Author : Abhijit Singh

Published on Apr 30, 2018 Updated 0 Hours ago

भारतीय नौसेना का नेतृत्व ये मानता है कि नए युद्धपोत की तैनाती हिन्द महासागर में भारतीय नौसेना की छवि को बदलेगी।

भारत की मिशन रेडी नौसेना

हिन्द महासागर के सभी निकास और प्रवेश पॉइंट पर सख्त निगरानी रखी जा रही है। भारतीय नौसेना के Mission Ready Deployment यानी किसी भी समय तैनाती के लिए तैयार रहने के अंतर्गत यहाँ निरंतर चौकसी की जा रही है। १० महीने पहले नौसेना ने अपने बेड़ों की तैनाती के मिशन में फेरबदल किया है, अब इसे लागू किया जा रहा है। तभी नौसेना के एक अफसर कहते हैं GULFDEP से MALDEP तक, हिन्द महासागर को हमने पूरी तरह सुरक्षित कर लिया है।

हाल की रिपोर्ट्स के अनुसार कुल १५ युद्ध पोत जिनमें डिस्ट्रॉयर, फ्रिगेट और कार्वेट शामिल है, भारत के इर्द गिर्द सात समुद्री क्षेत्रों में गश्त लगा रही है। ये भारत के एक्सक्लूसिव इकॉनोमिक जोन के बहार के क्षेत्र हैं। यहाँ से हिन्द महासागर में अन्दर आने और निकास के सारे पॉइंट पर नज़र राखी जा रही है। फारस की खाड़ी, अदन की खाड़ी, मलक्का स्ट्रेट और sunda स्ट्रेट से हिन्द महासागर तक आने वाले सारे रास्ते और संचार कि लाइन इस में शामिल है। नौसेना गर्व से कहती है की ये जहाज़ सालों भर, रात दिन चौकसी कर रहे हैं और इनकी मदद के लिए है नौसेना का उपग्रह रुक्मिणी (GSAT-7), साथ ही Poseidon P81 पैट्रॉल एयरक्राफ्ट।

भारतीय नौसेना का नेतृत्व ये मानता है कि नए युद्धपोत की तैनाती हिन्द महासागर में भारतीय नौसेना की छवि को बदलेगी। हिन्द महासागर में भारतीय नौसेना कि छवि एक ऐसी शक्ति किहै जो रक्षा तो करता ई लेकिन सिर्फ जवाबी कार्यवाई के तौर पर। एक ऐसा रक्षक जो सिर्फ ज़रुरत पड़ने पर सुरक्षा देता है। नौसेना के रणनीतिकारों के मानना है कि अगर भारतीय युद्ध पोत और विमान लगातार हिन्द महासागर में गश्त लगाते रहेंगे और साथ ही सहयोगी देशों की नौसेना के साथ लगातार युद्धाभ्यास करते रहेंगे तो चीनी नौसेना के जहाज़ और पनडुब्बी को हिन्द महासागर में आने में हिचक होगी।

ये मानना सही नहीं होगा की भारतीय नौसेना चीनी युद्धपोत और पनडुब्बियों को भारतीय समुद्री क्षेत्र में आने से रोक देगी। सबसे पहले तो इसलिए की इस प्लान का असर भारतीय नौसेना पर पड़ेगा, नौसैनिक और लड़ाकू युद्धपोत सालों भर चौबीसों घंटे निगरानी पर रह कर बहुत जल्दी ही थक जायेंगे। हर लड़ाकू जहाज़ को तीन महीने काम पर रहना है और इस हाल में युद्ध के लिए तैयार सारे जहाज़ पायेंगे की ये मिशन का कोई लक्ष्य नहीं और वो लगातार सावधान मुद्रा में हैं।

इस से क्रू में थकान आएगी जिस से समुन्द्र में हादसों और भिडंत का खतरा बढ़ जाता है। ऐसे में ये तैनाती हिन्द महासागर में किसी विदेशी कहाज़ के आने की कोशिश को रोक नहीं पाएगी। दुसरे हर प्रवेश की जगह पर लगातार नज़र बनाये रखने का आईडिया ही सही नहीं है क्यूंकि आपस में व्यापार करने वाले देश ये मानते हैं की महासागर पर उस क्षेत्र के सारे देशों का बराबरी का हिस्सा होता है, समुन्द्र साझा होता है। हाँ अगर किसी समुद्री क्षेत्र पर कई देशों का दावा हो जैसे की दक्षिण चीनी सागर या फिर कोई ऐसा विवादित हिस्सा जहाँ तनाव हो जैसे की फारस की खाड़ी तो बात अलग है। वरना कोई भी समुद्री राज्य किसी दुसरे से समुन्द्र में आने का अधिकार नहीं छीनता। ये संतुलन सिर्फ युद्ध काल में ही बदलता है, जब नौसेना शत्रु को विवादित इलाकों के महत्वपूर्ण या संवेदनशील हिस्से में नहीं आने देती। शान्ति काल में समुद्री सेना को अपने देश की समुद्री हद से बाहर भी जाने की पूरी इजाज़त होती है। इसमें उन्हें कोई रुकावट नहीं होती। अगर कोई दूसरा तटवर्ती राज्य पूर्व सूचना की मांग करे तो भी। मिशन रेडी पैट्रॉल में सैनिक और युद्ध पोत कि दिन रात की मेहनत तो चाहिए ही साथ ही वो बहुत ज्यादा नतीजे भी नहीं दे सकती। किसी दुसरे देश कि सैनिक गतिविधि को हिन्द महासागर क्षेत्र में रोकने के लिए मिशन रेडी पैट्रॉल कारगर साबित नहीं हो सकते।

भारतीय नौसेना के रणनीतिकारों को ये मालूम है की नौसेना की क्षमता में कमी आई है। पिछले साल नौसेना अध्यक्ष एडमिरल लाम्बा ने ये माना था की मल्टी रोल हेलीकाप्टर की कमी है, परंपरागत पनडुब्बी और माईन को बेअसर करने वाले जहाज़ की कमी पर हमें ध्यान देना है। हिन्द मह्सागर में भारत कि चीन विरोधी समुद्री नीति का दक्षिण एशियाई देशों में ज्यादा स्वागत नहीं होगा चूँकि यहाँ बीजिंग ने एक मज़बूत आधारभूत ढांचा भी खड़ा किया है और निवेश भी। भारत की समुद्री सीमा के बाहरी दायरे वाले राज्यों ने तो चीन के बेल्ट रोड पहल का भी स्वागत किया है।

नई दिल्ली के लिए भी अच्छा तो यही होगा कि बीजिंग की समुद्री नीति के तर्ज़ पर एशिया पसिफ़िक क्षेत्र में अपनी नौसेना की ताक़त को राजनीतिक फायदे के लिए इस्तेमाल करे। हाल के सालों में चीनी नौसेना ने हिन्द महासागर में अपनी मौजूदगी लगातार बनाए रखा है और अपनी लगातार मौजूदगी के ज़रिये वो अपनी शक्ति प्रदर्शन करते रहे हैं।

हिन्द महासागर को भारत का ही आँगन मानने से इंकार करते हुए चीन की PLA ने यहाँ भारत के प्रभाव के घेरे में दखल किया है। भारत को जवाब में साऊथ चाइना सी में अपनी शक्ति बढ़ानी चाहिए। लम्बे समय से चीन इसे अपनी जागीर समझता आया है।

हो सकता है की इस प्रक्रिया की शुरुआत हो चुकी है क्यूंकि भारत ने पूर्वी क्षेत्र में अपनी नौसेना कि तैनाती बढ़ा दी है। बीते साल नेवल कमांडर के सम्मलेन में रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमण ने ये माना था कि भारतीय नौसेना कि क्रियाशील रफ़्तार में आई तेज़ी से अब हिन्द प्रशांत महासागर क्षेत्र में भारत कि समुद्री तैनाती बढ़ी है। एक्ट ईस्ट नीति के तहत नौसेना में भी पूर्व की तरफ ध्यान दिया जा रहा है और इसलिए INS सतपुरा और INS कदमत को पूर्व और दक्षिण पूर्व में तैनात किया गया है। इसी साल जब १० ASEAN राज्यों के लीडर भारत आये तो बातचीत में सब से ऊपर समुंदरी सुरक्षा का एजेंडा था। दक्षिण पूर्वी राज्यों ने ये साफ़ कर दिया है की वो भारत को इस क्षेत्र में एक लीडर के रोल में और सक्रिय देखना चाहते हैं, ख़ास तौर पर साउथ चाइना सी में।

लेकिन अगर भारत प्रशांत सागर क्षेत्र में एक सक्रिय समुद्री शक्ति के तौर पर अपनी मौजूदगी बढ़ाना चाहता है तो उसे और सक्रियता और जोश दिखाना होगा। दक्षिण एशिया में भारतीय नौसेना ज्यदा सक्रिय है, यहाँ पनडुब्बियों के खिलाफ ऑपरेशन में जुटी है, लेकिन दक्षिण पूर्वी एशिया में भारतीय नौसेना एक सौम्य पुलिस के रोल में सिमट गयी है। जबकि दुसरे देश यहाँ समुद्री अभ्यास में जुटे हुए हैं, भारत उनके मुकाबले अपनी क्षमता से कम सक्रिय है।

भारत को एशिया पसिफ़िक क्षेत्र में अपनी समुद्री सक्रियता बढ़ने के अलावा कोई विकल्प नहीं है। पसिफ़िक में अपनी सक्रियता अगर भारत बढ़ता है तो दक्षिण पूर्वी एशिया के संवेदनशील तटीय राज्यों में भारत कि एक बड़ी नौसैनिक शक्ति के तौर पर पहचान बढ़ेगी और साथ ही पड़ोस में सामरिक पहचान भी मज़बूत होगी।

ये प्रस्ताव सिर्फ शब्दों का आडम्बर भर नहीं है। अगर भारत पश्चिमी प्रशांत सागर में अपनी नौसैनिक गतिविधियाँ बढ़ता है तो ये चीन के लिए जटिलताएं खड़ी कर सकता है ठीक उसी तरह जैसे हिन्द महासागर में PLA का समुद्री अभियान भारत के लिए एक नयी सामरिक चुनौती खड़ी करता हैं। साउथ चाइना सी में चीन कि जिस तरह की राजनीतिक अपेक्षा है उसमें बाहरी देशों कि नौसैनिक गतिविधियाँ इसे और संवेदनशील बनाते हैं। यानी अगर भारतीय नौसेना दक्षिण पूर्व में अपनी गतिविधियाँ बढ़ाये तो इसका ज्यादा असर होगा, उस से ज्यादा जितना कि भारतीय जानकार समझते हैं।

नौसेना कि क्षमता से ज्यादा दिन रात तैनाती एक अच्छा विकल्प नहीं होगा, ये ज्यादा दिन नहीं चल सकता। इसलिए अपने क्षेत्र में ही अपनी मजबूती बढ़ाना और सही सामरिक फैसले लेना बेहतर विकल्प होगा।

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