसके साथ �
शायद दुनिया एक नई विश्व व्यवस्था के मुहाने पर खड़ी है. लेकिन इस नई विश्व व्यवस्था का ढांचा इस बात पर निर्भर करेगा कि दुनिया के बाकी देश ट्रंप के इन तौर-तरीकों का किस तरह से जव�
रशियाच्या बाहेर संरक्षण पुरवठा साखळीतील निर्माण झालेली अनिश्चितता, तसेच त्यात येणारे व्यत्यय यामुळे भारताच्या विविधीकरण आणि स्वदेशीकरणाच्या प्रयत्नांना गती मिळण्य�
रशिया-युक्रेनमधील युद्ध, तसेच याच सुमारास अमेरिकेचे आंतरराष्ट्रीय अर्थशास्त्रविषयक राष्ट्रीय सुरक्षा उपसल्लागार दलीप सिंग, ब्रिटनच्या परराष्ट्र सचिव लिझ ट्रूस आणि र�
आज दुनिया यूक्रेन की ज़मीन पर जिस संकट को पनपते हुए देख रही है उसके बीज काफी पहले ही पड़ चुके थे. पहले भी रूसी राष्ट्रपति यूक्रेन को लेकर कई बार यह रेखांकित कर चुके थे कि उसका क
ऊर्जा क्षेत्रातील परस्पर सहकार्य पुढे नेण्यासाठी भारत आणि रशिया या दोन भागीदारांनी अवलंबिलेला धोरणात्मक दृष्टीकोन हा द्विपक्षीय संबंधांतील सामर्थ्य आणि विस्तारणा�
अमेरिका ने भारत को अत्याधुनिक रक्षा तकनीक और तेल एवं गैस के साथ ही अन्य उभरती हुई प्रौद्योगिकियों की जो पेशकश की है, उससे व्यापारिक संबंधों को नया आयाम मिलेगा.
भारत को लेकर अब दुनिया भर की अपेक्षाएं बढ़ गई हैं और नई दिल्ली को अंतरराष्ट्रीय मंचों पर गंभीरता से सुना जाने लगा है.
युक्रेन आणि रशियाने लष्करी संघर्षाच्या निर्णायक टप्प्यात प्रवेश केला आहे, जो युद्धाच्या पुढील प्रक्रियेसाठी निर्णायक बनला पाहिजे.
युक्रेनमधील रशियन लष्करी मोहिमेला विरोध करणारे देश अथवा समर्थन करणारे देश असे जगाचे ध्रुवीकरण झालेले दिसते. असे असले तरीही भारताने या मुद्द्यावर तटस्थ भूमिका राखून, कुण
जग अत्यंत संकटात आहे कारण एकामागून एक येणाऱ्या जागतिक आव्हानांना हाताळण्यासाठी राष्ट्रे सुसज्ज नाहीत .
युक्रेनच्या कृषी उद्योगावरील रशियन हल्ल्याने कृषी पुरवठा साखळी मोठ्या प्रमाणात नष्ट केली आहे. त्याचा परिणाम भारतीय अर्थव्यवस्थेवरही झाला आहे.
युक्रेन युद्धाच्या पार्श्वभूमीवर, युरोप रशिया आणि चीन या दोन्ही देशांवरील आपले अवलंबित्व संपवण्याचा प्रयत्न करत आहे.
आता समस्या अशी आहे की संघर्ष बायनरीमध्ये टाकला जात आहे, ज्यामुळे तडजोड करणे कठीण होते. युक्रेन युद्ध सामूहिक जागतिक कृतीची शक्यता दूरच दिसते.
रशियन अर्थव्यवस्थेने जगातील सर्वात मंजूर देश असल्याच्या तोंडावर लवचिकता दर्शविली आहे.