Author : Abhijit Singh

Published on Mar 06, 2019 Updated 0 Hours ago

रणनीतिक तौर पर अंडमान निकोबार द्वीप समूह का उन्नयन और आधुनिकीकरण सही दिशा में उठाया गया कदम है, लेकिन चुनौतियां भी बरकरार हैं।

अंडमान निकोबार की बदलती भूमिका

पोर्ट ब्लेयर, अंडमान में भारतीय नौसेना का जहाज़। स्त्रोत: iStock/Getty

अंडमान निकोबार द्वीप समूह (एएनआई) पर रक्षा संबंधी बुनियादी ढांचे के निर्माण के लिए तैयार प्रस्ताव को मंजूरी देने की भारत सरकार की प्रक्रिया अंतिम चरण में है। मीडिया रिपोर्ताजों के मुताबिक मोदी सरकार ने इस द्वीप समूह पर अतिरिक्त सैनिकों, युद्धपोतों, विमान और ड्रोन के लिए सुविधाओं को बेहतर बनाने के लिए दस वर्ष की योजना तैयार की है जिससे मौजूदा सैन्य सुविधाएं बेहतर होंगी। इसके पहले ये भी खबर आई थी कि उत्तरी अंडमान के शिबपुर स्थित नौसैनिक अड्डे पर आईएनएस कोहासा बन कर तैयार हो गया है जो वहां नौसेना का तीसरा विमानन केन्द्र है। आईएनएस कोहासा ग्रेटर निकोबार की कैंपबेल बे में आईएनएस बाज जैसा है। यह एक ऐसा नौसैनिक एयर स्टेशन है जिसका उन्नयन करके विमानन अड्डे के रूप में तब्दील किया गया है।

इस क्षेत्र में भारत की गतिविधियों में इन दिनों जो तेजी आई है इसका एक बड़ा कारण निश्चित रूप से हिन्द महासागर में चीनी नौसेना की बढ़ती मौजूदगी है। हिन्द महासागर क्षेत्र में पीपुल्स लिबरेशन आर्मी नेवी (प्लान) पनडुब्बियों की तैनाती की वजह से भारत की चिंता थोड़ी बढ़ गयी है। भारतीय पर्यवेक्षकों को संदेह है कि समुद्री डकैती विरोधी अभियान की आड़ में चीन की पनडुब्बियां इस उपमहाद्वीप के तटीय इलाकों की अन्तर्जलीय गतिविधियों के बारे में सूचनाएं जुटाने में लगी हैं। इस वर्ष जनवरी में रायसीना डायलॉग में क्वेड देशों ( अमेरिका, भारत, जापान और आस्ट्रेलिया) और फ्रांस के सेना प्रमुखों की मौजूदगी में हुई चर्चा के दौरान भारतीय नौसेनाध्यक्ष एडमिरल लांबा ने स्पष्ट तौर पर चीन को लेकर भारत की चिंता का उल्लेख किया। एडमिरल ने दावे के साथ कहा कि प्लान हिन्द महासागर में अपनी मौजूदगी का अहसास करा रहा है (भले ही भारतीय नौसेना इस क्षेत्र में एक प्रभावी शक्ति है।) सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण बात ये है कि चीन ने नौसेना आधुनिकीकरण के क्रम में पिछले पांच साल में 80 जहाज तैयार किये हैं जिससे उत्तरी हिन्द महासागर में चीनी नौसेना ने अपनी ताकत काफी बढ़ा ली है।

हिन्द महासागर क्षेत्र में पीपुल्स लिबरेशन आर्मी नेवी (प्लान) पनडुब्बियों की तैनाती की वजह से भारत की चिंता थोड़ी बढ़ गयी है। भारतीय पर्यवेक्षकों को संदेह है कि समुद्री डकैती विरोधी अभियान की आड़ में चीन की पनडुब्बियां इस उपमहाद्वीप के तटीय इलाकों की अन्तर्जलीय गतिविधियों के बारे में सूचनाएं जुटाने में लगी हैं।

अंडमान निकोबार द्वीप समूह के मौजूदा नौसेना एयर स्टेशनों को पूर्णतया विमानन अड्डों में तब्दील करने का एक बड़ा कारण दक्षिण एशियाई समुद्री क्षेत्र में चीनी जहाजों और पनडुब्बियों की बेहतर निगरानी है। इस काम में संभवतया पी-8-आई जैसे महंगे विमानों की तैनाती की जा सकती है। नौसेना के लिए द्वीप समूह में फैले व्यस्त व्यापारिक मार्गों को सुरक्षा मुहैया कराने से दुष्कार कार्य और कुछ नहीं। इस क्षेत्र में जागरूकता फैलाने के दृष्टिकोण से भी अंडमान निकोबार में मौजूद सुविधाओं का महत्व है। भारतीय नौसेना ने हाल में गुरूग्राम में एक सूचना फ्यूजन केन्द्र का उद्घाटन किया है जिसमें कई क्षेत्रीय नौसेनाएं भी शामिल हो सकती हैं। सूचना के संग्रहण एवं इसे साझा करने के प्रयास में भारत अग्रणी भूमिका में है और वह हिन्द महासागर क्षेत्र में जागरूकता फैलाने में मुख्य भूमिका निभाना चाहेगा। निगरानी की बेहतर सुविधाएं और अंडमान निकोबार में रणनीतिक तौर पर महत्वपूर्ण जगहों पर खुकरी श्रेणी के युद्धपोत की तैनाती से सुरक्षा की स्थिति बेहतर होगी।

अंडमान निकोबार कमांड (एएनसी) की भूमिका सिर्फ सक्रिय निगरानी और पनडुब्बी की टोह लेने तक नहीं है बल्कि यह पूर्वी हिन्द महासागर में भारत की रणनीतिक उपस्थिति का सशक्त प्रमाण है। हाल के वर्षों में बंगाल की खाड़ी चीन और चीन की कंपनियों के लिए एक महत्वपूर्ण ठिकाने के रूप में उभरी है और वहां बड़े पैमाने पर जहाजरानी और उर्जा संबंधी उद्यम लगाये जा रहे हैं। अपने क्षेत्रीय प्रभुत्व को और सशक्त बनाने के लिए भारतीय नौसेना ने बंगाल की खाड़ी में अपनी नौसैनिक गतिविधियां बढ़ा दी हैं। भारत की आक्रमणकारी क्षमता को मजबूत बनाने के लिए अंडमान निकोबार में रणनीतिक बुनियादी ढांचे को बेहतर बनाया जा रहा है।

अंडमान निकोबार कमांड (एएनसी) की भूमिका सिर्फ सक्रिय निगरानी और पनडुब्बी की टोह लेने तक नहीं है बल्कि यह पूर्वी हिन्द महासागर में भारत की रणनीतिक उपस्थिति का सशक्त प्रमाण है।

भारतीय टिप्पणीकार वर्षों तक अंडमान निकोबार कमांड में रणनीतिक क्षमता विकसित करने हो रहे विलंब को लेकर अक्सर निराशा जाहिर करते रहे। हांलाकि जो बाहरी तौर पर एक सरल उपाय दिखता था उसका फैसला करना भारत के लिए कभी आसान नहीं रहा। इस मामले में सच्चाई ये थी कि अंडमान निकोबार कमांड को रणनीतिक तौर पर विकसित करने को लेकर भारत के विदेश और रक्षा विभाग के नीति निर्धारकों की राय हमेशा एक नहीं होती थी। भारत की विदेश नीति तय करने वाले समुदाय का एक वर्ग द्वीप समूह को रणनीतिक और सैन्य अड्डे के रूप में परिणत करने के खिलाफ था क्योंकि इस पर दक्षिण एशियाई देशों को ऐतराज होता जो भारत को एक उदार और सौम्य शक्ति मानते थे। वास्तव में जब भारत ने 1990 के दशक के मध्य में अंडमान निकोबार द्वीप समूह में अपनी सैन्य उपस्थिति बढ़ानी शुरू की तो मलेशिया और इंडोनेशिया ने इसे सकारात्मक रूप में नहीं लिया। लेकिन न्यूनतम सुरक्षा उपस्थिति का तर्क उस समय खारिज होता दिखने लगा जब दक्षिण एशिया में चीन की बढ़ती ताकत ने भारत को नाजुक मोड़ पर खड़ा कर दिया।

क्षेत्रीय समुद्री शक्तियों ने हाल के वर्षों में भारतीय नौसेना के साथ अपना सहयोग बढ़ाया है और दक्षिणपूर्व एशिया के तटीय इलाकों में चीन के प्रभुत्व को चुनौती देने की भारत की क्षमता को सराहना भी मिली है। इसका परिणाम ये हुआ है कि अंडमान निकोबार को लेकर भारत के अंदर सर्वसम्मति की स्थिति में भी थोड़ा बदलाव आया है। भारत इस बात को लेकर निश्चिंत है कि रणनीतिक तौर पर उसकी सक्रिय भूमिका से उसकी क्षेत्रीय सम्मानजनक हैसियत पर कोई आंच नहीं आयेगी और इस वजह से वह द्वीप समूह को सैन्य रूप से विकसित करने को लेकर पहले से ज्यादा तत्पर है। भारतीय नौसेना के पूर्व प्रमुख एडमिरल डीके जोशी की 2017 के अक्तूबर में अंडमान निकोबार द्वीप समूह के लेफ्टिनेंट गवर्नर के रूप में नियुक्ति इस बात का संकेत है कि अंडमान निकोबार कमांड को रणनीतिक तौर पर मजबूर बनाने का काम तेजी पर है।

अंडमान निकोबार की विकास योजना का एक महत्वपूर्ण आर्थिक पहलू भी है। वर्ष 2015 में जब सरकार ने अंडमान निकोबार को 10,000 करोड़ रूपये का आबंटन करके समुद्री अड्डे के रूप विकसित करने की पहली बार घोषणा की थी तो मुख्य जोर पर्यटन और बंदरगाह विकास पर था। व्यापार बढ़ाने में द्वीप समूह की क्षमता को मान्यता देते हुए कैंपबेल बे पर पोत टर्मिनल बनाने की योजना है। कैंपबेल बे निकोबार द्वीप समूह में सबसे बड़ा है और मलक्का जलडमरूमध्य से 90 किलोमीटर दूर स्थित है। आईएनएस कोहासा के साथ हवाई क्नेक्टिविटी और हेलीकॉप्टर पर्यटन बढ़ाने के प्रयास किये जा रहे हैं जिनका इस्तेमाल सैन्य उपयोग के लिए भी किया जा सके। इससे केन्द्र की उड़ान योजना को भी बढ़ावा मिलेगा जिससे क्षेत्रीय कनेक्टिविटी बढ़ेगी।

क्षेत्रीय समुद्री शक्तियों ने हाल के वर्षों में भारतीय नौसेना के साथ अपना सहयोग बढ़ाया है और दक्षिणपूर्व एशिया के तटीय इलाकों में चीन के प्रभुत्व को चुनौती देने की भारत की क्षमता को सराहना भी मिली है। इसका परिणाम ये हुआ है कि अंडमान निकोबार को लेकर भारत के अंदर सर्वसम्मति की स्थिति भी थोड़ी बदली है।

नीति आयोग की सिफारिश पर सरकार ने आइलैंड डेवलपमेंट एजेंसी द्वारा तैयार समग्र विकास कार्यक्रम के मद्देनजर अंडमान में रिसॉर्ट और अन्य पर्यटक संबंधी बुनियादी ढांचा समेत बड़े पैमाने पर सामाजिक और बुनियादी ढांचा विकसित करने के लिए वैश्विक उद्यमियों को आमंत्रित किया है। अधिकारी इस मामले में सतर्कता बरत रहे हैं क्योंकि वे जानते हैं कि वहां द्वीपों की संवेदनशील पारिस्थितिकी को ध्यान में रखना जरूरी है। पर्यावरण संरक्षणवादियों ने चेताया है कि बड़े पैमाने पर बुनियादी ढांचे के निर्माण से इसका खतरे में पड़ना स्वाभाविक है।

भारतीय नौसेना द्वारा अंडमान निकोबार का उपयोग मुख्य तौर पर गैरपारंपरिक सुरक्षा सहयोग के लिए किया जाता रहा। कई वर्षों तक अंडमान निकोबार कमांड ने बंगाल की खाड़ी में भारतीय मानवीय प्रयासों को पूरा करने में भूमिका निभाई। वर्ष 2004 में सूनामी राहत कार्यों में अपने अनुभवों का लाभ लेकर क्षेत्रीय समुद्री इलाकों में बड़े पैमाने पर मानवीय सहायता और आपदा राहत (एचएडीआर) अभियानों को अंजाम दिया। नौसेना ने यमन से लोगों को संकट की स्थिति से बाहर निकालने और मालदीव में जल संकट दूर करने के साथ साथ श्रीलंका, बांग्लादेश और इंडोनेशिया में प्राकृतिक आपदाओं के दौरान राहत कार्य चलाने में प्रमुख भूमिका निभाई। पोर्ट ब्लेयर में भारतीय नौसेना का द्विवार्षिक अभ्यास इस क्षेत्र में (दक्षिण पूर्व एशिया सहित) नौसेनाओं का सबसे बड़ा जमावड़ा होता है जिसमें मानवीय राहत और गैर लड़ाकू निकासी अभियान पर विशेष ध्यान दिया जाता है। इस क्षेत्र में सुरक्षा मुहैया कराने वाली अपनी हैसियत का औचित्य सिद्ध करने के लिए जरूरी है कि भारतीय नौसेना द्वीप समूह पर न्यूनतम स्तर तक सेना की मौजूदगी कायम रखे।

अंडमान निकोबार के विकास से ऐसा लगता है कि अंडमान निकोबार कमांड में सेनाओं के बीच आपसी सामंजस्य बेहतर होगा। ये कमांड भारत का एकमात्र सामरिक त्रि-सेना कमांड है। पिछले साल अगस्त के बाद सरकार ने जो कदम उठाये हैं उनसे प्रमाणिक सैन्य एकीकरण को लेकर सरकार की तत्परता दिखती है। पिछले साल जुलाई में सर्वोच्च रक्षा प्रबंधन में बदलाव करते हुए नौसेना को (वस्तुत:) स्थाई रूप से अंडमान निकोबार कमांड का रणनीतिक प्रभार सौंप दिया गया जबकि पहले ये प्रभार बारी-बारी से वायु सेना और सेना के जिम्मे भी हुआ करता था। अब अंडमान निकोबार कमांड के कमांडर-प्रमुख को तीनों सेनाओं से सैन्य साजो सामग्री की मांग करने और जमीन अधिग्रहण के मामलों का निर्धारण करने का अधिकार दिया गया है। साथ ही उसे अतिरिक्त वित्तीय शक्तियां भी प्रदान की गयी हैं।

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